कुछ दिन पहले देखा कि देवेन्द्र पाण्डेय जी ने एक ब्लॉग बनाया है, टिप्पणियों का। इसमें वह किसी पोस्ट को चुनते हैं और पोस्ट पर की गयी टिप्पणियों के संवाद को समझाने का कार्य करते हैं। बड़ी ही रोचक और रसमय प्रक्रिया है यह। इसके पहले रविकरजी की काव्यात्मक टिप्पणियों का ब्लॉग भी पढ़ने को मिलता रहा है। काव्यात्मक टिप्पणियाँ न केवल पोस्ट के भाव को संक्षेप में व्यक्त करती हैं, वरन उस विषय पर अपना मत भी व्यक्त करती हैं।
उत्साहवर्धक और संवेदनात्मक टिप्पणियों की सार्थकता है, पर उससे भी अधिक बात करती हुयी वो टिप्पणियाँ होती हैं जो विषय के किसी पक्ष को उजागर करते हुये लिखी जाती है। कई बार कुछ पोस्ट पढ़ना प्रारम्भ करते हैं, उस पर की गयी टिप्पणियाँ पढ़ते हैं, तो विषय पर किया गया एक शोध सा सामने आ जाता है। अपने ब्लॉग पर ही देखता हूँ, कई बार टिप्पणियाँ इतनी पूर्ण होती हैं कि उन्हें चुरा कर अपनी पोस्ट में लगा लेने की इच्छा होती है। आभूषण की तरह सज जाती हैं वे पोस्ट के सौन्दर्य में। कभी कभी तो लगता है कि पोस्ट तो मात्र विषय की प्रस्तावना ही होती है, उस विषय का शेष विस्तार तो बाद में आता है, टिप्पणियों के माध्यम से। कई बार तो किसी पाठक विशेष की टिप्पणी क्या रहेगी, यह उत्सुकता रहती है पोस्ट लिखते समय। देखिये तो, हम पोस्ट लिखते समय टिप्पणियों का चिन्तन करते हैं, वहीं सुधीजन टिप्पणी लिखते समय पोस्ट का पूरा अर्थ शब्दों में मथ देते हैं।
यह बड़ा ही रोचक तथ्य कि इसमें लेखक और पाठक की चिन्तन प्रक्रिया को सहारा देती है टिप्पणियों की व्यवस्था। जब ब्लॉग प्रारम्भ हुये होंगे तो यह संबंध हमारी कल्पना में आये भी नहीं होंगे। अंग्रेज़ी के ब्लॉग, जो मैं पढ़ता हूँ, वे मुख्यतः तकनीक से जुड़े होते हैं और उनमें संवाद से अधिक तथ्य प्रमुख स्थान पाते हैं। अंग्रेज़ी के अन्य ब्लॉग भी जो चिन्तन प्रधान होते हैं, उन पर भी संवाद की उतनी अधिक मात्रा नहीं दिखी मुझे। हिन्दी के ब्लॉगों में जो चौपाल दिखती है, वैसी कहीं नहीं दिखी हमें। लोग बात करते हुये से लगते हैं, चर्चायें मुख्यतः सकारात्मक ही होती हैं, यदि कहीं पर मतभिन्नता दिखती भी है तो संवाद और उभर आता है, अस्त नहीं होता है। वातावरण जीवन्त सा दिखता है, यदि एक स्थान सूखा दिखता है तो वर्षा कहीं और प्रारम्भ हो जाती है, पर समग्रता में देखा जाये तो प्रवाह बना ही रहता है।
कारणों की चर्चा करें तो बहुत अधिक विचार नहीं करना पड़ेगा। हमारे समाज का प्रभाव हमारे ब्लॉगों के प्रारूप पर स्पष्ट दिखता है। पान की दुकानों पर, नाई से बाल कटाते समय, हलवाई के यहाँ चाय की चुस्कियाँ लेते समय, बनारस के घाटों पर और गाँव की चौपालों में, हम विश्व के न जाने कितने नेताओं के निर्णयों पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर देते हैं। राजनीति के विषय के अतिरिक्त बात संस्कृति की बारीकियों की हो, इतिहास की भूलों की हो, व्यक्तित्वों की हो या उनसे जुड़ी चटपटी सूचनाओं की हो, शायद ही कोई पक्ष छूटता होगा इन संवादों से। राजनैतिक विषयों की प्रारम्भिक समझ में इन अनौपचारिक चौपालों का विशेष महत्व रहा है, मेरे लिये भी और मेरे जैसे न जाने कितने और लोगों के लिये भी।
