रविवार को जब भी कोई कार्यक्रम होता है, लगता है कोई आपकी निजता पर हस्तक्षेप कर रहा है। इंडीब्लॉगर उत्साही ब्लॉगरों की एक संस्था है जो ब्लॉगिंग को न केवल विचारों को परिष्कृत करने का साधन मानती है, वरन उसे सामाजिक कार्यों को प्रचारित प्रसारित करने का सशक्त माध्यम भी बनाना चाहती है। इसी श्रंखला में जब उनका एक निमन्त्रण आया तो मैं मना नहीं कर पाया। कार्यक्रम दोपहर में था, घर के पास था, सोचा थोड़ा टहलना भी हो जायेगा और साथ साथ ज्ञानवर्धन भी।
यह कार्यक्रम नारी के प्रति बढ़ते अपराधों से समाज को बचाने के उपायों पर चर्चा के लिये हो रहा था। घंटी बजाने का आशय मुझे पहले स्पष्ट नहीं हो पाया था, लगा कि अलख जगाने के भावार्थ से प्रेरित होगा यह नारा। वृहद आशय निश्चय ही वही था, पर यह जिस घटना विशेष से प्रेरित था, उसमें घंटी बजाने का उपयोग सच में किया गया था। आपने एक प्रचार देखा होगा, एक परिवार से लड़ने झगड़ने की आवाजें आ रही हैं। बहुधा पड़ोसी इसे उस परिवार की व्यक्तिगत समस्या और शेष पड़ोस का मनोरंजन मानते हैं, एक चटपटी खबर जो बन जाती है यह। क्रोधपूर्ण वाकयुद्ध में बहुधा घर के रहस्य भी बाहर आ जाते हैं, एक दूसरे के ऊपर किये दोषारोपण, सुनी सुनायी बातें, और न जाने क्या क्या। बहुत कम ही देखा है कि कोई पड़ोसी जाये और उसे रोकने का प्रयास करे। ऐसे में एक युवक उठता है, उस घर के बाहर पहुँचता है, घंटी बजाता है। झगड़ा सहसा रुक जाता है, ऐसे व्यवधान प्रायः नहीं होते थे। पूछे जाने पर युवक तनिक कठोर स्वर में कहता है कि उसके घर बिजली नहीं आ रही है, वह बस यह देखने आया है कि आप के घर बिजली आ रही है या नहीं।
उपाय आपको थोड़ा विनोदपूर्ण लग सकता है, पर यह व्यवधान आवश्यक है और प्रभावी भी। झगड़े में लगे हुये युगल को तो लगता है कि सामने वाले ने उसका पूरा विश्व दूषित और कलुषित कर दिया है, अब बिना उसे निपटाये आगे बढ़ने का कोई मार्ग ही नहीं है। उन्हें उस घातक तारतम्यता से बाहर निकालने का कार्य करता है, यह घंटी बजाना। यह व्यवधान नहीं, समाधान की दिशा में सोचने के लिये प्रेरित करने का कार्य है। कई बार यह कार्य घर में बच्चे बड़े ही रोचक ढंग से करते हैं, आपके मन मुटाव को कोई महत्व न देते हुये आपसे कोई दूसरा प्रश्न पूछ बैठते हैं। आपका ध्यान बट जाता है और क्रोध का त्वरित कारण भी। पारिवारिक झगड़ों में ही नहीं वरन नारी के प्रति हो रहे किसी भी अपराध में सचेत करता हुआ संकेत ही घंटी बजाना है, हो रहे अपराध की मूढ़ता की लय तोड़ना ही घंटी बजाना है।
विषय संवेदनशील था अतः मुँह खोलने के पहले वहाँ उपस्थित समुदाय की मनःस्थिति को समझ लेना आवश्यक था। लोग बोलते रहे, चर्चा रोचक होती रही, कुछ बोलने से अधिक सुनने में रुचि बढ़ती रही। लगभग १५० ब्लॉगरों के ऊर्जावान और ज्ञानस्थ समूह की चर्चा के निष्कर्षों को समझना आवश्यक था मेरे लिये। मन में कुछ बिन्दु थे जो सोच कर गया था, कहने के लिये, पर अन्त में बिना कुछ बोले, ज्ञानमद छाके ही वापस चला आया, टहलता हुआ।
ब्लॉगर किसी विषय पर मंथन करें तो दो लाभ दिखते हैं। पहला तो विषय पर दृष्टिकोण वृहद और स्पष्ट हो जाता है। लिखने की प्रक्रिया में पढ़ने और समझने की दक्षता प्राप्त करते रहने से समस्या की परत खोलने में विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है। किसी भी बुद्धिजीवी के लिये चर्चा में एक आधारभूत समझ का उपस्थित होना आवश्यक है, वह हर बार शून्य से प्रारम्भ नहीं कर सकता। कई बार ऐसी समस्याओं पर जब कई दिशाओं से ऊटपटाँग वक्तव्य टपकते हैं तो लगता है कि उन मूढ़ों को मूल से प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता है। ब्लॉगरों के बीच चर्चा का स्तर बना रहता है, लुढ़कता नहीं है। दूसरा लाभ यह है कि यदि ब्लॉगर किसी विषय को हृदयस्थ करेंगे तो उसे व्यक्त भी करेंगे, उस चर्चा को ब्लॉग के माध्यम से और विस्तार मिलेगा और प्रचार मिलेगा।
