तभी वाणिज्य विभाग के अधिकारी का फोन आता है कि सर गुवाहटी के लिये ६०० अतिरिक्त टिकट बिक चुके हैं, लगता है कि आज जाने वाली ट्रेन में अतिरिक्त कोच लगाने होंगे। सामान्य दिनों की अपेक्षा संख्या अधिक थी पर कारण विशेष ज्ञात नहीं था, अधीनस्थों को अतिरिक्त कोचों की व्यवस्था सम्बन्धित आवश्यक निर्देश देकर आश्वस्त हो गये। अभी दो घंटे ही और बीते होंगे कि सूचना मिली कि टिकटों की संख्या २००० पार कर चुकी है, स्टेशन पर बहुत भीड़ है और लोग अभी भी टिकट ले रहे हैं। यह निश्चय ही असामान्य था, कोई बात अवश्य थी। उस समय बच्चों के साथ टेबल टेनिस खेल रहा था, जब और जानकारी लेने के लिये मोबाइल पर बात करने लगा तो बच्चों ने इस तरह देखा, मानो कह रहे हों कि आप यहाँ पर भी चालू हो गये।
दस मिनट में यह पक्का हो गया था कि लोग व्यग्र हैं और पलायन कर रहे हैं। नियत ट्रेन में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इतने यात्रियों को ले जा पायेगी। अतिरिक्त कोच लगाने पर भी सबको स्थान नहीं दिया जा सकता था। एक विशेष ट्रेन चलाने का निर्णय लिया गया। सामान्य स्थिति में एक नियत प्रक्रिया के बाद ही ऐसी अनुमति मिलती हैं पर परिस्थितियों की गम्भीरता को देखते हुये तुरन्त ही मौखिक अनुमति मिल गयी। राष्ट्रीय अवकाश था और अधीनस्थों की संख्या अन्य दिनों से कम थी, फिर भी सब स्टेशन पर पहुँच गये थे। स्टेशन पर भीड़ अप्रत्याशित थी और सूचना मिल चुकी थी कि ३००० से अधिक टिकट बिक चुके हैं। व्यवस्था बनाये रखने के लिये सुरक्षा बल पहुँच चुके थे।
जो लोग रेलवे से जुड़े हैं, वे जानते हैं कि इतने कम समय में एक विशेष ट्रेन को चलाना बड़ा ही दुरूह कार्य है। कोचों को एकत्र करना, एक साथ लाकर ट्रेन को स्वरूप देना, ६ घंटे के नियत गहन परीक्षण में देना, इंजन, ड्राइवर और गार्ड आदि की व्यवस्था करना। इन सब कार्यों में कई निर्णय तात्कालिक लेने होते हैं, उस हेतु सारे सम्बन्धित अधिकारी और पर्यवेक्षक अपने कार्यस्थल पर पहुँच चुके थे, कार्य अपनी पूरी गति में था। उधर भीड़ व्यग्र हो रही थी, उन्हें भी बताना आवश्यक था कि उनके लिये एक विशेष ट्रेन चलायी जायेगी। नियत ट्रेन के पहले ही एक विशेष ट्रेन चलाने की घोषणा ने भीड़ को संयत किया, प्लेटफार्म नियत कर उसकी भी उद्घोषणा कर दी गयी। सुरक्षाबलों ने बड़ी ही कुशलता से सबको नियत प्लेटफार्म पर पहुँचाने का कार्य प्रारम्भ किया। धीरे धीरे सारा प्लेटफार्म भर गया, लोग अनुशासित हो विशेष ट्रेन के आने की प्रतीक्षा करने लगे।
जिस समय संवेदनायें अपने उफान पर हों, समस्या को सीमित मान लेने की भूल नहीं की जा सकती थी। इतनी व्यवस्था करने के बाद भी टिकट बिक्री पर दृष्टि बनी हुयी थी। पहली विशेष ट्रेन जाने में अभी ४ घंटे शेष थे, तभी पता लगा कि टिकट ७००० की संख्या पार कर चुके हैं। निर्णय लेना आवश्यक था, एक और विशेष ट्रेन की अनुमति लेकर उसकी घोषणा कर दी गयी। जब घर में ४ लोगों का खाना बनता हो और सहसा गृहणी को १०० लोगों की व्यवस्था करने को कहा जाये, तो जो स्थिति गृहणी की होती है, वैसी ही हम लोगों की हो रही थी। हाथ में जो भी था, उसे सेवा में लगा दिया गया, पड़ोसी मंडलों और मुख्यालयों से सहायता के लिये गुहार लगायी गयी। वरिष्ठों ने परिस्थितियों को समझा और यथासंभव और त्वरित सहायता की व्यवस्था की। सहायता आनी थी पर उसमें समय लगना था, सामने ७००० की संख्या। बस ईश्वर से यही मना रहे थे कि आज संख्या इससे अधिक न बढ़े, दो विशेष और एक नियमित ट्रेन में ७००० यात्रियों को भेजना संभव था।
