पता नहीं जो लोग ढेरों पैसा कमा लेते होंगे, वे अपनी वसीयत कैसे लिखते होंगे, बड़ा ही कठिन कार्य है यह, पहले संग्रहण करो फिर बाँट दो। हम तो एक एक संग्रह में पसीना बहा देते हैं, खरीदने के पहले ही उसके निस्तारण का निर्णय लेना पड़ता है। ऐसा ही कुछ हमारे घर में भी हुआ, बड़ी रोचकता से भरा, संभवतः सबके साथ कुछ ऐसा ही होता होगा।
हम मैकबुक एयर और आईफोन खरीद चुके थे और अपने घर में ही विकसित देशों के नागरिक की तरह रह रहे थे। घर के शेष तीन लोग पुराने उपकरणों के साथ थे और स्वयं को विकासशील देश के नागरिक की तरह समझ रहे थे। वितरण इस प्रकार था, डेस्कटॉप व पुराना आईपॉड बच्चों के हिस्से में, हमारे द्वारा मुक्त किया गया तोशीबा का लैपटॉप व ब्लैकबेरी का मोबाइल श्रीमतीजी के हिस्से में और एप्पल के दो नवीनतम उत्पाद हमारे हिस्से में। वितरण आवश्यक था, नहीं तो सबको एक साथ ही एक उपकरण में कार्य करने की सूझती है।
लगा था कि वितरण बड़े ही न्यायप्रिय दृष्टि से हुआ है, न केवल शान्ति बनी रहेगी वरन प्रसन्नता भी बिखरेगी। ऐसा नहीं हुआ, हमारे घर में ही हमारे विरुद्ध विरोध के स्वर उठने लगे। अपने लिये तो इतना अच्छा ले लिया, हम लोगों के लिये पुराना, यह डेस्कटॉप कितनी आवाज करता है, हमारा सिस्टम कितने धीरे चलता है, आप तो घर में कभी भी बैठ कर काम कर लेते हैं, आदि आदि। हमें लगने लगा कि एक स्थिति बन रही है जिसमें घर का मुखिया अपने लिये सारी सुविधायें रख कर औरों को उनसे वंचित रखता है। हमारा ग्लानि भाव धीरे धीरे बढ़ने लगा, उससे बाहर निकलना आवश्यक था।
विकल्प अधिक नहीं थे। निर्णय लिये जाने आवश्यक थे, पर इस बार ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहता था, जिससे असंतुष्टि बनी रहे, निर्णय में सबको सहभागी बनाना आवश्यक था। बहुत सोच विचार कर एक प्रस्ताव हमने परिवार-परिषद में रखा। बहुत कम होता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सब प्रसन्न रहें, किसी एक का हित साधा जाता है तो दूसरा रूठ जाता है। बहुत कम ही ऐसे समाधान होते हैं, जो सबको अपना सा लगे। सीमित संसाधन होते हैं और सबको बांटे भी नहीं जा सकते हैं।
निश्चय किया गया कि एक आईपैड ले लेते हैं और डेस्कटॉप को विदा कर देते हैं। डेस्कटॉप बहुत ऊर्जा खा रहा था, तुलना की जाये तो उसी कार्य के लिये लगभग २० गुना। हम मैकबुक एयर और आईफोन रखे रहेंगे, श्रीमतीजी को आईपैड और ब्लैकबेरी और बच्चों को तोशीबा का लैपटॉप व आईपॉड। यही नहीं, इस बात का भी निर्णय लिया गया कि चार वर्ष बाद जब हमारा मैकबुक एयर और आईफोन पृथु को मिलेंगे, श्रीमतीजी के उपकरण देवला को मिलेंगे, हम लोग तब तकनीक के नये प्रयोग पुनः प्रारम्भ करने के लिये स्वच्छन्द रहेंगे। अगले चार वर्षों में तोशीबा का लैपटॉप ९ वर्ष का जीवन जी लेगा और आईपॉड भी लगभग ७ वर्ष की उपयोगिता निभा जायेगा, उसके बाद दोनों सेवानिवृत्त हो जायेंगे। उत्तराधिकार नियत करने से बच्चों को हमारे उपकरणों से लगाव हो चला है, विरोध के स्वर भी शमित हो गये हैं और भविष्य में और आधुनिक उपकरण लेने के लिये निश्चयात्मकता भी हो गयी है।