चर्चा में दो विचारधारायें प्रमुख थीं। पहली उन महिलाओं की, जो पारिवारिक हिंसा की या तो स्वयं भुक्तभोगी रही हैं या उन्होनें वह ध्वंस बहुत पास से देखा, या कहें कि जिन्होंने इसका तीक्ष्ण पक्ष जिया है। दूसरी विचारधारा उस समूह की थी, जो सदा ही परिवार को अधिक महत्व देता रहा क्योंकि उसकी दृष्टि में परिवार ही सहजीवन की मौलिक ईकाई है। एक समूह परिवार को बन्धन मान बैठा था, तो दूसरा उसे पोषक। एक समूह परिवार को दो व्यक्तियों के स्वातन्त्र्य का अखाड़ा मान रहा था जिसमें अधिकारों की जीत का स्वर निनाद करे, तो दूसरा परिवार को एक यज्ञक्षेत्र मान रहा था जहाँ दोनों अपने अहम स्वाहा कर फल पर स्वयं को केन्द्रित करें। दोनों ही तथ्य कह रहे थे, दोनों ही सत्य कह रहे थे।
मैं मौन सुन रहा था, समझ नहीं पा रहा था व्यक्तिगत और संस्थागत सिद्धान्तों का घर्षण। जब ऐसा ही मौन कुछ दिनों पहले स्वप्न मंजूषाजी की पोस्ट पर व्यक्त किया था तो एक झिड़की मिली थी, व्यक्त न करना कर्तव्यों से मुँह मोड़ने सा समझा गया, व्यक्त न करना बुद्धिजीविता का अपमान समझा गया। अपना द्वन्द उन्हें समझाया तो अभयदान मिल गया, सोचने का समय मिल गया और साथ ही मिला स्वयं को कहने का अवसर। चिन्तन परिवार के पक्ष में लगभग करवट ले ही चुका था कि आज की चर्चा ने पुनः सब उथल पुथल कर डाला।
विश्व को देखें तो तोड़ने वालों की संख्या बहुत अधिक रहती है, तोड़ना बहुत सरल है, जोड़ना बहुत कठिन। व्यक्ति पूरे मानव समाज को अब तक तोड़ता ही तो आ रहा है। धर्म, जाति, राष्ट्र, राज्य, भाषा, वर्ण और न जाने क्या क्या। जहाँ एक ओर तोड़कर उसका विश्लेषण उस पर नियन्त्रण सरल हो जाता, जोड़ने में न जाने कितने व्यक्तित्वों को एक सूत्र में पिरोना पड़ता है, कितनी विचारधाराओं, रुचियों और प्रवृत्तियों को एक दिशा देनी पड़ती है। सहजीवन के उपासकों को सदा ही जोड़ने की दिशा में बढ़ते पाया है, परिवार को महत्व देने वालों को सदा ही कठिन मार्ग पर चलते पाया है।
क्या पारिवारिक तनाव से ग्रस्त जन संबंध तोड़ दें? उपस्थित कुछ महिलायें ही इस विचारधारा की थीं, उन्होंने निश्चय ही प्रताड़ना सही होगी। कितना दुख असहनीय है, यह परिभाषित करना होता है, उस दुख की तुलना में जो परिवार के न होने की दशा में आता है। परिवार न होने का दुख निश्चय ही अधिक है पर कुछ लोग उसे वहन कर सकते हैं, वर्तमान के नर्क से निकलने के लिये। समाज के स्वरूप के विरुद्ध कुछ सक्षम लोग तो चल सकते हैं पर वह सबके लिये उदाहरण नहीं बन सकता, सहजीवन हमारे लिये आमोद का विषय नहीं वरन आवश्यकता का आधार है। एक व्यक्ति से निर्वाह नहीं हो रहा है तो वह जीवन की राहों का अंत नहीं है, स्थितियों में सुधार के उदारमना और निष्कपट प्रयास हों, यदि फिर भी संभव न हो तो निश्चय ही दूसरा परिवार बसाया जाये, पर परिवार सदा ही प्रमुखता से रहे।
