उपकरण का शाब्दिक अर्थ है, जिसके माध्यम से आपको कार्यों में सहायता मिले। जितनी अधिक सहायता करे, उतना अधिक उपयोगी है उपकरण। आपके डिजिटल जीवन ने आपके लिये एक नया विश्व निर्मित कर दिया है, उस जीवन से जुड़ने के लिये आपको डिजिटल उपकरणों की आवश्यकता होती है। यह एक अलग विषय है कि जीवन का कितना भाग डिजिटल जीवन हो, कई लोग इसे अपनी वर्तमान जीवनशैली और निजता पर एक अनावश्यक हस्तक्षेप मानते हैं, कई लोग इससे एक पल के लिये भी अलग नहीं होना चाहते हैं। यह हो सकता है कि घर आकर मोबाइल बन्द कर देना आपके पारिवारिक जीवन के लिये एक ऊर्जा देने वाला कार्य हो और यह भी संभव है आपके घर से बाहर होने पर वही मोबाइल आपके परिवार के सम्पर्क में सहायक हो, आप निश्चिन्तता से कार्य कर सकें।
जितना भी हो, जिस रूप में भी हो, डिजिटल जीवन का एक निश्चित स्वरूप होता है हर एक के लिये। जब यह प्रारम्भ होता है तब एक दौड़ सी होती है, अधिकाधिक अपना लेने की। धीरे धीरे यह परिवर्धित होता है, परिमार्जित होता, गुणवत्ता पाता है, सीमायें निर्धारित करता है और अन्ततः जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है। डिजिटल जीवन के जो आधारभूत निर्णय लेने थे, वह ले चुका हूँ, उसे जिस स्वरूप में पहुँचाना था, वहाँ पहुँचा चुका हूँ। अब कोई क्रान्तिकारी आविष्कार जिसकी कल्पना नहीं की है, बस वही कोई परिवर्तन लेकर आयेगा, मेरे डिजिटल जीवन में। इस लेख का आधार मुख्यतः व्यक्तिगत अनुभव है और साथ में वे चर्चायें हैं जो इस विषय में मित्रों और जानकारों के साथ हुयी हैं।
पहले तो यह निश्चित करिये कि जीवन के कौन से पक्ष डिजिटल जीवन को सौंपने हैं, किस मात्रा में और किस गति से। तब यह निश्चित कीजिये कि कम से कम किन उपकरणों से वह संभव है। यदि आपका गाना सुनने की इच्छा है तो देखिये घर में कितने विकल्प उपस्थित हैं। जितने अधिक विकल्प आपने सजा कर रख लिये हैं, डिजिटल जीवन के बारे में आपकी समझ उतनी ही कम है या व्यर्थ करने के लिये उतना ही पैसा अधिक है। हो सकता है कि कई उपकरणों में गाने सुनने की सुविधा हों। यदि ऐसा है तो वह आपकी प्राथमिक आवश्यकता नहीं। इस तरह प्राथमिक उपयोग के उपकरणों के निर्धारण के बाद जो सुविधायें आपको मिलती जायें, उन्हें भी अपनी सूची से हटाते जायें। यह प्रक्रिया कई बार करने से आपके पास कम से कम उपकरण होंगे, सब के सब अधिक महत्वपूर्ण और आपके डिजिटल जीवन को अधिक गुणवत्ता देने में सक्षम।
