खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
देखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो कह सके, मत जाओ प्यारे,
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
कोई कह दे, नहीं अब मैं जाऊँगी,
संग तेरे यहीं पर रह जाऊँगी ।
कोई हो, एकान्त की खुश्की मिटाने,
नीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
मर्म की पीड़ा समझती जा रही हो ।।२।।
कोई कह दे, छोड़कर पथ विगत सारा,
तुझे पाया, पा लिया अपना किनारा ।
कोई कह दे, भूल जाओ स्वप्न भीषण,
कोई हो जो हृदय को थपका रही हो ।
कोई कह दे, देखता जो नहीं सपना,
कोई हो जो प्रेयसी बन आ रही हो ।।३।।
...अब लहरों से ही आस बची है !
ReplyDeleteशानदार रचना
ReplyDeleteअभी भी "कोई" हो ?
ReplyDeleteवाह मन तरंगों का अल्हणपन व सौंदर्य में आत्मसात हो जाने की सुंदर व सजीव अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअति सुंदर।
सादर- देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट - कुछ डिप्रेसिंग व कुछ इंस्पायरिंग.....
प्रवीण जी, हो सके तो अपना EMail Add. दे दीजिए। आपसे बात करने मेँ अच्छा लगेगा।
ReplyDeleteamitbharteey@gmail.com
It is both relaxing and invigorating to occasionally set aside the worries of life, seek the company of a loved and just do nothing :)
ReplyDeleteवो कोई ही तो होता है, जो ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाकर उसे मायने दे देता है...
ReplyDelete:)
Waah waah kya Baat Hai Praveen bhai
ReplyDeleteपता नहीं,कुल साँसे अपनी
ReplyDeleteहम खरीद कर , लाये हैं !
कल का सूरज नहीं दिखेगा
आज समझ , ना पाए हैं !
भरी वेदना, मन में लेकर,कैसे समझ सकोगे प्रीत?
मूरखमन फिर चैन न पाए,जीवन भर अकुलायें गीत !
सागर की लहरों को देखते रहो तो मन भी वैसा ही होने लगता है-पूर्णिमा की रात में ट्राई कीजियेगा कभी!
ReplyDeletesunder kavita......
ReplyDeleteकोई कह दे, नहीं अब मैं जाऊँगी,
ReplyDeleteसंग तेरे यहीं पर रह जाऊँगी ।
कोई हो, एकान्त की खुश्की मिटाने,
नीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
मर्म की पीड़ा समझती जा रही हो ..
बहुत ही शुन्दर भावों से सजी ... कल्पना के पंकों पे सवार रचना ...
बहुत लाजवाब ...
"काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
ReplyDeleteकोई पहचानी, पुरानी आ रही हो।"
वाह, सुन्दर रचना।
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteशायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
ReplyDeleteकोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
नीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो प्रेयसी बन आ रही हो।
आहहहहहहहहहहहहाहाहा....................... भाई साहब, दिल अन्दर तक भीग गया ! :)
शानदार लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!!
प्रभाशाली कविता
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसादर
इस 'कोई' की अनवरत तलाश !
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सुंदर अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteइन्तजार के सागर में मन की हलचल!!
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteएक अपरिभाषित, अनजाना 'कोई'....
याने, समन्दर किनारे प्रतीक्षारत बैठा एक प्यासा।
ReplyDeleteएक प्रतीक्षा,महासागर सी अनंत. सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसागर किनारे दीर्घ प्रतीक्षा !!!!
ReplyDeleteमन को छूती बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
बहुत उम्दा !
ReplyDeletebahut hi sundar rachna...waah..
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुध बिसराती हुई रचना.....
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_6742.html
ReplyDeleteबहुत आभार आपका..
Deleteखड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
ReplyDeleteदेखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो कह सके, मत जाओ प्यारे,
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
इधर आओ एक बार फिर प्यार कर लें ,
निगाहों से रूहों को बे -जार कर लें .
ये जो मन की गति है बड़ी न्यारी है .बढ़िया रचना है जीवन लहरों में उतराती लहराती .
खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
ReplyDeleteदेखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो कह सके, मत जाओ प्यारे,
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
इधर आओ एक बार फिर प्यार कर लें ,
निगाहों से रूहों को बे -जार कर लें .