परिवार सदा ही एक आधार रहेगा, कुरीतियों से लड़ने का, समाज में संबल संचारित करने का। परिवार रहे और उसमें बेटे और बिटिया को समान प्यार और आश्रय मिले। बिटिया को आश्रय देना है तो अपराध हर हाल में रोकने पड़ेंगे। हम एक बार भुगत चुके हैं। मध्ययुगीन भारत की परिस्थितियों में नारियों ने जो सहा है, वह अवर्णनीय है। सतीप्रथा, बालविवाह, पर्दाप्रथा, बालिकावध, सब के सब सामाजिक नपुंसकता के प्रक्षेपण रहे हैं, हम अपनी बिटियों की रक्षा करने में अक्षम रहे हैं। उनको जिलाकर सम्मान देने के स्थान पर उन्हें मारकर और जल्दी ब्याहकर सम्मान बचाते आये हैं। आज भी परिस्थितियाँ उसी राह जा रही हैं, समाजिक पक्षाघात की आशंका पुनः अपने संकेत भेज रही है। सोचना होगा, क्यों कोई महिला अपनी बिटिया को इस असुरक्षित समाज में आने से मना करती है। श्वेता की यह कविता उसी वेदना के स्वर हैं, वह चीत्कार है जिसे हम सुनने से कतराते हैं।
तो उठें और हस्तक्षेप करें, हो सके तो सक्रिय, और यदि न हो सके तो कम से कम घंटी अवश्य बजा दें, अपराध में व्यवधान उत्पन्न अवश्य कर दें।
उपाय आपको थोड़ा विनोदपूर्ण लग सकता है, पर यह व्यवधान आवश्यक है और प्रभावी भी। झगड़े में लगे हुये युगल को तो लगता है कि सामने वाले ने उसका पूरा विश्व दूषित और कलुषित कर दिया है, अब बिना उसे निपटाये आगे बढ़ने का कोई मार्ग ही नहीं है। उन्हें उस घातक तारतम्यता से बाहर निकालने का कार्य करता है, यह घंटी बजाना। यह व्यवधान नहीं, समाधान की दिशा में सोचने के लिये प्रेरित करने का कार्य है। कई बार यह कार्य घर में बच्चे बड़े ही रोचक ढंग से करते हैं, आपके मन मुटाव को कोई महत्व न देते हुये आपसे कोई दूसरा प्रश्न पूछ बैठते हैं। आपका ध्यान बट जाता है और क्रोध का त्वरित कारण भी। पारिवारिक झगड़ों में ही नहीं वरन नारी के प्रति हो रहे किसी भी अपराध में सचेत करता हुआ संकेत ही घंटी बजाना है, हो रहे अपराध की मूढ़ता की लय तोड़ना ही घंटी बजाना है।
विषय संवेदनशील था अतः मुँह खोलने के पहले वहाँ उपस्थित समुदाय की मनःस्थिति को समझ लेना आवश्यक था। लोग बोलते रहे, चर्चा रोचक होती रही, कुछ बोलने से अधिक सुनने में रुचि बढ़ती रही। लगभग १५० ब्लॉगरों के ऊर्जावान और ज्ञानस्थ समूह की चर्चा के निष्कर्षों को समझना आवश्यक था मेरे लिये। मन में कुछ बिन्दु थे जो सोच कर गया था, कहने के लिये, पर अन्त में बिना कुछ बोले, ज्ञानमद छाके ही वापस चला आया, टहलता हुआ।
ब्लॉगर किसी विषय पर मंथन करें तो दो लाभ दिखते हैं। पहला तो विषय पर दृष्टिकोण वृहद और स्पष्ट हो जाता है। लिखने की प्रक्रिया में पढ़ने और समझने की दक्षता प्राप्त करते रहने से समस्या की परत खोलने में विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है। किसी भी बुद्धिजीवी के लिये चर्चा में एक आधारभूत समझ का उपस्थित होना आवश्यक है, वह हर बार शून्य से प्रारम्भ नहीं कर सकता। कई बार ऐसी समस्याओं पर जब कई दिशाओं से ऊटपटाँग वक्तव्य टपकते हैं तो लगता है कि उन मूढ़ों को मूल से प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता है। ब्लॉगरों के बीच चर्चा का स्तर बना रहता है, लुढ़कता नहीं है। दूसरा लाभ यह है कि यदि ब्लॉगर किसी विषय को हृदयस्थ करेंगे तो उसे व्यक्त भी करेंगे, उस चर्चा को ब्लॉग के माध्यम से और विस्तार मिलेगा और प्रचार मिलेगा।
मैं मौन सुन रहा था, समझ नहीं पा रहा था व्यक्तिगत और संस्थागत सिद्धान्तों का घर्षण। जब ऐसा ही मौन कुछ दिनों पहले स्वप्न मंजूषाजी की पोस्ट पर व्यक्त किया था तो एक झिड़की मिली थी, व्यक्त न करना कर्तव्यों से मुँह मोड़ने सा समझा गया, व्यक्त न करना बुद्धिजीविता का अपमान समझा गया। अपना द्वन्द उन्हें समझाया तो अभयदान मिल गया, सोचने का समय मिल गया और साथ ही मिला स्वयं को कहने का अवसर। चिन्तन परिवार के पक्ष में लगभग करवट ले ही चुका था कि आज की चर्चा ने पुनः सब उथल पुथल कर डाला।
