परिस्थितियों में बँधा मैं, राह मेरी बनी कारा,
श्रव्य केवल प्रतिध्वनियाँ, यदि किसी को भी पुकारा,
देखना है, और कब तक, स्वयं तक फिर पहुँचता हूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।१।।
और देखो, जीवनी-क्रम, स्वतः घटता जा रहा है,
उदित सूरज जो अभी था, अस्त होता जा रहा है,
रात-दिन के बीच सारा, बचा जो जीवन लुटा दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।२।।
कभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
जो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
काल सागर के थपेड़े, स्वयं को निष्क्रिय, भुला दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।३।।
और यूँ बहती नदी में, स्वयं को यदि छोड़ दूँगा,
क्या रहे पहचान मेरी, और क्या परिचय कहूँगा,
धिक है यौवन, काल संग ना, हाथ दो दो आज कर लूँ।
मैं समय की भँवर में हूँ ।।४।।
कभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
ReplyDeleteजो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
काल सागर के थपेड़े, स्वयं को निष्क्रिय, भुला दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।३।।
दृढ़ सुंदर भाव ...!!
सक्रियता का संदेश देती हुई ...संदेशात्मक सुंदर कविता ....!!
प्रमाद त्याग पुरूषार्थ कामना!!
ReplyDelete..काव्यमय आत्म-चिंतन !
ReplyDeleteबढ़िया है !
Time warp and poet's predicaments!
ReplyDeleteजग सारा समय की भंवर में ही तो है | चिंतन कम , मंथन अधिक और सोच के भंवर में डुबोती रचना |
ReplyDeleteजीवन खुद में महा भंवर हैं , इसमें आनंद लेते हुए एक दिन डूब जाना है !शुभकामनायें आपको !
ReplyDeletebeautiful..
ReplyDeletetempest of time give you so much and it takes too !!
आत्ममंथन से उपजी सोच को शब्दों में ढाला ...उत्कृष्ट पंक्तियाँ
ReplyDeleteकाल संग ना, हाथ दो दो आज कर लूँ।
ReplyDeleteचुनौतियों का सामना करने की शक्ति जुटते हैं ये शब्द !
हम सभी समय के भंवर में हैं. घूमते जा रहे हैं उसी चक्र में.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर गद्य से इतर पद्य पढ़ना अच्छा लगा... बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना अभिव्यक्ति ... आभार
ReplyDeleteइस भँवर-जाल में हम सभी नचाये जा रहे हैं !
ReplyDeleteऔर देखो, जीवनी-क्रम, स्वतः घटता जा रहा है,
ReplyDeleteउदित सूरज जो अभी था, अस्त होता जा रहा है,
vah bahut badhiya abhivyakti ...
सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteभंवर का प्रतिबिम्ब और चित्र बहुत प्रभावकारी है.
कभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
ReplyDeleteजो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
काल सागर के थपेड़े, स्वयं को निष्क्रिय, भुला दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।
भावमय करते शब्द ... उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
कभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
ReplyDeleteजो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
काल सागर के थपेड़े, स्वयं को निष्क्रिय, भुला दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।३।।
आत्मचिंतन करती हुयी सुंदर रचना ....
मैं समय की भँवर में हूँ…………हम सभी इसी भंवर् मे फ़ँसे खुद को ढूँढ रहे हैं।
ReplyDeleteसच है हम सभी इस संसार रुपी भँवर में फसे हुए हैं..आत्मचिंतन करती भावमयी सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसभी फंसे हैं इस भंवर में, निकलने को बैचैन. चिंतन बहुत खूबसूरती से किया आपने.
ReplyDeleteसमय की भँवर से परे कौन है?
ReplyDeleteकेवल परम सत्ता- ब्रह्म- ही त्रिकाल अबाधित है।
हम दुनिया के लोग तो समय के बाहर जा भी नहीं सकते।
इसके लिए तो मोक्ष प्राप्त करना होगा,
तब हमारी आत्मा मुक्त होकर उस परमात्मा में मिल जाएगी
जबतक यह जीवन है तबतक इस समय से निवृत्ति नही है।
क्या रहे पहचान मेरी, और क्या परिचय कहूँगा,
ReplyDeleteधिक है यौवन, काल संग ना, हाथ दो दो आज कर लूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
पास होकर भी खुद से दूर...तो यात्रा जारी है खुद तक पहुँचने की
ReplyDeleteमैं समय की भँवर में हूँ..
