बसन्त बाबा के त्योहार पर सब मदनोत्सव में डूबे थे, कुछ पक्ष में, कुछ विपक्ष में और कुछ निष्पक्ष ही डूबे थे। बसन्त के आगमन ने एक खुमारी चढ़ा दी, सब आनन्द में थे। हमने भी शरीर से तनिक हिलने को कहा तो एक टका सा उत्तर मिल गया, श्रीमानजी बिस्तर पर ही पड़े रहिये, आपका खुमार यदि न उतरा हो तो सुन लीजिये कि आप बुखार में हैं। अब जब बिना हिले डुले ही शरीर गरमाया हुआ था तो व्यर्थ का श्रम कौन करे। हम पड़े रहे, छत की सफेदी निहारते रहे और परिवेश से आ रही बहुधा न सुनी जाने वाली ध्वनियों को सुनते रहे।
एक दिन पहले निरीक्षण से वापस आते ही शरीर ने हल्की सी कँपकपी के साथ यह संकेत दे दिया था कि किसी वायरस महोदय ने किला भेद दिया है, बुखार आने वाला है। रात अनिद्रा में बीती। अगले दिन एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने के लिये कार्यालय निकल तो गये पर अपराह्न लौटने पर शरीर ने झटका दे बिस्तर पर गिरा दिया। सब मदन के खुमार में और हम बदन के बुखार में, सब मस्त और हम पस्त।
दवाई दी गयी, वायरस से लड़ने के लिये एक एण्टीबायोटिक, बुखार कम करने के लिये पैरासीटामाल, एक एलर्जी कम करने की और एक एसिडिटी कम करने की। एण्टीबायोटिक प्राथमिक दवा और शेष सहयोगी। डॉक्टर साहब ने कहा कि तीन दिन तो लग ही जायेंगे, अच्छा है उसमें दो दिन सप्ताहान्त के हैं, कार्य की अधिक हानि नहीं होगी। हमने कहा हमारा तो परिचालन का कार्य है, सातों दिन चलता है, हाँ ये बात है कि सप्ताहान्त में घर से ही चल जाता है, वह अवश्य बन्द हो जायेगा। पता नहीं, वायरसों को सप्ताहान्त की कुछ कम समझ है या सरकारी अधिकारियों से कुछ अधिक शत्रुता। अब ले देकर वही दो दिन मिलते हैं जब घर के सभी सदस्य सूची बनाये बैठे होते हैं और आपको सुपरमैन बन सब कार्य निपटाने होते हैं।
सबने भरपूर सहयोग किया, कनिष्ठों ने सारा कार्यभार अपने ऊपर ले लिया। तन्त्र का होना और चलना कितना भला लगता है, विशेषकर जब आप स्वयं ही बिस्तर पर पस्त पड़े हों। घर में भी मेज पर एक थर्मामीटर, पानी की बोतल, बॉम और दवाइयाँ सजा दी गयीं। तीन दिन के लिये शरीर तैयार था लड़ने के लिये, वायरस से। हम तैयार थे, उस लड़ाई की पीड़ा झेलने के लिये।
शरीर का तन्त्र अत्यधिक विकसित होता है, उसे ज्ञात रहता है कि कौन उसे हानि पहुँचाता है और कौन उसके लिये लाभकारी है। शरीर स्वयं सक्षम है लड़ने में और शरीर का बढ़ा हुआ तापमान एक लक्षण है इस बात का कि शरीर अपने कार्य में लगा हुआ है। वायरस के प्रारम्भिक हमले में ही कँपकपी के लक्षण होना उस बढ़े तापमान के संकेत होते हैं। यह लड़ाई कोशिकाओं के सूक्ष्म स्तर पर होती है। ऐसा नहीं है कि यह लड़ाई अचानक ही हो जाये और कोई भी कोशिका लड़ने पहुँच जाये। एक विशेष प्रकार की कोशिकायें जिन्हें पॉलीमार्फोन्यूक्लियर ल्यूकोसाइट्स कहते हैं, वे ही सबसे पहले पहुँचती हैं और अधिक मात्रा में ऑक्सीडेशन कर, हाइड्रोजन पराक्साइड और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल बनाती हैं और अन्ततः आक्रान्ताओं को मारती हैं। अब किसी भी ऑक्सीडेशन प्रक्रिया में ऊष्मा निकलना स्वाभाविक है, इसीलिये हमें बुखार आता है, हमारा तापमान बढ़ता है।
