पिछला सप्ताह गूगल के नाम रहा। वैसे तो गूगल का मान कम न था हमारे जीवन में, कई रूपों में उपयोग करते हैं और आगे भी संभवतः करते ही रहेंगे। जीमेल, रीडर और ब्लॉगर, इन तीनों उत्पाद के सहारे इण्टरनेट के समाचार रखते हैं और जितनी संभव हो, उपस्थिति भी बनाये रखते हैं। सब सहज ही चल रहा था, जीवन अपनी लय में मगन था, पर पिछले सप्ताह के घटनाक्रम ने पहली बार इस बात का बलात अनुभव कराया है कि गूगल कितना प्रभाव रखता है, हम सबके जीवन में। यदि गूगल तनिक व्यवसायीमना हो जाये तो हम सबकी क्या दुर्गति हो सकती है, इसकी अनुभूति पहली बार ही हुयी।
एक दिन सुबह उठा तो देखा कि गूगल रीडर में एक सूचना थी कि १ जुलाई २०१३ से गूगल रीडर की सेवायें बन्द हो जायेंगी। मन धक से रह गया, दो विचार आये, पहला कि अब मेरा क्या होगा और दूसरा कि गूगल ने ऐसा क्यों किया? गूगल के बारे में तो बाद में भी सोचा जा सकता था, पर अपने लगभग ६०० से भी अधिक फीड्स की चिन्ता होने लगी कि अब कैसे पढ़ने को मिलेगा ब्लॉगजगत का लेखन। जितने भी ब्लॉगों पर टिप्पणियाँ करता हूँ और जिन पर नहीं कर पाता हूँ, सारे गूगल रीडर के द्वारा ही पढ़ता हूँ। सुविधानुसार पढने के लिये एक अलग स्थान रहता है। जब समय रहता है, मोबाइल में भी पढ़ कर टिप्पणी दे देता हूँ। साथ ही साथ ईमेल में सब्स्क्राइब न करने से ईमेल भी खाली रहता है। गूगल की इस घोषणा से लगा कि कहीं कुछ ढह रहा है और दोषी गूगलजी हैं। थोड़ा विचार और किया तो पाया कि तथ्य कुछ और ही थे। गूगल की कार्यपद्धति तनिक स्पष्ट रूप से समझनी होगी और वे तथ्य भी जानने होंगे जिसके कारण ये सेवायें बन्द हो रही हैं।
जब गूगल ने अक्टूबर १२ में फीडबर्नर की एपीआई बन्द कर दी तो उससे संबंधित गूगर रीडर में होने वाले प्रचार भी बन्द हो गये थे। उसके पहले गूगल रीडर की हर फीड के पहले या बाद में विषय से संबंधित कोई न कोई प्रचार रहता था। प्रचार से होने वाली आय ही गूगल रीडर को जीवित रखे थी। ५ माह पहले प्रचार बन्द हो गये तो संकेत मिल गया था कि अब गूगल रीडर भी बन्द होने वाला है। प्रचार का व्यवधान भले ही हमारा ध्यान बँटाता है पर वही रीडर का प्राण भी था। संभवतः गूगल रीडर के लिये वह मॉडल आर्थिक रूप से हानिप्रद हो, पर गूगल खोज, जीमेल, यूट्यूब और ब्लॉगर में होने वाले प्रचार ही गूगल की आय को साधन हैं। प्रचार उद्योग में माध्यम की पहुँच और उपभोक्ता से संबंधित जानकारी सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है और दोनों ही गूगल के पास अधिकतम मात्रा में है भी।
तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि जितनी भी निशुल्क सेवायें चल रही हैं, उनका भी अन्त गूगलरीडर की तरह हो सकता है। पाठक वर्ग के लिये ब्लॉगर और जीमेल ही मुख्य सेवायें हैं और उन पर विचार आवश्यक है। इस तथ्य को समझना होगा कि गूगल परमार्थ में तो कार्य कर नहीं रहा है, उसका पूरा आधार सीधे प्रचार के आर्थिक पक्ष पर टिका है या उन उपभोक्ता संबंधी सूचनाओं पर टिका है जो आपने निशुल्क सेवा लेते समय गूगल को बता दी है। अब उसे किसी सेवा में उतना प्रचार न मिलता हो या आपके बारे में और आपकी स्पष्ट अभिरुचियों के बारे में सारी सूचनायें उन्हें प्राप्त हो गयी हों तो संभव है कि भविष्य में कोई निशुल्क सेवा समाप्त भी हो जाये। एण्ड्रॉयड और गूगल ग्लास जैसे क्षेत्र, जहाँ पर अधिक धन है और अधिक बौद्धिक क्षमताओं की आवश्यकता है, गूगल के लिये अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। ऐसे और कई क्षेत्रों का सशक्तीकरण निशुल्क सेवाओं को बन्द करके भी किया जा सकता है।
