6.2.13

गरीबी देना तो तमिलनाडु में

भारतीय रेलवे में एक व्यवस्था है, महाप्रबन्धक के वार्षिक निरीक्षण की। इसकी तैयारियों के क्रम में उस रेलखण्ड के लगभग सारे स्टेशनों का विस्तृत निरीक्षण हो जाता है। यह एक बहुत पुरानी परम्परा है और हर दृष्टि से अत्यन्त लाभदायक भी। इस प्रकार चार-पाँच वर्ष में पूरे मण्डल का निरीक्षण हो जाता है, स्टेशनों का कायाकल्प हो जाता है, भावी योजनाओं को बल मिलता है, परिचालन और अनुरक्षण संबंधी समस्यायें समाधान पाती हैं, यात्रियों की बढ़ती माँगों को एक सीमा तक निपटाने की प्राथमिकतायें उजागर होती हैं। वर्ष में एक माह उस रेलखण्ड के अतिरिक्त किसी को कुछ और सूझता भी नहीं है। रेलवे में गुणवत्ता और प्रगतिशीलता का एक स्थिर प्रतिमान है, महाप्रबन्धक का वार्षिक निरीक्षण।

इस वर्ष का रेलखण्ड था बंगलोर से सेलम का, २०० किमी लम्बा, ४० किमी कर्नाटक में, शेष १६० किमी तमिलनाडु में। दो बार ट्रेन के निरीक्षण कोच से और दो बार सड़क यात्रा से सारे स्टेशनों और प्रमुख समपार फाटकों को देखा। जनवरी माह तमिलनाडु में ठंड का मौसम होता है, और ठंड भी बसन्त जैसी मध्यम। दिसम्बर में ही यहाँ बारिश भी होती है तो दृश्य भी हरे भरे ही दिखते हैं। पहाड़ों, घाटियों, जंगल और तालों के बीच से निकलते इस रेलखण्ड का निरीक्षण तनिक भी थकान नहीं लाता है, वरन मन को पूर्णतया स्फूर्त कर देता है।

नियमित निरीक्षण के अतिरिक्त पर्याप्त समय रहता है, स्टेशनों के बाहर टहलने के लिये। जन, जीवन, जल, भोजन, बिजली, विद्यालय, जीविका आदि के बारे में पूछने पर स्टेशन मास्टर आदि आश्चर्यचकित अवश्य होते हैं पर साथ ही साथ सहज भी हो जाते हैं। संभवतः ऐसे प्रश्न संकेत होते हैं कि औपचारिक निरीक्षण पूरा हुआ अब बातें अनौपचारिक होंगी। उनके बच्चों की संख्या, उनका स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा, परिवेश की स्थिति, समाज का सहयोग, ये सब ऐसे प्रश्न हैं जो अभी तक थोड़ा सचेत रहे स्टेशन मास्टर को सहज कर देते हैं। उनके चेहरे पर तनिक मुस्कान आ जाती है और स्वर में आत्मीयता।

एक ओर से ट्रेन व दूसरी ओर से वाहन से निरीक्षण करने में पूरा रेलखण्ड एक दिन में ही देखा जा सकता है। रेलखण्ड लम्बा हो या सड़क अच्छी न हो तो यह करना कठिन होता है। रेलखण्ड लम्बा था और १५ से अधिक स्टेशन देखने थे, फिर भी सड़क अच्छी होने के कारण हमने एक दिन में पूरा निरीक्षण करने का निश्चय कर लिया।

स्टेशन से बाहर आकर वाहन में बैठने ही जा रहे थे तो पेड़ के नीचे बैठे दो छात्रों पर दृष्टि पड़ी। पर्यवेक्षक महोदय ने बताया कि वेशभूषा से दोनों ही सरकारी विद्यालय के छात्र लग रहे हैं। खाली समय में उन्हें पढ़ते देखकर बड़ा अच्छा लगा, लगा कि कम से कम यहाँ से देश का भविष्य सुरक्षित है। दोनों ही लालरंग के पैंट पहने थे, पता चला कि यहाँ पर सारे विद्यार्थियों को एक वर्ष में तीन शर्ट और पैंट निशुल्क मिलते हैं। यही नहीं निशुल्क पाठ्यपुस्तकें, एक साइकिल, ट्रेन व बस का पास, छात्रावास में रहने की सुविधा और दिन का भोजन। इतना सब होने पर कोई अभागा ही होगा जो अपनी शिक्षा पूरी न करे। एक और बात जो पर्यवेक्षक महोदय ने सगर्व बतायी कि सारा उत्तरदायित्व प्राध्यापक का ही है और उनके द्वारा बच्चों को आवंटित धन खा जाने की घटनायें नगण्य हैं, अपने बच्चों से बेईमानी का विचार भी आना उनके लिये घोर अपमान का विषय है।

