मन की कह दे, वह कविता है,
सब की कह दे, वह कविता है,
निकसे कुछ कुछ अलसायी सी,
अपने में ही सकुचायी सी,
शब्द थाप बन आप खनकती,
रस सी ढलके, वह कविता है।
अपनों का अपनापन जाने,
शब्द-समुच्चय साथ निभाने,
मन गढ़ जाती, सब पढ़ जाती,
क्षत-हत-रत पथ साथ निभाती,
तप्त तवा, बन बूँद छनकती,
भाप बने घन, वह कविता है।
सजती, तन इठलायी, लजती,
लचक उचक बच पग पग धरती,
भावों के घूँघट में छिप कर,
यथाशक्ति अपने में रुक कर,
ओढ़े अद्भुत कान्ति कनक सी,
श्रंगारित तन, वह कविता है।
रोष-कोष, आग्रह अतिरंजित,
दावानल, मन पूर्ण प्रभंजित,
क्रोध सनी, शिव-कंठ बनी वह,
विष धारे, पीड़ा धमनी सह,
शब्द शब्द बस ध्वंस विरचती,
कंपन प्रहसन, वह कविता है।
काल खंड, कंकाल समेटे,
कितने मायाजाल लपेटे,
स्मृति क्षति करती अवरोधित,
भूत भविष्यत सम आरोपित,
पा भावों की छाँह पनपती,
हर क्षण दर्पण, वह कविता है।
एक तरंग रही जो छिटकी,
पथ की संगी, पथ से भटकी,
शब्द धरे, स्थूल हो गयी,
औरों के अनुकूल हो गयी,
मन से निकली, मन की कहती,
शाश्वत विचरण, वह कविता है।
भावों के विभिन्न आयाम समेटे , कभी सरल कभी क्लिष्ट , वही कविता है !
ReplyDeleteशानदार !
कविता की बढ़िया परिभाषा दी है आपने!
ReplyDelete--
आज के चर्चा मंच पर भी इस प्रविष्टि का लिंक है!
भरे भाव सबके मन के
ReplyDeleteखेले अद्भुत शब्दों संग में
कभी लजाती कभी बलखाती
कूदती-फ़ाँदती और शरमाती
बन्द आँखों से बहती सरिता
उछल-उछल वह कविता है...
बोधगम्य शब्दों में कविता की स्निग्धता संप्रेषित हो रही है पांडे साहब .... '.कर दे अभिव्यक्त मन के भावों को
ReplyDeleteतृप्त हुए तो कविता है ....'
बहुत खूब!!
ReplyDeleteकनखियों से देखे वो,
ReplyDeleteऔर मुस्करा दें ,
बस यही कविता है ।
"मन की कह दे, वह कविता है,
ReplyDeleteसब की कह दे, वह कविता है"-
यह दो पंक्तियाँ ही काफी हैं। शेष तो इनमें ही समाया है।
बहुत शानदार
ReplyDelete
ReplyDelete@
निकसे कुछ कुछ अलसायी सी,
अपने में ही सकुचायी सी,
यकीनन कविता की रचना की शुरुआत एक संकोच से ही होती है और उसके बाद ...
शब्द थाप बन आप खनकती,
रस सी ढलके, वह कविता है।
प्रवीण जी ,
यह रचना सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है , मधुर , सार्थक और अक्षत !!
आपका आभारी हूँ कि आप मूड में आ गए !
आपका आग्रह तो मेरे लिये आदेश ही है, लिखना आवश्यक था। आपको ही सृजन का समर्पण जाता है।
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Deleteबहुत पहले लगभग इन्हीं भावों पर एक रचना हुई थी, वह आपकी इस कविता को पढ़ याद आ गयी ..
ReplyDeleteनहीं द्वेष पाखंड दिखावा ,
नही किसी से मन में बैर
जहाँ नही धन का आड्म्बर,
वहीं रचा जाता है , गीत !
सरल भाव से सबको देखे,
करे सदा सबका सम्मान
निश्छल मन और दृढ विश्वास,
वहीं रचा जाता है गीत !
कविता वाही है जो औरों के अनुकूल हो हर व्यक्ति पढ़े तो उसे अपने भावों का बिम्ब दिखे ...
ReplyDeleteतभी रचना सफल है ...
शब्द धरे, स्थूल हो गयी,
औरों के अनुकूल हो गयी,
मन से निकली,मन की कहती,
शाश्वत विचरण,वह कविता है।
सच है क्या नहीं है, कविता में :), रोमांचित हूँ आपके शब्द चित्रण पर
ReplyDeleteकाल खंड, कंकाल समेटे,
कितने मायाजाल लपेटे,
स्मृति क्षति करती अवरोधित,
भूत भविष्यत सम आरोपित,
भावनाओं से जुडी और उत्पन्न हुई हर वक्त, समय को दर्पण दिखाती है , वही कविता है !
पा भावों की, छाँह पनपती,
हर क्षण दर्पण,वह कविता है।
ये सिर्फ एक कविता नहीं , एक कवी ह्रदय से निकली कालजयी वाणी हैं...पड़कर बहुत अच्छा लगा !!!
ReplyDeleteमन की कह दे, वह कविता है,
ReplyDeleteसब की कह दे, वह कविता है,
शाश्वत विचरण, वह कविता है।
वाह! कविता परिभाषित !
यह कविता है! कालजयी है !
आज का दिन बन गया !
an awesome post to start a day with.. :)
ReplyDeletepoetry is bliss !!
...मजमा लूट लिया साहेब !
ReplyDelete.
.
.यह सम्पूर्ण गीत है,अत्युत्तम !
