यह एक यक्ष प्रश्न है। इसलिये नहीं कि सब लोग इसके बारे में जानना चाहते हैं, इसलिये भी नहीं कि यह प्रश्न कठिन है, इसलिये भी नहीं कि यह आधुनिक यन्त्रों में उपयोग में आ रहा है, इसलिये भी नहीं कि सारी बड़ी कम्पनियाँ इस पर अरबों डॉलर व्यय कर रही हैं, वरन इसलिये क्योंकि इस विषय की सही समझ और इस प्रश्न के सही उत्तर इण्टरनेट आधारित हमारे जीवन को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
देखा जाये तो इण्टरनेट क्लॉउड ही है, सूचनायें इण्टरनेट पर विद्यमान हैं, हम जब चाहें अपने मोबाइल, कम्प्यूटर या लैपटॉप से उसे देख सकते हैं, उपयोग में ला सकते हैं। मेरी सारी पोस्टें और उन पर की गयी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग के पते पर सहज ही सुलभ है, जो चाहे, जब चाहे, उन्हें वहाँ पर जाकर देख सकता है। इस स्थिति में मेरे और मेरे पाठकों के लिये क्लॉउड का क्या महत्व? एक कम्प्यूटर हो, उस पर एक वेब ब्राउज़र हो, इण्टरनेट आ रहा हो, कोई कुछ भी पढ़ना चाहे, पढ़ लेगा। सूचनायें किसी न किसी कम्प्यूटर पर विद्यमान हैं, सूचनायें इण्टरनेट के माध्यम से सारे कम्प्यूटरों से जुड़ी हैं, तब क्लॉउड की क्या आवश्यकता?
जो भी सूचना का स्रोत है, वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सूचनायें परिवर्तित और परिवर्धित कर सकता है। जो सूचना का उपयोगकर्ता है, वह तदानुसार उसे अपने कार्य में ला सकता है। यहाँ तक तो इण्टरनेट की समझ क्लॉउड के मर्म के बाहर ही रहती है। जटिलता जब इसके पार जाती है तब क्लॉउड का सिद्धान्त आकार लेने लगता है।
अब सबके पास इण्टरनेट पर डालने के लिये सूचनायें तो रहती हैं, पर उसे रखने के लिये स्रोत या सर्वर नहीं रहता है। इस प्रकार स्रोत की संख्या सर्वरों की संख्या से कहीं अधिक हो जाती है, स्रोत अपनी सूचना रखने के लिये सुरक्षित ठिकाना ढूंढ़ने लगते हैं, यहाँ से क्लॉउड के सिद्धान्त के बीज पड़ते हैं। ऐसी वेब सेवायें आपकी सूचना को क्लॉउड के माध्यम से पहले ग्रहण करती हैं, कहीं और सुरक्षित रखती हैं और वेब साइटों के माध्यम से व्यक्त भी करती हैं। समान्यतः इन सेवाओं के लिये कुछ शुल्क लिया जाता है। तब तक क्लॉउड का आकार सीमित रहता था।
ब्लॉगर, वर्डप्रेस जैसी निशुल्क ब्लॉग सेवाओं ने लाखों को अभिव्यक्ति का वरदान दे दिया, सबके अपने ब्लॉग उनके सर्वर में अपना स्थान पाये पड़े रहते हैं। यद्यपि आपको इण्टरनेट के माध्यम से उन्हें संपादित करने का अधिकार होता है, आपका लेखन क्लॉउड में रहता है। धीरे धीरे सूचनाओं का आकार और बढ़ा, क्लॉउड का आकार बढ़ा। फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग ने सूचनाओं के इस आदानप्रदान में भूचाल सा ला दिया। न जाने कितनी ऐसी सूचनायें जो आप वेब पर रखना चाहते हैं, लोगों से बाटना चाहते हैं, आपके द्वारा बनाये हुये क्लॉउड में पहुँच जाती हैं।
