बच्चे, पता ही नहीं चलता है, कब बड़े हो जाते हैं? कल तक लगता था कि इन्हें अभी कितना कुछ सीखना है, साथ ही साथ हम यही सोच कर दुबले हुये जा रहे थे कि कैसे ये इतना ज्ञान समझ पायेंगे? अभी तक उनकी गतिविधियों को उत्सुकता में डूबा हुआ स्वस्थ मनोरंजन समझते रहे, सोचते रहे कि गंभीरता आने में समय लगेगा।
बच्चों की शिक्षा में हम सहयोगी होते हैं, बहुधा प्रश्न हमसे ही पूछे जाते हैं। उत्सुकता एक वाहक रहती है, हम सहायक बने रहते हैं उसे जीवन्त रखने में। जैसा हमने चीज़ों को समझा, वैसा हम समझाते भी जाते हैं। बस यही लगता है कि बच्चे आगे आगे बढ़ रहे हैं और हम उनकी सहायता कर रहे हैं।
यहाँ तक तो सब सहमत होंगे, सब यही करते भी होंगे। जो सीखा है, उसे अपने बच्चों को सिखा जाना, सबके लिये आवश्यक भी है और आनन्दमयी भी। यहाँ तक तो ठीक भी है, पर यदि आपको लगता है कि आप उनकी उत्सुकता के घेरे में नहीं हैं, तो पुनर्विचार कर लीजिये। यदि आपको लगता उनकी उत्सुकता आपको नहीं भेदती है तो आप पुनर्चिन्तन कर लीजिये।
प्रश्न करना तो ठीक है, पर आपके बच्चे आपके व्यवहार पर सार्थक टिप्पणी करने लगें तो समझ लीजिये कि घर का वातावरण अपने संक्रमण काल में पहुँच गया है। टिप्पणी का अधिकार बड़ों को ही रहता है, अनुभव से भी और आयु से भी। श्रीमतीजी की टिप्पणियों में एक व्यंग रहता है और एक आग्रह भी। बच्चों की टिप्पणी यदि आपको प्राप्त होने लगे तो समझ लीजिये कि वे समझदार भी हो गये और आप पर अधिकार भी समझने लगे। उनकी टिप्पणी में क्या रहता है, उदाहरण आप स्वयं देख लीजिये।
बिटिया कहती हैं कि आप पृथु भैया को को ठीक से डाँटते नहीं हैं। जब समझाना होता है, तब कुछ नहीं बोलते हो। जब डाँटना होता है, तब समझाने लगते हो। जब ढंग से डाँटना होता है, तब हल्के से डाँटते हो और जब पिटाई करनी होती है तो डाँटते हो। ऐसे करते रहेंगे तो वह और बिगड़ जायेगा। हे भगवान, दस साल की बिटिया और दादी अम्मा सा अवलोकन। क्या करें, कुछ नहीं बोल पाये, सोचने लगे कि सच ही तो बोल रही है बिटिया। अब उसे कैसे बतायें कि हम ऐसा क्यों करते हैं? अभी तो प्रश्न पर ही अचम्भित हैं, थोड़ी और बड़ी होगी तो समझाया जायेगा, विस्तार से। उसके अवलोकन और सलाह को सर हिला कर स्वीकार कर लेते हैं।
पृथु कहते हैं कि आप इतना लिखते क्यों हो, इतना समय ब्लॉगिंग में क्यों देते हो? आपको लगता नहीं कि आप समय व्यर्थ कर रहे हो, इससे आपको क्या मिलता है? थोड़ा और खेला कीजिये, नहीं तो बैठे बैठे मोटे हो जायेंगे। चेहरे पर मुस्कान भी आती है और मन में अभिमान भी। मुस्कान इसलिये कि इतना सपाट प्रश्न तो मैं स्वयं से भी कभी नहीं पूछ पाया और अभिमान इसलिये कि अधिकारपूर्ण अभिव्यक्ति का लक्ष्य आपका स्वास्थ्य ही है और वह आपका पुत्र बोल रहा है।
ऐसा कदापि नहीं है कि यह एक अवलोकन मात्र है। यदि उन्हे मेरी ब्लॉगिंग के ऊपर दस मिनट बोलने को कहा जाये तो वह उतने समय में सारे भेद खोल देंगे। पोस्ट छपने के एक दिन पहले तक यदि पोस्ट नहीं लिख पाया हूँ तो वह उन्हें पता चल जाता है। यदि अधिक व्यग्रता और व्यस्तता दिखती है तो कोई पुरानी कविता पोस्ट कर देने की सलाह भी दे देते हैं, पृथुजी। लगता है कि कहीं भविष्य में मेरे लेखन की विवेचना और समीक्षा न करने लगें श्रीमानजी।
