7.11.12

बंगलोर, मेट्रो और साइकिल

अभी कुछ दिन पहले एक समाचार पढ़ा कि बंगलोर मेट्रो अपने प्रमुख स्टेशनों पर साइकिलें रखेगी। इन साइकिलों का उपयोग मेट्रो में यात्रा करने वाले लोग अपने स्थान से मेट्रो स्टेशन आने जाने में कर सकेंगे। इनका रख रखाव व उपयोग पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर आधारित होगा। यह सेवा सशुल्क होगी और उपयोगकर्ता प्रति घंटे से लेकर वार्षिक मूल्य तक एक बार में चुका सकते है। यह सेवा मेट्रो के लिये लाभदायक होगी, बंगलोर नगर के लिये लाभदायक होगी और यदि सब कुछ ठीक चलता रहता तो यह सेवा बंगलोर की सड़कों से बड़े वाहनों और यातायात के अवरोध को कम कर देगी। इस सेवा को लागू करने के ठेके दिये जा चुके हैं और इससे होने वाली आय में मेट्रो का भी भाग होगा।

पढ़कर बहुत अच्छा लगा। जो कार्य विकसित देशों के बड़े नगरों में हुआ हो और सकुशल चल रहा हो, वह यदि बंगलोर में भी चलने लगे तो प्रसन्नता स्वाभाविक ही है। न केवल चलने लगे, वरन अपने उद्देश्यों को पा भी ले, पर्यावरण की मार्मिक स्थिति को सुधार दे, धुँयें से भरी सड़कों पर शीतल स्वच्छ बयार बहा दे और यातायात अवरोध में घंटों व्यर्थ हुये समय को यथासंभव कम कर दे। मुझे इस प्रयास में जितनी अधिक रुचि है, इसकी सफलता में उतना ही अधिक संशय। मैं इसलिये प्रश्न नहीं खड़े करने जा रहा हूँ कि यह एक दोषपूर्ण अवधारणा है। मैं इसका विश्लेषण इसलिये करना चाहता हूँ क्योंकि समुचित और समग्र योजना के अभाव में इतने क्रान्तिकारी विचार को निष्फल होते नहीं देखना चाहता हूँ।

निश्चय ही दिल्ली मेट्रो ने यह सिद्ध किया है कि न केवल मेट्रो महत्वपूर्ण है वरन उस मेट्रो की फीडर सेवायें भी उतनी ही आवश्यक हैं। यातायात एक समग्र उत्पाद है और इसके कई अंग हैं। नगरीय सेवाओं का स्वरूप देखें तो दैनिक यात्री कुछ पैदल चलते हैं, कुछ फीडर सेवाओं से और शेष नगरीय बसों या मेट्रो से। यदि सेवायें इस दिशा में हों तो दैनिक यात्री को थोड़ा बहुत पैदल चलना अखरता नहीं है। फीडर सेवायें मेट्रो का प्राकृतिक विस्तार है, जनसंख्या या नगर में जितना गहरे तक जायेंगी, मेट्रो उतना ही सफल होगी, लोग अपने वाहन की सुविधा उतना ही तजकर और कुछ सौ मीटर पैदल चल कर मेट्रो का उपयोग करने लगेंगे।

नगर के अन्दर साइकिलों का उपयोग एक भिन्न प्रयोग है। साइकिल बहुत अधिक दूरी के लिये उपयोग में नहीं लाई जा सकती हैं, पर ६-७ किमी की दूरी के लिये सर्वोत्तम साधन है। २० मिनट में दूरी तय हो जाती है, हल्का व्यायाम हो जाता है और थकान भी नहीं होती है। हमारे गाँवों और छोटे नगरों में स्कूटर आदि आने के पहले तक साइकिल ही प्रमुख माध्यम होता था, छोटी दूरियाँ तय करने के लिये। नगरीय परिवेश में हर स्थान पर बस सेवायें नहीं जा सकतीं। नगर के प्रमुख केन्द्र से आसपास के व्यावसायिक और शैक्षणिक स्थानों पर जाने के लिये ऑटो या रिक्शा सबके लिये आर्थिक रूप से साध्य नहीं है। इस अन्तर को भरने का कार्य साइकिल से अच्छा कोई नहीं कर सकता है। पर्यटन स्थलों में जहाँ कई स्थान कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही होते हैं, साइकिल के द्वारा सरलता से पहुँचे जा सकते हैं।