जब पोस्ट और उन पर हुयी टिप्पणियों को देखता हूँ तो वही सब स्थान याद आने लगते हैं। जैसे उन चर्चाओं में याद नहीं रहता था कि चर्चा छेड़ी किसने थी, मोड़ी किसने थी और समाप्त किसने की। यदि कुछ याद रहता है तो उस पर पारित हुये सामूहिक निर्णय। कौन से विचार सबकी सहमति धरते हैं, कौन विचार अभी तक अनसुलझे हैं और भविष्य की चर्चा का आधार बन सकते हैं। धीरे धीरे हमारी समझ बढ़ती है, आगामी चर्चा का स्तर बढ़ता है और विषय अपने निष्कर्षों पर पहुँचने लगता है।
जब किसी विषय में संवाद का इतना महत्व है तो संवाद विषय का अभिन्न अंग भी हुआ। टिप्पणियाँ जब संवाद का स्वरूप ले लेती हों तो वह भी विषय का अंग हो जाती हैं। जब लिखी हुयी पोस्ट साहित्य हो जाये तो टिप्पणियाँ भी साहित्य हो गयीं। टिप्पणियों का महत्व निश्चय ही इस प्रकार सबके लिये ही है।
आप अपनी टिप्पणियों को कितना महत्व देते है? दानकर भूल जाते हैं या उसकी एक प्रति अपने पास भी रख लेते हैं। मैं टिप्पणियों को अपने सृजन का अंग मानता हूँ अतः उन्हें कहीं सुरक्षित रख लेता हूँ। यद्यपि औरों के द्वारा की हुयी टिप्पणियाँ आपकी पोस्ट में और ब्लॉगर खाते में सुरक्षित रहती हैं, आपके द्वारा औरों के ब्लॉग पर की हुयी टिप्पणियाँ सुरक्षित नहीं रहती हैं। कभी कभी ब्लॉग संकलक हारम् पर पिछली कई टिप्पणियों का संकलन देख कर हर्षमिश्रित प्रसन्नता होती है। ब्लॉगर तो देर सबेर हमारे द्वारा की हुयी टिप्पणियाँ भी संरक्षित और संकलित कर ही देगा पर वर्तमान में जितनी दमदार टिप्पणियाँ स्मृति से निकली जा रही हैं, उन्हें स्वयं ही सहेज के रखने की आवश्यकता है।
मैं तो अपनी टिप्पणियाँ सहेज कर रखता हूँ, कभी कभी उस स्मृति के रूप में जो किसी का उत्कृष्ट ब्लॉग पढ़कर मन में आयी। अच्छा पढ़ने के बाद मन में सुप्त विचारों को शब्द मिलने लगते हैं, शब्द अच्छे मिलते हैं, सृजन होता है। मेरे द्वारा की गयी अच्छी टिप्पणियाँ अच्छी पोस्टों की कृतज्ञ हैं, जितनी अच्छी पोस्ट होती हैं, टिप्पणियों का स्तर उतना ही बढ़ जाता है।
पिछली पोस्ट पर मुझे इस बात का संबल मिला कि अच्छा पढ़ना भी चाहिये और उसके आधार पर अच्छी पोस्ट लिखनी भी चाहिये। अच्छी पुस्तक पढ़ उसके बारे में लिखने की इच्छा होती है। यही तर्क औरों के द्वारा लिखित अच्छी पोस्टों को पढ़ने के बाद भी लागू होती है, उन्हें पढ़ने के बाद भी कुछ त्वरित लिखने का मन करता है, वह लेखन ही टिप्पणियाँ हैं। एक अच्छी पुस्तक हो या एक अच्छी पोस्ट हो, उसे पढ़ने के बाद आप एक पोस्ट लिखें या एक टिप्पणी, वह भी सृजन का अंग है, वह भी साहित्य का अंग है। जितना संभव हो पढ़ें, जितना संभव हो स्वयं को व्यक्त करें। टिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
निस्संदेह !