हिचकिचाहट इस बात की भी हो सकती है कि कौन सा पक्ष डिजिटल जीवन को सौपें, कौन सा नहीं? लगता है कि सहसा सब सौंप दें तो कहीं अव्यवस्था न हो जाये, वहीं दूसरी ओर सावधानी से चलने में मितव्ययता करने में पूरी सुविधायें न मिल पायें और अन्ततः उसी कार्य के लिये एक और उपकरण लेना पड़े। यही वह दुविधा है जहाँ डिजिटल जीवन की समझ बहुत काम आती है, यही वह बिन्दु है जिसे समझने के लिये हमें डिजिटल क्षेत्र में हो रहे बदलाव जानना आवश्यक है। अपनी आवश्यकता और उपकरण की क्षमता का साम्य बिठाना डिजिटल जीवन का आधारभूत नियम है।
कुछ दिन पहले एप्पल के शोरूम में एक जानकार युवा से बात कर रहा था। मेरा प्रश्न बड़ा ही साधारण था। मैं एक ऐसा उपकरण ढूढ़ रहा था, जिसमें लगभग १-२ टेराबाइट की हार्डडिस्क हो, वाईफाई हो, लैन व ब्रॉडबैण्ड से अबाधित सम्पर्क रख सके, टीवी सहित सारे उपकरणों में एक साथ फाइल व मीडिया स्ट्रीमिंग कर सके, लोकल वॉयस मेल रिकॉर्ड करे, टीवी के नियत कार्यक्रम रिकार्ड कर सके और मेरे सारे उपकरणों का बैकअप भी करे। अब बताइये, क्या अधिक मांग कर रहा था, सारी की सारी क्षमतायें तकनीक के पास हैं। हर उपकरण में कुछ न कुछ विशेषता है पर सब का सब बिखरा है और अव्यवस्थित है। हर घर को इस तरह के सर्वर की आवश्यकता है। अभी कोई एक गाना सुनना होता है तो एक अलग रखी हार्डडिस्क की खोज करने लगते हैं, पता लगता है कि पृथु उसमें कोई फिल्म देख रहे हैं। ऐसा सर्वर होने पर जो भी उपकरण आपके हाथ में होगा, उसके माध्यम से आप सारे कार्य कर सकते हैं। जब कभी बाहर जाना हो तो संबंधित फाइलें आदि अपने उपकरण में स्थानान्तरित कर सकते हैं।
इस विषय में मेरी समझ स्पष्ट है, एप्पल ने भी इस तरह का कोई सर्वर विकसित नहीं किया है, पर उस दिन की चर्चा के बाद संभवतः उन्हें उपभोक्ताओं की स्पष्ट समझ के बारे में पता चलेगा। मैं कोई निम्नतर सर्वर खरीद कर अपना धन बर्बाद नहीं करूँगा, प्रतीक्षा करूँगा कि इस तरह का कोई सर्वर बाजार में आये। घर के अन्दर के सारे उपकरण एक विश्व में जियें, आपस में बातचीत करें, एक ही स्रोत से इण्टरनेट लें और एक ही स्थान पर अपने संग्रह रखें। हर व्यक्ति के लिये कम से कम दो उपकरण और चार पाँच सामूहिक उपयोग के उपकरण, लगभग १०-१२ उपकरण अलग अलग दिशाओं में नहीं हाँके जा सकते, उन्हें एक विश्व के अन्दर लाकर व्यवस्थित करना डिजिटल जीवन की आवश्यकता है। ऐसा करने से न केवल उपकरणों की संख्या कम हो जायेगी, वरन उपकरण सरल और सस्ते भी हो जायेंगे।
अपना उदाहरण देने का मन्तव्य आपको भ्रमित करने का नहीं, वरन आपको आपकी आवश्यकतायें इस प्रारूप में सोचने के लिये विवश करने का था। तकनीक आपके वर्तमान कार्यों को किस प्रकार सरल करने में सक्षम है और उसे पाने के लिये कौन सा उपकरण आपके लिये सर्वोत्तम है, यह प्रश्न कठिन नहीं है। फोटो, वीडियो, संगीत, फिल्में, टीवी कार्यक्रम, ये सब मीडिया के अन्तर्गत आते हैं, ये बहुत मेमोरी लेते हैं और मुख्यतः घर