मूल प्रश्न अभी भी वहीं टँगा है कि लैपटॉप या टैबलेट। यद्यपि जिस समय मैंने मैकबुक एयर लिया था, उस समय पर्याप्त समय दिया था और विश्लेषण किया था, यह निर्धारित करने के लिये कि लैपटॉप लें या टैबलेट, और वह भी किस कम्पनी का। उस समय शोरूम में ही जाकर दोनों का अनुभव लिया था, तब भार की दृष्टि से, धन की दृष्टि से, सम्हालने की दृष्टि से, कार्य विशेष की दृष्टि से, हर प्रकार से यही निर्णय लिया कि मैकबुक एयर ही लेना है। तब समय भी कम था और विश्लेषण बौद्धिक अधिक था, व्यवहारिक कम। अब जब घोर पारिवारिक कारणों से आईपैड भी घर में आ गया है और लगभग ७ माह का अनुभव दे चुका है, दोनों की तुलना अपना रंग बदल चुकी है, कुछ तथ्य नये आये हैं और कुछ पुराने तथ्य गलत सिद्ध हुये हैं। साथ ही साथ मोबाइल की उपस्थिति ने विश्लेषण को एक नयी गहराई दी है।
लैपट़ॉप, टैबलेट और स्मार्टफोन, तीनों रखने का कोई औचित्य नहीं है, पर केवल दो से भी पूरा कार्य नहीं चल सकता है। यह वाक्य भ्रमित करने वाला लग सकता है, पर इसके पीछे कारण है, एक द्वन्द्व छिपा है, एक दर्शन छिपा है। यदि आप गतिमय रहेंगे तो सारी क्षमतायें ढोकर नहीं चल सकते। मोबाइल फोन गतिमयता का प्रतीक है, लैपटॉप क्षमताओं का। टैबलेट दोनों के बीच का है, इसमें गतिमयता भी है और क्षमता भी, पर समय पड़ने पर दोनों के कई कार्य नहीं कर पाता है।
यदि आपके पास तीनों है तो कुछ न कुछ अतिरिक्त है, लगभग २० प्रतिशत। यदि आपके पास केवल लैपटॉप और मोबाइल है तो आपका कुछ न कुछ छूट रहा है, लगभग २० प्रतिशत। तीनों उपकरण लेकर न केवल आप अधिक धन खर्च करेंगे वरन तीनों के सामञ्जस्य के लिये ढेरों समय भी व्यर्थ करेंगे, भ्रम बना रहेगा और सततता बाधित होगी, वह भी अलग से। लेकिन दो उपकरण होने पर भी आपको २० प्रतिशत उपयोगिता की रिक्तता अपनी ओर से भरनी पड़ती है। यह रिक्तता भी तीन तरह से भरी जा सकती है या तीसरे उपकरण का आंशिक उपयोग करके, या अपनी आदतों में बदलाव लाकर या उन्नत तकनीक अपना कर। तीनों को उदाहरणों से स्पष्ट करना आवश्यक है।
श्रीमतीजी के पास टैबलेट और मोबाइल है, उनका लगभग सारा कार्य गतिमयता से हो जाता है। लगभग २० प्रतिशत कार्य छूटता है, बड़ी फिल्में नहीं देख पाती हैं, फोटो आदि नहीं सहेज पाती है, गाने इत्यादि डाउनलोड नहीं कर पाती हैं, १६ जीबी से अतिरिक्त कुछ सहेजने के लिये उन्हें सोचना पड़ता है, हम पर या बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्हें संकोच नहीं होता है, हम सब भी उन्हें तकनीक सिखाने को तत्पर रहते हैं, वह तीसरे उपकरण का आंशिक उपयोग करके अपना कार्य चला लेती हैं।
दूसरी श्रेणी में हमारे एक मित्र हैं, घर में एक बड़ा सा लैपटॉप है और हाथ में औसत से अधिक क्षमता का मोबाइल। गतिमयता का पर्याप्त कार्य मोबाइल से कर लेते हैं, ईमेल देख लेते हैं, फेसबुक स्टेटस चेक कर लेते हैं, छोटे मोटे नोट्स भी लिख लेते हैं। घर पहुँचकर ही वे अपने शेष कार्य कर पाते हैं, ब्लॉग पर टिप्पणी करना, लेख लिखना, शोध करना। उन्होंने अपनी आदतों में यह बसा लिया है कि कब क्या करना है? जो २० प्रतिशत की यह रिक्तता है, वह उससे संतुष्ट हैं।
तीसरी श्रेणी में हम जैसे लोग आते हैं। हम न तो किसी पर निर्भर रहना चाहते हैं और न ही अपनी आदतों में ही कोई बदलाव लाना चाहते हैं। हम २० प्रतिशत की रिक्तता तकनीक से भरना चाहते हैं। एक ऐसा लैपटॉप ढूढ़ते हैं जो पूरी क्षमता का हो, हल्का हो और कहीं भी ले जाया जा सके। साथ ही साथ एक ऐसा मोबाइल जो सारे कार्य करने में सक्षम हो, क्षमताओं से भरा हो। हर कम्पनी के नये मॉडल इसी दिशा में आ रहे हैं और अधिक मँहगे भी हैं। धन व्यय करना तभी करना चाहिये जब हम में उन उपकरणों की पूरी क्षमता निचोड़ने की इच्छाशक्ति हो।
