गूगल रीडर में बढ़ते बढ़ते ब्लॉगों की संख्या ६५० के पार पहुँच गयी। तकनीक और न्यूनतम जीवन शैली विषयक लगभग ५० ब्लॉग निकाल दें, तब भी हिन्दी से जुड़े लगभग ६०० ब्लॉगों की बड़ी सूची का होना यदि कुछ इंगित करता है, तो वह अन्तर जिसे हर दिन पूरा करने के लिये कुछ न कुछ नया पढ़ते रहना आवश्यक हो जाता है। पढ़ने वाले ब्लॉगों की संख्या चाह कर भी कम नहीं कर पा रहा हूँ, यह भी इंगित करता है कि अच्छे बुरे ब्लॉगों में अन्तर की समझ भी विकसित होना शेष है, मेरे साहित्यिक पथ में। पिछले ४ वर्षों में जो भी रोचक लगता गया, सूची में स्थान पाता गया। कई और श्रेष्ठ ब्लॉगों को सूची में होना था, पर दुर्भाग्य ही कहा जायेगा मेरा कि उनसे परिचय न हो सका अब तक। संचित और अपेक्षित के बीच का अन्तर इस क्रम में तीसरा है, जो इतने ब्लॉग होने के बाद भी सूची को अपूर्ण ही रखे हुये है।
कई नवागंतुक बहुत अच्छा लिखते हैं। कई उदाहरण देखे हैं जिसमें प्रारम्भिक किरणों की झिलमिलाहट एक आशा के सूर्य का आभास देती है। उनको पढ़ना इसलिये अच्छा लगता है कि उनके लेखन की चमक में कभी अपना अँधेरा भी दिख जाता है। उनका लेखन पथ निश्चय ही हिन्दी साहित्य का राजमार्ग बनने की क्षमता रखता है और बनेगा भी, पर यदि थकान, निराशा और उपेक्षा उन्हें उनके पथ से डिगने न दे। उनके लेखन पर उत्साह के दो शब्द कहने वाला सदा कोई न कोई रहे अवश्य, विशेषकर तब, जब रात हो, एकान्त हो और विचारों का अँधेरा घुप्प हो। इसके अतिरिक्त बहुत से ऐसे लेखक और कवि हैं, जिन्हें परिचय के चौराहे मिले ही नहीं, जिन्हें कोई स्थापित ठिकाना दिखा नहीं। उन्होंने लिखा, पर समुचित मान न पाकर उनका उत्साह हिन्दी साहित्य में स्थिर न रह पाया और उन्होने अपनी ऊर्जा के लिये कोई और अभिरुचि खोज ली। अपनी आलोचनात्मक तीक्ष्णता के बाद भी हमारी उन तक न पहुँच पाने की असमर्थता एक और अन्तर प्रस्थापित कर देती है, जिसके उस पार हमारा उत्थान सुनिश्चित है।
किसी मित्र को अंग्रेजी में लिखते हुये पाता हूँ तो उन्हें हिन्दी में लिखने का आग्रह करने से नहीं चूकता हूँ। लगता है कि यही विचार, यही चिन्तनशीलता यदि हिन्दी को अपना माध्यम बना लेगी ,तो मेरे जैसे न जाने कितने हिन्दीभाषी जो अच्छे लेखन की राह तकते हैं, तृप्त हो जायेंगे। उन्हें भी लगता होगा कि हिन्दी का विस्तार क्षेत्र उतना वृहद नहीं, आर्थिक संभावनायें उतनी सुदृढ़ नहीं, जो उत्साह बनाये रखने में समर्थ हों, क्षमतायें दोहित करने में समर्थ हों। उल्टा जब मुझे वे लोग अंग्रेजी में लिखने को प्रेरित करते हैं तो बस मुस्करा कर रह जाता हूँ। दासता की खनक और ममता का आग्रह, यह अन्तर उन्हें समझा पाने में लगने वाले प्रयास को एक मुस्कराहट से ही व्यक्त कर देता हूँ।
निश्चय ही अभी जो स्थिति है उसमें जितने लोग इण्टरनेट पर पढ़ते हैं, उसमें अंग्रेजी जानने वालों की संख्या बहुत अधिक है। यही कारण हो सकता है कि अंग्रेजी में लिखना अधिक आकर्षक लगे, अधिक प्रभावित करे। जिस गति से इण्टरनेट का विस्तार हो रहा है, आने वाले दिनों में हिन्दी पाठकों की इतनी संख्या तैयार हो जायेगी कि लेखकों को पर्याप्त रूप से पढ़े जाने का बोध होने लगेगा। हर एक नये लेखक के रूप में एक नया पाठक मिल रहा है ब्लॉग जगत को, अतः नये लेखकों का स्वागत उन्मुक्त रूप से किया जाना चाहिये।
