कुछ दिन पहले टोयोटा से दो अधिकारी मिलने आये थे, टोयोटा की एक फ़ैक्टरी बंगलोर के पास में ही है। आपसी हित के विषय पर बातचीत थी। जब विषय पर चर्चा समाप्त हो गयी और दोनों अधिकारी चले गये तो उनके विज़िटिंग कार्ड पर ध्यान गया। अंग्रेज़ी में लिखा था 'वाकू डोकी'। उत्सुकता तो उस समय जगी पर व्यस्तता के कारण उन शब्दों का अर्थ नहीं पता लग पाया। जब समय मिला तो गूगल किया, अर्थ था, रोमांच की संभावना में सिहरना और हृदय गति बढ़ जाना।
टोयोटा एक जापानी कम्पनी है और 'वाकू डोकी' एक जापानी शब्द। वाकू डोकी के माध्यम से टोयोटा का प्रयास यह प्रचारित करना है कि उनके उत्पादों में भी यही गुण उपस्थित है। अर्थ यह कि टोयाटो के उत्पादों को उपयोग करते समय आपको सिहरन होगी और हृदय की धड़कन अव्यवस्थित हो जायेगी। जापानी कारें बहुत अच्छी होती हैं और उन्होंने अमेरिका के बड़े कार निर्माताओं को विस्थापित कर, जापान का आर्थिक वर्चस्व सुनिश्चित किया है। यह भी एक सत्य है कि कार के दीवानों की दीवानगी अवर्णनीय होती है। संभव है कि अच्छी कारों और दीवानों का संगम वाकू डोकी का अनुभव कराता हो, पर यह अभी तक मुझे अनुभव नहीं हुआ, न मेरे पास जापानी कार है और न मैं कार का दीवाना हूँ।
तब इस शब्द को कैसे अनुभव किया जाये। कोई आसपास का अनुभव ढूँढा जाये। नये मोबाइल में, नई पुस्तक में, नये नगर में, हाँ एक उत्सुकता अवश्य रहती तो है पर वाकू डोकी जैसी नहीं। लक्ष्यों की पूर्ति में, किसी पुराने परिचित से मिलने में, नवोदित प्रेम में या विवाह की प्रतीक्षा में, हाँ वाकू डोकी सा कुछ कुछ तो रहता है, पर वह भी बहुत अधिक स्थायी नहीं रहता है। वाकू डोकी घटना होने के बाद उस परिमाण में नहीं रहता है जैसा घटना के पहले रहता है। अब जो अनुभव उत्पाद के पहले ही हो और उत्पाद के उपयोग के साथ धीरे धीरे ढल जाये, उस पर अपनी कम्पनी की मूल अवधारणा बनाना विक्रय विभाग का ध्येय तो हो सकता है पर वैसा ही वाकू डोकी सदा ही बना रहेगा, यह कहना बड़ा कठिन है।
वैसे देखा जाये तो कुछ खरीदने के पहले थोड़ा बहुत वाकू डोकी तो होता ही है। एक झोंका सा रहता है जो हमें कोई भी उत्पाद खरीदने के समय होता ही है। यदि मूल्य कम रहे तो कम होता है, यदि मूल्य अधिक रहा तो अधिक होता है। कार तो बहुत अधिक मूल्य की होती है अतः उसमें हुये वाकू डोकी की मात्रा और अन्तराल बहुत अधिक होता है।
किसी भी कम्पनी के विक्रय विभाग का यह लक्ष्य रहता है कि किस तरह से अपनी बिक्री बढ़ायी जाये। उसके लिये वह कुछ भी कर सकती है। मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का उपयोग किस तरह से प्रचार बनाने में किया जाता है, यह नित प्रचार देखने वालों को सहज ही समझ आ जाता है। प्रचार आदि पर काम करने वाली कम्पनियाँ इस तथ्य को विधिवत समझती हैं कि किस प्रकार मन के भावों को धीरे धीरे उभारते रहने से उस उत्पाद के प्रति वाकू डोकी के भाव निर्मित होते रहते हैं? यही कारण रहता है कि मनोवैज्ञानिक रूप से पहले से ही इतना ऊर्जामग्न होने के कारण, उस उत्पाद के प्रति वाकू डोकी के गहरे और गाढ़े भाव हमारे मन में जाग जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल आर्थिक लक्ष्यों की अनुप्राप्ति में हमें वाकू डोकी की अनुभूति होती है। जब भी कोई बड़ा स्वप्न और घटना साकार होने के निकट होती है, हमें वाकू डोकी के अनुभव होते हैं। कोई बड़ा परीक्षाफल निकलने वाला हो, किसी बड़े व्यक्ति से हाथ मिलाने का क्षण हो, कोई बड़ा पुरस्कार मिलने वाला हो, वाकू डोकी के लक्षण हमारे शरीर से टपकने लगते हैं। व्यक्तिगत ही नहीं, समाज और देशगत विषयों में भी यही भाव छिपे रहते हैं।