पेरिस, मॉन्ट्रियल, कोपेनहेगन, ब्रिसबेन आदि नगरों में साइकिलों को बढ़ावा दिया गया है, बिना किसी व्यावसायिक उद्देश्य के, विशुद्ध पर्यावरणीय कारणों से, दैनिक यात्रियों और पर्यटकों की सुविधा के लिये। यदि एक यात्री भी अपना वाहन छोड़कर साइकिल की सुविधा अपना लेता है तो, साइकिल का मूल्य तो निकल ही आयेगा, उसके अतिरिक्त भी कितने लाभ होंगे, उसकी गणना विकास की अवरुद्ध राहें खोलने में सक्षम होगी। यदि इन सेवाओं को लागू करना हो तो उसमें उपयोगकर्ताओं से धन उगाहने का आग्रह तो बिल्कुल ही न हो, वरन उपयोगकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के प्रयास हों।

जब यह सुविधा सर्वहितकारी है तो ऐसे क्या कारण हैं जो इसे लागू करने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं? दो प्रमुख आवश्यकतायें हैं और दोनों का ही निदान नगरीय प्रशासन के हाथों में है।

पहला तो साइकिल अन्य वाहनों के साथ नहीं चल सकती हैं। लहराते और मदमाते वाहनों से भरी सड़कों पर कोई भी इतना साहस नहीं कर पायेगा कि निशंक हो चल सके। वैसे अभी भी कई साहसी युवकों को देखता हूँ जो सर पर हेलमेट बाँधे तेज भागती गाड़ियों के बीच जूझते रहते हैं। पर रोमांच के लिये साइकिल चलाने और दैनिक जीवन में अपनाने में अन्तर है। यदि नगर में इसे लागू करना है तो पतला सा ही सही पर एक आरक्षित मार्ग सुनिश्चित करना होगा और वह भी हर स्थान पर पहुँचने के लिये। समस्या यहीं पर आ जाती है, जिस नगर में सारा यातायात रेंग रेंग कर चलता हो, वहाँ की सड़कें और पतली कर उसमें साइकिल मार्ग निकालने का प्रयास करेंगे तो समस्या सुलझने के पहले ही उलझ जायेगी। इसका समाधान निकालना ही होगा, आंशिक नहीं, वरन पूरा। एक कार के स्थान पर ४-६ साइकिलें आराम से चल सकती हैं, इस दृष्टि से अन्ततः समस्या सुलझनी ही है, पर इसे समुचित रूप से प्रारम्भ करने की कार्ययोजना बड़ी कठिन होगी और साथ ही साथ कई कड़े निर्णयों से भरी पूरी भी।

दूसरी कठिनाई होगी, स्थापित यातायात के साधनों का विरोध। वर्तमान में छोटी दूरी की आवश्यकताओं के फलस्वरूप करोड़ों की अर्थव्यवस्था चल रही है। बंगलोर में ही ७० हज़ार से अधिक ऑटो अधिकांशतः इसी आवश्यकता से पोषित होते हैं, साथ ही साथ टैक्सी सेवायें आदि भी इसी आवश्यकता से अपना व्यवसाय चला रही हैं। इनके विरोध और कार्य-विकल्प का समुचित प्रबन्ध करना पड़ेगा।

ऐसा नहीं है कि नगर का यातायात नहीं चल रहा है। आप एक से दूसरे स्थान पर पहुँच ही जाते हैं। बस समय अधिक लगता है, धन अधिक लगता है, असुविधा अधिक होती है और प्रदूषण अधिक होता है। मेट्रो, बस और साइकिल आदि इस दिशा में ही हैं जिससे सारे व्यर्थ हो रहे संसाधनों की बचत हो सके। तन्त्र में असीमित सुधार की संभावना़यें भी हैं, उपाय भी। प्रशासन में बैठे लोग संवेदनशील हैं और नागरिक जागरूक, समस्याओं को निदान मिलना ही है और निदान को दिशा भी। एक भविष्य का स्पष्ट खाका खींचिये और वहाँ तक पहुँचने के साधन और योजना जुटाइये, इसी में सर्वहित छिपा है।

