जितने लोग भी गोवा आते हैं, अधिकांशतः उत्तर दिशा से अवतरित होते हैं और वहीं से ही घूम कर चले जाते हैं। हम भी कोई अपवाद नहीं, ६ बार जा चुके हैं, या तो उत्तर दिशा से गये या पश्चिम दिशा से। पूर्व से जा नहीं सकते, रह जाता है दक्षिण। जब इतनी तरह से गोवा देख लिया तो इस बार सोचा कि दक्षिण से गोवा देख लिया जाये।
अब तीन प्रश्न स्वाभाविक हैं। पहला कि गोवा में ६ बार देखने के लिये क्या है, दूसरा कि अप्रैल का प्रथम सप्ताह क्या थोड़ा गरम नहीं रहता है और तीसरा कि गोवा तो गोवा है, उत्तर से उतरें या आसमान से, उसमें क्या विशेष है? तीनों प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर मुझे एक दिन में नहीं मिला है, पहले प्रश्न के उत्तर में २२ वर्षों का कालखण्ड छिपा है, दूसरे प्रश्न के उत्तर में ३ वर्षों का और तीसरे प्रश्न के उत्तर में ३ दिन का।
पहली बार गोवा गया था तो १८ वर्ष का था, मित्रों के साथ था और उस समय वहाँ की उन्मुक्त संस्कृति देखने की उत्सुकता ही प्रबल थी। मित्रों के वर्णनों ने उसे स्वर्ग से टपका हुआ टुकड़ा सिद्ध कर दिया था। उस बार की यात्रा में तो हम सब बस उसी टुकड़े को ढूढ़ने में हर बीच पर भटके। अतिश्योक्ति को सिद्ध करने में कई दिन लगे पर भटकन के बाद जो थकान हुयी, उसे मिटाने के लिये सागर के अन्दर एक बार जाना ही पर्याप्त था। लहरों पर उतराने में जो आनन्द आया वह बीचों पर ललचायी दृष्टियों के सुख से कहीं अधिक ठोस था। पहले पहल लहरों के थपेड़े ये बताने में प्रयासरत रहे कि मूढ़ कहाँ छिछले में खड़ा है, छिछले में लहरें भी टूटती हैं और आशायें भी। टूटी लहरें भी आपको चोट पहुँचाती हैं और टूटी आशायें भी। लहरों के थपेड़ों ने और अन्दर आने के लिये उकसाया, जहाँ लहरें टूटती नहीं थीं वरन डुलाती थी, ऊपर नीचे, आनन्द में। एक मित्र के साथ अन्दर तक गया, लहरों पर आँख बन्द कर लेटा रहा, कान पानी के अन्दर और कानों में मानों लहरों के स्वर गूँज रहे हों, ऊँची आवृत्ति में सागर के शब्द, स्पष्ट और अद्भुत। आँखों के सामने दिखता सूर्यास्त, लाल आकाश, बादलों पर छिटके लालिमा के छींटे, ध्यानस्थ, जलधिमग्न, निर्विकार, अप्रतिम अनुभव था वह।
मित्रों का स्वर्ग ढूढ़ने आया था और अपना स्वर्ग पा लिया। उसके बाद जब भी कोई आग्रह आया, ठुकरा नहीं पाया, कुछ वर्षों बाद जब भी कुछ समय बिताने का अवसर मिला, गोवा याद आया। अब बीच पर सीमायें तोड़ती संस्कृतियाँ आकृष्ट नहीं करती, अब तो आकृष्ट करती हैं वे सीमायें, जहाँ पर सागर और आकाश आपस में एक दूसरे में विलीन हो जाना चाहते हैं, अनन्त की खोज में। कितना अजब संयोग है, सागरीय और आकाशीय अनंत के एक और मूर्धन्य उपासक को इस बार ही जान पाया, गोवा से मात्र ६० किमी दूर, कारवार में, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को। यहीं पर ही उन्हें प्रकृति में कल्पना का अनन्त मिल गया, डूब जाने के लिये, समा जाने के लिये।
धीरे धीरे गोवा-भ्रमण की संख्या बढ़ने लगी। साथ में ही बढ़ने लगा सागर के किनारों पर अन्तहीन और ध्येयहीन भ्रमणों का क्रम। अब किसी से कहेंगे कि अनन्त ढूढ़ने जाते हैं गोवा हर बार, तो कौन आपको गम्भीर समझेगा। धीरे धीरे हमारा कारण गौड़ हो चला है क्योंकि हमारे बच्चों को पानी की लहरों से खेलना भाने लगा है। लहरों का आना, हर बार नये रूप से, हर बार नयी शक्ति से, हर बार नयी ऊँचाई लेकर, यही विविधता बच्चों को भाती है, न केवल भाती है वरन थका भी देती है, पर न बच्चे हारते हैं और न ही लहरें, दोनों के अन्दर अनन्त की शक्ति, दोनों के अन्दर अनन्त का उत्साह। खेल बस अगली बार के लिये टल जाता है, अनिर्णीत। खेलते रहने के लिये और अगली बार आने के लिये एक और गोवा यात्रा।