देखा जाये तो शरीर का क्या दोष? शरीर में त्वचा है तो कंप होगा ही, हृदय है तो धड़केगा ही। शारीरिक रूप से तो वाकू डोकी का मंच तैयार है। यह तो मन है जो इन दोनों को गति देने को तैयार बैठा रहता है। यदि तनिक और सूक्ष्मता से देखा जाये तो मनुष्य के जीवन में यही वाकू डोकी के लघु लक्ष्यों का एक पंथ निर्मित है, एक के आने की प्रतीक्षा में हम श्रमरत रहते हैं और एक के जाने के बाद दूसरे की प्रतीक्षा में लग जाते हैं। यदि वाकू डोकी के क्षण जीवन में न रहें तो जीवन कितना नीरस हो जाये।
जब हम छोटे होते हैं तो छोटी छोटी बातों में हमें वाकू डोकी हो जाता है, थोड़ा बड़ा होने में अनुप्राप्ति के लक्ष्य और बड़े होते जाते हैं। धीरे धीरे श्रम और समय की मात्रा बढ़ती जाती है। जब हमें लगने लगता है कि अगले लक्ष्य के लिये हम अधिक श्रम नहीं कर सकते तो उसे मन से त्याग कर वर्तमान में स्थिर होने लगते हैं, पर औरों को देखकर वाकू डोकी की आस बनी रहती है। जो परमहंस होते हैं, उन्हें इन सांसारिक लक्ष्यों से कोई सारोकार नहीं रहता है, वे शान्त सागर से हो जाते हैं, हलचल भले ही किनारों पर बनी रहे, मन स्थिर हो जाता है, हर प्रकार के वाकू डोकी से।
अहा, अब याद आ रहा है कि कहीं इस तरह से मिलते जुलते भाव पढ़े हैं। साहित्य में कहीं निकटतम पहुँचने का बोध होता है, तो वह इस भजन का एक भाग है जिसमें कहते हैं, रोमांच कंपाश्रु तरंग भाजो, वन्दे गुरो श्री चरणारविन्दमं। रोमांच, कंप और तरंग जैसे शब्द एक साथ पहली बार आते हुये दिखते हैं, इस भजन में। देखा जाये तो भक्तिमार्ग में भी वाकू डोकी की खोज होती है, लोग कहते हैं कि शाश्वत वाकू डोकी की। भक्ति, साधना आदि के भावमयी प्रवाह में वाकू डोकी की मात्रा सांसारिक पक्षों की तुलना में कहीं अधिक होती है। कहते हैं कि सांसारिक वाकू डोकी कृत्रिम और संक्षिप्त है जबकि भक्तिजनित वाकू डोकी स्वस्फूर्त व सतत है।
आपको किससे सर्वाधिक वाकू डोकी होता है, टोयोटा ने कहा है कि उनकी कारों को ख़रीदने से यह भाव सहज आता है। देखते हैं, कब तक आयेगी वह कार और कब होगा वाकू डोकी। कोई और कम्पनी है, कहीं की भी हो, थोड़ी देर के लिये वाकू डोकी दे जाये। कुछ कुछ उस गीत की तरह, पल भर के लिये कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही।
शब्द चाहें कुछ भी कहें, भावनाएं सब जगह एक जैसी ही होती हैं.
ReplyDeleteवाकू डोकी - मुझे तो इसके पहले शब्द के तुकान्त शब्द के ध्यान आते ही धड़कनें बढ़ गयीं. अगर दोनों शब्दों के अक्षर गड्ड-मड्ड हो गये तो.. :)
ReplyDeleteसत्संग या ईश स्मरण से पहले की वाकू डोकी की स्थिति तदनंतर 'गूँगे को मिश्री का स्वाद' में परिणित हो जाती है
ReplyDeleteहमें आपकी रचना का इंतजार वाकू डोकी की तारतम्यता का अस्फुर्तन पैदा करता है। सुन्दर विश्लेषण।।
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ReplyDeleteजापानी शब्द "वाकू डोकी" से परिचय अच्छा लगा और उसका सारगर्भित विवरण भी.
ReplyDeleteशुरू में एकदम से मैं इसे 'डाकू वोकी' पढ़ गई पर प्रतिक्रिया "वाकू डोकी" वाली हुई ,वही रोमांच आदि लक्षण उदित हो गए.
ReplyDeleteहमारे यहाँ यह शब्द चलते देर नहीं लगेगी - आपने बताया श्रेय आपको !
आपकी यह पोस्ट पढ़ कर हमें वाकू डोकी होने लगा... :)
ReplyDelete:)
Deleteसुन्दर विश्लेषण
ReplyDeleteजो परमहंस होते हैं, उन्हें इन सांसारिक लक्ष्यों से कोई सारोकार नहीं रहता है, वे शान्त सागर से हो जाते हैं, हलचल भले ही किनारों पर बनी रहे, मन स्थिर हो जाता है, हर प्रकार के वाकू डोकी से।
ReplyDeletesarthak sakaratmak ...vaku-doki si post ...!!
feel waku-doki before exam :P
ReplyDeleteवाकू डोकी जैसी स्थिति छोटी छोटी इच्छाएं पूर्ण होने पर भी हो जाती है .... नए शब्द से परिचित कराने का आभार
ReplyDeleteहमने तो कुछ लिखने से पहले वाकू डोकी होता है ..और पूरे लिखते समय बना रहता है :).
