नीरज जाट का नाम लेते ही, उनके द्वारा लिखे गये न जाने कितने यात्रा वृत्तान्त मन में कौंध जाते हैं। एक छवि जो किसी साइकिल में लेह की ऊँचाइयों में सड़कों की लम्बाई नाप रहा है। एक छवि जो ग्लेशियरों को उस समय देखने में अधिक उत्सुक है, जब वे जम कर कड़क हो चुके हैं। एक छवि जो रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में अपने घर से अधिक समय बिताता है। एक छवि जो छुट्टी मिलते ही घूमने की योजना में जुट जाता है। एक छवि जो जीवट है, जो जीवन्त है, जो जीना जानती है।
मेरे मन में नीरज के प्रति उत्सुकता चार स्तरों पर है। रेलवे, पर्यटन, ब्लॉगिंग और जीवन शैली। यदि इन चारों स्तरों को संक्षिप्त में कहूँ तो वह इस प्रकार होगा। देश के अन्दर पर्यटन के लिये रेलवे से अधिक मितव्ययी और द्रुतगामी साधन नहीं है। किन्तु रेलवे में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाना ही पर्यटन नहीं है। वहाँ पर रहने की व्यवस्था, पर्यटन स्थलों पर पहुँचने के स्थानीय साधन, भोजन आदि की व्यवस्था, दर्शन योग्य बातें, प्राथमिकतायें और एक पूर्ण पर्यटन अनुभव, इन समस्त बातों को मिला कर एक पर्यटक और एक पर्यटन स्थल का निर्माण होता है।
बहुधा ये सारे सूत्र पूर्व निर्धारित नहीं हो पाते हैं, अनिश्चिततायें अधिक रहती हैं, अधिकाधिक सुनिश्चित करने में अधिक धन व्यय होने संभावना रहती है, बहुधा तथ्यों का अभाव रहता है। पर्यटन एक व्यवसाय है, संभव है कि सामने वाला आपसे ही सारा लाभ लेने की मानसिकता में हो। रेलवे में, होटल में स्थान की उपलब्धता, स्थानीय साधनों की जानकारी, अधिक स्थानों को देखने का क्रम, ऐसी न जाने कितनी अनिश्चितताओं से भरा होता है हमारा पर्यटन।
एक पर्यटक के रूप में किस तरह नीरज उन अनिश्चितताओं को जीते हैं और किस तरह एक ब्लॉगर के रूप में उन्हें व्यक्त करते हैं, यह एक रोचक विषय है। साथ ही, अपनी व्यस्त घुमक्कड़ी का अपनी जीवन शैली से कैसे सामञ्जस्य बिठा पाते हैं, यह भी उतना ही रोचक विषय है।
उत्सुकता यद्यपि पिछले २ वर्षों से थी और पिछले वर्ष मिलने का निश्चय भी किया था, सेलम में, पर मेरी व्यस्तता उस भेंट को निगल गयी। इस वर्ष नीरज के कर्नाटक भ्रमण में निकटतम बिन्दु और अवकाश आदि की स्थिति देखने के बाद शिमोगा स्थित जोग फॉल में मिलने का योग बन गया। हम सुबह १० बजे ही सपरिवार जोग फ़ॉल में पहुँच गये, सोचा था बैठ कर बातें करेंगे, भोजन करेंगे। फ़ोन करने पर पता चला कि नीरजजी की एक ट्रेन छूट गयी है अतः दोपहर बाद ही आना होगा। हम लोग अपने कार्यक्रम में बढ़ गये और सायं ५ मिनट के लिये ही शिमोगा में मिल पाये।
हम लोग जब भी किसी यात्रा के लिये निकलते हैं तो उसी समय निकलते हैं जब घर में सबकी छुट्टियाँ चल रही हों। यही कारण रहता है कि जब लोग घूमने जाते हैं तो उस समय हर स्थान पर भीड़ बहुत रहती है, हर किसी साधन और संसाधन के लिये। ऐसे समय में व्यवस्थायें जुटा पाना किसी प्रतियोगी परीक्षा में विजयी होने जैसा होता है। एक एक व्यवस्था के लिये अत्यधिक श्रम करना पड़ता है और बहुधा बहुत धन व्यय हो जाता है। इतने बँधे हुये कार्यक्रम में घूमना कम, स्थानों को छूकर और उपस्थिति लगा आने जैसी स्थिति हो जाती है।
