आदर्शों की छोटी चादर,
चलो ढकेंगे,
औरों को हम।
आंकाक्षा मन पूर्ण उजागर,
चलो छलेंगे,
औरों को हम।
इसकी उससे तुलना करना,
चलो नाप लें,
औरों को हम।
निर्णायक बन व्यस्त विचरना,
चलो ताप लें,
औरों को हम।
हमने ज्ञान निकाला, पेरा,
चलो पिलायें,
औरों को हम।
बिन हम जग में व्याप्त अँधेरा,
चलो जलायें,
औरों को हम।
पूर्ण नियन्त्रण, ध्येय महत्तम,
चलो बतायें,
औरों को हम।
फिर क्यों उछलें, अत्तम-बत्तम,
चलों सतायें,
औरों को हम।
काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
चलो सजा दें,
औरों को हम।
सुप्त प्राण, हो गुञ्जित मधुबन,
चलो बजा दें,
औरों को हम।
जब हम जागे,
तभी सभी का उदित सबेरा,
जब हम आगे,
तब विकास पथ रत्न बिखेरा,
हम तो हम हैं,
तुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,
औरों के हम, समझे जन जन,
यही सिखाते, औरों को हम।
सही है , हम से अधिक विद्वान् कौन ?? :)
ReplyDeleteशिक्षण की शिक्षा लेते हैं ,
गुरुशिष्टता मर्म न जाने !
शिष्यों से रिश्ता बदला है
जीवन के सुख को पहचाने
आरुणि ठिठुर ठिठुर मर जाएँ,आश्रम में धन लाएं खींच !
आज कहाँ से ढूँढें ऋषिवर, बड़े दुखी हैं, मेरे गीत !
बधाई इस प्यारी रचना के लिए !!
मुझे भले कुछ कह लें सतीश जी मगर खबरदार मेरे स्वयंभू शिष्य को कुछ नहीं--मैं बर्दाश्त नहीं कर सकूंगा :-)
Deleteसही गुरु हैं प्रभू :)
Deleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
Deleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
ReplyDeleteचलो सजा दें,
औरों को हम।................ बड़ा ही तीखा व्यंग्य है, बहुत ख़ूब।
'गुञ्जित'........ इस तरह की टाइपिंग बहुत कम हो चली है आजकल। बधाई .... कुछ दिनों से मैं "ड़, ञ्, ण" वर्णों का प्रयोग करने की कोशिश कर रहा हूँ, वही दृश्य यहाँ देख कर मन प्रसन्न हुआ।
...इस काम में हम माहिर हैं !
ReplyDeleteइसकी उससे तुलना करना,
ReplyDeleteचलो नाप लें,
औरों को हम।
......... प्यारी रचना .........
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
नहीं झांकते, भीतर अपने
सदा आंकते, औरों को हम !
अच्छी रचना, आभार आपका...
...
हम तो हम हैं,
ReplyDeleteतुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,
औरों के हम, समझे जन जन,
यही सिखाते, औरों को हम।
कोमलता से किया गया कटाक्ष ..... सुंदर रचना
जय हो सुन्दर रचना के लिए ... बधाई
ReplyDeleteअच्छी चोट है अहम् पर !
ReplyDeleteहम तो हम हैं,
ReplyDeleteतुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,
औरों के हम, समझे जन जन,
यही सिखाते, औरों को हम।--
अहंकारियों पर करारा चोट
latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
ऐसे ही हैं हम ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।बधाई इस प्यारी रचना के लिए !
ReplyDeleteएक सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteहम तो हम हैं,
ReplyDeleteतुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
सच कहा है ..
ReplyDeleteहम ऐसे ही रहेंगे ... पता नहीं थे या नहीं ... पर अब ऐसे ही रहेंगे ...
बहुत प्रभावी ...
खुद में व औरों में कुछ तो फर्क रखना ही पड़ता है.
ReplyDeleteहम ही हम हैं , तो क्या हम हैं !
ReplyDeleteहम ही हम..
ReplyDeleteबहुआयामी संदेश देती इस कविता के लिये आभार प्रवीण जी।
विचारणीय भाव
ReplyDeleteइस नाप जोख में ही उलझें हैं हम सब ....जाने क्यों..?
शानदार
ReplyDelete
ReplyDeleteआत्म श्लाघा गहना मेरा ,चलो दिखा दें औरों को हम
ॐ शान्ति .
ReplyDeleteआत्म श्लाघा गहना मेरा ,चलो दिखा दें औरों को हम
ॐ शान्ति .
देते ज्ञान
ReplyDeleteऔरों को हम !!
फिर क्यों उछलें, अत्तम-बत्तम,
ReplyDeleteचलों सतायें,
औरों को हम।
अच्छा व्यंग्य है ...सही लिखा है ....समसामयिक ....!!आजकल इतनी ही सोच रह गयी है ....!!
हम साधेंगे, सारी रचना,
ReplyDeleteहम ढोते हैं, जग संरचना,
बहुत सुंदर.
हम से है ज़माना सारा
ReplyDeleteहम ज़माने से है नहीं !!!
जब हम जागे,
ReplyDeleteतभी सभी का उदित सबेरा,
जब हम आगे,
तब विकास पथ रत्न बिखेरा..
बहुत सुन्दर नपी तुली सार्थक रचना ...
Dere all
ReplyDeleteकितने प्यारे है ये सदेश तुम्हारे जिसे मे हर रोज पडता हूँ।
कविता कहती है कि आप तो बस आप हैं ।
ReplyDeleteहम तो हैं हम ......सटीक व्यंग...
ReplyDeleteकविता में गज़ब का व्यंग्य है.
ReplyDeleteशिल्प की दृष्टि से भी कविता में ताजगी है .
हम सभी का सच यही है.
काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
ReplyDeleteचलो सजा दें,
औरों को हम-----एक सटीक सार्थक कविता जिसके हर बंद में व्यंग्य का पुट है बहुत खूब कहना आसान है दूसरों के लिए करना कुछ करना कौन चाहता है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु
समाज को दर्पण दिखाती रचना।
ReplyDeleteएक सुन्दर और अर्थपूर्ण कविता |
ReplyDeleteहम साधेंगे, सारी रचना,
ReplyDeleteहम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा
gahre arth ko samete mahtvpoorn panktiyan .......sadar aabhar.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहम तो हम हैं,
ReplyDeleteतुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,
....आज के यथार्थ की सटीक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..
"बिन हम जग में व्याप्त अँधेरा,
ReplyDeleteचलो जलायें,
औरों को हम।"
बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ... बहुत बहुत बधाई...
@मानवता अब तार-तार है
अरे! वाह! यह तो बडी उपयोगी रचना दे दी आपने। खूब काम में आएगी मुझे तो। शुक्रिया।
ReplyDeleteहम से बढकर कौन .............।
ReplyDeleteकाँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
ReplyDeleteचलो सजा दें,
औरों को हम।
सटीक, बहुत सुन्दर !
aise hi hain ham ...
ReplyDeletebhi :)
shandaar
aapke pratibha ke kayal hain ham !!
कड़वी एवं सार्थक कविता !
ReplyDeleteआपके लिखे पर comment करना
ReplyDeleteशुरू से अंत तक उलझन में ही रह गई
कभी व्यंग लगा तो कभी गूढ रहस्य
यह ही सत्य हैं ....
देश के नेताओं पर अच्छा कटाक्ष।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete