आँख खुली हो, फिर भी पथ पर, समुचित चलना न आया,
दीप, शिखा और तेलयुक्त हो, तब भी जलना न आया,
मन भी रह रह अकुलाता हो बँधा व्यथा के छोरों में,
आन्दोलित हो, अवसानों का कारण ढूढ़े औरों में,
पर अनुभव के सोपानों में जितना चढ़ता, बढ़ता हूँ,
अपने मन से निष्कर्षों पर प्रतिपल प्रतिक्षण लड़ता हूँ,
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
काँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
दीप, शिखा और तेलयुक्त हो, तब भी जलना न आया,
मन भी रह रह अकुलाता हो बँधा व्यथा के छोरों में,
आन्दोलित हो, अवसानों का कारण ढूढ़े औरों में,
पर अनुभव के सोपानों में जितना चढ़ता, बढ़ता हूँ,
अपने मन से निष्कर्षों पर प्रतिपल प्रतिक्षण लड़ता हूँ,
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
काँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
काँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही...!
मन भी रह रह अकुलाता हो बँधा व्यथा के छोरों में,
ReplyDeleteआन्दोलित हो, अवसानों का कारण ढूढ़े औरों में,
होता अक्सर यही है..... कुछ ही पंक्तियाँ समेटा गहरा जीवन दर्शन, सच कहा आपने,
काँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
*पंक्तियों में
ReplyDeleteक्या बात है ! इन सरल पंक्तियों में आत्मनिरीक्षण ,आत्मनुराग ,आत्मविश्लेषण की उर्मियाँ तो हैं ही स्वीकारोक्ति का भाव भी संचरित है , जो काव्य को सुखद व सार्थक मंतव्य देता है ... शुभकामनाये पाण्डेय जी /
ReplyDeleteआत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन की सुन्दर अनुभूति
ReplyDeleteकांटे पग में , पीड़ा अपनी , क्यों दोष दूँ विधाता को !
ReplyDeleteआत्मावलोकन में जब यह समझ आ जाती है , जीवन सरल हो जाता है !
उत्कृष्ट रचना !
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
सार्थक कविता ....
दृढ़ता से जीवन जीने का सूत्र ....!!
गहनता के भाव
ReplyDeletePraveen, you do touch the core with your pen...what you come up with and share with us reminds me of a quote by Buddha - "Three things cannot be long hidden, The Sun, The moon and The Truth". Thank you and respect!!
ReplyDeleteआज तो इस मोहक रचना में आनंद आ गया मगर.....
ReplyDeleteजैसी करनी, वैसी भरनी !
पंडित ,खूब सुनाते आये !
इन नन्हे हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
दर्द दिलाये,क्यों बच्चे को
चित्र बिगाड़ें,बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !
सरल भाषा में शानदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअपना जीवन लेखक बनकर लिखना भी बहुत अच्छी प्रतिभा है जो बहुत से लोग नहीं कर पाते,
ReplyDeleteजीवन में कोशिश की तो हमेशा आगे ही बड़ेंगे, और विधाता को दोष देना ही नहीं चाहिये ।
कर्ता बने हम ... खुद ही मार्ग बनाते हैं , तो ईश्वर क्यूँ कटघरे में
ReplyDeleteगहन भाव लिए सार्थक पंक्तियां ... आभार
ReplyDelete'अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,'
ReplyDeleteयह पंक्ति पढञ कर 'प्रसाद'जी की आत्मकथात्मक कविता याद आ गई !
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?,,,,,,,,,,
RESENT POST ,,,, फुहार....: प्यार हो गया है ,,,,,,
बहुत सुन्दर लिखा प्रवीण जी आप ने ... कभी कभी आत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन करना बहुत आवश्यक होता है..
ReplyDeleteजीवन भी एक प्रशिक्षण है . बहुत कुछ सिखा जाता है .
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
उत्कृष्ट रचना है आत्मा लोचन करती .स्वस्थ व्यक्ति यही करता है और अस्वस्थ और मनो -रोगी दोषारोपण का इस्तेमाल एक डिफेन्स मिकेनिज्म के बतौर करता है .विधाता को भी नहीं छोड़ता .आकृष्ट करता यह गीत और इसकी गेयता अर्थ और भाव सभी कुछ सारा ताना बाना सीधा सपाट फिर भी बला का आकर्षण लिए .