तो क्या भविष्य है, हम सबके लिये। हमें निशुल्क सेवाओं ने कभी सोचने के लिये बाध्य ही नहीं किया था अब तक। पहले गूगल रीडर के किये जाने वाले कार्यों और उपस्थित विकल्पों को समझ लें। हमें यदि कोई ऐसी साइट या ब्लॉग अच्छा लगता है तो हम चाहते हैं कि उसमें होने वाले बदलाव हमें सूचित किये जायें। यह सूचना या तो ईमेल के माध्यम से पायी जा सकती है या फीड रीडर के माध्यम से। फीडबर्नर जैसी सेवाओं के माध्यम से किसी भी साइट या ब्लॉग में होने वाले बदलाव को जाना जाता है और उन्हें एक जगह एकत्र किया जाता है। ऐसा ही संकलन का कार्य गूगल रीडर कर रहा था, अन्यथा अपने ६०० ब्लॉगों में होने वाले बदलावों के लिये ६०० साइट पर जाकर देखना पड़े तो वह किसी के लिये भी संभव नहीं है।
किसी भी ब्लॉग को इस विधि से पढ़ने के लिये हमें दो सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है, फीड का पता लगाने के लिये फीडबर्नर जैसी सेवायें और संकलन कर पढ़ने के लिये गूगल रीडर जैसी सेवायें। याद रहे कि फीडबर्नर भी गूगल के अधिकार में है और बहुत संभव है कि भविष्य में उसकी भी सेवायें बन्द हो जायें। यदि विकल्प ढूढ़ना है तो अभी से ही दोनों का विकल्प ढूढ़ना चाहिये, न कि केवल गूगल रीडर का। जो लोग इस सुविधा में पड़े हैं कि हमारे पास तो ईमेल आ जाता है, उन्हें भी सोचना होगा। संभव है कि भविष्य में कुछ और पैसा बचाने के लिये हर ब्लॉग से संबंधित सैकड़ों निशुल्क ईमेल करने से भी गूगल मना कर दे। तब हम पूर्ण रूप से असहाय होंगे और हिन्दी के विकास के स्वप्न, जो हम बड़ी मात्रा में पाल चुके हैं, उन पर भी व्यवहारिक चिन्तन का समय आ जायेगा। अभी कई अलग प्रतीत होने वाली सेवायें गूगल रीडर के संकलन को ही नये रूप में प्रस्तुत करती आयीं हैं, गूगल रीडर बन्द होने के बाद क्या वे स्वतन्त्र रूप से कार्य कर पायेंगी यह तथ्य भी विकल्पों पर निर्णय लेने के समय उपयोगी होगा।
संभव है कि अभी कोई उपाय मिल जाये जो कुछ वर्ष हमें और खींच ले। प्रवाह रुक जाने का विचार भी पीड़ा में तिक्त होगा, उस पर सोचना भी नहीं है, उत्तर तो निकालने ही होंगे। यह भी हो सकता है कि आने वाली सेवायें सशुल्क भी हो जायें, फिर भी एक निर्भरता तो बनी ही रहेगी गूगल और अन्य तन्त्रों पर। क्यों न हिन्दी के लिये हम एक ऐसा स्थानीय आधार निर्माण करें जो हमारी आवश्यकताओं को निभाने में सक्षम हो, जिसके तले न केवल सारे ब्लॉग आ जायें वरन हिन्दी के और पक्ष भी पल्लवित हों। कविताकोष, गद्यकोष, शब्दकोष आदि के साथ एक विस्तृत आधार मिले। कठिनाईयों में ही संभावनाओं के बीज बसते हैं। प्रयास करें, भले ही उसकी सेवायें सशुल्क हो। भविष्य में धन उतना ही व्यय होगा पर हिन्दी के विकास के लिये हमें कभी औरों का मुँह न ताकना पड़ेगा। सोचिये आप भी, हम भी तीन माह के लिये सोचते हैं। विकल्पों पर प्रयोग कर रहे हैं, निष्कर्ष अवश्य बतायेंगे।
