पिछले शनिवार को बाल कटाने गये, एक नियत दुकान है, वहीं पर ही जाकर कटाते हैं। प्रारम्भ में एक दो बार जाने से परिचय हो गया, कैसे बाल कटाने से चेहरा अच्छा दिखेगा, दोनों को समझ आ गया, तब से वहीं जाने का क्रम बन गया। अब महीने में एक बार जाना हो ही जाता है, कभी कभी देर हो जाने पर दर्पण डरा देता है, बालों को लहराकर काढ़ने में कभी सौन्दर्य दिखता ही नहीं है, बिखरा बिखरा सा व्यक्तित्व लगता है। छोटे छोटे बाल ही सुहाते हैं, तब चेहरा बालों से अधिक संवाद करता हुआ लगता है।
सर के बालों को लेकर सबका अपना सौन्दर्यबोध है, सबका अपना दर्शनशास्त्र है। श्रंगार रस के कवियों ने न जाने कितना कुछ लिखा है, नारियों के खुले और लम्बे बालों पर, कई तरह से बाँधी हुयी चोटियों पर, चोटियों पर सजे हुये पुष्पों के अलंकरण पर और उन पुष्पों के सौन्दर्य पर डोलते पुरुषों के हृदयों पर। कविगण तनिक परम्पराओं से हिलमिल कर चलते हैं, परन्तु आधुनिकाओं को छोटे छोटे बाल ही सुहाते हैं, उनके रखरखाव पर उन्हें समय व्यर्थ करने का मन ही नहीं होता है, हो सकता है उन्हें भी मेरी तरह ही बालों से अधिक चेहरे से संवाद करने का दर्शन भाता हो। ईश्वर ने बाल दिये हैं, कोई उसे कैसे रखता है और उसका प्रयोग किन किन लौकिक और अलौकिक अनुसंधानों में करता, वह सर्वथा उसी का विषय है, अपना मत व्यक्त होने के पहले ही वापस आ जाने का भय रहता है, ऐसे विषयों में।
अब योगियों को ही ले लीजिये, उन्हें भी सर, मूछों और दाढ़ी के बालों पर समय व्यर्थ करना नहीं भाता है। कुछ तो उन्हें सदा बढ़ाते रहते हैं, जो बहुधा एक दूसरे से उलझ उलझ कर गर्म वस्त्रों का स्वरूप ले लेते हैं। कुछ योगी बाल रखते ही नहीं हैं, उनका मानना है कि बाल न या छोटे रहने पर उसके रख रखाव पर कम समय व्यर्थ होगा और तब भगवत्भजन के लिये अधिक समय मिल जायेगा। ईश्वर ने निश्चय ही अपने भक्तों को एक कार्य तो दे ही दिया है, भक्तों ने अपने दर्शन के अनुसार हल भी निकाल लिया है।
हमारे पृथु को भी बाल कटाना अच्छा नहीं लगता है, उन्हें तो सर पर तेल लगाना और बाल काढ़ना भी नहीं अच्छा लगता है, देशी भाषा में कहें तो उन्हें मोगली बने रहना अच्छा लगता है। बहुत कुरेदने पर बताया कि यह 'आउट ऑफ फैशन' है, सर पर तेल लगाकर काढ़ने से सब उन्हें चीकू और अच्छा बच्चा समझने लगते हैं और चिढ़ाते हैं। हे भगवान, हम तो ३६५ दिन सर पर तेल लगाते हैं पर हमें तो कभी किसी ने नहीं चिढ़ाया, अच्छा दिखना भला कब से आउट ऑफ फैशन होने लगा। पृथु के अध्यापकगण पृथु के नये फैशनबोध पर पूरी तरह सहमत नहीं हैं, उनके कारण पृथु को बाल तो छोटे रखने पड़ते हैं पर तेल लगा कर काढ़ने को अभी तक अनुशासन की परिधि में नहीं लाया गया है। नयी पीढ़ी की नयी मान्यतायें विकसित हो रही है, उनसे छेड़ छाड़ करना बाल-अधिकारों के हनन के रूप में आरोपित हो जायेगा।
बाल काटने के व्यवसाय पर काल, स्थान और व्यवस्था का प्रभाव सहज ही दृष्टिगोचर होता रहा है। बचपन में एक छोटे स्थान पर रहते थे और बहुधा नाई महोदय घर पर ही आ जाते थे, लगे हाथों शरीर की मालिश भी हो जाती थी। धीरे धीरे उनका कार्य बढ़ गया, उन्होंने अपनी दुकान खोल ली, आत्मीयता होने के कारण हम लोग वहीं जाकर बाल कटाने लगे। आगे पढ़ने कानपुर में आये तो भी नियत दुकानों में जाकर बाल कटाते रहे पर पहले जैसी आत्मीयता कहीं नहीं रही। रेलवे की सेवा में व्यस्तता का प्रभाव कहें या अंग्रेजों की विरासत का, हर स्थान पर नाई महोदय बाल काटने घर ही आते रहे। बाल कटवाने के बाद चम्पी करवाना सदा ही आकर्षण का विषय रहता था, बड़ा ही आनन्द आता रहा उसमें। रेलवे की अन्य पोस्टों पर बाजार कभी हावी नहीं रहा, व्यक्तिगत स्तर पर सेवायें मिलती रहीं, विशिष्ट स्तर बना रहा, उन छोटे नगरों में रेलवे ही नगर का प्रमुख अंग हुआ करता था।
बंगलोर बड़ा नगर है, यहाँ पर आप उतने विशिष्ट नहीं होते हैं, यहाँ पर रेलवे के अतिरिक्त विकास के अन्य प्रतिमान उपस्थित हैं। घर पर आकर बाल काटने के लिये कोई तैयार नहीं है, ग्राहक अधिक हैं, समय कम हैं। हम भी अन्य की तरह महीने में एक बार बाल कटवाने चले जाते है। वहाँ जाने का लाभ यह होता है कि अपना चेहरा देखने के अतिरिक्त बहुत कुछ सुनने और जानने को मिल जाता है। आस पास की बातें, राजनीति की बातें, फ़िल्मों की बातें, गानों की बातें, बहुत ज्ञान बढ़ जाता है।
चार लोग हैं उस दुकान में जो बाल काटते हैं, एक मैनेजर है जो व्यवस्था करता है। हमें तो पहले लगता था कि एक बाल काटने वाला ही अपनी सारी व्यवस्था कर लेता है पर थोड़ी बातें सुनने के बाद स्थिति और स्पष्ट हो गयी। दुकान का मालिक कोई और है और मालिक की अन्य कई दुकानें और व्यवसाय हैं। उसके लिये यह संभव नहीं है कि अपनी सब दुकानों में समय दे पाये, अतः उसके लिये हर स्थान पर एक मैनेजर नियुक्त कर रखा है। सारे आर्थिक अधिकार मैनेजर के पास हैं, चार कर्मचारी अपना कार्य करते हैं और अपना पारिश्रमिक ले कर चले जाते हैं। कर्मचारी उत्तर भारत के हैं, मैनेजर स्थानीय है।
पिछले तीन वर्षों में एक बड़ी मज़ेदार बात देखने को मिली है। दो कर्मचारी पिछले तीन वर्षों से हैं और उनमें से एक ही मेरे बाल काटता है। जब भी मैं वहाँ पहुँचता हूँ, यदि वह थोड़ा व्यस्त होता है, मैं तनिक प्रतीक्षा कर लेता हूँ। दूसरा भी उसी के गाँव का है। दो अन्य कर्मचारी इस बीच जा चुके हैं और उनके स्थान पर जो नये कर्मचारी आये हैं, वे भी उसी गाँव के हैं और पहले से उपस्थित कर्मचारी के संबंधी भी हैं। इस समय चारों कर्मचारी एक ही गाँव के हैं, बाहर एक साथ रहते हैं और दुकान में एक साथ कार्य करते हैं। अनौपचारिक चर्चा से पता लगा कि दोनों नये कर्मचारी गाँव में कुछ कार्य नहीं करते थे पर यहाँ पर संभावना होने पर नाई का कार्य सीख कर यहाँ आ गये। दो तीन और लोग हैं उसी गाँव में जो अपने अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं, आने को तैयार बैठे हैं।
जहाँ कर्मचारियों का स्थायीकरण और एकत्रीकरण होता जा रहा है, मैनेजर की स्थिति दयनीय है। इस बार जब मैं गया, पाँचवा चेहरा मुझे मैनेजर के स्थान पर दिखा। नये मैनेजर का दूसरा या तीसरा दिन रहा होगा, क्योंकि आधे घंटे में ही अनुशासन की जितनी मात्रा उसने अपने जमे जमाये कर्मचारियों पर झोंक दी, उसे देख कर तो लग रहा था कि वह स्वयं को स्थापित करने को बहुत व्यग्र है। या तो पिछले मैनेजरों को अधिक पारिश्रमिक नहीं मिलता होगा या वे आर्थिक हिसाब किताब या प्रबन्धन में कोई अव्यवस्था किये होंगे। इतनी जल्दी जल्दी मैनेजर बदलने का कोई अन्य कारण समझ ही नहीं आया मुझे।
मोबाइल पर बात मत करो, बीच में चाय मत पियो, आपस में बात मत करो, यह फ़ोटो इधर से हटाकर उधर पर लगाओ, अख़बार और मैगज़ीन व्यवस्थित रखो, रेडियो की आवाज़ कम रखो, ऐसे न जाने कितने आदेश मेरे ही सामने झोंक दिये नये मैनेजर ने। चारों कर्मचारी दूसरी ओर मुँह करके बीच बीच में मुस्कुरा रहे थे, मुझे देखने में बड़ा आनन्द आ रहा था। 'साहब बाल कट गये' सहसा ध्यान भंग हुआ, रुक कर थोड़ा और देखने का मन तो था पर कोई बहाना नहीं था। अब तो एक महीने बाद ही पुनः आनन्द लेने का अवसर मिलेगा, तब तक आप भी प्रतीक्षा कीजिये।
बहुत ही रोचक पोस्ट बंगलौर के सैलून की भी घर बैठे जानकारी मिली |सर नववर्ष मंगलमय हो |नई खुशियाँ ,विचारों में नई खुशबू ,परिवार में खुशहाली और तरक्की लेकर आये आने वाला कल यानि 2013|
ReplyDeleteरोचक पोस्ट| पढ़कर अच्छा लगा :)
ReplyDeleteनाई समुदाय के बारे में ये भी देखिये- गुम्मा हेयर कटिंग सैलून!
ReplyDeleteअच्छा याद दिलाया आपने. आज अपनी भी बारी है सलीम मियां को निमंत्रण देने की .
ReplyDeleteगंजा या बेहद ही कम बालों में रहने का अलग ही सुख है।
ReplyDeleteखूब वर्णन कर डाला आपने । मैं यह काम प्रत्येक सप्ताह करता हूँ ,अरे बाल कटवाने का ,काटने का नहीं । छोटे बाल मुझे बेहद पसंद हैं । हाँ बच्चे जरूर मोगली टाइप ही हैं । मैं तो प्रायः यह कार्य मंगलवार को ,वह भी आफिस से वापस आते समय रात में करता हूँ । भीड़ नहीं होती और आराम से बाल कट जाते हैं । हाँ ,मेरे बाल काटने वाला भी विशेष कर्मचारी ही होता है क्योंकि मेरे बाल इतने छोटे होते हैं कि सबके बस की बात नहीं । अब चूंकि हर महीने सबकी अपेक्षा मुझसे उसे चार गुने अधिक पैसे मिलते हैं ,सो मेरा खयाल भी रखा जाता है ।
ReplyDeleteआप भी अमित जी के हमराही निकले .. उनको तो हम लोग कहते हैं कि नाई को एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र दे देना चाहिए ,उसका काम कुछ तो आसान हो जाएगा .....:)
ReplyDeleteबच्चे भी जब पढाई पूरी कर कहीं किसी कार्यालय में जाने लगेंगे तो वहां के डेकोरम का पालन करेंगे ही ,इसीलिये हम तो बच्चो से कुछ कहते ही नहीं ,वो भी अपने शौक पूरे कर लें ...