तीसरी श्रेणी के समक्ष उपस्थित विकल्पों और तकनीक से जुड़े पहलुओं पर चर्चा अगली पोस्ट में।
हम मैकबुक एयर और आईफोन खरीद चुके थे और अपने घर में ही विकसित देशों के नागरिक की तरह रह रहे थे। घर के शेष तीन लोग पुराने उपकरणों के साथ थे और स्वयं को विकासशील देश के नागरिक की तरह समझ रहे थे। वितरण इस प्रकार था, डेस्कटॉप व पुराना आईपॉड बच्चों के हिस्से में, हमारे द्वारा मुक्त किया गया तोशीबा का लैपटॉप व ब्लैकबेरी का मोबाइल श्रीमतीजी के हिस्से में और एप्पल के दो नवीनतम उत्पाद हमारे हिस्से में। वितरण आवश्यक था, नहीं तो सबको एक साथ ही एक उपकरण में कार्य करने की सूझती है।
लगा था कि वितरण बड़े ही न्यायप्रिय दृष्टि से हुआ है, न केवल शान्ति बनी रहेगी वरन प्रसन्नता भी बिखरेगी। ऐसा नहीं हुआ, हमारे घर में ही हमारे विरुद्ध विरोध के स्वर उठने लगे। अपने लिये तो इतना अच्छा ले लिया, हम लोगों के लिये पुराना, यह डेस्कटॉप कितनी आवाज करता है, हमारा सिस्टम कितने धीरे चलता है, आप तो घर में कभी भी बैठ कर काम कर लेते हैं, आदि आदि। हमें लगने लगा कि एक स्थिति बन रही है जिसमें घर का मुखिया अपने लिये सारी सुविधायें रख कर औरों को उनसे वंचित रखता है। हमारा ग्लानि भाव धीरे धीरे बढ़ने लगा, उससे बाहर निकलना आवश्यक था।
विकल्प अधिक नहीं थे। निर्णय लिये जाने आवश्यक थे, पर इस बार ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहता था, जिससे असंतुष्टि बनी रहे, निर्णय में सबको सहभागी बनाना आवश्यक था। बहुत सोच विचार कर एक प्रस्ताव हमने परिवार-परिषद में रखा। बहुत कम होता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सब प्रसन्न रहें, किसी एक का हित साधा जाता है तो दूसरा रूठ जाता है। बहुत कम ही ऐसे समाधान होते हैं, जो सबको अपना सा लगे। सीमित संसाधन होते हैं और सबको बांटे भी नहीं जा सकते हैं।
मूल प्रश्न अभी भी वहीं टँगा है कि लैपटॉप या टैबलेट। यद्यपि जिस समय मैंने मैकबुक एयर लिया था, उस समय पर्याप्त समय दिया था और विश्लेषण किया था, यह निर्धारित करने के लिये कि लैपटॉप लें या टैबलेट, और वह भी किस कम्पनी का। उस समय शोरूम में ही जाकर दोनों का अनुभव लिया था, तब भार की दृष्टि से, धन की दृष्टि से, सम्हालने की दृष्टि से, कार्य विशेष की दृष्टि से, हर प्रकार से यही निर्णय लिया कि मैकबुक एयर ही लेना है। तब समय भी कम था और विश्लेषण बौद्धिक अधिक था, व्यवहारिक कम। अब जब घोर पारिवारिक कारणों से आईपैड भी घर में आ गया है और लगभग ७ माह का अनुभव दे चुका है, दोनों की तुलना अपना रंग बदल चुकी है, कुछ तथ्य नये आये हैं और कुछ पुराने तथ्य गलत सिद्ध हुये हैं। साथ ही साथ मोबाइल की उपस्थिति ने विश्लेषण को एक नयी गहराई दी है।