विश्व को देखें तो तोड़ने वालों की संख्या बहुत अधिक रहती है, तोड़ना बहुत सरल है, जोड़ना बहुत कठिन। व्यक्ति पूरे मानव समाज को अब तक तोड़ता ही तो आ रहा है। धर्म, जाति, राष्ट्र, राज्य, भाषा, वर्ण और न जाने क्या क्या। जहाँ एक ओर तोड़कर उसका विश्लेषण उस पर नियन्त्रण सरल हो जाता, जोड़ने में न जाने कितने व्यक्तित्वों को एक सूत्र में पिरोना पड़ता है, कितनी विचारधाराओं, रुचियों और प्रवृत्तियों को एक दिशा देनी पड़ती है। सहजीवन के उपासकों को सदा ही जोड़ने की दिशा में बढ़ते पाया है, परिवार को महत्व देने वालों को सदा ही कठिन मार्ग पर चलते पाया है।
परिवार सदा ही एक आधार रहेगा, कुरीतियों से लड़ने का, समाज में संबल संचारित करने का। परिवार रहे और उसमें बेटे और बिटिया को समान प्यार और आश्रय मिले। बिटिया को आश्रय देना है तो अपराध हर हाल में रोकने पड़ेंगे। हम एक बार भुगत चुके हैं। मध्ययुगीन भारत की परिस्थितियों में नारियों ने जो सहा है, वह अवर्णनीय है। सतीप्रथा, बालविवाह, पर्दाप्रथा, बालिकावध, सब के सब सामाजिक नपुंसकता के प्रक्षेपण रहे हैं, हम अपनी बिटियों की रक्षा करने में अक्षम रहे हैं। उनको जिलाकर सम्मान देने के स्थान पर उन्हें मारकर और जल्दी ब्याहकर सम्मान बचाते आये हैं। आज भी परिस्थितियाँ उसी राह जा रही हैं, समाजिक पक्षाघात की आशंका पुनः अपने संकेत भेज रही है। सोचना होगा, क्यों कोई महिला अपनी बिटिया को इस असुरक्षित समाज में आने से मना करती है। श्वेता की यह कविता उसी वेदना के स्वर हैं, वह चीत्कार है जिसे हम सुनने से कतराते हैं।
तो उठें और हस्तक्षेप करें, हो सके तो सक्रिय, और यदि न हो सके तो कम से कम घंटी अवश्य बजा दें, अपराध में व्यवधान उत्पन्न अवश्य कर दें।
समाज में जागरूक रहना ही चाहिए,हम अपराध को रोक तो नहीं सकते इसी तरह के तरीके अपना कर कुछ कम करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं।
ReplyDelete"सहजीवन हमारे लिये आमोद का विषय नहीं वरन आवश्यकता का आधार है।"
ReplyDeleteऔर सहजीवन के लिए सहिष्णुता जरुरी है -एक महत्वपूर्ण विषय पार आपने विचार साझा किये हैं -आभार
नैतिक मूल्यों का क्षरण दोषी है, जिस स्थिति में पहुँच गये हैं, वहां से वापसी बहुत कठिन है.
ReplyDeleteहमने भी सोचा था इस कार्यक्रम में जाने का, परंतु सप्ताहांत बदलने से संभव नहीं हो पाया, कलमष को मिटाना होगा बस यही ध्येय होना चाहिये ।
ReplyDeleteअपराध रुकने चाहिए ,रोकने में हमारा सहयोग होना चाहिए , बहुत बहस होती है इसपर , बहस सार्थक तभी है, जब इस पर अमल किया जा सके . रिंग द बेल ऐसा ही जागरूकता अभियान है .
ReplyDeleteबजाई थी हमने भी एक घर से दरवाजा पीटने की आवाज़ आने पर ...
गहन चिंतन मनन किया आपने !
सहमति ....पूर्ण सहमति..... अगर हमारा पारिवारिक ढांचा सहिष्णु बने तो हर समस्या का हल देहरी के भीतर ही है | पारिवारिक आधार बिखरा तो हमारी आशंकाओं से कहीं बढ़कर दुष्परिणाम आयेंगें | एक सार्थक कार्यक्रम में आपकी भागीदारी , जानकर अच्छा लगा
ReplyDeleteपरिवार महत्वपूर्ण है ,पर अगर हर संभव कोशिश कर ली जाए और शांतिपूर्ण माहौल न बन पाए तो फिर ,कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचता.
ReplyDelete२०१० में ही एक पोस्ट लिखी थी, 'प्लीज़ रिंग द बेल ' {आपकी टिपण्णी भी है वहाँ ,पर आपने वहाँ भी खुलकर अपने विचार व्यक्त नहीं किये थे .शायद इस पोस्ट के लिए अपने विचारों को सहेज रहे थे :)} और यही अपील की थी कि पडोसी चुप बैठ कर तमाशा न देखें.कई बार शुरुआत में ही इस तरह के हस्तक्षेप होने लगते हैं तो सम्सस्या आगे नहीं बढती.पति-पत्नी दोनों को ही थोड़ी, झेंप. संकोच शर्म आती है.और अगर ये उनके घर का मामला है,सोचकर बाकी लोग चुप रहते हैं तो फिर उनकी झिझक भी ख़त्म हो जाती है.