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
वाह...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
बढ़िया.....
बस सोच बदल लें तो सब अच्छा...!!
अपने मन से निष्कर्षों पर प्रतिपल प्रतिक्षण लड़ता हूँ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .... लेकिन और दो छंद ज्यादा की आपसे उम्मीद थी :)
ReplyDeleteअपना संघर्ष, अपना पुरूषार्थ!!
ReplyDeleteजीवन को कविता के माध्यम से ज़्यादा सही समझा जा सकता है |
ReplyDelete...मगर जीना तो यथार्थ के साथ ही है !
अति सुँदर भाव .अपने कष्टों के लिए दुसरे पर आरोप लगाकर हम अपनी गलतियों को छुपाते है
ReplyDeleteअपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
...बहुत ही सुन्दर सन्देश
आखिर मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं ही तो होता है
आभार
☺
ReplyDeleteविधाता को दोष क्यों दूं ? बड़ा ही साधारण सा उत्तर है - philosophy नहीं - fact है ... दोष उसके सर मढ़ देने से उसे तो कोई दुःख नहीं होता, किन्तु हमारा दुःख कम अवश्य हो जाता है | punching bag की तर्ज़ पर ..... परन्तु हम इतने बड़े हो गए, इतने स्वनिर्भर, कि विधाता से मांगने में, लड़ने में, झगड़ने में अपने स्वाभिमान, अपने व्यक्तित्व की हार दिखने लगती है हमें :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अप्रतिम रचना जबरदस्त भाव
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति .....सच में क्योँ दोष दिया जाये बिधाता को .....!
ReplyDeleteजय हो पार्थ ,...ई कवि पांडे को बांच के मन प्रफ़ुल्लित हो गया आचार्य । का बात है जी , बहुत गहरे उतर गए पार्थ .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा प्रवीण जी आप ने
ReplyDeleteहालाकि कविता छोटी है पर अपने में विस्तृत भाव समाहित किए हुए है। जीवन में हम अपने पराजय आ असफलता के दोष विधाता को देकर कोसते रहते हैं। इस पृष्ठ भूमि में आपकी कविता एक सकारात्मक दिशा देती है।
ReplyDeleteविधाता को दोष न देंगे तो किसे दोष देंगे हम? वही तो है हर पीड़ा का, हर दुःख का जिम्मेदार| हाँ, सुख, जीत आनंद जो भी मिला उसका श्रेय खुद के चातुर, बल, रूप को दे देंगे|
ReplyDeleteविधाता को क्यों दोष दे ....दोष तो हम मानुष का ही हैं ...हमारी ही सोच का हैं जो हमें दुखी रखती हैं ..
ReplyDeleteपग में कांटे हों, पीड़ा हो तो विधाता को पुकारना ही पड़ता है। हाँ यह कहा जा सकता है...
ReplyDeleteजैसी करनी वैसी भरनी क्यों दूँ दोष विधाता को?
काँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
ReplyDeleteKya baat kah dee.....waise mai swayam to apne aapko hee dosh detee hun!
एक अप्रतिम मुकान है यह गीत आपके लेखन का .डिजिटल सशक्त गीत .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए
Awesome!
ReplyDeleteIn the time of hardships its always easy to blame someone else n God is the easiest target..
ReplyDeletesuperbly written..