लैपट़ॉप, टैबलेट और स्मार्टफोन, तीनों रखने का कोई औचित्य नहीं है, पर केवल दो से भी पूरा कार्य नहीं चल सकता है। यह वाक्य भ्रमित करने वाला लग सकता है, पर इसके पीछे कारण है, एक द्वन्द्व छिपा है, एक दर्शन छिपा है। यदि आप गतिमय रहेंगे तो सारी क्षमतायें ढोकर नहीं चल सकते। मोबाइल फोन गतिमयता का प्रतीक है, लैपटॉप क्षमताओं का। टैबलेट दोनों के बीच का है, इसमें गतिमयता भी है और क्षमता भी, पर समय पड़ने पर दोनों के कई कार्य नहीं कर पाता है।
यदि आपके पास तीनों है तो कुछ न कुछ अतिरिक्त है, लगभग २० प्रतिशत। यदि आपके पास केवल लैपटॉप और मोबाइल है तो आपका कुछ न कुछ छूट रहा है, लगभग २० प्रतिशत। तीनों उपकरण लेकर न केवल आप अधिक धन खर्च करेंगे वरन तीनों के सामञ्जस्य के लिये ढेरों समय भी व्यर्थ करेंगे, भ्रम बना रहेगा और सततता बाधित होगी, वह भी अलग से। लेकिन दो उपकरण होने पर भी आपको २० प्रतिशत उपयोगिता की रिक्तता अपनी ओर से भरनी पड़ती है। यह रिक्तता भी तीन तरह से भरी जा सकती है या तीसरे उपकरण का आंशिक उपयोग करके, या अपनी आदतों में बदलाव लाकर या उन्नत तकनीक अपना कर। तीनों को उदाहरणों से स्पष्ट करना आवश्यक है।
श्रीमतीजी के पास टैबलेट और मोबाइल है, उनका लगभग सारा कार्य गतिमयता से हो जाता है। लगभग २० प्रतिशत कार्य छूटता है, बड़ी फिल्में नहीं देख पाती हैं, फोटो आदि नहीं सहेज पाती है, गाने इत्यादि डाउनलोड नहीं कर पाती हैं, १६ जीबी से अतिरिक्त कुछ सहेजने के लिये उन्हें सोचना पड़ता है, हम पर या बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्हें संकोच नहीं होता है, हम सब भी उन्हें तकनीक सिखाने को तत्पर रहते हैं, वह तीसरे उपकरण का आंशिक उपयोग करके अपना कार्य चला लेती हैं।
दूसरी श्रेणी में हमारे एक मित्र हैं, घर में एक बड़ा सा लैपटॉप है और हाथ में औसत से अधिक क्षमता का मोबाइल। गतिमयता का पर्याप्त कार्य मोबाइल से कर लेते हैं, ईमेल देख लेते हैं, फेसबुक स्टेटस चेक कर लेते हैं, छोटे मोटे नोट्स भी लिख लेते हैं। घर पहुँचकर ही वे अपने शेष कार्य कर पाते हैं, ब्लॉग पर टिप्पणी करना, लेख लिखना, शोध करना। उन्होंने अपनी आदतों में यह बसा लिया है कि कब क्या करना है? जो २० प्रतिशत की यह रिक्तता है, वह उससे संतुष्ट हैं।
तीसरी श्रेणी के समक्ष उपस्थित विकल्पों और तकनीक से जुड़े पहलुओं पर चर्चा अगली पोस्ट में।
अभी तो हम भी अपने घर में विकासशील देश के नागरिक ही बने हुए हैं..... चैतन्य अब अपनी माँगें रखने में माहिर हो रहा है.....
ReplyDeleteधन व्यय करना तभी करना चाहिये जब हम में उन उपकरणों की पूरी क्षमता निचोड़ने की इच्छाशक्ति हो।
पूर्ण सहमति ...... इसके लिए उचित जानकारी हासिल करना भी आवश्यक है.....
आगे की विवरण भी बताया ही जाये अब तो जल्दी से।
ReplyDeleteजी, निश्चय ही । सब तैयार है, बस शब्दों में उतारना है ।
Deleteहम तो इत्ते से ही खुश हैं कि आपको भी विरोध के स्वर का सामना करना पड़ता है .......!
ReplyDeleteऔर ई कौन सा लोकतांत्रिक बात है कि हर नया गैजेट पहले आप ही इस्तेमाल करो .....
दो चार साल बाद इस पर भी विरोध के स्वर उठें ....इस शुभकामना के साथ !
चलिये, देश में भी ऐसी ही लोकतान्त्रिक प्रणाली वाले प्रधान जी आ जायें..
ReplyDeleteतकनीक का लोकतांत्रिकरण जबरदस्त है :)
ReplyDelete...यदाकदा हमारे यहाँ भी विरोध के स्वर उठते हैं पर शुक्र है कि हम इतने लोकतांत्रिकन हुए :-)
ReplyDeleteलोकतान्त्रिक न
Deleteआप की इस पोस्ट से चुनाव/चयन में सुभीता होगा -आभार!