बंगलोर मेट्रो का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है कि उन्होंने दो प्रयोगों को एक में ही समाहित करके एक नया तन्त्र बनाने का यत्न किया है। दोनों प्रयोग भिन्न हैं, दोनों की ही उपयोगिता है नगर के यातायात को सुधारने के लिये, पर इस तरह का बिन विचार किये हुये घालमेल करने से उसकी सफलता संशयपूर्ण लगती है। जिन दो तीन स्थानों पर मेट्रो स्टेशन देखना हुआ है, वहाँ की सड़कों पर साइकिलों को कैसे स्थान मिलेगा, यह एक यक्ष प्रश्न है।

43 comments:

  1. दिल्ली में भी कुछ जगह यह व्यवस्था है पर बात वही कि मदमाते और लहराते ट्रैफिक के आगे सब वृथा है ।

    ReplyDelete
  2. निश्चय ही यह एक सराहनीय कदम होगा -आशान्वित!

    ReplyDelete
  3. एक सही कदम..यहाँ गो स्टेशन (मैट्रो की तरह ही) पर ऐसी व्यवस्था है!!

    ReplyDelete
  4. इस गो ट्रेन की सायकिल स्टैंड की तस्वीर को देखें:

    http://www.google.ca/url?source=imglanding&ct=img&q=http://smartcommute.files.wordpress.com/2011/06/biketowork2011-bmcquaig-0021.jpg&sa=X&ei=i8WZUIScCMqZyQH2u4GYAQ&ved=0CAkQ8wc&usg=AFQjCNGpDVe9oOnFyUBOj44hZjtePqCHiA

    ReplyDelete
  5. अच्छा है ,सफल रहे यह योजना !

    ReplyDelete
  6. पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए शायद 2 साल पहले की बात है चीन ने भी अपने सभी कर्मचारियों को साईकिल दी थी और आदेश दिया था की सभी कर्मचारी कार्य पर जाने के लिए साईकिल का उपयोग करेंगे।इस को सुचारू रूप से लागु करने के लिए कर्मचारियों को उनके कार्य करने के स्थान से लेकर 5 km के दायरे में रहने की व्यवस्था भी की ...
    हमारे देश में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

    ReplyDelete
  7. गंभीर आलेख -सिलसिलेवार वर्णन-लाभ हानि।
    शुभकामनायें आदरणीय ।।

    ReplyDelete
  8. सराहनीय तो है ... पर भीड़ जिस तरह उतरती है और दौड़ती है , इन साइकिलों से टकराव तो नहीं होगा !

    ReplyDelete
  9. सराहनीय पहल...... अगर सही ढंग से क्रियान्वित हो तो हर तरह से लाभकारी ही है .....

    ReplyDelete
  10. जब प्रदूषण अपनी सीमाएं लांघ चुका होगा तब हर कोई साइकिल की पैरवी ही करेगा। विकसित देशों मे लोग मेट्रो और साइकिल को ही महत्त्व देते हैं। बंगलोर के आज के मौसम की अगर पिछले 10 साल पहले के मौसम से तुलना करें तो समझ आएगा इस ग्रीन सिटी की क्या हालत हो गई है।

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है मेट्रो ने, पहल बहुत जरूरी है, वैसे भी बैंगलोर में लोग बहुत जागरूक हैं भले ही उनकी संख्या कम है ।

    ReplyDelete
  12. बेहद सराहनीय प्रयास है ... आपका आभार इसे साझा करने के लिए

    ReplyDelete
  13. सड़कों पर साइकिल के लिए अलग लेन हो जाए तो कुछ हो सकता है :-)