गूगल रीडर बन्द होने की सूचना के बाद से ही मन में भय बैठ गया है कि एक अच्छे मेले के आभाव में लेखकों और पाठकों का संपर्क और कम हो जायेगा। १ जुलाई के बाद क्या सारी फीड वैसे ही सुरक्षित रह पायेगी जैसी अभी तक है। कई अन्य सेवाप्रदाताओं ने यह आश्वासन तो दिया है कि सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा, पर तकनीक से अपरिचित न जाने कितने लेखक और पाठक अपना संपर्क खो देंगे, यह भय अभी भी है। मन में विचार आया कि कम से कम उन श्रेष्ठ ब्लॉगों को चिन्हित तो कर लूँ जिन्हें नियमित पढ़ते रहना हुआ है और यदि आवश्यकता पड़ी तो उन्हें पुनः एक एक करके अपनी नयी सूची में डाल लूँगा। इस कार्य को करने में तीन चार दिन अवश्य लग गये पर उस अनुभव में जो तथ्य सामने आये, उन्होंने मुझे एक पाठक के रूप में अन्दर तक हिला कर रख दिया है।
६०० की सूची में लगभग १२५ ब्लॉग ऐसे मिले जिसमें पिछले एक वर्ष से कुछ भी नहीं लिखा गया है। उनमें लगभग २५ ऐसे थे जो नये डोमेन में चले गये और लेखन की सततता बनाये हुये हैं। १०० ब्लॉग या कहें कि लगभग २० प्रतिशत ब्लॉग ऐसे थे जो निष्क्रिय हो चले। उनमें कई नाम ऐसे थे जो यदि बने रहते तो निश्चय ही साहित्य को लाभान्वित करते। उन्होने क्यों लिखना बन्द किया, उसके क्या विस्तृत कारण थे, इसके मूल में जाना कई चर्चाओं को जन्म दे देगा, पर यह तथ्य गहरे भेदता है कि ३ वर्ष में यदि स्थापित २० प्रतिशत ब्लॉग निष्क्रिय हो जायेंगे तो इस क्षेत्र में स्थापित लेखन का क्षरण लगभग ७ प्रतिशत प्रतिवर्ष हो जायेगा। मैं उन ब्लॉगों की बात ही नहीं कर रहा हूँ जो प्रारम्भिक वर्ष में ही अस्त हो जाते हैं, उनका प्रतिशत तो कहीं अधिक होगा। संभव है कि आधे से अधिक लोग प्रथम वर्ष में ही ब्लॉग छोड़कर चल देते हों।
फिर भी पिछले दो माह में न जाने कितने ब्लॉगों को उनके तीन-चार वर्ष पूरे होने की बधाई दे चुका हूँ, वे सारे ब्लॉग के प्रकाशित स्तम्भ हैं। जो उससे भी अधिक समय से लिख रहे हैं और अब तक नीरसता और एंकातता को प्राप्त नहीं हुये हैं, उनके हाथ में ही साहित्य का भविष्य सुरक्षित है, वही लोग हैं जो ब्लॉग को साहित्य से जोड़ देंगे। तब संभवतः साहित्यकार का बनना ब्लॉग जैसे व्यापक और सूक्ष्म स्तर से भी हो सकेगा। जहाँ इतने प्रवाह किसी धारा के लिये सुरक्षित रहेंगे, वह प्रवाहमयी धार दर्शनीय होगी।
इस प्रवाहमयी तन्त्र में जो ब्लॉग अपने आप को बचाये रहना चाहते हैं, उन्हें धैर्यपूर्वक लिखते रहना पड़ेगा, पहले तीन वर्ष, फिर पाँच वर्ष, फिर न जाने कितना और। हर सप्ताह दो पोस्ट, यदि दो संभव न हो तो कम से कम एक तो निश्चय ही। तब सूची से जो १२५ ब्लॉग अपना लेखन खो चुके हैं, वैसा पुनः नहीं होगा। संभव है कि तीन वर्षों बाद जब मैं पुनः समीक्षा करने बैठूँ तो सभी अच्छे ब्लॉग नियमित मिलें।
