18.8.12

यह कैसी आतंक पिपासा

यज्ञ क्षेत्र यह विश्व समूचा, होम बने उड़ते विमान जब,
विस्मय सबकी ही आँखों में, देखा उनको मँडराते नभ।
मूर्त रूप दानवता बनकर, जीवन के सब नियम भुलाकर,
तने खड़े गगनोन्मुख, उन पर टकराये थे नभ से आकर।

ध्वंस बिछा, ज्वालायें उठतीं,
चीखें अट्टाहस में छिपतीं,
कहाँ श्रेष्ठता, दिग्भ्रम फैला,
सिसके वातावरण विषैला,
क्या अलब्ध है, क्या पाना है,
मृत-देहों ने क्या जाना है,
मन की आग नहीं बुझती है,
धधक रही, रह रह बढ़ती है।

और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,
इतने नरमुण्डों को पाकर, यह ज्वाला बढ़ती ही जाती।


54 comments:

  1. ऐसी ही आतंक पिपासा.

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  2. शायद सौम्यता के घर की ओर,आतंक का जाना आसान होता है ,निश्चलता,स्वयं की भांति उसे देखती है / विवेक ,संयम खोया हुआ दर्शन ,मर्यादा व शांति को कायरता व कुंठा समझता है /विध्वंश को विजयता का प्रतिरूप समझ बैठता है ,पश्चाताप के भाव तो तब आते हैं जब सब कुछ खो चूका होता है ........

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  3. यह कैसी आतंक पिपासा ,जिसे कहें सेकुलर जिज्ञासा ,........अफवाहें फैलाना ,है किसके मन की अभिलाषा ,......उत्तर पूरब के सब भागे ,पूर्ण हुई किसकी प्रत्याशा ........बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति ...
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
    गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?

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  4. यह कैसी आतंक पिपासा ,सिलिकान वैली में है हताशा .....जिसे कहें सेकुलर जिज्ञासा ,........अफवाहें फैलाना ,है किसके मन की अभिलाषा ,......उत्तर पूरब के सब भागे ,पूर्ण हुई किसकी प्रत्याशा ........बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति ...
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
    गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?

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  5. राजनीति से ऊपर उठकर मजबूती से और बहुत कड़े क़दमों से इसका विरोध और समाधान करने की आवश्यकता है | सबकुछ अच्छा खासा चल रहा होता है ,अचानक से 'क्लाउड बर्स्टिंग' जैसी घटना घटती है और सबको विह्वल कर जाती है | यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है | २०१४ के चुनाव नजदीक आते ही वैमनस्य , कलह , भड़काऊ बयान , प्रायोजित दंगों के लिए हमें तैयार रहना चाहिए | पता नहीं क्यों ,जो बाते आम आदमी भी जानता है , वह सरकारें क्यों नहीं समझती |

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  6. कवि हल सुझाये -कविता अधूरी है ......

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    1. पिछले ३ दिनों से बंगलोर स्टेशन से अभी तक जा चुके ३० हजार पूर्वोत्तर के नागरिकों की आँखों में हल ढूढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ...

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  7. यह आतंक पिपासा .....मनुष्यता के लिए कलंक है ..हर दिन ख़त्म कर रहा है ...मनुष्य को मनुष्य ...!

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  8. मनुष्यता पर कलंक ही है ये पिपासा . इसका निदान समझ में नहीं आता.

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  9. क्या हल इस इस आतंक पिपासा का...

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  10. आतंक और राजनीति का 'मिक्स-अप' हो रहा है आजकल...| हमारी राजनीति ही आतंक फैला रही है.कुछेक घटनाएँ तो झेली जा सकती हैं पर जब इनके पीछे साजिश हो तो...?

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  11. प्रखर अभिव्यक्ति………

    क्या अलब्ध है, क्या पाना है,
    मृत-देहों ने क्या जाना है,

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  12. सुरसा समान.. आतंक पिपासा..प्रभावी रचना..

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  13. साथ साथ हम हंसना सीखें
    वसुधा को गंगा से सींचें!
    दूर भगे, राक्षसी पिपासा !
    पूरी हो,मन की अभिलाषा!
    पूरब पच्छिम उत्तर दक्षिण,हिंदू मुस्लिम की परिभाषा !
    फक्कड मन पहचान न पाए,भेदभाव रंजिश की भाषा!

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    1. ....कवि की इसी पीर में आशा ।

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  14. heart wrenching lines..
    as I always say.. superbly written :)

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  15. धूल धूसरित जीवन आशा,
    हर कोने में होय तमाशा
    मानव की यह काया कैसी
    ब्रह्म-पुत्र में गले बताशा ||
    कावेरी में रणभेरी सुन -
    ढोल नगाड़े मारू तासा |
    गंगा यमुना में भी बढती-
    घोर निराशा परम हताशा |
    आग लगाकर लोग तापते-
    ऐसी ही है रक्त पिपासा ||

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  16. हमारी मानवीय सोच और व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगाती ये आतंक पिपासा.....

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  17. दर्दनाक और शर्मनाक.है ये आतंक पिपासा.

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  18. और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,
    इतने नरमुण्डों को पाकर, यह ज्वाला बढ़ती ही जाती।

    आखिर हमारी अमानवीय शोच का अंत क्या होगा,,,,
    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,


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  19. उफ़ ...ये राजनितिक आग कब शांत होगी ..??

