सबसे पहले एक मित्र का फोन आया, कहा कि यार अच्छा लिखते थे, बन्द काहे कर दिया? हम सन्न, हम सोचे बैठे थे कि ईमेल के माध्यम से किये सब्सक्रिप्शन में कुछ गड़बड़ हुयी होगी, उन्हें वह सुधारने की सलाह दे बैठे। बाद में पता लगा कि वे फेसबुक से ही हमें पढ़ लेते थे, ईमेल खोलने में आलस्य लगता था उन्हें। कहीं हम उन्हें तकनीक में अनाड़ी न समझ बैठें, इस डर से ईमेल की सलाह पर हामी तो भर गये पर उस पर अमल नहीं किया।
घर गये तो वहाँ पर भी दो परिचित मिले, घूम फिर कर बात अभिरुचियों की आयी। उन्होने कहा कि लेखन अच्छी अभिरुचि है और उसके बाद दो तीन पुरानी पोस्टों पर चर्चा करने लगे। हमारा माथा ठनका, उसके बाद भी बहुत कुछ लिखा था, उसके विषय क्यों नहीं उठाये, मर्यादावश उनकी पसन्द पर ही चर्चा को सीमित रखा। बाद में ज्ञात हुआ कि उन तक भी फीड फेसबुक से ही पहुँचती थी।
कुछ दिन पहले बंगलोर में रहने वाले और मेरे विद्यालय में पढ़े लगभग ४० लोगों का एक मिलन आयोजित किया था अपने घर में। पता लगा कि उसमें से बहुत से लोग ऐसे थे जो ब्लॉगजगत के सक्रिय पाठक थे, लिखते नहीं थे, टिप्पणी भी नहीं करते थे, पर पोस्टें कोई नहीं छोड़ते थे। उनमें से कुछ आकर कहने लगे कि भैया, जब व्यस्तता थोड़ी कम हो जाये तो लेखन पुनः आरम्भ कर दीजियेगा, आपका लिखा कुछ अपना जैसा लगता है। स्नेहिल प्रशंसा में लजा जाना बनता था, सो लजा गये, पर हमें यह हजम नहीं हुआ कि हमने लेखन बन्द कर दिया है। अतिथियों को यह कहना कि वे गलत हैं, यह तुरन्त खायी हुयी खीर के स्वाद को कसैला करने के लिये पर्याप्त था, अतः उन्हें नहीं टोका।
इन तीन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि पाठकों का एक वर्ग जो विशुद्ध पाठकीय रस के लिये पढ़ता है, पिछले ३ महीनों से हमें पढ़ नहीं पा रहा है। टिप्पणी करने वाले सुधीजन और ब्लॉगों के मालिक अभी भी जुड़े हुये थे, ईमेल या गूगल रीडर के माध्यम से। शेष लोग फेसबुक में प्राप्त लिंक के सहारे पढ़ते थे, हमारे फेसबुक से मुँह मोड़ लेने के कारण वे न चाहते हुये भी हमसे मुँह मोड़ चुके थे। समझ मे तब स्पष्ट आया कि फेसबुक अकेले ही १०० के लगभग पाठक निगल चुका है।
क्या करें तब, अपने आनन्द में बैठे रहना एक उपाय था। चिन्तन के जिस सुलझे हुये स्वरूप में फेसबुक को छोड़ा था, उसे पुनः स्वीकार करने से अहम पर आँच आने का खतरा था। सहेजे समय को बलिदान कर पुनः पहुँच बढ़ाने के लिये गँवा देना हर दृष्टि से अटपटा था। बहुत से ऐसे प्रश्न थे, जिसके निष्कर्ष हानि और लाभ के रूप में ज्ञात तो थे पर किसी एक ओर बैठ जाने की स्पष्टता का आभाव चिन्तन में छाया हुआ था।