पर ही उपयोग में लाये जाते हैं। इन सबको हर जगह ले जाने की आवश्यकता भी नहीं, इनमें से कुछ ही ऐसे होते हैं जो हमें अत्यन्त प्रिय होते हैं और जिन्हे हम खाली समय होने पर सुनना या देखना चाहते हैं। ऐसे मीडिया को हम अपने उपकरणों में रख सकते हैं और समय समय पर उसे बदल भी सकते हैं। उन्हें इण्टरनेट पर रखने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि समय आने पर यदि डाउनलोड करना पड़ा तो समय बहुत अधिक लगेगा।
मीडिया फाइलों के अतिरिक्त आपके पास जितना भी डिजिटल संग्रह है, वह सब मिलाकर ८-१० जीबी से अधिक नहीं होगा। सारे प्रपत्र, आलेख, टेबल्स, प्रस्तुतियाँ, लेख, कार्यसूची, संपर्क, तिथियाँ, कार्यवृत्त, सब का सब किसी भी उपकरण में आ जायेगा, साथ ही साथ इण्टरनेट पर भी रहेगा, किसी क्लाउड सेवा के माध्यम से। पर ये सब जितने भी उपकरणों में हो, परस्पर सामञ्जस्य बनाये रखें। ऐसा नहीं होने पर अधिक उपकरण आपका बोझ ही बढ़ायेंगे, कम करने की बात तो बहुत दूर की होगी। इन दो प्रकार के पक्षों में डिजिटल जीवन को विभक्त कर उनमें किस प्रकार के उपकरणों को लाना है और उनसे किस प्रकार पूरा कार्य लेना है, यह आपके डिजिटल जीवन की सफलता है।
उपकरण का पूरा उपयोग ही उसका मूल्य है, यदि वह नहीं हो पाया तो आपका डिजिटल जीवन या तो तरंग में जी नहीं पा रहा है या बहुत अधिक खर्च करके पछता रहा है। आपकी डिजिटल जीवनशैली क्या कहती है?
डिजिटल उपकरण और जीवन शैली पर एक सकारात्मक और तर्कसंगत आलेख |आभार
ReplyDeleteहमने तो अपने घर के कंप्यूटर सर्वर ही बना रखा है, लेपटॉप व मोबाइल वाई-फाई के जरिये एक इन्टरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल करते है साथ नेटवर्किंग के जरिये एक सर्वर रूपी कंप्यूटर में सहेजी फाइल्स घर के दुसरे सदस्य के लिए सहज उपलब्ध है|
ReplyDeleteपर इन सबके पीछे उपकरणों के साथ बेटे की हार्ड्वेयर नेटवर्किंग में दक्षता है|
एक ही सर्वर यदि सारे यन्त्रों को पूरी तरह से जोड़े रखे तो सब कुछ सरल हो जायेगा ।
Deleteकल 28/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जीवन का अभिन्न अंग बनाने की स्थिति में पहुच चुका है डिजिटल तकनीकी । महत्वपूर्ण ये है की पूर्ण सावधानी बाराती जाये जिस से यह जेब पर भारी न पड़े । बहुत ही मूल्यवान प्रस्तुति हेतु सादर आभार पाण्डेय जी ।
ReplyDeleteकहीं अधिक ख़र्च न हो जाये, उसके लिये भी समझ आवश्यक है ।
Deleteजिस एकीकृत तकनीक का जिक्र आपने किया वह उपलब्ध तो है ही लेकिन अभी तकनीकी, व्यावसायिक उपयोग तक सीमित है.. लैपटॉप/टैबलेट टाइप से आप उपभोक्ता के लिए सर्वसुलभ नहीं हुई है... पर जल्द ही कोई कंपनी ऐसा कोई उत्पाद मार्केट में लॉन्च करेगी...
