निर्मलतम था हृदय हमारा,
निर्दयता का वृहद ताण्डव,
स्वार्थपरक जीवन का मूल्यन ।
और घृणा के कई बाणों से,
छिला सदा ही हृदय हमारा ।।
लोलुपता का घृणित आवरण,
अहंकार की निर्मम चोटें ।
और वासना के दलदल में,
देखो सत्व लुटा बैठा है ।।
कोई हमको फिर लौटा दे,
निर्मलतम जो हृदय हमारा ।
कोई हमको फिर लौटा दे,
ReplyDeleteनिर्मलतम जो हृदय हमारा ।
Desire will lead to the destination! Apki Hindi bahut hi achchi hai, kabhi kabhi samajh nahi aati hai… yeh wali rachna samajh aa gayi :-)
गजब की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
बेतुकी खुशियाँ
हृदय तो सदैव निर्मल ही रहता है, बस इसका परिवेश व आवरण बदलता रहता है। प्रेरणा मयी कविता।
ReplyDeleteसादर-
देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट- श्यामल तुलसी का पौधा.........
कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी साथ दे देते मित्र, तो मेरा भी कुछ भला हो जाता :)
ReplyDeleteनिर्मलतम था ह्रदय हमारा ...
ReplyDeleteमोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे !
Behad sundar!
ReplyDeleteकोई हमको फिर लौटा दे,
ReplyDeleteनिर्मलतम जो हृदय हमारा ।
दृष्टिभेद एक पल मे हट जाता है ,जब हम स्वयं में स्वयं को ढूंढ लेते हैं .....स्वयं मे स्वयं की खोज जारी रहे बस ...मनन करता सुंदर काव्य ....शुभकामनायें ॰
सुन्दर मन भाव से लिखी सुन्दर कविता |
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ReplyDeleteस्वयं में ही निर्मल हृदय को खोजना होगा ....क्यों कि दूसरों के आचरण को हम संचालित नहीं कर सकते ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख हैं.आज इन्टरनेट पर हिंदी भाषा में अच्छे लेखन की बहुत मांग है.ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास मैंने भी किया है..जानकारी के लिए http://meaningofsuccess1.blogspot.in/ विजिट करें.आशा है आपको पसंद आएगा.
ReplyDeleteकोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ......
ReplyDeleteसंवेदनशील उदगार
ReplyDeletesundar bhao.nishchhal hriday pane ke liye bachpan me jana padega.
ReplyDeletemeri latest post me aapka swagat
कोई हमको फिर लौटा दे,
ReplyDeleteनिर्मलतम जो हृदय हमारा ।
अनुपम भाव संयोजित किये हुये उत्कृष्ट पंक्तियां
आभार
कोई हमको फिर लौटा दे,
ReplyDeleteनिर्मलतम जो हृदय हमारा ..
मन के भावों की मुखर अभिव्यक्ति ...
:)
ReplyDeleteaapki kavita me chayavaad ka prabhav dikhta hai... prasad, mahadevi see
ReplyDeleteआत्म खोज ज़ारी है ,सुन्दर भाव !!!
ReplyDelete....कहते- सुनते सब होगा.....धीरज धरें !
ReplyDeleteआपके पास ही है ज़रा पर्दा उठाकर देखें :),
ReplyDeleteसंवेदनशील अभिव्यक्ति.
यह तनिक विचित्र स्थिति होती है कि पता ही नहीं चलता कि ह्रदय के साथ कब छेड-छाड हो गई।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना है,
ReplyDeleteसाभार,
विवेक जैन
वाह !
ReplyDeleteवह स्वरूप लौट पाना तो आसान नहीं लेकिन उसे पाने की जीजिविषा भी बड़ी बात है।
ReplyDeleteथोड़ा सा झाड़-पौछ लीजिए, वापस आ जाएगा वही निर्मल वाला।
ReplyDeleteचाह ही तो राह है..अति सुन्दर गीत ..
ReplyDeleteइस निर्मला को नष्ट नहीं होने देना है फिर इसके लिये कुछ भी करना पड़े.
ReplyDeleteसुंदर भाव और सच भी.
बहुत उम्दा सृजन,,,, बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
बहुत सुंदर कविता...मुर्दा शरीरों में दिल तो है पर सिर्फ धड़कने के लिए।।।
ReplyDeleteएक आम भाव का जन पीड़ा का सहज साधारणीकरण (विरेचन )किया है आपने .लघु रचना का वृहद् कलेवर सुन्दर स्वरूप .
ReplyDeleteएक आम भाव का जन पीड़ा का सहज साधारणीकरण (विरेचन )किया है आपने .लघु रचना का वृहद् कलेवर सुन्दर स्वरूप .आपकी नित्य टिपण्णी हमें नित्य प्रति नै ऊर्जा से भर देती है .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
बृहस्पतिवार, 13 दिसम्बर 2012
राहुल गांधी का महात्मा कनेक्शन
http://veerubhai1947.blogspot.in/
कोई हमको फिर लौटा दे,
ReplyDeleteनिर्मलतम जो हृदय हमारा ।
निर्मल तो निर्मल ही रहेगा....
काश कोई सच में लौटा सकता....
ReplyDeleteयह मनुष्य की शाश्वत अभिलाषा है लेकिन ऐसे ह्रदय को कोई और नहीं लौटा सकता। अप्प दीपो भवः, दर्पण पर जमी धुल हमें खुद ही साफ़ करनी पड़ेगी।
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है !
ReplyDeleteबहुत खूब, मन की वाणी।
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