कहते हैं कि पानी का इतिहास सभ्यताओं का इतिहास है, इस बहते पानी ने कितना कुछ देखा होता है, कितना कुछ सहा होता है। यही कारण रहा होगा कि स्वर्गीय भूपेन हजारिका गंगा को समाज में व्याप्त विद्रूपताओं के लिये उलाहना देते हैं, गंगा बहती हो क्यों? नदियाँ हमारे इतिहास की साक्षी हैं, पर इनका भी अपना कोई इतिहास है, यह एक अत्यन्त रोचक विषय है।
इस विषय पर विद्वानों का ध्यान जाना स्वाभाविक है, यदि नहीं गया तो संभव है कि अगले विश्वयुद्ध की आग पानी से ही निकलेगी। मेरी उत्सुकता इस विषय में व्यक्तिगत है। यमुना नदी मेरे गृहनगर से बहती है। जब से यह ज्ञात हुआ है कि वहाँ बहने वाला पानी हिमालय का है ही नहीं, सारा पानी तो दिल्ली में ही पी लिया जाता है, दिल्ली और इटावा के बीच तो इसमें पानी रहता ही नहीं है, तब से यह चिन्ता लगी है कि भविष्य में कहीं यमुना नदी अपना अस्तित्व न खो बैठे। यह भी संभव है कि दिल्ली और इटावा के बीच इसके पाट में मकान या फार्महाउस आदि बन जायें, यदि ऐसा हुआ तो यमुना नदी इतिहास बन जायेगी। आध्यात्मिक जल के आचमन के स्थान पर विशुद्ध चम्बलीय बीहड़ों का पानी शरीर में जायेगा, प्रार्थना के स्वरों में शान्ति के स्थान पर तब जाने कौन से स्वर निकलेंगे?
आगत भविष्य का दोष दिल्ली को भी कैसे दिया जाये, राजधानी जो ठहरी, विशालतम लोकतन्त्र का केन्द्रबिन्दु, नित नयी आशाओं की कर्मस्थली। अधिक कर्म को अधिक पानी भी चाहिये, जहाँ लंदन और पेरिस प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन क्रमशः १६९ और १५५ लीटर पानी उपयोग करते हैं, वहीं दिल्ली में ३०० लीटर की उपलब्धता है। अभी जनसंख्या बढ़ेगी, तब और पानी चाहिये होगा। यह देखकर लगता है कि यमुना का उद्धार अब संभव नहीं है।
पर यमुना के साथ यह पहली बार नहीं होगा कि वह कान्हा के वृन्दावन से होकर नहीं जायेगी। कान्हा के अवतार के पहले भी यमुना वृन्दावन से होकर नहीं बहती थी। पानी का यह सत्यापित इतिहास वैज्ञानिकता के आधार पर ही ज्ञात हुआ है। मानवीय इतिहास शताब्दियों में बदलता है, नदियों के इतिहास सहस्र वर्षों के अन्तराल में स्पष्ट होते हैं।
सरस्वती नदी का विस्तृत विवरण हमारे ग्रन्थों में मिलता है, और यह भी पता लगता है कि कालान्तर में वह नदी विलुप्त हो गयी, कारण अज्ञात। अब छोटी मोटी बावड़ी फाइलों में बन कर खो जायें तो ढूढ़ने में बहुत श्रम लगेगा, इतनी बड़ी नदी का खो जाना आसानी से नहीं पचाया जा सकता है। कहाँ खोयी होगी, ग्रन्थ ही कहते हैं कि वह यमुना और सतलज के बीच में बहती थी, आधुनिक राजस्थान के बीचों बीच। पुरातत्वविदों को उस क्षेत्र में सिन्धु घाटी के ६०० मानवीय निवासों की तुलना में लगभग २००० मानवीय निवास मिले हैं, पर नदी की उपस्थिति का कोई निश्चित सूत्र नहीं मिला।
