तकते हैं,
लहरें आती और जाती हैं।
लखते हैं,
कुछ लाती, कुछ ले जाती हैं।
छकते हैं,
इठलाती, हमें खिलाती हैं।
इनके जैसे ही सतत रहें,
हर पल उद्भव का राग यहाँ,
नत हो जाना, फिर फिर आना,
आरोहण का अनुनाद यहाँ।
हो मत्त, व्यग्र, चंचल, चपला,
दौड़ी आती विरही कल कल,
जड़ रूप मूक सागर तट पर,
आलिंगन का आग्रह निश्छल।
यह प्रेम नहीं, मद आकुल है,
जीवट मन है, कब से ठहरा,
यह विष फेनों का नर्तन भी,
आक्रोश व्यक्त होता गहरा।
एक द्वन्द्व मूर्त, स्तब्ध विश्व,
आकाश चेत, सो जाता है,
सागर धरती नित लीलामय,
इतिहास रेत हो जाता है।
इनकी गतियों सा बने रहें,
यदि शेष समय जो मिला क्षणिक,
संग जीवन हम भी बह जायें,
जब समय शेष न रहे तनिक।
उम्दा रचना...वाह!
ReplyDeleteसंग जीवन हम भी बह जायें,
जब समय शेष न रहे तनिक।
लहरों के सन्दर्भ में विभिन्न भावों का उत्कृष्ट वर्णन
ReplyDeleteअद्भुत रचना,
ReplyDeleteयह प्रेम नहीं, मद आकुल है,
जीवट मन है, कब से ठहरा,
यह विष फेनों का नर्तन भी,
आक्रोश व्यक्त होता गहरा।
Profound. The beginning is so beautiful and poetic. Love your poems. :)
ReplyDeleteबेहद सुंदर रचना , आभार आपका ...
ReplyDeleteहो मत्त, व्यग्र, चंचल, चपला,
दौड़ी आती विरही कल कल,
जड़ रूप मूक सागर तट पर,
आलिंगन का आग्रह निश्छल।
जीवन की हलचल जैसी ही है लहरों की प्रवृत्ति. सुन्दर.
ReplyDeleteइनके जैसे ही सतत रहें,
ReplyDeleteहर पल उद्भव का राग यहाँ,
नत हो जाना, फिर फिर आना,
आरोहण का अनुनाद यहाँ।
क्या यही जीवन का दूसरा रूप नही है?
बहुत ही उल्लासमयी रचना, शुभकामनाएं.
रामराम
वाह !!! बहुत सुंदर अद्भुत प्रस्तुति,,,आभार
ReplyDeleteRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
सुन्दर. हेमिंग्वे की ओल्ड मेन एंड दी सी याद आ गई
ReplyDeleteगत्यात्मक रचना ...
ReplyDeleteआपकी कविताओं में समाहित जीवन दर्शन बहुत प्रभावित करता है ....हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और अद्भुत रचना,आपका आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द संयोजन के माध्यम से जीवन और समुद्र में उठती लहरों का बढ़िया व्याख्या.
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
संग समय हम भी बह जाएँ .
ReplyDeleteलहरों सा जीवन सागर में समाये !
उत्कृष्ट लेखन !
सागर और धरती की तरह ही लीलामय व गतिशील जीवन जीना और इतिहास की तरह समय का निःशेष होजाना ही प्राप्य क्षणों का सदुपयोग है । जीवन को बहुत ही गहरे दर्शन के साथ देखते हैं आप ।
ReplyDeleteयह प्रेम नहीं, मद आकुल है,
ReplyDeleteजीवट मन है, कब से ठहरा,
यह विष फेनों का नर्तन भी,
आक्रोश व्यक्त होता गहरा...
गहरी बात ... ये सुख भी है, दुख बजी है ... आक्रोच भी है ... जीवन की लालसा भी है ...
इन लहरों में सभी कुछ व्याप्त है ...
लहरों से हम चलना सीखें ...
ReplyDeleteगहन जीवन दर्शन छिपा है इन आती जाती लहरों में.
इनकी गतियों सा बने रहें,
ReplyDeleteयदि शेष समय जो मिला क्षणिक,
संग जीवन हम भी बह जायें,
जब समय शेष न रहे तनिक।
अद्भुत,सुन्दर,उम्दाउत्कृष्ट,रचना .
ब्यूटीफुल पोएट्री। वाह।
ReplyDeleteअपनी पंचतत्व में जल तत्व पर लिखी पोएम में मैंने भी यह चित्र यूज़ किया था।
वाह हर शब्द अपने निशां छोडती खुबसूरत अंदाज़ में अपनी बात कहती |
ReplyDeleteसुंदर रचना |
ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे
ReplyDeleteजीवन भी लहरों की तरह हिलोरे लेता रहता है।
ReplyDeleteगहन जीवन दर्शन.. अद्भुत रचना,आभार..
ReplyDeleteइतिहास रेत हो जाता है
ReplyDeleteसागर किनारे उपजी सुन्दर रचना।
ReplyDeletecarpe diem is all you gotta do
ReplyDeleteloved it :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऐसी शब्दावली तो अब अपवादस्वरूप ही देखने/पढने को मिलती है।
ReplyDeleteस्वस्थ जीवन-दर्शन ,प्रभावशाली शब्दावली में पढ़ने का आनन्द ही निराला है -आभार !
ReplyDeleteनिराला अंदाज़ है,....
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
शानदार
ReplyDeleteगहनता लिए ......
ReplyDeleteवाह . जीवन अभी है और यहीं है लेकिन दुर्भाग्य से हम अक्सर कहीं और होते हैं .
ReplyDeleteगहन भाव लिये अनुपम प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआभार
गहन अभिव्यक्ति,जीवन दर्शन की.
हर शब्द,परिभाषित करता है,जीवन की,सार्थकता-निर्थकता को.
’इतिहास रेते हो जाता है’
”जब समय शेष न रहे तनिक’
संग जीवन हम भी बह जांये’
ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट पर नंगे पाँव मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता लहरिल प्रवाह के साथ |
ReplyDeleteलहरों को देख चन्द्रमा की शक्ति का एहसास होता है । कोई इतना शीतल और इतना दूर होकर भी कितना प्रभावकारी हो सकता है ।
ReplyDeleteYour poetry reminded me of evenings I had spent on beaches in Goa. I used to feel that waves are stubborn lovers not ready to give up!
ReplyDeleteआप्लावित करता हुआ मन..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteमुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
ReplyDeleteआप की ये रचना 17-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
आदरणीय आपकी इस सार्थक रचना को 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक करके कुछ गति देने का प्रयास किया गया है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें। आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
ReplyDeletebhot khub waaaaaah
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