ट्रेनों की तैयारी पर और भीड़ की गतिविधियों पर दृष्टि बनी रहे, इस कारण फुट ओवर पुल पर एक स्थान ढूढ़ा गया। वह भीड़ के प्रवाह से थोड़ा अलग था और निर्णय लेने के लिये समुचित। तब तक स्टेशन पर पहुँच चुके मीडिया और अन्य संगठनों की दृष्टि से भी दूर था वह स्थान। एक सुरक्षाकर्मी और एक पर्यवेक्षक के साथ वहाँ पर कोई व्यवधान नहीं था। स्टेशन पर लगातार उद्घोषणा की जा रही थी जिससे भीड़ संयत बनी रहे, सबको यह विश्वास दिलाया जा रहा था कि सबको भेजने की व्यवस्था की जायेगी। इतनी अधिक भीड़ तीन घंटे संयत और अनुशासित बैठी रही, यह अपने आप में स्मरणीय अनुभव था हम सबके लिये।
डेढ़ घंटे के अन्दर तीन ट्रेन जाने के पश्चात प्लेटफार्म और टिकटघर खाली हो चुका था। आरक्षित यात्रियों समेत लगभग ८५०० यात्रियों को सकुशल भेजने के बाद समय देखा तो रात्रि २ बज चुके थे। हमारा कार्य फिर भी समाप्त नहीं हुआ था, लगभग आधे घंटे दिनभर के कार्य की कमियों पर छोटी चर्चा हुयी, अच्छे कार्य के लिये अधीनस्थों की पीठ थपथपायी गयी। यह मानकर चला जा रहा था कि अगले दिन भी यही प्रवाह बना रहेगा। अन्य मंडलों से आने वाली सहायता के आधार पर अगले दिन की रूपरेखा बनाकर घरों की ओर प्रस्थान किया गया।
घर आया तो दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे, न साथ टेबल टेनिस खेल पाया, न साथ में भोजन ही कर पाया। मेरी भी आँखों में गहरी नींद थी, पर यह सोच रहा था कि जब कल बच्चे पूछेंगे कि देर रात तक स्टेशन पर क्या कर रहे थे, तो क्या उत्तर दूँगा? यदि कहूँगा कि ६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद देख कर आया हूँ, तो क्या वे इस बात को समझ पायेंगे? एक रेलवे कर्मचारी के रूप में सामने उपस्थित कार्य को सकुशल निभा पाने की उपलब्धि क्या उन्हें सगर्व बता पाऊँगा? पंजाब, सिन्धु, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग, जो कभी एक वाक्य में पिरोये गये थे, जो राष्ट्रगान के अंग थे, वे आज अपने अपने अलग अर्थ क्यों ढूढ़ने लगे हैं, क्या यह समझा पाऊँगा?
अधिक सोच नहीं पाता हूँ, निढाल हो बिस्तर पर लुढ़क जाता हूँ। जो भी हो, कल फिर गाऊँगा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
Aah...pata nahee ham apne desh ko kis or le ja rahe hain!
ReplyDeleteये गान तो हर हाल में गाना हे है प्रवीण जी|
ReplyDeleteबहुत अफसोसनाक रही यह घटना ....आप और अन्य सम्वेदनशील लोग बधाई के पात्र हैं ।
ReplyDeleteउफ़्फ़! ये बहुत कठिन परिस्थिती थी...लेकिन हमने गाया है ये गान पूरी श्रद्धा के साथ तभी ये हम संभाल पाए इतनी आसानी से समस्या को हल कर पाए ...हर प्रांत के लोग रहे होंगे साथ जिन्होंने सहयोग किया होगा...आपका ...बच्चॊं को बताईये ठीक ऐसे ही ...वे भी गायेंगे और ज्यादा जोश से ...
