कभी प्रकृति को कार्य करते देखा है? यदि प्रकृति के कर्म-तत्व समझ लेंगे तो उन सब सिद्धान्तों को समझने में सरलता हो जायेगी जो संसाधनों को साझा उपयोग करने पर आधारित होते हैं। क्लॉउड भी एक साझा कार्यक्रम है, ज्ञान को साझा रखने का, तथ्यों और सूचनाओं को साझा रखने का।
पवन, जल, अन्न, सब के सब हमें प्रकृति से ही मिलते हैं, उन पर ही हमारा जीवन आधारित होता है। हम खाद्य सामग्री का पर्याप्त मात्रा में संग्रहण भी कर लेते हैं, जल तनिक कम और पवन बस उतनी जितनी हमारे फेफड़ों में समा पाये। फिर भी प्रकृति प्रदत्त कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है जो हम जीवन भर के लिये संग्रहित कर लें, यहाँ तक कि शरीर की हर कोशिका सात वर्ष में नयी हो जाती है।
प्रकृति का यह महतकर्म तीन आधारभूत सिद्धांतों पर टिका रहता है। पहला, ये संसाधन सतत उत्पन्न होते रहते हैं, चक्रीय प्रारूप में। हमें सदा नवल रूप में मिलते भी हैं। उनकी नवीनता और स्वच्छता ही हमारे जीवन को प्राणमय बनाये रहते हैं, अधिक संग्रह करने से रोकते भी रहते हैं, क्योंकि अधिक समय के लिये संग्रह करेंगे तो सब अशुद्ध हो जायेंगे, अपने मूल स्वरूप में नहीं रह पायेंगे। हमारी आवश्यकता ही प्रकृति का गुण है, प्रकृति उसे उसी प्रकार सहेज कर रखती भी है।
दूसरा, प्रकृति इन संसाधनों को हमारे निकटतम और सार्वभौमिक रखती है। पवन सर्वव्याप्त है, जल वर्षा से अधिकतम क्षेत्र में मिलता है और अन्न आसपास की धरा में उत्पन्न किया जा सकता है। ऐसा होने से सारी पृथ्वी ही रहने योग्य बनी रहती है। संसाधनों की पहुँच व्यापक है। तीसरा, प्रकृति ने अपने सारे तत्वों को आपस में इस तरह से गूँथ दिया है कि वे एक दूसरे को पोषित करते रहते हैं। किसी स्थान पर हुआ रिक्त शीघ्र ही भर जाता है, प्रकृति का प्रवाह अन्तर्निर्भरता सतत सुनिश्चित करती रहती है।
आइये, यही तीन सिद्धान्त उठा कर क्लॉउड पर अधिरोपित कर दें और देखें कि उससे क्लॉउड का क्या आकार निखरता है? ज्ञान, तथ्य और सूचनायें स्वभावतः परिवर्तनशील हैं और काल, स्थान के अनुसार अपना स्वरूप बदलती भी रहती हैं। उन्हें संग्रहित कर उन्हें उनके मूल स्वभाव से वंचित कर देते हैं हम। क्लॉउड में रहने से, न केवल उनकी नवीनतम और शुद्धता बनी रहती है, वरन उन्हें वैसा बनाये रखने में प्रयास भी कम करना पड़ता है। उदाहरण स्वरूप, यदि कोई एक रिपोर्ट सबके कम्प्यूटरों पर संग्रहित है और उसमें कोई संशोधन आते हैं तो उसे सब कम्प्यूटरों पर संशोधित करने में श्रम अधिक करना पड़ेगा, जबकि क्लॉउड पर रहने से एक संशोधन से ही तन्त्र में नवीनतम सुनिश्चित की जा सकेगी।
जब सारा ज्ञान क्लॉउड पर होगा और अद्यतन होगा तो व्यर्थ के संग्रहण की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। जितनी आवश्यक हो और जब आवश्यक हो, सूचना क्लॉउड पर रहेगी, उपयोग के समय प्राप्त हो जायेगी।