    ReplyDelete
  14. इस भागती दौड़ती दुनिया में हमे ठिठक कर उन सब बातों को देखने की फ़ुरसत ही हमें नहीं है, जिनका ज़िक्र आपने इस लेख में किया है, और जिसके द्वारा हम अपनी मौत का सामान इकट्ठा किए जा रहे हैं।
    शायद इस तरह के परिवर्तन हमें कुछ पल के लिए रोक ले ... वरना हम ख़ुद से भी भाग ही रहे हैं।

    ReplyDelete
  15. समाधान तो अच्छा है .लेकिन क्या सफल रहेगा , इसमें संदेह रहेगा।

    ReplyDelete
  16. साइकिल के लिए मार्ग सुनिश्चित करना होग ॥नहीं तो इस विचार का क्रियान्वन कठिन ही लगता है ... सार्थक लेख

    ReplyDelete
  17. सराहनीय प्रयास,,,लेकिन सही ढंग से क्रियान्यवन हो पाए संसय लगता है,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

    ReplyDelete
  18. यह व्यवस्था सिर्फ इंसानी इलाकों में ही कामयाब हो सकती है, दिल्ली जैसी जगहों पर नहीं !

    ReplyDelete
  19. चीन ,जापान तो सायकिल पर ही सबसे आगे दौड़ रहा है . यहाँ भी ऐसा ही हो..

    ReplyDelete
  20. बहुत ही अच्छा कदम है. यहाँ तो बड़े बड़े लोग ऑफिस तक साइकिल से जाते हैं.हाँ भारत में यातायात के नियमों की हालत देखकर थोडा मुश्किल हो सकता है.

    ReplyDelete
  21. इसी बहाने लोग स्वस्थ होंगे । पर्यावरण शुद्ध होगा । अच्छा प्रयास ।

    ReplyDelete
  22. आपकी चिंता सार्थक है। निस्चय ही यदि सायकिल के उपयोग को मेट्रोस्टेशन तक आने-जाने हेतु आम आदमी द्वारा उपयोग में लाने के इस प्रयोग को सभल बनाना है, तो पहले शहर के भीड़भाड़ वाले हिस्से में सायकिल की यात्रा को सुरक्षित बनाने हेतु आवश्यक सुविधाओं,जैसे सायकिल हेतु अलग से ट्रैक इत्यादि, को प्रदान करना होगा, वरना इतना सुंदर प्रयोग अल्पायु में ही मृत हो जायेगा। फिर भी बंगलौर मेट्रो की यह पहल अति सार्थक है, व कर्नाटक सरकार व बंगलोर म्युनिसिपल कारपोरेसन को पूरा सहयोग व सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  23. ek achchhi shuruaat..shubhkamnaye ki ye safal ho taki any shahro me bhi shuru ki ja sake..

    ReplyDelete
  24. बेंगलोर शहर में यह प्रयास अच्छा है.
    तस्वीरें देख कर लगा नहीं अपने ही देश की हैं.

    ReplyDelete
  25. yahaan yahi huaa hai aksar bas addaa bantaa hai pahle dhaanchaa khdaa hotaa hai baad me ,paidal paar path /saaikil pth zaroori hai .

    ReplyDelete
  26. यहाँ यही हुआ है अक्सर ,बस अड्डा पहले बन जाता है ऊबड़ खाबड़ जगह पर ,ढांचा बाद में खड़ा किया जाता है इसीलिए नगर नियोजन की होती है ऐसी की तैसी एक सड़क बना जाता है दूसरा अंग उसे

    खोद के चला जाता है सीवर बिछाने के लिए .अच्छा मुद्दा उठाया है .विदेशों में पार पथ /साइकिल पथ और हेलमेट सभी ज़रूरी हैं अलबत्ता लोग साइकिल चलाएं तो स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्ची भी कम

    हो .साइकिल मिले निश्शुल्क .

    बढ़िया पोस्ट .आपकी टिप्पणियाँ सदा हमारी शान रहें .,भले आपकी बान रहें .

    ReplyDelete
  27. एक सराहनीय पहल हो सकती है यदि पहले प्रेषित सुझावों पर अमल किया जा सके !