अभी मैं यह पढने के बाद आपका वही पोस्ट याद कर रहा था
Deleteमैंने एक बार सड़क पर दो लड़ाई करते युवकों को अलग करने के लिए अपनी कार का हार्न बहुत देर तक बजाया था । परिणाम स्वरूप वहां बहुत से लोग एकत्रित हो गए और एक युवक की जान बच गई थी नहीं तो पिटने वाला युवक मृत ही पाया जाता ।
ReplyDeleteअत्यंत सरल विधि है "रिंग दि बेल"
घंटी बजाना आवश्यक है, शुभकामनाओं के साथ !
ReplyDeleteदखल दिये बिना काम नहीं चलेगा,घंटी बजा देनी चाहिये!
ReplyDeleteI think it'a a way giving message that the people around you are not inept, and if you are doing wrong... well u'll definitely get the knocks on you doors
ReplyDeleteअति आवश्यक का्र्य है घंटी बजाना।
ReplyDeleteयह घंटी बजाना। यह व्यवधान नहीं, समाधान की दिशा में सोचने के लिये प्रेरित करने का कार्य है .... बिल्कुल सही
ReplyDeleteसार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
सादर
People might think how ringing the bell will stop any crime, but if you are ringing the bell that means you are a responsible citizen of this country who wants to make this place crime free, so when your thinking will chnage you will infulence few more and then only the change we all looking for will take place, Change always starts from within.... very well written post Sir.
ReplyDeleteand thanks for giving likn of my poem here :)
सही दिशा में सही सोच !!
ReplyDeleteवर्तमान हालात में आपका आलेख कुछ करने के लिये प्रेरित करता है. घंटी बजाने से लेकर और भी जो अपने अपने स्तर और पसंद के अनुरूप किया जा सके, उसे अवश्य ही किया जाना चाहिये वर्ना बहुत देर हो चुकी होगी.
ReplyDeleteरामराम.
यह व्यवधान नहीं,यह समाधान की दिशा में प्रेरित करने का कार्य है यह घंटी बजाना। सार्थकता लिये सशक्त आलेख,,,
ReplyDeleteरश्मि रवीज़ा की पोस्ट पढी थी इसी पर कुछ वक्त पहले …………सार्थक कार्य के लिये सार्थक पहल जरूरी है।
ReplyDeleteबेहद की चिंतन परक पोस्ट इतिहास के झरोखे से वर्तमान को सावधान करती हुई .ब्रह्माकुमारीज़ में हर घंटे बाद ट्रेफिक ब्रेक होता है मतलब सब कुछ छोड़ कर बाबा (निराकार शिव )के ध्यान में स्वयम को दिव्य शान्ति स्वरूप आत्मा समझ बैठते हैं .पार्श्व में संगीत बजता है -अंतर मन जी जोत जगा लो ,होगा दूर अन्धेरा ,शिव का कर लो ध्यान आ रहा पावन पुण्य सवेरा ,ॐ शान्ति ,ॐ शान्ति .हम भी दैनिक जीवन में ऐसा करें तो तनाव और दुर्घटनाओं से बचे रहें .हिंसा से भी ,भय से भी .ॐ शान्ति .यही सन्देश है घंटी बजाने का .ट्रेफिक ब्रेक करने का .ट्रेफिक सांग सुनने का .
ReplyDeleteबेहद की चिंतन परक पोस्ट इतिहास के झरोखे से वर्तमान को सावधान करती हुई .ब्रह्माकुमारीज़ में हर घंटे बाद ट्रेफिक ब्रेक होता है मतलब सब कुछ छोड़ कर बाबा (निराकार शिव )के ध्यान में स्वयम को दिव्य शान्ति स्वरूप आत्मा समझ बैठते हैं .पार्श्व में संगीत बजता है -अंतर मन जी जोत जगा लो ,होगा दूर अन्धेरा ,शिव का कर लो ध्यान आ रहा पावन पुण्य सवेरा ,ॐ शान्ति ,ॐ शान्ति .हम भी दैनिक जीवन में ऐसा करें तो तनाव और दुर्घटनाओं से बचे रहें .हिंसा से भी ,भय से भी .ॐ शान्ति .यही सन्देश है घंटी बजाने का .ट्रेफिक ब्रेक करने का .ट्रेफिक सांग सुनने का .
ReplyDeleteकृपया द्वंद्व लिखें द्वन्द के स्थान पर .(डीवीएनडी वी )
Those who ring the bell always need to understand that "they will never be liked" . The society will call them "intruders" sooner or latter
ReplyDeleteHindi blog world and english blog world are 2 different extremes
Hindi blog world does not even think these issues are worth talking about its only lately that these issues have been talked on hindi platform
WHAT EXACTLY DOES RINGING THE BELL MEAN
to make noise so that the wrong noise gets subdued
WHAT ELSE I DID BY OPENING AND RUNNING THE NAARI BLOG IN HINDI
I created a platform to bring out the issues unheard in hindi blog and to fight the rampant gender bias in hindi blog world and have been several times "ASSASINATED" by this hindi blog world and BY THOSE WHO CALL THIS HINDI BLOG PARIVAAR .
