क्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को,
गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को।
क्या आशायें, क्या इच्छायें, क्या जीवन की अभिलाषायें,
अनुचित, उचित विचार निरन्तर, रच क्यों डाली परिभाषायें,
सबने जकड़ जकड़ कर बाँधा, नहीं जिलाया व्यक्ति विकल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।
यह सच है, जिसने जीवन को देखा, परखा, समझा है,
आहुति बनकर स्वयं जलाया, यज्ञ उद्गमित रचना है,
कैसे नहीं निर्णयों में वह लायेगा व्यक्तित्व सकल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।
मैने जीवन की गति को अब स्थिर मन से देखा है,
महाचित्र पर खिंचती जाती, कर्मक्षेत्र की रेखा है,
ये रेखायें सतत बनातीं, योगदान फिर क्यों निष्फल हो,
दोष नहीं दे सकता कल को।
मानक है जीवन जीने के, लगी यन्त्रवत सकल व्यवस्था,
सुख, साधन की होड़ लगी है, कहाँ पता है किसे समय का,
बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।
है विवेचना व्यर्थ, तर्क सब, कल की कल पर छोड़ बिसारी,
चलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 05/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर कविता। आशा के साथ कल का स्वागत हो।
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति
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ReplyDelete'कल' का स्वागत हो कि सभी का आगत मंगलमय हो !
बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
ReplyDeleteAlexander the great, also went vacated hand! In rate race, we forget about what is invaluable!
... समय का दोष कभी नहीं होता ।
ReplyDeleteकल का क्या दोष? समय प्रवृत्ति-निवृत्ति का अनोखा अभ्यास कराता चलता है। जीवन स्थिरतः देखने से अपनी भंगिमायें स्वतः ही स्पष्ट करता चलता है।
ReplyDeleteकर्मण्ये वाधिकारास्ते मा फ़लेषु कदाचनः !
ReplyDeleteदोष नहीं दे सकता कल को ....
ReplyDeleteकल था जो बीत गया , अब वर्तमान ही सब है !
चरैवेति चरैवेति !
अंधियारे को क्योंकर कोश रहें हम
ReplyDeleteजब खुद ही अन्धकारमय बना रहे
दूसरों को रह दिखने वाले हम
खुद ही तिमिर में भटक जा रहें
कल यदि दोषी है तो आज में क्या परेशानी है ! जितने कैनवस,उतने चेहरे,उतने भाव,उतने तर्क ............ दोष कल का क्या है ???
ReplyDeleteसत्य है, कल को दोष देने का कोई अर्थ नहीं होता, कल से बस सबक ली जा सकती है व सुंदर व सार्थक वर्तमान का निर्माण ही मनुजता की कसौटी व अपेक्षा है।नये वर्ष का आगाज इतनी सुंदर व सार्थक रचना के साथ करने हेतु हार्दिक आभार व बधाई। पुनः सस्नेह नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteThere's no point in doing that.... aptly expressed in your words !!
ReplyDeleteWishing u a very happy new year :)
्सही कहा
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ReplyDeleteएक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह- का स्मरण हो गया।
ReplyDeleteक्षुब्ध मानस को आशान्वित करती सुन्दर काव्य-कृति ..
ReplyDeleteहै विवेचना व्यर्थ, तर्क सब, कल की कल पर छोड़ बिसारी,
ReplyDeleteचलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
बीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को ..
ऐसा हो जाना साधु हो जाने के बराबर है ... बहुत ही सुब्दर प्रवाह मय रचना ...
२०१३ आपको शुभ हो ...
भविष्य की जो सूरत संवारी है वो साकार हो,वर्तमान बने,
ReplyDeleteक्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है.
नया साल आपको शुभ और मंगलमय हो.
बहुत ही उम्दा कविता सर |
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ReplyDeleteनए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट 3-1-2013 को चर्चा मंच पर चर्चा का विषय है
कृपया पधारें
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवर्तमान में यह सुद्रढ़ करना आवश्यक कि कल शर्मिंदा ना होना पड़े.
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगलकामनाएँ.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. आप को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना... और सामयिक भी!!
ReplyDeleteबीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को-यही निचोड़!
ReplyDeleteहम अपना दोष मड़ते हैं वक्त के सिर .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
रचना तो पूरी ही सुन्दर है किन्तु अन्तिम छन्द प्रेरक और सर्वकालिक है - सबके लिए आवश्यक, सबके लिए] हर समय उपयोगी।
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ReplyDelete@ बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
ReplyDeleteआनंद आ गया प्रवीण भाई ...
आपकी लेखनी के धीरज का कायल हूँ ....
बधाई !
भावपूर्ण समीक्षात्मक रचना.....
ReplyDeleteदोष नहीं दे सकता कल को ... बिल्कुल सही कहा आपने
ReplyDeletebehaaad khoobsurat
ReplyDeleteमानक है जीवन जीने के, लगी यन्त्रवत सकल व्यवस्था,
ReplyDeleteसुख, साधन की होड़ लगी है, कहाँ पता है किसे समय का,
बाँध बनाते जीवन बीता, भूल गया था लाना जल को,
दोष नहीं दे सकता कल को।
ज़ारी रहे खोज अन्वेषण जीवन के राग के प्राप्ति के अप्राप्ति के .बढ़िया रचना भविष्य को निहारती अतीत को खंगालती
बुहारती ,दुत्कारती .
बीता हुआ कल हो या बीता हुआ पल हो , वही तो समय की गति दर्शाता है और गत का दोष गति को क्यों ?
ReplyDeleteHappy New Year....aaj ko sanvaatrte hain....kal to beet gaya....
ReplyDeleteबीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,
ReplyDeleteदोष नहीं दे सकता कल को।,,,
भाव पूर्ण सुंदर पंक्तियाँ,,
recent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
wonderful poetry
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteदोष नहीं दे सकता कल को
ReplyDeleteक्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को,
गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को।
गहरे पानी पैठ ,देख रहा वह आज कल और परसों को ....
क्या बात है प्रवीण जी ,गीत चिंतन और दर्शन ,गेयता और सन्देश सभी कुछ एक साथ लिए है .
sundar.....
ReplyDeleteचलो सजायें वर्तमान में, एक भविष्य की सूरत न्यारी,
ReplyDeleteबीज लगाओ, सींचो बगिया, आने दो आशान्वित फल को,
बेहद सुंदर आशावादी प्रस्तुति । शुभ नववर्ष ।
जियें सजगता से हर पल को
ReplyDeleteदोष भला क्या देना कल को।
जिंदगी के ढेरसारे चित्रों का कोलाज़ ब बनाती कविता।
वक्त के अनुरूप अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभाव पूर्ण सुंदर रचना
ReplyDeleteबाँध बनाते जीवन बीता ....बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ ।
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