देखा जाये तो ऐसे बीस मिनटों का जीवन में बड़ा महत्व है। एक दिन में तीन भी बार ऐसा संयोग हो जाये तो मान कर चलिये कि दिन में एक घंटा अधिक मिल गया आपको। बड़ी ही रोचक बात है कि अलग अलग देखा जाये तो उस समय की क्या उत्पादकता? बहुत से लोगों के लिये आगत की तैयारी में या विगत के चिन्तन में यह समय निकल जाता है। आप यदि कुछ नहीं करेंगे तो विचार तो वैसे भी समय को रिक्त नहीं रहने देंगे, कुछ न कुछ लाकर भर ही देंगे।
कहने के लिये बीस मिनट बहुत कम होते हैं पर कहने को कहा जाये तो बहुत अधिक हो जाते हैं। कोई एक विषय देकर कहा जाये कि इस पर बीस मिनट बोलना है तो आधे के बाद ही साँस फूलने लगती है, विषय के छोर नहीं सूझते हैं तब। हँसी हल्ला में तो घंटों निकल जाते हैं पर पिछले दो घंटों में क्या चर्चा हुयी, इस पर बोलने को कहा जाये तो सर भनभनाने लगता है। एक घटना याद आती है, किसी चालक दल ने इंजन का कार्यभार लेने में पाँच के स्थान पर दस मिनट लिये। जब वरिष्ठ अधिकारी ने बुलाया और इस देरी का कारण पूछा तो उत्तर देने में चालक दल ने यह संकेत देने का प्रयास किया कि पाँच अतिरिक्त मिनट कोई अधिक नहीं होते। वरिष्ठ अधिकारी ने बड़े शान्त भाव से उन्हें सुना और कहा कि बस पाँच मिनट तक वे सामने लगी घड़ी को देखते रहें और उसके बाद अपने मन की बात बता कर चले जायें, कोई आरोप नहीं लगेंगे। पाँच मिनट बाद चालक दल स्वयं ही भविष्य में उस भूल को न दुहराने का आश्वासन देकर चले गये।
कभी कभी समस्या भिन्न प्रकार से आती है, यदि आप किसी विषय के विशेषज्ञ हों, आपने जीवन के न जाने कितने वर्ष उस विषय को दिये हों, न जाने कितने शोधपत्र छाप दिये हों, आपने कोई ऐसा नया कार्य किया हो जिसने विज्ञान, विकास, अर्थ, समाज आदि की दिशा बदल दी हो, और तब आपसे कहा जाये कि सार केवल बीस मिनट में प्रस्तुत करें। आपके सामने उस विषय को सामान्य रूप से समझने वाले श्रोतागण बैठे हैं, आपको इतने विस्तार को समेट कर उसका निचोड़ बीस मिनट में प्रस्तुत करना है। यह समस्या लगभग उसी प्रकार से हुयी कि आपसे कहा जाये कि आपको अपने सामानों में केवल बीस को ले जाने की अनुमति है, तो आप कौन से ले जायेंगे। तब जितना श्रम आपको बीस वस्तुओं को निर्धारित करने में लगेगा उससे कहीं अधिक श्रम आपको अपने जीवन की विशेषज्ञविधा को बीस मिनट में समेटने में लगेगा।
आप क्या करेंगे यदि आपको भी यही कहा जाये? संभवतः मर्म को सर्वाधिक महत्व देंगे, उसके चारों ओर जो भी अनावश्यक या कम आवश्यक है उसे उन बीस मिनटों की परिधि के बाहर रखेंगे। जब कहने को सीमित समय हो और कम तथ्य हों तो संवाद की कुशलता सीधे हृदय उतरती है। संवाद कुशल व्यक्ति यह जानते हैं कि श्रोताओं के हृदय में उतरने का मार्ग विषय को सरल ढंग से प्रस्तुत करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। विषय को सरल ढंग से व्यक्त करने के लिये और अधिक श्रम करना पड़ता है और यह कार्य केवल विशेषज्ञ और मर्मज्ञ ही कर सकते हैं।
