विश्व जियेगा और गर्भरण जीते बिटिया,
प्रथम युद्ध यह और जीतना होगा उसको,
संततियों का मोह, नहीं यदि गर्भधारिणी,
सह ले सृष्टि बिछोह, कौन ढूढ़ेगा किसको,
विश्व जियेगा और पढ़ेगी अपनी बिटिया,
आधा तम भर, आधा ठहरा, कौन बढ़ा है,
फिर भी शिक्षा रहती बाधित, सीमित, सिमटी,
बर्बरता की पुनर्कल्पना, जग सिकुड़ा है।
विश्व जियेगा और सुरक्षित होगी बिटिया,
आधा तज कर, बोलो अब तक कौन जिया है,
मुखर नहीं यदि हो पाता है फिर भी आग्रह,
विध्वंसों से पूर्व सृष्टि ने मौन पिया है।
विश्व जियेगा, परिवारों को साधे बिटिया,
अस्त व्यस्त जग का हो पालन, तन्त्र वही है,
प्रेम तन्तु में गुँथे रहेंगे घर में जन जन,
विस्तृत हृद, धारण करती सब, मन्त्र मही है,
विश्व जियेगा, अधिकारों से प्लावित बिटिया,
घर, बाहर उसके हों निर्णय, नेह भरे जो,
लड़ लड़कर हम व्यर्थ कर चुके अपनी ऊर्जा,
जुड़ने का भी एक सुअवसर इस जग को हो,
विश्व जियेगा, करे साम्य स्थापित बिटिया,
समय संधि का, नहीं छिटक कर हट जाने का,
गर्व हमारा, शक्ति हमारी, क्यों खण्डित हो,
समय अभी है, बस मिल जुल कर, डट जाने का,
विश्व जियेगा और जियेगी सबकी आशा,
तत्व प्रकृति दो, संचालित हो, स्थिर, गतिमय,
यह विशिष्टता, द्वन्द्व हमारा, न हो घर्षण,
एक पुष्प, एक वात प्रवाहित, जगत सुरभिमय।
विश्व जियेगा, करे साम्य स्थापित बिटिया,
ReplyDeleteसमय संधि का, नहीं छिटक कर हट जाने का,
गर्व हमारा, शक्ति हमारी, क्यों खण्डित हो,
समय अभी है,बस मिल जुल कर,डट जाने का,
बहुत उम्दा,बेहतरीन रचना के लिए बधाई,पाण्डेय जी,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
प्रासंगिक सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, आशावान और स्फ़ूर्तिदायक गीत, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
प्राचीन और नवीन अपनी सब दशा आलोच्य हैं
ReplyDeleteअब भी हमारी आस्ति हैं यधपि अवस्था शोच्य हैं।
प्राचीन और नवीन अपनी सब दशा आलोच्य हैं
ReplyDeleteअब भी हमारी आस्ति हैं यधपि अवस्था शोच्य हैं।
सुन्दर आशा उर्जित अभिलाषा
ReplyDeleteक्यों तुम चिंतित से लगते
ReplyDeleteहो, बेटी जीत दिलाएगी !
विदुषी पुत्री जिस घर जाए
खुशिया उस घर आएँगी !
कर्मठ बेटी के होने से, बड़े आत्म विश्वासी गीत !
इसके पीछे चलते चलते,जग सीखेगा,जीना मीत !
बहुत सुंदर
ReplyDeleteविश्व जियेगा और जियेगी सबकी आशा,
ReplyDeleteतत्व प्रकृति दो, संचालित हो, स्थिर, गतिमय,
यह विशिष्टता, द्वन्द्व हमारा, न हो घर्षण,
एक पुष्प, एक वात प्रवाहित, जगत सुरभिमय।.... बहुत बढिया आशावान अभिलाषा..आभार
अहो! यही अभिलाषा है हम सबकी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सुखद कामना की है.