यही नहीं, जब हर सूचना एक विशेष प्रकार के फाइल के ढाँचे में रखी जाती है, तो उस प्रकार के फाइलों को चला पाने वाले प्रोग्राम क्लॉउड में होने आवश्यक हैं, जिससे उन्हें उसी रूप में संपादित और व्यक्त किया जा सके। अब सूचनायें और प्रोग्राम क्लॉउड पर उपस्थित रहने से क्लॉउड की जटिलता और व्यापकता बढ़ जाती है। बात यहीं पर समाप्त हो गयी होती तो संभवतः क्लॉउड उतना कठिन विषय न होता।
क्लॉउ़ड को सदा क्रियाशील बनाये रखने के लिये इण्टरनेट का होना आवश्यक है। इण्टरनेट हम समय और हर स्थान पर नहीं होता है, पर सूचनायें तो कहीं पर और कभी भी उत्पन्न होती रहती हैं। उन्हें एकत्र करने वाले यन्त्रों न उन्हें सम्हालकर रखने की क्षमता हो वरन वे प्रोग्राम भी हों जिनके माध्यम से वे देखी जा सकें। ऑफलाइन या इण्टरनेट न रहने पर भी उन सूचनाओं को संपादित करने की सुविधा क्लॉउड तन्त्र की आवश्यकता है। यही नहीं इण्टरनेट से जुड़ने पर, वही सूचनायें क्लॉउड में स्वतः पहुँच जायें, इसकी भी सुनिश्चितता क्लॉउड को सशक्त बनाती है।
देखा जाये तो क्लॉउड पर पड़ी आपकी सूचनाओं की प्रति आपको रखने की आवश्यकता नहीं है, पर इण्टरनेट न होने की दशा में आप अपनी सूचनाओं से वंचित न हो जायें, उसके लिये उसकी प्रति आपके सभी यन्त्रों में होनी आवश्यक है। यह होने से ही आपको ऑफलाइन संपादन की सुविधा मिल पाती है।
उदाहरण स्वरूप देखा जाये तो यह पोस्ट मैं अपने आईपैड मिनी पर लिख रहा हूँ, थोड़ी देर में मैं अपने वाहन से कहीं और जाऊँगा, वहाँ मेरे पास मोबाइल ही रहेगा, कुछ भाग मुझे मोबाइल पर लिखना पड़ेगा। वहाँ से घर आऊँगा तो बिटिया मेरे आईपैड मिनी पर कोई गेम खेल रही होगी, तब मुझे शेष पोस्ट मैकबुक एयर में लिखनी पड़ेगी। सौभाग्य से क्लॉउड के माध्यम से मेरा लेखन सारे यन्त्रों में अद्यतन रहता है। जहाँ पर इण्टरनेट नहीं भी रहता है, वहाँ पर भी संपादन का कार्य ऑफलाइन हो जाता है, और इण्टरनेट आते ही सेकेण्डों में अद्यतन हो जाता है। क्लॉउड को सही अर्थों में ऐसे ही परिभाषित और अनुशासित होना चाहिये।
देखा जाये तो सभी अग्रणी कम्पनियाँ इसी दिशा में कार्य कर भी रहीं है, वे यह भी सुनिश्चित कर रही हैं कि इस प्रक्रिया में घर्षण कम से कम हो। पर मेरा स्वप्न क्लॉउड के माध्यम से उस लक्ष्य को पाना है, जो हमारी सारी सूचनाओं के रखरखाव और आदानप्रदान को सरलतम बना दे। जब क्लॉउड सरलतम हो जायेगा तो उसका प्रारूप कैसा होना चाहिये, इसको अगली पोस्ट पर प्रस्तुत करूँगा।
देखा जाये तो इण्टरनेट क्लॉउड ही है, सूचनायें इण्टरनेट पर विद्यमान हैं, हम जब चाहें अपने मोबाइल, कम्प्यूटर या लैपटॉप से उसे देख सकते हैं, उपयोग में ला सकते हैं। मेरी सारी पोस्टें और उन पर की गयी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग के पते पर सहज ही सुलभ है, जो चाहे, जब चाहे, उन्हें वहाँ पर जाकर देख सकता है। इस स्थिति में मेरे और मेरे पाठकों के लिये क्लॉउड का क्या महत्व? एक कम्प्यूटर हो, उस पर एक वेब ब्राउज़र हो, इण्टरनेट आ रहा हो, कोई कुछ भी पढ़ना चाहे, पढ़ लेगा। सूचनायें किसी न किसी कम्प्यूटर पर विद्यमान हैं, सूचनायें इण्टरनेट के माध्यम से सारे कम्प्यूटरों से जुड़ी हैं, तब क्लॉउड की क्या आवश्यकता?
जो भी सूचना का स्रोत है, वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सूचनायें परिवर्तित और परिवर्धित कर सकता है। जो सूचना का उपयोगकर्ता है, वह तदानुसार उसे अपने कार्य में ला सकता है। यहाँ तक तो इण्टरनेट की समझ क्लॉउड के मर्म के बाहर ही रहती है। जटिलता जब इसके पार जाती है तब क्लॉउड का सिद्धान्त आकार लेने लगता है।
अब सबके पास इण्टरनेट पर डालने के लिये सूचनायें तो रहती हैं, पर उसे रखने के लिये स्रोत या सर्वर नहीं रहता है। इस प्रकार स्रोत की संख्या सर्वरों की संख्या से कहीं अधिक हो जाती है, स्रोत अपनी सूचना रखने के लिये सुरक्षित ठिकाना ढूंढ़ने लगते हैं, यहाँ से क्लॉउड के सिद्धान्त के बीज पड़ते हैं। ऐसी वेब सेवायें आपकी सूचना को क्लॉउड के माध्यम से पहले ग्रहण करती हैं, कहीं और सुरक्षित रखती हैं और वेब साइटों के माध्यम से व्यक्त भी करती हैं। समान्यतः इन सेवाओं के लिये कुछ शुल्क लिया जाता है। तब तक क्लॉउड का आकार सीमित रहता था।
ब्लॉगर, वर्डप्रेस जैसी निशुल्क ब्लॉग सेवाओं ने लाखों को अभिव्यक्ति का वरदान दे दिया, सबके अपने ब्लॉग उनके सर्वर में अपना स्थान पाये पड़े रहते हैं। यद्यपि आपको इण्टरनेट के माध्यम से उन्हें संपादित करने का अधिकार होता है, आपका लेखन क्लॉउड में रहता है। धीरे धीरे सूचनाओं का आकार और बढ़ा, क्लॉउड का आकार बढ़ा। फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग ने सूचनाओं के इस आदानप्रदान में भूचाल सा ला दिया। न जाने कितनी ऐसी सूचनायें जो आप वेब पर रखना चाहते हैं, लोगों से बाटना चाहते हैं, आपके द्वारा बनाये हुये क्लॉउड में पहुँच जाती हैं।
यही नहीं, जब हर सूचना एक विशेष प्रकार के फाइल के ढाँचे में रखी जाती है, तो उस प्रकार के फाइलों को चला पाने वाले प्रोग्राम क्लॉउड में होने आवश्यक हैं, जिससे उन्हें उसी रूप में संपादित और व्यक्त किया जा सके। अब सूचनायें और प्रोग्राम क्लॉउड पर उपस्थित रहने से क्लॉउड की जटिलता और व्यापकता बढ़ जाती है। बात यहीं पर समाप्त हो गयी होती तो संभवतः क्लॉउड उतना कठिन विषय न होता।
क्लॉउ़ड को सदा क्रियाशील बनाये रखने के लिये इण्टरनेट का होना आवश्यक है। इण्टरनेट हम समय और हर स्थान पर नहीं होता है, पर सूचनायें तो कहीं पर और कभी भी उत्पन्न होती रहती हैं। उन्हें एकत्र करने वाले यन्त्रों न उन्हें सम्हालकर रखने की क्षमता हो वरन वे प्रोग्राम भी हों जिनके माध्यम से वे देखी जा सकें। ऑफलाइन या इण्टरनेट न रहने पर भी उन सूचनाओं को संपादित करने की सुविधा क्लॉउड तन्त्र की आवश्यकता है। यही नहीं इण्टरनेट से जुड़ने पर, वही सूचनायें क्लॉउड में स्वतः पहुँच जायें, इसकी भी सुनिश्चितता क्लॉउड को सशक्त बनाती है।