ReplyDeleteआत्मचिंतन करती भावमयी रचना अभिव्यक्ति
आभार
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसच में ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती हैं।
शब्द जिभ्या पर लिए मैं
श्रद्धान्वत् हूँ पूर्ण आस्था से
यह मान आप जहां भी होंगे
तृप्त हो इस पितृपक्ष में अपना
आशीष हम पर सदा रखेंगे
हमेशा की तरह गहन, सुन्दर, सशक्त रचना !!!
ReplyDeleteसमय की भँवर में.....anootha andaz.....
ReplyDeleteवाह! इसे आगे बढ़ाइये, अभी तो खण्ड काव्य के शुरूआती मनोहारी छंद हैं। अभी तो संदर्भ ही कहा गया है।
ReplyDeleteइस समय के भंवर से हर किसी का उद्धार हो .....
ReplyDeleteसमय के भंवर से कौन बचा है.. दो पाटन के बीच वाली स्थिति है!!
ReplyDeleteजीवन के भवंर में फसे तो सभी है लेकिन निकलने के लिए काल के कपाल पर पद चिन्ह छोड़ना ही पड़ेगा
ReplyDeleteसमय के भंवर में तो सभी फंसे हैं .
ReplyDeleteनिकल कर दिखाएँ तो कोई बात है .
ReplyDeleteऔर यूँ बहती नदी में, स्वयं को यदि छोड़ दूँगा,
क्या रहे पहचान मेरी, और क्या परिचय कहूँगा,
धिक है यौवन, काल संग ना, हाथ दो दो आज कर लूँ।
मैं समय की भँवर में हूँ ।।४।।
सकारात्मक जीवन ऊर्जा ,जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने वाला नव गीत .
कितनी दूरी मंजिल की हो,चलते चलते कट जाती है ,
विदा दिवस मणि की वेला में ,धरती तम वसना बन जाती ,
कितनी रात अँधेरी हो ,पर धीरे धीरे घट जाती है .
बधाई इस गेय सांगीतिक और फलसफाई रचना के लिए .
बुधवार, 3 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
विदुषियो ! यह भारत देश न तो नेहरु के साथ शुरु होता है और न खत्म .जो देश के इतिहास को नहीं जानते वह हलकी चापलूसी करते हैं .
रही बात सोनिया जी की ये वही सोनियाजी हैं जो बांग्ला देश युद्ध के दौरान राजीव
जी को लेकर इटली भाग गईं थीं एयरफोर्स की नौकरी छुड़वा कर .
राजनीति में आ गए, पद मद में जब चूर |
निश्चय कटु-आलोचना, पद प्रहार भरपूर |
पद प्रहार भरपूर, बहू भी सास बनेगी |
देवर का कुल दूर, अकेली आस बनेगी |
पूजे कोई रोज, मगर शिक्षा न देवे |सत्ता में सामर्थ्य, देश की नैया खेवे ||...................माननीय रविकर फैजाबादी साहब .
भारतीय राजकोष से ये बेहिसाब पैसा खर्च करतीं हैं अपनी बीमार माँ को देखने और उनका इलाज़ करवाने पर .
और वह मंद बुद्धि बालक जब जोश में आता है दोनों बाजुएँ ऊपर चढ़ा लेता है गली मोहल्ले के गुंडों की तरह .
समय के भँवर से गुजरकर ही तो मनुज स्वयं को अनुभव कर पाता है।गहनचिंतनमय लेख।
ReplyDeleteBehad sundar rachana!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता |
ReplyDeleteसमय कठिन है, धैर्य की परीक्षा हो रही।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .
आपकी कविता को पढ़ना भी अलग और बेहतरीन अनुभव है सर!
ReplyDeleteसादर
कभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
ReplyDeleteजो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
बेहद सुन्दर आत्ममंथन और सार्थकता के अभिलाषी मन की भाव पूर्ण पुकार.....
ये समय का भंवर ही तो है जहाँ हम सब फंसे हुए हैं !!!! बढ़िया कविता है सर !!!
ReplyDeleteअति सुन्दर..प्रभावित करती कविता .
ReplyDeleteह्रदय को स्पृश करती कविता
ReplyDeleteकभी मन में हूक उठती, ध्येय का दीपक कहाँ है,
ReplyDeleteजो विचारों से बनाया, मार्ग अभिलाषित कहाँ है,
काल सागर के थपेड़े, स्वयं को निष्क्रिय, भुला दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।३।।
जिंदगी आगे बढती जाती है सोच पीछे का अवलोकन करती है क्या पाया क्या खोया, क्या करना विशेष है उसमे ,बचा जो वक़्त शेष है|मन मंथन कर गहन सोच को दर्शाती प्रस्तुति लाजबाब
इस उदय और अस्त होने के बीच में जो है वही सिध्ह है -सशक्त रचना
ReplyDeleteWe all are in the whirlpool. Profound work.