कुछ किलोमीटर आगे बढ़ कर दूसरे गाँव की परिधि में पहुँचे तो राशन की दुकान के बाहर भीड़ खड़ी दिखी। पोंगल का त्योहार चल रहा था, राज्य सरकार इस उत्सव पर एक साड़ी, एक धोती, ५०० रु नगद और अतिरिक्त राशन देती है। ये सारी योजनायें ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिये ही हैं। दो रुपये किलो चावल तो सतत चलने वाली योजना है ही, साथ ही साथ अन्य आवश्यक सामान भी राशन की दुकानों पर उपलब्ध है। व्यवस्था अच्छी है, यद्यपि दो रुपये किलो वाले चावल की कालाबाज़ारी की ख़बरें सुनने में आती हैं, लोग कहते हैं कि ट्रेन के रास्ते चावल बैंगलोर पहुँचता है और मुख्यतः इडली बनाने में प्रयुक्त होता है, पर फिर भी यहाँ के स्थानीय निवासियों को राशन व्यवस्था से कोई समस्या नहीं है। बताते चलें कि तमिलनाडु उन राज्यों में एक है जिसने बैंकों में सीधे सब्सिडी का पैसा पहुँचाने का विरोध किया है, इसमें तमिलनाडु को पुराने सधे सधाये तन्त्र में घोर अव्यवस्था पनप आने का भय लगता है।

थोड़ा और आगे बढ़े तो एक ही तरह के कई मकान बने दिखे, दो कमरे के होंगे संभवतः। जिज्ञासा हुयी कि यहाँ पर किस सरकारी कम्पनी के मकान हो सकते हैं भला। पर्यवेक्षक पुनः बताने लगे कि सर ये भी राज्य सरकार ने ही बनवाये हैं, नक़्शा पहले से पारित रहता है, ठेकेदार जल्दी ही मकान बना देते हैं, बस घर के अन्दर मुख्यमंत्री का चित्र लगाना पड़ता है। यह भी ग़रीबी रेखा से नीचे के व्यक्तियों के लिये। सामाजिक विषयों में रुचि जगती देखकर एक और पर्यवेक्षक स्वयं ही बताने लगे कि यही नहीं, यहाँ पर लड़कियों की शिक्षा, जीविका, विवाह, प्रसव और संभावित हर कठिन परिस्थिति के लिये आर्थिक सहायता की व्यवस्था है। शारीरिक रूप से अक्षम और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये भी दसियों योजनायें चल रही हैं यहाँ, धन की कमी नहीं है यहाँ पर किसी प्रकार की रिक्तता के भरने के लिये।

न जाने कितनी योजनायें यहाँ चल रही हैं जो किसी ग़रीब को ग़रीबी का भाव तक ही नहीं आने देती हैं। पर्यवेक्षक जी बताते जा रहे थे पर मेरा मन सारा देश घूमने में व्यस्त था, लगभग १० राज्यों को इतनी निकटता से देखा है, कहीं पर भी इतनी सक्रिय योजनायें नहीं थीं। यहाँ न केवल योजनायें हैं, वरन सुचारु रूप से चल भी रही हैं। अपने राज्य में देखता हूँ तो ग़रीबी रेखा के ऊपर वाले कई लोग जो निम्न मध्यम वर्ग में आते हैं, यहाँ के ग़रीबों से भी निम्नतर जीवन बिता रहे हैं।