बालों के काटने का सुख और नाई की आत्मीयता .....और लेखन का अंदाज ...!
ReplyDelete...पिछले बुधवार को ही हम भी निपट के आए हैं और कल ही डॉ.अरविन्द मिश्र जी फेसबुक में बता रहे थे कि बालों की पहली कटाई(गेहूँ से पहले) राबर्ट्सगंज में हो गई है.
ReplyDeleteनाई की दुकान पर भी आपका सूक्ष्म अवलोकन जारी रहा .... रोचक पोस्ट ।
ReplyDeleteअभी से बालों का बोझ कम करना सीख लें। बाद में तो स्वयं ही हो जायेगा। :)
ReplyDeleteमानता तो मैं भी यही हूँ कि बाल काटते या चेहरे पर उस्तरा फिराते समय नाइयों को कहीं बात करने , टीवी देखने से परहेज करना चाहिए। रोचक वर्णन।
ReplyDeleteपढ़कर आनंद आ गया।बहुत अच्छा लेख।
ReplyDeleteपहले वाला जमाना नहीं रहा...तब नाई महोदय के घर पर आने से एक आत्मीयता भी बनती थी...अब तो मैंस पार्लर हैं...बच्चे भी वहीं जाना पसंद करते हैं...मेरा बेटा तेल तो लगाता है पर स्पाइक का ना जाने कैसा फैशन है...घर पर तो कभी-कभी बनाता है पर मैं बाहर नहीं जाने देती....कब तक संभाल पाऊंगी...
ReplyDeleteमजेदार लगा पढ़कर...
नाइ को बाल कटाई के पैसे दिया या फिर लिए ? :)
ReplyDeleteहूं, एक महिने में खेती लहलहा जाती है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बढिया जानकारी
ReplyDeleteअपने ''वो '' तो बेकार ही घर पर नाई को बुला लेते है :)
जिन्दगी की धडकनों का संगीत इसी तरह सुनाई देता है। आनन्ददायक।
ReplyDeleteबढ़िया नया विषय ...
ReplyDelete:)
१ या २ महीने में तो नाइ के यहाँ जाना ही पड़ेगा,,,,रोचक प्रस्तुति,,
ReplyDeleterecent post : समाधान समस्याओं का,
लगता है ये आजकल के बच्चे सभी एक से हैं...मेरे बेटे को तो नाखून काटने में भी नानी याद आती है.
ReplyDeleteरोचक पोस्ट.
तो ये उत्तर वाले नाईगीरी करने बंगलुरू तक जा पहुँचे ...!
ReplyDeleteऔर आप भी इत्ते बड़े शहर में देसवाली नाई खोज लिए...!
वाह क्या बात है?
आपने बाल कटाते-कटाते एक बढ़िया पोस्ट का इन्तजाम कर लिया, यह काबिले तारीफ़ है।
बाल कटवाने की प्रक्रिया में एक तरफ अधिक और एक तरफ कम तो नही कट गए।
ReplyDeleteअगली बार ये वाला मैनेजर भी नहीं दिखेगा आपको, जल्दी ही हाँफ़ जायेगा।
ReplyDeleteअद्भुत संयोग -फेसबुक पर मैंने अभी परसों ही यह अपडेट किया कि राबर्ट्सगंज में पहला हेयर कट मैंने कराया -अब आपकी यह पोस्ट ! कितनी ही बातें यहाँ समान लग रही हैं -छोटे छोटे बाल ,महीने में एक बार कट ,एक ही नाई से कट ,प्रबन्धक व्यवस्था -सभी कुछ !
ReplyDeleteरही लम्बे और छोटे बाल की बात तो यह एक लम्बे व्याख्या की मांग करता है -लम्बे बाल स्त्रैणता के सिम्बल है -कम बाल या बिलकुल गंजा होना मैको है -पृथु में मैको छवि का संचार हो रहा है :-)
ReplyDeleteबढ़िया !