ReplyDeleteविस्तृत हृद धारण करती सब मन्त्रमही है,.......गीत की पंक्तियों का उद्देश्य और भाव बहुत सुन्दर हैं।
ReplyDeleteविश्व जियेगा, अधिकारों से प्लावित बिटिया,
ReplyDeleteघर, बाहर उसके हों निर्णय, नेह भरे जो,
लड़ लड़कर हम व्यर्थ कर चुके अपनी ऊर्जा,
जुड़ने का भी एक सुअवसर इस जग को हो,
लाजबाब बंद वाह वाह एक सशक्त कविता जिसे बार बार पढने को जी चाहता है बहुत बहुत बधाई
आमीन
ReplyDeleteउत्कृष्ट सोच और लेखन से भरी रचना
ReplyDeleteआशा और विश्वास ही जीवन को आनन्दमय बनाते हैं । आशाओं से भरी सुन्दर कविता ।
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ReplyDeleteविश्व जियेगा और सुरक्षित होगी बिटिया,
आधा तज कर, बोलो अब तक कौन जिया है,
मुखर नहीं यदि हो पाता है फिर भी आग्रह,
विध्वंसों से पूर्व सृष्टि ने मौन पिया है।
...वाह!
सबकी विचारणा ऐसी ही हो !
ReplyDeleteशानदार, प्रेरणादायक और आज के सन्दर्भ में प्रासंगिक !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन वंडरफ़ुल दुध... पियो ग्लास फ़ुल दुध..:- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteविश्व जियेगा, करे साम्य स्थापित बिटिया,
ReplyDeleteसमय संधि का, नहीं छिटक कर हट जाने का,
....अब यही आशा है...बहुत प्रेरक और प्रासंगिक रचना...
समय रहते इस पर विचार नहीं किया तो विश्व के आस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है.
ReplyDeletebahut sahi keha praveen ji...!
ReplyDeleteआशा, प्रेम और स्नेह का आगार लिए ... मधुर रचना है ... हां सोचने को विवश करती है ...
ReplyDeleteचिन्ता, और आशा का समिश्रण प्रेरणा दायी ।
ReplyDeleteyee.. proud to be a girl :)
ReplyDelete...निश्चय ही बिटिया जियेगी तो ही विश्व बचेगा और जियेगा।
ReplyDeleteबेटियों पर लिखी जा रही कविताओं के बीच यह कविता सबसे अलग ही मिजाज की है।
ReplyDeleteविश्व जियेगा और जियेगी सबकी आशा,
ReplyDeleteतत्व प्रकृति दो, संचालित हो, स्थिर, गतिमय,
यह विशिष्टता, द्वन्द्व हमारा, न हो घर्षण,
एक पुष्प, एक वात प्रवाहित, जगत सुरभिमय।
सच कहा ।
तत्व प्रकृति दो, संचालित हो, स्थिर, गतिमय,
ReplyDeleteयह विशिष्टता, द्वन्द्व हमारा, न हो घर्षण,
एक पुष्प, एक वात प्रवाहित, जगत सुरभिमय।.
.........बहुत बढिया अभिलाषा..आभार
विश्व जियेगा और जियेगी सबकी आशा,
ReplyDeleteतत्व प्रकृति दो, संचालित हो, स्थिर, गतिमय,
यह विशिष्टता, द्वन्द्व हमारा, न हो घर्षण,
एक पुष्प, एक वात प्रवाहित, जगत सुरभिमय।
सुन्दर सार्थक रचना .
बेटियों को यदि ऐसा ही सम्मान , अधिकार और प्यार मिले तब ही विश्व जिएगा .... सुंदर रचना
ReplyDeleteAapki kavitaein aur lekh dono hii bahut achhce hote hain. Aabahar
ReplyDeleteविश्व जिएगा।
ReplyDeleteअवश्य, जब तक ऐसे विचार जियेंगे।
विश्व जियेगा, परिवारों को साधे बिटिया,
ReplyDeleteअस्त व्यस्त जग का हो पालन, तन्त्र वही है,
प्रेम तन्तु में गुँथे रहेंगे घर में जन जन,
विस्तृत हृद, धारण करती सब, मन्त्र मही है,---सुंदर रचना
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Amen to this thought!
ReplyDeleteवाह बहुत ही उत्कृष्ट कृति. बहुत बधाई,
ReplyDeleteअवश्य ऐसा ही होगा ।बिटिया जियेगी तभी विश्व जियेगा ।
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