निर्णय इसका करना था कि मेरे हठ की शक्ति अधिक है या मुझ पर पाठकों के अधिकार की तीव्रता। निर्णय इसका करना था कि लेखन जो स्वान्तः सुखाय होता था, वह अपना स्वरूप रख पायेगा या पाठकों के अनुरूप विवश हो जायेगा। निर्णय इसका करना था कि पूर्व निर्णयों का मान रखा जाये या अतिरिक्त तथ्य जान कर निर्णय संशोधित किये जायें। निर्णय इसका करना था कि त्यक्त को पुनः अपनाना था या एकान्त में आत्ममुग्धता की वंशी बजाना था।
क्या कोई और तरीका है, ब्लॉग सब तक पहुँचाने का? क्या ब्लॉग के साथ सारी सामाजिकता पुनः ओढ़नी पड़ेगी? प्रश्न किसी विस्तृत आकाश में न ले जाकर पुनः फेसबुक की ओर वापस लिये जा रहा था। जुकरबर्गजी, आप नजरअन्दाज नहीं किये जा सकते हैं, हमारे परिचित और पाठकगण आपके माध्यम से ही मुझे जानना चाहते हैं। आपके बारे में मेरे पूर्व विचार न भी बदलें पर अपनों के सम्पर्क में बने रहने के लिये मुझे आपकी छत में रहने से कोई परहेज नहीं है।
पर इस बार ट्विटर की चूँ चूँ भी साथ में रहेगी हमारे। जब दिखना है तो ढंग से और हर रंग से दिखा जायेगा।
हम भी आजकल कुछ ऐसे ही सवालों से जूझ रहे हैं. फेसबुक पर होना मेरे लिए सिर्फ अपने कुछ प्रिय दोस्तों के लिए था. आजकल वहाँ से फरार हैं कि ये कुछ दोस्तों के चक्कर में काफी वक्त न चाहते हुए भी जाया हो जाता था उधर. हमें मोडरेशन में कुछ काम करना तो आता नहीं है. उसपर दिन भर का लिखना पढ़ना चूँकि लैपटॉप पर होता है तो अनचाहे भी फेसबुक का टैब खुला रहता था. लगा कि उधर जितना वक्त देते हैं उसका हासिल कुछ नहीं है...तो इधर एक महीने से हमने भी फेसबुक बंद कर रखा है.
ReplyDeleteफेसबुक बंद करने से मानसिक शांति मिली है...हर हमेशा कुछ अपडेट करने की खिटपिट नहीं है. फेसबुक के लिए सामने बैठे दोस्तों को इग्नोर नहीं किया है.
फेसबुक फ्रेंडलिस्ट भी बहुत हद तक सीमित है...जिन लोगों को पर्सनली जानती हूँ उनके आलावा मुश्किल से कोई और हैं लिस्ट में...तो मेरे लिए फेसबुक कभी मेरे पाठकों से जुड़ने का जरिया नहीं बल्कि दोस्तों से जुड़े रहने का माध्यम मात्र था.
सोच रही हूँ कि क्या करूं...फिलहाल तो वापस आने का मूड नहीं है...पर जिस दिन आने का मूड होगा...एक बार पुनः आपकी पोस्ट जांच लूंगी. शुक्रिया.
फेसबुक पर वो लोग भी मौजूद होते हैं जिन्हें ब्लॉग से कोई वास्ता नहीं है. ऐसे में वह बड़ा मंच है. उसे नकारना मुश्किल है.