बात भी सही है, शरीर में कहीं घमासान मचा हो और हमें पता भी न चले, यह तो बहुत अन्याय होता। तापमान को अनदेखा नहीं करना चाहिये। बचपन में बुखार आता था तो कम्बल ओढ़कर लेट जाते थे, थोड़ी देर में पसीना आता था और बुखार उड़नछू। तब समझ नहीं आता था कि पसीना आ जाने से बुखार उतरने का क्या संबंध? अब लगता है, संभवतः अन्दर से लड़ाकू कोशिकाओं की गर्मी और बाहर से कम्बल की गर्मी, इसमें ही आक्रान्ता वायरस अदि के प्राण पखेरू हो जाते होंगे। धीरे धीरे बड़े हुये तो बचपन की विधि को उतना कारगर नहीं पाया, तब किसी ने एण्टीबायोटिक की महिमा बतायी। ये महाशय अच्छे बुरे, सभी प्रकार के बैक्टीरिया को बढ़ने से रोक देते हैं और विकार को सीमित कर देते हैं, जिससे आपकी लड़ाकू कोशिकाओं को अधिक श्रम न करना पड़े। पर देखा जाये तो अन्ततः आपकी अपनी कोशिकायें ही लड़ती हैं, शेष सब सहयोगी की भूमिका में ही रहते हैं।
इन तीन दिनों में कई बार तापमान बढ़ा, यदि नींद में रहे तो कोई बात नहीं पर यदि आँख खुली रही तो थर्मामीटर से तापमान अवश्य माप लेते थे। डॉक्टर की सलाह थी कि जब तापमान अधिक हो तो उसे कम करने के लिये पैरासीटामॉल ली जा सकती है। अब कितने अधिक को अधिक की श्रेणी में रखा जाये, यह समस्या थी। कहते हैं कि १०२ डिग्री के ऊपर का तापमान मस्तिष्क के लिये घातक होता है, उस समय तापमान कम करना अत्यावश्यक हो जाता है। पहले दिन हमारा अधिकतम तापमान १०१.५ डिग्री तक ही गया और मस्तिष्क भी दुरुस्त रहा, लगा कि लड़ाई तगड़ी चल रही है। थोड़ा देखे, फिर पैरासीटामॉल खा कर सो गये, उठे तो तापमान कम था, सोचा लड़ाई का क्या हुआ, ठीक से चल रही है कि मंदी पड़ गयी? उत्तर उस समय तो पता नहीं चला पर छह-सात घंटे बाद पुनः तापमान बढ़ आया, लगभग उतने समय बाद ही, जब तक पैरासीटामॉल का प्रभाव रहा। अगले दो दिनों में तापमान ९९-१०० के बीच में ही रहा, पैरासीटामाल नहीं खायी, बस पानी अधिक पिया और विश्राम किया।
शरीर तो स्थिर हो गया पर एक स्वाभाविक संशय मन में आया कि जब पैरासीटामाल ली थी, क्या उस समय लड़ाकू कोशिकायें युद्धरत थीं या वो भी ठंडी पड़ गयी थीं, जैसे रुस की सर्दियों में जर्मनी की सेनायें। उत्तर के लिये जब संबंधित मेडिकल साहित्य पढ़ा तो तीन प्रमुख बातें पता लगीं। विज्ञ इस पर अधिक प्रकाश डाल पायेंगे पर उल्लेख प्रासंगिक है। पहला, शरीर का बढ़ा तापमान स्वस्थ संकेत हैं और जब तक १०२ के नीचे रहे और अधिक समय के लिये न रहे, पैरासीटामॉल के उपयोग की आवश्यकता नहीं है। दूसरा, पैरासीटामॉल लड़ाकू कोशिकाओं के कार्य को बाधित करता है, बैक्टीरिया को मारने वाले अवयव के उत्पादन की प्रक्रिया क्षीण करता है, या संक्षेप में कहें कि शरीर की प्राकृतिक रक्षा पद्धति में हस्तक्षेप करता है। तीसरा, बढ़ा हुआ तापमान आक्रान्ता की शक्ति को कम करता है, पैरासीटीमॉल से यह तापमान कम होते ही उन्हें और बल मिलता है और बीमारी की अवधि कम होने के स्थान पर बढ़ जाती है।
अब शोधकर्ता और विशेषज्ञ चाहे जो कहें, हमें अधिक तापमान सहन नहीं हो पाता है। हम तो तुरन्त ही पैरासीटामॉल खाकर युद्धविराम का संकेत दे देते हैं, अब इस समय का उपयोग शत्रुपक्ष सशक्त होने में लगाये या उसके लिये हमारा सुरक्षा तन्त्र कितना हल्ला मचाये। ध्यान से देखिये तो न जाने कितने सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भों में हम यही तो कर रहे हैं, गले के नीचे पैरासीटामॉल उतार लिये हैं और आँख बन्द कर सो गये हैं, उन स्थितियों में भी, जहाँ तापमान सहन करना हमारी क्षमता की सीमाओं में था।
हद्द है तबियत खराब होने में भी ज्ञान .... :-) ..लेकिन मेरे अनुभव से तो यही कह सकती हूँ कि तीन दिनी लड़ाई चलने दो तो विजय निश्चित अपनी ही होती है .....बस बुखार को सीमा के अन्दर कैद करके रखना पड़ता है चौबन्द चौकसी में ....