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  20. कम से कम भारत में ये बाह्य से अधिक आंतरिक सच्चायी बन गई है

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  21. इस आतंक पिपासा के लिए दोषी कौन? शर्मनाक हम कहते हें और हमारे बीच पलने वाले ही इसको हवा देते हें. उनमें मानव होने के लक्षण ही नहीं होते हें. वे दानव होते हें और नर रक्त पिपासु उन्हें ही कहते हें.

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  22. भई बहुत कैड़ी हि‍न्‍दी लि‍ख देते हो...

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  23. यज्ञ की सफलता , असफलता निरंतर चलती है

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  24. इन हालातों को देखकर मन क्षुब्‍ध हो जाता है ...

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  26. मुझे तो पहले लगा कि कहीं दिनकर की कुरुक्षेत्र का उद्धरण तो नहीं पढ़ रहा... हिंदी कविता से खत्म होती गेयता और अनुशासन आपकी कविता में प्रतिष्ठित है... देश एक गंभीर दौर से गुजर रहा है... काश हम समझ सकते...

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  27. कल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  28. बर्बादियों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया है.
    बेहद दुखद स्थिति दिखाई दे रही है.

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  29. !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  30. और चढ़े कितनी आहुतियाँ , और कितनी आतंक पिपासा !
    घर के सदस्य जब आपस में ही एक दूसरे को मार काटने पर उतारू हो ,तो उपाय क्या !!
    कोई रुक कर हल सोचना नहीं चाहता ,कोने कोने पर अलगाववाद राख में चिंगारी सा दबा पडा है !

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  31. विचारणीय रचना ....एक आतंक जो इन्सान के भीतर ही है ,जो इसे बुझदिल बनाये जा रहा है , ,इससे निजात पाए बिना कोई भी समस्या का हल भी नहीं है

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  32. 'सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती ......ऊसर बीज बये फल वृथा !'
    नीति-वाक्य यही कहते हैं.
    मानवतापूर्ण व्यवहार मानवों के साथ ही उचित है ,जिसमें दानवी पिपासा है उसका दमन ही
    एक मात्र रास्ता !

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  33. बहुत दुखद घटना है..
    ये आतंक पिपासा ना जाने और कितना
    बर्बादी फैलाएगी...

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  34. अंधी है आंतक पिपासा।

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  35. अब अगले चुनावों मे यही आतंक सेकुलर गैंग को सत्ता तक ले जायेगा !!

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  36. बहुत दुखदाई है ये आतंक पिपासा घटने के बजाय बढती ही जा रही है वर्ल्ड ट्रेड की घटना को बिम्ब बना कर बहुत बढ़िया कविता का सृजन किया है वो कविता जिसका एक एक शब्द प्रश्न पूछ रहा है ये आतंक पिपासा क्यूँ और कब तक बहुत खूब दिल को छू गई रचना

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  37. बहुत खूब प्रवीणजी..जाने कब इस मौत के तांडव का अंत होगा!!!!!
    सुंदर प्रस्तुति...

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  38. शर्मनाक और दर्दनाक स्थिति है .... कठोर नियम और उनका कठोरता से पालन हो तभी शायद यह पिपासा शांत हो पाये ...

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  39. September 11 aankho ke saamne se gujar gaya....

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  40. खुलकर खेल ,देख तमाशा ,

    नहीं ये अफवाह ,है ये हताशा ,

    लोकतंत्र फिर भी प्रत्याशा ,

    काम न आई कोई भाषा .

    "यह कैसी आतंक पिपासा "हताशा से पैदा हुई रचना है आज हर संवेदन शील प्राणि हालातों को देख हताश निराश है .

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  41. दुखद और अफसोसजनक...

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  42. पता नहीं क्या हो गया मानव को.ऐसी ही हो गई है आतंक पिपासा.

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  43. आज की इस हताशा पूर्ण
    "आतंक पिपासा "को समर्पित दो पंक्तियाँ -
    न जाने किस तरह तो रात भर ,छप्पर बनातें हैं ,सवेरे ही सवेरे आंधियां फिर लौट आतीं हैं .....अफवाह भाई साहब बिना पंख सिर पैरों का ऐसा पंछी है जो ऊंचा और ऊंचा उड़ता ही जाता है ,अंधेर नगरी ,चौपट राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा ...इसे भी रुला जा ,उसे भी रुलाजा .....

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  44. .....इसीलिए कहतें हैं न "अफवाहों के पैर नहीं होते ,चोरों की तरह होती है अफवाह ...."

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  45. हर दिन, महाभारत धधकता यहां
    बिसात नई-नई, बिछाते शकुनि
    हर दिन नग्न होती द्रोपदी
    विद्वेषों की मदिरा कब रीतेगी---

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  46. माना है घनघोर निराशा
    है छाया चहु ओर कुहासा
    फिर भी साथी छोड़ न देना हाथ से आशा-डोर.
    कदम बढ़ाना , हार न जाना, एक दिन होगी भोर.

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  47. और चढ़ें कितनी आहुतियाँ, यह कैसी आतंक पिपासा,...
    इंसान कब बदल गया .. उसने क्या रूप इख्तियार कर लिया ... पता ही नहीं चल पाया ...

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