अतिव्यवस्था में पर्यटन का स्वभाव घुटने लगता है, पर्यटन एक उत्पाद सा हो जाता है और स्थान देख आना उस उत्पाद का मूल्य। इसमें पर्यटन का आनन्द कहीं खिसक लेता है। यही नहीं हम जो सोच कर जाते हैं़ पर्यटन स्थल उससे कहीं भिन्न मिलता है। तब हम धन द्वारा साधे अपने सधे कार्यक्रम में बँधे अधिक हिल डुल नहीं पाते है और औसत से नीचे का अनुभव लेकर चले आते हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि जब भी पर्यटन को बाँधने का प्रयास किया है, स्वतन्त्र हो पर्यटन का आनन्द नहीं उठा पाये।
नीरज की पर्यटन तकनीक इन सब बन्धनों को तोड़ती सी दिखती है। उनकी घुमक्कड़ी में एक सहजता है, एक जीवटता है, एक खुलापन है, एक आनन्द है। अभी कुछ दिन पहले ही वह एक लाख किलोमीटर की यात्रा पूरी कर चुके हैं। वर्तमान की कुछ यात्रा योजनाओं को देख रहा था, साधारण श्रेणी में यात्रा की बहुलता थी। उसके अतिरिक्त स्लीपर क्लास की यात्रायें भी थीं। मैं गणना कर रहा था कि यदि एक लाख किलोमीटर तीन चौथाई साधारण श्रेणी व एक चौथाई स्लीपर क्लास में की जाये तो लगभग १२ हज़ार रुपये लगेंगे। एसी ३ में वही व्यय ६० हजार रुपये हो जायेगा। यदि यही दूरी अपने वाहन से तय की जाये तो ५ लाख रुपये लगेंगे। इस प्रकार देखा जाये तो यदि रेलवे में प्रमुखता से चला जाये, साधारण श्रेणी में देश देखने का उत्साह हो, तनिक सहनशीलता और तनिक जीवटता विकसित कर ली जाये और नीरज की विधि अपनायी जाये तो पर्यटन में होने वाला व्यय न्यूनतम हो सकता है।
नीरज से यह पूछने पर कि दिन में तो साधारण श्रेणी में काम चल जाता है पर रात्रि में यदि साधारण श्रेणी में चले और नींद नहीं हो पायी तो पर्यटन का आनन्द धुल जायेगा? नीरज ने बताया कि दिन के समय ही साधारण श्रेणी में चलते हैं। रात्रि के समय यदि आरक्षित स्थान मिल जाये तो नींद पूरी कर लेते हैं, नहीं तो किसी रिटायरिंग रूम में रुक कर नींद पूरी कर लेते हैं। नींद पूरी करना सर्वाधिक महत्व का कार्य है, अच्छे मन के लिये, ऊर्जा पूर्ण तन के लिये। यही नहीं, यदि एक रात्रि यात्रा में बीते तो एक दिन का होटल का खर्च भी बच जाता है। एक लाख किलोमीटर की यात्रा में लगभग ७० यात्रायें रात्रि में की होंगी, लगभग ३५ हज़ार रुपये होटल का व्यय बचाया होगा। यद्यपि नीरज अपने खर्चे की एक एक पाई का हिसाब रखते हैं, पर मेरे अनुमान यथार्थ के निकट ही होंगे।
विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो रेल़वे के माध्यम से पर्यटन को कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। जितनी बार भी नीरज का ब्लॉग पढ़ता हूँ, उनके अनुभव जानता हूँ, उतनी बार मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ होता जाता है। पर्यटन के और भी कई पक्ष हैं और उनके बारे में मेरी कई अवधारणायें भी हैं। रेलवे, पर्यटन और स्वयं के अनुभवों के आधार पर नीरज की घुमक्कड़ी तकनीक पर विमर्श चलता रहेगा, अगली पोस्ट में भी।