ReplyDeleteलौट के ब्लॉगर फ़ेसबुक पर आये। :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट |
ReplyDeleteकल जब मेरे मेल बॉक्स में संदेश आया कि PraveenPandey following You On Tweeter तो मैं समझा कि कोई और होंगे क्योंकि आपने फेसबुक को भी अलविदा कहा था।
ReplyDeleteमैंने भी ट्वीटर अकाउंट में जाकर देखा नहीं कि आप ही हैं या कोई और क्योंकि मुझे भी ट्वीटर पर गये कई महीने हो गये। पासवर्ड तक भूल चुका हूँ :)
सो अब ये पोस्ट देखकर समझा कि आप ही थे :)
बहरहाल सोशल साइटों पर जहां तक समय प्रबंधन की बात है, लगभग सभी सोशल साइटें अपने आप में खूबी लिये हैं लेकिन उनके इस्तेमाल में थोड़ी सजगता रहे तो हम इन सुविधाओं के लती होने से बच जाते हैं। समय को अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकते हैं।
हां, बीच-बीच में ऐसे क्रैपर्स से भी बचाव जरूरी है जो रात दिन फेसबुक ट्वीटर पर अड्डा गाड़े रहते हैं और वहां से गुजरते बंदे से उम्मीद करते हैं कि आइये आप भी हमारा संग-साथ दिजिए। बैठिये कुछ गुनगुनाइये, क्या बस घर में ही घुसे रहते हैं। ऐसों के लिये एक्चुअल से ज्यादा वर्चुअल दुनिया ज्यादा मायने रखती है :) जाहिर है, शालीनतावश हाय-हैलो करना ही पड़ता है। हाँ वहीं अड्डा जमाने से बचा जाय, थोड़ी सतर्कता बरती जाय तो फेसबुक आदि का अपने उपलब्ध समय के हिसाब से अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है।
फेसबुक ने तो सारी ब्लॉग्गिंग का गणित ही गड़बड़ा दिया भाई साहेब . क्या करे. वो अब एक मजबूरी बनी हुई है ,, वरना फेसबुक से कोई शान्ति नहीं है ..
ReplyDeleteवैचारिक पुनर्वास होते रहना ,भी परिमार्जन व विकास की कड़ियाँ हैं ,ऐसा नहींकी विचारों का त्याजन हो गया पाट बदलते रहते हैं दरिया तो वही है , वही मृदु धारा , सरल, सर्पिला अविरल प्रवाह .....सही निर्णय मिस्टर पांडे जी ....,
ReplyDeleteफेसबुक और ट्विटर अपने स्थान पर हैं और ब्लागिंग अपने स्थान पर। जिसे लेखन से प्रेम है उस के लिए वास्तविक स्थान ब्लागिंग ही है।
ReplyDelete...मैंने भी कई बार फेसबुक को छोड़ने की कोशिश की थी पर लगता है इसे छोड़ने के बजाय थोड़ा अनुशासन से प्रयोग किया जाये तो यह बिलकुल अलग आनंद देता है.जो काम ब्लॉग करता है,वह यह नहीं करता और जो काम फेसबुक करता है,ब्लॉग नहीं कर सकता.दोनों में कोई प्रतियोगिता नहीं है,एक-दूसरे के पूरक हैं.
ReplyDeleteट्विटर की अपनी अलग पहचान और उपयोगिता है,मैं तो फिलहाल तीनों के मजे ले रहा हूँ,आपका भी स्वागत है !
फेसबुक पर ज्यादा एक्टिव मैं भी नहीं हूँ... पहले से ही सोच रखा है कि पूरी की पूरी सामाजिकता ओढने के बजाय इसे आपस में जुड़े रहने का माध्यम बनाकर ही रखा जाय .....
ReplyDeleteसमय प्रबंधन पर सजग रहते हुए,फेसबुक सदुपयोग बुरा भी नहीं है।
ReplyDelete... लगाम अपने हाथ हो तो घोड़ा नहीं बिदक सकता ☺☺
ReplyDeleteइसमें क्या दो राय है कि फेसबुक एक अच्छा संकलक भी है -अब देखिये हम आज तो वही से यहाँ सीधे आ पहुंचे :)
ReplyDeleteफेसबुक के कितने ही उपयोग अभी अनुदघाटित और अनजान से हैं!
पाठकों का हित सर्वोपरि है, आपके निर्णय का स्वागत है :)
ReplyDeleteफेसबुक के अपने फायदे हैं |चक्षु खुले रखें.....वही ग्रहण करें जो करना चाह्ते हों|संतुलन और नियम से चलना सर्वदा लाभप्रद रहता है ...!