You will say there is NO GENDER BIAS HERE
Similarly the families say there is none there .
Nothing will change till we all rise above the family structure and think of saving WOMAN AS A HUMAN BEING AND NOT BECAUSE SHE HAS THE CAPABILITY TO GIVE BIRTH AND RUN A FAMILY . SHE HAS TO BE TREATED A HUMAN BEING EVERY WHERE WHO HAS EQUAL RIGHT AND STATUS
For long Indian society has been harping on the family { parivaar } system and the society has been GOING DOWNHILL in their attitude towards woman .
This very society believes that NONE SHOULD SPEAK BETWEEN HUSBAND AND WIFE BECAUSE its a personal matter
ring the bell is a movement but it will not succeed in india because we all believe in making a family in close doors and we dont want to discuss issues in open . in our society behind the close doors so many crimes against woman happen that the concept of family is outdated now
we need a movement to make people understand that families will be successful only when all individuals in that family are respected whether father , son , daughter , mother , wife so on so forth
Rachna ji,
DeleteI don't think we are discussing specifically about WOMEN issue here. It is my understanding, we are talking about, interrupting future Crimes to happen. Though it is a gruesome realty that majority of the crimes happen against Women.
The sole intention of this post is to inspire the community to interrupt any on going violence or any future crime, that may have happened if it was not stopped.
Ringing the bell can be seen as a thankless or awkward job but it has the power to dilute the anger and it may defuse the criminal intentions. This is a very small gesture but powerful one. It's better to be alert than to regret.
We have a Neighbourhood Watch program in our community and it works.
Now things are changing in India too. At least people do keep watch on each others homes nowadays.
You are right, fights between husband and wife are considered private affairs. But when these fights surpass the limit of their privacy and neighbours could hear their ugly voices that invades their privacy, one has all the more reason to practice their right to interrupt.
I don't think we are discussing specifically about WOMEN issue here. It is my understanding, we are talking about, interrupting future Crimes to happen. Though it is a gruesome realty that majority of the crimes happen against Women. @ada
DeleteYou please read your own para
Its about crime against woman and therefore its a women issue altogether and physical crime , mental crime , written crime are all one and same thing in one form or other
@Ada
Now things are changing in India too. At least people do keep watch on each others homes nowadays.
People always kept watch on other people home in india but they ignored what is happening in their home . They preach "we treat our bahu as beti , and they dont hesitate in killing female child even in womb
THINGS ARE NOT changing in india mentality is still the same
Here THIS CONCEPT WILL NEVER WORK because here crime against woman starts at family level and statistics say its all the more in metros
अच्छी बात है की इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है . अफ़सोस है कि हमने बहुत देर की है। शायद सैंकड़ों लड़कियों सहित भारी संख्या में महिलाओं की मौत के बाद हमारी अंतर आत्मा जागी है. इस मनोवृत्ति की जमीन कहीं न कहीं हमारे परिवार और समाज में है. आपका लेख ... ताकि सुरक्षित रहे आधी आबादी... याद आ गया।
ReplyDeleteन सिर्फ बजाना बल्कि जोर जोर से नजान जरूर है ... समाज में जागरूकता लानी जरूरती है ...
ReplyDeleteएक छोटी सी घंटी इतना सब कुछ कितनी सरलता से कर सकती है.इसका अंदाजा आपकी पोस्ट से हुआ.आभार
ReplyDeleteकोई पड़ोसी जाये और उसे रोकने का प्रयास करे। ऐसे में एक युवक उठता है, उस घर के बाहर पहुँचता है, घंटी बजाता है। झगड़ा सहसा रुक जाता है, ऐसे व्यवधान प्रायः नहीं होते थे। पूछे जाने पर युवक तनिक कठोर स्वर में कहता है कि उसके घर बिजली नहीं आ रही है, वह बस यह देखने आया है कि आप के घर बिजली आ रही है या नहीं।
ReplyDeleteयह तो बहुत ही नेक ख्याल है ....हम किसी का कलह सुलझाने के लिए ऐसा कर सकें तो जरुर करना चाहिए ....
एक घंटी का व्यवधान बहुत कुछ कर सकता है ....और ज़रूरी भी है. चीख बाहर आ जाये तो व्यक्तिगत रह भी नहीं जाता
ReplyDeleteघंटी बजाने की आदत डालनी होगी। थोड़ी तकलीफ उठाकर किसी की बड़ी तकलीफ़ दूर जो जाय तो बहुत अच्छा काम होगा।
ReplyDeleteसुविचार देती पोस्ट।
आपने उस बैठक के मुद्दे को साझा कर एक अलख जगायी है. आभार.
ReplyDeleteपरिवार सदा ही एक आधार रहेगा, कुरीतियों से लड़ने का, समाज में संबल संचारित करने का। परिवार रहे और उसमें बेटे और बिटिया को समान प्यार और आश्रय मिले।
ReplyDeleteबहुत सार्थक आलेख ...!!अगर इस पर हम थोडा भी अमल कर सकें तो स्थिति सुधरने में देर नहीं लगेगी ...!!