लेखन यात्रा में बहुधा लगता है कि घट खाली हुआ जा रहा है, समय रहता है पर सूझता नहीं कि क्या लिखा जाये? विचार मानसून की भविष्यवाणी की तरह ही आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। जब कुछ देने की स्थिति में नहीं होता है जीवन तो याचक के रूप में आकर कुछ ग्रहण कर लेना रोचक भी लगता है और आवश्यक भी। पता नहीं घट कब तक भरेगा? कभी कभी तो लगता है कि इतने अच्छे और उत्कृष्ट विचार सुनने के क्रम में हम अपनी प्यास और बढ़ा बैठे हैं, जितना सुनते हैं, उतने प्यासे और रह जाते हैं। लगने लगता है कि कितना नहीं आता है अभी, कितना सीखना शेष है अभी।
सुनना व्यर्थ न जायेगा, कुछ न कुछ नये विचार सूत्र अवश्य निकलेंगे, कुछ श्रंखलायें अवश्य बनेगी जिनमें सबको प्रभावित कर जाने की क्षमता होगी, कुछ दर्शन उभरेगा जिसमें हम अपने उत्तर पाने की दिशा में बढ़ने लगेंगे। कुछ नया सीखने या जानने का मन हो तो आप क्या करेंगे? विशेषज्ञों से अच्छा भला और कौन बता पायेगा आपको, वह भी बस बीस मिनट में।
बढ़िया आलेख. बीस मिनट! कभी कभी तो एक उमर भी कम लगती है सीखने के लिये :)
ReplyDeleteनया जानने और समझने, सुनने की उत्कंठा सदैव बलबती रहती है अंतर्मन में. यूँ तो २० मिनट का समय बहुधा मिलता है लेकिन उसका सदुपयोग एक सुंदर सुझाव है.
ReplyDeleteसुंदर आलेख.
बढ़िया प्रश्न
ReplyDeleteबीस मिनट मात्र
करना चाहें तो
कर सकते हैं
सब-कुछ
और
नहीं तो
साल कम पड़ जाए
सादर
अच्छी पोस्ट! बीस मिनट वाले वीडियो सुनने के लिये बुकमार्क कर लिये हैं। :)
ReplyDeleteरोचक, उपयोगी. निर्मल वर्मा याद आए, उन्होंने कहीं अपने बचपन के ''पांच मिनट में मर जाने वाले'' खेल का जिक्र किया है.
ReplyDelete...बीस मिनट तो कइयों पर बीस पड़ेंगे !
ReplyDelete.
.समय को इस तरह सहेजना अतिरिक्त लाभ देगा ।
पांडेय जी अच्छा लेख है परन्तु 20 मिनिट नहीं यदि ५ मिनिट का समय हो तो इधर भी नजर डाल लीजिये -आभार
ReplyDeleteNew postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।
18 minutes max is the usual limit for TED talks. Seems to me loads of thought went into choosing that length - an average coffee break is 20 minutes. In that time you can see and share the link of an average TED talk. And it can easily go viral.
ReplyDeletePlus, of course, the discipline it imposes on the speakers.
Nice post.
जब कुछ देने की स्थिति में नहीं होता है जीवन तो याचक के रूप में आकर कुछ ग्रहण कर लेना रोचक भी लगता है और आवश्यक भी।
ReplyDeleteसही बात है ....आपका सुझाव भी बहुत अच्छा है , कोशिश रहेगी बीस मिनिट के इस प्रयोग को अपनाने की.....
बीस मिनट का उपयोग बहुत ही अच्छी प्रकार से बताया है आपने।
ReplyDeleteकहने के लिये बीस मिनट बहुत कम होते हैं पर कहने को कहा जाये तो बहुत अधिक हो जाते हैं। कोई एक विषय देकर कहा जाये कि इस पर बीस मिनट बोलना है तो आधे के बाद ही साँस फूलने लगती है, विषय के छोर नहीं सूझते हैं तब। हँसी हल्ला में तो घंटों निकल जाते हैं पर पिछले दो घंटों में क्या चर्चा हुयी, इस पर बोलने को कहा जाये तो सर भनभनाने लगता है।
ReplyDeleteएकदम प्रेरक और जीवन में अपनाने योग्य पोस्ट ...!