१९७० में अमेरिका के नासा ने अपने उपग्रहीय चित्रों की सहायता से राजस्थान के थार मरुस्थल में एक लुप्त नदी की उपस्थिति के संकेत दिये थे। उसे दोनों ओर बढ़ाकर देखा गया तो भारत की घग्गर नदी और पाकिस्तान में बहने वाली हाक्रा नदी, सरस्वती नदी के ही अन्तिम छोर हैं, बीच की नदी विलुप्त हो गयी। घग्गर की नदी घाटी एक स्थान पर आकर १०-१२ किमी तक चौड़ी हो जाती है, इससे बस यही अनुमान लगाया जा सकता है कि सरस्वती बहुत ही विशाल नदी रही होगी। तथ्य यह भी बताते हैं कि उस समय सतलज और यमुना दोनों ही सरस्वती में आकर बहती थीं। पृथ्वी की आन्तरिक गतियों के कारण सतलज ने रोपर के पास उल्टा मोड़ लिया और व्यास में मिलती हुयी सिन्धु नदी का अंग बन गयी। वहीं दूसरी ओर यमुना पौन्टा साहब में पूर्व की ओर मुड़ गयी और प्रयाग में आकर गंगा नदी से मिल गयी। दोनों नदियों के दिशा परिवर्तन क्यों हुये, कहना कठिन है, पर यमुना सरस्वती का जल लेकर गंगा से मिलती है इसीलिये प्रयाग की त्रिवेणी में सरस्वती को लुप्त नदी कहा जाता है।
पोखरण परमाणु परीक्षण और उसके बाद का घटनाक्रम सरस्वती के इतिहास को सिद्ध करने में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। परीक्षण के बाद जब वैज्ञानिकों ने २५० किमी के क्षेत्र में ८०० कुओं के जल का परीक्षण किया तो उस जल में रेडियोएक्टिव तत्वों की अनुपस्थिति ने परीक्षण की उत्कृष्ट योजना को सिद्ध किया। साथ में जो अन्य निष्कर्ष पाये, वो सरस्वती के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त थे। पानी मीठा था, ८०००-१४००० साल पुराना था और हिमालय के ग्लेशियरों का था। यही नहीं इस नदी घाटी के किनारे पायी गयी मूर्तियों में आदि बद्री में पाये गये पत्थरों के चूरे के अवशेष मिले हैं। उस क्षेत्र में हिमालय का जल व उद्गमस्थल के पत्थरों का चूरा इतनी अधिक मात्रा में पहुँचने का कोई और कारण नहीं था, सिवाय इसके कि सरस्वती वहाँ बहती थी।
इन खोजों ने सरस्वती के पुराने पाट को पुनः उपयोग में लाकर हिमालय का पानी राजस्थान में लाने का आधार दिया है। सतलज और यमुना के पानी को पहले भूमिगत जल भरने में और उसके बाद सरस्वती को पुनः जीवित करने की विशाल योजना है। राजस्थान की धरती सरस्वती के जल से सरसवती हो पायेगी या नहीं, कच्छ का रन अपने श्वेत विस्तृत क्षेत्र पर हिमालय का जल देख पायेगा या नहीं, सरस्वती के सूखने के बाद दोनों ओर पलायन कर गयी जनसंख्या संस्कृति की सततता उत्पन्न कर पायेगी या नहीं, यह प्रश्न भविष्य बतलायेगा। पर इन खोजों ने एक घृणित असत्य को सहसा आवरणहीन कर दिया है।
अपने आक्रमण और भारतीयों पर की निर्दयता को उचित ठहराने के लिये अंग्रेजों में आर्यों के आक्रमण का विस्तृत इतिहास सृजित किया। भारतीय जनमानस में फूट डालने के लिये आर्य-द्रविड जैसे सिद्धान्तों को पल्लवित किया। योजनानुसार भारतीय संस्कृति के प्रत्येक आधार को नीचा दिखाया। आर्य आक्रमण का एकमेव आधार मोहनजोदड़ो का नष्ट होना १८०० ईपू निर्धारित किया गया है, सरस्वती का लुप्त होना ४०००-८००० ईपू की घटना है। जब वेदों में सरस्वती के बहने और सामने ही लुप्त होने का वर्णन है तो जिस समय मोहनजोदड़ों नष्ट हुआ, उस समय आर्य भारत में ही थे, न कि उनके द्वारा बाहर से आक्रमण किया गया।