मेरे मन में नीरज के प्रति उत्सुकता चार स्तरों पर है। रेलवे, पर्यटन, ब्लॉगिंग और जीवन शैली। यदि इन चारों स्तरों को संक्षिप्त में कहूँ तो वह इस प्रकार होगा। देश के अन्दर पर्यटन के लिये रेलवे से अधिक मितव्ययी और द्रुतगामी साधन नहीं है। किन्तु रेलवे में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाना ही पर्यटन नहीं है। वहाँ पर रहने की व्यवस्था, पर्यटन स्थलों पर पहुँचने के स्थानीय साधन, भोजन आदि की व्यवस्था, दर्शन योग्य बातें, प्राथमिकतायें और एक पूर्ण पर्यटन अनुभव, इन समस्त बातों को मिला कर एक पर्यटक और एक पर्यटन स्थल का निर्माण होता है।
बहुधा ये सारे सूत्र पूर्व निर्धारित नहीं हो पाते हैं, अनिश्चिततायें अधिक रहती हैं, अधिकाधिक सुनिश्चित करने में अधिक धन व्यय होने संभावना रहती है, बहुधा तथ्यों का अभाव रहता है। पर्यटन एक व्यवसाय है, संभव है कि सामने वाला आपसे ही सारा लाभ लेने की मानसिकता में हो। रेलवे में, होटल में स्थान की उपलब्धता, स्थानीय साधनों की जानकारी, अधिक स्थानों को देखने का क्रम, ऐसी न जाने कितनी अनिश्चितताओं से भरा होता है हमारा पर्यटन।
एक पर्यटक के रूप में किस तरह नीरज उन अनिश्चितताओं को जीते हैं और किस तरह एक ब्लॉगर के रूप में उन्हें व्यक्त करते हैं, यह एक रोचक विषय है। साथ ही, अपनी व्यस्त घुमक्कड़ी का अपनी जीवन शैली से कैसे सामञ्जस्य बिठा पाते हैं, यह भी उतना ही रोचक विषय है।
आखिर मिल ही गये |
हम लोग जब भी किसी यात्रा के लिये निकलते हैं तो उसी समय निकलते हैं जब घर में सबकी छुट्टियाँ चल रही हों। यही कारण रहता है कि जब लोग घूमने जाते हैं तो उस समय हर स्थान पर भीड़ बहुत रहती है, हर किसी साधन और संसाधन के लिये। ऐसे समय में व्यवस्थायें जुटा पाना किसी प्रतियोगी परीक्षा में विजयी होने जैसा होता है। एक एक व्यवस्था के लिये अत्यधिक श्रम करना पड़ता है और बहुधा बहुत धन व्यय हो जाता है। इतने बँधे हुये कार्यक्रम में घूमना कम, स्थानों को छूकर और उपस्थिति लगा आने जैसी स्थिति हो जाती है।
अतिव्यवस्था में पर्यटन का स्वभाव घुटने लगता है, पर्यटन एक उत्पाद सा हो जाता है और स्थान देख आना उस उत्पाद का मूल्य। इसमें पर्यटन का आनन्द कहीं खिसक लेता है। यही नहीं हम जो सोच कर जाते हैं़ पर्यटन स्थल उससे कहीं भिन्न मिलता है। तब हम धन द्वारा साधे अपने सधे कार्यक्रम में बँधे अधिक हिल डुल नहीं पाते है और औसत से नीचे का अनुभव लेकर चले आते हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि जब भी पर्यटन को बाँधने का प्रयास किया है, स्वतन्त्र हो पर्यटन का आनन्द नहीं उठा पाये।
नीरज की पर्यटन तकनीक इन सब बन्धनों को तोड़ती सी दिखती है। उनकी घुमक्कड़ी में एक सहजता है, एक जीवटता है, एक खुलापन है, एक आनन्द है। अभी कुछ दिन पहले ही वह एक लाख किलोमीटर की यात्रा पूरी कर चुके हैं। वर्तमान की कुछ यात्रा योजनाओं को देख रहा था, साधारण श्रेणी में यात्रा की बहुलता थी। उसके अतिरिक्त स्लीपर क्लास की यात्रायें भी थीं। मैं गणना कर रहा था कि यदि एक लाख किलोमीटर तीन चौथाई साधारण श्रेणी व एक चौथाई स्लीपर क्लास में की जाये तो लगभग १२ हज़ार रुपये लगेंगे। एसी ३ में वही व्यय ६० हजार रुपये हो जायेगा। यदि यही दूरी अपने वाहन से तय की जाये तो ५ लाख रुपये लगेंगे। इस प्रकार देखा जाये तो यदि रेलवे में प्रमुखता से चला जाये, साधारण श्रेणी में देश देखने का उत्साह हो, तनिक सहनशीलता और तनिक जीवटता विकसित कर ली जाये और नीरज की विधि अपनायी जाये तो पर्यटन में होने वाला व्यय न्यूनतम हो सकता है।