जीवन में समय का सदूपयोग कर उसका लाभ उठाना चाहिए,क्योकि बीता पल फिर नही मिलने वाला,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST शहीदों की याद में,
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बीस मिनट रिवाइंड करुँगी ज़िन्दगी - नयी सोच के साथ
ReplyDelete
ReplyDeleteबीस मिनट में समय का सदुपयोग।
इसके अलावा आप इस समय को मेडिटेशन (तनाव ग्रस्त लोगों के लिए ) , बैठे बैठे घुटनों की एक्सरसाइज़ ( बुजुर्गों के लिए ), कविता लिखने ( कवियों के लिए), और कभी कभी स्वयं से रूबरू होने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। :)
रोचक ढंग से बीस मिनट की अहमियत को बताया .... जितना भी जाना जाए कम लगता है .... कभी कभी सच ही घट खाली होने की स्थिति आ जाती है .... प्रेरक लेख
ReplyDeleteI usually write in those 20 minutes. Nevertheless excellent idea, of course worth spreading.
ReplyDelete:)
अच्छा आलेख ! बीस मिनट का इससे बेहतर उपयोग और क्या हो सकता है...अगर आपके पास कोई और कार्य उस बीस मिनट के अनुसार नहीं हो तो...
ReplyDelete~सादर!!!
बीस मिनट पर ... इतना उत्कृष्ट लेखन
ReplyDeleteआभार
अद्भुत बीस मिनट और मेरा कमेंट्स भी बीसवां है |इस बीस मिनट ने एक गौरतलब आलेख लिखवा दिया |आभार सर
ReplyDeleteकितना नहीं आता है अभी, कितना सीखना शेष है अभी......?
ReplyDeleteसर जी चालक दल के लिए एक सेकेण्ड भी मूल्यवान है | बढ़िया सदुपयोग समय का |
ReplyDeleteवाह ! समय का सदुपयोग और मस्तिष्क को नित नवीन जानकारी..प्रेरक पोस्ट !
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteमैं ऐसे बीस मिनट मिलने पर मोबाइल निकाल कर ब्लॉग पोस्टें पढ़ने लगता हूँ।
ReplyDeleteआज से हम भी सुनना शुरू करते हैं
ReplyDeleteमिनट तो ठीक पर मूड भी तो कोई चीज़ है
ReplyDeleteबढ़िया आलेख..ये बीस मिनट का अपना ही महत्व है..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे विषय भी रहते हैं ...कुछ करने की प्रेरणा तो मिलती ही है हमेशा...
ReplyDeleteबीस मि्नट जीवन में महत्वपूर्ण होते हैं… सटीक
ReplyDeleteबढियां हाबी
ReplyDeleteअतिशय उपयोगी लेख... धन्यवाद...
ReplyDeleteजीवन के बहूमूल्य बीस मिनिट ....कुछ देते हुए ...
ReplyDeleteबहुत सार्थक और उपयोगी ,एक दिशा दिखते हुए ...आभार
हर मिनिट पल छिन कीमती सरजी !अपन एक शहर से दूसरे शहर में पहुँच जाते हैं परिवेश साथ चलता है पहले पत्र - पत्रिकाएँ होतीं थीं चंद अखबार और अब लैप टॉप जगह कोई भी हो खाली रहना आत्म ह्त्या करने जैसा हो जाता है .असल बात है समय का महत्व समझना .सबकी अपने अपने ओबसेशन हैं सनक हैं ,ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी हैं .
ReplyDeleteपाल ले एक रोग नादाँ ज़िन्दगी के वास्ते ,
सिर्फ सेहत के सहारे कटती नहीं है ज़िन्दगी .
समय का मूल्य और भी गहन हुआ..