जब गूगल ने अक्टूबर १२ में फीडबर्नर की एपीआई बन्द कर दी तो उससे संबंधित गूगर रीडर में होने वाले प्रचार भी बन्द हो गये थे। उसके पहले गूगल रीडर की हर फीड के पहले या बाद में विषय से संबंधित कोई न कोई प्रचार रहता था। प्रचार से होने वाली आय ही गूगल रीडर को जीवित रखे थी। ५ माह पहले प्रचार बन्द हो गये तो संकेत मिल गया था कि अब गूगल रीडर भी बन्द होने वाला है। प्रचार का व्यवधान भले ही हमारा ध्यान बँटाता है पर वही रीडर का प्राण भी था। संभवतः गूगल रीडर के लिये वह मॉडल आर्थिक रूप से हानिप्रद हो, पर गूगल खोज, जीमेल, यूट्यूब और ब्लॉगर में होने वाले प्रचार ही गूगल की आय को साधन हैं। प्रचार उद्योग में माध्यम की पहुँच और उपभोक्ता से संबंधित जानकारी सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है और दोनों ही गूगल के पास अधिकतम मात्रा में है भी।
तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि जितनी भी निशुल्क सेवायें चल रही हैं, उनका भी अन्त गूगलरीडर की तरह हो सकता है। पाठक वर्ग के लिये ब्लॉगर और जीमेल ही मुख्य सेवायें हैं और उन पर विचार आवश्यक है। इस तथ्य को समझना होगा कि गूगल परमार्थ में तो कार्य कर नहीं रहा है, उसका पूरा आधार सीधे प्रचार के आर्थिक पक्ष पर टिका है या उन उपभोक्ता संबंधी सूचनाओं पर टिका है जो आपने निशुल्क सेवा लेते समय गूगल को बता दी है। अब उसे किसी सेवा में उतना प्रचार न मिलता हो या आपके बारे में और आपकी स्पष्ट अभिरुचियों के बारे में सारी सूचनायें उन्हें प्राप्त हो गयी हों तो संभव है कि भविष्य में कोई निशुल्क सेवा समाप्त भी हो जाये। एण्ड्रॉयड और गूगल ग्लास जैसे क्षेत्र, जहाँ पर अधिक धन है और अधिक बौद्धिक क्षमताओं की आवश्यकता है, गूगल के लिये अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। ऐसे और कई क्षेत्रों का सशक्तीकरण निशुल्क सेवाओं को बन्द करके भी किया जा सकता है।
तो क्या भविष्य है, हम सबके लिये। हमें निशुल्क सेवाओं ने कभी सोचने के लिये बाध्य ही नहीं किया था अब तक। पहले गूगल रीडर के किये जाने वाले कार्यों और उपस्थित विकल्पों को समझ लें। हमें यदि कोई ऐसी साइट या ब्लॉग अच्छा लगता है तो हम चाहते हैं कि उसमें होने वाले बदलाव हमें सूचित किये जायें। यह सूचना या तो ईमेल के माध्यम से पायी जा सकती है या फीड रीडर के माध्यम से। फीडबर्नर जैसी सेवाओं के माध्यम से किसी भी साइट या ब्लॉग में होने वाले बदलाव को जाना जाता है और उन्हें एक जगह एकत्र किया जाता है। ऐसा ही संकलन का कार्य गूगल रीडर कर रहा था, अन्यथा अपने ६०० ब्लॉगों में होने वाले बदलावों के लिये ६०० साइट पर जाकर देखना पड़े तो वह किसी के लिये भी संभव नहीं है।