ReplyDeleteवाह !!!! याद आया "यक्ष प्रश्न"....
ReplyDeleteजो कल थे, वे आज नहीं हैं !
जो आज हैं, वे कल नहीं होंगे !
होने, न होने का क्रम, इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे, यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा !
गीता का प्रभाव झलकता है अर्जुन की तरह भंवर में फंस गए।
ReplyDeleteध्येय कहाँ..अभिलाषित मार्ग कहाँ ..बस यही मालूम हो जाए तो इस भंवर
ReplyDeleteसे निकलने का रास्ता मिल जाएगा.
अच्छी लगी कविता.
और देखो, जीवनी-क्रम, स्वतः घटता जा रहा है,
ReplyDeleteउदित सूरज जो अभी था, अस्त होता जा रहा है,
रात-दिन के बीच सारा, बचा जो जीवन लुटा दूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।२।। रचना के हरेक बंद में एक जीवन दर्शन नथ्थी है .
रचना के अंत तक आते आते समय से पस्त होता आदमी समय की सवारी करने लगता है .
गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में ,वह तिफ्ल क्या गिरे जो ,घुटनों के बल चले. .शह सवार होता है शाही सवारी करने वाला बोले तो शाही घुड़सवार .
जीवन भी एक ऐसी ही घुड़सवारी है गिरो उठो , फिर गिरो .....
जीवन के शाश्वत रंग की तलाश.
ReplyDeleteसीधी और सरल भाषा.भटकने का एहसास सही राह तक पहुँचने का पहला कदम है.
ReplyDelete3.10.12
मैं समय की भँवर में हूँ
परिस्थितियों में बँधा मैं, राह मेरी बनी कारा,
श्रव्य केवल प्रतिध्वनियाँ, यदि किसी को भी पुकारा,
देखना है, और कब तक, स्वयं तक फिर पहुँचता हूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।१।।
परिस्थिति का अतिक्रमण करने समय की चुनौती को स्वीकारते हुए आगे बढ़ने सिंह -अवलोकन करते जाने का आवाहन इन पंक्तियों में हूँ .
मैं समय की भंवर में हूँ ......आवाहन यह भी है यह जीवन तेज़ी से बीतता जा रहा है जो करना है अभी कर लो .
पहचानो अपने लक्ष्य को और आगे बढ़ो पथिक रुको नहीं .काल के साथ तो सभी बह जाते हैं मैं समय की सवारी करूंगा .
क्या हुआ यदि मैं भंवर में हूँ ....
ReplyDelete3.10.12
मैं समय की भँवर में हूँ
परिस्थितियों में बँधा मैं, राह मेरी बनी कारा,
श्रव्य केवल प्रतिध्वनियाँ, यदि किसी को भी पुकारा,
देखना है, और कब तक, स्वयं तक फिर पहुँचता हूँ?
मैं समय की भँवर में हूँ ।।१।।
परिस्थिति का अतिक्रमण करने समय की चुनौती को स्वीकारते हुए आगे बढ़ने सिंह -अवलोकन करते जाने का आवाहन इन पंक्तियों में हूँ .
मैं समय की भंवर में हूँ ......आवाहन यह भी है यह जीवन तेज़ी से बीतता जा रहा है जो करना है अभी कर लो .
पहचानो अपने लक्ष्य को और आगे बढ़ो पथिक रुको नहीं .काल के साथ तो सभी बह जाते हैं मैं समय की सवारी करूंगा .
क्या हुआ यदि मैं भंवर में हूँ ....
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा
मैं समय की भँवर में हूँ ....
ReplyDeleteऔर मुझमें ही सब समाया हुआ है.....!!
कविता एक और इसे अपनी भावनाओं से जोडनेवाले अनेक। यही इसकी सफलता है।
ReplyDeleteऔर यूँ बहती नदी में, स्वयं को यदि छोड़ दूँगा,
ReplyDeleteक्या रहे पहचान मेरी, और क्या परिचय कहूँगा,
धिक है यौवन, काल संग ना, हाथ दो दो आज कर लूँ।
मैं समय की भँवर में हूँ।
यह आवाहन है, पहचानो अपने लक्ष्य को और आगे बढ़ो
हाथ दो दो आज कर लूँ , सही निर्णय ।
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