मुझे न जाने कितने अन्तर पाटने हैं, पर यदि अन्तर पाटने के पहले से दूसरा किनारा साथ छोड़कर चला जायेगा तो वह अन्तर कभी नहीं पट पायेगा, प्यास बढ़ती ही जायेगी। नये लेखक एक ओर से किनारा भरेंगे, पुराने लेखक दूसरे छोर को स्थापित रखेंगे, उसके बाद जो समतल तैयार होगा, उसमें सबके लिये स्थान होगा। मैं सारे निष्क्रिय ब्लॉगों को एक फोल्डर में एकत्र करके रख रहा हूँ, आशा है कि उसमें से कुछ दिनों के बाद नयी पोस्टें आनी प्रारम्भ हो जायेगीं। इन १२५ ब्लॉगों की कमी नये लेखक पूरी करेंगे अतः आने वाले दिनों में कई ब्लॉग संकलकों को मथ कर पढ़ने का प्रयास करूँगा।
पता नहीं यह क्रम कब तक चलेगा? ब्लॉग से मन भरने का प्रश्न ही नहीं, यह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।
किसी मित्र को अंग्रेजी में लिखते हुये पाता हूँ तो उन्हें हिन्दी में लिखने का आग्रह करने से नहीं चूकता हूँ। लगता है कि यही विचार, यही चिन्तनशीलता यदि हिन्दी को अपना माध्यम बना लेगी ,तो मेरे जैसे न जाने कितने हिन्दीभाषी जो अच्छे लेखन की राह तकते हैं, तृप्त हो जायेंगे। उन्हें भी लगता होगा कि हिन्दी का विस्तार क्षेत्र उतना वृहद नहीं, आर्थिक संभावनायें उतनी सुदृढ़ नहीं, जो उत्साह बनाये रखने में समर्थ हों, क्षमतायें दोहित करने में समर्थ हों। उल्टा जब मुझे वे लोग अंग्रेजी में लिखने को प्रेरित करते हैं तो बस मुस्करा कर रह जाता हूँ। दासता की खनक और ममता का आग्रह, यह अन्तर उन्हें समझा पाने में लगने वाले प्रयास को एक मुस्कराहट से ही व्यक्त कर देता हूँ।
निश्चय ही अभी जो स्थिति है उसमें जितने लोग इण्टरनेट पर पढ़ते हैं, उसमें अंग्रेजी जानने वालों की संख्या बहुत अधिक है। यही कारण हो सकता है कि अंग्रेजी में लिखना अधिक आकर्षक लगे, अधिक प्रभावित करे। जिस गति से इण्टरनेट का विस्तार हो रहा है, आने वाले दिनों में हिन्दी पाठकों की इतनी संख्या तैयार हो जायेगी कि लेखकों को पर्याप्त रूप से पढ़े जाने का बोध होने लगेगा। हर एक नये लेखक के रूप में एक नया पाठक मिल रहा है ब्लॉग जगत को, अतः नये लेखकों का स्वागत उन्मुक्त रूप से किया जाना चाहिये।
गूगल रीडर बन्द होने की सूचना के बाद से ही मन में भय बैठ गया है कि एक अच्छे मेले के आभाव में लेखकों और पाठकों का संपर्क और कम हो जायेगा। १ जुलाई के बाद क्या सारी फीड वैसे ही सुरक्षित रह पायेगी जैसी अभी तक है। कई अन्य सेवाप्रदाताओं ने यह आश्वासन तो दिया है कि सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा, पर तकनीक से अपरिचित न जाने कितने लेखक और पाठक अपना संपर्क खो देंगे, यह भय अभी भी है। मन में विचार आया कि कम से कम उन श्रेष्ठ ब्लॉगों को चिन्हित तो कर लूँ जिन्हें नियमित पढ़ते रहना हुआ है और यदि आवश्यकता पड़ी तो उन्हें पुनः एक एक करके अपनी नयी सूची में डाल लूँगा। इस कार्य को करने में तीन चार दिन अवश्य लग गये पर उस अनुभव में जो तथ्य सामने आये, उन्होंने मुझे एक पाठक के रूप में अन्दर तक हिला कर रख दिया है।
