लम्बी कितनी राह चलेंगे,
कब घर का आराम मिलेगा?
कब तक सूखे चित्र बनेंगे,
रंग कब चित्रों में उतरेगा?
कब विरोध के मेघ छटेंगे,
कब भ्रम का अनुराग तजेगा?
स्वप्नों में कब तक जागेंगे,
कब सच को आकार मिलेगा?
आचरण की रूपरेखा,
मात्र वाक्यों में सजाकर,
कर्म की कमजोरियों को,
भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
बोल दे निश्चित स्वरों में,
स्वयं को कब तक छलेंगे?
जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे?
सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,उम्दा भाव अभिव्यक्ति!!! ,
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
सधे शब्दों में गहरी सीख ..... काश हम अब भी चेत जाएँ .....
ReplyDeleteशब्दों की आड़ में करम कब तक छिपेंगे ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
जो स्वयं को छलना छोड़ दे वह तो तपस्वी हो गया ।
ReplyDeleteसही मनन है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteबोल दे निश्चित स्वरों में,
ReplyDeleteस्वयं को कब तक छलेंगे?
जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे?
बेहद गहन एवं सशक्त भाव ....
सादर
आचरण की रूपरेखा,
ReplyDeleteमात्र वाक्यों में सजाकर,
कर्म की कमजोरियों को,
भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
बोल दे निश्चित स्वरों में,
स्वयं को कब तक छलेंगे?
जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे?
अपने स्वरूप को खंगालती रचना -
क्या मैं यहाँ छल करने आया हूँ वह भी किसी और के साथ नहीं खुद के ,औरों को आप छल नहीं सकते ,खुद छलावे में रह जाते हैं फरेब के, देह अभिमानी बनके अपने अहंकार में हैं हम। अब समय है आत्माभिमानी बन के खुद को
शुद्ध बना ने का .सार्थक आत्मालोचन कराती रचना .
सहने की भी सीमा होती है ... सुंदर
ReplyDeleteछल हम किसी और से नहीं बल्कि स्वयं से ही करते हैं ......!!गहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति,अपने स्वरूप को खंगालती रचना।
ReplyDeleteबहुत उम्दा ..तस्वीर भी बहुत कुछ बोल रही है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteमन का दर्द उभर आया है।
ReplyDelete"लम्बी कितनी राह चलेंगे,
ReplyDeleteकब घर का आराम मिलेगा?"
"जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे?"
सुंदर पंक्तियाँ
आज के मनुष्य और उसके मुखौटे का वार्तालाप।
ReplyDeleteसत्य से तो साक्षात्कार करना ही पड़ेगा।
ReplyDeleteमन की अभिव्यक्ति सब कुछ सामने रख देती है, उससे कुछ नहीं बचता.
ReplyDeleteमन के भावों को बहुत सुन्दरता से उकेरा..आभार
ReplyDeleteलंबा सफर है...
ReplyDeleteसुंदर कविता.
स्वयं को कब तक छलेंगे?
ReplyDeleteयक्ष प्रश्न
'ऊहापोह' की स्थति कहें या 'किंकर्तव्यविमूढ़' की !!
ReplyDeleteभटकन बहुत मुखर हो रही है .....
ReplyDeleteबस चलते जाना है..!
ReplyDeleteस्वयं को कबतक छलेंगे?- बहुत ही उपयुक्त प्रश्न और बहुत ही उम्दा ढंग से आपने पूछा
ReplyDelete-Abhijit (Reflections)
यह जीवन ऐसे ही चलेगा।
ReplyDeleteजीवनी से विमुख होकर,
ReplyDeleteऔर कितना हम चलेंगे?
यह परीक्षा तो सदिअव चलनी है. सुंदर अभिव्यक्ति.
आचरण की रूपरेखा,
ReplyDeleteमात्र वाक्यों में सजाकर,
कर्म की कमजोरियों को,
भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
बोल दे निश्चित स्वरों में,
स्वयं को कब तक छलेंगे ..
अगर ये मुखोटे उतार दोगे तो न जाने कितने शर्मसार हो जाएंगे ...
इमानदारी को तलाशती रचना ..
बहुत ही सशक्त छान्दसिक कविता |आभार
ReplyDeleteजब तक अपने आत्म स्वरूप (मैं कौन हूँ )की पहचान नहीं होगी कर्म भी विकर्म ही रहेगा .इसे ही अकर्म बनाना है .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .विकर्म का फल भोग है अकर्म का आगे फल नहीं है .वहां सिर्फ सुख है .विकर्म की सजा जेलों का तीर्थ तिहाड़ है आज नहीं तो कल कल नहीं तो परसों (अगले जन्म में ).सजा तो मिलेगी जब तक कर्मों को दिशा न मिलेगी .दिग्भ्रमित रहेगा मनुष्य जीवन .
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteचलते-चलते सोच रहा हूँ
कितनी दूर अभी है चलना!
मन की प्यास हिरण का छलना
कितना कुछ बाकी है सहना!
जरा रूककर यही तो सोचने की आवश्यकता है..
ReplyDeleteआखिर कब तक ????? फिर भी चलना ही जीवन है .... सार्थक प्रश्न करती सुंदर रचना
ReplyDeleteजीवन की सार्थकता को खोजती कविता ।
ReplyDeleteचलते तो रहते ही हैं. सच जानकार , कभी जानकार भी अनजान बनकर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .... अद्भुत लेखन ... उम्दा
ReplyDeleteशुक्रिया !
ReplyDeleteस्वयं को कब तक छलेंगे!
ReplyDeleteताउम्र स्वयं से प्रश्न करता हुआ स्वयं से ही झूझता रहता है इंसान!
सशक्त भावाभिव्यक्ति.
आचरण की रूपरेखा,
ReplyDeleteमात्र वाक्यों में सजाकर,
कर्म की कमजोरियों को,
भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।-----
जीवन की सच्चाई
सकारात्मक सोच की रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है इसको भी पढें इसको भी
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
बोल दे निश्चित स्वरों में,
ReplyDeleteस्वयं को कब तक छलेंगे?
जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे
Isee prashn ka uttar kojana hoga sab ko.
a question that bothers everyone but makes sense to very few
ReplyDeleteकाश यह प्रश्न हम सभी के जीवन में उभरे .
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