वरिष्ठ अधिकारी का निरीक्षण है, यार्ड में नयी पिट लाइनों का निर्माण कार्य चल रहा है, पिट लाइनों का उपयोग यात्री ट्रेनों के नियमित रख रखाव के लिये किया जाता है। बंगलौर के लिये बहुत अधिक यात्री गाड़ियों की माँग है, देश के हर कोने से। दबाव भी है और सहायता भी है, अधिकतम माँग को स्वीकार करने के लिये। इसी क्रम में नये प्लेटफ़ार्म, नयी पिट लाइन, नये कोच, नये इंजिन आदि की आवश्यकता बनी रहती है। योजना और क्रियान्वयन पर नियमित दृष्टि बनाये रखने के लिये, कार्य की प्रगति बीच बीच में देखनी होती है। यह निरीक्षण उस वृहद प्रक्रिया का अंग है जो अंततः नयी यात्री गाड़ी चलाने के लिये वर्षों पहले से चल रही है।
वरिष्ठ अधिकारी दूसरे मार्ग से आ रहे हैं, हमें वहाँ पहले पहुँचना था। बंगलौर की यातायात की अनिश्चितता को देखकर हम आधे घंटे पहले निकले, भाग्य ने साथ दिया और बिना व्यवधान के लगभग ४० मिनट पहले पहुँच गये। वरिष्ठ अधिकारी पर यातायात उतना प्रसन्न न रहा और अभी सूचना मिली है कि उन्हें नियत समय से लगभग ४० मिनट की देर हो जायेगी। हमारे हाथ में ८० मिनट का समय है, यार्ड का विस्तृत क्षेत्र है, २० मिनट का प्राथमिक निरीक्षण कर लेने के बाद पूरा एक घंटा हाथ में है। पेड़ के नीचे वाहन खड़ा कर, गाड़ी की अगली सीट पर बैठे हुये, लेखन चल रहा है। ऊपर देखने से हरियाली दिख रही है, नीचे सूर्य के प्रकाश में साँप सी लहराती पटरियाँ, दूर से आती इंजन की आवाज़ और लगभग २०० मीटर दूर निर्माण कार्य की चहल पहल। दृश्य का विस्तार और समय का साथ होना, दोनों ही लिखने को विवश कर रहे हैं।
रेल यार्ड का नाम सुनते ही एक चित्र उभर आता है, लम्बी लम्बी रेल लाइनें, बड़ी बड़ी रेलगाड़ियाँ, छुक छुक धँुआ छोड़ते इंजन, डिब्बों को एक ट्रेन से काटकर दूसरे में लगाते हुये रेल कर्मचारी। मुझे लगभग १६ वर्ष हो गये है रेल सेवा में पर आज भी यार्ड उतना ही अभिभूत करते हैं जितना बचपन में करते थे। आज भी यार्ड में जाकर घंटों बीत जाते हैं और लौटकर थकान जैसी कोई चीज़ नहीं लगती है, ऐसा लगता है कि किसी मित्र के घर से होकर आ रहे हैं। यार्ड को यदि सरल भाषा में समझा जाये तो, यह रेलगाड़ियों का घर है, जहाँ पर वे विश्राम करती हैं, उनका रख रखाव होता है और जहाँ उन्हें आगे की लम्बी यात्राओं के लिये निकलना होता है। यहाँ गाड़ी की सुरक्षा, संरक्षा आदि से जुड़े हर पक्ष पर ध्यान दिया जाता है।
यार्ड बड़े होते हैं, सामान्यतः एक किमी से लेकर पाँच किमी तक। परिचालन में कार्य करते हुये ऐसे न जाने कितने यार्डों में कार्य करने का अवसर मिला है। जिस प्रकार घरों में कई कमरे होते हैं, उसी तरह यार्डों में कार्यानुसार कई उपयार्ड। बड़े यार्ड का हर उपयार्ड एक किमी लम्बा होता है। एक में गाड़ियों का स्वागत होता है, दूसरे में उन्हें विभक्त किया जाता है, तीसरे में उनका रख रखाव होता है, चौथे से उन्हें गन्तव्य के लिये भेजा जाता है। वह अनुभव अब बहुत काम आता है, किसी भी यार्ड का चित्र देखकर ही यह पता लग जाता है कि इस यार्ड में क्या समस्या आती होगी, यहाँ पर किन कार्यों की संभावनायें हैं। भविष्य में विस्तार की योजनाओं में इनका विशेष स्थान है। हर ट्रेन का, चाहे वह यात्रीगाड़ी हो या मालगाड़ी, सबका एक नियत यार्ड होता है, उसका एक घर है।
कार्यक्षेत्र से संबंधित जो भी योगदान रहा हो यार्डों का, व्यक्तिगत जीवन में यार्डों के तीन स्पष्ट लाभ रहे हैं। पहला तो इन्हीं बड़े यार्डों की सड़कों पर वाहन चलाना सीख पाया। यार्ड के एक ओर से दूसरे ओर जाने में चार पाँच किमी की यात्रा हो जाती है। सड़कें सपाट, बिना किसी यातायात के, उन पर वाहन चलाना स्वयं में अनुभव होता था। प्रारम्भ में तो यार्ड आते ही चालक महोदय को अपनी सीट पर बिठाकर वाहन चलाना सीखा, बाद में जब आत्मविश्वास बढ़ गया तो कई बार रात्रि में दुर्घटना होने पर स्वयं ही वाहन लेकर निकल गया। यद्यपि वाहन चलाना अच्छे से आता है पर बंगलौर में यातायात की अल्पगति और भीड़ को देखकर कभी इच्छा ही नहीं होती है। आज एक दूसरे यार्ड में बैठा लिख रहा हूँ पर सामने फैली लम्बी सड़क देखकर वो दिन याद आ रहे हैं जब इन पर निर्बाध वाहन दौड़ाया करते थे।