६०० की सूची में लगभग १२५ ब्लॉग ऐसे मिले जिसमें पिछले एक वर्ष से कुछ भी नहीं लिखा गया है। उनमें लगभग २५ ऐसे थे जो नये डोमेन में चले गये और लेखन की सततता बनाये हुये हैं। १०० ब्लॉग या कहें कि लगभग २० प्रतिशत ब्लॉग ऐसे थे जो निष्क्रिय हो चले। उनमें कई नाम ऐसे थे जो यदि बने रहते तो निश्चय ही साहित्य को लाभान्वित करते। उन्होने क्यों लिखना बन्द किया, उसके क्या विस्तृत कारण थे, इसके मूल में जाना कई चर्चाओं को जन्म दे देगा, पर यह तथ्य गहरे भेदता है कि ३ वर्ष में यदि स्थापित २० प्रतिशत ब्लॉग निष्क्रिय हो जायेंगे तो इस क्षेत्र में स्थापित लेखन का क्षरण लगभग ७ प्रतिशत प्रतिवर्ष हो जायेगा। मैं उन ब्लॉगों की बात ही नहीं कर रहा हूँ जो प्रारम्भिक वर्ष में ही अस्त हो जाते हैं, उनका प्रतिशत तो कहीं अधिक होगा। संभव है कि आधे से अधिक लोग प्रथम वर्ष में ही ब्लॉग छोड़कर चल देते हों।
फिर भी पिछले दो माह में न जाने कितने ब्लॉगों को उनके तीन-चार वर्ष पूरे होने की बधाई दे चुका हूँ, वे सारे ब्लॉग के प्रकाशित स्तम्भ हैं। जो उससे भी अधिक समय से लिख रहे हैं और अब तक नीरसता और एंकातता को प्राप्त नहीं हुये हैं, उनके हाथ में ही साहित्य का भविष्य सुरक्षित है, वही लोग हैं जो ब्लॉग को साहित्य से जोड़ देंगे। तब संभवतः साहित्यकार का बनना ब्लॉग जैसे व्यापक और सूक्ष्म स्तर से भी हो सकेगा। जहाँ इतने प्रवाह किसी धारा के लिये सुरक्षित रहेंगे, वह प्रवाहमयी धार दर्शनीय होगी।
इस प्रवाहमयी तन्त्र में जो ब्लॉग अपने आप को बचाये रहना चाहते हैं, उन्हें धैर्यपूर्वक लिखते रहना पड़ेगा, पहले तीन वर्ष, फिर पाँच वर्ष, फिर न जाने कितना और। हर सप्ताह दो पोस्ट, यदि दो संभव न हो तो कम से कम एक तो निश्चय ही। तब सूची से जो १२५ ब्लॉग अपना लेखन खो चुके हैं, वैसा पुनः नहीं होगा। संभव है कि तीन वर्षों बाद जब मैं पुनः समीक्षा करने बैठूँ तो सभी अच्छे ब्लॉग नियमित मिलें।
मुझे न जाने कितने अन्तर पाटने हैं, पर यदि अन्तर पाटने के पहले से दूसरा किनारा साथ छोड़कर चला जायेगा तो वह अन्तर कभी नहीं पट पायेगा, प्यास बढ़ती ही जायेगी। नये लेखक एक ओर से किनारा भरेंगे, पुराने लेखक दूसरे छोर को स्थापित रखेंगे, उसके बाद जो समतल तैयार होगा, उसमें सबके लिये स्थान होगा। मैं सारे निष्क्रिय ब्लॉगों को एक फोल्डर में एकत्र करके रख रहा हूँ, आशा है कि उसमें से कुछ दिनों के बाद नयी पोस्टें आनी प्रारम्भ हो जायेगीं। इन १२५ ब्लॉगों की कमी नये लेखक पूरी करेंगे अतः आने वाले दिनों में कई ब्लॉग संकलकों को मथ कर पढ़ने का प्रयास करूँगा।
पता नहीं यह क्रम कब तक चलेगा? ब्लॉग से मन भरने का प्रश्न ही नहीं, यह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।
कुछ कमोबेस परिवर्तनों के साथ ब्लाग्गिंग पठन पाठन का यह सिलसिला चलता ही रहेगा -शुभकामनाएं
ReplyDeleteजीवन चलने का नाम, ऐसा ही कुछ ब्लॉगिंग के साथ भी है।
ReplyDeleteनिर्वात नहीं रहेगा, जायेंगे तो आयेंगे भी.