ReplyDeleteऐसी घटनाओं से निस्संदेह तिरंगे का सम्मान विश्व में घटता है ! शर्मनाक घटना है इस देश की भीड़ मानसिकता के लिए...
ReplyDeleteआपका कार्य सराहनीय है प्रवीण भाई !
बड़ी कठिन घड़ी थी आप लोगों के लिए। कितना दुखद है कि कुछ निक्कमे लोग दूसरों के लिए विकटताएं खड़ी कर देते है।
ReplyDeleteप्रगाढ़ अनुभूतियों से निकली है यह रचना संकट के समय ही होती है प्रबंध कौशल और राष्ट्र प्रेम की जांच .देश का सौभाग्य है अभी टूटा नहीं है भकुवों के तोड़े आप जैसे कर्मठ राष्ट्र वादी उसे बचाए हुएँ हैं . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteशनिवार, 25 अगस्त 2012
आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html
फिर भी कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
ReplyDeleteदिखी पलायन दीनता, मन का भय आतंक |
ReplyDeleteआश्रय धंधा छीनता, अफवाहों का डंक |
अफवाहों का डंक, रहे जन गन मन नायक |
जले शंक की लंक, मिले अधिकार लायक |
कठिनाई में धैर्य, जिताए बड़े युद्ध को |
साधुवाद हे वीर, दुआ दूँ चित्त शुद्ध को |
जले शंक की लंक, मिले अधिकारी लायक
Deleteहर बार पानी सर के ऊपर होने पर ही सरकार की नींद खुलती है..खामियाजा तो अधीनस्थ को भुगतना पड़ता है . आप सभी को बधाई झंडा को हमेशा ऊँचा रखने के लिए..
ReplyDeleteअब झंडा गीत को सिर्फ राष्ट्रीय पर्व पर ही नहीं, साल के ३६५ दिन गाने की आवश्यकता है और जिस दिन हम इसे मुंह के बजाय दिल से गाने लगेंगे, उस दिन ही हमारा देश वास्तविक लोकतंत्र होगा और सारी समस्याएं स्वतः ही तिरोहित हो जाएँगी...
ReplyDeleteजो भी हो, कल फिर गाऊँगा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
ReplyDeleteऐसे कठिन समय में सुव्यवस्था बनाए रखी ....कर्मठ नागरिकों के कारण ही हम गा पाते हैं झण्डा ऊंचा रहे हमारा ।
जय हिन्द !!
ReplyDeleteयह गान गाते हुए अपने कर्तव्य पथ पर यूँ ही आगे बढ़ते जाना होगा ...
ReplyDeleteआभार
ऐसे वक्त मे भी सफ़लता पूर्वक अपने काम को अंजाम दिया वो ही काफ़ी है हाँ ये दुखद है कि कब तक हम बँटे रहेंगे कब वास्तव मे हिन्दुस्तानी कहायेंगे ।
ReplyDeleteअफवाहों से पैदा हुई इस मुसीबत में स्पेशल ट्रेन्स का इंतजाम भी संदेहात्मक बताया गया था .
ReplyDeleteलेकिन आपका लेख पढ़कर संतुष्टि महसूस हो रही है .
अपना फ़र्ज़ निभाने में भी एक सुखद अहसास होता है .
सैल्यूट है आपको और आपकी (रेलवे) रेजीमेंट को
ReplyDeleteएक जहाज का कैप्टन सही और त्वरित निर्णय ले तो किसी भी आपदा से निबट सकता है
प्रणाम
बहुत ही हृदय विदारक घटना.
ReplyDeleteआप लोगों के सकुशल प्रबंधन से बिना किसी अनहोनी के विशेष ट्रेनें त्वरित चलीं इसलिए बधाई.