किसी भी ब्लॉग को इस विधि से पढ़ने के लिये हमें दो सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है, फीड का पता लगाने के लिये फीडबर्नर जैसी सेवायें और संकलन कर पढ़ने के लिये गूगल रीडर जैसी सेवायें। याद रहे कि फीडबर्नर भी गूगल के अधिकार में है और बहुत संभव है कि भविष्य में उसकी भी सेवायें बन्द हो जायें। यदि विकल्प ढूढ़ना है तो अभी से ही दोनों का विकल्प ढूढ़ना चाहिये, न कि केवल गूगल रीडर का। जो लोग इस सुविधा में पड़े हैं कि हमारे पास तो ईमेल आ जाता है, उन्हें भी सोचना होगा। संभव है कि भविष्य में कुछ और पैसा बचाने के लिये हर ब्लॉग से संबंधित सैकड़ों निशुल्क ईमेल करने से भी गूगल मना कर दे। तब हम पूर्ण रूप से असहाय होंगे और हिन्दी के विकास के स्वप्न, जो हम बड़ी मात्रा में पाल चुके हैं, उन पर भी व्यवहारिक चिन्तन का समय आ जायेगा। अभी कई अलग प्रतीत होने वाली सेवायें गूगल रीडर के संकलन को ही नये रूप में प्रस्तुत करती आयीं हैं, गूगल रीडर बन्द होने के बाद क्या वे स्वतन्त्र रूप से कार्य कर पायेंगी यह तथ्य भी विकल्पों पर निर्णय लेने के समय उपयोगी होगा।
हम तो अपने एग्रीगेटर "ब्लॉगोदय" से पढते हैं, गुगल रीडर का कभी प्रयोग ही नहीं किया।
ReplyDeleteआपने तो बहुत भयानक भविष्य दिखा दिया |
ReplyDeleteसादर
आगे-आगे देखिए होता है क्या!
ReplyDeleteइस प्रकार की अटकले पहले भी लगाई जाती रही हैं!
मगर सब आशंकाएँ निर्मूल ही निकलीं!
गूगल रीडर के न रहने पर भी ब्लॉग पढ़े जाते रहेंगे। :)
ReplyDeleteSab paise ki mahima h.
ReplyDeleteSab paise ki mahima h.
ReplyDeleteगूगल रीडर में ब्लोग्स मैं भी पढ़ती हूँ , अब देखते हैं क्या विकल्प मिलता है ? भावी बदलावों को देखते हुए नयी संभावनाएं तो खोजनी ही होंगीं ....
ReplyDeleteकिसी भी संस्था जो मुफ्त सेवाएँ देती है उसका स्ववित्तपोषक होना जरुरी है बिना धन के मुफ्त सेवाएँ न तो ज्यादा दिन तक दी जा सकती है न उनमें गुणवत्ता दी जा सकती है |
ReplyDeleteअत: जो जो सेवाएँ गूगल को कमाई नहीं देगी वे अन्तोत्गत्वा बंद होनी ही है|
हमें ब्लॉग का भी बैकअप रखना चाहिये पता नहीं कब गूगल का फरमान पढने को मिल जाये| हालाँकि इसकी सम्भावना मुझे नहीं दिखाई देती क्योंकि ब्लॉग पर विज्ञापन की मोटी कमाई गूगल बाबा की झोली में जा रही है |
आपकी बात से सहमत. इसी वजह से चिट्ठाविश्व, नारद, चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी समेत और भी बहुत से हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर अकाल मौत मर गए. यदि ये प्रारंभ से ही कमर्शियलाइज्ड होते, तो आज स्थिति दूसरी होती. लंबे समय तक किसी भी प्रकल्प को चलाने के लिए तन-मन-धन सब लगता है! और धन तो सबसे ज्यादा!!!
Deleteबहुत ही उम्दा तकनीकी जानकारी हमको मिली भविष्य के खतरों की तरफ इशारा भी है |आभार सर
ReplyDelete
ReplyDeleteप्रवीन जी, नमस्कार
आपकी पोस्ट,’गूगलम-इदम न मम’ पढी.
वैसे तो, आज की तकनीक ओर उसका हर पल
विस्फोटिक अवतारीकरण चौकाने वाला होता है.
लगता है—महानिर्माता स्वंम अवतरित हो रहे हैं—
पलक झपकी और दुनिया हाज़िर है.
आप के द्वारा दी गई जानकारियों के लिये साभार धन्यवाद
वैसे,मैं तो इस पगडंडी पर घिसट ही रही हूं.
पुनः,हिन्दी के विकास के लिये आपने जो विचार दिये हैं और
चिंता व्यक्त की है, धन्यवाद.मार्गदर्शन करते रहिये.