ReplyDeleteप्रोत्साहन का अभाव , एक कारण है नए ब्लोग्स के बंद होने का !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
इक ऋतु आए इक ऋतु जाए
ReplyDeleteमगर ब्लॉगिंग चलती रहे ,चलती रहेगी !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
किसी भी प्रवाह के लिए निरंतरता ही तो मूल मन्त्र है । नए लोग आते रहते हैं तो 'चाल' को 'गति' मिल जाती है ।
ReplyDeleteबहुत ही तथ्यपरक आकलन किया है आपने हिंदी ब्लागिंग का. ब्लागर्स के नियमित ना रहने के विभिन्न कारण हो सकते हैं लेकिन बहुत कुछ है जो ब्लागिंग को मरने नही देगा. आने वाले समय में नेट का गांवों तक विस्तार होगा जो निश्चित ही अंग्रेजी की जगह हिंदी के पठन पाठन के लिये भी मददगार साबित होगा.
ReplyDeleteआपने बहुत ही श्रमपूर्वक आलेख लिखा है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
सिलसिला चलता रहे. फेस बुक में लोगों की आवाजाही कुछ अधिक हो चली है,
ReplyDeleteचिंता, आशा और भविष्य का दर्शन ...सब कुछ समाहित है इस पोस्ट में ....!!!
ReplyDelete....आपको शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteविचारणीय और सटीक आकलन .... सब की भागीदारी बनी रहे, आगे कुछ बेहतर ही होगा
ReplyDeleteबस चल रहे हैं.. कुछ साथी पीछे कहीं थककर बैठ गये हैं.. और कुछ साथ में हैं और कुछ आगे इंतजार कर रहे हैं..
ReplyDeleteआपका यह कहना सही है -
ReplyDeleteहर सप्ताह दो पोस्ट, यदि दो संभव न हो तो कम से कम एक तो निश्चय ही।
ब्लॉग में तो आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड का फंडा चलता है.
blogging vidha ke liye behad upyogi post
ReplyDeleteरीडर बंद होने की दशा में क्या iGoogle पर फीड मिलती रहेगी या नहीं
ReplyDeletehttp://www.google.com/ig
प्रणाम
यह व्यवस्था भी नवंबर में बंद हो रही है ।
Deleteरीडर बंद होने पर कैसे नियमितता रहेगी यही मैं भी सोच रही हूँ .....
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट.. नए ब्लॉग मार्दगर्शन और प्रोत्साहन के अभाव में ही बंद होनें लगते हैं, कई बार पाठक ही नहीं मिल पाते; लेखक की रचनाएं अगर पढ़ी ही ना जाएं तो निश्चित ही वो हतोत्साहित होते हैं...
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट ... क्यों न एक कोशिश की जाये कि जो मित्र अब धीरे धीरे असक्रिय हो रहे है उनको वापस सक्रिय किया जाये ... उन से अनुरोध करें हम सब कि वे इस मेले मे बने रहे ताकि यह मेला लगा रहे !