पानी इतिहास रचता है और इतिहास की रक्षा भी करता है, सरस्वती की खोजों ने जिस इतिहास को पुनर्जीवित किया है वह हम सबके लिये अमूल्य है। अब चाहे यमुना पुनः अपनी धार पूर्ववत कर सरस्वती से जा मिले, राजस्थान को लहलहाने में कान्हा के वृन्दावन और मेरे गृहनगर को भूल जाये, मेरे हृदय में पानी का इतिहास सदा सम्मान पाता रहेगा।
हमारे इतिहास की साक्षी नदियाँ हमारे भविष्य को रचने में भी सक्षम हैं।
इस विषय पर विद्वानों का ध्यान जाना स्वाभाविक है, यदि नहीं गया तो संभव है कि अगले विश्वयुद्ध की आग पानी से ही निकलेगी। मेरी उत्सुकता इस विषय में व्यक्तिगत है। यमुना नदी मेरे गृहनगर से बहती है। जब से यह ज्ञात हुआ है कि वहाँ बहने वाला पानी हिमालय का है ही नहीं, सारा पानी तो दिल्ली में ही पी लिया जाता है, दिल्ली और इटावा के बीच तो इसमें पानी रहता ही नहीं है, तब से यह चिन्ता लगी है कि भविष्य में कहीं यमुना नदी अपना अस्तित्व न खो बैठे। यह भी संभव है कि दिल्ली और इटावा के बीच इसके पाट में मकान या फार्महाउस आदि बन जायें, यदि ऐसा हुआ तो यमुना नदी इतिहास बन जायेगी। आध्यात्मिक जल के आचमन के स्थान पर विशुद्ध चम्बलीय बीहड़ों का पानी शरीर में जायेगा, प्रार्थना के स्वरों में शान्ति के स्थान पर तब जाने कौन से स्वर निकलेंगे?
आगत भविष्य का दोष दिल्ली को भी कैसे दिया जाये, राजधानी जो ठहरी, विशालतम लोकतन्त्र का केन्द्रबिन्दु, नित नयी आशाओं की कर्मस्थली। अधिक कर्म को अधिक पानी भी चाहिये, जहाँ लंदन और पेरिस प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन क्रमशः १६९ और १५५ लीटर पानी उपयोग करते हैं, वहीं दिल्ली में ३०० लीटर की उपलब्धता है। अभी जनसंख्या बढ़ेगी, तब और पानी चाहिये होगा। यह देखकर लगता है कि यमुना का उद्धार अब संभव नहीं है।
पर यमुना के साथ यह पहली बार नहीं होगा कि वह कान्हा के वृन्दावन से होकर नहीं जायेगी। कान्हा के अवतार के पहले भी यमुना वृन्दावन से होकर नहीं बहती थी। पानी का यह सत्यापित इतिहास वैज्ञानिकता के आधार पर ही ज्ञात हुआ है। मानवीय इतिहास शताब्दियों में बदलता है, नदियों के इतिहास सहस्र वर्षों के अन्तराल में स्पष्ट होते हैं।
सरस्वती नदी का विस्तृत विवरण हमारे ग्रन्थों में मिलता है, और यह भी पता लगता है कि कालान्तर में वह नदी विलुप्त हो गयी, कारण अज्ञात। अब छोटी मोटी बावड़ी फाइलों में बन कर खो जायें तो ढूढ़ने में बहुत श्रम लगेगा, इतनी बड़ी नदी का खो जाना आसानी से नहीं पचाया जा सकता है। कहाँ खोयी होगी, ग्रन्थ ही कहते हैं कि वह यमुना और सतलज के बीच में बहती थी, आधुनिक राजस्थान के बीचों बीच। पुरातत्वविदों को उस क्षेत्र में सिन्धु घाटी के ६०० मानवीय निवासों की तुलना में लगभग २००० मानवीय निवास मिले हैं, पर नदी की उपस्थिति का कोई निश्चित सूत्र नहीं मिला।
