सागर की लहरों में खेलना किसे नहीं भाता है, विशेषकर जब लहरें आपके आकार की आ रही हों। खेल का रोमांच भी वहीं पर होता है, जहाँ पर तनिक जूझना पड़े, जहाँ पर तनिक अनिश्चितता हो। एकतरफा खेल बड़े ही नीरस होते हैं, न देखने में सुहाते हैं और न ही खेलने में।
सागर में उठी किसी भी हलचल को अपना निष्कर्ष पाना होता है, यह हलचल लहरों के रूप में बढ़ती है, ये लहरें किनारे की ओर भागती हैं, यथाशीघ्र। भाग्यशाली लहरों को किनारा शीघ्र मिल जाता है, वे अपनी हलचल में संचित ऊर्जा किनारे पर लाकर पटक देती हैं। जो लहरें सागर के बीचों बीच होती हैं, उन्हें किनारा पाते पाते बरसों लग जाते हैं, वे लहरें अपनी हलचल अपने में समाये रखती हैं, निष्कर्ष को तरसती रहती हैं।
देखा जाये तो मन भी बहुत कुछ सागर की तरह ही होता है, गहरा भी, हलचल भरा भी। न जाने कैसे कोई हलचल उठती है और बनी रहती है, जब तक निष्कर्ष न पा जाये। किनारे व्यक्त जगत है और लहरों का किनारों पर पहुँच जाना अभिव्यक्ति जैसा। किनारे लहरों की अभिव्यक्ति के साक्षी होते हैं और जगत हमारे मन की अभिव्यक्ति का। सागर रत्नगर्भा है, मन में भी विचारों के रत्न छिपे हैं। दोनों के बीच इतना साम्य छिपा है कि नियन्ता की निर्माणशैली में दुहराव सा दिखने लगता है, लगता है कि ईश्वर अलसा गया होगा, जब मन बनाने की बारी आयी तो उसे सागर का रूप दे दिया।
सागर किनारे बैठा हूँ, एक लहर आती है, थोड़ी देर बाद दूसरी। अन्दर का सागर स्थिर सा लगता है पर हलचल बनी रहती है। जलराशि किनारे की ओर आती है, सहसा उसे धरती मिलती है। जहाँ घरती पर संपर्क होता है वह जलराशि वहाँ रुक धरती से बतियाने लगती है, उसके उपर की हलचल चढ़कर आगे निकलना चाहती है, वह आगे की घरती का आलिंगन करने की शीघ्रता में है। एक के बाद एक परत बनती है, उसे उछाल मिलता है, जब तक उठ सकती है, उठती है और जब अव्यवस्थित हो जाती है तो टूट जाती है, फेन बन स्वयं को अभिव्यक्त कर देती है, किनारे में आ समाहित हो जाती है।
कुछ लिखने बैठता हूँ तो विचार भी सागर की लहरों की तरह दौड़े चले आते हैं, कभी सधे सधाये और कभी अनियन्त्रित और अव्यवस्थित, अन्ततः समुचित शब्दों का आकार पा वापस चले जाते हैं, किसी आगामी लहर का साथ देने, आगामी विचार के साथ।
कभी मन के अन्दर जाकर उससे जूझने का प्रयास किया है? अवश्य ही किया होगा, बिना मन से जूझे भला कहाँ कुछ सार्थक निकलता है? जैसे खेल का आनन्द बराबरी वाले से खेलने में आता है, वैसे ही जीवन में अमृत बिना मन मथे आता ही नहीं, ठीक उसी तरह जिस तरह सागर मथा गया था। चाह तो सदा अमृत की ही रहती है, साथ में विष आदि भी आते ही रहते हैं।
बच्चों को देख रहा हूँ, कमर तक की ऊँचाई में खड़े हैं, और आगे जाने के लिये मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। लहरें पीछे से आ रही हैं, कंधे तक ऊँची, उछलते हैं सर बाहर निकाले रहने के लिये, लहरों के जोर से थोड़ा किनारों तक बढ़ जाते हैं, लहरें वापस चली जाती हैं, पुनः खड़े हो जाते हैं, स्थापित से, आगामी लहर की प्रतीक्षा में। मेरी ओर पुनः निहारते हैं, उन्हें लगता है कि आगामी लहर और ऊँची होगी, और ऊर्जा से भरी होगी, सर के ऊपर से निकल जायेगी, हो सकता है कि किनारे पर भी पटक दे।
बच्चों की आतुरता देखी नहीं जाती है और मैं भी अन्दर चला जाता हूँ, बच्चों को थोड़ा और गहरे में ले जाता हूँ। एक बार निश्चिन्तता आ जाती है तब कहीं जाकर प्रारम्भ हो जाता है खेल का आनन्द। निश्चिन्तता इस बात की कि कोई न कोई है साथ में जो लहरों से ऊँचा और सशक्त है, निश्चिन्तता इस बात की भी कि लहर आयेगी और फिर वापस चली जायेगी, कुछ भी स्थायी नहीं रहेगा। हम तब खेल खेलने तैयार हो जाते हैं।