ReplyDeleteशिवम् जी.. आपकी पहल सराहनीय है.. हम आपके साथ हैं, हमारा मार्गदर्शन करें...
Deleteअच्छा विश्लेषण किया है
ReplyDeleteब्लॉग लिखना एक ऐसी विधा है, जो कभी भी बंद नहीं हो सकती है। भले ही वो कम क्यों ना हो जाये!! बेहतरीन लेखन :)
ReplyDeleteनये लेख : एक बढ़िया एप्लीकेशन : ट्रू कॉलर।
महात्मा गाँधी की निजी वस्तुओं की नीलामी और विंस्टन चर्चिल की कार हुई नीलाम।
वैसे गूगल रीडर का एक नया विकल्प ये भी हो सकता है : एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
ReplyDeleteमैं देख रहा हूं कि ब्लाग लेखन की शुरुआत लोग बहुत उत्साह से करते हैं, लेकिन थोड़े दिनों में ही वो लिखना बंद कर और काम में व्यस्त हो जाते है। मेरा मानना है कि लेखन एक साधना है और इसमें रमें रहने से ही जमें रहेंगे।
ReplyDeleteबहरहाल मैं सहमत हूं कि बहुत से नए और युवा ब्लागर अच्छा लिख रहे हैं, उनकी सोच और प्रस्तुति वाकई काबिले तारीफ है।
शुभकामनाएं
आने जाने का क्रम तो चलता ही रहेगा बस ब्लोगिंग चलती रहे यही कामना है !
ReplyDeleteबहुत श्रमपूर्ण समीक्षा ब्लॉगिंग क्षेत्र की। समस्त आशंकाएं निर्मूल होंगी। भावी शुभकामनाओं सहित।
ReplyDeleteब्लॉग्गिंग निस्संदेह ही एक तृप्त व्यवस्था है...चलती ही रहेगी
ReplyDeleteनिष्क्रियता क्षेत्र में जाने वालों में, मैं भी एक हॅू।
ReplyDeleteब्लाग की दुनिया में दो सप्ताह हुआ है, सम्पादकीय कार्यो का कुछ अनुभव है,कोशिश होगी की कुछ लिख सकूँ पर अभी तो दौर सीखने का है ..
ReplyDeleteगूगल रीडर बंद हो रहा है!यह समाचार तो अच्छा नहीं है.
ReplyDeleteब्लॉग नियमित न लिख पाने के सब के अपने -अपने कारण होंगे.जो दूसरे माध्यम से जुड गए हैं वे यकीनन वापस आएँगे या यदा-कदा ही सही.. ब्लॉग से जुड़े हुए हैं या रहेंगे.
आप ने वस्तुस्थिति का जो विश्लेषण किया है वह महत्वपूर्ण है.
शायद कुछ लोग नींद से जाग जाएँ और हिंदी ब्लॉग्गिंग में अपने योगदान का महत्व समझ जाएँ.
इस पोस्ट से बहुत कुछ जानने के लिए मिला |
ReplyDeleteआवृति कम हुई है इधर , उम्मीद है निष्क्रिय ब्लॉग वाले फोल्डर में नहीं गया
ReplyDeleteआपको शायद ही पता हो कि अपनी इस पोस्ट में आपने, ब्लॉग विधा से जुडी अनेक बातें, अनेक लोगों के मन की कह दी हैं।
ReplyDeleteब्लाग समीक्षा का इस प्रकार का भगीरथ प्रयास आप से ही बेहतर संभव हो सकता है.
ReplyDeleteबहुत मूल्यवान पोस्ट . ब्लॉग्गिंग का जिंदा रहना ही हम सब का जिंदा रहना होंगा .
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवीण जी .
आज की ब्लॉग बुलेटिन १० मई, मैनपुरी और कैफ़ी साहब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteप्रवीण जी आपने ब्लाग जगत को स्वयं भी सतत सृजन दिया है और रचनाएं पढकर टिप्पणी कर दूसरे ब्लागरों को भी लगातार प्रोत्साहित किया है । आपके सत्प्रयासों का हार्दिक अभिनन्दन ।
ReplyDeleteBlogging social networking se zada important aur prabhavshalli hai... isme toh koi shak nhi
ReplyDeleteआपके चिन्तन की सफलता हेतु शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteयह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।...बिल्कुल जी!