नीरज से यह पूछने पर कि दिन में तो साधारण श्रेणी में काम चल जाता है पर रात्रि में यदि साधारण श्रेणी में चले और नींद नहीं हो पायी तो पर्यटन का आनन्द धुल जायेगा? नीरज ने बताया कि दिन के समय ही साधारण श्रेणी में चलते हैं। रात्रि के समय यदि आरक्षित स्थान मिल जाये तो नींद पूरी कर लेते हैं, नहीं तो किसी रिटायरिंग रूम में रुक कर नींद पूरी कर लेते हैं। नींद पूरी करना सर्वाधिक महत्व का कार्य है, अच्छे मन के लिये, ऊर्जा पूर्ण तन के लिये। यही नहीं, यदि एक रात्रि यात्रा में बीते तो एक दिन का होटल का खर्च भी बच जाता है। एक लाख किलोमीटर की यात्रा में लगभग ७० यात्रायें रात्रि में की होंगी, लगभग ३५ हज़ार रुपये होटल का व्यय बचाया होगा। यद्यपि नीरज अपने खर्चे की एक एक पाई का हिसाब रखते हैं, पर मेरे अनुमान यथार्थ के निकट ही होंगे।
विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो रेल़वे के माध्यम से पर्यटन को कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। जितनी बार भी नीरज का ब्लॉग पढ़ता हूँ, उनके अनुभव जानता हूँ, उतनी बार मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ होता जाता है। पर्यटन के और भी कई पक्ष हैं और उनके बारे में मेरी कई अवधारणायें भी हैं। रेलवे, पर्यटन और स्वयं के अनुभवों के आधार पर नीरज की घुमक्कड़ी तकनीक पर विमर्श चलता रहेगा, अगली पोस्ट में भी।
शुभप्रभात
ReplyDeleteदही-हांडी की हार्दिक शुभकामनाए
वाह जी , विमर्श चलता रहे , हम पढ रहे हैं एकदम मज़े में :)
ReplyDeleteपर्यटन के सच्चे ब्रांड एम्बेसडर हैं नीरज.
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत ...
Deleteबहुत सुन्दर लेख, इस हेतु व कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई व शुभ कामनायें।यथार्थ है कि पर्यटन के नाम पर हम घूमते व स्थान विशेष की अंतरंग सुंदरता के साहचर्य का आनंद कम बल्कि स्थान को घूमे गये स्थानों की लिस्ट में टिक करने में ज्यादा अभिरुचि दिखाते हैं ।घूमना तो वही है जैसा नीरज जी या आप स्वयं कर पाते हैं,घूमे गये स्थान व उसकी सुंदरता के साथ स्थिर चित्त से समागम व आत्मसात होकर ।नीरज जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।वैसे चलते चलते एक बात कहना चाहूंगा कि हमारी रेलवे का साधारण क्लास,बेशक किफायती व कमखर्च हैं, पर वास्तविकता यह है कि ये यात्रा के दृष्टिकोण से गंभीर चुनौती है, विशेष कर उत्तर भारत में, यह न सिर्फ ज्यादा भीड़ भाड़, जहाँ बैठने की जगह तो दूर रेल डिब्बे में घुसना व खड़ा होना भी मुश्किल होता है, कतई असुविधा जनक व असुरक्षित हैं, हमारी रेलवे को इस दिशा में बहुत सुधार की आवश्यकता है ।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर वृतांत...!
ReplyDeleteउनके यात्रा वृतांत और आपका विमर्श, दोनों पढना अब चलता रहेगा!