बच्चों को ही नहीं, लहरों से हमारा भी जुड़ाव विशेष है। लहरों का बनना, सर्प से फँुफकारते बढ़ना, फेन उगलना, किनारों पर नत होकर वापस चले जाना और फिर आना। न जाने पृथ्वी से भावों की क्या तीक्ष्णता है कि जिसका फल किनारों को चूर चूर होकर देना पड़ता है। लगता है पृथ्वी का रूप धर लेना, न सागर को भाया और न ही आकाश को, उसका दण्ड भुगतते हैं किनारे, रेत रेत, चूर चूर। लहरों की जीवटता भाती है, लगातार तब तक आती हैं जब तक आप थक कर चूर न हो जायें। ऊर्जा लेकर वापस आयें तो पुनः उपस्थित, आपको थकाने के लिये। जीभर खेलिये, थकिये, सो जाईये, पुनः आईये, पर निराश मत होईये। आप चाहें न चाहें, जीवन में भी सुख दुख ऐसे ही अनवरत आते रहेंगे, उन्हें स्वीकार कर लीजिये, हर बार और तैयार हो जाईये अगली बार के लिये। दर्शन के ऐसे ही न जाने कितने ही अध्याय दिखते हैं सागर की लहरों में।
सागर के प्रति प्रेम और गोवा के साथ बढ़े परिचय में ही छिपा है दूसरे प्रश्न का उत्तर। भीड़ में अनन्त की उपासना बाधित होने लगती है, सागर का अनन्त मानव-समुद्र के अनन्त से बाधित हो जाता है। कई बार दिसम्बर में गया हूँ, मानवों का आनन्द देखा है वहाँ, सागर का अनन्त भूलने सा लगता है उस कार्निवाल में। दर्शनीय स्थल तो पहली बार में ही देख डाले थे, उनके लिये दिन का वातावरण सुहावना होना अच्छा था। अब तो सागर से साक्षात्कार का समय है, अनन्त की उपासना के लिये सुबह और सायं का वातावरण सागर स्वयं ही सुहावना बना देता है। सुबह और सायं सागर की लहरों पर उच्श्रंखल विनोद, दोपहर और रात को निद्रा निमग्न थकी काया। अब रहा मानसून का समय, उस समय तो सागर अपने ही संवाद में रत रहता है, बूदों की टप टप, टिप टिप और अथाह जलराशि का मिलन। वही समय होता है जब मछलियाँ अपनी जनसंख्या बढ़ाती हैं। उस समय सबकी मनाही होती है, हम भी उस समय कभी नहीं गये। पिछले तीन वर्षों में ही जाना कि मानसून के अतिरिक्त कभी भी गोवा जाया जा सकता है।
इस बार विचार किया कि गोवा को दक्षिण दिशा से देखा जाये, कारण कुछ सहकर्मियों के अनुभव थे, जिन्होने इस यात्रा को बहुत मनोरम बताया था। कार्यक्रम बना कि बंगलोर से मंगलोर होते हुये उडुपी पहुँचा जाये, वहाँ पर श्रीमाधवाचार्य स्थापित श्रीकृष्ण मंदिर में दर्शन, वहाँ से मरवन्थे बीच, मुरुडेश्वर, गोकर्णा और कारवार होते हुये गोवा। सबका अपना समर्थ इतिहास है और जितना पुरातन है उतना रोचक भी है। उन सबके बारे में विस्तृत वर्णन धीरे धीरे शब्द पाता रहेगा, पर एक ओर से सड़क मार्ग और दूसरी ओर से रेलमार्ग में कोंकण की जो झलक मिली है, उससे मन आनन्दित हो गया। कोंकण क्षेत्र मुम्बई के पश्चात थाने से प्रारम्भ होकर मंगलोर तक फैला है, दक्षिण कोंकण देख कर उत्तर कोंकण के सौन्दर्य की कल्पना करना कठिन नहीं है।
तीन दिनों की यात्रा ने इस प्रश्न का उत्तर भी दे दिया कि गोवा के दक्षिण में भी बहुत कुछ देखने को है। अनन्त और असीम का जो आनन्द गोवा के सागर में है, वैसा ही आनन्द गोवा के दक्षिण में स्थित बीचों में भी है, यदि वहाँ नहीं मिलेगी तो चहल पहल और भीड़। निश्चय ही जिन लोगों का सुख भीड़ के साथ परिभाषित होता है, उन्हें वहाँ उतना आनन्द नहीं आयेगा, पर जो एकान्त, अनन्त, प्रकृति के उपासक है, उन्हें ये सारे स्थान बहुत भायेंगे। मुझे आशा है कि आप अगली बार जब भी गोवा आयेंगे, एक पग दक्षिण की ओर भी बढ़ायेंगे।
गोवा के समृद्ध इतिहास ,भूगोल ,समुद्र की रम्यता सबको आपकी रोचक लेखन शैली में पढ़ना अच्छा लगा |आभार सर |
ReplyDeleteगोवा की खूबसूरती के तो क्या कहने . कारवार बीच भी एक सुखद स्मृति में है .