Behrateen post! Desh par garv hai par desh ko chalane walon par krodh
ReplyDeleteहाँ ... हार नहीं मानना है
ReplyDeleteअफवाह फैलाने वालो ने अपना काम कर दिया ...पर ये हज़ुम बिना ये सोंचे कि क्या गलत और क्या सही इन अफवाहों पर विश्वास कर लेना....सरकार और आम लोगों को कितनी परेशानी में डाल सकता हैं...ये कोई नहीं जानता ...सलाम हैं आप लोगों की हिम्मत और देश भक्ति की जो मुश्किल की घड़ी में इतनी हिम्मत और सूझबूझ से काम लिया
ReplyDeleteबिलकुल ठीक कहा है आपने कि जिस समय संवेदनाएं उफान पर हों समस्या को सिमित मन लेने की भूल नहीं की जा सकती ..........................लेकिन दुर्भाग्य तो यही है कि समस्याएँ कितनी भी विशाल हो हम उन्हें सिमित मान कर चलने की ही आदत बना चुकें है ..........उम्दा लेखन
ReplyDeleteझंडा ऊँचा रहे हमारा के लिए स्पष्ट चुनौतियाँ के साथ छद्म चुनौतिया भी संकट का कारण बन रही है .
ReplyDeleteइस पक्ष से महसूस करने का अवसर नहीं मिलता.
ReplyDeleteमैं तो टीवी पर देख कर कांप रहा था, पर आपने तो बिलकुल मुस्तैद हो कर अपनी कार्य क्षमता को निष्ठा से कार्यान्वित किया... बहुत बहुत साधुवाद आपको और रेलवे के पूरे स्टाफ को.
ReplyDelete@६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद देख कर आया हूँ,
लाखों साल बीत गए, पर हम नहीं सुधरे.. उसके बाद भी पता नहीं क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.
आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeleteकल 26/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
प्रवीण जी आप जैसे अधिकारी पर फख्र है हमें -मुझे उन दिनों पल पल आपकी याद आ रही थी ..और सोच रहा था कि प्रवीण जी के लिए यह अग्नि परीक्षा का समय है -आप खरे उतरे .....बधाई!झंडा ऊंचा रहे हमारा !
ReplyDeleteबहुत जटिल परिस्थिति है। सचमुच यह दुख की बात है कि आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी स्थायित्व नहीं आ सका। ऐसी परिस्थितियों में आप और आपके साथियों ने कार्यनिष्ठा दिखाते हुए समुचित प्रयत्न किये, यह खुशी की बात है।
ReplyDeleteमुसीबत में इंतजाम खरे उतरे रेलवे के सम्वेदनशील लोग ..... सभी बधाई के पात्र हैं ।
ReplyDeleteझण्डा तो ऊँचा रहेगा ही ....ऐसी कितनी ही चुनौतियों का सामना कर चुका है ... पर इसकी आन बान और शान में कोई कमी नहीं हुई...जज़्बा बना रहे ....हम हार कभी ना मानें ...
ReplyDeleteप्रवीण भाई रात को पढ़ते पढ़ते सोया था आपका यह विचारुत्तेजक रोंगटे खड़े करने वाला रिपोर्ताज (उस वक्त यहाँ स्थानीय समय के अनुसार रात के साढ़े बारह बाज़ गए थे ),रात भर मन उद्वेलित रहा ,बच्चों को क्या बताऊंगा ,जरा सोचो मौन सिंह का क्या हाल होता होगा ?रोबोट तो बोल भी नहीं सकता ,....अभिनीत होता है बस ....शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए जो हमारे लिए बेशकीमती हैं,हमेशा .. कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteशनिवार, 25 अगस्त 2012
आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html
aise hi kuch logon ne jinda rakha hai..samman desh ka..
ReplyDeletemar chuka hai paani sabka..
Congrats on successful tackling of such unusual situation.
ReplyDeleteआप सभी बधाई के पात्र हैं ।...
ReplyDeleteइतनी अधिक लोक-संख्या को सावधानी पूर्वक सकुशल भेज दिया, बधाई प्रवीण जी । आप जैसे लोगों की वजह से ही झंडा ऊँचा है हमारा ।
ReplyDeleteऐसी कर्तव्यपरायणता देशभक्ति काही एक रूप है.जब तक देश के विभीषणों को पहचाना नहीं जायेगा ऐसी ही विषम स्थितियाँ सामने आती रहेंगी !