ReplyDeleteआशा है कि शीघ्र आ जाये
Delete...संतुलित डिजिटलीकरण आज की ज़रूरत है ।
ReplyDeleteडिजिटल दुनिया के उलझाव में आपकी सलाह बहुत उपयोगी है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
इस तरह के उपकरणों की उपयोगिता याँ जरुरत महसूस होने लगी है. कुछ उपकरण निर्माता ऐसे उपकरण बनाने में भी जुटे हैं और कुछ बाज़ार में आ भी गए हैं लेकिन अभी सारी खूबियों को एक में समेटे उपकरण बाज़ार में उपलब्ध नहीं है शायद.
ReplyDeleteबहुत उलझनें हैं अभी सुलझाने को.
ReplyDeleteहम भी ऐसी ही आशा करते हैं। उदाहरण के लिये अभी लैपटॉप के लिये पोर्टेबल हार्डडिस्क, टीवी के लिये मीडिया बॉक्स, केबल के लिये सैटटॉप बॉक्स आदि कई अलग-अलग झंझट हैं, सब एक में आ जायें तो मजा आ जाय।
ReplyDeleteबस वही चाह हमारी भी है, हर उपकरण को सेट करते रहने का क्या लाभ
Deleteएक तकनीक तो बहुत पुरानी है (मस्तिष्क की ) कि " जो सोचो शिद्दत से वो हो जाता है " | यही तकनीक अब सारे गैजेट्स में भी आनी चाहिए कि बस सोचा और वो डाटा प्रोसेस हो कर मन वांछित परिणाम देने लगे |
ReplyDeleteहमारी चाह ही तकनीक की राह बन जाती है ।
Deleteअभी डिजिटल -समर्पित जीवन की शुरुआत भर है -कल्पना कीजिये जब मनुष्य का डिजिटल प्रतिरूप ही अपने त्रिविमीय रूप में सूदूरस्थ लोगों से मिल जुल लेगा ,बैठकें कर लेगा ,शाबाशी पर कंधे थपथपा देगा -सब कुछ लोगों के घर बैठे ही :-)
ReplyDeleteha ha ha ....... kya anand hoga ...... aap sabhi se ghar baithe aashirwad
Deletele liya karenge.......
pranam.
काश यह होता तो हम तो सागर किनारे ही बैठे रहते
Deleteडिजिटल समय जब तक है , वक़्त गुजर रहा है
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुतीकरण |
ReplyDeleteचर्चित विषय-
सादर ||
बढिया सोच के साथ शब्द रचना
ReplyDeleteअपना तो एक वाई-फाई ब्रॉडबैंड से लैपटॉप, मोबाइल, कम्प्यूटर सब चलता है। दफ्तर में जान बूझकर इससे जुड़ना पसंद नहीं करता। ब्लॉगिंग की अलग दुनियाँ है। दफ्तर की, घूमने की अलग। सबको एक में घालमेल नहीं करना चाहता। आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteएक वाई फाई, एक हार्डडिस्क, सारे यन्त्रों की स्ट्रीमिंग और सब यन्त्रों का बैकअप, बस इतना सा ख़्वाब है ।
Deleteडिजिटल जुड़ाव अभी तक जीवन में अत्यधिक नही हो पाया ।
ReplyDeletebahut vyasthit dhang se technology ko apne jeevan mein apnane aur samanvit karne kee kala
ReplyDeletesambhavtya ek teekshn drishti kee maang kartee hai, jo hammein se adhikansh log theek tarah se
vikasit kar hee nahin paaye hain
sateek vishay par saargarbhit lekh ke liye dhanywaad
जीवन डिजिटल हो रहा है तो तकनीकों को एकाकार होना होगा , पञ्च तत्व की तरह.
ReplyDeleteDigital Living Network Alliance की कोशिश यही है। जैसे हम अपनी SONY Google TV (http://www.google.com/tv/) पर अपने मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट मे स्टोर मीडिया को प्ले कर सकते हैं।
ReplyDeleteदेखिये http://www.dlna.org
निश्चय ही जाकर देखते हैं ।
Deleteआने वाले समय में कुछ भी असंभव नहीं...डिजिटलईजेशन समय की जरुरत है।अच्छा लेख।
ReplyDeleteडिज़िट्लाइज़ेशन समय की जरुरत है।
ReplyDeleteतार्किक आलेख .....डिजिटल जीवनशैली के समय में ये सारे बिंदु विचारणीय हैं .....