ReplyDeleteविजिटिेंग कार्ड पर एक शब्द पढ़ने मात्र से आप स्वयं इतने वाकू डोकी हो गये कि इतना लम्बा लिख गये।
ReplyDeleteअजीब शह है यह वाकू डोकी।
Deleteजो परमहंस होते हैं, उन्हें इन सांसारिक लक्ष्यों से कोई सारोकार नहीं रहता है, वे शान्त सागर से हो जाते हैं, हलचल भले ही किनारों पर बनी रहे, मन स्थिर हो जाता है, हर प्रकार के वाकू डोकी से........................अच्छा आलेख। शिखा वार्ष्णेय के टिप्पणी रुप में लिखे शब्दों के अनुभवों से मैं भी गुजरता हूँ।
ReplyDeleteअतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहा जाए कि आपके हर पोस्ट पर भी वही होती है मतलब... वाकू डोकी
ReplyDeleteसही कहा आपने, सांसारिक वाकू डोकी क्षणिक ही होती है, प्राप्त होते ही उसका चार्म खत्म हो जाता है पर भक्ति से प्राप्त वाकूडोकी एक बोध दे जाता है जो उतरोतर वाकूडोकी को बढाने में सहायक होता है और जीवन उत्साह मय बना रहता है, बहुत ही सुंदर विचार.
ReplyDeleteरामराम.
दो जापानी शब्दों के बहाने आपने पूरा जीवन-दर्शन ही उतार दिया हमेशा की तरह । शायद यही जीवन्तता की निशानी है ।
ReplyDeleteवाह जी वाह आपके इस आलेख से इतना तो स्पष्ट है कि इंसान में जज्बा होना चाहिए वह अच्छी बातों के लिए स्कोप ढूंड ही लेता है, बहुत ही रोचक, प्रवाहपूर्ण और सार्थक रचना.
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ReplyDeleteनई जानकारी।
हम तो इस वक्त वाकू डोकी का ही अनुभव कर रहे हैं पहाड़ों में।
वाकू डोकी जैसी नए शब्द और नए अहसास से परिचित कराने का आभार.सार्थक रचना..
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
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ReplyDeleteमुझे तो आपकी यह पोस्ट पढकर ही वाकू डोकी होने लगी।
ReplyDeleteवाकू डोकी बे'कार' वाले के लिए भी ! कितने अवसर तो हैं आपने सही बखाना -मुझे भी कारों में तनिक भी रूचि नहीं है !
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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खेल देखने में अक्सर होता है 'वाकू डोकी'...
...
waku-doki... kai baar hua, par Hindi ya English... ab Japanese mei bhi hoga... sansarik waku-doki aur bahkti ki waku-doki mei fark to hai, par ye wahi samajh sakta hai jisne bhakti ki us seema ko chhua ho...
ReplyDeleterahi toyota ki baat to wo apna advertisement karna bakhoobi jante hai... par, bas us cas ki price itni na ho ki khareede bina hi logo ka waku-doki hone lage... :P
वाह निकल गया मुख से इस पोस्ट को पढ़ते है सच में शब्दों में कितनी ताकत है की सभी पाठकों को वाकू डोकी का एहसास करा दिया आपका लेखन हमेशा ही आनंदित करता है ---हल्द्वानी में काव्य गोष्ठी में जाने वाली हूँ उसी वाकू डोकी की अनुभूति हो रही है हाहाहा बहरहाल ह्रदय से बधाइयां इस पोस्ट के लिए
ReplyDeleteजापानी शब्द "वाकू डोकी" से परिचय अच्छा लगा .रोचक प्रस्तुति हेतु आभार .. हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
"वाकू डोकी" का अर्थ तो बहुत रोचक है। :)
ReplyDeleteघुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।
अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये एक बार अवश्य पधारें
टिप्पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
MY BIG GUIDE
नई पोस्ट
अब 2D वीडियो को देखें 3D में
अर्थ जाने बिना मुख-सुख ही लगते हैं ऐसे जापानी शब्द.
ReplyDeleteबड़ी ही रोचक पोस्ट है..एक नए शब्द का परिचय कराती हुई...वाकू-डोकी ...
ReplyDeleteमनोविज्ञान का सहर तो अरसे से कम्पनियाँ अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए करती ही रही हैं.
हमें तो पहले 'ईलू ईलू' होता है और जब 'वह' आसपास न दिखें तो 'वाकू डोकी' होने लगता है ।
ReplyDeleteध्यान के समय कभी कभी एक सिहरन सी होती है. मैं नहीं जानता, इसे वाकू डोकी कहा जाये या नहीं।
ReplyDeleteI get Waku doki, when look at Political leadership ;-)
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
ReplyDeleteचलिए इसी बहाने एक नया शब्द तो मिला ....
ReplyDeleteऔर कुछ कुछ रोमांच भी ... लेख पढ़ने के बाद ...