ReplyDeleteनिस्संदेह ! टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
ReplyDeleteऔर सिर्फ साहित्य ही नहीं टिप्पणियाँ ब्लॉग SEO के लिए भी संजीवनी का कार्य करती है| ब्लॉग पर सर्च इंजन से आये पाठक के बारे अध्ययन करते हुए अक्सर देखता हूँ कि सर्च इंजन ने जिस "कीवर्ड" की खोज करने पर पाठक भेजा है वह "कीवर्ड" (शब्द) पोस्ट में तो था ही नहीं! है टिप्पणी में किसी टिप्पणीकार ने लिखा है और उसी शब्द की खोज करने वाले को गूगल बाबा ने पूरी पोस्ट पढने ब्लॉग पर ठेल दिया :)
और वो गुदगुदी जो कि किसी अच्छी टिपपणी के पाने पर ब्लागर के मन में होती है चाहे कितने ही साल आपको लिखते हुऐ हो गये हों पर आपके मन में ये भावना आपको जवान रखती है फिर वही अहसास कि मेरा लेखन लोगो को कितना पसंद आता है और इसी से आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है
ReplyDeleteटिप्पणियाँ भी साहित्य हैं
ReplyDelete.......Yakinan ye satya hai Parveen ji
ReplyDeleteमैं तो अपनी टिप्पणियाँ सहेज कर रखता हूँ, कभी कभी उस स्मृति के रूप में जो किसी का उत्कृष्ट ब्लॉग पढ़कर मन में आयी। अच्छा पढ़ने के बाद मन में सुप्त विचारों को शब्द मिलने लगते हैं, शब्द अच्छे मिलते हैं, सृजन होता है। मेरे द्वारा की गयी अच्छी टिप्पणियाँ अच्छी पोस्टों की कृतज्ञ हैं, जितनी अच्छी पोस्ट होती हैं, टिप्पणियों का स्तर उतना ही बढ़ जाता है।
सर इस पोस्ट को मुझे बहुत ही सावधानी से पढ़ना पड़ा |आपका गद्य बहुत सधा ,धारदार और कमाल का होता है |म्रेरी इच्छा है कि आप अपने आलेखों को जो विविध सारगर्भित विषयों पर बहुत ही रोचक ढंग से लिखे गये है एक पुस्तकाकार रूप में हमारे सम्मुख हों |इस पोस्ट को पढने के बाद जिम्मेदारी का अहसास हो रहा है |कई बार हम जल्दी में समय कम होने के कारण बहुत सुंदर पोस्ट या कम शब्दों में बात लिखकर काम चला लेते हैं |बहुत -बहुत आभार |
कुछ टिप्पणियाँ तो मूल रचयिता को भी विभोर कर देती हैं.उनमें निहित नये आकलन ,नई व्याख्या और संवेदना की सार्मथ्य रचना का मूल्य बढ़ा देती है जैसे मूलधन पर मिला हुआ ब्याज!
ReplyDeleteटिप्पड़ियों में बहुधा बड़ा ही सटीक व रोचक तथ्य व विश्लेषण निहित होता है क्योंकि वे प्रत्युत्पन्न व विषयकेंद्रित होती हैं। सुंदर व रोचक लेख।
ReplyDeleteआप आज की तारीख में सबसे अधिक टिप्पणी करने वालों में से हैं। कई बार आपकी टिप्पणियां इतनी ’साहित्यिक’ होती हैं कि पोस्ट से उसका संबंध समझ में नहीं आता! पोस्ट पढ़कर, टिप्पणियां करना और उसके बाद अपनी टिप्पणियां आप सहेजने का काम भी आप कर लेते हैं यह वाकई अद्भुत बात है। कभी अपने इस बारे में लिखिये कि कैसे इतना सब किया जा सकता है।
ReplyDeleteवैसे टिप्पणियों के बारे में एक बात यह भी लिखी थी हमने कभी:
किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
आपके अवलोकन का शत शत आभार, निश्चय ही इस विषय पर लिखना होगा। साहित्य को समझना आपको मुझसे अच्छा आता होगा तभी आप पोस्ट और टिप्पणी के अन्तर्संबंध को इतना गहन समझ पाये हैं। आपके बताये टिप्पणी करने के उपाय पर आप ही अमल करें और हम निरीहों को विषय समझने के लिये जूझने को छोड़ दें।
Deleteअपनी टिप्पणियाँ किसी ब्लोगर साथी के पोस्ट पर देखकर कई बार उस समय अपने मन की स्थिति का भान होता है. टिपण्णी भी तो लेखक के अंतर्मन से विशेष परिस्थिति जन्य मनःस्थिति से उत्पन्न होती है
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियों का जवाब नहीं.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसंदेह नहीं कि टिप्पणियों के बिना ब्लॉग लेख अधूरे लगेंगे मगर अक्सर टिप्पणियों को हाजिरी मात्र के लिए किया जाता है जो खलता है मगर काबू में नहीं आता :(
ReplyDeleteबढ़िया मूड भी अपनी भूमिका अदा करता है !
आभार !
एक दम सत्य बचन सक्सेना जी .....ऐसी टिप्पणियाँ निरर्थक ही होती हैं ....
Deleteसही कहा आपने, टिप्पणी धरोहर का काम करती है।
ReplyDeleteजितना संभव हो पढ़ें, जितना संभव हो स्वयं को व्यक्त करें। टिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
ReplyDeleteयह पढ़ कर अच्छा लगा .... बहुत से लोग टिप्पणियों को व्यापार ही समझते हैं ... एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले ... जो लोग बिना पोस्ट पढे टिप्पणी करते हैं उनके लिए शायद यह व्यापार ही है । कभी कभी टिप्पणियों में सुंदर सृजन हो जाता है .... पर वो संरक्षित नहीं की जाती .... यह विचार सच ही बढ़िया है ... मैं भी आगे से अपनी टिप्पणियों को संग्रहित करने का प्रयास करूंगी ... आभार
आप से सहमत हूँ ... लेखक और पाठक के बीच का सेतु है यह टिप्पणियाँ ... आभार इस आलेख के लिए !