उम्दा तकनीकी जानकारी
ReplyDeleteसजग करता आलेख!!
ReplyDeleteआपदा का पूर्व प्रबंधन आवश्यक है.
khatre ke baat
ReplyDeleteहिन्दी रीडर के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त होगा.
ReplyDeleteनई तकनी की जानकारी के साथ साथ भविष्य के खतरों के लिए सावधान भी करता आलेख ..आभार..
ReplyDeleteAlternatives....
ReplyDeletehttp://www.nextbigwhat.com/alternatives-to-google-reader-297/
बहुत ही उम्दा जानकारी,बदलावों को देखते हुए नयी संभावनाएं तो खोजनी ही होंगी।
ReplyDeleteआप का ही सहारा है कि कुछ ना कुछ राह सुझायेंगें
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
विकल्प खोजने के लिये अभी समय है। सुना है डिग भी रीडर का विकल्प ला रहा है।
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है, पर कुछ तो रास्ता निकल ही आयेगा.
ReplyDeleteरामराम.
सजग किया है आपने ... पर हम जैसे नेट के कम ज्ञाता लोगों को तो आपसे ओर दूसरे ज्ञानवान लोगों को ही फालो करना होगा ...
ReplyDeleteभविष्य के खतरों के लिए सावधान भी करता आलेख,आप के द्वारा दी गई जानकारियों के लिये साभार धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहद विचारणीय बात कही है आपने साथ ही सजग भी करती है यह प्रस्तुति... आभार
ReplyDeleteहिंदी में लोग किताबें तक तो शुल्क देकर पढ़ना नहीं चाहते, ब्लॉग क्या पढेंगे :).
ReplyDeleteशायद जब ख़तरा आ ही जाए तब ही कुछ हो .
गूगल बाबा कभी भी रूठ सकते हैं, ब्लाग भी बन्द कर सकते है। इसलिए हम वेबसाइट पर चले गए हैं। तकनीकी बातें तो आप जैसे लोग ही बता सकते हैं।
ReplyDelete....फिलहाल तो फेसबुक से ही काम चल रहा है ।
ReplyDeleteहम भी तांकझांक में लगे हैं.. कुछ बढ़िया हाथ लगे तो इत्तिलाह देंगे :)
ReplyDeleteसब आर्थिकी पर निर्भर है -हम कब तक मुफ्तखोर बने रहें यह भी विचारणीय है!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
अच्छे की उम्मीद तो सब पालेंगे, पर गूगल के व्यवधान आपको लगता है उनके अपने अर्थार्जन के उद्देश्य हेतु हैं। सुना है गूगल दुनिया की सबसे बढ़िया कंपनी है, जहां आप अपने कुत्तों तक को ठहरा सकते हैं। लोगों द्वारा डाली गई जानकारी से पैसे बनाने का कोई इसका आइडिया आपको उचित लगता है? देखा जाए तो शुल्क सूचना प्रदाताओं (ब्लॉगर्स इत्यादि) को भी मिलना चाहिए। केवल उसका समन्वय करनेवाला (गूगल)अर्थलाभ करे यह भी तो उचित नहीं है। कहीं मामला हिन्दी प्रसार के उद्देश्य को धक्का देने के षड्यन्त्र तक तो नहीं पहुंच चुका है। क्यूंकि सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि हिन्दी में बहुत ज्यादा और प्रभावी ब्लॉगिंग हो रही है। गूगल अकेले निर्णय कैसे ले सकता है, किसी न किसी ने तो उसे डण्डा किया ही होगा। कौन हो सकता है वह.....आप जानते ही हैं।
ReplyDeleteपढ़ने का अधिकार छिना है....
ReplyDeleteमुफ्त में कब तक खायेंगे ..
ReplyDeleteगूगल ने जो कुछ दिया उसका आभार !
सोंचने को मजबूर कर दिया आपके लेख ने !
कम जानकारों को यही कहना पड़ता है-महाजनो येन गतः स पंथा!
ReplyDeleteगूगल रीडर का प्रयोग कभी नही किया।
ReplyDeleteI use FeedDemon Lite..
ReplyDeletetry that... u'll be able to import all your google reader feeds in to that
अच्छी बात लिखी है ....समय ही बताएगा ...!!तब तक हम आशान्वित ही रहते हैं ....!!
ReplyDeleteगूगल न होगा कोई और होगा..