अभी के विघटित प्रारूप में, कोई सूचना या तथ्य अपने स्रोत से बहुत दूर तक छिन्न भिन्न सा छिटकता रहता है, उसके न जाने कितने संस्करण बन जाते हैं, उसे न जाने कितने रूपों में उपयोग में लाया जाता है। क्लॉउड के एकीकृत स्वरूप में एक सूचना अपने स्रोत से जुड़ी रहेगी, वहीं से क्लॉउड में स्थान पायेगी और कैसे भी उपयोग में आये, क्लॉउड में अपने निर्धारित पते से जानी जायेगी। इस प्रकार न केवल सूचनाओं की शुद्धता और पवित्रता बनी रहेगी वरन उसे अपने उद्गम के सम्मान का श्रेय भी मिलता रहेगा। क्लॉउड आपका वृहद माध्यम हो जायेगा, सबके लिये ही, बिलकुल प्रकृति के स्वरूप की तरह।
प्रकृति का प्रथम सिद्धान्त अपनाते ही भविष्य का भय तो दूर हो जायेगा पर तब क्लॉउड को प्रकृति की सार्वभौमिकता व उपलब्धता का दूसरा सिद्धान्त शब्दशः अपनाना होगा क्योंकि भविष्य की अनिश्चितता का भय ही संग्रहण करने के लिये उकसाता है। क्लॉउड हमारे जितना अधिक निकट बना रहेगा, उस पर विश्वास उतना ही अधिक बढ़ेगा। हर प्रकार की सूचना पलत झपकते ही उपलब्ध रहेगी। लगेगा कि आप ज्ञान के अदृश्य तेजपुंज से घिरे हुये सुरक्षित और संरक्षित से चल रहे हैं। पहले हम लोग अपने कम्प्यूटर और मोबाइल पर कई गाने लादे हुये चलते थे, अब तो जो भी इच्छा होती है, वही इण्टरनेट से सुन लेते हैं, सब का सब क्लॉउड पर उपस्थित है। हाँ, यह कार्य उतना सरल नहीं है जितना क्लॉउड बनाना। माध्यम स्थापित कर सकने का कर्म कठिनतम है, इण्टरनेट की सतत उपलब्धता प्रकृति के सिद्धान्तों की तरह हो जाये तो क्लॉउड प्रकृतिमना हो जाये।
अभी के समय में क्लॉउड की सूचना में कोई परिवर्तन करना हो तो पूरी की पूरी फाइल बदलनी होती है जिससे इण्टरनेट की आवश्यकता अधिक मात्रा में होती है। यदि परिवर्तनमात्र को ही क्लॉउड तक लाने और ले जाने की तकनीक सिद्धहस्त कर ली जाये तो माध्यम की उपलब्धता और अधिक होने लगेगी। अभी एक व्यक्ति के न जाने कितने खाते होते हैं। यदि एक व्यक्ति इण्टरनेट पर एक ही परिचय से व्यक्त हो और उसका दुहराव भिन्न प्रकारों से न हो तो इण्टरनेट पर होने वाला अनावश्यक यातायात कम किया जा सकता है। इससे न केवल इण्टरनेट की गति बढ़ेगी वरन उपलब्धता भी सुनिश्चित हो जायेगी।
तीसरा सिद्धान्त जो कि प्रकृति के प्रवाह का है, उसके लिये क्लॉउड को अपना बुद्धितन्त्र विकसित करना होगा। रिक्त को पढ़ना, उसका अनुमान लगाना और यथानुसार उस रिक्त को भरना प्रकृति के प्रवाह के आवश्यक अंग हैं। क्लॉउड केवल सूचनाओं का भंडार न बन जाये, उसको सुव्यस्थित क्रम में विकसित किया जाता रहे, यह प्रक्रिया क्लॉउड में प्राण लेकर आयेगी। हम तब क्लॉउड के प्रति उतने ही निश्चिन्त हो पायेगे, जितने प्रकृति के प्रति अभी हैं, वर्तमान पर पूर्ण आश्रित और भविष्यभय से पूर्ण मुक्त। आपका क्लॉउड क्या आकार लेना चाह रहा है? हम सबका आकाश तो एक ही है।
क्लाउड सुव्यवस्थित अव्यवस्था है! :)
ReplyDeleteक्लॉउड एक अविकसित व्यवस्था है, वैसे देखा जाये तो एक अविकसित व्यवस्था और एक विकसित अव्यवस्था के लक्षण एक समान ही होते हैं। इसीलिये देश में हर बार किसी भी समस्या के लिये नये छोर से प्रयास प्रारम्भ हो जाते हैं।