ऐसे व्यवधान ,न केवल झगडे व तनाव को टाल देते हैं बल्कि जिन्दगी को भी बचा देते हैं कभी-कभी । सहजीवन आज की आवश्यकता है बेशक । लेकिन सम्बन्धों के प्रति असहिष्णुता बढती जारही है ,उसके दुष्परिणाम आने में देर है । ऐसी परिचर्चाएं काफी उपयोगी होती है ।
ReplyDeleteव्यवधान से समाधान मिले तो प्रशंसनीय है .... काफी गहन चिंतन किया है इस विषय पर ....
ReplyDeleteक्रोध व आवेश की तारतम्यता में व्यवधान उपस्थित करना क्रोध निवारण का तो श्रेष्ठ उपाय है. यही वह क्षण होता है जब विवेक के उदय को अवकाश मिल जाता है और यदि विवेक जागृत हो जाय तो समस्या का समाधान भी निश्चित है.
ReplyDeleteऐसे मौकों और उनपर आई पोस्ट्स पर अपन भी अधिकतर चुप ही रहते हैं, चाहे कोई हमें दकियानूसी समझे या फ़िर संकुचित सोचवाला।
ReplyDeleteये एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें दोष हमेषा पुरुष का ही निकलना है, इसलिये हम तो शुरू में ही मान लेते हैं कि दोष हमारा है।
कोई जब अपनी गलती मान लेता है तो उसका अर्थ ये समझा जाता है कि इस बार तो गलती हो गयी अब आईंदा दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी। जब आईंदा वो उसी गलती को नहीं दोहराता है तो वो इंसान न तो दकियानूसी होता है न ही संकुचित विचारों वाला।
Deleteआपकी बिटवीन दी लाईन वाली बात से भी सहमत हूँ, ऐसा भी नहीं है कि हमेशा दोष पुरुष का ही होता है लेकिन आम धारणा ये होती है, अगर कार वाला, साईकिल वाले को टक्कर मार दे, तो कार वाला ही भुगतता है, बेशक़ गलती साईकिल वाले की ही रही हो। क्योंकि पावरफुल तो कार वाले को ही माना जाएगा, 'बेचारे' साईकिल वाले के सामने। आपलोग पावरफुल लोग भी तो हैं, हमलोगों के मुकाबले। फिर भी इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता स्त्रियों का शोषण होता रहा है। अब बेशक समाज बदल रहा है, कहीं-कहीं अपवाद भी देखने को मिल रहे हैं, जिनको हम सभी को ईमानदारी से स्वीकार भी करना चाहिए।
बाकी इस विषय में कोई बात सुनना/मानना ही नहीं है, ऐसी कोई कसम खा कर बैठ गया हो, तो उस बुद्धू को हम जिद्दी कहते हैं :)
एक स्टेप रह गया था :)
Deleteबिना कोई गलती किये हुए अपनी गलती मान लेने वालों को बुद्धू कहते हैं :)
बाकी इस विषय में कोई बात सुनना/मानना ही नहीं है, ऐसी कोई कसम खा कर बैठ गया हो, तो उस बुद्धू को हम जिद्दी कहते हैं :)
स्टेप रह जाने का दोष किसी पर नहीं डाला? वैरी बैड, लगे हाथ ये काम भी निबटा देना था :)
DeleteGhanti me itni taakat hai!!! Wah.
ReplyDeleteMothers' womb childs'tomb ,no more no more .All souls are equal .There is no gender bias from Gods' side .It is the man stupid men in vices who discriminate .
ReplyDeleteApril 27, 2013
I Ring the Bell
I put my hand there trying to feel,
Yes it’s a part of me which is yet to reveal.
Will it be a boy or it will be a girl,
Thinking of this makes me fear.
If it’s a girl, what will be her future?
Will she be free or she will always live in fear?
Oh my lord, look what is going on,
In this unsafe country I don’t want my girl to born.
Yes I wanted a girl cute, pretty and fun,
But after seeing things here I am stun.
Rapes, dowry, eve teasing, and molestation
To these problems I see only one solution.
Things will change only when men will change,
When his upbringing and mentality will change
When he will consider women equal and will respect her
Then only his mother, sister and daughter will also be safer.
Oh dear god please answer my prayer,
I ring the bell in front of you please make this country safer.
बहुत सुन्दर और सार्थक विवेचन..सही कहा है कि घंटी तो हम बजा ही सकते हैं...
ReplyDeleteलेकिन पशु तो घंटी की आवाज में भी संगीत खोज लेते हैं..
ReplyDeleteexcellent comment amrita most appropriate
Deleteजहाँ यह घंटी बजाने की परम्परा है वहां घर के आपसी विवादों को ऊँची आवाज में लोग बढाने में झिझकते है कि पड़ौसी क्या कहेंगे ?