हर लहर ऊँची नहीं होती, पर हर दस लहरों में एक या दो ऊँची आती हैं, सर के ऊपर और अस्थिर करने की ऊर्जा समेटे। विज्ञान भी नहीं बता पाता कि कौन सी लहर भीषण होगी? हर ऊँची लहर घातक नहीं होती, जो लहर अपना स्वरूप बना कर रखती है, वह आपको ऊपर उछाल देती है, आपको उतराने का आनन्द आता है, आपका अहित नहीं करती है। ऐसी आनन्ददायक लहरों का नाम बच्चों ने 'फन वेव' दिया, आशय आनन्द देने वाली लहरें। जो लहरें आपके पास आने के पहले ही टूट जाती हैं, वे अपनी ऊँचाई और ऊर्जा संरक्षित नहीं रख पाती हैं और जल को श्वेत फेन सा कर के चली जाती हैं, वे थोड़ा विराम भर देती हैं। पर कठिन वे लहरें होती हैं जो ऊँची भी होती हैं और आपके पास आकर टूटती हैं, ये आपको न केवल एक थपेड़ा सा मारती हैं वरन बहुधा आपको पटकनी देकर गिरा भी जाती हैं, इन लहरों को बच्चों ने 'हिट वेव' का नाम दिया।
हम लोगों में यह बताने की प्रतियोगिता थी कि आने वाली लहर फन वेव होगी या हिट वेव। फन वेव में बच्चे मुक्त रहते थे, हिट वेव में आकर चिपट जाते थे या हाथ पकड़े रहते थे। थोड़ा आगे चले जायें तो यही हिट वेव फन वेव बन जाती हैं। बच्चों के साथ यह खेल खेलता रहा, लहरें भी खिलाती रहीं, तब तक, जब तक थक नहीं गये। बाहर निकल आये तब भी लहरों की ध्वनियाँ आकर्षित करती रहीं, पुनः वापस बुलाने के लिये।
सागर को भी ज्ञात है, मन को भी ज्ञात है कि लहरों का और विचारों का एकांगी स्वरूप किसी को नहीं भाता है, विविधता सोहती है, अनिश्चितता मोहती है। फन वेव भी रहेगी, हिट वेव भी रहेगी, सर के तनिक ऊपर और आपसे तनिक सशक्त, जूझना पड़ेगा ही, जीवन का आनन्द उसी से परिभाषित भी है। साथ यह भी समझना होगा, या तो लहर के इस पार रहें या उस पार, लहरों का टूटना संक्रमण है और जो भी संक्रमण झेलता है उसे सर्वाधिक कष्ट होता है।
मन के बारे में थोड़ा और समझना हो तो सागर की लहरों से खेल कर देखिये, बाहर निकलने के बाद आप अपने से और अधिक परिचित हो जायेंगे।
ये तो है, फन और हिट का चक्कर तो आदमी के साथ भी लगा ही रहता है.
ReplyDeleteलहर दर्शन!! इसीलिए मन के विचारों को लहरों की उपमा मिलती है.
ReplyDeleteकिनारे की लहरें जो निष्कर्ष को प्राप्त होती हैं उनके पीछे भी बीच की लहरों की ऊर्जा का योगदान रहता है।
ReplyDeleteफ़न वेव का आकर्षण इसीलिये क्योंकि कुछ हिट बेव हैं वहां!
दूरी और टाईमिंग का ही फ़र्क है ’फ़न-वेव’ और ’हिट-वेव’ में
ReplyDeleteपरन्तु कुछ 'लहरें' तो बस 'चन्द्रमा' की प्रतीक्षा में ही रहती हैं .....क्योंकि उथल पुथल तो बस उसी के सहारे होती है ।
ReplyDeleteसमुद्र किनारे बैठकर लहरें देखकर ही निर्मल आनंद आ जाता है।
ReplyDeleteमन के समंदर में अच्छा गोता लगाया है।
...सागर किनारे बहुत कुछ मन के किनारे भी लग जाता है !
ReplyDeleteSundar
ReplyDeleteअंतस में भी यही लहरे इन्हीं रूपों में अटखेलियां करती रहती हैं, आपमें मन के उदगारों को शब्द देने की असीम महारत है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हमें हिट वेव से सावधान रहना होगा ..
ReplyDelete"जो लहरें सागर के बीचों बीच होती हैं"-यही एक दिन सुनामी बनती हैं!
ReplyDeleteअच्छी अनालोजी !
सागर में जाने का रोमांच अनोखा होता है लेकिन सावधानी की भी आवश्यकता रहती है।
ReplyDeleteजी भर खेलें , जियें
ReplyDeleteबस , हिट वेव से सतर्क रहना ज़रूरी है... सुंदर विवेचन
रोमांचक सुंदर प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteकोई न कोई है साथ में जो लहरों से ऊँचा और सशक्त है.............और यही जीवन में भी खोजते हैं हम ....
ReplyDeleteमन की थाह और सागर की गहराई
ReplyDeleteकभी समझ न आई .....