ReplyDeleteटिप्पणियाँ ...वो भी अकस्मात सृजन ... किसी अज्ञात धारा की तरह..
ReplyDeleteब्लॉग की टिप्पणियाँ लेखक को उसकी लेखनी की अच्छाई और बुराई दोनों का बोध कराती है । धन्यवाद
ReplyDeleteहिन्दी के ब्लॉगों में जो चौपाल दिखती है, वैसी कहीं नहीं दिखी हमें।... सही कहा पांडे जी ...
ReplyDelete--निश्चय ही टिप्पणियाँ साहित्य हैं,अतः टिप्पणियाँ विषय को परिभाषित, विस्तारित, व्याख्यायित करती हुई होनी चाहिए न कि सिर्फ रटे-रटाये प्रशंसात्मक भावना से ....
बहुत ही सार्थक लिखा है ... सही लिखा है ... कई टिप्पणियाँ मन मोह लेती हैं ...
ReplyDeleteजितना संभव हो पढ़ें, जितना संभव हो स्वयं को व्यक्त करें। टिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
ReplyDeleteटिप्पणी वो ऊर्जा है जो साहित्य सृजन को जीवित रखती है .....
सच कहा कुछ टिप्पणियां मूल से भी अधिक बात करती लगती हैं ।
ReplyDeleteपोस्ट को पढ़नेऔर मनन करने के बाद ही जो भाव बनते है ्वही टिप्पणियां बन जाती है । इसी लिये टिप्पणियां
ReplyDeleteसाहित्य है .ये बहुत ही सही कहा आप ने प्रविण जी "जितनी अच्छी पोस्ट होती हैं, टिप्पणियों का स्तर उतना ही बढ़ जाता है।" सच है इसमे कोई शक नही....मैं हमेशा अपनी पोस्ट में आप की टिप्पणी तलाशती हूँ..जो मुझे हमेशा उर्जा देती है..आभार
टिप्पणियाँ साहित्य से भी अधिक है, वह अपने आप में नवसर्जन की प्रेरक है। टिप्पणियाँ अक्सर सोच को दिशा दे जाती है। विचारवर्धन करती है और विचारधारा का उचित सम्पादन भी कर जाती है। सोच का श्रेयस्कर परिस्कार करती है। विषय से छूटे प्रश्नों का संधान करती है।
ReplyDeleteआजकल तो जबाब-तलब की सुविधा भी मिलने लगी है ....
ReplyDeleteअरे क्या बात कही है ...सहमत ..१००० %
ReplyDelete
ReplyDeleteएक अच्छी पुस्तक हो या एक अच्छी पोस्ट हो, उसे पढ़ने के बाद आप एक पोस्ट लिखें या एक टिप्पणी, वह भी सृजन का अंग है, वह भी साहित्य का अंग है। जितना संभव हो पढ़ें, जितना संभव हो स्वयं को व्यक्त करें। टिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
जो उद्वेलित करे तदानुभूत हो वह साहित्य है उस पर विमर्श (टिपण्णी ),सम्वाद चले इसी में ब्लॉग लेखन की सार्थकता है .विमर्श बिंदु बनती है आपकी हरेक पोस्ट .
ऑंखें तो बसके पास होती हैं, नजर नहीं। बुध्दि तो सबके पास होती है किन्तु कल्पनाशीलता नहीं। बस। यही कहा जा सकता है।
ReplyDelete" एक अच्छी पुस्तक हो या एक अच्छी पोस्ट हो, उसे पढ़ने के बाद आप एक पोस्ट लिखें या एक टिप्पणी, वह भी सृजन का अंग है, वह भी साहित्य का अंग है। जितना संभव हो पढ़ें, जितना संभव हो स्वयं को व्यक्त करें। टिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं।"-पोस्ट का एक अंश .
ReplyDeleteजो उद्वेलित करे तदानुभूत हो वह साहित्य है उस पर विमर्श (टिपण्णी ),सम्वाद चले इसी में ब्लॉग लेखन की सार्थकता है .विमर्श बिंदु बनती है आपकी हरेक पोस्ट .
कई मर्तबा लिखता कोई और है तदानुभूति हमें भी होती है लिखा किसी ने भोगा हमने भी ,फिलवक्त पूरा राष्ट्र उद्वेलित है दिल्ली की विकृतिं पर .रंगा बिल्ला के बाद यह पहली ऐसी विकृत घटना है जिसने संवेदनाओं को जोड़ दिया है एक पूरे राष्ट्र के अब कुछ होना चाहिए ,
प्रतीकात्मक ही सही बलात्कारियों के साथ उस सरकार को भी फांसी दी जानी चाहिए जिसने 65 बरस के बाद भी औरत को अरक्षित किया हुआ है .भले प्रतीक स्वरूप उसका पुतला फांसी पे लटकाया जाए .