देखा जाये तो क्लॉउड पर पड़ी आपकी सूचनाओं की प्रति आपको रखने की आवश्यकता नहीं है, पर इण्टरनेट न होने की दशा में आप अपनी सूचनाओं से वंचित न हो जायें, उसके लिये उसकी प्रति आपके सभी यन्त्रों में होनी आवश्यक है। यह होने से ही आपको ऑफलाइन संपादन की सुविधा मिल पाती है।
उदाहरण स्वरूप देखा जाये तो यह पोस्ट मैं अपने आईपैड मिनी पर लिख रहा हूँ, थोड़ी देर में मैं अपने वाहन से कहीं और जाऊँगा, वहाँ मेरे पास मोबाइल ही रहेगा, कुछ भाग मुझे मोबाइल पर लिखना पड़ेगा। वहाँ से घर आऊँगा तो बिटिया मेरे आईपैड मिनी पर कोई गेम खेल रही होगी, तब मुझे शेष पोस्ट मैकबुक एयर में लिखनी पड़ेगी। सौभाग्य से क्लॉउड के माध्यम से मेरा लेखन सारे यन्त्रों में अद्यतन रहता है। जहाँ पर इण्टरनेट नहीं भी रहता है, वहाँ पर भी संपादन का कार्य ऑफलाइन हो जाता है, और इण्टरनेट आते ही सेकेण्डों में अद्यतन हो जाता है। क्लॉउड को सही अर्थों में ऐसे ही परिभाषित और अनुशासित होना चाहिये।
देखा जाये तो सभी अग्रणी कम्पनियाँ इसी दिशा में कार्य कर भी रहीं है, वे यह भी सुनिश्चित कर रही हैं कि इस प्रक्रिया में घर्षण कम से कम हो। पर मेरा स्वप्न क्लॉउड के माध्यम से उस लक्ष्य को पाना है, जो हमारी सारी सूचनाओं के रखरखाव और आदानप्रदान को सरलतम बना दे। जब क्लॉउड सरलतम हो जायेगा तो उसका प्रारूप कैसा होना चाहिये, इसको अगली पोस्ट पर प्रस्तुत करूँगा।
सूचनाओं का जाल। जंजाल! क्लाउट रखे सबको संभाल।
ReplyDeleteक्लाउट नहीं क्लाऊड :-)
Deleteबार-बार पढना चाहूँगा इसको ...भले मेरे काम न आये ...पर क्या है समझ तो आये !
ReplyDeleteकुछ जानकरी तो होगी बुकमार्क करके रखुगा :-))
आभार!
एक तकनीक से पूरी तरह अपडेट नहीं हो पाते तब तक दूसरी दूसरी आ जाती है|
ReplyDeleteक्लाउड तकनीक का भविष्य सुनहरा लग रहा है अत: इसे अभी से समझना शुरू कर देना चाहिये :)
सही है, जब सूचनाओं का तेजी से वाष्पीकरण वह फैलाव हो, क्लाउड ही तो उन्हें संयोजित वह पुनः चक्रीय उपयोग में सहयोग करने की क्षमता रखता है ।इतने ग्यानवर्धन लेख हेतु आभार ।
ReplyDeleteअद्यतन अपडेट लिए आते हैं आप .सूचना संजाल में क्लाउड की सीट सुरक्षित लगती है
ReplyDeleteअद्यतन अपडेट लिए आते हैं आप .सूचना संजाल में क्लाउड की सीट सुरक्षित लगती है निरंतरता को बनाये रखने का ज़रिया लगता है क्लाउड हम पहले इसे आसमानी समझे थे ज़िङ्के बहुत बहुत ऊपर हम उड़ते रहते हैं
ReplyDeleteपेन ड्राइव, आपणो डीकरा.
ReplyDelete’अपना हाथ जगन्नाथ’ की तर्ज पर :)
Deleteनहीं, काजल भाई, क्लाउड और वीपीएन को तो आज नहीं तो कल हमें हर हाल में अपनाना ही होगा. आजकल मैं अनुवादों का लगभग सारा कार्य गूगल ट्रांसलेटर टूलकिट के जरिए क्लाउड से ही कर रहा हूँ!
Deleteऔर, कभी आपके पेनड्राइाइव में वायरस लग गया या खुदा न खास्ता कहीं गुम हो गया या फिर हार्डवेयर फेल्योर हो गया तो? क्लाउड इज द एंसर!
