16.3.13

जीने का अधिकार मिला है

एकाकी कक्षों से निर्मित, भीड़ भरा संसार मिला है,
द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।

सोचा, मन में प्यार समेटे, बाट जोहते जन होंगे,
मर्यादा में डूबे, समुचित, शिष्ट, शान्त उपक्रम होंगे,
यात्रा में विश्रांत देखकर, मन में संवेदन होगा,
दुविधा को विश्राम पूर्णत, नहीं कहीं कुछ भ्रम होगा,
नहीं हृदय-प्रत्याशा को पर सहज कोई आकार मिला है,
द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।१।।

सम्बन्धों के व्यूह-जाल में, द्वार निरन्तर पाये हमने,
घर, समाज फिर देश, मनुजता, मिले सभी जीवन के पथ में,
पर पाया सबकी आँखों में, प्रश्न अधिक, उत्तर कम थे,
जीते आये रिक्त, अकेले, आशान्वित फिर भी हम थे,
प्रस्तुत पट पर प्रश्न प्रतीक्षित, प्रतिध्वनि का विस्तार मिला है,
द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।२।।

जिसने जब भी जितना चाहा, पूर्ण कसौटी पर तौला है,
सबने अपनी राय प्रकट की, जो चाहा, जैसे बोला है,
संस्कारकृत सुहृद भाव का, जब चाहा, अनुदान लिया,
पृथक भाव को पर समाज ने, किञ्चित ही सम्मान दिया,
पहले निर्मम चोटें खायीं, फिर ममता-उपकार मिला है,
द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।३।।

जीवन का आकार बिखरता, जीवन के गलियारों में,
सहजीवन की प्रखर-प्रेरणा, जकड़ गयी अधिकारों में,
परकर्मों की नींव, स्वयं को स्थापित करता हर जन,
लक्ष्यों की अनुप्राप्ति, जुटाते रहते हैं अनुचित साधन,
जाने-पहचाने गलियारे, किन्तु बन्द हर द्वार मिला है,
द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।४।। 



53 comments:

  1. सबकी आँखों में, प्रश्न अधिक, उत्तर कम थे.....|

    एकदम सटीक ,सारे सम्बन्ध प्रश्नावली सरीखे ही होते हैं ....।
    अत्यंत व्यवहारिक भाव व्यक्त करती अद्भुत कविता ,आपकी ।

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  2. द्वन्दों कए शहर से सुंदर अभिव्यक्ति.

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति. सच कहा आपने

    आज की मेरी नई रचना
    एक शाम तो उधार दो

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  4. शायद हर संवेदनशील मन की यही स्थिति है आज ....

    जीते आये रिक्त, अकेले, आशान्वित फिर भी हम थे,
    प्रस्तुत पट पर प्रश्न प्रतीक्षित, प्रतिध्वनि का विस्तार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।२।।

    आज आपने द्वंद्व के इस शहर में ....शहर से दूर ....सागर की व्यथा लिखी है ......

    सागर सा विस्तार अगर है --
    फिर सागर को क्या डर है ॥?

    सह जाए प्रारब्ध --
    उसे तो सहना है --
    मंथन कर ढेरों विष -
    फिर अमृत ही बहना है --
    अमृत ही बहना है ........!!!!!!

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  5. यह जीवन या संसार द्वंद ही है, बिना द्वंद के जीवन नही पनपता, बहुत उत्कृष्ट शब्द संयोजन. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. सबके मन की सी कही..... इस द्वंद्व का शिकार हर वो इन्सान है जिसके मन में संवेदनाएं हैं....

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  7. आज हम सभी इसी द्वंद्व के शिकार हैं..सब तरफ द्वंद्व ही द्वंद्व..सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  8. जाने-पहचाने गलियारे, किन्तु बन्द हर द्वार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है

    ..

    विपरीत परिस्थितियों में, भी जीवन के अधिकार की रक्षा करना हमारा दायित्व है ! बढ़िया अभिव्यक्ति प्रवीण भाई ! मधुरता लिए आनंद दायक रचना !

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  9. सुंदर भावपूर्ण कविता |

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  10. इस द्वंद्व का शिकार हर वो इन्सान है जिसके मन में संवेदनाएं हैं, सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  11. परकर्मों की नींव, स्वयं को स्थापित करता हर जन,
    लक्ष्यों की अनुप्राप्ति, जुटाते रहते हैं अनुचित साधन,
    जाने-पहचाने गलियारे, किन्तु बन्द हर द्वार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है

    बहुत सुन्दर एवं सार्थक रचना....