Deleteक्लाउड को कैसे काम लेते हैं, यह भी तो बताएं।
ReplyDeleteजी, निश्चय ही, आने वाली पोस्टों में वह भी रहेगा।
Deleteजानत तुमहि तुमहि होइ जाई।जब क्लाउड को जाना तो क्लाउड, स्वच्छंद निस्पृह और संपूर्ण ।सही बात है, जहाँ पूर्णता है वहाँ संचय का विचार स्वयं ही अशेष हो जाता है ।तकनीकी समस्या जो, प्रायः किसी भी विधा के विस्तारण के साथ स्वाभिक प्रत्युत्पन्न गंभीर समस्या व चुनौती होती है, वह है अराजक तत्वों द्वारा उस विधा का दुरुपयोग व उपभोक्ताओं क व्यक्तिगत सुरक्षा व मर्यादा के अवहेलना के खतरे का।कामना करते हैं कि यह तकनीकी विधा इस चुनौती का सहज सामना करने में सक्षम व तत्पर होगी ।
ReplyDeleteजहाँ रसोई रखनी हो, वहाँ बर्तन, राशन, चूल्हा आदि सबकुछ ही रखना पड़ता है। यदि कहीं से भोजन ही मिल जाये तो उन सबकी कोई आवश्यकता नहीं। सूचनाओं के साथ भी यह एक सच है। संग्रहण की प्रवृत्ति आत्मनिर्भरता के भ्रम का अनन्त प्रक्षेप है जीवन पर।
Deleteप्रकृति तो सबको ही पालती ही है, कितने निर्भर रहते हैं हम तब, पूर्णतया आश्रित।
Deleteठोस भौतिकी के आभासी सर्वव्यापी नियम.
ReplyDeleteयह सब सुजान जन ही समझ पाएंगे। हम तो कामचलाऊ व्यवस्था में ही खुश हैं।
ReplyDeleteरोचक जानकारी..आभार आप का नित नई -नई जानकारियाँ देने के लिए..
ReplyDeleteमैँ "क्लाउड" को अक्षमता के प्रतीक के रूप मेँ लेता हूं। बहुत कुछ कुहासे की तरह। उस क्लाउड को पंक्चर कर क्षमता का विकास करना हो जैसे...
ReplyDeleteमसलन अभी अमुक स्टेशन से गाड़ियाँ धीमे निकलती हैँ। वहाँ Cloud of inefficiency है। एक बार पांच पांच मिनट में ट्रेने चलने लगें तो अक्षमता का क्लाउड भेदन होगा...
क्लॉउड, देखा जाये तो, inefficiency को ही भेदने के लिये बना है। तन्त्र में जितनी परतें कम कर दी जायें, गतिशीलता उतनी ही बढ़ जाती है। मानवीय हस्तक्षेप यदि न्यूनतम किया जा सके तो और भी अच्छा, सूचनायें सीधे ही पहुँचेंगी अपने गन्तव्य तक। आजकल डॉटालॉगर की सूचनाओं का दोहन कर रहा हूँ, सारे मंडल में होने वाली घटनायें बिना छने ही पहुँचने लगी हैं, स्रोत से उपयोग तक।
Deleteक्या यही क्लाउड व्यवस्था रेल्बे में प्रायोगिक तौर पर लागू नही कर सकते। छोटे स्तर पर लागू करने के लिए आप सक्षम भी उपयुक्त भी संभतः इषित भी। इससे समय धन पेपर सभी की बचत होगी। पर्यावरण के लिए भी लाभकारी।
ReplyDeleteक्यों नहीं, सूचना प्राद्योगिकी का प्रथमिक उद्देश्य ही वही है। विडम्बना पर यह हो गयी है कि लोग अब ईमेल मँगा कर उसका भी प्रिंटआउट निकालने लगे हैं।
Deleteमुश्किल यह हैं कि सरकारी कामकाज में आज भी रिकॉर्ड के लिए पेपर स्वरूप ही सबसे उपयुक्त माना जाता हैं जबकि संरक्षण के नये कम जगह लेने बाले साधन उपलब्ध हैं। सक
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ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteमैं ने भी इसका प्रयोग शुरू कर दिया है.