पेन ड्राइव में लेकर बहुत सूचनायें स्थानान्तरित की हैं, बहुत खोयी भी हैं।
Deleteरवि जी, इस दुनिया में कुछ भी मुफ़्त नहीं है. कई तथाकथित क्लाउड कंपनियां बंद होती ही आई हैं. (माइक्रोसॉफ़्ट ने जब स्काईड्राइव को अंतर्निहित किया था तो यही बात उठी थी चलो अच्छा है कि भरोसे की कंपनी ने ले लिया इसे.) इसलिए कुछ दिन बाद ये शुरू हो जाते हैं कि देखो भई हमें सर्वरों, स्टाफ़, किराए, बिजली के खर्चे उठाना मुश्किल हो रहा है ... इसलिए दान दो, सर्विस के लिए रजिस्टर करो, सर्विस के लिए पैसा दो, और कुछ नहीं हुआ तो धंधा किसी दूसरे के बेचो और चलते बनो. आपका डेटा दूसरे के हवाले अब वो चाहे जो करे. आपको इंटरनेट चाहिए और दूसरे का नेटवर्क भी भरोसेमंद होना चाहिए. यूं तो हम इमेल, ब्लॉगिंग बगैहरा करते ही हैं ...ये सब क्लाउडिंग ही है पर क्या हम सबकुछ इनके भरोसे छोड़ सकते हैं ?
Deleteतारीफ करना बहुत आसान है पर सीमाएं भी पता होनी चाहिएं हमें. मैं कभी अपना महत्वपूर्ण डेटा बिना बैकअप के इनके हवाले नहीं छोड़ सकता.
व्यक्तिगत तीनों यंत्रों पर उपलब्धता शायद सिंक्रोनाइजेशन से होती होगी ..
ReplyDeleteहिंदी सरल लिखा करें , आपको समझने वाले कुछ वयो .. लोगों के लिए !! :(
समन्वय शब्द है सिंक्रोनाइजेशन के लिये। प्रयास करेंगे कि और सरल, सहज लिख सकें।
Deleteअच्छी जानकारी मिली.....यह काफी मददगार साबित होगा भविष्य में
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली .... पर इतनी अधिक तकनीकि आती ही नहीं है ....
ReplyDeleteहम भी समझने की कोशीश कर रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
मोटे तौर पर कंसेप्ट समझ आ रहा है लेकिन मामला अपने जैसों के लिये अब भी जटिल ही है।
ReplyDeleteसारगर्भित जानकारी .......आभार
ReplyDeleteआगे की श्रंखलाओं से और समझ आएगा ...!
इसे आसान शब्दों में समझा जाए तो सर्वर पर आपका निजी स्थान है। जहां आपका माल सुरक्षित रहता है। यह तो क्लाउड स्टोरेज तक की बात है।
ReplyDeleteअब अगर आपके कम्प्यूटर में ऑफलाइन चलने वाले प्रोग्राम भी किसी सर्वर में ही चलने लगें और आप अपना काम ऑनलाइन कर लें। इसके लिए आपको अपने निजी कम्प्यूटर में सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने की जरूरत ही न पड़े। बस इंटरनेट एक्सप्लोरर खोलिए, अपना क्लाउड खोलिए और काम निपटाकर बंद कर दें।
ऑफलाइन में भी यही युक्ति काम करे और नेट मिलते ही अपडेट हो जाए। :)
फिर पीसी, मोबाइल और टैबलेट जैसे उपकरणों का काम बस क्लाउड तक पहुंचने भर का रह जाएगा।
आपने देखा ही होगा, डॉक्स यह काम बखूबी कर लेता है
Deleteवैसे, और भी बहुत सारे वेबवेयर आ चुके हैं नेट की दुनिया में
Important information ....
ReplyDeleteवैसे क्लाउड मतलब अपनी सारी सुचनाये अमरीका के पास जमा करना... :-)
ReplyDeleteरंजन जी, आपका कहना सच है, सूचनायें प्रमुखतः जिन सर्वरों में हैं, वे सब अमरीका में ही हैं।
Deleteरंजन (Ranjan) जी, सही न्ाब्ज़ यही है. इसी डर से तो भारत ने अपनी उपग्रह प्रणाली शुरू की है, वर्ना चवन्नी-चवन्न्ी के मोबाइल फ़ोन में GPS सुविधा आ ही रही है :-)
Deleteपहले-पहल आपकी ही एक पोस्ट पर आई थी क्लाउड की चर्चा, उपयोगी जानकारी. अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है.