ReplyDeleteएक अछूते विषय पर पूरा शोध ही कर डाला आपने .
ReplyDeleteमज़ा अ गया इस हलकी फुलकी बाल कटाई में ...
ReplyDeleteबहुत रोचक पोस्ट..वैसे बाल कटवाने जाना एक मुसीबत है और आज कल करते हुए एक महिना तो टाल ही देता हूँ..
ReplyDeleteआपकी सद्य टिप्पणियों के लिए शुक्रिया .आपकी टिपण्णी हमारी धरोहर हैं बेशकीमती ब्लॉग के लिए .आइन्दा के लिए .
ReplyDeleteकई पहलूँ हैं आपके आलेख के -
फैशन स्टेटमेंट का बालों के सापेक्ष बदलना: .महिलाओं में अब पौनी टेल ,बॉय कट , लगभग स्थापित हो चुका है कैप्रीज और टॉप की तरह .कूल्हों को छूती लम्बी केश राशि सिर्फ विज्ञापन में
बकाया है .विशेष अवसरों के लिए किराए पे बाल मिलते हैं विग भी .कई तो महिलायें गंजी रहतीं हैं वह भी फेशन है अब .तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम में यही गंजपन धार्मिक कृत्य है .
तेल तो अपने दौर में हम भी नहीं डालते थे कभी मनोज कुमार कट बाल कभी देव कट .अब बालों को काढने नहीं चमकाने के लिए शाइनर लगाने के बाद उँगलियों से संवारने का दौर है .इस दौर के
हीरो भी ऐसे ही हैं देखिये अक्षय खन्ना को रणवीर को ., बालों के मामले में अमरीकी अंदाज़ .
आदमी दूकानदार का चेहरा और बातें भी खाता है सिर्फ बाल नहीं कटवाता उससे बतियाता भी है .पूरा विमर्श केंद्र होता है नाई और पान की दूकान .जहां हर चीज़ का पूर्वानुमान और गुफ़्त गु
चलती है .
तीसरा बिंदु है रोज़गार .यहाँ मुंबई नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िडेंशियल एरिया (NOFRA)में मैड अपने तमाम रिश्तेदारों को खपातीं हैं .क्योंकि यहाँ रिहाइश निशुल्क है बिजली पानी ,केबिल का
बिल भी साहब के खाते में जाता है .मैड आवास ऑफिसर्स रिहाइश के एक हिस्से में ही अलग से रहता है .जहां भी रोज़गार मिल रहा है लोग जा रहें हैं .
चौथा बिंदु है गाँवों में रोज़गार नहीं है .एक ही जोत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है उस पर भी अंडर एम्प्लॉयमेंट है .
चलो किसी बिध परम्परागत उद्योग ज़िंदा रहें केश कलाकर (नाऊ ),बने रहें ,हेयर डिज़ाईनर आज एक पैसा दिलाऊ उद्योग है .
Haha different and interesting
ReplyDeleteआपके आनंद में सहभागी हुए...
ReplyDeleteवैसे संगीतकार प्रीतम को आप किस श्रेणी में रखेगें. दिल्ली का माहौल इस समय काफी गर्म है पर आपका बाल पुराण पढकर मन कुछ हल्का हुआ.
ReplyDeleteविषय चाहे कोई भी हो अगर कलम में धार है तो पाठक पूरा पढ़े बिना रह नहीं सकता बहुत रोचक लिखा है अलग विषय है पढ़ कर बहुत अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteबाल काटने की दुकान (सैलून ) पर भी मैनेजर होते हैं ...क्या बात है !
ReplyDeleteरोचक बतकही !
rochak prastuti....
ReplyDelete
ReplyDeleteकुछ समय बाद एम बी ए भी मिलेंगें हेयर डू केन्द्रों की समन्वयन के लिए .अमरीका में तो बा -कायदा एपोइटमेंट लेके जाना पड़ता है केश सज्जा करने वालों के पास .लाइसेंस भी होते सबके पास
प्रमाणपत्र भी .अफ़्रीकी अमरीकी महिलायें इस कर्म में माहिर हैं .केश सज्जा कलाकार आपके सौन्दर्य की रीढ़ रहा है रहेगा .आज दुल्हन ब्यूटी सैलून से ही तशरीफ़ लाती हैं .