एक प्रतिक्रया ब्लॉग पोस्ट :
न दैन्यं न पलायनम्
19.12.12
टिप्पणियाँ भी साहित्य हैं
http://praveenpandeypp.blogspot.in/2012/12/blog-post_19.html?showComment=1355920860854#c2468657986158652226
ये सच है कि ब्लॉग लिखने का उद्देश्य खुद से बात करने जैसा होता है...~अक्सर जो बातें हम अपने आप से करते हैं, वही काग़ज़ पर उतार देते हैं (यानि ब्लॉग पर) ! मगर जब कोई उसे पढ़ता है और अपने विचार लिखता है... यानि टिप्पणी करता है, तो वो लेखन 'पूर्ण' से 'सम्पूर्ण' सा लगने लगता है...!
ReplyDeleteअक्सर पोस्ट पढ़ते-पढ़ते ही कुछ बहुत अच्छी पंक्तियाँ स्वयं ही निकल पड़ती हैं क़लम से...! मुझसे कभी कुछ ऐसी योग्य टिप्पणी लिख जाती है, तो मैं भी उसे सहेज कर रख लेती हूँ...! अब से और भी ध्यान रखूँगी !
~सादर!!!
...कई बार टिप्पणियाँ मूल आलेख से उम्दा होती हैं.हमने तो इन टिप्पणियों से बड़ा ज्ञानार्जन किया,हालाँकि अब समयाभाव के कारण कम या अल्प टिप्पणी ही करता हूँ.
ReplyDelete...कई बार औपचारिक टीप करनी पड़ती है और दूसरे भी ऐसा ही करते हैं,पर अब हमने औपचारिकता बंद कर दी है !
आधे से भी कम टिप्पणियां सोच समझ कर की जाती हैं।
ReplyDeleteहालाँकि उपस्थिति लगाकर काम चलाना भी बुरा नहीं लगता।
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete" टिप्पणीकारिता " भी एक विधा है ,एक कला है और साहित्य भी है | कभी कभी तो टिप्पणी मूल लेख / कविता से अधिक प्रभावशाली होती हैं और अच्छे टिप्पणीकारों की टिप्पणी आने का तो इंतज़ार भी रहता है |
ReplyDeleteटिप्पणी को अगर समीक्षा की तरह लिया जाय तो इसे एक विधा की तरह ही देखना चाहिये.
ReplyDeleteनिसंदेह,टिप्पणियाँ साहित्य हैं।
ReplyDeleteजिस तरह संतान के बगैर दाम्पत्य जीवन अधूरा लगता है,उसी तरह रचना भी सुन्दर टिप्पणियों के वगैर
अधूरी लगती है,,,
recent post: वजूद,
ReplyDeleteशासन सीधा और सोनिया का जब चलता दिल्ली में
शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,
सरे आम अब रैप से फटतीं ,अंतड़ियां अब दिल्ली में .
चंद मज़हबी वोट मिलें ,आग लगे चाहे भारत में ,
दागी नेता पुलिस के डंडे ,पिटते साधु दिल्ली में .
राष्ट्र सारा उद्वेलित है प्रवीण जी क्या टिपण्णी करें .
ReplyDeleteकभी लिखा गया था -
बाप बेटा बेचता है ,बाप बेटा बेचता है ,
भूख से बेहाल होकर राष्ट्र सारा देखता है .
दुर्भिक्ष पर ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं कभी आज वहशियों ने जो दिल्ली में किया है उसने भी वैसी ही छटपटाहट पैदा की है राष्ट्र में लेकिन मनमोहन जी की नींद तब खराब होती है जब ऑस्ट्रेलिया में संदिग्ध अवस्था में कोई मुसलमान पकड़ा जाता है यह है सेकुलर चरित्र इस सरकार का औए एक अदद राजकुमार का जो कलावती की दावत उड़ाने फट पहुंचता है लेकिन फिलवक्त इस कथित युवा को सांप सूंघ गया है .
सोनिया जी जिनका भारत पे राज हैं खुद परेशान हैं क्या करूँ इस मंद बुद्धि का जो गत बरसों में वहीँ का वहीँ हैं ,इससे तो प्रियंका को लांच लरना था .
बलात्कृत युवती से उनका क्या लेना देना .कल बीस तारीख है इनका गुजरात से सूपड़ा साफ़ हो जाएगा और एक अदद राजकुमार की नींद उड़ जायेगी .
टिप्पणीयां निश्चित रूप से विचार को आगे बढाती है .