ReplyDeleteलोकतान्त्रिक प्रणाली में सब खुश नहीं हो सकते ..... तकनीकी का पूरा निचोड़ करना आता ही नहीं इसलिए इस पर क्या सोचें ?
ReplyDeleteअपनी क्षमता से अधिक उपकरण की क्षमता समझनी होगी, धीरे धीरे तब पूरा निचोड़ना आ जायेगा ।
Deleteतकनीक ने तो ज़िन्दगी का हर क्षण बदल रखा है।
ReplyDeleteइन तकनीकों ने हमें भी तकनीकी बना दिया है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteमैं बच्चों के लैपटॉप के तबादले का इंतज़ार करती हूँ
ReplyDeleteहा हा उलझा दीजिए
ReplyDeleteTech Prévue · तकनीक दृष्टा
सुलझने के पहले कभी कभी चीजें उलझती सी लगती हैं।
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteआपके घर में बड़े शरीफ़ लोग बसते हैं कि आपका पुराना माल ले लेते हैं ...
ReplyDeleteपारिवारिक होते हुए भी यह एक व्यावहारिक और जनोपयोगी पोस्ट है |आभार इस उम्दा विश्लेषण के लिए |
ReplyDeleteआप कितने सुखी हैं कि आपके घर में सब टैक-सेवी हैं। विरोध यूँ होता है कि किसके लिये क्या हो। अपने यहाँ तो कोई गैजेट खरीदने पर ही भारी विरोध का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteलैपटॉप और डैस्कटॉप दोनों के इकट्ठे अनुभव में मैंने पाया कि बाद-बाद में लैपटॉप पर ही सिमट गया क्योंकि दोनों में फ्रैगमेंटेशन टाइप होता था। घर पर कुछ काम डैस्कटॉप पर किया और ऑफिस ले जाना हो तो फाइलें आदि लैपटॉप में डालना झंझट लगता था। कई चीजें तो ऐसी थी जो इधर-उधर होने लायक नहीं थी जैसे माना डैस्कटॉप में विजुअल स्टूडियो में कोई टूल पर कार्य चल रहा है तो वह लैपटॉप में नहीं डाला जा सकता था। इस कारण डैस्कटॉप तो कुछ दिनों बाद छूट ही गया। तो इस अनुभव से मैंने जाना कि क्लाउड कम्प्यूटिंग के चलते बुकमार्क्स, कॉंटैक्ट्स आदि सिंक होने के बावजूद एक ही डिवाइस से सब काम हो तो अच्छा।
अब स्मार्टफोन को तो खैर मैं टैबलेट और लैपटॉप से अलग रखने के पक्ष में हूँ। पर टैबलेट और लैपटॉप दोनों एक में मिल जायें तो बढ़िया। इस तरह के हाइब्रिड डिवाइसों पर काफी काम चल रहा है। आसुस ने तो पैडफोन नामक एक डिवाइस भी निकाला जो थ्री-इन-वन है। टैबलेट के लिये कीबोर्ड डॉक वाले कई डिवाइस आ रहे हैं जो कि उसे नोटबुक का रूप दे देते हैं। हालाँकि सब में कमी ये थी कि टैबलेट का मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम (आइओऍस या ऍण्ड्रॉइड) नोटबुक मोड में कम्प्यूटर वाले सभी कार्य नहीं कर सकता था जिस कारण लैपटॉप की अलग से जरूरत बनी रहती थी। लेकिन अब विण्डोज़ ८ वाले टैबलेट में यह समस्या शायद सुलझ जायेगी। माइक्रोसॉफ्ट का आने वाला सरफेस प्रो टैबलेट फुल-फ्लैज कम्प्यूटर है। यानि सॉफ्टवेयर वाली समस्या तो सुलझ गयी बस अब एक ऐसे डिजाइन पर पहुँचना बाकी हो जो सुविधाजनक हो और सर्वमान्य बने। मैं इन्तजार कर रहा हूँ ऐसे ही टैबलेट का जिस पर घर से बाहर या घर में भी बिस्तर में बैठे (या बेहतर है लेटे) आराम से नेट सर्फ, वीडियो देखना हो और जब लेखन करना हो तो कीबोर्ड डॉक जोड़ लिया। अगर ज्यादा सीरियस काम जैसे प्रोग्रामिंग, ग्राफिक्स आदि हुआ तो कीबोर्ड,माउस लगाकर टेबल पर बैठ गये। स्क्रीन छोटी लगी तो मॉनीटर या ऍलसीडी टीवी से जोड़ लिया।
