27.4.13

और कब तक

लम्बी कितनी राह चलेंगे,
कब घर का आराम मिलेगा?
कब तक सूखे चित्र बनेंगे,
रंग कब चित्रों में उतरेगा?
कब विरोध के मेघ छटेंगे,
कब भ्रम का अनुराग तजेगा?
स्वप्नों में कब तक जागेंगे,
कब सच को आकार मिलेगा?

आचरण की रूपरेखा,
मात्र वाक्यों में सजाकर,
कर्म की कमजोरियों को,
भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
बोल दे निश्चित स्वरों में,
स्वयं को कब तक छलेंगे?
जीवनी से विमुख होकर,
और कितना हम चलेंगे?

43 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  2. बहुत बढ़िया,उम्दा भाव अभिव्यक्ति!!! ,

    Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

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  3. सधे शब्दों में गहरी सीख ..... काश हम अब भी चेत जाएँ .....

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  4. शब्दों की आड़ में करम कब तक छिपेंगे ...
    बहुत बढ़िया !

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  5. जो स्वयं को छलना छोड़ दे वह तो तपस्वी हो गया ।

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  6. सही मनन है ...

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  7. बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति,आभार.

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  8. बोल दे निश्चित स्वरों में,
    स्वयं को कब तक छलेंगे?
    जीवनी से विमुख होकर,
    और कितना हम चलेंगे?
    बेहद गहन एवं सशक्‍त भाव ....
    सादर

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  9. आचरण की रूपरेखा,
    मात्र वाक्यों में सजाकर,
    कर्म की कमजोरियों को,
    भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
    बोल दे निश्चित स्वरों में,
    स्वयं को कब तक छलेंगे?
    जीवनी से विमुख होकर,
    और कितना हम चलेंगे?

    अपने स्वरूप को खंगालती रचना -

    क्या मैं यहाँ छल करने आया हूँ वह भी किसी और के साथ नहीं खुद के ,औरों को आप छल नहीं सकते ,खुद छलावे में रह जाते हैं फरेब के, देह अभिमानी बनके अपने अहंकार में हैं हम। अब समय है आत्माभिमानी बन के खुद को

    शुद्ध बना ने का .सार्थक आत्मालोचन कराती रचना .

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  10. सहने की भी सीमा होती है ... सुंदर

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  11. छल हम किसी और से नहीं बल्कि स्वयं से ही करते हैं ......!!गहन अभिव्यक्ति ....!!

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  12. बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति,अपने स्वरूप को खंगालती रचना।

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  13. बहुत उम्दा ..तस्वीर भी बहुत कुछ बोल रही है

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  14. बहुत ही सुन्दर रचना ।

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  15. मन का दर्द उभर आया है।

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  16. "लम्बी कितनी राह चलेंगे,
    कब घर का आराम मिलेगा?"
    "जीवनी से विमुख होकर,
    और कितना हम चलेंगे?"
    सुंदर पंक्तियाँ

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  17. आज के मनुष्‍य और उसके मुखौटे का वार्तालाप।

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  18. सत्य से तो साक्षात्कार करना ही पड़ेगा।

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  19. मन की अभिव्यक्ति सब कुछ सामने रख देती है, उससे कुछ नहीं बचता.

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  20. मन के भावों को बहुत सुन्दरता से उकेरा..आभार

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  21. लंबा सफर है...


    सुंदर कविता.

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  22. स्वयं को कब तक छलेंगे?
    यक्ष प्रश्न

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  23. 'ऊहापोह' की स्थति कहें या 'किंकर्तव्यविमूढ़' की !!

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  24. भटकन बहुत मुखर हो रही है .....

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  25. स्वयं को कबतक छलेंगे?- बहुत ही उपयुक्त प्रश्न और बहुत ही उम्दा ढंग से आपने पूछा

    -Abhijit (Reflections)

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  26. यह जीवन ऐसे ही चलेगा।

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  27. जीवनी से विमुख होकर,
    और कितना हम चलेंगे?

    यह परीक्षा तो सदिअव चलनी है. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  28. आचरण की रूपरेखा,
    मात्र वाक्यों में सजाकर,
    कर्म की कमजोरियों को,
    भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।
    बोल दे निश्चित स्वरों में,
    स्वयं को कब तक छलेंगे ..

    अगर ये मुखोटे उतार दोगे तो न जाने कितने शर्मसार हो जाएंगे ...
    इमानदारी को तलाशती रचना ..

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  29. बहुत ही सशक्त छान्दसिक कविता |आभार

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  30. जब तक अपने आत्म स्वरूप (मैं कौन हूँ )की पहचान नहीं होगी कर्म भी विकर्म ही रहेगा .इसे ही अकर्म बनाना है .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .विकर्म का फल भोग है अकर्म का आगे फल नहीं है .वहां सिर्फ सुख है .विकर्म की सजा जेलों का तीर्थ तिहाड़ है आज नहीं तो कल कल नहीं तो परसों (अगले जन्म में ).सजा तो मिलेगी जब तक कर्मों को दिशा न मिलेगी .दिग्भ्रमित रहेगा मनुष्य जीवन .

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  31. वाह!

    चलते-चलते सोच रहा हूँ
    कितनी दूर अभी है चलना!
    मन की प्यास हिरण का छलना
    कितना कुछ बाकी है सहना!

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  32. जरा रूककर यही तो सोचने की आवश्यकता है..

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  33. आखिर कब तक ????? फिर भी चलना ही जीवन है .... सार्थक प्रश्न करती सुंदर रचना

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  34. जीवन की सार्थकता को खोजती कविता ।

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  35. चलते तो रहते ही हैं. सच जानकार , कभी जानकार भी अनजान बनकर.

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  36. बहुत सुन्दर .... अद्भुत लेखन ... उम्दा

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  37. शुक्रिया !

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  38. स्वयं को कब तक छलेंगे!
    ताउम्र स्वयं से प्रश्न करता हुआ स्वयं से ही झूझता रहता है इंसान!
    सशक्त भावाभिव्यक्ति.

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  39. आचरण की रूपरेखा,
    मात्र वाक्यों में सजाकर,
    कर्म की कमजोरियों को,
    भ्रंश तर्कों में छिपाकर ।-----
    जीवन की सच्चाई
    सकारात्मक सोच की रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है इसको भी पढें इसको भी
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  40. बोल दे निश्चित स्वरों में,
    स्वयं को कब तक छलेंगे?
    जीवनी से विमुख होकर,
    और कितना हम चलेंगे


    Isee prashn ka uttar kojana hoga sab ko.

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  41. a question that bothers everyone but makes sense to very few

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  42. काश यह प्रश्न हम सभी के जीवन में उभरे .

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