ReplyDelete...और एक बात लिखना भूल गई थी ...बहुत बड़ी भूमिका मन रूपी सेनापति की होती है ..राजा कोई भी हो ..जितवाकर ही दम लेता है ...
ReplyDelete....चलिए, आप तो निपट लिए और दूसरों को चेता भी दिया !
ReplyDelete.
.मदन और बदन को नियंत्रित रखिए। :-)
दृढ इच्छाशक्ति और जानकारी कई समस्याओं का हल हो सकती है |
ReplyDeleteश्रद्धा भाभी का जन्मदिन मुबारक हो और आप केक काटकर स्वस्थ हो जाइए |
ReplyDeleteमैडम जी को जन्म दिन मुबारक और आपको आपकी पत्नी का जन्म दिन मुबारक....और यह सार्थक लेखन...मैडम की उम्र की तरह आपकी कलम से बरसों बरस सौ बरस चलता रहे और हम पढ़ते रहें (स्वार्थी मैं) ...हाहा...शुभ शुभ!!
ReplyDeleteआक्रांताओं के खिलाफ जंग खत्म हुई अथवा जारी है. जल्द स्वास्थ्य लाभ हो शुभकामनायें.
ReplyDeleteशैया आराम पर रहिये -गेट वेल सून !
ReplyDeleteये आपके शरीर की प्रकृति के अनुरूप है या सभी को ऐसा करना चाहिये ?
ReplyDeleteबीमारी और उसमें भी शोध,चिंतन
ReplyDeleteपैरासिटामोल की मात्रा के साथ साथ वायरस भी अपनी क्षमता बढ़ाते जाते हैं , इसलिए आजकल कम मात्र में दी गयी डोज़ इतना असर नहीं करती .
ReplyDeleteवैश्विक सन्दर्भ से इसे जोड़ना तार्किक और रोचक है !
आखिरकार युद्ध विराम हो ही गया...
ReplyDeleteध्यान से देखिये तो न जाने कितने सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भों में हम यही तो कर रहे हैं, गले के नीचे पैरासीटामॉल उतार लिये हैं और आँख बन्द कर सो गये हैं, उन स्थितियों में भी, जहाँ तापमान सहन करना हमारी क्षमता की सीमाओं में था।
ReplyDeleteबीमारी की अवस्था में किया गया चिंतन चेता रहा है कि पैरासीटामॉल ले कर सोने से हम सामाजिक , राष्ट्रीय विषयों से बच नहीं सकते ...
रोचक और सोचने पर मजबूर करता हुआ लेख ... आशा है अब आप पूर्ण स्वस्थ होंगे ।
अंतिम पैरा बहुत कुछ कह गया।
ReplyDeleteबहरहाल शीघ्र स्वस्थ होकर श्रीमती पाण्डेय के जन्मदिवस के मंगल अवसर की मांगलिकता द्विगुणित करें, शुभकामनायें।
मेडिकल सलाह कुछ भी कहे पर बुखार क्या, जरा सा सरदर्द होते ही पैरासिटामोल गले से नीचे उतर ही जाती है, कमबख्त गले लग गई है.:)
ReplyDeleteजल्द स्वस्थ होकर मैदान में डते रहिये. शुभकामनाएं.
