यज्ञ क्षेत्र यह विश्व समूचा, होम बने उड़ते विमान जब,
विस्मय सबकी ही आँखों में, देखा उनको मँडराते नभ।
मूर्त रूप दानवता बनकर, जीवन के सब नियम भुलाकर,
तने खड़े गगनोन्मुख, उन पर टकराये थे नभ से आकर।
ध्वंस बिछा, ज्वालायें उठतीं,
चीखें अट्टाहस में छिपतीं,
कहाँ श्रेष्ठता, दिग्भ्रम फैला,
सिसके वातावरण विषैला,
क्या अलब्ध है, क्या पाना है,
मृत-देहों ने क्या जाना है,
मन की आग नहीं बुझती है,
धधक रही, रह रह बढ़ती है।
और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,
इतने नरमुण्डों को पाकर, यह ज्वाला बढ़ती ही जाती।
विस्मय सबकी ही आँखों में, देखा उनको मँडराते नभ।
मूर्त रूप दानवता बनकर, जीवन के सब नियम भुलाकर,
तने खड़े गगनोन्मुख, उन पर टकराये थे नभ से आकर।
ध्वंस बिछा, ज्वालायें उठतीं,
चीखें अट्टाहस में छिपतीं,
कहाँ श्रेष्ठता, दिग्भ्रम फैला,
सिसके वातावरण विषैला,
क्या अलब्ध है, क्या पाना है,
मृत-देहों ने क्या जाना है,
मन की आग नहीं बुझती है,
धधक रही, रह रह बढ़ती है।
और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,
इतने नरमुण्डों को पाकर, यह ज्वाला बढ़ती ही जाती।
ऐसी ही आतंक पिपासा.
ReplyDeleteशायद सौम्यता के घर की ओर,आतंक का जाना आसान होता है ,निश्चलता,स्वयं की भांति उसे देखती है / विवेक ,संयम खोया हुआ दर्शन ,मर्यादा व शांति को कायरता व कुंठा समझता है /विध्वंश को विजयता का प्रतिरूप समझ बैठता है ,पश्चाताप के भाव तो तब आते हैं जब सब कुछ खो चूका होता है ........
ReplyDeleteबेदह शर्मनाक है यह सब।
ReplyDelete............
राष्ट्र की सेवा में समर्पित...
विश्वविख्यात पक्षी वैज्ञानिक की अतुलनीय पुस्तक।
यह कैसी आतंक पिपासा ,जिसे कहें सेकुलर जिज्ञासा ,........अफवाहें फैलाना ,है किसके मन की अभिलाषा ,......उत्तर पूरब के सब भागे ,पूर्ण हुई किसकी प्रत्याशा ........बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
यह कैसी आतंक पिपासा ,सिलिकान वैली में है हताशा .....जिसे कहें सेकुलर जिज्ञासा ,........अफवाहें फैलाना ,है किसके मन की अभिलाषा ,......उत्तर पूरब के सब भागे ,पूर्ण हुई किसकी प्रत्याशा ........बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
राजनीति से ऊपर उठकर मजबूती से और बहुत कड़े क़दमों से इसका विरोध और समाधान करने की आवश्यकता है | सबकुछ अच्छा खासा चल रहा होता है ,अचानक से 'क्लाउड बर्स्टिंग' जैसी घटना घटती है और सबको विह्वल कर जाती है | यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है | २०१४ के चुनाव नजदीक आते ही वैमनस्य , कलह , भड़काऊ बयान , प्रायोजित दंगों के लिए हमें तैयार रहना चाहिए | पता नहीं क्यों ,जो बाते आम आदमी भी जानता है , वह सरकारें क्यों नहीं समझती |
ReplyDeleteकवि हल सुझाये -कविता अधूरी है ......
ReplyDeleteपिछले ३ दिनों से बंगलोर स्टेशन से अभी तक जा चुके ३० हजार पूर्वोत्तर के नागरिकों की आँखों में हल ढूढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ...