क्यों दे दोष विधाता को,
ReplyDeleteगर इतना मन में ज्ञान है,
सब कुछ निर्भर स्वयं पर,
गर इतना खुद को भान है ,
निश्चित है अब लक्ष्य दूर नहीं,
और यही खुद का खुद से सम्मान है |
बहूत हि सुंदर सार्थक रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन :-)
अपनी करनी का दोष विधाता पर क्यूँ थोपा जाए आपका सोच बिलकुल सही है |बहुत सार्थक कविता |
ReplyDeleteआशा
कल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आप के ब्लोग का मैं नियमित पाठक हूँ । आपके लिखे हुए लेख ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे मेरे ही मन की बातों को ही सबके सामने रख दी गई हो । हालांकि तकनीकी विषयों पर लिखे लेख आपके ज्ञान की सिद्धहस्तता को स्वयं ही बयान करते हैं । वैसे तो मैं अनेकों ब्लोग्ग का नियमित पाठक हूं लेकिन जबसे आप के ब्लोग के बारे में जानकारी हुई है निश्चित रुप से आप के लेखों का इन्तजार रहता है । मैं एक साधारण सा इन्सान हूं जो अपने काम के साथ-साथ इस तरह के शगल में भी शेष बचे समय को बिता कर अपने मन को अद्यतन किये रखने की खुशफहमी पाले रखता हूं ।
ReplyDeleteखैर आज तक मैं आप के ब्लोग पर टिप्प्णी नहीं कर पाने के बारे में केवल यह कह सकता हूं कि मैं इस काबिल नहीं था कि लिख पाता । अभी कुछ दिन पहले ही मुझे ऑफ लाइन होकर लिखने का तकनीकी ज्ञान मिला है जिसका मैं आज आप के समक्ष प्रदर्शन कर रहा हूं । मेरी बातों से पता नहीं आप को कैसा लगेगा परन्तु आप के लिखे लेख मन को बहुत भाते हैं । इसे आप अपने तकनीकी ज्ञान और भावनाओं से सदानीरा नदी की तरह सबके मन की प्यास व क्षुधा को शांत करते रहें यही मेरे मन की कामना है ।
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को? ...
वाह ... गेयता लिए ... बहुत ही मधुर गीत ... विधाता तो स्वयं पथ संचालक है उसको दोष देना ठीक नहीं ...
क्या करें मानव प्रवर्ती ही ऐसी है कि हमे हमेशा से अपना घड़ा दूसरे के सर फोड़ने कि आदत जो पड़ी है खासकर ईश्वर के सर... सार्थक रचना
ReplyDeleteसर जी ..निर्णय तो स्वयं करने पड़ते है ...विधाता तो सिर्फ आशा है !
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमानव का परिश्रम और उसका प्रयत्न,जिसके आगे थक हार जाता है,उसको वह भगवान मान लेता है। उसे ही जगद्नियंता मानकर अपना भाग्यविधाता मान लेता है,तो दोष किसे देगा।
ReplyDeleteमानव का परिश्रम और उसका प्रयत्न,जिसके आगे थक हार जाता है,उसको वह भगवान मान लेता है। उसे ही जगद्नियंता मानकर अपना भाग्यविधाता मान लेता है,तो दोष किसे देगा। परछाईं
ReplyDeletewww.parchhayin.blogspot.com
सबसे आसान जो होता है 'उसको' दोष देना ... और 'वो' बुरा भी नहीं मानता !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
अपना जीवन, लेखक बनकर लिखता हूँ निज गाथा को,
ReplyDeleteकाँटे पग में, पीड़ा अपनी, क्यों दूँ दोष विधाता को?
नेता तो एक दूसरे को ही विधाता मान दोषारोपण कर लेतें हैं .एक निश्चित मुकाम हासिल किया है आपके अर्थ पूर्ण गीतों ने जिनमे जीवन की रागात्मकता भी है स्थितियों का विश्लेषण भी .मनो -विज्ञान भी .
सुन्दर प्रस्तुति...उम्दा!
ReplyDeleteशुभ प्रभात,....
ReplyDeleteशानदार,
जानदार,
मानदार.....
प्रवीण पाण्डेय..
और उनकी ये रचना
सच में
सच है। अपना कर्म-फल तो हमें ही भुगतना होगा।
ReplyDeleteपर अनुभव के सोपानों में जितना चढ़ता, बढ़ता हूँ,
ReplyDeleteअपने मन से निष्कर्षों पर प्रतिपल प्रतिक्षण लड़ता हूँ,
...बहुत खूब....बहुत सशक्त अभिव्यक्ति....
Why indeed! beautiful lines :)
ReplyDeleteपर अनुभव के सोपानों में जितना चढ़ता, बढ़ता हूँ,
ReplyDeleteअपने मन से निष्कर्षों पर प्रतिपल प्रतिक्षण लड़ता हूँ,
यह द्वन्द ही व्यक्ति को आगे बढाता है .
गहन चिंतन, आत्मावलोकन का जीवन दर्शन.
ReplyDeleteक्यूं दूं दोष विधाता को । पर अक्सर हम यही करते हैं किस्मत या ईश्वर को दोष देते हैं ।
ReplyDeleteगहरे भाव लिये कविता ।
Bahut sunder
ReplyDeleteये तो इंसानी फिदरत है ..गहरे भाव लिए बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteस्वीकार या समर्पण..सुन्दर रचना..
ReplyDelete