ReplyDeleteअब तो सारा जीवन ही डिज़िट्लाइज़ेशन हो गया है.विचारणीय स्थिति है
ReplyDeleteतर्क पूर्ण लेख ..... जानकारी के लिए आभार ....
ReplyDeleteअसली चुनौती तो सामंजस्य स्थापना की है, वह चाहे हमारी व्यक्तिगत जीवनशैली हो,हमारे पारिवारिक व पारस्परिक संबंध हों अथवा कि हमारा डिजिटल परिवेश। गंभीर चिंतनपूर्ण प्रभावकारी व सार्थक लेख।
ReplyDeleteसब एक शरीर हो जाये, सब उसी शरीर के अंग हो जाये
Deleteसब-कुछ डिजिटल -आखिर किस सीमा तक !
ReplyDeleteजब तक सब सहज और अंगीकार न हो जाये ।
Deleteआप का लेख अत्यन्त सारगर्भित एवं मार्गदर्शक होता है । सामान्यतया मैं आप के पोस्ट को प्रत्येक दिन पढता हूं । मन में अनेक विचार भी बनते हैं जिसमें से बहुतों का समाधान अन्यों की टिप्पणियों से हो जाता है । वैसे मैं ज्यादातर अन्यों के ब्लोग को पढता हूं, स्वयं कम ही लिखता हूं । लेकिन मन को आप के लेखों की हमेशा ही इंतजार रहती है । तकनीक को जीवन में कितना अंगीकार किया जाये इसका आप ने अच्छा संकेत दिया है । परन्तु आज से मात्र दस से पन्द्रह वर्ष पूर्व को याद करें तो आज का तकनीकी जीवन अकल्पित ही था । मुझे अपने विद्यार्थी जीवन में पढा हुआ फ़्युचर शाक नामक पुस्तक की याद जीवन्त हो गई । परन्तु उस पुस्तक का आधार अमरीकी जीवन शैली थी ।
ReplyDeleteजैसे बहुत पीछे जाकर देखने में इतिहास समझ में आता है, बहुत आगे जाकर सोचने में भविष्य की दिशा समझ आती है, दोनों को साथ रखने में वर्तमान व्यवस्थित होने लगता है ।
Deleteमैं तो अब काफी सिमट सा गया हूँ. अब किसी भी तकनीक की चाह ख़त्म हो गई है. फिर भी जरूरत कुछ ऐसी है जिसमें मेरे पास 1-2 TB का मेमोरी स्पेस, एक मिनी टैबलेट(अभी भी वही प्रयोग में ला रहा हूँ जो आपने डेढ़ साल पहले मेरे पास देखा था, अब उसे फोन की तरह प्रयोग नहीं करता हूँ. बाकी जो सुविधाएं उसमें कम लगती है तो Linux शेल प्रोग्रामिंग खुद ही करके कस्टोमाईज कर लेता हूँ), और घर के बाहर इंटरनेट ना ही हो तो बेहतर(इसलिए अपना 3G Service बंद करवा दिया). फोन और गाने के लिए साधारण सा ब्लैकबेरी का फोन(Memory 32GB) इस्तेमाल करता हूँ जो अधिक बैटरी बैकअप देता है. अच्छे कैमरे का कोई रिप्लेसमेंट अभी भविष्य में किसी भी उपकरण में संभव होता नहीं दिख रहा है.