आजकल हम पर ध्यान थोड़ा कम है, माताजी और पिताजी घर आये हैं, दोनों की उत्सुकता के घेरे में इस समय दादा दादी हैं। न केवल उनसे उनके बारे में जाना जा रहा है, वरन हमारे बचपन के भी कच्चे चिट्ठे उगलवाये जा रहे हैं। कौन अधिक खेलता था, कौन अधिक पढ़ता था, कौन किससे लड़ता था, आदि आदि। मुझे ज्ञात है कि इन दो पीढ़ियों का बतियाना किसी दिन मुझे भारी पड़ने वाला है। माताजी और पिताजी भले ही बचपन में मुझे डाँटने आदि से बचते रहे, पर मेरे व्यवहार रहस्य बच्चों को बता कर कुछ न कुछ भविष्य के लिये अवश्य ही छोड़े जा रहे हैं।
कई बच्चे अपने माता पिता को अपना आदर्श मानते हैं, उनकी तरह बनना चाहते हैं। पर जब उनके अन्दर यह भाव आ जाये कि उन्हे थोड़ा और सुधारा जा सकता है, थोड़ा और सिखाया जा सकता है तो वे अपने आदर्शों को परिवर्धित करने की स्थिति में पहुँच गये हैं। उनके अन्दर वह क्षमता व बोध आ गया है जो वातावरण को अपने अनुसार ढालने में सक्षम है। समय आ गया है कि उन्होंने अपनी राहों की प्रारम्भिक रूपरेखा रचने का कार्य भलीभाँति समझ लिया है।
पता नहीं कि हम कितना और सुधरेंगे या सँवरेंगे, पर जब बच्चे सिखाते हैं तब बहुत अच्छा लगता है।
अवलोकन का स्वस्थ्य अवलोकन.
ReplyDeleteबच्चे भी बहुत कुछ सीखा देते है, और कई आदतें बच्चों के कारण छोड़नी भी पड़ती है बेशक बच्चों की नजर में वे ना आई हों|
ReplyDeleteमुझे आज कंप्यूटर के बारे में जितना भी ज्ञान है वह बेटे का दिया हुआ है तो वेब साईट, फोटोशोप व अन्य कई तरह की कुशलताओं के पीछे बेटी द्वारा सिखाया ज्ञान है :)
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ReplyDeleteVery thoughtful, beautiful and interesting post. Congrats to the kids enjoying the summer holidays with their grandpas. Ghar kee khusiyan isee prakar nirantar bani rahen,Shubhkamnayen.
ReplyDeleteमुझे तो बेटे ने कंप्यूटर सिखाया ,बेटी ने बहुत से नये रंग-ढंग. अब बच्चों के बच्चों ने चार्ज अपने हाथ में ले लिया है,बहुत सी नई चीज़ें मैं उन्हीं से पूछती हूं .और तो और वे मेरे रंग-ढंग नियंत्रित करने को भी प्रयत्नशील रहते हैं.
ReplyDeleteहम जब बच्चे थे, गलत काम करते पिताजी से डरते थे। जब बड़े हुए, गलत काम करते बच्चों से डरते हैं।
ReplyDeleteयही डर बना रहे तो सब सुधर न जाएँ ..
Deleteकभी कभी सोचना पड ही जाता है कि हम क्या उनकी उम्र में इतना सब सीख पाए थे.
ReplyDeleteयह कभी नहीं होता ...हर आगे आने वाली पीढी भौतिक ज्ञान में पिछली पीढी से अधिक जानकार होती है ...शेष वास्तविक-ज्ञान उस आत्मा की अपनी विशेषता होती है...
Deleteकभी कभी हमारे बच्चे भी हमे बहुत कुछ सिखा जाते है,जिन्हें हमे स्वीकार करना ही चाहिए.
ReplyDeleteपरन्तु इस वाक्य पर भी तो गौर करें...