पता नहीं इन योजनाओं को प्रारम्भ करते समय नियन्ताओं का उद्देश्य समाज कल्याण रहा होगा या राजनैतिक, पर वर्तमान में ये पूर्णतया राजनीति की पहुँच के बाहर जा चुकी हैं। इस समय इन्हें वापस लेना या इनकी उपलब्धता कम कर देना किसी के बस की बात नहीं है, ये ऐसे ही चलती रहेंगी, सरकार के खजाने पर कितना ही बोझ पड़े, लाभान्वित लोग चाहें किसी को ही वोट दें।

अन्य राज्यों के निर्धन नागरिकों ने क्या अपराध किया है? दुर्भाग्य ही है, गरीब पैदा हुये, भारत में भी पैदा हुये, क्या अन्तर पड़ता कि एक राज्य के स्थान पर तमिलनाडु आवंटित कर देते ईश्वर उन्हें। उन्हें क्या था, एक भाषा की स्थान पर दूसरी भाषा सीख लेते, गरीबी में अस्तित्व ही तो सम्हालना था, साहित्य, कला, संगीत या भाषा का गौरव स्थापित तो नहीं करना था। एक राज्य जब इतना कर सकता है तो अन्य राज्य क्यों नहीं? दो राज्यों या क्षेत्रों के बीच गरीबों के सुख की तुलना करने में यद्यपि संवेदनशीलता तार तार हो जाती है, पर क्या करें ये अन्तर दृष्टिगत होते ही हैं। न केवल दृष्टिगत ही होते हैं, वरन सरलता से हजम भी नहीं होते हैं। देश की इस असहाय स्थिति में सभी को ईश्वर से यही प्रार्थना करने की सलाह दूँगा कि हे भगवन यदि कुछ क्रोधित हो और निश्चय कर लिया हो कि अगले जनम में गरीबी देना है, तो कृपा कर तमिलनाडु ही आवंटित करना, वहाँ कम से कम सर उठा कर जीवन के अस्तित्व को बचा ले जाने की व्यवस्था कर रखी है राज्य सरकार ने।

37 comments:

  1. एक राज्य जब इतना कर सकता है तो अन्य राज्य क्यों नहीं?

    बिल्कुल अन्य राज्य भी कर सकते हैं और केंद्र सरकार भी , अगर इच्छा शक्ति हो और स्वार्थपरक सोच से कुछ ऊपर उठें तो | आम नागरिक के लिए सफलतापूर्वक लागू की गयीं ऐसी योजनायें निश्चित रूप से अनुकरणीय हैं......

    ReplyDelete
  2. yah sab vote kee kavayat hai ..............itana hone ke baad bhi garib ka str to nahi uthta

    ReplyDelete
  3. मुफ़्त की सेवा ने ही सत्यानाश कर लोगों को अकर्मण्य बनाया है। सरकारी योजनाओं का लाभ पात्रों से अधिक अपात्र ही उठाते हैं।

    ReplyDelete
  4. अच्छा लगा पढ़कर.
    शुरूआत नख्लिस्तानों से ही, हुई तो सही.

    ReplyDelete
  5. ठीक कहा, अब किस राज्य के जन्तु यहाँ भेजे जाये, अगर कह दिया तो विवाद हो जायेगा।, वोट के समय ही इस प्रकार की बाते सुनने को मिलती थी।

    ReplyDelete
  6. कहीं अच्छा कार्य हो रहा है, जानकर ही सुकून मिला

    ReplyDelete
  7. मदद से बेहतर रोज़गार होता , काम करने के मौके देने चाहिए तो और अच्छा होता !

    ReplyDelete
  8. आपके बच्चे कैसे हैं ??
    उनपर लिखिए इंतज़ार है , फोटो भी चाहिए पापा के साथ !

    ReplyDelete
  9. इस तरह की योजनाए हर प्रदेशो में चल रही है,योजनाओं का लाभ पात्रों से अधिक अपात्र लोग उठाते हैं

    RECENT POST बदनसीबी,

    ReplyDelete
  10. कहीं तो सरकारी योजनाओं को व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है ... अच्छा लगा यह जान कर ...

    ReplyDelete
  11. लगाकिसी विदेश की बात सुन रहे हैं,आपने अच्छा किया इतनी जानकारी एकत्र कर बता दिया कि भारत में भी यह संभव है - जान कर शायद और राज्यों के कानों पर जूँ रेंग जाय !