ReplyDeleteबेशक आप फेसबुक पर समय व्यतीत ना करे पर अपने ब्लॉग की फीड फेसबुक तक पहुँचाने का उपक्रम सुचारू रूप से जारी रखें ताकि फेसबुक पर मौजूद पाठकों को आपका लिखा मिलता रहे|
ReplyDeleteफेसबुक भी पाठकों तक पहुँचने का जरिया बने तो सामाजिक मेलमिलाप के अतिरिक्त एक लाभ और हुआ ...यह सही है कि संतुलन आवशयक है !
ReplyDeleteसचमुच लेखन आप अपने लिए तो नहीं लिखते, लिखते तो पाठकों के लिए ही हैं और पाठक तक पहुँचाने के लिए आपको हर संभव प्रयास करना ही चाहिए खास कर उन पाठकों के लिए जिसे जिन्हें आपकी पोस्ट का इन्तजार रहता है| इसमें अहम को थोडा सेक्रिफई करना पड़े तो मुझे नहीं लगता कोई हर्ज है वैसे आपका अपना एक नजरिया है..और आप को मेरा राय देना मतलब आँखों वाले को अंधे का रास्ता बताना होगा ......आप जो भी फैसला लेंगे सर्वदा उचित ही लेंगे...
ReplyDeleteतो ये कारण था आपका फेसबुक से दुबारा जुड़ने का :)
ReplyDeleteआपके तरह मैं अपना अकाउंट डिलीट तो नहीं करता
लेकिन कभी कभी दस पन्द्रह दिन तक लोगिन नहीं करता.. ;)
चलिए आप दुबारा आ गए, मुझे अच्छा लगा!!!
स्वयं को पाठक-प्रशंसक सुलभ बनाए रखने का जतन करना ठीक ही है.
ReplyDeleteकुछ फायदे कुछ नुकसान!
ReplyDeleteफेसबुक पर संयम बनाये रखने से समय की बर्बादी नहीं होगी ....अपने पाठकों के लिए लिंक्स तो दे ही सकते हैं ...
ReplyDeleteBLOGVANI KE jaane ke baad facebook se kafi blogs padhne ko mil jaate hai ...shukriyaa waaps aane ke liye
ReplyDeleteलेखन के साथ हर जगह रहें , बाकी सब बकवास है
ReplyDeleteबहुत अच्छा किया ...आपने
ReplyDeleteसही बात है,
ReplyDeleteप्रवीण जी ये फेसबुक और ट्विटर तो ब्लाग के लिए गति अवरोधक हैं।
ब्लोगिंग के लिये फेसबुक,और ट्विटर, अवरोधक है,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
na chahte huye bhee facebook ki andhi me to fas hi gaye hai sab
ReplyDeleteकल 31/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अतिथियों को यह कहना कि वे गलत हैं, यह तुरन्त खायी हुयी खीर के स्वाद को कसैला करने के लिये पर्याप्त था,
ReplyDeleteमुझे भी यहाँ आने में वक्त लगाने का कारण भी यही था .... :)
फेसबुक तो मयखाने की तरह है,रोज रोज वहां जाएंगे तो नशे में वहीं पड़े रहेंगे। और हां ऐसे ऐसे नजारे देखने को मिलते हैं कि लगता है कहां आ गए। हां पांच दस दिन में एक चक्कर लगा लेना चाहिए । रही बात अपनी पोस्ट की तो वह तो आप बिना उस पर जाए भी शेयर कर ही सकते हैं।
ReplyDeleteआज फ़ेसबुक ने ऐसी पैठ बना ली है जिसे इग्नोर नही किया जा सकता………पुन: सक्रिय होने के लिये बधाई।
ReplyDeleteblog ko chod kar anya mein atishyayata varjit hai
ReplyDeleteफेसबुक पर समय नष्ट किये बिना भी पोस्ट को फेसबुक पर डाला जा सकता है .