    ReplyDelete
  28. आपकी सारी बातें सही हैं। कठिनाई वही है - सायकिलों के लिए सडकों पर जगह मिलना।

    ReplyDelete
  29. प्रवीण जी आपने ये आलेख जो लिखा है इसको मैं भी लिखना चाह रही थी वो भी पिछले वर्ष पर लिख नहीं पाई जब मैं इस्राइल गई थी ये व्यवस्था अर्थात साइकिल का चलन वहां देखा था वहां एटीएम की तरह जगह जगह साइकिल के इलेक्ट्रोनिक मीटर देखे थे उसे देखकर मन में यही आ रहा था की ये व्यवस्था हमारे देश में क्यूँ नहीं फिर पतिदेव का यही संशय भरा उत्तर था की इंडिया की इतनी भीड़ में शायद ही ये कारगर हो किन्तु पोलुशन घटाने का बहुत बढिया विकल्प है सुनकर ख़ुशी हुई की बंगलौर में ये शुरुआत हुई आज कल की पीढ़ी में फिर से साइकिल का ट्रेंड आ रहा है इसके लिए मीडिया /फिल्मो को भी प्रचार करना चाहिए आफ्टर आल बच्चे हीरो को फोलो जल्दी करते हैं ।

    ReplyDelete
  30. बेहतरीन जानकारी एवं अभिव्यक्ति के लिए आभार

    ReplyDelete

  31. ऑक्सीजन की खपत बढ़ाने वाला सर्वोत्तम व्यायाम है साइकिल चलाना .काश यह योजना सिरे चढ़े एक ढांचा परिपथ का जल्दी खड़ा हो साइकिल सवारों के लिए .

    ReplyDelete
  32. विचारों को भी आक्सीजन देता उम्दा आलेख |एक एडवांस शहर की एडवांस सोच |सराहनीय और अनुकरणीय कार्य |

    ReplyDelete
  33. साइकिल चलाना एक सुंदर व्यायाम है और एक जगह से दूसरी जगह जाने की सुविधा भी. दिल्ली मेट्रो भी कुछ चुने इस्टेसन पर यह साइकिल सुविधा उपलब्ध कराती है.

    ReplyDelete
  34. ऐसे प्रोजैक्ट ज्यादा से ज्यादा सफ़ल होने चाहियें।

    ReplyDelete
  35. भारत में तेज़ रफ्तार वाहन और साइकिलें दोनों चाहिए .नये फैलते नगरों में अब ख्याल रखा जाए पहले सा। ट्रेक बने फिर शेष ढांचा

    गत निर्माण हो .शुक्रिया भाई जान आपके निरंतर मिलते सहयोग समर्थन के लिए प्रोत्साहन टिप्पणियों के लिए .साईकिल एक एहम

    मुद्दा

    है जिससे सेहत और पर्यावरण दोनों की नस जुडी है .

    ReplyDelete
  36. सार्थक!! परियोजना सफल हो यह कामना!!

    ReplyDelete
  37. सायकिल तो पूरे देश में चलनी चाहिए।

    ReplyDelete
  38. जिस तरह का ट्राफिक दिल्ली में है वहां जब तक साइकलों के लिये अलग लेन नही होती यह व्यवस्था चल नही सकती । पर बैंगलोर नगर निगम का ये प्रयास सराहनीय है ।

    ReplyDelete
  39. सराहनीय और सकारात्मक सोच .....

    ReplyDelete
  40. अलग लेन की व्यवस्था किये बिना यह योजना कारगर नहीं हो सकती। लगभग 20 साल पहले साईकिल का खूब उपयोग होता था, लम्बी दूरी के लिए भी। स्वयं मैंने एक दिन में 80 किलोमीटर तक साईकिल चलाया हुआ है।

    ReplyDelete
  41. अलग लेन की व्यवस्था किये बिना यह योजना कारगर नहीं हो सकती। लगभग 20 साल पहले साईकिल का खूब उपयोग होता था, लम्बी दूरी के लिए भी। स्वयं मैंने एक दिन में 80 किलोमीटर तक साईकिल चलाया हुआ है।

    ReplyDelete
  42. सटीक विश्लेषण. साईकिल जैसा ओर कोई साधन नहीं पर व्यस्त सड़कों पर चलना मुश्किल है !

    ReplyDelete