ReplyDeleteस्थिति गंभीर लग रही है.. लेकिन आप ज्यादा परेशान ना हो हम भारतीय बड़े जुगाडू होते है कोई न कोई विकल्प निकाल ही लेंगे .. सादर
ReplyDeleteविकल्प भी आपकी किसी पोस्ट से मिल जाएगा :)
ReplyDeleteसब ठीक है, निश्चित तौर पर आज का हर पढ़ा लिखा व्यक्ति गूगल का आभारी है, लेकिन कभी कभी इसकी हरकतों से ऐसा भी अहसास होता है मानो हम पर अहसान कर रहा हो। हिन्दी त्रास्लित्रेशन को इसके एक उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है।
ReplyDeleteKindly read transliteration.
Deleteसारी बातें, उन के विभिन्न पक्ष आप स्वयं विवेचित कर चुके हैं। आलेख के आख़िरी हिस्से में व्यक्त राय को पढ़ कर इतना ही कहना चाहूँगा कि प्रवीण भाई इस प्रक्रिया में मुझे अपने साथ समझें।
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
ReplyDeleteएक दिन सब कुछ बंद हो जायेगा... और एक दिन सब कुछ शुरू हो जायेगा... फिर बंद होगा... फिर शुरू...
ReplyDeleteचौकाने वाली जानकारी,बंद होने के पहले शायद कोई विकल्प मिले,,,
ReplyDeleteRecentPOST: रंगों के दोहे ,
I never used Google Reader.
ReplyDeleteसमय रहते सचेत कर दिया..कुछ राह तो निकल ही जायेगी.
ReplyDeleteबहुत खूब.... रोचक सम्भावना व्यक्त की आपने
ReplyDeleteआगे कोई राह मिलेगी तो सुझाइएगा .... अभी तो रीडर पर ही निर्भर हैं ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा जागरूक करता आलेख वैसे आजकल हम लोग गूगल पर ज्यादा ही निर्भर हो रहे हैं इतना भरोसा भी ठीक नही खैर आगे की भी देखी जायेगी अवगत कराते रहिये फिलहाल होली की अग्रिम बधाई प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें|
ReplyDeleteहमे तो ये पता ही नहीं था.चौकाने वाली जानकारी
ReplyDeleteसोचना पडेगा अब तो …………
ReplyDeleteजब भी कोई समस्या सामनें आती है तो इंसान उसका समाधान भी खोज लेता है !!
ReplyDeleteउम्दा तकनीकी जानकारी...शुक्रिया
ReplyDeleteGoogle has mostly followed Open Source Model, but as you rightly said, I was also thinking my dependency and trust on extensive use of Gmail.
ReplyDeleteNeed to rethink..
प्रवीण जी मेरे लिये जो गूगल क्रोम द्वारा जीमेल ,ब्लाग्स आदि देखना और रचनाएं पोस्ट करना भर जानती है ,एकदम नई और हैरान कर देनेवाली जानकारी है । फिर भी आज घोर व्यावसायिक युग में यह सब सशुल्क मिले तो भी बुरा नही । और उम्मीद है कि आप जैसे तकनीक-ज्ञाता कोई उपाय खोज भी रहे होंगे । आपने जो अन्त में उपाय सुझाया है सबसे अच्छा लगा । उसी पर कार्य होना चाहिये ।
ReplyDeleteनए रास्ते भी मिलेंगे. आप की ३ महीने बाद विचार की गई पोस्ट से .
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ReplyDeleteसार्थक सवाल उठाएं हैं आपने .ब्लॉग गया तो जीवन गया .अभिव्यक्त होने का सुख गया .अखबार मुखी अब हम हो नहीं सकते .जबकि अखबार ब्लोगार्मुखी बने हुए हैं .
theoldreader.com आज़माया लेकिन बकवास लगा, फीड इंपोर्ट किए १५ दिन से ऊपर हो लिए लेकिन अभी तक नहीं हुई। अब feedly.com आज़मा रहे हैं, यह गूगल रीडर से कनेक्ट कर सारा माल वहाँ से उठा के अपने यहाँ ले आता है इसलिए सरल है और क्रोम एप्प है तथा आईओएस और एण्ड्रॉय्ड एप्प भी हैं। फिलहाल अपने को मामला अच्छा लग रहा है।
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