ReplyDeleteइससे दोनों मकसद पूरे हो जायेंगे . बस पोस्ट के नीचे फेसबुक का लिंक लगा दीजिये .
वाह! बहुत खूब.. स्वागत है फेसबुक और ट्विटर पर फिर से :)
ReplyDeleteबस दुआ करिये की आदत न पड़ जाए :P
पंचों की राय सरमाथे पर पतनाला यहीं गिरेगा .आखिर पाठाकों का एक अपनापन होता है आग्रह भी उसकी अनदेखी आप अपने खतरे पर ही कर सकतें हैं .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से
http://veerubhai1947.blogspot.in/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?
फेसबुक की उपयोगिता अलग है और कामयाब है ! ट्विट्टर समझ नहीं आता ...
ReplyDeleteयही तो हम कब से कह रहे थे..पर आप मानते ही नहीं थे:):). पाठकों की इच्छा , सुविधा सिर माथे होनी चाहिए. जरुरी नहीं आप वहाँ समय बिताएं बस एक लिंक चिपकाने से आपका काम हो जायेगा.
ReplyDeleteबहुत खूब ! स्वागत है फेस बुक पर...
ReplyDeletesirjee networked blogs karke ek app hai, usko activate kar dijiye. jaise hi post likh ke post kariyega khud hi logon ke timeline pe aa jayegi. manually daalne ki zaroorat nahin hai
ReplyDeleteapna apna swad hai..
ReplyDeleteहम तो अभी तक अपने को दूर रख सके है फेसबुक से
ReplyDeleteफेसबुक के मालिक ने हमहिंदुस्तानियों ( खासकर) की बदौलत अरबों खरबों कमाने थे सो इशु लाकर कमा लिये, अब ब्लॉग पर रहिये या फिर फेसबुक पर जाइए उसे क्या फर्क पड़ता है ? :)
ReplyDeleteमैं शुरू से फ़ेसबुक को नहीं जानता था और सच कहूं तो पहले तो बिल्कुल नीरस सा लगता था , मगर फ़िर इसे भी जब एक संचार माध्यम और विचारों के तीव्र संपेषण के साथ तीव्रतम प्रतिक्रिया के एक मंच के रूप में देखना शुरू किया और सच कहूं तो उपयोग करना शुरू कर दिया तो बहुत जल्दी ही ये एहसास हुआ कि ..you love it or you hate it ..but you can't ignore it | आप खुद ही बताइए न कि आपके लिखे , प्रेषित , चस्पाए , किसी भी विषय , वस्तु पर एक मिनट से भी , कई बार तो ये दस सेकेंड से कम समय में होता है , सामने वाले की प्रतिक्रिया चाहे वो पसंद के रूप में ही क्यों न हो , आ जाती है तो इसकी तीव्रता का कोई मुकाबला है भला क्या ? ब्लॉगिंग का अलग फ़लक है और फ़ेसबुक का अलग दोनों को एक दूसरे का प्रतिस्पर्धी न बना कर पूरक बनाया जाए तो कहना ही क्या ...
ReplyDeletekabhi kabhar ek nazar ham bhi dekh lete hain facebook..message to bahut aate hain jaane kya-kya karte hain log...idhar udhar tang kar rakh dete hain ...khair samay bahut hi kam milta hai isliye jab bhi samay milta hai blog hi dikhta hai ...
ReplyDeletebahut badiya chintan se bhari prastuti..
hmmm waise hum to bina facebook ke invitation ke hi aa gaye isme. waise facebook se muh mat modiye. kyunki jo chiz jode rakhe wo to achchi hi hui na.....
ReplyDeleteहम्म...हमारी असफलता का कारण फेसबुक से दूर रहना है!