अभी मेरे पास १० इंच की नेटबुक है। कभी स्कूल में ले जाता हूँ तो वहाँ कम्प्यूटर लैब में किसी मॉनीटर पर उसे जोड़ लेता हूँ, साथ ही लैब का कोई कीबोर्ड और माउस उससे अटैच कर लेता हूँ। साथी कई बार पूछते हैं कि जब यहाँ कम्प्यूटर है तो अपना क्यों जोड़ कर चला रहे हो। उन्हें क्या पता कि मेरा सारा ताम-झाम उसमें ही है।
मैं माइक्रोसॉफ्ट सरफेस जैसे विण्डोज़ ८ टैबलेट के इन्तजार में हूँ। नेटबुक की तरह स्कूल में उपलब्ध मॉनीटर, कीबोर्ड, माउस उसमें लग जायेंगे और पोर्टेबल नेटबुक से ज्यादा होगा।
हाँ यह अनुभव ही बतायेगा कि यह मेरे लिये लैपटॉप को पूरी तरह रिप्लेस कर देगा या अलग से रखना ही होगा। पर एक बात पक्की है कि एक औसत प्रयोक्ता जिसे प्रोग्रामिंग, ग्राफिक्स, डिजाइनिंग या कोई अन्य विशिष्ट काम नहीं करना उसके लिये ये विण्डोज़ टैबलेट पर्याप्त होंगे।
आपके प्रश्न ने बहुत दिनों से संचित बाँध खोल दिया है, निष्कर्ष भी सिमटकर एक ही दिशा में जाते प्रतीत होते हैं। इस विषय में दो पोस्टें और लिख रहा हूँ, पहली तकनीकी पक्ष पर, दूसरी कार्यशैली पर। एक एक विषय को स्पष्ट रूप से सोचने और लिखने से कई लोगों के संशय दूर हो सकेंगे। हिन्दी में आप जैसे योद्धाओं ने यह बीड़ा उठा रखा है, हमारी ओर से भी आपके यज्ञ में छोटी सी आहुति है यह।
Deleteमैं भी अबतक नेटबुक से ही काम चला रहा हूँ... HP DM1 AMD450, 6GB RAM... रूम पर बड़ी एलईडी स्क्रीन का मॉनिटर और कीबोर्ड माउस जोड़कर डेस्कटॉप की तरह यूज करता हूँ और बहार जाना हो तो निकल कर लैपटॉप की तरह..कई बार जमके विचार किया हाई कान्फिगरेशन का लैपटॉप/मैकबुक लेने का.. पर लगा कि ऐसा कोई खास काम तो नहीं है जो इसपर नहीं हो पा रहा तो फालतू का पैसा क्यों वेस्ट किया जाए... टैबलेट और फोन पर विचार करते-करते अंत में गैलेक्सी नोट ख़रीदा और उससे संतुष्ट हूँ,... मैं भी माइक्रोसोफ्ट सरफेस का इंतज़ार कर रहा था यह सोचते हुए कि यह टैबलेट और नोटबुक का कॉम्बिनेशन हो जायेगा लेकिन पता चला कि उसमें Windows 8 RT है जो Windows 8 का मोबाइल वर्जन है.. उसमें विंडोज के कुछ ही सॉफ्टवेयर चल पाएंगे जैसे ऑफिस वगैरह.. :(
Deleteबढि़या प्रस्तुति..
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक.
ReplyDeleteअंधे को लाठी थमाता आलेख..
ReplyDelete'वसीयत कैसे लिखें'...जानकारी अभी अधूरी रह गयी..!
ReplyDeleteइंतज़ार है शेष सुझाव का..!
धन्यवाद आपका !
वसीयत लिखने के लिये मार्गदर्शन की आवश्यकता हमें है, एक उपकरण के निपटारे में हमारे पसीने छूट जाते हैं ।
Deleteमैं भी आपकी तरह गैजेट सैवी हूँ इसलिए यह श्रृंखला बहुत रोचक लग रही है..
ReplyDeleteआजकल के गैजेट्स के फंक्शन एक दूसरे से इतना ओवरलैप करने लगे हैं कि चुनाव बहुत मुश्किल हो जाता है..
सीमित संसाधन होते हैं और सबको बाटे भी नहीं जा सकते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।बांटे /बांटना
ReplyDeleteअसल बात यह है की सब कुछ उठाऊ चल पड़ा है .स्माल इज पावरफुल /ब्यूटीफुल .लेकिन हर चीज़ उठाऊ नहीं हो सकती .कुछ घर में टिकाऊ चीज़ें भी
चाहियें
उन्हें अधिकाधिक द्रुत गामी बनाना चाहिए .उनके(आपकी उनके ,"वो ",के पास एक जियोपोजिशनिंग सेटेलाईट सिस्टम (जीपीएस )भी होना चाहिए ,पति
के अन्दर एक रीसीवर
चिप फिट होना चाहिए ताकि उसे ट्रेक किया जा सके नजरों में रखा जा सके .कहीं उतर न जाए .फिसलनी चीज़ है .