ReplyDeleteबहुत सही कहा प्रवीण जी आप ने, ब्लॉग से मन भरने का प्रश्न ही नहीं, यह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।..सटीक आकलन .शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteब्लॉग़ का डोमेन बदलने से अलेक्सा रैंकिग का बहुत नुकसान हुआ और गुगल रीडर के बंद होने से समस्या तो हुई है। लेकिन सर्च इंजन से काफ़ी लोग ब्लॉग पढने आ रहे हैं। विषय वस्तु के आधार पर ब्लॉग लिखने वालों को पाठकों की समस्या नहीं है।
ReplyDeleteब्लॉग से मन भरने का प्रश्न ही नहीं, यह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।
ReplyDeleteHow do you manage time? :-(..
ReplyDeleteYou are always inspiration to write!
निष्पक्ष ,ईमानदार,बेबाक
ReplyDeleteसबसे पहले तो हिंदी के प्रति आपके समर्पण को नमन.
ReplyDeleteजिस भाषा, संस्कृति, समाज और माटी ने हमें पाला है, हम उसके ऋणी हैं, जिस रूप में और जितना भी संभव हो हमें यह ऋण चुकाने का प्रयत्न करना चाहिए।
दूसरी बात, साहित्य के प्रति आपका अनुराग अनुकरणीय है. जिस अनुशासन के साथ आप सृजन में लगे हैं, वह अद्भुत है. आप प्रवाह के साथ चलनेवालों में नहीं, प्रवाह को गति देनेवालों में है.
आप जैसे सृजनधर्मा लोगों ने न सिर्फ हिंदी के साथ ब्लॉग जगत को समृध्द किया है बल्कि उसका स्तर भी उच्च किया है
यह संवेदना, यह सृजन शक्ति बनी रहे.
लोग आते जाते रहते हैं
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
उल्टा जब मुझे वे लोग अंग्रेजी में लिखने को प्रेरित करते हैं तो बस मुस्करा कर रह जाता हूँ। दासता की खनक और ममता का आग्रह, यह अन्तर उन्हें समझा पाने में लगने वाले प्रयास को एक मुस्कराहट से ही व्यक्त कर देता हूँ।
हिन्दी के प्रति आपका आग्रह, अनुराग व समर्पण प्रशंसनीय व अनुकरणीय ही नहीं आश्वस्तिदायक भी है...
बाकी हिन्दी ब्लॉगिंग में अभी भी पाठकों का अभाव तो है ही, हम लोग नेट पर मौजूद आज के दौर के पाठक को आकर्षित करने व उसे अपने साथ बनाये रखने में विफल रहे हैं, वजहें चिंतन-विमर्श और समाधान माँगती हैं...मैं समझता हूँ कि ऐसे ब्लॉग चंद उंगलियों में गिने जाने लायक होंगे जिनकी हर पोस्ट को १००० से अधिक पाठक मिल पाते हों... पाठक कम होना ही लेखक को विमुख करता है आखिर पाठक ही लेखन की जीवनदायी ऑक्सीजन सा है...
...
विश्वास है आपके आलेख से ब्लॉग लेखन फिर सक्रियता आवेगी
ReplyDeleteवैशाख की तपती दोपहरी में चंद्रमा सी शीतलता प्रदान करती है आपकी यह पोस्ट, आपका आभार प्रवीण जी।
ReplyDeleteनिरंतर प्रवाह जरूरी है ... कुछ आएंगे कुछ जाएंगे ...
ReplyDeleteब्लोगिस्तान यहीं रहेगा ...
बढ़िया विचारपरक अद्यतन समीक्षा .शुभ भावना लिए सर्व के प्रति .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग जगत को ले कर जो समर्पण आप में देखता हूँ, ऐसा बिरले लोगों में ही देखने को मिलता है। मुश्किल आन पड़ी है तो आप लोग रास्ता भी निकाल ही लेंगे, अपुन आप लोगों को फॉलो कर लेंगा :)
ReplyDeleteकोई न कोई विकल्प तो आयेगा ही.