भारतीय रेल को नीरज जाट का महत्व समझ लेना चाहिए। उन के काम को महत्व देते हुए उसे रिकग्नाइज भी करना चाहिए।
ReplyDeleteसरल स्वभाव नीरज, बड़ी शिक्षाएं देने में समर्थ है , आपकी विवेचना से भविष्य में फायदा होगा ! बधाई !
ReplyDeleteलौहपथगामिनी का असल महत्व इसका अपना बजट में होना ही है ।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर... विमर्श चलता रहे...
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई व शुभ कामनायें
सच्चे घुमक्कड़ हैं नीरज..
ReplyDeleteनीरज जाट भारतीय रेल के ब्रांड अम्बेसडर बनें यही शुभेक्षा है !
ReplyDeleteनीरज की घुम्म्कड़ी चलती रहे .... शुभकामनायें
ReplyDelete
ReplyDeleteनीरज जाट एक जीवट का नाम है एक घुमंतू या ब्लोगर का, तीनों में से एक की छंटनी करना नामुमकिन है। और प्रवीण पाण्डेय एक मेनेजमेंट गुरु का नाम है प्रबंधन के निरंतर आगे बढ़ने वाले छात्र का नाम है एक चिन्तक ,अध्धेयता या तकनीकी प्रवीण व्यक्ति का नाम है बताना मुश्किल है। बहरहाल दोनों अपने अपने क्षेत्र के धुरंधर और बेहतरीन वियोजक हैं। काश देश की बाग़ डोर आइन्दा ऐसे ही किसी व्यक्ति के हाथ में हो किसी रोबोट के हाथ में न हो और अब तो खतरा और भी हो गया बलात्कारी दुष्कर्मी भी देश का रहनुमा बना रह सकता है। सफ़ेद ,भगुवा ,मुलायम और कठोर ,माया ललिता ,सुषमा सब मिलके संरक्षण कर रहीं हैं इनका तभी सुप्रीम कोर्ट का दो साला सज़ा याफ्ता व्यक्ति को टिकट देने का क़ानून पहले संसद फिर राज्य सभा में धवनी मत से निरस्त हो गया।
पहले मन्त्र आया ,फिर तंत्र उसके बाद यंत्र और अब सिर्फ षड्यंत्र ऐसे घटाटोप में नीरज जाट और प्रवीण जी बड़ी विरल शख्शियत हो जाते हैं हर स्तर पर संरक्षण इनका होना चाहिए दो साला सज़ा याफ्ताओं का नहीं।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
कल तक इंतज़ार करो। कल योगी आनंद जी हमारे ठौर होंगें प्रात :दस बजे से अपरान्ह चार बजे तक (ईस्टरन टाइम्स )डेट्रॉइट के स्थानीय समय मुताबिक़। आपको ज़रूर सविस्तार बताया जाएगा।
ReplyDeleteकल तक इंतज़ार करो। कल योगी आनंद जी हमारे ठौर होंगें प्रात :दस बजे से अपरान्ह चार बजे तक (ईस्टरन टाइम्स )डेट्रॉइट के स्थानीय समय मुताबिक़। आपको ज़रूर सविस्तार बताया जाएगा।
ReplyDeleteक्षमा प्राथी हूँ प्रवीण जी यह टिपण्णी अरविन्द भाई साहब के ब्लॉग पोस्ट और फेस बुक पे जानी थी।
नीरज जी की यात्राओं का ब्यौरा पढ़कर बहुत आनन्द आता है. रेल की यात्रा का जवाब नहीं, सिर्फ सुविधाओं की कमी है.
ReplyDeleteनीरज जाट पर्यटन के मामले में जूनूनी आदमी है. ये जिस तरह से यात्राएं करता है, और मितव्ययता से करता है, वैसा कर पाना भी एक हिम्मत का काम है.
ReplyDeleteमैं इसे शुरू से देख रहा हूं, आज भी इसकी यात्राएं जारी हैं ईश्वर करे आगे भी जारी रहें और ये किसी विश्व कीर्तिमान को तोडे (अगर कोई हो तो)
रामराम.
श्री पांडे जी,
ReplyDeleteसादर अभिवादन .