शीशा-ए -दिल में छिपी तस्वीरे यार ,
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली .
अधिकतम क्षमता के उपकरण संबंधों की माधुरी शक्ति को बनाए रखने के लिए घरवालीजी के पास ही होने चाहिए .
आखिर घरु होना और घरु बने रहना आज एक दुर्लभ प्राप्य है कामकाजी अफला -तूनों के इस दौर में .
एक प्रतिक्रिया :
न दैन्यं न पलायनम्
20.10.12
लैपटॉप या टैबलेट - अनुभव पक्ष
http://praveenpandeypp.blogspot.com/2012/10/blog-post_20.html
सीमित संसाधन होते हैं और सबको बाटे भी नहीं जा सकते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।बांटे /बांटना
ReplyDeleteअसल बात यह है की सब कुछ उठाऊ चल पड़ा है .स्माल इज पावरफुल /ब्यूटीफुल .लेकिन हर चीज़ उठाऊ नहीं हो सकती .कुछ घर में टिकाऊ चीज़ें भी
चाहियें
उन्हें अधिकाधिक द्रुत गामी बनाना चाहिए .उनके(आपकी उनके ,"वो ",के पास एक जियोपोजिशनिंग सेटेलाईट सिस्टम (जीपीएस )भी होना चाहिए ,पति
के अन्दर एक रीसीवर
चिप फिट होना चाहिए ताकि उसे ट्रेक किया जा सके नजरों में रखा जा सके .कहीं उतर न जाए .फिसलनी चीज़ है .
शीशा-ए -दिल में छिपी तस्वीरे यार ,
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली .
अधिकतम क्षमता के उपकरण संबंधों की माधुरी शक्ति को बनाए रखने के लिए घरवालीजी के पास ही होने चाहिए .
आखिर घरु होना और घरु बने रहना आज एक दुर्लभ प्राप्य है कामकाजी अफला -तूनों के इस दौर में .
एक प्रतिक्रिया :
न दैन्यं न पलायनम्
20.10.12
लैपटॉप या टैबलेट - अनुभव पक्ष
http://praveenpandeypp.blogspot.com/2012/10/blog-post_20.html
Virendra Sharma @Veerubhai1947
न दैन्यं न पलायनम्: लैपटॉप या टैबलेट - अनुभव पक्षhttp://praveenpandeypp.blogspot.com अभी तो हम भी अपने घर में विकासशील देश के नागरिक ही बने हुए हैं.....
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Virendra Sharma
सीमित संसाधन होते हैं और सबको बाटे भी नहीं जा सकते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।बांटे /बांटना
असल बात यह है की सब कुछ उठाऊ चल पड़ा है .स्माल इज पावरफुल /ब्यूटीफुल .लेकिन हर चीज़ उठाऊ नहीं हो सकती .कुछ घर में टिकाऊ चीज़ें भी
चाहियें
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न दैन्यं न पलायनम्: लैपटॉप या टैबलेट - अनुभव पक्ष
praveenpandeypp.blogspot.com
अभी तो हम भी अपने घर में विकासशील देश के नागरिक ही बने हुए हैं..... चैतन्य अब अपनी माँगें रखने में माहिर हो रहा है.....धन व्यय करना तभी करना चाहिये जब हम में उन उपकरणों की पूरी क्षमता निचोड़ने की इच्छाशक्ति हो।पूर्ण सहमति ...... इसके लिए उचित
कल 21/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अपना तो डेस्कटाप जिंदाबाद,,,,उसी से सबका काम हो जाता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
लाभान्वित करता हुआ सधा आलेख. लोकतान्त्रिक मूल्यों को घर में बचाए रखना ,सचमुच अद्भुत कार्य है.
ReplyDeleteब्लैकबैरी टेबलेट ले लिया है, अब मैकबुक प्रो १३" लेने की इच्छा है, जो शायद अगले महीने तक आ जायेगा :), बतायें मैकबुक प्रो लें या मैकबुक एयर लें।
ReplyDeleteमेरे साथ उल्टा होता है ...बच्चे डिसाईड कर लेते हैं मम्मी को क्या ले लेना चाहिये ...(ताकि न समझ आये तो वो उनका हो जाता है ....:-))जो उनके हाथोंहोता हुआ... उनके पास से मम्मी के पास.....