ReplyDeleteगहन वैचारिक विश्लेषण से लैस एक अच्छी पोस्ट |
ReplyDeleteसमझ नहीं पा रहा था व्यक्तिगत और संस्थागत सिद्धान्तों का घर्षण.........लेकिन पोस्ट लिखने के बाद आपने अपने द्वंद को समुचित प्रकार से विश्लेषित किया। कुछ दिनों पहले एक सहकर्मी से इसी विषय पर बात हो रही थी। वे गृहस्थ को अर्थात् अच्छे गृहस्थ जीवन को सम्पूर्ण सामाजिक ताने-बाने की रीढ़ बता रहे थे। इस क्रम में उन्होंने समझाया कि एक गृहस्थ साधु-संत से लेकर तमाम बाबाओं, सरकारों, प्रशासन, देश और राष्ट्र को संचालित करता है। यदि गृहस्थ न हो तो समाज उजड़ जाए। लेकिन दुख है कि आज गृहस्थ सत्ता प्रतिष्ठान की अकर्मण्यता के कारण सबसे बुरी स्थिति में पहुंच चुका है। इसे बचाना होगा। पुरानी राह पर लौटना होगा।
ReplyDeleteअत्यन्त विचारणीय आलेख रहा यह।
अपराध में व्यवधान.........यदि यह आलेख का शीर्षक हो तो। एक सुझाव है।
Deleteअत्यन्त गहन वैचारिक विश्लेषण.. बहुत सार्थक आलेख ...
ReplyDeleteजागते रहो जगाते रहो.
ReplyDeleteऐसी ही एक घटना का ज़िक्र मैंने भी अपने ब्लॉग पर किया था जहाँ एक औरत को पीटने वाले उसके मर्द का हाथ मेरे स्वर्गीय पिता जी ने पकडकर उस आदमी को एक झापप्द रसीद किया था.. मगर अगले ही पल उस अय्रत ने पिताजी का हाथ पकड़ लिया और बोली कि आप कौन होते हैं हम दोनों के बीच बोलने वाले.. उनका चेहरा देखने लायक था..
ReplyDeleteकई बार घंटी बजाते हुए करेंट भी लग जाता है!!
सही कहा आपने! घंटी बजाना इतना आसान भी नही. कभी-कभी लोग प्यार से भी चिल्ला पड़ते हैं और ऐसे में आप बेल-बुद्धू बन सकते हैं. लेकिन घंटी बजाना यहाँ चिन्ह मात्र है. उदाहरण स्वरुप खुद को रख कर भी हम दूसरों के दिमाग की बत्ती जला सकते हैं.
Deleteबहरहाल अच्छा विवरण किया आपने रविवासरीय बैठक का..:)
yahii baat maenae bhi apnae kament me kahi haen salil ji bhartiyae samaj me stri kae prati hinsa hamesha sae "manya" rahii haen aur pati patni kae beech mae koi bol hi nahin saktaa is liyae ghanti bajanaa haen to striyon ko jaagruk karna jaruri haen taaki wo apnae khilaaf ho rahii hinsa ka prati khud aavaj uthaae
Deleteमुझे यह विज्ञापन प्रसांगिक औेर अच्छा लगता था।
ReplyDeleteनिश्चय ही एक सकारात्मक सामाजिक हस्तक्षेप एक बड़ी दुर्घटना के प्रसव को रोक सकता है .आज वेदना पूर्ण है समाज की स्थिति .जिस समाज में नारी का जितना सम्मान होता है वह उस समाज की Civility,नागर बोध का सूचक होता है हम तो अब और भी आदम और बर्बर असभ्य होते जा रहे हैं . नियम का न होना ही नियम बनता जा रहा है .
ReplyDeleteएक नपुंसक राजनीतिक प्रबंध को हम साक्षी भाव से देखे जा रहे हैं .चीन हमारी ज़मीन हड़प रहा है .हम कह रहे हैं बात करेंगे .दिल्ली में बंकर बना ले तब भी यही कहेंगे ,हम बात करेंगे .प्रजातंत्र में बात ही तो की जाती है .
छोटा सा मुल्क हमारी नाक काट रहा है हम निश्चिन्त है कहते हैं कोस्मेटिक सर्जरी करवा लेंगे नाक की .हमारे पास इत्ते बड़े बड़े कोस्मेटिक सर्जन हैं वह किस काम आयेंगे .
यही गति समाज की हो चली है .जो जितना बाद सुलुकी कर रहा है बाद जुबानी कर रहा है उतना ही इनाम पा रहा है .
मनीष तिवारी और सलमान खुर्शीद इसके प्रमाण हैं .यह नियम है इस प्रबंध का अपवाद नहीं .
ॐ शान्ति .
हर बार के तरह ही बहुत बढ़िया विचारशील प्रस्तुति ...
ReplyDeleteIt's our society, our country, we need to do something. Sitting and witnessing such crimes will not solve the problem.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये इसे एक बार अवश्य देखें,
लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
MY BIG GUIDE
व्यवधान डालने की महती आवश्यकता रहती है।
ReplyDeletewellwritten& well said.
ReplyDeleteVinnie
बहुत खूब. बहुत ही अच्छी पोस्ट हैं पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत अच्छे सर जी
ReplyDeleteThanks for this great post. Its super helpful for the noobs like me :)
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