Deleteयह आतंक पिपासा .....मनुष्यता के लिए कलंक है ..हर दिन ख़त्म कर रहा है ...मनुष्य को मनुष्य ...!
ReplyDeleteमनुष्यता पर कलंक ही है ये पिपासा . इसका निदान समझ में नहीं आता.
ReplyDeleteक्या हल इस इस आतंक पिपासा का...
ReplyDeleteआतंक और राजनीति का 'मिक्स-अप' हो रहा है आजकल...| हमारी राजनीति ही आतंक फैला रही है.कुछेक घटनाएँ तो झेली जा सकती हैं पर जब इनके पीछे साजिश हो तो...?
ReplyDeleteप्रखर अभिव्यक्ति………
ReplyDeleteक्या अलब्ध है, क्या पाना है,
मृत-देहों ने क्या जाना है,
सुरसा समान.. आतंक पिपासा..प्रभावी रचना..
ReplyDeleteसाथ साथ हम हंसना सीखें
ReplyDeleteवसुधा को गंगा से सींचें!
दूर भगे, राक्षसी पिपासा !
पूरी हो,मन की अभिलाषा!
पूरब पच्छिम उत्तर दक्षिण,हिंदू मुस्लिम की परिभाषा !
फक्कड मन पहचान न पाए,भेदभाव रंजिश की भाषा!
....कवि की इसी पीर में आशा ।
Deleteheart wrenching lines..
ReplyDeleteas I always say.. superbly written :)
धूल धूसरित जीवन आशा,
ReplyDeleteहर कोने में होय तमाशा
मानव की यह काया कैसी
ब्रह्म-पुत्र में गले बताशा ||
कावेरी में रणभेरी सुन -
ढोल नगाड़े मारू तासा |
गंगा यमुना में भी बढती-
घोर निराशा परम हताशा |
आग लगाकर लोग तापते-
ऐसी ही है रक्त पिपासा ||
हमारी मानवीय सोच और व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगाती ये आतंक पिपासा.....
ReplyDeleteदर्दनाक और शर्मनाक.है ये आतंक पिपासा.
ReplyDeleteऔर चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,
ReplyDeleteइतने नरमुण्डों को पाकर, यह ज्वाला बढ़ती ही जाती।
आखिर हमारी अमानवीय शोच का अंत क्या होगा,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
उफ़ ...ये राजनितिक आग कब शांत होगी ..??
ReplyDeleteकम से कम भारत में ये बाह्य से अधिक आंतरिक सच्चायी बन गई है
ReplyDeleteइस आतंक पिपासा के लिए दोषी कौन? शर्मनाक हम कहते हें और हमारे बीच पलने वाले ही इसको हवा देते हें. उनमें मानव होने के लक्षण ही नहीं होते हें. वे दानव होते हें और नर रक्त पिपासु उन्हें ही कहते हें.
ReplyDeleteभई बहुत कैड़ी हिन्दी लिख देते हो...
ReplyDeleteअसल गीत ।
Deleteयज्ञ की सफलता , असफलता निरंतर चलती है
ReplyDeleteइन हालातों को देखकर मन क्षुब्ध हो जाता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मुझे तो पहले लगा कि कहीं दिनकर की कुरुक्षेत्र का उद्धरण तो नहीं पढ़ रहा... हिंदी कविता से खत्म होती गेयता और अनुशासन आपकी कविता में प्रतिष्ठित है... देश एक गंभीर दौर से गुजर रहा है... काश हम समझ सकते...
ReplyDeleteकल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बर्बादियों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया है.
ReplyDeleteबेहद दुखद स्थिति दिखाई दे रही है.
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteऔर चढ़े कितनी आहुतियाँ , और कितनी आतंक पिपासा !
ReplyDeleteघर के सदस्य जब आपस में ही एक दूसरे को मार काटने पर उतारू हो ,तो उपाय क्या !!