ReplyDeleteआप सिमटे नहीं हैं श्रीमानजी, आप डिजिटल योगी हो गये हैं । चरम पर पहुँचकर सब सरल हो जाता है, आप उस स्थिति पर हैं ।
Delete:)
Deleteजरुरत से ज्यादा डिजिटेलाईज्ड हुए जा रहे हैं...क्तना ज्यादा इन उपकरणों पर आधारित जीवन हो चला है...
ReplyDeleteबेशक ज़रूरियातों का रेखांकन और सीमांकन दोनों ज़रूरी हैं .लेकिन सम्बन्धों को डिजिटल होने से बचाना भी उतना ही जरूरी है .सम्बन्ध सिर्फ "हाँ" या "नहीं "द्वि अंकीय न हों .बढिया आलेख कम में ज्यादा कहता
ReplyDeleteहुआ .डिजिटल का मतलब भी तो यही है न्यूनतम की सर्वाधिक उपयोगिता .
डिजिटल उपकरण और जीवन शैली पर एक सकारात्मक और तर्कसंगत आलेख
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होमोसेपियंस = डीजिटलोसेपियंस
यह एक ऐसी जीवन शैली है जिससे जितना पीछा छुड़ाते गए उतना ही वह नज़दीक आता गया।
ReplyDeleteसब कुछ एक ही जगह सहज़ता से सुलभ हो जाए तो क्या कहना ... आपका आलेख बहुत ही अच्छा लगा
ReplyDeleteसादर
बहुत रोचक जानकारी...
ReplyDeleteरोचक और बहुत उपयोगी जानकारी । आप सही कहते हैं मीडिया फाइल्स को छोड दिया जाये तो बाकी जानकारी ८-ज्यादा नही होगी । इस तरह यदि दो पक्षों में डिजिटल जीवन बांट लिया जाये तो कम खर्च में रंग चोखा ।
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ReplyDeleteरहते हैं बच्चे -आगाह करो तो कहते हैं -आई डोंट वांट टू गो टू स्कूल .उपयोगिता का अतिक्रमण ओबसेशन में न बदल जाए .यह भी ध्यान रखना होगा .
Very informative.
ReplyDeleteरोचक एवं जानकारी देती बहुत मुकम्मल प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
रोज मर्रा की जरूरत बन गया है इसके बिना अब काम भी तो नहीं चलता नई चीज आती है पुरानी कौने में पड़ी रोती है अपना तो लेपटाप वाई फाई में ही सारी दुनिया है और हाँ एक फोन बस | हाँ बच्चे जरूर मार्किट में नई चीज लांच होने पर भागते हैं | बहुत बेहतरीन प्रस्तुति हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसच है ..मौलिक आवश्यकता की परिभाषा बदल गयी है.
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ReplyDeleteआजकल डिजिटल मूड में रहते हैं बच्चे ."आई "और "ई "के झमेलों में उलझे रहतें हैं .कहीं किंडर ,कहीं वीगेम ,कहीं डीएसओ ,जब देखो कुछ कुछ टिप टिप
झुए रहतें हैं इन इलेक्त्रोनी तमाशों पर ,यहाँ भी एक अनुपात चाहिए ,प्रोद्योगिकी विभाजन और पढ़ाई लिखाई खेलों के बीच ..
उपकरणों की अधिकता व्यक्ति की अपरिपक्वता और कम समझ ही प्रमाणित करती है। सम्पूर्ण निर्दोष व्यवस्था तो कोई नहीं होती। ऐसे में, न्यूनतम दोषवाली व्यवस्था ही स्वीकार की जानी चाहिए और मेरी समझ में वह है - अपनी आवश्यकताओं को कम रखकर तदनुसार ही उपकरण जुटाए जाऍं।
ReplyDeleteबहुत सधी हुई सब्द बाजी है प्रवीन जी ,आज कल मै बी भगवान् और माँ बाप का पेर पड़ना भूल जाता हु
ReplyDeleteदुकान में ग्राहक का कितना उधार पता है यह बी याद नहीं
purani khawt hai ki awshykta awiskar ki jnni hai.
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