Delete'''अब उसे कैसे बतायें कि हम ऐसा क्यों करते हैं? अभी तो प्रश्न पर ही अचम्भित हैं, थोड़ी और बड़ी होगी तो समझाया जायेगा, विस्तार से। उसके अवलोकन और सलाह को सर हिला कर स्वीकार कर लेते हैं।'
अभी तो व्यवहार का ही अवलोकन शुरू हुआ है .....बच्चे बहुत कुछ सिखाते हैं ज़िंदगी में ... आज कल के आधुनिक उपकरण बच्चे ही सीखते हैं हमें तो .... दादा दादी के साथ बच्चे बहुत खुश रहते हैं और अपने पापा के बचपन की बातों में बहुत रस लेते हैं । ....
ReplyDeleteयह समय नयी-नयी खोजों का जो होता है ...
Deleteबिल्कुल आजकल के बच्चे बहुत समझदार हैं और लगता है हम से बहुत आगे जायेंगे बस उन्हें सही मार्गदर्शन मिलता रहे।
ReplyDeleteसही कहा....सही मार्गदर्शन मिलता रहे...
Deleteभौतिक ज्ञान व जानकारी में तो सदा अगली पीढी तेज होती ही है...सिखाती भी है....परन्तु व्यवहारिक ज्ञान के लिए यह सोच उचित है कि..
ReplyDelete''अब उसे कैसे बतायें कि हम ऐसा क्यों करते हैं? अभी तो प्रश्न पर ही अचम्भित हैं, थोड़ी और बड़ी होगी तो समझाया जायेगा, विस्तार से। उसके अवलोकन और सलाह को सर हिला कर स्वीकार कर लेते हैं।'
परन्तु उन्हें उनके प्रश्न, या कमेन्ट या प्रदत्त सीख पर ..वास्तविकता का प्रारम्भिक भाव-ज्ञान अवश्य हृदयंगम कराना चाहिए ताकि उनमें अहंभाव का उदय न हो....यद्यपि यह सबसे दुष्कर कार्य है ....
श्रीमतीजी की टिप्पणियों में एक व्यंग रहता है और एक आग्रह भी। बच्चों की टिप्पणी यदि आपको प्राप्त होने लगे तो समझ लीजिये कि वे समझदार भी हो गये और आप पर अधिकार भी समझने लगे।
ReplyDeleteचूंकि श्रीमती जी का यह व्यवहार पहले ही दिन से सबके साथ रहता है तो अटपटा तब लगता है जब किसी दिन वो व्यंग ना करें.:)
हां बच्चों के मामले में आपका आकलन बिल्कुल खरा है.
रामराम.
ब्लागिंग के बारे में श्रीमती जी और बच्चों का व्यवहार शायद सभी ब्लागर्स के साथ ऐसा ही रहता है.
ReplyDeleteजहां तक हमारी ब्लागिंग का सवाल है उसके बारे में हमसे ज्यादा चिंता और समझ उनको रहती है, और शायद आपका यह कथन भी सत्य निकले कि भविष्य में वो ही हमारे आलोचक समालोचक बनें.
रामराम.
:-D :-D ढेर सारी मुस्कराहटों के सिवा क्या कहा जाए !
ReplyDeleteबच्चे निष्पक्ष राय देते हैं..तभी उनकी बात अच्छी लगती है..
ReplyDeleteसवाया फेक्टर!!
ReplyDeleteBachhe to bahut sikhate hain...aapne mujhe mere bachhon ka bachpan yaad dila diya..yahee bachhe jab jab bade hote hain to na jane wo niragasta kahan chali jati hai?
ReplyDeleteअब डांटना तो समझ ही गए होगे :)
ReplyDeleteयही तो एक प्राकृतिक व्यवहार जीवन को गतिशील बनाये रखता है।
ReplyDeleteबच्चों के अनुरूप ढलने में जो सहजता और प्रसन्नता होती है वह कहीं और नहीं होती.. बढ़िया कहा है..
ReplyDeleteनई पीढी से सीखने को भी बहुत कुछ है सचमुच ।
ReplyDeleteसत्य ही कहा आपने.Child is the father of man.चाहे बच्चे छोटे हों या बड़े हम उनसे सीखते ही रहते हैं ...और उनसे सीखना बहुत अच्छा भी लगता है ...!!
ReplyDeleteहोनहार विरबान के होत चीकने पात.