ReplyDelete'
ReplyDeleteकुछ दिन पहले बंगलोर में रहने वाले और मेरे विद्यालय में पढ़े लगभग ४० लोगों का एक मिलन आयोजित किया था अपने घर में। पता लगा कि उसमें से बहुत से लोग ऐसे थे जो ब्लॉगजगत के सक्रिय पाठक थे, लिखते नहीं थे, टिप्पणी भी नहीं करते थे, पर पोस्टें कोई नहीं छोड़ते थे।'
मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि क्या सभी ब्लॉगरों के ऐसे पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है और अगर हाँ तो कितने और किस परिवेश से? क्या आप के सहकर्मी भी आप के सक्रिय पाठक हैं जैसे ये विधालय के दोस्त
i agree with shika ji ...
ReplyDeleteबहुत पहले आचार्य धर्मेन्द्र का एक कार्यक्रम देखा था जसिमें उन्होंने माईक का उदाहरण दिया था, यही माइक माइकल जैक्सन प्रयोग करता है और वही माईक एक साधू|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteपोस्ट साझा करने के लिए आभार!
हमारा भी लिखना बन्द होने की कगार पर है!
महाराज यहाँ का उसूल है लिखो चाहे न लिखो पर दिखते रहो ... अब मज़े मे दिखते रहिए और लिखते भी ... जय हो पांडे जी !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सब खबरों के बीच एक खुशखबरी – ब्लॉग बुलेटिन
आप सही कह रहे हैं फेस बुक पर लिंक से ही लोग ज्यादा आसानी से पढ़ते हैं और जो अच्छा लिखते हैं आपके जैसे उनके लिए तो पाठक कैसे भी पढेंगे सॉरी देर से पोस्ट देखी कई घंटे इंटरनेट खराब रहा
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी काफी लोग फेसबुक से ही आते हैं...
ReplyDeleteलिखने वाला दिखता भी रहे तो लगता है जैसे पुस्तक के साथ कुंजी भी उपलब्ध है |
ReplyDeleteट्विटर मुझे चलाना नहीं आता फ़ेस बुक का अंदाज बिल्कुल नहीं भाता।
ReplyDeleteइसलिए सिर्फ़ ब्लॉग से रख छोड़ा है नाता
जो आता है सो आता, बस।
फेसबुक..ठीक ही है.. ब्लॉग के काम्पेयारेटिवली कुछ ख़ास नहीं है.. ब्लॉग की बात कुछ अलग है..
ReplyDeleteping.fm अपनाईए, बार बार लोगिन हुए बिना फेसबुक, ट्विटर सहित दसियों सोशल नेटवर्किंग साईट्स में तक अपनी ब्लॉग पोस्ट पहुंचाएं
ReplyDeleteहम भी साईट्स के ट्विटर खातों के पासवर्ड भूल चुके लेकिन पोस्ट बाकायदा जातीं हैं उनमे
ऐसे दसियों जुगाड़ हैं
अब कोई कहे तो हिंदी में इस बारे में लिख ही दें :-)
बेशक फेसबुक और ट्वीटर आपको एक बड़े फलक पर फैला देती है .आप बने रहतें हैं .चिठ्ठे पर लेनदेन ज्यादा है .वन इज तू वन रिलेशन है .
ReplyDeleteफेसबुक की महिमा अपार। कई बार सोचते हैं इस पर समय नष्ट न करें, कोई पोस्ट लिख लें पर एक बार फेसबुक पर गये पता ही नहीं चलता कितना समय लगा आये।
ReplyDeleteवैसे फेसबुक पर पोस्टें तो नेटवर्क्ड ब्लॉग या ping.fm जैसे माध्यमों से स्वचालित रूप से पहुँचायी जा सकती हैं। वैसे हम आपके फेसबुकिया और ट्विटरिया वन लाइनर पढ़ने को उत्सुक हैं।
और हाँ...