ReplyDeleteबेहद सुंदर है गोवा , बापस आने का दिल ही नहीं करता !
ReplyDelete@पहली बार गोवा गया था तो १८ वर्ष का था, मित्रों के साथ था और उस समय वहाँ की उन्मुक्त संस्कृति देखने की उत्सुकता ही प्रबल थी। मित्रों के वर्णनों ने उसे स्वर्ग से टपका हुआ टुकड़ा सिद्ध कर दिया था।
ReplyDeleteअधिकतर गोवा यात्री स्वर्ग से टपका हुआ टुकड़ा जान कर ही पहुंचते हैं। फ़िर दो-चार बार की यात्रा अनुभव के पश्चात व्यक्ति वानप्रस्थ वाली लय प्राप्त कर लेता है। आसक्ति से विरक्ति की ओर चल पड़ता है। आपके अनुभव ने इस यात्रा को नया दृष्टिकोण दिया।
सागर तट जितने भीड़-भाड़ रहित होंगे उतने ही मन को छूते हैं। मेंगलोर में ऐसे ही एक तट पर हम गए थे, बस हम थे और था समुद्र।
ReplyDeleteगोवा दर्शन आपके नजरिये से ज्ञानवर्द्धक रहा । धन्यवाद...
ReplyDeleteप्रकृति मौका देती हैं अपनी अन्दर की प्रकृति को जानने का, अक्सर चुक जाते है।
ReplyDeleteजल्दी ही प्लान करता हु
जाना हुआ है गोवा है , सच में एक सुंदर अनुभव है वहां जाना....
ReplyDeleteप्रकृति के समीप जाना हमें भी पूर्णता देता है
गोवा दर्शन की बहुत प्रभावी प्रस्तुति !!! आपकी द्वारा रोचक लेखन शैली में पढ़ना अच्छा लगा,आभार प्रवीण जी,,
ReplyDeleterecent post : भूल जाते है लोग,
गोवा दर्शन आपके नजरिये से ज्ञानवर्द्धक रहा । धन्यवाद...
ReplyDeleteरोचक, उल्लसित, ऊर्जावान, आनंदप्रदायी गद्य. चित्रों के शीर्षक भी गागर में सागर जैसे...
ReplyDeleteआपकी कलम से गोवा के बारे में जानकर एक पुन: मन को भा गई यह प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteवाकई गोवा निराला ही है. इस बार हम भी जायेंगे अगस्त में.
ReplyDeleteपहले पहल लहरों के थपेड़े ये बताने में प्रयासरत रहे कि मूढ़ कहाँ छिछले में खड़ा है, छिछले में लहरें भी टूटती हैं और आशायें भी। टूटी लहरें भी आपको चोट पहुँचाती हैं और टूटी आशायें भी।अती सुन्दर यायावरी वृतान्त
ReplyDeleteअनन्त एवं असीम का अदम्य उत्साह एवं ऊर्जा निश्चय ही उल्लेखनीय है। मैं दक्षिण के लिए अर्थात बिना भीड़ के तटों पर विचरण का पक्षकार हूँ। आपकी यात्रा से लहरों की तरह जुड़ गया हूँ, ऐसा लगा।
ReplyDeleteलहरों की तरह यादें, दिल से टकराती हैं, तूफान उठाती हैं, लहरों की तरह यादें................... आपके प्रत्युत्त्ारों हेतु धन्यवाद।
Deleteक्षमा याचक हूँ। चित्रों के बारे में कुछ कह ही नहीं पाया। चित्र अत्यन्त दार्शनिक स्थिति में लिए गए हैं। बहुत ही आकर्षक।
Deleteसरलता ,रोचकता के बीच दार्शनिक पुट आपके गद्य को आवश्यक रूप से पठनीय बनाते हैं ।
ReplyDeleteरोचक शैली में गोवा को बयाँ किया है ...