बहुत रोचक ढंग से लिखा गया वैज्ञानिक लेख..
ReplyDeleteविस्तार से और अर्थपूर्ण ढंग से तकनीकी ज्ञान साझा करने का आभार ..... अजित जी की तरह ही मुझे भी इसे कैसे काम में लेना है, इस जानकारी का इंतजार रहेगा ....
ReplyDeleteप्राकृति और तकनीक ... दोनों की पृष्टभूमि में लिखा अच्छा प्रयास ...
ReplyDeleteअभी कुछ समय लगने वाला है इसको समझने के लिए ...
बहुत रोचक जानकारी,आने वाली पोस्टों का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteTough lesson today .....!!बहुत वैज्ञानिक आलेख है ....!!:))कई बार पढ़ा ....
ReplyDeleteप्रकृति और तकनीक तो कुछ समझ आया ....किन्तु क्लाउड ज्यादा समझ नहीं आया ....आगे की कड़ियों का इंतज़ार है ....!!
कल 25/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Rochak prasang!
ReplyDeleteरोचक अंदाज में काम की महत्त्वपूर्ण जानकारी !!
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी ,ग्रहण करते जा रहे हैं हम !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25/07/2013 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
आज की बुलेटिन जन्म दिवस : मनोज कुमार …. ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteक्लॉउड केवल सूचनाओं का भंडार न बन जाये, उसको सुव्यस्थित क्रम में विकसित किया जाता रहे, यह प्रक्रिया क्लॉउड में प्राण लेकर आयेगी।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...बेहद ईकोफ्रेंडली पोस्ट है ये..इस क्लाउड की रक्षा यकीनन आवश्यक है...आखिर हम सबका आकाश एक ही है...वाह, लाजवाब।।।
Duniya ajeeb aur khoobsurat hai
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति .
ReplyDeleteवाह,बेहद उम्दा लेखन सर ,बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteप्रकृति के माध्यम से एक उपयोगेई जानकारी साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर
ReplyDeleteविस्तार से नई -नई जानकारियाँ देने के लिए ........बधाई
ReplyDeleteनिश्चित तौर पर इसमें आगे और सुधार होंगे और यह भी एक कंप्यूटर औए अंतर्जाल की दुनिया का "आसां बादल" बनेगा, बढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteक्लाउड कैसे प्रयोग में लाया जाता है इस का इंतज़ार रहेगा .... शायद तभी यह लेख स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे ।
ReplyDeleteअगले अंक की प्रतीक्षा में..
ReplyDeleteक्लॉउड सम्बन्धी तथ्यवार जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद..
ReplyDeleteIt made a interesting read!
ReplyDeleteNature and technology keep reinventing themselves... Great to read about the connections established in the article between the laws of nature and technology.
rochak vaigyanik aalekh :)
ReplyDeleteaapka jabab nahi..
Interesting explanation. :)
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ReplyDeleteशुक्रिया आपके निरंतर प्रोत्साहन का .
बहुत ही रोचक , प्रकृति तो पूर्ण है. आपकी व्याख्या नई उम्मीद जगाती है ।
ReplyDeleteसूचना पोद्योगिकी क्रान्ति का नया आयाम, कब, कैसे प्रयोग में आयेगा, भविष्य ही बतायेगा।
ReplyDeleteमेघ दूत बन जांय तो कितना अच्छा हो!
ReplyDeleteक्लाउड क्या है?.......
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी निरन्तरता का प्रोद्योगिकी से बावास्ता करवाते रहने का।
ReplyDeleteI'm really enjoying reading these posts..