ReplyDeleteविश्व भर में
या केवल अपने शहर तक
इंटरनेट पर अपने ब्लॉग के प्रचार हेतु,
मुफ्त विज्ञापन के लिए गूगल द्वारा दिए गए हजारों रूपए का उपयोग भी किया जा सकता है
पांडे जी की अजीब महिमा ............चलिये लौट के फेसबुक पर आये ...........
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं..पाठकों की संख्या बढती रहे...
ReplyDeleteसुबह का भूला....साँझ को घर तो आएगा ही
ReplyDeleteलिखना तो चाहती थी...कुछ और
पर गरिमा का ख्याल आगया
सादर
aapko facebook par dekhkar achha laga.. mere khayal se kuch bhi bura nahin hota, use bura bana diya jaata hai... aapki is post ka link bhi facebook se hi mila.. ;-)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट |
ReplyDeleteइसी प्रवाह के साथ लिखना, और दिखना भी बना रहे...!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
facebook par aur hamari mitra mandali me aapka swagat hai...:)
ReplyDeleteनफ़ा या नुक्सान अभी तय नहीं कर पाया की अकाउंट खोलूँ या नहीं फेसबुक पे ...
ReplyDeleteतमाम टिप्पणियों मे केवल रत्न सिंह शेखावत साहब की ही बात मे दम है आपने इसे समझ लिया । धन्यवाद।
ReplyDeleteI love facebook, more than my blog.
ReplyDeleteमैं भी संगीताजी से पूरी तरह सहमत हूँ.....अपने लिनक्स आप फेसबुक पे डाल दीजिये ...जिससे आपका लेखन सब तक पहुँच सके
ReplyDeleteकुछ लोग तो ऐसे कह रहे हैं -सांझ हुई और लाखों पाए ,लौट के लालू घर को आये ...भाई साहब फेस बुक तो अब जांघिये और बनियानों पर भी आ गया है ,शमीज़ नुमा आधुनिक कमीज़ (सारी )कथित 'टाप'/टॉप पर भी ,बचना फ़िज़ूल है .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteबृहस्पतिवार, 31 मई 2012
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
मैंने तो आपकी पिछली संबंधित पोस्ट पर पहले भी कहा था कि फेसबुक पाठकों तक पहुँचने के लिए सशक्त माध्यम है। उस पर आप अपने समय का सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं ये आप पर निर्भर है।
ReplyDeleteजुकरबर्गजी, आप नजरअन्दाज नहीं किये जा सकते हैं, हमारे परिचित और पाठकगण आपके माध्यम से ही मुझे जानना चाहते हैं। आपके बारे में मेरे पूर्व विचार न भी बदलें पर अपनों के सम्पर्क में बने रहने के लिये मुझे आपकी छत में रहने से कोई परहेज नहीं है।
ReplyDeleteपर इस बार ट्विटर की चूँ चूँ भी साथ में रहेगी हमारे। जब दिखना है तो ढंग से और हर रंग से दिखा जायेगा।
हम तो आपको ब्लॉग के सहारे ही पढ लेते हैं । चलिये कशमकश तो खत्म हुई ।
लेखन से प्रेम है तो ब्लोगिंग बेजोड़ है.
ReplyDeleteप्रवीण जी फेसबुक और ट्विटर तो ब्लाग के लिए गति अवरोधक नही बल्कि सहायक है..समय की कमी हो अलग बात है..जैसे कि मेरे पास ......
ReplyDeleteतभी हम सोंचे कि हमें काहे आपने फेस बुक पर जोड़ लिए ...अचानक से .....खेर जो हुआ अच्छा ही हैं ..आप लिखते ही अच्छा हैं ...
ReplyDeleteFacebook aur Twitter kii ankhon se tulna achhi lagi.....aap Search Engine Optimization par bhi thoda samay de sakte hain.
ReplyDelete:) यार अच्छा लिखते थे, बन्द काहे कर दिया? :)
ReplyDeleteमित्रों ,
ReplyDeleteसादर नमस्कार .