कोई रुक कर हल सोचना नहीं चाहता ,कोने कोने पर अलगाववाद राख में चिंगारी सा दबा पडा है !
विचारणीय रचना ....एक आतंक जो इन्सान के भीतर ही है ,जो इसे बुझदिल बनाये जा रहा है , ,इससे निजात पाए बिना कोई भी समस्या का हल भी नहीं है
ReplyDelete'सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती ......ऊसर बीज बये फल वृथा !'
ReplyDeleteनीति-वाक्य यही कहते हैं.
मानवतापूर्ण व्यवहार मानवों के साथ ही उचित है ,जिसमें दानवी पिपासा है उसका दमन ही
एक मात्र रास्ता !
सहमत हूँ!
Deleteयह अबूझ आतंक-पिपासा!!
ReplyDeleteबहुत दुखद घटना है..
ReplyDeleteये आतंक पिपासा ना जाने और कितना
बर्बादी फैलाएगी...
bahut khoob!
ReplyDeleteअंधी है आंतक पिपासा।
ReplyDeleteअब अगले चुनावों मे यही आतंक सेकुलर गैंग को सत्ता तक ले जायेगा !!
ReplyDeleteबहुत दुखदाई है ये आतंक पिपासा घटने के बजाय बढती ही जा रही है वर्ल्ड ट्रेड की घटना को बिम्ब बना कर बहुत बढ़िया कविता का सृजन किया है वो कविता जिसका एक एक शब्द प्रश्न पूछ रहा है ये आतंक पिपासा क्यूँ और कब तक बहुत खूब दिल को छू गई रचना
ReplyDeleteबहुत खूब प्रवीणजी..जाने कब इस मौत के तांडव का अंत होगा!!!!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
शर्मनाक और दर्दनाक स्थिति है .... कठोर नियम और उनका कठोरता से पालन हो तभी शायद यह पिपासा शांत हो पाये ...
ReplyDeleteSeptember 11 aankho ke saamne se gujar gaya....
ReplyDeleteखुलकर खेल ,देख तमाशा ,
ReplyDeleteनहीं ये अफवाह ,है ये हताशा ,
लोकतंत्र फिर भी प्रत्याशा ,
काम न आई कोई भाषा .
"यह कैसी आतंक पिपासा "हताशा से पैदा हुई रचना है आज हर संवेदन शील प्राणि हालातों को देख हताश निराश है .
दुखद और अफसोसजनक...
ReplyDeleteपता नहीं क्या हो गया मानव को.ऐसी ही हो गई है आतंक पिपासा.
ReplyDeleteआज की इस हताशा पूर्ण
ReplyDelete"आतंक पिपासा "को समर्पित दो पंक्तियाँ -
न जाने किस तरह तो रात भर ,छप्पर बनातें हैं ,सवेरे ही सवेरे आंधियां फिर लौट आतीं हैं .....अफवाह भाई साहब बिना पंख सिर पैरों का ऐसा पंछी है जो ऊंचा और ऊंचा उड़ता ही जाता है ,अंधेर नगरी ,चौपट राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा ...इसे भी रुला जा ,उसे भी रुलाजा .....
.....इसीलिए कहतें हैं न "अफवाहों के पैर नहीं होते ,चोरों की तरह होती है अफवाह ...."
ReplyDeleteहर दिन, महाभारत धधकता यहां
ReplyDeleteबिसात नई-नई, बिछाते शकुनि
हर दिन नग्न होती द्रोपदी
विद्वेषों की मदिरा कब रीतेगी---
माना है घनघोर निराशा
ReplyDeleteहै छाया चहु ओर कुहासा
फिर भी साथी छोड़ न देना हाथ से आशा-डोर.
कदम बढ़ाना , हार न जाना, एक दिन होगी भोर.
और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,...
ReplyDeleteइंसान कब बदल गया .. उसने क्या रूप इख्तियार कर लिया ... पता ही नहीं चल पाया ...