मेरे लिए भारतीय रेल जैसी सुविधाजनक 'यात्रा साधन' कोई नही हैं |और नीरज जाट साहब की क्या बात ? वे तो घुमक्कड़ी के किंग हैं |सरल और सार्थक आलेख |दो महान ब्लोगर्स कों देखकर बहुत खुशी हुयी |
रेल्वे पर्यटन के लिये कुछ साधन जैसे ठहरने व स्थानीय भ्रमण के साधन जुटा दे तो यह रेल्वे के लिये ना केवल एक फ़ायदेमंद व्यवसाय होगा बल्कि नीरज जैसे अनेकों लोग भारत भ्रमण का मजा ले सकेंगे.
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर !!
ReplyDeleteघुमक्कड़ी उत्सुकता बढ़ गयी ...
ReplyDeleteख़ास तौर से पर्यटन के लिए रेल से अच्छा और सस्ता साधन कोई दूसरा नही,,,
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,,,,
नीरज जाट की यात्रा और आपकी लेखनी यूँ ही निरंतर चलती रहें ...ये ही शुभकामनाएँ है आप दोनों के लिए
ReplyDeleteनीरज पुराण ही शुरू कर दिया आपने तो...
ReplyDeleteआनन्द आया आपसे मिलकर। हम प्रवीण पुराण तो नहीं लिख सकेंगे, लेकिन एकाध प्रवीण श्लोक अवश्य लिख देंगे।
धन्यवाद।
आप पर सुदृष्टि है, आपके यात्राओं के बारे में उत्सुकता सबकी रहती है। अपने बच्चे को भी दिखा चुका हूँ आपकी यात्रा के चित्र।
Deleteनीरज जाट के यात्रा वृत्तांत बहुत सारे यात्रा प्रेमी लोगों के लिए प्रेरणास्पद हैं. जिस तरह से वहाँ सभी जगहों की जानकारियाँ उन्होंने दी है, वो काबिल-ए-तारीफ़ है.
ReplyDeleteउनकी घुमक्कड़ी यूँ ही चलती रहे...शुभकामनाएं !!
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आप का यह लेख पढ़ कर... नीरज जाट के साथ आप की ५ मिनट मुलाकात हो पाई। हम भी नीरज भाई को दो बार मिल चुके हैं --एक बार नांगलोई (दिल्ली) के ब्लगर मिलन में और दूसरी बार यहां लखनऊ में ब्लागर परिकल्पना समारोह में --सच में उन के व्यवहार में सहजता, सरलता भरी हुई है।
ReplyDeleteऐसी शख्शियत को तो रेलवे को अपना ब्रॉंड अम्बैसेडर बना लेना चाहिए...
जुग जुग जियो नीरज भाई ...प्रवीण जी आप का धन्यवाद कि आपने इस विचारणीय पोस्ट के माध्यम से पर्यटन के सही अर्थ के बारे में हम सब को मजबूर किया। हम लोग पर्यटन कम करते हैं और सुख सुविधाओं और खाने पीने में ज़्यादा मशगूल रहते हैं, शायद इसलिए वह सब इतना जीवट नहीं लग पाता। अगली पोस्टों का इंतज़ार रहेगा।
मुझे जैसा कि याद आ रहा है आप रोहतक मीट में भी मिले हैं जी नीरज जाटजी से
Deleteप्रणाम
महीने के शुरू में गांव गया तो एक दिन एक पत्रकार मिले बताने लगे कि- एक दिन अचानक उनके पास किसी पहचान वाले का फोन आया कि एक गांव से एक अनोखी बारात निकल रही है, सुनकर अपना कैमरा ले बाइक से उस और दौड़ पड़ा, बारात के पास जाकर देखा तो बारात में सभी बारती एक जैसी राजस्थानी पौशाक व 51 ट्रेक्टरों पर सवार थे, बारात में ट्रेक्टरों के अलावा कोई दूसरी गाड़ी नहीं थी|
ReplyDeleteपत्रकार ने बारात रोक फोटोग्राफी की और अपने संपादक को एक खास खबर का इंतजार करने का सन्देश दिया|
खबर देख संपादक ने उसे प्रमुखता से देशभर के अंकों में छापा !