ReplyDeleteआइये, यही तीन सिद्धान्त उठा कर क्लॉउड पर अधिरोपित कर दें और देखें कि उससे क्लॉउड का क्या आकार निखरता है? ज्ञान, तथ्य और सूचनायें स्वभावतः परिवर्तनशील हैं और काल, स्थान के अनुसार अपना स्वरूप बदलती भी रहती हैं। उन्हें संग्रहित कर उन्हें उनके मूल स्वभाव से वंचित कर देते हैं हम। क्लॉउड में रहने से, न केवल उनकी नवीनतम और शुद्धता बनी रहती है, वरन उन्हें वैसा बनाये रखने में प्रयास भी कम करना पड़ता है। उदाहरण स्वरूप, यदि कोई एक रिपोर्ट सबके कम्प्यूटरों पर संग्रहित है और उसमें कोई संशोधन आते हैं तो उसे सब कम्प्यूटरों पर संशोधित करने में श्रम अधिक करना पड़ेगा, जबकि क्लॉउड पर रहने से एक संशोधन से ही तन्त्र में नवीनतम सुनिश्चित की जा सकेगी।
ReplyDeleteप्रकृति पुरुष से रूठ चुकी है। पुरुष ने ही उसे गन्दला दिया है। क्लाउड सफाई में सहायक हो सकता है। भीड़ भाड़ कम कर सकता है अंतर जाल पर ट्रेफिक की। ॐ शान्ति।
ReplyDeleteप्रकृति पुरुष से रूठ चुकी है। पुरुष ने ही उसे गन्दला दिया है। क्लाउड सफाई में सहायक हो सकता है। भीड़ भाड़ कम कर सकता है अंतर जाल पर ट्रेफिक की। ॐ शान्ति।
अभी के विघटित प्रारूप में, कोई सूचना या तथ्य अपने स्रोत से बहुत दूर तक छिन्न भिन्न सा छिटकता रहता है, उसके न जाने कितने संस्करण बन जाते हैं, उसे न जाने कितने रूपों में उपयोग में लाया जाता है। क्लॉउड के एकीकृत स्वरूप में एक सूचना अपने स्रोत से जुड़ी रहेगी, वहीं से क्लॉउड में स्थान पायेगी और कैसे भी उपयोग में आये, क्लॉउड में अपने निर्धारित पते से जानी जायेगी। इस प्रकार न केवल सूचनाओं की शुद्धता और पवित्रता बनी रहेगी वरन उसे अपने उद्गम के सम्मान का श्रेय भी मिलता रहेगा। क्लॉउड आपका वृहद माध्यम हो जायेगा, सबके लिये ही, बिलकुल प्रकृति के स्वरूप की तरह।
ReplyDeleteप्रकृति का प्रथम सिद्धान्त अपनाते ही भविष्य का भय तो दूर हो जायेगा पर तब क्लॉउड को प्रकृति की सार्वभौमिकता व उपलब्धता का दूसरा सिद्धान्त शब्दशः अपनाना होगा क्योंकि भविष्य की अनिश्चितता का भय ही संग्रहण करने के लिये उकसाता है। क्लॉउड हमारे जितना अधिक निकट बना रहेगा, उस पर विश्वास उतना ही अधिक बढ़ेगा। हर प्रकार की सूचना पलत झपकते ही उपलब्ध रहेगी। लगेगा कि आप ज्ञान के अदृश्य तेजपुंज से घिरे हुये सुरक्षित और संरक्षित से चल रहे हैं। पहले हम लोग अपने कम्प्यूटर और मोबाइल पर कई गाने लादे हुये चलते थे, अब तो जो भी इच्छा होती है, वही इण्टरनेट से सुन लेते हैं, सब का सब क्लॉउड पर उपस्थित है। हाँ, यह कार्य उतना सरल नहीं है जितना क्लॉउड बनाना। माध्यम स्थापित कर सकने का कर्म कठिनतम है, इण्टरनेट की सतत उपलब्धता प्रकृति के सिद्धान्तों की तरह हो जाये तो क्लॉउड प्रकृतिमना हो जाये।
भय हमारी स्व :रचित निर्मिती ही है मानव जनित आपदाओं सी। क्लाउड भी इस भय को कम न कर सकेगा वायरस कभी भी सब कुछ चौपट कर सकता है। सारी व्यवस्थाओं को खा सकता है कच्चा। बेहतर है पुरुष प्रकृति से खिलवाड़ बंद करे। प्रकृति के साथं एक तादात्म्य बनाए। ॐ शान्ति।
अच्छी जानकारी ।
ReplyDeleteक्लाउड का उपयोग कैसे किया जाये इस पर भी प्रकाश डाले ।
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