ये जो मन की गति है बड़ी न्यारी है .बढ़िया रचना है जीवन लहरों में उतराती लहराती .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2012) के चर्चा मंच-११०७ (आओ नूतन वर्ष मनायें) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
ReplyDeleteदेखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो कह सके, मत जाओ प्यारे,
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
इधर आओ एक बार फिर प्यार कर लें ,
निगाहों से रूहों को बे -जार कर लें .
ये जो मन की गति है बड़ी न्यारी है .बढ़िया रचना है जीवन लहरों में उतराती लहराती .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का
खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
ReplyDeleteदेखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो कह सके, मत जाओ प्यारे,
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
इधर आओ एक बार फिर प्यार कर लें ,
निगाहों से रूहों को बे -जार कर लें .
ये जो मन की गति है बड़ी न्यारी है .बढ़िया रचना है जीवन लहरों में उतराती लहराती .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
ReplyDeleteस्पेम में गईं हैं टिप्पणियाँ भाई साहब .
प्रिय -प्रतीक्षा!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
बहुत ही सुंदर रचना |
ReplyDeleteखूबसूरत ख्याल ...
ReplyDeleteSir ji .deep expression like sea.
ReplyDeleteपूर्णिमा की चांदनी रात जैसा एहसास हो रहा है, बहुत ही सुमधुर रचना.
ReplyDeleteरामराम
,मन पे काबू रखो ,निर्भया बनो ! वर्ष 2012 ने जो चिंगारी छेड़ी है अन्ना जी से निर्भया तक ,जब अकेली जान आधी दुनिया की पूरी तथा इंसानियत की लड़ाई लड़ सकती है मौत को
ReplyDeleteधता बता सकती है तब एक फर्ज़ हमारा
भी है सेकुलर वोट की बात करने वालों को हम भी मुंह की चखाएं .
,शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
सागर का किनारा हो और साथ तुम्हारा हो ,
शरमाई सी हंसी हो और प्यार हमारा हो .
साहिल पे लहरों को सर पटकते देखा ,
इश्क में गफलत का बाज़ार गर्म देखा .
एक साहिल और हजार लहरें ,
किस किस की सुने .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
शुक्रवार, 28 दिसम्बर 2012
एक ही निर्भया भारी है , इस सेकुलर सरकार पर , गर सभी निर्भया बाहर आ गईं , तब न जाने क्या होगा ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
क्या लिखा है यार! बहुत ही बढ़िया पद्य है।
ReplyDeleteकोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
ReplyDeleteमर्म की पीड़ा समझती जा रही हो ।।
भावों में डूबी सुंदर रचना....
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
देखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
कोई कह दे, छोड़कर पथ विगत सारा,
तुझे पाया, पा लिया अपना किनारा ।
कोई कह दे, भूल जाओ स्वप्न भीषण,
कोई हो जो हृदय को थपका रही हो ।
कोई कह दे, देखता जो नहीं सपना,
कोई हो जो प्रेयसी बन आ रही हो ।।
देखिए, सचमुच कोई आ गई तो गृहयुद्ध की स्थिति बन सकती है
;)
आदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी
आपकी छवि हमारे मनों में कवि/गीतकार की नहीं है ...
लेकिन आपकी पद्य रचनाएँ पढ़ने पर स्वतः ही मन बोल उठता है -
वाऽह ! क्या बात है !
सुंदर भाव !
सुंदर शब्द !
खूबसूरत रचना !
आपकी लेखनी से और भी सुंदर , श्रेष्ठ गीत निसृत हों …
अस्तु !
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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मन की कोमल सी ख़्वाहिश लहरों को संबोधित करते हुये .... बहुत सुंदर भाव ।
ReplyDeleteकोई हो, एकान्त की खुश्की मिटाने,
ReplyDeleteनीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
मर्म की पीड़ा समझती जा रही हो
सुमधुर, सुंदर, खूबसूरत रचना.
कोई हो, एकान्त की खुश्की मिटाने,
ReplyDeleteनीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
मर्म की पीड़ा समझती जा रही हो
सुमधुर, सुंदर, खूबसूरत रचना.
कुछ भावनाएं गाहे बगाहे कवि होने का प्रमाण दे ही डालती हैं । खूबसूरत से भाव ।
ReplyDeleteयह अनन्त की ही तलाश है
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