12.12.12

हृदय हमारा

निर्मलतम था हृदय हमारा,

निर्दयता का वृहद ताण्डव,
स्वार्थपरक  जीवन का मूल्यन ।
और घृणा के कई बाणों से,
छिला सदा ही हृदय हमारा ।।

लोलुपता का घृणित आवरण,
अहंकार की निर्मम चोटें ।
और वासना के दलदल में,
देखो सत्व लुटा बैठा है ।।

कोई हमको फिर लौटा दे,
निर्मलतम जो हृदय हमारा ।

37 comments:

  1. कोई हमको फिर लौटा दे,
    निर्मलतम जो हृदय हमारा ।

    Desire will lead to the destination! Apki Hindi bahut hi achchi hai, kabhi kabhi samajh nahi aati hai… yeh wali rachna samajh aa gayi :-)

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  2. गजब की अभिव्यक्ति

    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
     बेतुकी खुशियाँ

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  3. हृदय तो सदैव निर्मल ही रहता है, बस इसका परिवेश व आवरण बदलता रहता है। प्रेरणा मयी कविता।
    सादर-
    देवेंद्र
    मेरी नयी पोस्ट- श्यामल तुलसी का पौधा.........

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  4. कवि‍ताओं का हि‍न्‍दी अनुवाद भी साथ दे देते मि‍त्र, तो मेरा भी कुछ भला हो जाता :)

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  5. निर्मलतम था ह्रदय हमारा ...
    मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे !

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  6. कोई हमको फिर लौटा दे,
    निर्मलतम जो हृदय हमारा ।

    दृष्टिभेद एक पल मे हट जाता है ,जब हम स्वयं में स्वयं को ढूंढ लेते हैं .....स्वयं मे स्वयं की खोज जारी रहे बस ...मनन करता सुंदर काव्य ....शुभकामनायें ॰

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  7. सुन्दर मन भाव से लिखी सुन्दर कविता |

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  8. स्वयं में ही निर्मल हृदय को खोजना होगा ....क्यों कि दूसरों के आचरण को हम संचालित नहीं कर सकते ... सुंदर प्रस्तुति

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  9. बहुत सुन्दर लेख हैं.आज इन्टरनेट पर हिंदी भाषा में अच्छे लेखन की बहुत मांग है.ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास मैंने भी किया है..जानकारी के लिए http://meaningofsuccess1.blogspot.in/ विजिट करें.आशा है आपको पसंद आएगा.

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  10. कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ......

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  11. संवेदनशील उदगार

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  12. sundar bhao.nishchhal hriday pane ke liye bachpan me jana padega.
    meri latest post me aapka swagat

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  13. कोई हमको फिर लौटा दे,
    निर्मलतम जो हृदय हमारा ।
    अनुपम भाव संयोजित किये हुये उत्‍कृष्‍ट पंक्तियां

    आभार

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  14. कोई हमको फिर लौटा दे,
    निर्मलतम जो हृदय हमारा ..

    मन के भावों की मुखर अभिव्यक्ति ...

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  15. aapki kavita me chayavaad ka prabhav dikhta hai... prasad, mahadevi see

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  16. आत्म खोज ज़ारी है ,सुन्दर भाव !!!

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  17. ....कहते- सुनते सब होगा.....धीरज धरें !

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  18. आपके पास ही है ज़रा पर्दा उठाकर देखें :),
    संवेदनशील अभिव्यक्ति.

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  19. यह तनिक विचित्र स्थिति होती है कि पता ही नहीं चलता कि ह्रदय के साथ कब छेड-छाड हो गई।

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  20. बहुत ही संवेदनशील रचना है,
    साभार,
    विवेक जैन

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  21. वह स्वरूप लौट पाना तो आसान नहीं लेकिन उसे पाने की जीजिविषा भी बड़ी बात है।

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  22. थोड़ा सा झाड़-पौछ लीजिए, वापस आ जाएगा वही निर्मल वाला।

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  23. चाह ही तो राह है..अति सुन्दर गीत ..

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  24. इस निर्मला को नष्ट नहीं होने देना है फिर इसके लिये कुछ भी करना पड़े.

    सुंदर भाव और सच भी.

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  25. बहुत सुंदर कविता...मुर्दा शरीरों में दिल तो है पर सिर्फ धड़कने के लिए।।।

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  26. एक आम भाव का जन पीड़ा का सहज साधारणीकरण (विरेचन )किया है आपने .लघु रचना का वृहद् कलेवर सुन्दर स्वरूप .

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  27. एक आम भाव का जन पीड़ा का सहज साधारणीकरण (विरेचन )किया है आपने .लघु रचना का वृहद् कलेवर सुन्दर स्वरूप .आपकी नित्य टिपण्णी हमें नित्य प्रति नै ऊर्जा से भर देती है .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    बृहस्पतिवार, 13 दिसम्बर 2012
    राहुल गांधी का महात्मा कनेक्शन

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  28. कोई हमको फिर लौटा दे,
    निर्मलतम जो हृदय हमारा ।

    निर्मल तो निर्मल ही रहेगा....

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  29. काश कोई सच में लौटा सकता....

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  30. यह मनुष्य की शाश्वत अभिलाषा है लेकिन ऐसे ह्रदय को कोई और नहीं लौटा सकता। अप्प दीपो भवः, दर्पण पर जमी धुल हमें खुद ही साफ़ करनी पड़ेगी।

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  31. बहुत खूब, मन की वाणी।

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