ReplyDeleteक्लाउड पर उपयोगी विचारणा. इस पर अगली पोस्ट का इन्तज़ार………
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी॥ अगली पोस्ट का इन्तज़ार……
ReplyDeleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteसुन्दर एवं सरल भाषा में अच्छी जानकारी..
ReplyDeleteक्लाउड अब समझने लगे हैं लोग, पर अब अधिक ज़रूरी है इस की सुरक्षा से जुड़ा चिन्तन
ReplyDeleteव्यक्तिगत सूचनायें बेचने के आरोप तो लगते ही रहते हैं, इन कंपनियों पर।
Deleteअच्छी जानकारी,समझने की कोशीश कर रहे हैं.
ReplyDeleteCloud computing is a colloquial expression used to describe a variety of different types of computing concepts that involve a large number of computers that are connected through a real-time communication network (typically the Internet).[1] Cloud computing is a jargon term without a commonly accepted non-ambiguous scientific or technical definition. In science, cloud computing is a synonym for distributed computing over a network and means the ability to run a program on many connected computers at the same time. The popularity of the term can be attributed to its use in marketing to sell hosted services in the sense of application service provisioning that run client server software on a remote location.
ReplyDeleteCloud computing is all the rage. "It's become the phrase du jour," says Gartner senior analyst Ben Pring, echoing many of his peers. The problem is that (as with Web 2.0) everyone seems to have a different definition.
As a metaphor for the Internet, "the cloud" is a familiar cliché, but when combined with "computing," the meaning gets bigger and fuzzier. Some analysts and vendors define cloud computing narrowly as an updated version of utility computing: basically virtual servers available over the Internet. Others go very broad, arguing anything you consume outside the firewall is "in the cloud," including conventional outsourcing.
Cloud computing comes into focus only when you think about what IT always needs: a way to increase capacity or add capabilities on the fly without investing in new infrastructure, training new personnel, or licensing new software. Cloud computing encompasses any subscription-based or pay-per-use service that, in real time over the Internet, extends IT's existing capabilities.
Cloud computing is at an early stage, with a motley crew of providers large and small delivering a slew of cloud-based services, from full-blown applications to storage services to spam filtering.
आज की बुलेटिन अकबर - बीरबल और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआने वाले समय में आवश्यक तकनीक मानी जाने वाली है ये
ReplyDeleteजानकारी बहुत अच्छी और उपयोगी है, इसके योग्य बनने की कोशिश रहेगी .
ReplyDeleteयह जानकारी नयी लगी..आप के लेख के बाद इसके बारे में और अधिक जानकारी विकिपीडिया पर भी पढ़ी .जितने लाभ आप ने बताये हैं वे काफी उपयोगी लगते हैं.
ReplyDeleteआभार.
नामकरण क्लाऊड क्यों ?
ReplyDeleteबादल का भाव है, वाष्पित जल भाप बन कर उड़ता है, बादलों में संचित रहता है, प्रकृति के निर्देशन में बरसता है। हमारा क्लाउड पासवर्डों से बाधित है।
Deleteक्लॉउट का अर्थ तो प्रभाव है, इस प्रक्रिया से उसका कोई लेना देना नहीं।
Deleteनए नए नामकरण लोगों को चकराने के लिए होते हैं. कभी शेयरबाज़ारी वाले TV चैनलों या मैनेजमेंट कन्सल्टेंटो को सुनिए ना, क्या ग़ज़ब काटते हैं आम लोगों का ... :-)
Deleteइंटरनेट क्लाउडमय हो गया है। क्लाउड कम्प्यूटिंग पर 'इलैक्ट्रॉनिकी आपके लिये' पत्रिका में छपा हमारा यह लेख भी बाँच सकते हैं।
ReplyDeleteक्लाउड की दुनिया में रखें कदम
आइपैड, आइफोन तथा मॅकबुक एयर में ब्लॉग पोस्ट ऊपर बताये स्टाइल में लिखने के लिये कौन सी ऍप्स का प्रयोग करते हैं?