ReplyDeleteबच्चों के बोलने से ही उनकी समझदारी का पता लगता है ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
बच्चे बहुत thoughtful हें आजकल और आइना भी दिखाते हैं..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा ...अच्छी बात कभी कभी छोटों से भी सीखी जाती है
ReplyDeleteएक दूसरे से सीखना-सिखाना यूँ ही चलता रहे।
ReplyDeleteहमारे बच्चों की उम्र तक आने दिजीए उन्हें ...तब देखिए आगे -आगे होता है क्या?.... :-)
ReplyDeletebilkul theek kaha hai bhaiya...
ReplyDeleteकुछ भी कहो पर बच्चों का अधिकार जमाना अच्छा भी लगता है, तभी तो यह पोस्ट बन पायी। Balancing अगली महत्वपूर्ण कड़ी है।
ReplyDeleteसीखते रहिए उनसे क्या बुरा है। सबसे अधिक विद्वान बच्चे ही होते हैं, कमी उनमें ये होती है कि वे अपनी विद्वता को स्थिर नहीं कर पाते।
ReplyDeleteअनुशंसात्मक विचार
ReplyDeleteये भी जिन्दगी की एक सच्चाई है .....
ReplyDeleteBacche man ke sacche ......ek dusre se sikhte rehne ka naam hi jindagi hai fir bacche kya or bde kya .sarthak post
ReplyDeleteबच्चों के साथ हम भी एक नया अनुभव हर रोज पाते हैं.
ReplyDeleteमेंरे यहाँ तो बच्चे कहते हैं , आपने कभी डांटा ही नहीं हम लोगों को । मैं कहता हूँ , मुझे डांटना नहीं आता । इस पर दोनों तपाक से कहते हैं , मम्मी आपको इतना डांटती है तब भी आपने नहीं सीखा , डांटना ।
ReplyDeleteबच्चों का इस प्रकार का अधिकार पूर्वक व्यवहार इतना प्यारा लगता है बस , संजोते जाइये सब ।
बच्चे बहुत कुछ सिखाते हैं। वे हमारा सूक्ष्म निरीक्षण करते हैं।
ReplyDeleteआजकल के बच्चे बहुत समझदार हैं. सब संजोते जाइये, जिन्दगी की एक सच्चाई यह भी है.
ReplyDeleteऔर बातें दीगर हैं पर बात अपने खालिस देसी बच्चों की खालिस देसी भाषा में, और फोटो अँगरेज़ (व्हाइट) बच्चों की? क्या भारतीय बच्चे सुन्दर नहीं होते या हममे ही हीनभावना है. शायद ही किसी भारतीय ब्लॉग
ReplyDelete, वेबसाईट में भारतीय स्टॉक चित्रों का प्रयोग होता है, आखिर सफ़ेद चमड़ी में ऐसा क्या खास है की दुनिया जीत लेने का वाला दिमाग रखने वाले भारतीय अपनी चमड़ी के रंग के कारन खुद को हीन समझने लगते हैं?
--विवेक
विवेकजी, बच्चे तो सभी प्यारे होते हैं, उसमें सफ़ेद और काली चमड़ी देख कर उनमें भेद कर लेना मेरी सामर्थ्य के बाहर है। मुझे तो बच्चों के प्रसन्न चेहरे देखकर प्रसन्नता ही होती है, हीन जैसी कोई बात ही कहाँ है इसमें।
Deleteइसलिए ही तो कहा जाता है कि बच्चे बड़ों के बाप होते हैं!
ReplyDelete....कई बातों में हम उन्हीं पर निर्भर होते हैं ।
ReplyDeleteसार्थक और सटीक प्रस्तुति.
ReplyDeleteमुझे तो अपरिमित सम्भावनाओंवाले एक भावी ब्लॉगर की पदचाप सुनाई दे रही है इस पोस्ट में।
ReplyDeleteशायद इसलिए ही यह कहा जाता है कि सीखने कि कोई उम्र नहीं होती और फिर जब बच्चों से कुछ नया सीखने को मिले तो फिर बात ही क्या ... :))
ReplyDeleteबच्चों की दुनिया में सब कुछ साफ़ और सहज होता है। अभी मन की चालबाजियां शुरू नहीं हुई।
ReplyDeleteइसीलिए तो उन्हें भगवान का रूप कहा जाता है।
घर में बुजुर्गों और वच्चों की मौजूदगी जरूरी है. तभी घर, घर होता है।