वेब मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य - इस विषय पे एक पुस्तक प्रकाशित करने क़ी योजना पे मैं , भाई रविन्द्र प्रभात और शैलेश भारतवासी काम कर रहे हैं . आप का आलेख पुस्तक के लिए महत्वपूर्ण है , आप से अनुरोध है क़ि आप अपना आलेख भेज कर इस प्रकाशन कार्य में सहयोग दें . आलेख ३० जून तक भेजने क़ी कृपा करें . आलेख के लिए कुछ उप विषय इस प्रकार हैं -
मीडिया का बदलता स्वरूप और इन्टरनेट
व्यक्तिगत पत्रकारिता और वेब मीडिया
वेब मीडिया और हिंदी
हिंदी के विकास में वेब मीडिया का योगदान
भारत में इन्टरनेट का विकास
वेब मीडिया और शोसल नेटवरकिंग साइट्स
लोकतंत्र और वेब मीडिया
वेब मीडिया और प्रवासी भारतीय
हिंदी ब्लागिंग स्थिति और संभावनाएं
इंटरनेट जगत में हिंदी की वर्तमान स्थिति
हिंदी भाषा के विकाश से जुड़ी तकनीक और संभावनाएं
इन्टरनेट और हिंदी ; प्रौद्योगिकी सापेक्ष विकास यात्रा
व्यक्तिगत पत्रकारिता और ब्लागिंग
हिंदी ब्लागिंग पर हो रहे शोध कार्य
हिंदी की वेब पत्रकारिता
हिंदी की ई पत्रिकाएँ
हिंदी के अध्ययन-अध्यापन में इंटरनेट की भूमिका
हिंदी भाषा से जुड़े महत्वपूर्ण साफ्टव्येर
हिंदी टंकण से जुड़े साफ्टव्येर और संभावनाएं
वेब मीडिया , सामाजिक सरोकार और व्यवसाय
शोसल नेटवरकिंग का इतिहास
वेब मीडिया और अभिव्यक्ति के खतरे
वेब मीडिया बनाम सरकारी नियंत्रण की पहल
वेब मीडिया ; स्व्तंत्रता बनाम स्वछंदता
इन्टरनेट और कापी राइट
वेब मीडिया और हिंदी साहित्य
वेब मीडिया पर उपलब्ध हिंदी की पुस्तकें
हिंदी वेब मीडिया और रोजगार
भारत में इन्टरनेट की दशा और दिशा
हिंदी को विश्व भाषा बनाने में तकनीक और इन्टरनेट का योगदान
बदलती भारती शिक्षा पद्धति में इन्टरनेट की भूमिका
लोकतंत्र , वेब मीडिया और आम आदमी
सामाजिक न्याय दिलाने में वेब मीडिया का योगदान
भारतीय युवा पीढ़ी और इन्टरनेट
वेब मीडिया सिद्धांत और व्यव्हार
आप अपने आलेख भेज सहयोग करें , इन उप विषयों के अतिरिक्त भी अन्य विषय पे आप लिखने के लिए स्वतन्त्र हैं । आप के सुझाओ का भी स्वागत है ।
आलेख यूनिकोड में भेजें यदि आपको यूनिकोड में टाइप करने में असुविधा महसूस हो रही है तो कृपया कृतिदेव के किसी फॉन्ट में आलेख भेज दें।
आप इस साहित्यिक अनुष्ठान मे जिस तरह भी सहयोग देना चाहें, आप अवश्य सूचित करें ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
अध्यक्ष - हिंदी विभाग
के . एम . अग्रवाल महाविद्यालय 421301
गांधारी विलेज, पडघा रोड , कल्याण - पश्चिम
महाराष्ट्र
8080303132
manishmuntazir@gmail.com
www.onlinehindijournal.blogspot.com
www.kmagrawalcollege.ओर्ग
http://www.facebook.com/pages/International-Hindi-Seminar-2013/351281781550754
thanks for sharing with us
ReplyDeletehttp://pkmkb.co/
Aapne bahut achhi jankari share ki hai.
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