ReplyDeleteहमने तो बहुत साल पहले बस समुद्र का इलाका ही देखा था ... अब मौका मिला तो उअर कोण से देखेंगे ..
दर्शन की शब्दावली में व्यक्तिगत अनुभव प्रकृति का सामीप्य, सुख लहरों पे खुद को उन्मुक्त छोड़ने का सुख सभी कुछ परोस दिया है आपने इस पोस्ट में एक टूरिस्ट गाइड की मानिंद .चीनी विलोभ ,चीनी की माया पर विस्तृत पोस्ट कई किश्तों में चलेगी .बच्चों को ज़रूर पढ़ वाइयेगा .शुक्रिया .
ReplyDeleteगोवा का बहुत सुन्दर चित्रण .... ६ बार हम तो अभी तक एक बार भी नहीं ..बस सुन-सुनकर, पढ़कर उत्सुकता जाग उठती है .... ममेरा भाई है गोवा में बहुत कहता है आ जाओ कभी घुमने लेकिन समय का टोटा .....फ़िलहाल देखा-पढ़ा मन को अच्छा लगा ...
ReplyDeletegoa ki khubsurti aapke shabdo me dekhna achchha laga......
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
बहुत प्रभावी प्रस्तुति,आभार प्रवीण जी।
ReplyDeleteगोवा पढने की नहीं , देखने की चीज़ है। फोटो और लगाइए , छुपा कर मत रखिये। :)
ReplyDeleteयाद ताज़ा हो गई।
ReplyDeleteसुंदर यात्रा-वृतांत,जो सागर की लहरों से होकर,
अध्यातम तक पहुंच गया.गोवा दर्शन कराने
के लिये धन्यवाद.
अतिशय मोहक वर्णन
ReplyDeleteसुंदर यात्रा-वृतांत आभार प्रवीण जी।
ReplyDeleteयूं ही जाते रहें बार बार लगातार-गोवा.
ReplyDeleteगोवा को देखने का यह अन्दाज़ गोवा को नवीनता प्रदान कर रहा है!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteदक्षिण की ओर ही पग बढ़ायेंगे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
सागर-तट अनन्त की लहरों में उमड़ता बाहर और भीतर के असीम को टेर कर जगा देता है,
ReplyDeleteऔर मुक्त सागर की तो बात ही क्या!
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 13/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteअनंत सागर की अनंत लहरों का आनंद उत्तर से तो हम सब लेते आये है , दक्षिण से भी मिलगया आपके सुन्दर यात्रा वर्णन से -बहुत सुन्दर
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
vastvik saundr ko pahchaana hi aap ne
ReplyDeleteमेरे खयाल से कोंकण तट भारतीय तटीय क्षेत्रों में सबसे सुंदर है. वैसे गोवा पूरब से भी जाया जा सकता है. नव वर्ष की शुभ शुभकामनाएं
ReplyDeleteमैं तो जब मौका मिला तब यहां हो आता हूं
ReplyDeleteकैलंग्यूट बीच मेरा फेवरिट है..
GOA BHI SUNDER, SANSMARAN BHI AUR SHABD ATI SUNDER.