दूल्हा महेन्द्रा ट्रेक्टर था जब अख़बारों में अनोखी बारात की महिंद्रा ट्रेक्टर के चित्र वाली खबर महिंद्रा कम्पनी ने पढ़ी तो उन्होंने उस दुल्हे को सिंगापुर हनीमून का खर्चा भेजा और वो जोड़ा महिंद्रा ट्रेक्टर के खर्च पर सिंगापूर हनीमून मनाकर आया|
# कहने का मतलब जिस तरह उस बारात के चलते महिंद्रा ट्रेक्टर का प्रचार हुआ इसी तरह नीरज की यात्राओं से रेल्वे का खूब प्रचार होता है अत: रेल्वे की तरफ से ज्यादा नहीं तो रेल्वे के किसी समारोह में नीरज को रेल्वे द्वारा सम्मानित तो करना ही चाहिये !
जी बिल्कुल सही :-)
Deleteघुमक्कड़ी का जुनून का पर्यायवाची हैं नीरज जी ....
ReplyDeleteनीरज नाम के लोग अपनी विधा में अद्वितीय होते हैं । एक तो गीतकार हैं, एक प्राकृतिक चिकित्सक हैं हरिद्वार पतञ्जलि योगपीठ में , वे भी दुनियॉ के सर्वश्रेष्ट चिकित्सक हैं । प्रवीण को धन्यवाद जिनके कारण हम नीरज से मिल पाए । नीरज के हौसले को सलाम ।
ReplyDeleteसुन्दर वृतांत...! नीरज जाट को बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्ट्रेटफ़ारवर्ड घुमक्कड़।
ReplyDeleteशायद संयोग की बात है कि नीरज, संदीप पवार(जाटदेवता) और मनु प्रकाश त्यागी तीनों आसपास के ही रहने वाले हैं और घुमक्कड़ी के मामले में तीनों सम्मान के पात्र हैं।
जाट देवता का ब्लॉग नियमित पढ़ना होता है, मनुजी के ब्लॉग का पता ढूढ़ता हूँ। घुमक्कड़ों से मिल के बहुत आनन्द आने वाला है।
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति जन्माष्टमी के मौके पर आनंद वर्षंन हैगो भैया।
ReplyDeleteआज तो सारा आलम सारी कायनात ही कृष्ण मय हो रई भैया । उसकी लीला ही अपरम्पार हैं स्वाद लेबे को भागवत कथा सुनबे। झूठ् ना कहूँ तोसे। मजो आ गया ओ ,नन्द आनंद कारज होवे और मजा न आवे। नन्द का मतलब होवे आनंद।
मैया मोहे दाऊ भोत खिजायो ,
मोते कहत मोल को लीन्हों तू जसुमत कब जायो,
गोर नन्द जसोदा गोरी तू कत श्याम शरीर
जन्माष्टमी की बधाई क्या बधाया सब ब्लागियन कु।
ॐ शान्ति
भैया जसोदा का मतलब ही होवे है जो यश दिलवावे। सगरे बिग्रे काज संभारे।
श्रीकृष्णचन्द्र देवकीनन्दन माँ जशुमति के बाल गोपाल ।
रुक्मणीनाथ राधिकावल्लभ मीरा के प्रभु नटवरलाल ।।
मुरलीधर बसुदेवतनय बलरामानुज कालिय दहन ।
पाण्डवहित सुदामामीत भक्तन के दुःख दोष दलन ।।
मंगलमूरति श्यामलसूरति कंसन्तक गोवर्धनधारी ।
त्रैलोकउजागर कृपासागर गोपिनके बनवारि मुरारी ।।
कुब्जापावन दारिददावन भक्तवत्सल सुदर्शनधारी ।
दीनदयाल शरनागतपाल संतोष शरन अघ अवगुनहारी ।।
श्री कृष्ण स्तुती
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी ॥
बधाई जन्मोत्सव कृष्ण कृष्ण बोले तो जो अन्धकार को दूर करे।
नीरज जब अचानक सामने आकर खड़ा हुआ ( लखनऊ में) विश्वास नहीं हुआ...मिलकर खुशी हुई थी , फोटो भी यात्रा में बेहतरीन खींचते हैं ....