बहुत खूब जनाब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
अति सुंदर ..... सच में ऐसी ही होती है कविता | कविता से जुड़ा सब कुछ समेटता शाब्दिक चित्रण |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteलाजवाब ! बेमिसाल !! बहुत दिनों से ऐसा कुछ नहीं मिला था पढने को। अलबत्ता रोज़ दो-चार कवियों से दो चार होते रहे .........
ReplyDeleteशब्द खनके
ReplyDeleteरस सी ढरके
मन की कह दे
सब की कह दे
वाह! क्या कविता है!! ..कमाल है।
कविता की सुन्दर व्याख्या,बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
मन से निकली, मन की कहती,
ReplyDeleteशाश्वत विचरण, वह कविता है ..
बहुत खूब ... कविता को चार चाँद लगाती कविता ... भावमय ... लयात्मकता लिए सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteदिनांक 28 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
गजब
ReplyDelete"मन की कह दे, वह कविता है,
ReplyDeleteसब की कह दे, वह कविता है"-
बहुत खूब परिभाषित किया है कविता को
वाह ! कविता के कई आयामों को समेटे एक सुंदर कविता..बधाई!
ReplyDeleteवाह क्या कविता है ..एकदम कविता सी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर.
मन से निकली, मन की कहती,
ReplyDeleteशाश्वत विचरण, वह कविता है।
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ....
शिव-कंठ बनी वह
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है यह कविता. मन की वाणी है यह कविता. वाह.
ReplyDeleteअति सुन्दर..
ReplyDeleteकविता की सम्पूर्ण परिभाषा. अति सुन्दर.
ReplyDeleteअति शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
मन प्रसन्न हुआ पढके .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 27 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
सच शायद यही कविता है ....
ReplyDeleteआप की हर कविता, 'कविता' है। बेहद मनभावन प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteबिलकुल ठीक कहा आपने। कविता ऐसी ही होती है।
ReplyDeleteअद्भुत ...। कविता के बारे में कुछ कहने शब्द ही नही मिल रहे । गद्य ही नही पद्य-रचना में भी ऐसा कौशल चमत्कृत करता है ।
ReplyDeleteवह कविता है
ReplyDeleteमन की कह दे, वह कविता है,
सब की कह दे, वह कविता है,
निकसे कुछ कुछ अलसायी सी,
अपने में ही सकुचायी सी,
शब्द थाप बन आप खनकती,
रस सी ढलके, वह कविता है।
बहुत ही सुन्दर ढंग से कविता को परिभाषित करती कविता |
वह कविता है
ReplyDeleteमन की कह दे, वह कविता है,
सब की कह दे, वह कविता है,
निकसे कुछ कुछ अलसायी सी,
अपने में ही सकुचायी सी,
शब्द थाप बन आप खनकती,
रस सी ढलके, वह कविता है।
बहुत ही सुन्दर ढंग से कविता को परिभाषित करती कविता |
कवि को तो कण-कण कविता है!
ReplyDeleteशब्द बया कर दें जो मन की, वो कविता है !
ReplyDeleteबाँध लिया मन को जिसने वह कविता है ...
ReplyDeleteबाँध लिया मन को जिसने वह कविता है ...
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट कविता है !
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गेयात्मक, छन्दबद्ध,सुकुमार, मनोहारी कविता।
ReplyDeleteमन के भावों की मनोहारी अभिव्यक्त
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteकाल खंड, कंकाल समेटे,
ReplyDeleteकितने मायाजाल लपेटे,
स्मृति क्षति करती अवरोधित,
भूत भविष्यत सम आरोपित,
पा भावों की छाँह पनपती,
हर क्षण दर्पण, वह कविता है।
वाह, आनंद आ गया ! बहुत सुन्दर काव्य-कृति है.
प्रवीण भाई, कविता को बहुत ही सुन्दर ढंग से चित्रित किया है आपने, मन में उतर गयी आपकी कविता।
ReplyDelete.............
सिर चढ़कर बोला विज्ञान कथा का जादू...
कविता का रूप कलेवर ,नख शिख बखान कर आपने कविता का मानवीकरण कर दिया .कायिक मुद्राएँ इसकी अर्द्धनारीश्वर भी बन बैठीं हैं .श्रृंगार /श्रृंगारित /श्रृंगारिक बढ़िया प्रयोग किये हैं आपने भावानूरूप शब्द .
ReplyDeleteकविता का रूप कलेवर ,नख शिख बखान कर आपने कविता का मानवीकरण कर दिया .कायिक मुद्राएँ इसकी अर्द्धनारीश्वर भी बन बैठीं हैं .श्रृंगार /श्रृंगारित /श्रृंगारिक बढ़िया प्रयोग किये हैं आपने भावानूरूप शब्द .
ReplyDeleteबिलकुल सही। कविता की सुन्दर व्याख्या।
ReplyDeleteसरस, रोचक। छलकती हुई।
यह कविता है।
बिलकुल सही। कविता की सुन्दर व्याख्या।
ReplyDeleteसरस, रोचक। छलकती हुई।
यह कविता है।
शुक्रिया प्रवीण जी मेरी कविता को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteआपकी ये कविता पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
ज़िन्दगी के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण बन पढ़े है . और सच तो यही है कि कविता ऐसी ही होनी चाहिए. .
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in
काल खंड, कंकाल समेटे,
ReplyDeleteकितने मायाजाल लपेटे,
स्मृति क्षति करती अवरोधित,
भूत भविष्यत सम आरोपित,
पा भावों की छाँह पनपती,
हर क्षण दर्पण, वह कविता है-------adbhut--badhai
मन से निकली, मन की कहती,
ReplyDeleteशाश्वत विचरण, वह कविता है
kavita ki sachchi paribhasha !
Manju Mishra
www.manukavya.wordpress.com
ये तो कविता की कविता है ....
ReplyDelete