दूसरा लाभ स्वास्थ्य से संबंधित है। सेवा के प्रारम्भिक वर्षों में ही एक आत्मीय वरिष्ठ ने सलाह दी थी कि जब भी किसी यार्ड में जाओ तो एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल चल कर ही निरीक्षण करो, उससे जो लाभ मिलता है वह दूर से समझने या इंजन में चलकर जाने में नहीं है। काग़ज़ पर यार्ड समझने का कार्य भी पूरे यार्ड की पैदल यात्रा करने के बाद ही करना चाहिये। पहले तो यह सलाह बड़ी श्रमसाध्य लगी, पर धीरे धीरे लाभ स्पष्ट होने लगे। कहीं कोई समस्या आने पर घटनास्थल पर पहुँचने के पहले ही फ़ोन से समुचित निर्देश दे सकने की क्षमता विकसित होने लगी। धीरे धीरे हर स्थान पर यही क्रम बन गया और योजना संबंधी कोई भी निर्णय लेने के लिये यार्डभ्रमण एक आवश्यक अंग बन गया। इतना पैदल चलने से स्वास्थ्य अच्छा रहना स्वाभाविक ही है। आज भी वरिष्ठ अधिकारी के आने के बाद दो किमी का भ्रमण तो निश्चित है। घर जाकर तब मिठाई आदि खाने में कोई अपराधबोध नहीं होगा। हर बार निरीक्षण में जाने के बाद एक अच्छा और भरपेट भोजन सुनिश्चित हो जाता है, स्वास्थ्य बना रहता है, सो अलग।
तीसरा लाभ है, लेखन। यार्ड का क्षेत्रफल बहुत अधिक होता है, जितना विस्तृत उतना ही शान्त। बीच बीच में ढेरों पेड़ और हरियाली। जब भी कार्य से कुछ समय मिलता है, थकान से कुछ समय निकलता है, ऐसा वातावरण बहुत कुछ सोचने और लिखने को प्रेरित करता है। विषय बहुत सामने आ जाते हैं, शान्ति और समय विचारों के संवाहक बन जाते हैं, शब्द उतरने लगते हैं। उड़ीसा में एक स्थान याद आता है, संभवतः गुआ नाम था। वहाँ के जो यार्ड मास्टर थे, वह उड़िया के बड़े लेखक थे। जंगल और लौह अयस्क की खदानों के बीच उन्हें निश्चय ही एक उपयुक्त वातावरण मिलता होगा, उस समय, जब एक ट्रेन जा चुकी हो, दूसरे की प्रतीक्षा हो, विचार रुक न रहे हों, वातावरण के अंग आपको विवश कर रहे हों, कुछ कह जाने को, कुछ बह जाने को।
सूचना आयी है कि लगभग १५ मिनट में वरिष्ठ अधिकारी पहुँच जायेंगे। बहते विचारों को अब सिमटना होगा, आगे बढ़ने की तैयारी करनी होगी। थोड़ी दूर से इंजन की बहुत भारी आवाज़ आती है, गम्भीर आवाज़ आती है। एक अधिक शक्ति का इंजन आया है, लौह अयस्क की एक भारी ट्रेन सेलम स्टील प्लांट जाने के लिये तैयार खड़ी है। लगभग आधे घंटे में वह ट्रेन अपने गन्तव्य की ओर बढ़ जायेगी, लौह पिघलेगा, कुछ सार्थक आकार निकलेगा, विकास का एक सहारा और बनेगा। हमारा लेखन भी शब्दों के रूप में बह कर पोस्ट का आकार ले रहा है, सृजन का एक और सोपान लग जायेगा। पिट लाइन के निरीक्षण के बाद कुछ सप्ताह में यहाँ किसी नई ट्रेन का रख रखाव प्रारम्भ हो जायेगा। न जाने कहाँ के लिये, जबलपुर, जयपुर, गोवा, गुवाहाटी, दिल्ली, कोच्चिवल्ली या कोयम्बटूर के लिये। ज्ञात नहीं, पर एक और स्थान बंगलौर से जुड़ जायेगा। संभवतः आप में से किसी को बंगलौर तक बैठा कर लाने के लिये। कौन जाने किससे मिलने के बीज आज के निरीक्षण में छिपे हों?
दूर से सायरन की क्षीण आवाज़ सुनायी पड़ती है, सुरक्षाबल अपनी व्यवस्था में लग जाते हैं। निरीक्षण से संबंधित संभावित विषय मस्तिष्क में अपना स्थान ढूँढ़ने लगते हैं। एक साथी अधिकारी का फ़ोन आता है, हाँ आपकी ही प्रतीक्षा में हैं, बस अभी आये हैं। अब लेखन समाप्त, निरीक्षण प्रारम्भ।