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  12. यही जीवन है ..जीवन की यही रीत है.....

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  13. सर जी जीवन इसी का नाम है |

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  14. जीवन का आकार बिखरता, जीवन के गलियारों में,
    सहजीवन की प्रखर-प्रेरणा, जकड़ गयी अधिकारों में,...................वैसे तो आपने जीवन के विविध आयामों के सकारात्‍मक और नकारात्‍मक भावों को समेटते हुए इस अतिसुन्‍दर कविता का सृजन किया होगा, पर इन दो पंक्तियों को पढ़कर मुझे लगा कि नारी सशक्तिकरण के नाम पर व्‍याप्‍त उच्‍छृंखलता से दुखित होकर ही इन पंक्तियों को लिखने की प्रेरणा पायी आपने। प्रवीण जी हैट्स ऑफ टु यू। यह कविता और (मांगा था सुख, दुख सहने की क्षमता पाया)वाली कविता को मैं आपकी श्रेष्‍ठ कविताएं मानता हूं। आप मानवीय अन्‍तरद्वन्‍द को समझनेवाले एक श्रेष्‍ठ मनुष्‍य सिद्ध हो रहे हैं।.........और भी कहना चाहता हँ, पर अब नि:शब्‍द हूँ।

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  15. जीवन के गलियारों की बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,सादर आभार.

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  16. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  17. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  18. बंद द्वार को ही खोलने की तो छोटी सी कोशिश है - कविता..

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  19. सचमुच द्वंद्वों और अंधियारों के बीच से हमें अपनी राह निकालनी है

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  20. जीने का अधिकार मिला..
    सच है, और इसका सम्मान करना चाहिए

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  21. जाने-पहचाने गलियारे, किन्तु बन्द हर द्वार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है

    ....जीवन के गलियारों में द्वंद्वों का सामना करते हुए गुज़रने की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..लाज़वाब..

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  22. अधिकार मिला है, कर्तव्य निभा लें तो सोने पे सुहागा होगा।

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  23. इस पीढ़ी के हिस्से सबसे अधिक विषमताएं आईं -देहरी पर जो खड़ी है!

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  24. बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार मृत शरीर को प्रणाम :सम्मान या दिखावा .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  25. जिंदगी को मजबूरी न समझ, अधिकार समझने वाला, मधुशाला का ही पथिक होगा , ऐसे पथिक को बहुत सुन्दर रचना की बधाई .
    वाह वाह क्या बात हैं।

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  26. भावनात्मक,बहुत लाजबाब रचना,,बधाई ,,,प्रवीण जी,
    Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,

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  27. जीवन द्वंद्व ही तो ...इस द्वंद्व में ही जीने का अधिकार भी !l
    प्रेम कविताओं से इतर भी बेहतरीन कवितायेँ लिखी जा सकती है ,आपकी कवितायेँ बताती हैं

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  28. पर पाया सबकी आँखों में, प्रश्न अधिक, उत्तर कम थे,
    जीते आये रिक्त, अकेले, आशान्वित फिर भी हम थे,
    प्रस्तुत पट पर प्रश्न प्रतीक्षित, प्रतिध्वनि का विस्तार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला ...

    प्रश्न तो सड़ा से ही सामने रहते हैं ...आत्म की जिजीविषा से उनका उत्तर समय अपने आप दिलवा देता है ..
    जीने का अधिकार ही श्रेष्ठ है ....
    उत्तम भाव लिए आत्मविभोर करती रचना ...

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  29. एकाकी कक्षों से निर्मित, भीड़ भरा संसार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।

    इन्ही द्वंदों से जूझते आगे बढ़ना है...

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  30. kafi samay baad apki kavita padhne ko mili.liked it sir

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  31. द्वंद्वों से (एकाकी कक्षों से निर्मित, भीड़ भरा संसार मिला है,

    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।)


    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    जीवन का आकार बिखरता, जीवन के गलियारों में,
    सहजीवन की प्रखर-प्रेरणा, जकड़ गयी अधिकारों में,
    परकर्मों की नींव, स्वयं को स्थापित करता हर जन,
    लक्ष्यों की अनुप्राप्ति, जुटाते रहते हैं अनुचित साधन,
    जाने-पहचाने गलियारे, किन्तु बन्द हर द्वार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।४।।