    ReplyDelete
  12. आर्थिक मदद के बजाये यदि रोजगार पैदा करने पर खर्च किया जाता तो निश्चित ही बेहतर परिणाम और बेहतर समाज बनता. खैर जैसी कलियुगी हुक्मरानों की मर्जी.

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. पहले तो यह लगा कि कहीं आप अपने किसी सपने का जिक्र तो नहीं कर रहे हैं। ऐसा सपना जो जागी आंखों से आपने देखा होगा। पर चित्रों ने इस सपने को झूठा बताया। लगा सचमुच आप सपना नहीं दिखा रहे थे, बल्कि सच्‍चाई से वाकिफ करा रहे थे। अच्‍छा लगा पूरा पढ़कर। क्‍या ऐसा भी हो सकता है। दूसरे राज्‍य इससे कहॉं तक प्रेरित हो सकते हैं, यही देखना है। बाकी आपकी लेखनी भी कमाल की है। बहुत ही सरलता से सब कुछ बता दिया। आप भी अपनी लेखनी की तरह ही सरल और सहज हैं।

    डॉ महेश परिमल

    ReplyDelete
  14. उन्हें क्या था, एक भाषा की स्थान पर दूसरी भाषा सीख लेते, गरीबी में अस्तित्व ही तो सम्हालना था, साहित्य, कला, संगीत या भाषा का गौरव स्थापित तो नहीं करना था। एक राज्य जब इतना कर सकता है तो अन्य राज्य क्यों नहीं?

    बहुत सार्थक आलेख .....राज्यों को ही क्यों ...आपका आलेख व्यक्ति विशेष को भी प्रेरणा दे रहा है कि रोटी कपड़ा और मकान की चिंता से जो लोग ऊपर हैं ...उन्हें साहित्य, कला, संगीत या भाषा का गौरव स्थापित करने में समाज को अपना योगदान देना चाहिए ...
    अगर एक राज्य कर सकता है तो अन्य क्यों नहीं ...??

    ReplyDelete
  15. योजनाएं तो शायद ये सभी जगह हैं पर लगता है लागू सिर्फ तमिलनाडू में ही होती हैं. चलो कहीं तो होती हैं.

    ReplyDelete
  16. योजनाएं तो सभी जगह है लेकिन गरीबी तो कहीं से भी नहीं समाप्‍त हो रही है चाहे वह तमिलनाडू ही क्‍यों न हो।

    ReplyDelete
  17. रुचिकर जानकारी। आप पत्रकार नहीं हैं इसलिए आपकी बात पर भरोसा भी कर रहा हूं :-)

    ReplyDelete
  18. तब तो कुछ दिनों में ही निम्न मध्यम वर्ग के लिए योजनायें भी दिखने लगेंगी.

    ReplyDelete
  19. bahut Ruchikar jankari ke liye ..Aabhar
    insaan karna chahe to bahut kuchh kar sakta hai ...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

    ReplyDelete
  20. सुना है छत्तीसगढ़ ओर कुछ हद तक मध्य-प्रदेश में भी ये योजनाएं ठीक काम कर रही हैं ... पता नहीं कितना सच है ... पर देखो कब तक रहती हैं ये योजनाएं ...

    ReplyDelete
  21. वाह प्रवीण जी। सर्वप्रथम तो तमिलनाडु के बारे में वास्‍तविक जानकारी देने के लिए धन्‍यवाद। आपने इस आलेख में एक देश, उसकी सरकार, उसके राज्‍यों, सुविधाओं, असुविधाओं का जो जीवंत उल्‍लेख किया है, वह अत्‍यन्‍त विचारणीय है। आपकी की गई प्रत्‍येक यात्रा से महत्‍वपूर्ण जानकारियां मिलती ही रहती हैं। क्‍या तमिलनाडु के सरकारी स्‍कूलों के भवनों, पठन-पाठन, पेयजल, दोपहर भोजन, अध्‍यापन की स्थितियां सुचारु हैं.....? क्‍यूंकि इस मामले में यूपी को देखकर तो खुद से घृणा होने लगती है।

    ReplyDelete
  22. बेहतरीन प्रस्तुति प्रवीणजी..तमिलनाड़ू की इस महत्वपूर्ण जानकारी को जिस शैली में आपने प्रस्तुत किया है वह रोचक है।।।

    ReplyDelete
  23. यहाँ तो दो 'म 'कारों के चलते बुरी स्थति है !