रामराम.
अपने बहाने कही गई है कई काम की बातें सबके लिए
ReplyDeletepraveen ji aapke shilp ke to kayal hai ham umda abhivyakti , badhai
Deleteसदा स्वस्थ रहिए...यही कामना है....
ReplyDeleteदृढ इच्छाशक्ति और जानकारी,कई समस्याओं का हल हो सकती है|आशा है अब आप पूर्ण स्वस्थ होंगे।
ReplyDeleteश्रीमती पांडे जी कोप जन्म दिन मुबारक. ज्ञानवर्धक आलेख. आभार.
ReplyDeleteशीघ्र स्वस्थ होने की मंगलकामनाए
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी.युद्ध विराम तो होना ही था.
ReplyDeleteरोज़मर्रा की जीवन से उठाए गये विषय बहुत ही रोचक होते हैं..! अंत में आपके द्वारा की गयी तुलना भी कुछ सोचने को मजबूर कर गयी! बहुत सही बात कही है आपने!
ReplyDeleteवैसे, जहाँ तक बुख़ार की बात है, हमें तो यही बताया गया है कि शारीरिक तापमान १०० डिग्री F होते ही पॅरासीटामॉल ले लेनी चाहिए!
Wish you a speedy recovery!:)
आपकी पत्नी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!:-)
~सादर!!!
सर्वप्रथम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। बाकी कार्य तो बाद में निपटते रहेंगे। आपकी पत्नी जी को जन्मदिवस की अनेकों मंगल-शुभकामनाएं।
ReplyDeleteध्यान से देखिये तो न जाने कितने सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भों में हम यही तो कर रहे हैं, गले के नीचे पैरासीटामॉल उतार लिये हैं और आँख बन्द कर सो गये हैं, उन स्थितियों में भी, जहाँ तापमान सहन करना हमारी क्षमता की सीमाओं में था।
ReplyDeleteगहन चिंतन से उपजा सार्थक आलेख ....
आपकी श्रीमतिजी को जन्मदिन की शुभकामनायें.....और आपको शीघ्र स्वस्थ होने की ....
दीर्घावधि का युद्धविराम हो ऐसी कामना है।
ReplyDeleteसर्वप्रथम तो बढिया आलेख के लिए बधाई। व्यक्ति बीमार पडने पर शायद ज्यादा सरस शब्दों को अपने पास जगह देता है। जन्मदिन की बात भी सुनाई दे रही है तो हमारी तरफ से शुभकामनाएं। वेसे वायरल में एण्टबायटिक का प्रयोग निरर्थक है, पेरासिटेमाल तो लेनी चाहिए। विदेशों में केवल पेरासिटेमाल ही देते है, एण्टीबायटिक नहीं।
ReplyDeleteआपकी यही सबसे बडी खूबी है जिसका भी अध्ययन करते हैं बहुत बारीकि और मनोयोग से करते हैं । जल्द स्वस्थ हों यही कामना है।
ReplyDeleteभले ही युद्द विराम हो गया हो कुछ दिन शरीर को आराम दीजिये कभी कभी शत्रु लौट के भी आ जाता है ,बहुत दिलचस्प सामयिक आलेख
ReplyDeleteसबसे एहम बात -आप का जल्दी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना है हमारे लिए .बुखार (ज्वर )तो इम्यून रेस्पोंस है बचावी उपायहै शरीर का सुरक्षा कवच है . अलबत्ता वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायटिक का चलन ज्यादा बेहूदा बात है .ऊपर से तुर्रा यह -तर्क -सेकेंडरी इन्फेक्शन से बचाए रखने के लिए वायरल इन्फेक्शन होने पर भी एंटीबायटिक ठोक दिया जाता है।
ReplyDeleteयुद्ध कोई भी हो लड़े बिना हार नहीं मानना चाहिए ... :)
ReplyDeleteबडी मुश्किल है! इतना सर्वोपयोगी, सूचनापरक आलेख पढने के बाद अबयह तो नहीं कह सकते कि इसी तरह बीमार बने रहिए और ऐसे ही आलेख देते रहिए!