ReplyDelete
ReplyDeleteअभिव्यक्त होने का सुख जो जानता है वह ब्लागिंग को नै परवाज़ देता रहेगा .अभिव्यक्त कौन नहीं होना चाहता है ?ॐ शान्ति .मुझे ब्लागिंग के भविष्य पे संदेह नहीं है .अलबत्ता इसका स्वरूप बदलता रहेगा .विषय वस्तु भी .
You have been a reason for many to continue with hindi blogging. Your language as well the content, has always impressed and inspired many of us.
ReplyDeleteI know that I have not been able to continue with same vigour and zeal but today I have got a fresh motivation, thank you.
Apology for not writing in hindi, mainly due to technical reason, still has not figure out how to type in hindi on I pad.
भरा मन है तब तो लेखन है और ब्लॉग अति सुलभ माध्यम है..
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगर की दिनो-दिन बढ़ती संख्या एक शुभ संकेत ह है
ReplyDeleteसूक्ष्म अन्वीक्षण और अन्वेषण लिए है यह पोस्ट ब्लागिंग का भविष्य कथन करती सी .
ReplyDeleteब्लॉग जगत का बहुत गहन आंकलन...किसी भी यात्रा में मुसाफ़िर आते हैं और जाते हैं, लेकिन सफ़र जारी रहता है..
ReplyDeleteब्लॉग जगत के लिए एक संग्रहणीय पोस्ट । ब्लॉग जगत का ये सफ़र निरंतर आगे ही बढता रहेगा ।
ReplyDeleteक्या खूब चिंतन किया है "हिन्दी और ब्लॉगिंग" पर प्रवीण जी आपने.. बहुत ही अच्छा लगा.. धारा प्रवाह..
ReplyDeleteनेट और ब्लॉग की दुनियां का सारगर्भित आलेख
ReplyDeleteगंभीरता के साथ
बधाई
आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
http://jyoti-khare.blogspot.in
तत्वपूर्ण चिन्तन है ब्लागों की वर्तमान दशा का. मुझे तो अभी यहाँ तीन साल ही हुए हैं बस- देख समझ रही हूँ !
ReplyDeleteगूगल रीडर बन्द होने की चिन्ता तो सता ही रही है। विकल्प के बारे में भी बताएं। यह सच है कि आज बहुत से ब्लागर निष्क्रिय हुए हैं। ब्लागजगत ने अभी तक अपना कोई प्लेटफार्म नहीं बनाया है जिससे अच्छे लेखकों को नियमित रखने की पहल की जा सके और आपसी विवाद होने पर मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न ना हो।
ReplyDeleteब्लॉग से मन भरने का प्रश्न ही नहीं, यह एक तृप्त व्यवस्था है, बस चलते रहें प्रवाह के साथ, जहाँ तक संभव हो सके।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी इस बात से ....
हमेशा की तरफ बेहतरीन आलेख
सादर
I dont know much about reader as I have never used in last 6 - 7 years.
ReplyDeleteHence failing understand anxiety associated with deletion of the services.
/*( हालाँकि मैं शायद आपकी रीडर्स लिस्ट में नहीं होऊंगा )*/
ReplyDeleteन जाने क्यूँ काफी समय से मैंने भी लिखना छोड़ रखा था , आपकी पोस्ट पढ़कर वापस आने का दिल कर रहा है |
शुक्रिया |
सादर
अच्छा लिखने वाले और लिखना जिनको सुकून देता है, वे लिखते ही रहेंगे, माध्यम बदलते रहेंगे .. आपकी विवेचना बहुत सुन्दर है.
ReplyDelete
ReplyDeleteब्लागिंग रुकेगी नहीं मनुष्य की विकास यात्रा के अलग अलग सौपानो के साथ विविध रूपा बन आगे और आगे बढ़ती जायेगी .
गूगल रीडर बन्द होने की चिन्ता तो सता ही रही है।....ब्लोगिंग चलती रहे यही कामना है !
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