ReplyDeleteटिप्पणियाँ साहित्य हैं..VERY TRUE
ReplyDeleteरचनाएं उस प्रोडक्ट की तरह होती हैं जो सीधे फेक्ट्री से निकलकर यूजर के पास जाता है उस यूजर की प्रतिक्रिया की अपेक्षा तो रहती ही है ताकि पता चले की उस प्रोडक्ट का स्तर क्या है ,मेरा तो यह मानना है की चीज पसंद हो तो जम कर तारीफ की जाए उसमे कंजूसी कैसी ,और लेखक को इतना आइडिया तो हो ही जाता है की इस टिप्पणीकार ने तुम्हारी रचना पढ़ी भी या नहीं,आपके इस लेख में मजेदार ज्ञान यह मिला की अपनी टिप्पणी भी सेव कर लेनी चाहिए चलो आज से ही शुरू करती हूँ जो बीत गया सो बीत गया जहां आँख खुली वहीँ सवेरा ----बहुत बढ़िया लगा आलेख बधाई आपको
ReplyDeleteमुझे तो जहां भी अच्छा पढ़ने को मिलता है, पढ़ती हूं. चाहे ब्लॉग हो या किताब और ब्लॉग में भी केवल कविताएं नहीं बल्कि हर तरह की जानकारी और आलेख पढ़ती हूं. टिप्पणियों से जहां मनोबल बढ़ता है वहीं गलतियां भी समझ आती हैं. अगर उसे समीक्षा के तौर पर लिया जाए. मुझे जहां कमी लगती थी वहां मैं कहती भी थी लेकिन मुझे कई मेल आए और कहा गया कि ब्लॉग स्वानतचच सुखाय है. इसलिए इन दोषों को ना देखा जाए. जबकि मुझे लगता है कई बार अनजाने में और कई बार जल्दी में कोई गलती रह जाती है. तो मित्रों का फर्ज है कि उन्हें उस तरफ ध्यान दिलाए. उस पर सबसे मजेदार बात यह है कि अन्य भाई-बंधु उसे नजरंदाजकर बढ़िया और सुंदर बताते हैं. अगर छोटे गलतियां करें या बड़े भी हैं लेकिन गलत लग रहा है तो बताना चाहिए. सार्मजनिक ना भी बताएं तो मेल कर देना चाहिए. निश्चित रूप से टिप्पणियां सृजन शक्ति को बढ़ाने और निखारने का काम करती हैं. अगर उन्हें उसी रूप में लिया जाए तो...
ReplyDeleteभाई मैंने ऐसा कोई कमेंट नहीं किया था जिसे निकाला जाए...यह लेखक महोदय से गलती से निकल गया है, इसलिए मैने दोबारा अपनी उपस्थिति दर्ज की है...
ReplyDeleteगलती मेरी ही थी, मोबाइल पर देख रहा था, फोन्ट छोटा होने के कारण डिलीट दब गया।
Deleteकुछ अच्छा ज्ञान मिलने पर उसे खुद तक सीमित रखना भी अन्याय है, उपयुक्त स्थान और समय पर उसका प्रकटन होते रहना चाहिये।
ReplyDeleteअपनी टिप्पणियाँ कभी सहेज कर रखी नहीं.
ReplyDeleteआप रखते हैं ,अच्छा है.
भविष्य में ख़ास पोस्ट्स पर लिखी अर्थपूर्ण और सारगर्भित टिप्पणियाँ मैं भी सहेज कर रखूंगी.
टिप्पणियाँ कभी कभी आलोच्य विषय के उन पहलुओं को भी उजागर कर देती हैं जिन्हें मूल पोस्ट लेखक ने सोचा तक नहीं होता ,मेरे मौजूदा उधार लेने वालों पर लिखी पोस्ट भी इसका उदाहरण है -बात साधारण उधारी लेने की मनोवृत्ति पर थी मगर टिप्पणियों ने विश्व बैंक के उधार और पितृ ऋण -गुरु ऋण तक समेट लिया -
ReplyDeleteनिष्पत्ति यह कि टिप्पणियाँ पोस्ट को समग्रता प्रदान करती हैं!
आदरणीय साथियो
ReplyDeleteआज कल 'अनोनीमसेश्वर महादेव' यदा-कदा यत्र-तत्र दर्शन देने लगे हैं, पता नहीं क्या-क्या लिख जाते हैं.......... इन के बारे में कोई जानकारी हो तो बताने की कृपा करें..........
टिप्पणियाँ बनीं पोस्ट का विषय!! सम्मान!!
ReplyDeleteटिप्पणियाँ व्यर्थ नहीं हैं, टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है, टिप्पणियाँ साहित्य हैं ।
"टिप्पणियाँ व्यापार नहीं है"
इस संदर्भ में आप इस ब्लॉगजगत के लिए एक आदर्श हैं प्रवीण जी !
आप कभी मैं तुझे टिप्पणी दूं , तू मुझे टिप्पणी दे के लेन-देन के आधार पर टिप्पणी नहीं देते ...
मैं प्रायः आपके यहां टिप्पणी नहीं कर पाता
लेकिन आप उदारता से मेरी रचनाएं पढ़ कर आशीर्वचन लिख जाते हैं ...