Great Clips have franchise throughout US.They have accreditation certificate from a board of experts .
ReplyDeleteOne comments has gone down the spam box.
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ReplyDeleteकुछ समय बाद एम बी ए भी मिलेंगें हेयर डू केन्द्रों की समन्वयन के लिए .अमरीका में तो बा -कायदा एपोइटमेंट लेके जाना पड़ता है केश सज्जा करने वालों के पास .लाइसेंस भी होते सबके पास
प्रमाणपत्र भी .अफ़्रीकी अमरीकी महिलायें इस कर्म में माहिर हैं .केश सज्जा कलाकार आपके सौन्दर्य की रीढ़ रहा है रहेगा .आज दुल्हन ब्यूटी सैलून से ही तशरीफ़ लाती हैं .
Great Clips have their website also .
ReplyDelete:)
ReplyDeleteचलिए अपन के बाल तो कम होते जा रहे हैं इसलिए चार महीने में एक बार कटवाते हैं.वैसे भी दो महीने से पहले कभी कटवाते नहीं थे....अब तो गंजे होने का फैशन हो चला है तो हम असमंजस में हैं कि जो जरा सी जुल्फें बची हैं उन्हें लहराने दें या फिर कम करा लें..फिलहाल तो ठंड का मौसम है इसलिए कटवाने से रहे....गंजी चांद पर ठंड ज्यादा लगती है..औऱ कहीं गंजी चांद पर ठंड लग गई तो अपन जाने क्या ढुंढने निकल पड़ें
ReplyDeleteजहां ना पहुंचे रवि वहां पहुचे कवि. आपने भी बाल कटवाते कटवाते कई बातों का चिंतन कर लिया और वह भी हकीकत व सहजता से. शायद इसी को अंतर्दृष्टि कहते हैं.
ReplyDeleteरामराम
पहले तो "नाऊ "ही रिश्ता करते थे अब मैच .कोम आगये .नाऊ पूरे खानदान के खबर रखते थे .साख होती थी उनकी रिश्ते खानदान
ReplyDeleteदेखके किए जाते थे .नाऊ सबका कच्चा चिठ्ठा रखते थे .बारात में भी जाते थे .दोनों तरफ के नाई सम्मान प्राप्त व्यक्ति होते थे .
बेशक छोटे बाल रखना मैचो होना है एन डी ए केडिट कट आपने देखा सबके सब केदिट्स खडगवासला में सिबलिंग लगते हैं हमने तो
इन्हें एक साथ प्राकृत अवस्था में नहाते भी देखा है .केश आदमी की पहचान होते हैं वाणी की तरह विशिष्ठ भाव और मुद्रा लिए होते हैं .
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूंगा ,.....न झटको जुल्फ को ....ये मोती टूट जायेंगे
baaaal katne par bhi post ban gayaa...:))
ReplyDeletemajedaaar :D
waise nai ki dukan... kisi parliament se kam nahi hoti...
Writing a post on cutting the hair is extremely out of the way thought. But I also know how weird it is when our head gets heavy with hair.
ReplyDeleteFor me my Barber acts as very good friend when I am cutting my hair. I share some things with him when I sit to cut my hair.
BAHUT HI ROCHAK POST BILKUL PADH KR AANAND AA GYA ....ABHAR PANDEY JI .
ReplyDelete'तेल लगा कर काढ़ने को 'कहें तो जानते हैं हमें तो पुराने ज़माने के कह दिया जाता है!तेल लगाना आउट ऑफ फैशन हैं . अब तो बाल गोपालों के बाल कटवाना उनके 'बाल-अधिकारों 'का हनन है!जब तक स्कूल से टीचर न कहें तब तक बाल कटवाने की इच्छा नहीं होती.
ReplyDeleteरोचक पोस्ट.
Cutting and the funny aspect of it. Enjoyed reading it.
ReplyDeleteरोचकता लिये ... उत्कृष्ट लेखन
ReplyDeleteसादर