ReplyDeleteशर्मसार करने वाली घटना रही हम सबके लिए ...
ReplyDeleteआपने स्टाफ के साथ मिलकर बहुत ही संवेदनशील तरीके से समस्या का सामना किया !
साधुवाद !
किसी एक या कुछ लोगोँ की गलती का परिणाम सबको कई पीढ़ियोँ तक भोगना पड़ता है, ऐसा हमारे गलत बात का विरोध न करने के कारण भी होता है,ये गलतियाँ क्या हैँ-(1)मुस्लिमोँ के लिये निर्दोष साबित होने पर भी वन्देमातरम् के स्थान पर अँग्रेजोँ की चापलूसी मेँ लिखे गीत को राष्ट्रगान का स्थान देने के फैसले का सामुहिक प्रबल विरोध न करने का दुष्परिणाम सबको भोगना पड़ेगा(2)देश का नाम इन्डिया हटा कर भारत किये बिना कुछ भी इस देश मेँ सही नहीँ होगा(3)स्वामी रामदेव जी का बिना शर्त समर्थन करने से ही सब सही होगा,सारे अगर मगर किन्तु परन्तु व्यर्थ हैँ सब छोड़ कर नौकरी करते हुये स्वामी रामदेव जी का समर्थन करना हम सबका कर्तव्य है, आप के कर्तव्य पालन को मेरा नमन है काश सभी अधिकारी आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ होते
ReplyDeleteबहुत दुखद हालात...यह कर्तव्यपरायणता ही राष्ट्र ध्वज का असली सम्मान है...
ReplyDeleteरेलवे सदा से ही अच्छा काम करती आई है ... इतने बड़े संघठन में कुछ कमियों का होना लाजमी है उसे नज़रंदाज़ लिया जाना चाहिए ... इस सामाजिक समस्या को रेलवे ने सूजबूझ से पार किया है ... जिसके लिए वो बधाई के पात्र हैं ... आप जैसे कर्मठ लोगों के बल पर ही रेलवे ऐसा कर पाती है ...
ReplyDeleteआजादी के 65 वर्ष बाद भी हम आतंक के साये में जी रहे हैं
ReplyDeleteहमारे देश में न ही अनुशासन है , न ही लोकतंत्र है, सिर्फ तानाशाही है इस संवेदनहीन सरकार की . आम इंसान रात-रात भर खून पसीना बहा रहा है. बच्चे पिता का इंतज़ार करते सो जाते हैं. पिता भी निढाल अगले दिन की जंग में उतरने के लिए निधार हो बिस्तर पर गिर जाता है. लेकिन हमारी सरकार इन सब व्यथाओं से परे, देश को खंडित करने के हर संभव बहाने तलाशती रहती है...Pathetic !
ReplyDeleteप्रवीण जी ! अफवाह एक बिना पंख वाला पक्षी होता है जो ऊंची उड़ान भरता है संचार का द्रुत तम साधन है .विवेक को ताक पे रखके लोग एक जन -उन्माद का शिकार हो जातें हैं अफवाह के साए में बेंगलुरु में यही हुआ .यहाँ कभी जन -सम्मोहन के तहत गणेश भगवान् दूध पीतें हैं कभी किसी दीवार पर देवता भित्ति चित्र बन प्रगट होतें हैं अजीब करिश्मों और हाकिमों का देश है ये यहाँ बिना रीढ़ का अकशेरुकी प्राणि प्रधान मंत्री बन सकता है ,इसकी रूह इटली में रहती है शरीर दिल्ली में ... ,शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
रविवार, 26 अगस्त 2012
एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis
एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis
कई मर्तबा हमारी रीढ़ साइडवेज़ ज़रुरत से ज्यादा वक्रता लिए रहती है चिकित्सा शब्दावली में इसे ही कहा जाता है -Scoliosis .
24 हड्डियों (अस्थियों )की बनी होती है हमारी रीढ़ (स्पाइन )जिन्हें vertebrae कहा जाता है .रीढ़ की हड्डी की गुर्री का एक अंश है ये vertebra जिसे कशेरुका भी कहा जाता है .रीढ़ वाले प्राणियों को कहा जाता है कशेरुकी जीव (vertebrate ).