ReplyDeleteनयी नयी तकनीकें और रोज नए उपकरण. निर्णय करना अत्यंत दुरूह कार्य हो जाता है. लेकिन बच्चे तो कतई पुराने लैपटॉप मोबाइल लेने को तैयार नहीं होते.
ReplyDeleteज्यादा हाई-फाई उपकरण कभी कभी सिरदर्द भी बन जाते हैं, खासकर कुछ बड़ी कंपनी के . खराबी आने पे उनके नखरे भी हाई-फाई होते हैं.
ReplyDeleteरफ-टफ ज्यादा बेहतर विकल्प है
तकनीक के कारण जीवन स्तर में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं ...
ReplyDeleteये नए उपकरण और तकनीक के चक्कर में काफी समय इन्हीं की सोच में निकल जाता है..
ReplyDeleteकभी कभी लगता है कि आसानी से ज्यादा परेशानी खरीद ली है..
तीन महीने पहले ही मैने dell inspiron सीरिज का एन5050 लैपटाप लिया है बढिया काम कर रहा है । तकनीकि परिवर्तन आज बहुत तीर्व गति से हो रहे है एक उपकरण से सामंजस्य बिठाया नहीं कि दूसरा उपकरण तैयार हो जाता है । उपयोगी पोस्ट
ReplyDeleteकाफी दिलचस्प मालूमात दी है आपने.आभार.
ReplyDeleteइंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड पर आपका स्वागत है.आप भी वहां अपना ब्लॉग अपडेट्स सबमिट करवाएं.
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
अब तक जो समस्याएं अधिक हैं, वे क्रॉस प्लेटफार्म के कारण हैं, अब देखते हैं सिमिलर प्लेटफार्म क्या गुल खिलाते हैं...
ReplyDeleteमाइक्रोसॉफ्ट का सरफेस और एक एक विंडोज मोबाइल अपने आप में पूर्णता लिए हो सकते हैं। स्टोरेज के लिए आपको घर में एक एक्सटरनल हार्डडिस्कर रखनी होगी, जो एक टैराबाइट तक की हो सकती है। मैं खुद के लिए यह कांबिनेशन परफेक्ट देख रहा हूं। बस तकनीक के कुछ सस्ता होने का इंतजार कर रहा हूं।
अपने को ज्यादा काम नहीं है इसलिए अब तक मस्ती से डेस्क टाप पर काम चल रहा है। हां अब बाहर ज्यादा जाना होने लगा है इसलिए सोच रहा हूं कि मोबाईल पर खर्च करुं या लेपटाप पर।
ReplyDeleteवितरण करने के आपके अनुभव अवश्य ही उपयोगी रहेंगे क्योंकि ऐसी समस्याओं से हम नही दो चार हो रहे हैं......घर के सदस्यों को संतुस्ट करने और प्रजातांत्रिक वितरण करने की नवीन संभावनाएं छिपी हैं आपके उत्कृष्ट आलेख में...
ReplyDeleteआप सबसे एक जानकारी चाहिये कि क्या कोई ऐसा APPS है जिससे हम पैदल चली हुयी दूरी को मीटर मेँ अपने फोन की स्क्रीन पर देख सकेँ,और बाद मेँ टेप से नापने पर भी दूरी उतनी ही आये, ये हम पटवारियोँ के लिये जमीन नापने मेँ बहुत मददगार होगा
ReplyDeleteइस बात का तो app है कि आपने कितने क़दम लिये । यद्यपि मैं उपयोग में नहीं लाता हूँ पर NIKE का एक app है जो आपकी द्वारा दौड़ी गयी दूरी जीपीएस के माध्यम से बता देता है ।
Deleteयह सुविधा तो नोकिया के E71 में भी उपलब्ध है ।
Delete.......
ReplyDelete.......
pranam.
सहमत..यांत्रिक जीवन..२०% की रिक्तता ...
ReplyDeleteतीन के सिवा अन्य श्रेणी भी कोई है?
हम तो आई पैड, लैपटॉप और किन्डल फायर ....सब टांगे घूम रहे हैं और गाना सुनने को फिर भी आई फोन :(
ReplyDeleteGadget Overload!!
ReplyDeleteहम अभी विकासशील में हैं
ReplyDeleteवक्त की रफ्तार बे -शक तेज़ है ,
ReplyDeleteकारनामे आपके कुछ कम नहीं ,
बहुत हैरत -अंगेज़ हैं .
द्रुत टिप्पणियों के लिए आपका आभार .आपका टिपण्णी तंत्र वक्त की सवारी करता है .
ram ram bhai
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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है
http://veerubhai1947.blogspot.com/
तकनीक के क्षेत्र की विस्तृत जानकारी संग्रहीत करने में आपका कोई सानी नहीं।
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