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  32. प्रवीण पाण्डेय जी आसान उपाय है गुड़ चने .छ :महीना खाके देख लीजिए शर्त यह है चीनी जो खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों को नष्ट करती है बंद कर दीजिये .अंडे की ज़र्दी (एग येलो ,अंडे का पीला भाग ,सन साइड आफ एग ),पालक ,Collards greens (करम साग ,एक प्रकार की बंद गोभी,करम कल्ला ),गहरे हरे पत्तेदार सब्जियां ,रेड मीट (हम सिफारिश नहीं करेंगे ,इसमें सेहत के लिए खतरे भी हैं ),सुखाया हुआ आलू बुखारा ,प्रून्स (PRUNES,PLUM),किशमिश ,BEANS ,LENTILS ,CHICK PEAS(छोटी मटर ),सोयाबीन ,लौह संवर्धित अन्न से बना नाश्ता ,अनाज ,
    Mollusks (oysters, clams, scallops)
    Turkey or chicken giblets
    Liver
    Artichokes आयरन के बढ़िया स्रोत हैं .
    FERSOLATE CM(जब दस्त लगें हों ,ये गोली न ली जाए ,पेट दर्द होने रहने पर भी न लें ,अन्यथा जिन किशोरियों और महिलाओं को खून की कमी बनी रहती है वे एक गोली खाने के बाद रोज़ ले

    सकतीं हैं )आसानी से ज़ज्ब होने वाली किस्म है यह लौह तत्व की .
    And here's a tip: If you eat iron-rich foods along with foods that provide plenty of vitamin C, your body can better absorb the iron.

    17 मार्च 2013 11:21 am

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  33. जीवन का सार कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगी.
    बहुत अच्छी रचना है .

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  34. there are times when you render me speechless...
    this is one of those :)

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  35. जीवन यही है...द्वंद्वों से पार ही है महाजीवन...

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  36. शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

    जीने का अधिकार मिला है
    एकाकी कक्षों से निर्मित, भीड़ भरा संसार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।द्वंद्व ही द्वंद्व है आधुनिक जीवन में .नियति यही जीवन की .इन्हीं का अतिक्रमण है ज़िन्दगी .

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  37. जीने का अधिकार - बहुत महत्वपूर्ण है और जीवन चक्र बहुत उतार चढ़ाव से भरा भी.

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  38. बहुत सुन्दर

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  39. सुन्दर आशावादी कविता

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  40. सुन्दर....
    सम्बन्धों के व्यूह-जाल में, द्वार निरन्तर पाये हमने,
    घर, समाज फिर देश, मनुजता, मिले सभी जीवन के पथ में,
    पर पाया सबकी आँखों में, प्रश्न अधिक, उत्तर कम थे,
    जीते आये रिक्त, अकेले, आशान्वित फिर भी हम थे,

    बेहद सुन्दर!!
    अनु

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  41. ”जाने पहिचाने गलियारों में,किंतु बंद हर द्वार मिला
    द्वंदों से परिपूर्ण जगत में,जीने का अधिकार मिला’
    जीवन के कटु सत्य को बखूबी पिरोया है भावों में.

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  42. द्वन्द तो हर कदम पर आते हैं उसी के बीच राह निकालनी है.
    जीवन का सत्य यही है.

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  43. जिसने जब भी जितना चाहा, पूर्ण कसौटी पर तौला है,
    सबने अपनी राय प्रकट की, जो चाहा, जैसे बोला है,
    संस्कारकृत सुहृद भाव का, जब चाहा, अनुदान लिया,
    पृथक भाव को पर समाज ने, किञ्चित ही सम्मान दिया,
    पहले निर्मम चोटें खायीं, फिर ममता-उपकार मिला है,
    द्वन्दों से परिपूर्ण जगत में, जीने का अधिकार मिला है ।।३।।
    शुक्रिया भाई साहब भाग मुबारक ,सुन्दर सुन्दर रचना अंश मुबारक . जीवन के सब राग रंग लिए है यह रचना द्वंद्व ही द्वंद्व हैं हर चरण पर .इन्हीं के बीच जीवन निधि भी है .

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  44. आज के सन्दर्भ में सहजीवन सिमबियोतिक लिविंग (लिविंग टुगेदर )पर करारा व्यंग्य ,उचित अनुचित का अब भान नहीं है साध्य प्यारा है साधनों की किसे फ़िक्र है .शुक्रिया आपकी सहज आशु टिप्पणियों का .

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  45. गाकर सुनाओ भाई...इसे...

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  46. जीवन के कडवे यथार्थ से रु-ब-रु कराती कविता। द्वंद्वो के बावजूद जीवन बहुत खूबसूरत है।

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  47. संवेदनशील होना वरदान भी है और अभिशाप भी । सदा की तरह बहुत सुन्दर

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  48. शब्दों का बहुत ही परिपक्व और सुन्दर संयोजन |

    सादर

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