निश्चिन्तता इस बात की कि कोई न कोई है साथ में जो लहरों से ऊँचा और सशक्त है, निश्चिन्तता इस बात की भी कि लहर आयेगी और फिर वापस चली जायेगी, कुछ भी स्थायी नहीं रहेगा। हम तब खेल खेलने तैयार हो जाते हैं।
ReplyDeleteसुन्दर तरंगित आलेख ....जीवन दर्शन भी दे रहा है ....!!
अनियंत्रित लहरों को साधना आप बाखूबी जानते हाँ .... तभी तो सतत इतना अच्छा लेखन आता रहता है ...
ReplyDeleteफन वेव , हिट वेव के बहाने बढ़िया चिंतन
ReplyDeleteआज तो मेरी पसंद के विषय पर चिंतन कर लिया आपने.
ReplyDeleteसागर और उसकी लहरें आह हा ..सम्पूर्ण जीवन दिख जाए जो देखो.
लहरों से खेल तो अनगिनत लोग खेलते हैं किनारे बैठकर गौर से उन्हें देखते भी हैं किन्तु आप जैसी चिंतन शैली को मन-मस्तिष्क में रखकर कितने लोग इन हिट वेव या फन वेव को जीवन या लेखन के प्रेरणास्वरुप में महसूस पाते होंगे ।
ReplyDeleteएक ही बात- बहुत उत्तम श्रेणी का चिंतन. वाह...
स्व को पहचानने का असरदार तरीका!
ReplyDeleteईश्वर अलसा गया होगा, जब मन बनाने की बारी आयी तो उसे सागर का रूप दे दिया..................मन और लहर का विचित्र समागम जिया है।
ReplyDeleteआपमें मन के उदगारों को शब्द देने की असीम महारत हासिल है,बहुत बहुत शुभकामनाएं एंव आभार।
ReplyDeleteलहरों के साथ - उनकी बात समझने जैसा!!
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन गुरु और चेला.. ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteलहरें आती रहती हैं, सागर में और जीवन में भी...कुछ फन वेव कुछ हिट वेव, लेकिन दोनों का ही सामना एक अनोखा आनंद और रोमांच देता है...
ReplyDeleteजीवन में लेहरें आती हीं हैं
ReplyDeleteअगर लहर न हो तो हम जीवन के संघर्षों को समझ ही नहीं पायेंगे
जीवन को समझने के लिये लहरों से दोस्ती करना ही पड़ेगी-----
गजब का आलेख
बधाई
लहरों संग खेलना मुझे भी पसंद है..'हिट वेव' के आते ही किनारे की तरफ भागते हैं!वह हमारे पीछे -पीछे .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हुज़ूर | लहरों में खेलने का अपना ही आनंद और रोमांच है | आभर
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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समुद्र की लहरें जाने कितनी बार बिम्ब के रूप में होती है , मन में उठे विचारों की श्रृंखला हो या जीवन या फिर जीवन में आने जाने वाले इंसान , पल आदि आदि .
ReplyDeleteहिट और फन वेब जीवन के दो पहलू !
विचार भी सागर की लहरों की तरह दौड़े चले आते हैं, कभी सधे सधाये और कभी अनियन्त्रित और अव्यवस्थित, अन्ततः समुचित शब्दों का आकार पा वापस चले जाते हैं, किसी आगामी लहर का साथ देने, आगामी विचार के साथ। ....बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमन आख़िर मन है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सागर दर्शन ..
ReplyDeleteआपका दार्शनिक मुद्रा में लिखे लेख बहुत सागर की गहराई लिए होते हैं, जो मन में सीधे अपनी पैठ बना लेते है ...
आपके लेख पढ़कर गर्मी के मारे अपना मन भी बच्चों के साथ भागने लगा है सागर के ओर....पर क्या करे ...
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ReplyDeleteसागर को भी ज्ञात है, मन को भी ज्ञात है कि लहरों का और विचारों का एकांगी स्वरूप किसी को नहीं भाता है, विविधता सोहती है, अनिश्चितता मोहती है।
सागर की तरह ही मन में भी उठती हैं हिट वेव और फन वेव .... बहुत खूबसूरती से लिखा है लेख ....
मन और समुद्र दोनों में बहुत समानता है -दोनों चन्द्रमा से प्रभावित होते हैं. सागर की लहरों जैसा संचालित होता रहता है मन ,थिरता नहीं कभी.
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ReplyDeleteमन में आकांक्षाओं का सागर हिलोरे ले रहा है....
ReplyDelete............
एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!
सही .....मन आकांक्षाओं का सागर है अनियमित ....विचारों का नहीं जो नियमित एवं निश्चित होते हैं...
Deletelahron ke sath bahne lagi is mann ki udaan .......
ReplyDeleteसही रहा चिन्तन का यह अंदाज भी..फन और हिट वेव के माध्यम से....
ReplyDeleteसुन्दर फन..
ReplyDeleteवास्तव में मन की गहराई सागर से भी गहरी है ।
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