बहुत बहुत आभार !
हमेशा की तरह सार्थक पोस्ट के लिए साधुवाद !
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
ब्लोगियों की दूकान चलाये रहतीं हैं टिप्पणियाँ जो कहीं नहीं जाते वह एक दिन अपनी दूकान बढ़ा जायेंगे .....कई महा पुरुष महानता का लबादा ओढ़े हैं .इनके नाम एक शैर :
ReplyDeleteनाम था अपना ,पता भी ,(ब्लॉग भी ,),दर्द भी इज़हार भी ,
पर हम हमेशा दूसरों की मार्फ़त समझे गए हैं ,
वक्त की दीवार पर पैगम्बरों के लफ्ज़ भी तो ,
बे -ख्याली में घसीटे दस्तखत समझे गए हैं .
ReplyDeleteपहली मर्तबा आपके ब्लॉग पर स्पेम में जा रहीं हैं टिप्पणियाँ .चार जा चुकीं हैं अब तक .हम भी जिद्दी हैं .
ब्लोगियों की दूकान चलाये रहतीं हैं टिप्पणियाँ जो कहीं नहीं जाते वह एक दिन अपनी दूकान बढ़ा जायेंगे .....कई महा पुरुष महानता का लबादा ओढ़े हैं .इनके नाम एक शैर :
नाम था अपना ,पता भी ,(ब्लॉग भी ,),दर्द भी इज़हार भी ,
पर हम हमेशा दूसरों की मार्फ़त समझे गए हैं ,
वक्त की दीवार पर पैगम्बरों के लफ्ज़ भी तो ,
बे -ख्याली में घसीटे दस्तखत समझे गए हैं .
:) :) :)
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
टिप्पणियाँ साहित्य हैं यह तो पता नहीं, पर आप अपनी आधा या कभी कभी एक लाइना टिप्पणियों को संजो कर रखते हैं यह जान अच्छा लगा... यहाँ http://haaram.com/AuthorComments.aspx?AuthorID=%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A3%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&ln=hi पर जा पिछली अस्सी टिप्पणियों को देखा मैंने सभी आधी या एक लाईन की हैं... मुझे तो कभी कभी लगता है कि आप कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जगह टिपियाने के चक्कर में कई बार पोस्ट को पूरा पढ़े या समझे बिना ही 'धप्पा' मार चल देते हैं... :)
...
बड़ी प्रसन्नता हुयी यह पढ़कर कि आपने पिछली ८० टिप्पणियाँ पढ़ीं, उन ८० पोस्टों को पढ़ा उनके पारस्परिक संबंध को समझा और अन्ततः यह निर्णय लिया कि बहुधा टिप्पणियों और पोस्ट में कोई संबंध ही नहीं था। इतना करने में आपको निश्चय ही बड़ा श्रम लगा होगा। मैं आपकी इस कृपा के लिये हृदय से आभारी हूँ। पर यदि आपने बिना यह श्रम किये निर्णय सुना दिया तो आप भी उसी दोष में जी रहे हैं जिसका आरोप आप मुझ पर लगा रहे हैं। पूरा पढ़ने और छोटी टिप्पणियों के संबंध को समझना निश्चय ही शोध का विषय है, जब स्तर समान होता है तो कम शब्दों में ही बहुत कुछ संप्रेषित किया जा सकता है। हाँ कई बार अपने कई अधीनस्थों को मुझे विस्तार से समझाना पढ़ता है। कारण और संकेत स्पष्ट हैं और आशा करता हूँ कि आप समझ गये होंगे।
Delete.
Delete.
.
@ जब स्तर समान होता है तो कम शब्दों में ही बहुत कुछ संप्रेषित किया जा सकता है। हाँ कई बार अपने कई अधीनस्थों को मुझे विस्तार से समझाना पढ़ता है। कारण और संकेत स्पष्ट हैं और आशा करता हूँ कि आप समझ गये होंगे।
समझ कर ही कह रहा हूँ कि इस तरह के डॉयलॉग फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं पर यह ब्लॉगिंग है मित्र... नोट कर लिया होता तो अनेक उदाहरण दे दिया होता पर अभी सिर्फ एक ही दे रहा हूँ...
यहाँ... http://praveenshah.blogspot.com/2011/04/if.html?showComment=1302168027384#c2977061296779317655 ... आप 'अधीनस्थों' को क्या समझा रहे हैं?... :)
...
उत्तर तो वहाँ भी नहीं दिया है आपने। कहीं से साभार लेने में उसका अनुवादक होने का निश्चित तो नहीं हो जाता है। साभार लेने और अनुवादक होने में अन्तर होता है श्रीमानजी।
Delete.
Delete.
.