ReplyDeleteउम्मीद है, आपकी संघर्षशीलता से खार खाकर बुखार हवा हो चुका होगा।
श्रीमती पाण्डेय को जन्म दिन की बधाइयॉं, अभिनन्दन और शुभ-कामनाऍं।
यह तो जानते थे कि बीमारी के दौरान शरीर इससे लड़ता है पर तापमान का इससे सम्बन्ध आपसे ही जाना। आप जल्द स्वस्थ हों यही कामना है।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी |
ReplyDeleteआशा
आपका यह लेख आज "हिंदुस्तान के पृष्ठ स.१० पर छपा है !'
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी...आपकी श्रीमतिजी को जन्मदिन की शुभकामनायें....
ReplyDeleteआज 21/02/2013 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteइसे कहते हैं समय का सदुपयोग ...बढ़िया जानकारी मिली ....आभार ..!
ReplyDeleteParacetamol i.e acetaminophen is the most abused drug mild analgesic and anti pyretic drug and so are antibiotics which are over prescribed even in viral infections ,to ward off the so called secondary infections.Hope this commnet finds you back in your true elements.
ReplyDeleteचौचक पोस्ट :)
ReplyDeleteसुपरमैन बन सब कार्य निपटाने होते हैं ... सच
ReplyDeleteस्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनाएँ
हमेशा की तरह लेखन प्रभावित करता हुआ
सादर
प्रज्ञाचक्षु खोलता आलेख..
ReplyDeleteइस समय यहाँ भी फैली हुई है फ्लू एवं इससे संबंधित बीमारियाँ ..मैं भी इसकी गिरफ्त में हूँ आजकल..रही बात पेरासीटेमोल की तो यह काफी सेफ दवा मानी जाती है.लीवर के मरीजों को नहीं जाती और जिन्हें इस के साल्ट से अलर्जी है उन्हें भी मना होती है.
ReplyDelete९८.६ से ऊपर के तापमान को सामान्य नहीं माना जाता.बुखार की श्रेणी में ही आता है..जहाँ तक मुझे मालूम है .१०२ तापमान वाली बात बच्चों पर लागू होती है, एक वयस्क के लिए १०४ से ऊपर तापमान खतरनाक कहा जाता है.मैंने १००-१०४ में भी लोग बाग़--छुट्टी न मिलने पर नौकरी पर जाते देखे हैं[खुद भी गई हूँ] ...बुखार संकेत मात्र है कि बीमारी नहीं.
बाकि एक्सपर्ट बताएँगे.
जल्द स्वस्थ हो जाएँ,शुभकामनाएँ.
In combo also British health services has recommended the amount of Paracetamol to be limited to 325mg .In India the combination till yesterday were containing 500 mg paracetamol .
ReplyDeleteThe pack in Britain is now reduced to 32tabs on recommendation of Pharmacy and to 16tabs as over the counter drug . This single step has reduced number of paracetamol induced liver transplants there substantially.Good to know you are out of the clutches of the viral infections. Thanks for your valuable comments.
annunciation system है कुदरत का ।
ReplyDeleteवायरल झेलते हुए भी बहुत चिन्तन कर डाला ,देश पर छाये वायरल के लिये भी कोई खुराकें पिलाता रहे तो कितना अच्छा हो.
ReplyDeleteबहुत बधाई- श्रीमती जी के साथ आप को भी!
ReplyDeleteशुक्रिया ज़नाब का तसल्ली है आप स्वस्थ हैं .
सर जी स्वास्थ्य लाभ की कमाना करता हूँ जल्द ठीक हो जाए अभी ब्लोग्स बहुत लिखने है |
ReplyDeleteहास्य-व्यंग से परिपूर्ण रोचक रचना ।
ReplyDeletenice information. Thank you for sharing it. Thanks Packers Movers
ReplyDeleteसब मदन के खुमार में और हम बदन के बुखार में, सब मस्त और हम पस्त।
ReplyDeleteसचमुच बहुत नाइन्साफी है ।
जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें और बहुरानी के जन्मदिन का केक खायें । अनेक शुभेच्छाएं ।
हरेक रंज में नुस्खा है जिंदगी के लिए।
ReplyDeleteइश्वर करें आप सदैव स्वस्थ प्रसन्न रहें
Very useful information. Thank you for sharing it. Thanks 99th
ReplyDeleteThis is very useful information shared here. I am really thankful for this. 99th.co.in
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