ReplyDeleteसीखने के लिए समय हमेशा कम रहता है . ...
ReplyDeleteबीस मिनट की रोचक कहानी ... आपकी लेखनी ओर अनेक्कों की जुबानी ...
ReplyDeleteकाफ़ी महत्वपूर्ण हैं बीस मिनट, यदि सदुपयोग कर लिया जाये.
ReplyDeleteरामराम.
उन बीस मिनटों में से कुछ समय दुनिया की किताब के चारों ओर फैले पन्ने पढ़ने-समझने में भी लगा दीजिए ,उसे भी तो आपका इंतज़ार है.
ReplyDeleteहै। एक नजरिया तो है आपकी इस पोस्ट में।
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ReplyDeleteसमय की सवारी करो वरना समय तुम्हारी सवारी करेगा .समय का सदुपयोग कुदरत का सबसे बड़ा इनाम है आदमी के लिए .
यदि मन अवसाद में हो तो शायद ही कुछ करने का मन हो इन बीस मिनटों में...लेकिन फिर भी मैं कुछ सार्थक पढ़ने का प्रयत्न करुंगा।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
जिंदगी में हर कदम पर इनसान कुछ न कुछ सीखता ही है बीस मिनट क्या पूरी जिंदगी लग जाती है सीखने के लिए किन्तु महत्वपूर्ण बात है कि सीखना क्या चाहिए जो जीवन में उपयोगी हो समय बरबाद ना हो कुछ अच्छा सीखें फिर अच्छा दूसरों को सिखाये बहुत प्रभाव शाली आलेख हार्दिक बधाई
ReplyDelete" संवाद कुशल व्यक्ति यह जानते हैं कि श्रोताओं के हृदय में उतरने का मार्ग विषय को सरल ढंग से प्रस्तुत करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। विषय को सरल ढंग से व्यक्त करने के लिये और अधिक श्रम करना पड़ता है और यह कार्य केवल विशेषज्ञ और मर्मज्ञ ही कर सकते हैं।"
ReplyDelete....................... बहुत सही और सटीक.
समय के कहानी आपकी जुबानी पढ़ी .लगा दिए आपने पंख समय को .पल छिन को ,निचोड़ लिया उसका सार तत्व .वाह .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
ReplyDeleteसमय के कहानी आपकी जुबानी पढ़ी .लगा दिए आपने पंख समय को .पल छिन को ,निचोड़ लिया उसका सार तत्व .वाह .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
ReplyDeleteबीस मिनट में समय का बहुत बढ़िया सदुपयोग कर दिखाया आपने ...सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteहम तो मिनिट मिनिट का हिसाब रखते हैं, और कोशिश करते हैं कि मिनिट भी बेकार ना चला जाये ।
ReplyDeleteAccha padhna/acchha sunNa/vaartayen aadi sunte rahna chaheeye.20 min..ya sirf 10 min...
ReplyDeletejaisa ki aap ne bhi bataya KI aisa karna ..hamesha yeh ahsaas dilata hai ki hamEn abhi aur sikhna hai aur jaNana hai.
Aap ka lekhan bhi pathak ke vicharon ko poshit avshy karta hai.
आज जनसत्ता में आपका आलेख देखा... पढ़े बिना नहीं रह पाए...
ReplyDeleteवाक़ई बहुत अच्छा आलेख है...
शुभकामनाएं...
और लीजिये ये कुछ पल सार्थक हुए आपकी पोस्ट पढने में ।
ReplyDeleteतात स्वर्ग अपवर्ग सुख रखिये तुला एक संग ,
ReplyDeleteतूल न ताहि सकल मिली ज्यो विधि लब सत्संग।।"
मैंने अपने ऑफिस के लंच ब्रेक के इस बीस मिनट का भरपूर आनंद लिया।" आपके सुविचारित आलेख के लिए सुक्रिया।
आज हमने भी अपने बीस मिनट का इस्तेमाल आपकी छूटी हुई पोस्ट पढ़ने में किया और अच्छा लगा :)
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