ReplyDeleteआपकी द्रष्टि से गोवा को जज्ञ अच्छा लगा
ReplyDelete...कारवार में मेरा एक शिष्य है। अगर गया तो ज़रूर गोवा का दर्शन-लाभ होगा ।
ReplyDeleteपहले पहल लहरों के थपेड़े ये बताने में प्रयासरत रहे कि मूढ़ कहाँ छिछले में खड़ा है, छिछले में लहरें भी टूटती हैं और आशायें भी। टूटी लहरें भी आपको चोट पहुँचाती हैं और टूटी आशायें भी।
ReplyDeleteलहरों ने सच ही एक सार्थक बात कह दी .... लहरों से जो दर्शन आपने निकाला वह अतुलनीय है ... गोवा गए बहुत साल हो गए अब तो काफी कुछ भूल भी चुके हैं .... आपकी पोस्ट ने कुछ तो पुरानी यादें ताज़ा कर दीं ॰
गोवा हो या अन्य कोई स्थल, उसका आनन्द लेना है तो पद यात्रा वाली घुमक्कड़ी सर्वोत्तम है।
ReplyDeleteगोवा को देखने का नया अन्दाज़। गोवा को नवीनता प्रदान कर रहा है।
ReplyDeleteशैली रोचक। वर्णन मोहक। सब सुंदर।
मुझे गोवा भारत का सबसे सुन्दर तटीय पर्यटन लगा! आपने दृष्टि भेद -नए एंगल से देखने के - बावजूद भी दृश्य भेद नहीं है -वह हर ओर से उतना ही सुरम्य और मनोरम
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ReplyDeleteगोवा की विशेष स्थिति को आपने अनेक कोनों दिशाओं से उजागर किया है .सौन्दर्य आपकी पारखी दृष्टि और नज़रिए में भी है दर्शन में भी ,विश्लेषण में भी .
बहुत रोचक यात्रा-वृत्तांत....कहीं से भी पहुँचिये खूबसूरती आपका इंतज़ार कर रही होती है....
ReplyDeleteअनंत सागर की कथा अनंता.....
सब कुछ बढ़िया। आपकी मुद्रा को छोड़कर। पद्मासन में बैठते तो ज्यादा सहज लगते.
ReplyDeleteसौन्दर्य की यही उपासना सत्य से साक्षात्कार कराती है.
पद्मासन में भी बैठे थे, श्रीमतीजी ने वह फोटो नहीं खींची।
Deleteगोवा का एक अपना आकर्षण है...पर दक्षिण के बीच भी किसी भी तरह सौन्दर्य में कम नहीं, विशेषकर कोवाल्यम बीच..सागर अपने आप में एक अद्भुत आकर्षण रखता है चाहे उसे किसी भी जगह मिलें..
ReplyDeleteगोवा है ही ऐसी जगह जहाँ बार बार जाने को जी चाहे
ReplyDeleteगोवा गए एक दशक से ज्यादा हो गया इसलिए उस यात्रा की सुखद स्मृतियाँ ही शेष हैं। पिछले साल गोआ के उत्तर में दक्षिण महाराष्ट्र के समुद्र तटों पर जाने का मौका मिला था। शांति के साथ सुंदरता ने भी मन मोह लिया था।
ReplyDeleteGoa tops my yet-to-visit list..
ReplyDeletehope I make it soon :)
आपके शब्दों में गोवा वृतांत पढ़ कर बहुत अच्छा लगा पुरानी यादें ताजा हो आई वाटर स्पोर्ट्स बहुत किये वहां सबसे ज्यादा मजा बोट स्कीइंग में आया जो चेलेंजिंग तो था किन्तु गोवा गए और वो सब लुत्फ़ नहीं उठाये तो क्या फायदा आपकी इस पोस्ट ने प्रोत्साहन दिया मैं वो वृतांत अपने अनुभव के साथ लिखूंगी गौवा यात्र तब की थी जब ब्लोगिंग नहीं करती थी किन्तु फोटोग्राफ सब सहेज कर रखे हैं डायरी जो मैं हमेशा मेंटेन करती हूँ उसमे वर्णन भी है बस कभी सोचा नहीं था उसका वर्णन लिखने के लिए अब सोचूंगी प्रवीण जी हम भी बैंगलौर से ही गए थे ट्रेन से । आप यदि अंडमान नहीं गए तो वहां भी जरूर जाइये ।
ReplyDeleteकुछ राह तो और भी होगी..अच्छा अगली बार..
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी
ReplyDeleteआपके नजरिये से आज हमने गोवा भी घूम लिया ...बहुत खूब
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"
गोवा ....कारवाड में समुद्र का विस्तार और नयनाभिराम सौंदर्य ....कल-कल करता समुद्र का नाद ...मन मयूर थिरकने लगता है उस नाद पर ...लेखन पूर्ण जागृत हो मुस्काता है ....
ReplyDeleteयादें ताज़ा हो गयीं हमारी भी ....
आभार .
पुरानी यादें ताजा हो आई
ReplyDeleteaaj hi aapka ye aalekh Hindustan samachar me padha, na daityam na palaynam aur aapka naam dekhkar use padhne ki utsukta badh gayi aur vakai use padhkar Goa ghumne ka man ho chala........... fir aapka blog khangala to yahan Goa ko aur bhi vistarit drishti se dekha aur mahsoos kiya, Goa ko mera salaam! aur Aapko dhanyvaad!!
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