ये कशेरुका एक के ऊपर एक रखी होतीं हैं .रीढ़ को सामने से पीछे की ओर देखने पर वह सीधी (ऋजु रेखीय )ही दिखलाई देती है .
बेशक रीढ़ एक दम से सीधी नहीं होतीं हैं और ऐसा होना एक दम से सामान्य बात है.नोर्मल ही समझा जाता है .लेकिन जब यही रीढ़ आढ़ी तिरछी टेढ़ी मेढ़ी ज़रुरत से ज्यादा होती है तब यह असामान्य बात है ,एक रोगात्मक स्थिति भी हो सकती है यह जिसका आपको ज़रा भी भान (इल्म )नहीं है .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
आपको और संपूर्ण रेल्वे प्रशासन को बहुत बहुत बधाई जो इतनी संवेदना और परिपक्वता का परिचय देते हुए इतने महत्वपूर्ण तात्कालिक निर्णय लेकर जाने की विशेष व्यवस्था करवाई ।
ReplyDeleteतिरंगे तो जान से प्यारा है परंतु अब यह हालत है कि जो तिरंगा लेकर अगर सड़क पर निकल जाये तो और अगर "वन्दे मातरम" कहे तो, उसे पुलिस थाने ले जाया जाता है, क्रांति के जुर्म में । क्या वाकई हम आजाद हो चुके हैं !
Congrats for well tackling the situation!
ReplyDeleteसमस्यायों का निराकरण कर कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे हम!
जय हिंद!
६५ वर्ष के लोकतन्त्र की दृढ़ता का एक अपवाद पर- आपकी आँखों रेल्वे की मुस्तैदी देख दिल प्रसन्न हुआ- साधुवाद!!
ReplyDeleteआओ प्यारे !वीरों आओ !देश धर्म पर बलि बलि जाओ ,एक साथ सब मिलकर गाओ ,झंडा ऊंचा रहे हमारा ,विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ..... कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteसोमवार, 27 अगस्त २०१२/
ram ram bhai
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/
जो राष्ट्रगान के अंग थे, वे आज अपने अपने अलग अर्थ क्यों ढूढ़ने लगे हैं, क्या यह समझा पाऊँगा?......marmik,seedhe dil ko choo gayee.....
ReplyDeleteरेलवे की तो जितनी तारीफ की जाए उतना कम है। लेकिन अब तो चिन्ता है कि क्या एक और कश्मीर की तैयारी हो रही है?
ReplyDeleteदेश उबल रहा है...स्थिति विषम है.... स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आप जैसे लोग बिना मीडिया आकर्षण बने काम करते हैं... आपके प्रश्न एक गंभीर सवाल उठा रहा है.. शायद बच्चों को हम इसका जवाब न दे सकें...
ReplyDeletecomplex situations..
ReplyDeletetest everything we learn
keeping the head high and do the right..
and then our flag will keep waving till eternity
आनन्-फानन में की गई व्यवस्था के लिए रेलवे बधाई की पात्र है.सवाल यह है कि यह कैसी आज़ादी है जिसमें जनता जन प्रतिनिधियों के आश्वाशनॉ से ज्यादा अफवाहों और गुंडों की धमकियों पर विश्वाश करती है.वोटों की राजनीति करनेवाले इस देश का कबाड़ा करके रहेंगे, महज वक्त की बात है. आखिर और कितने कश्मीर चाहियें. बहरहाल,तब तक झंडा ऊँचा रहे हमारा गाने में क्या हर्ज़ है.
ReplyDeleteआज ही एक पोस्ट पढ़ा, आज की स्थिति पर सलीके से बात रखी हुई लगी.
ReplyDeletehttp://prasunbajpai.itzmyblog.com/2012/08/blog-post_27.html
बहुत ही बेहतरीन रचना......