आइपैड त्यागकर आइपैड मिनी पर आये, दोनों के फॉर्म फैक्टर की तुलना पर भी अपना अनुभव किसी पोस्ट में लिखें। ८ इंची विण्डोज़ टैबलेट आने वाला है (या शायद आ चुका है), उस समय १० इंची vs ८ इंची का प्रश्न खड़ा होगा। विण्डोज़ टैबलेट चुनते समय आपका दोनों फॉर्म फैक्टर का अनुभव काम आयेगा।
जी, मिनी का प्रयोग बहुत सफल रहा है। बस कुछ कार्य छोड़ दिये जायें तो हर समय साथ रहता है। विस्तृत लेख लिखूँगा, जैसा आपने निर्देशित किया है।
Deleteउपयोगी जानकारी...!
ReplyDeleteइस मकडजाल के फायदे हैं तो नुक्सान भी हैं ... पता नहीं क्लाउड का मोडरेटर और कौन कौन है ...
ReplyDeleteअभी तो सब बाहर के ही देशों में है, अपने देश में भी व्यवस्था करनी होगी।
Deleteअच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी सर आभार।
ReplyDeleteकमजोर विद्यार्थी है टेकनोलोजी के।
ReplyDeletecloud computing is a very useful technique..
ReplyDeletepeople often think is as of a literally cloud, as if data is there in the air.. :D
if properly utilised this feature can be very useful for all kinds of people
but would not it prepare for ground work for new way of censorship??
ReplyDeleteControl the Cloud --->> Control Every thing.
what are your view on this?
जी, आपका कहना सच है, पर कभी कभी सूचनायें कई सर्वरों पर होने से सेंसरशिप निष्प्रभावी हो जाता है।
DeleteBut still this has come up as a potential weapon for country like PRC.
Deletein fact I would like to mention here, all the technologies were initially derived for Peace and development including Nuclear.
DeleteSo how wise this idea of Cloud can be proven in future, I have ym reservations on this.
सूचनाओं की सुरक्षा एक बहुत विस्तृत विषय है। पहले भी कागजों की फाइलें गायब होती रही हैं, क्योंकि वे तो सबकी पहुँच में रही हैं। अब कम से कम वह सब जानकारी अपने सुरक्षित सर्वरों में आ जाने से क्षति कम हो गयी है। क्लॉउड हो, अपना हो, सुरक्षित हो और इतना संवेदनशील हो कि अपनी सुरक्षा की जानकारी दे सके।
Deleteक्लाउड के संदर्भ में सारगर्भित जानकारी
ReplyDeleteउत्कृष्ट आलेख
सादर
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी पधारें
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
Cloud computing is a welcome thing for most of us. I use it for kindle. Will look forward to read your next post.
ReplyDelete
ReplyDeleteअपडेट करते रहो आप ऐसे ही सूचना संवाद प्रसारण और रिकार्डिंग की नै नै तरकीबों का .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए
नई नई तकनीकी की जानकारी आपकी पोस्ट से मिलती रहती है हार्दिक आभार के साथ बधाई आपको
ReplyDeleteतकनीकी जानकारी से परिपूर्ण आलेख !
ReplyDeleteबहुत उपयोगी और रोचक जानकारी...
ReplyDeleteदिन रात की ये सेवा जब आप करें ,
ReplyDeleteकिन शब्दों में आपका धन्यवाद करें .शुक्रिया आपका टिप्पणियों के लिए भी कटिंग एज अद्यतन प्रोद्योगिकी से बावस्ता करवाते रहने के लिए भी .
ॐ शान्ति
पर आखिर ये क्लाउ़ड हैं तो शक्तिसाली और बडे स्टोरेज वाले सर्वर ही ना ?
ReplyDeleteजी, आकार और अधिकार में बहुत बड़े, महाकाय, फुटबाल के ग्राउण्ड जितने तक बड़े।
Deleteआधुनिक संचार तकनीक पर आपकी अच्छी पकड़ का एक और उदाहरण ।
ReplyDeleteमैंने क्लाउड की दूसरी पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में पूछा था कि क्लाउड क्या है। यह इसलिए क्यूंकि मैं आपकी क्लाउड संबंधित यह प्रथम पोस्ट नहीं पढ़ पाया था। अब समझ आ गया है। बेहतरीन जानकारी। परन्तु मेरे जैसों के लिए यह थोड़ा कठिन होगा कि इस सुविधा का शीघ्र लाभ उठाएं।
ReplyDeleteThanks for this topic....kathin cheejon ko saral shabdon me bataane ke liye aabhaar.
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी दी आपने । क्लाउड का भविष्य उज्जवल है ।
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