ReplyDeleteआपके साथ शर्माते हुए हँस रहा है ....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-08-2013 को चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
सभी का.... बहुत बहुत... शुक्रिया... कि... हमें... आज... (नहीं... दोबारा कहना पडेगा..)... हममें.... आज... नई.. ऊर्जा... का संचार.... (दोबारा कहना पडेगा..)...एहसास.. हो ... रहा है।
ReplyDeleteअगली पोस्ट का इन्तजार है।
आपके ब्लाग पर कुछ न कुछ नया और अनूठा मिल ही जाता है । आज मिले नीरज जाट । अनन्त खजाना भरा है उनके ब्लाग पर ।
ReplyDeleteनीरज जी के यात्र-वर्णन बड़ी रुचि से पढ़ती हूँ. उनकी अचक ऊर्जा और साहस और लगन की प्रशंसक हूँ -वे यों ही धुन के पक्के बने रहें और हमें अपनी यात्राओं में सम्मिलित करते रहें !
ReplyDeleteआप का यह लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा प्रवीण जी ....आखिर मुलाकात तो हुई आप के साथ चाहे 5मिनट ही सही......हम भी नीरज भाई को तीन बार मिल चुके हैं.....एक बार रोहतक में दोबारा दिल्ली के ब्लगर मिलन में और तीसरी बार लखनऊ में परिकल्पना समारोह में -- और उनके साथ लखनऊ घूमने का आनद भी उठा चुके है.....उन के व्यवहार में सहजता सरलता भरी हुई है।
ReplyDeleteनीरज जाट पर्यटन तो कर रहे हैं लेकिन वे पुराने रिश्तों को बिसरा देते हैं। उन्हें मेरी सलाह है कि कम से कम जिन परिवारों में वे ठहरते हैं, उन्हें तो याद रखें। पर्यटन का दूसरा अर्थ वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को भी बढ़ाना होता है।
ReplyDeleteMujhe railse yatra karna aajbhi sabse adhik bhata hai...afsos sehat ke karan safar kar nahi pati....
ReplyDeleteबहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
एक मानसिक शिखरों को छूने वाले और दूसरे भौगोलिक शिखरों को छूने वाले
ReplyDeleteदोनों महान ब्लॉगर्स का मिलन
प्रणाम
नीरज जाट जी से परिचय करवाने के लिए बहुत धन्यवाद प्रवीण जी। नीरज जी आप तो आज से मेरे प्रेरणा स्रोत हुए! नीरज जी के बारे में और जानने की इच्छा है - वे इस फिरम्ता जीवनशैली का दैनिक जीवन से कैसे सामंजस्य बैठा पाते हैं, यात्रा के समय क्या चीज़ें जरुरी समझते हैं, टिप्स वगैरह। मुझे तो उनके बैग के अन्दर रखे हुए सामान की पूरी सूची जाननी है :)
ReplyDeleteअगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा।
सौरभ
ब्लाग जगत के राहुल सांकृत्यायन!!!!!!
ReplyDeleteभारतीय रेल को ओर पर्यटक विभाग को नीरज जी को ब्रेंड एम्बेसडर बना लेना चाहिए ...
ReplyDeleteआपका ये मिलन नए गुल खिलायेगा ऐसी आशा है ...
घूमने की सुविधा मिले तो जिंदगी का मजा ही कुछ और है। शिमोगा का विश्व प्रसिद्ध जोग फाल्स देखने का अनुभव कैसा रहा, अगले किसी लेख में बताएं। यह भारत का दूसरा सबसे ऊंचा जल प्रपात है। नीरज जी को शुभकामनाएं। और हां! भारतीय रेल के सस्ते होने का जिक्र आपने बार-बार किया है। यह अक्सर दुसह दुख का अनुभव देती है।
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ReplyDeleteनीरज जाट और प्रवीण जी में कौन ज्यादा निरभिमानी और विनम्र प्रबंधक है कहना मुश्किल है।
ReplyDeleteये नाम भी बड़े अजीब अजीब होते हैं ,
जाट कमल और कमल जाट होते हैं।
man ke bad paryTan, kya bat hai
ReplyDeleteशुक्रिया आपका।
ReplyDeleteAll the best to Neeraj and nice pic
ReplyDeleteगज़ब का उत्साह है वैसे नीरज जी में !
ReplyDelete