मैं ने पोस्ट में ही कहा है कि अनुवाद मेरा किया है, मैंने एक सप्ताह मेहनत की थी इस पर.. आप अगर यह कह रहे हैं कि मैंने कहीं से इसे लिया है तो आप इसे साबित करिये... बहरहाल मैं इस सब को अपने ब्लॉग पर लगा रहा हूँ ताकि आपका यह इल्जाम बाकी सब भी देखें... और निर्णय भी सभी की सामूहिक समझ पर छोड़ा जाया... एक 'बड़े साहब' के संकेतों पर नहीं...
...
आप संकेत ठीक समझे हैं, जब आप स्वयं निर्णायक बन आक्षेप लगा देते हैं तब आप किसी से सलाह नहीं लेते, ब्लॉगजगत से तो बिल्कुल भी नहीं। पर जब आप किसी बात पर विचलित होते हैं तो सामूहिक निर्णय का ढोल पीटते हैं। चलिये हम भी मंजीरा बजा देते हैं।
Deleteलेकिन मुझे आपसे शिकायत है। आपकी टिप्पणी कभी भी विषय को विस्तार नहीं देती है। हम सब यहाँ किसी भी विषय के विस्तार के लिए ही लिखते हैं। लेख केवल एक आयाम प्रस्तुत करता है, उसमें विविधता टिप्पणियों से ही आती है। आप से उम्मीद है कि आप भी अपना अमूल्य सुझाव अवश्य दिया करें, क्योंकि आप प्रबुद्ध है, आपकी राय हमारे लिए मूल्यवान है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट अपने आप में गहन मंथन के बाद ही लिखी गयी होती है, अधिक कहने को शेष नहीं रहता है। फिर भी प्रयास कहूँगा कि उस पर कुछ और अधिक कह पाऊँ।
Deleteअपने होने का एहसास दिला देतें हैं ,
ReplyDeleteजब टिपण्णीकोई पोस्ट पे लगा देते हैं ,
दोस्त मेरे फिर भी दगा देतें हैं ,
अपने घर में ही खफा रहतें हैं .
बढ़िया विमर्श चल रहा है प्रवीण जी .दर असल बाहर सिर्फ शब्द होतें हैं उनके अर्थ हमारे अन्दर होतें हैं .कोई क्या कह रहा है सार रूप या विस्तार रूप ,रहे अबूझ .
वाकई टिप्पणीयां विचार को कई आयाम देती हैं. अक्सर देखा गया है कि कई बार विषय के बाहर की भी बहस शुरू हो जाती है. किंतु अंतत: यह हिंदी ब्लागिंग को विस्तार और सा्मर्थ्य ही प्रदान करती है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सरकार समझ रही है 'दिल्ली बलात्कार' बस के काले शीशों की वजह से हुआ .सरकार यह नहीं समझ पा रही है यह उसकी बनाई व्यवस्था का कुफल है सरकार कल को काला चश्मा लगाके चलने वालों को भी पकड सकती है भले बाद में पता चले यह तो बेचारा करुना -निधि है .सबको एक ही दृष्टि से देखने वाला समदर्शी है (सेकुलर है ).शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का जो सदैव हमारा मान बढ़ातीं हैं ,सार रूप हों या विस्तार रूप .
ReplyDeleteटिप्पणियों का अपना उत्प्रेरण होता है .तो सीमाएं भी हैं किसी के दिल में क्या है कैसे जानिएगा .
ReplyDeleteटिप्पणियों का अपना उत्प्रेरण होता है .तो सीमाएं भी हैं किसी के दिल में क्या है कैसे जानिएगा .
कुछ टिप्पणीयां तो मूल पोस्ट से ज्यादा आकर्षक होती हैं।।।
ReplyDeleteमैं भी अपनी टिप्पणियां सहेज कर रखता हूं, और जब कोई ब्लाग पढ़ता हूं तो आपकी लघु किन्तु सम्पूर्ण टिप्पणी को अवश्य ढ़ू़ढ़ करपढ़ता हूं।
ReplyDeleteटिप्पणियों का एक नया चेहरा .... बहुत खूब !
ReplyDeleteआपने मेरे ब्लॉग को पढ़कर इतनी अच्छी पोस्ट लिखी इसके लिए आभार। मैं देर से आ पाया इसके लिए अफसोस।
ReplyDeleteटिप्पणियाँ साहित्य की अमूल्य निधि होती हैं.
ReplyDeleteVery Truly written post. For me viewers are rewards and comments are awards.
ReplyDeleteदेखा!!
ReplyDeleteये दुनिया कभी भी चैन से रहने नहीं देती गालिब....
ReplyDeleteवगरना कुछ मन के शेर कहने का दिल करता है....
:)
अरे प्रभु, जो दिल करे वो लिखो और वैसे ही टिप्पणी करो...लोग पसंद कर रहे हैं तो चर्चा भी करेंगे ही. शुभकामनाएँ..