    ReplyDelete
  24. ....वास्तव में ऐसे प्रयोग शिक्षा के लिए सार्थक कदम की तरह हैं !

    ReplyDelete
  25. चेन्नई के अपने प्रवास के दौरान हमने भी देखा इस राज्य के उद्योग पतियों का भी दिल बड़ा है .मैड्स को 125 रूपये में बढ़िया साड़ी मुहैया करवाई हुई थी बढ़िया सिल्क स्टोर्स में भी .मैड्स साइकिल

    से आती जातीं थीं हमारे कैम्पस (आई आई टी मद्रास )में .अलबत्ता कामगारों को आधी छुट्टी में (लंच के नाम पर )हमने सिर्फ चिडवा खाते भी यही पर देखा .ये कैम्पस में वाईट वाश में संलग्न थे .

    ReplyDelete

  26. निराशा के इस दौर में कही से कोई अच्छी खबर मिली , क्या हमारे देश में हर प्रान्त में ऐसा नहीं हो सकता !!

    ReplyDelete
  27. ईमानदारी से योजनाओं पर अमल किया जाए तो हर राज्य तमिलनाडु बन सकता है .सरकारें मूलतया बे -ईमान होतीं हैं .खुद भले खाएं पर कुछ तो दायित्व निभाएं गरीब गुरबों के प्रति उस आम

    आदमी के प्रति जिसे पोस्टर बॉय का दर्जा दिया हुआ .कोंग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ आदमी फिर भी बदहाल .वजह हाथ आम आदमी के साथ तो है लेकिन उसकी जेब में रहता है .बढ़िया चिंतन

    परक पोस्ट .खुली आँखों और आपके प्रेक्षण का जादू है यह सार्थक पोस्ट .

    ReplyDelete
  28. अरे उत्तर भारत में तो स्कूलों में मध्याह्न का राशन भी चट कर जाते हैं।

    ReplyDelete
  29. पढकर अच्‍छा तो लगा ही, अचरज भी हुआ। इस सफलता और सुसंचालन के कारण भी यदि जान सकें तो कोशिश कीजिएगा और उजागर कीजिएगा। ऐसी ही कुछ योंजनाऍं मध्‍य प्रदेश में भी हैं तो सही किन्‍तु उनके लाभ 'पात्रों' तक नहीं पहुँच रहे।

    ReplyDelete
  30. बड़ी अच्छी जानकारी.

    ReplyDelete
  31. बहुत सुन्दर लगा पढ़कर और जानकर.

    ReplyDelete
  32. कुछ तो सीख लें, दुसरे राज्य इनसे .

    ReplyDelete
  33. बहुत अच्‍छा लगा इसे पढ़कर ... आपका बहुत - बहुत आभार इसे साझा करने के लिये

    सादर

    ReplyDelete
  34. गरीबी देना ही क्यों भाई साहब ?.शेष निर्बुद्ध राज्यों को सद -बुद्धि दे ईश्वर ,थोड़ा सा ईमान और आम आदमी के प्रति -निष्ठा भी दे .आइन्दा नेता प्रजा बने और प्रजा नेता .

    ReplyDelete
  35. पढ़ के अच्छा लगा . हमारे प्रदेश में अभी लूट संस्कृति का बोलबाला है .

    ReplyDelete
  36. तमिलनाडु के विषय में दूसरे लोगों से भी सुना है । अच्छा ही सुना है पर आपका आलेख पढ कर विश्वास हुआ कि देश में कहीं कहीं काफी कुछ अच्छा है । और यहाँ मुझे हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का कथन याद आता है कि ,बुराई में रस लेना बुरी बात है पर उतना ही रस लेकर अच्छाई को उजागर न करना उससे भी बुरी बात है । आप अच्छाइयों को उजागर कर रहे हैं यह बडी बात है और जरूरी भी ..।

    ReplyDelete
  37. अच्छी जानकारी दी आपने ...

    ReplyDelete