ReplyDeleteनीयत हो तो आदमी सब कुछ कर सकता है ,जहां चाह वहां राह ,हिम्मते मर्दा ,मदद दे खुदा !यही जाँबाज़ी फौजियों में दिखती है जो सहरा में फूल खिला देतें हैं वनस्पति लहलहा देतें हैं ,कर्मठ होना एक बड़ी बात है उस वोटिस्तान में जहां संसद में सिर्फ बहस होती है .भारत की एक अरब और बाईस करोड़ आबादी में कितने "प्रवीण भाई "हैं,पांच से तो ज्यादा ही होंगें ,पांडव भी पांच ही थे .इस देश को स्सारी वोटिस्तान को चलाने के लिए पांडव चाहिए ,संसदीय द्रौपदी का चीरहरण करने वाले कौरव नहीं .वो देखा है उसको कैसे संसद में बैठके हुश हुश करती है .
ReplyDeleteहमारे एक दोस्त मुल्तान से आये वोटिस्तान बनने के बाद ,बतातें हैं वहां गाँव के मुखिया खान होते थे (सरपंच ).जिनका दबदबा रहता था .ये लोग कुत्ते पालते थे .लोग शिकायत लेकर आते थे .खान साहब जिसे पसंद नहीं करते थे उसे देख धीरे से अपने कुत्तों को हुश हुश ...कर देते थे ,कुत्ते भौंकते थे ,वह व्यक्ति भाग खड़ा होता था ,ये कोपभवानी (कोप कैकई )संसद में बैठी सिर्फ हुश हुश करती है इसीलिए प्रवीण जैसे लोग संकट में पडतें हैं .लेकिन इसे यह हुश हुश बहुत महंगी पड़ेगी .प्रवीण सलामत रहें . देश चलेगा ,दौड़ेगा ,झंडा लहलहाएगा .
आओ पहले बहस करो -डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट .,1218 ,शब्दालोक ,सेक्टर -4 ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -122-001
बोला पुलिस मैन , साहब से आकर ,
गजब है तमाशा ,सुनो ध्यान से सर ।
पकड़ा है जिस चोर को रंगे हाथ ,
अकड़ता मुकरता है ,वो साथ साथ ।
कहता है मुझसे ,करो बहस पहले ,
चाहे बाद में दर्ज़ करो, नहले दहले ।
देता खुली बहस का मैं निमन्त्रण ,
मैं देखता रोज़ ,चैनल पे संसद ।
है संसद संविधान से भी उच्चतर ,
पर बहस का रूतबा, संसद से ऊपर ।
स्वयं प्रमाणित घपले ,जो अकसर ,
उन पर भी निष्फल, बहसें निरंतर ।
आओ ,हम रपट से करें ,बहस पहले ,
विविध चैनलों पर, दिखें शाट्स सीधे ।
सुनो वोट आई -डी, लिया मैंने बनवा ,
जो है सौ रोगों की, बस एक दवा ।
मिली खूब सुविधा है वोटिस्तान की ,
जय बोलो ,जय इंडिया देश महान की ।
आप रेलवे में हैं ...?
ReplyDeleteआपसे वहां की विस्तृत जानकारी मिली मैं ये पोस्ट यहाँ के अखवार वालों को भेज सकती हूँ ....?
पलायन यहाँ से भी जारी है ....हमारे यहाँ कुछ लडकियां किराये पे रहती हैं ...कल उनमें से एक लड़की अचानक मकान छोड़ कर चली गई पता चला परिवार वाले यहाँ से पलायन कर रहे हैं ...दुःख हुआ लड़की यहाँ नौकरी कर रही थी ...हिंसा अभी भी जारी है न जाने कितने लोग नित मारे जा रहे है...यहाँ के टी वी चैनल सद्भावना के कार्यक्रम दिखा रहे हैं ...सरकार मीडिया से सहयोग मांग रही है लेकिन अभी तक शांति बहाल नहीं हुई ....
ह्म्म! एकदम वार रुम जैसे हालात थे।
ReplyDeleteबधाई ..... अनुकरणीय उदहारण
ReplyDeleteये परिस्थिति तो वाकई शर्मनाक है ,परन्तु आप सब की सामूहिक कार्यक्षमता नि:संदेह प्रशंसनीय है !!!
ReplyDeleteवाकई झंडा ऊँचा रहे हमारा, मगर इतने आतंरिक और पारस्परिक अविश्वास के बीच यह कब तक संभव रह पायेगा !!!
ReplyDelete