इन खोजों ने सरस्वती के पुराने पाट को पुनः उपयोग में लाकर हिमालय का पानी राजस्थान में लाने का आधार दिया है। सतलज और यमुना के पानी को पहले भूमिगत जल भरने में और उसके बाद सरस्वती को पुनः जीवित करने की विशाल योजना है। राजस्थान की धरती सरस्वती के जल से सरसवती हो पायेगी या नहीं, कच्छ का रन अपने श्वेत विस्तृत क्षेत्र पर हिमालय का जल देख पायेगा या नहीं, सरस्वती के सूखने के बाद दोनों ओर पलायन कर गयी जनसंख्या संस्कृति की सततता उत्पन्न कर पायेगी या नहीं, यह प्रश्न भविष्य बतलायेगा। पर इन खोजों ने एक घृणित असत्य को सहसा आवरणहीन कर दिया है।
अपने आक्रमण और भारतीयों पर की निर्दयता को उचित ठहराने के लिये अंग्रेजों में आर्यों के आक्रमण का विस्तृत इतिहास सृजित किया। भारतीय जनमानस में फूट डालने के लिये आर्य-द्रविड जैसे सिद्धान्तों को पल्लवित किया। योजनानुसार भारतीय संस्कृति के प्रत्येक आधार को नीचा दिखाया। आर्य आक्रमण का एकमेव आधार मोहनजोदड़ो का नष्ट होना १८०० ईपू निर्धारित किया गया है, सरस्वती का लुप्त होना ४०००-८००० ईपू की घटना है। जब वेदों में सरस्वती के बहने और सामने ही लुप्त होने का वर्णन है तो जिस समय मोहनजोदड़ों नष्ट हुआ, उस समय आर्य भारत में ही थे, न कि उनके द्वारा बाहर से आक्रमण किया गया।
पानी इतिहास रचता है और इतिहास की रक्षा भी करता है, सरस्वती की खोजों ने जिस इतिहास को पुनर्जीवित किया है वह हम सबके लिये अमूल्य है। अब चाहे यमुना पुनः अपनी धार पूर्ववत कर सरस्वती से जा मिले, राजस्थान को लहलहाने में कान्हा के वृन्दावन और मेरे गृहनगर को भूल जाये, मेरे हृदय में पानी का इतिहास सदा सम्मान पाता रहेगा।
हमारे इतिहास की साक्षी नदियाँ हमारे भविष्य को रचने में भी सक्षम हैं।
समूचे जड़ और जीव-जगत का जीवन पानी से है -जिसकी वाहिकायें नदियाँ हैं - प्राचीन काल से ही यह तथ्य हृदयंगम कराने के लिये प्रातःस्नान के समय गंगा से लेकर कावेरी तक सभी नदियों के जल के सान्निध्य की कामना की जाती है.
ReplyDeleteमुझे तो लगता है नदियाँ सूखेंगी तो पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ कैसे जीवित रहेंगे, सब-कुछ रेगिस्तान में बदल जायेगा.इंसान की विवेकहीनता सब नष्ट कर डालेगी !
जल की बर्बादी रुके, इतिहास के साथ छेड़छाड़ बन्द हो!
ReplyDeleteसरस्वती की पुनर्वापसी का स्वागत है.
ReplyDelete...अभी भी कई नदियाँ लुप्त होने की कगार पर हैं,उन पर पहले ही यदि ध्यान दिया जाय तो कहीं ज़्यादा ठीक रहेगा.जल के बिना हम बचेंगे क्या ?
...और हाँ,मोडरेशन हटाने का भी स्वागत !
Deleteशनिवार 26/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हमारे इतिहास की साक्षी नदियाँ हमारे भविष्य को रचने में भी सक्षम हैं। नदियाँ सभ्यताओं के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है .
ReplyDeleteकाश कि सरस्वती के पुनर्जीवन की लुभावनी योजना साकार हो जाए !
गज्जब जी गज्जब । बहुत ही आंखें खोलने वाली खोजपरक पोस्ट है पांडे जी । इसे टहलाने आ दोस्तों मित्रों को दिखाने के लिए ले जा रहे हैं अपने साथ , साझा करने के लिए जी ।
ReplyDeleteए मर्दे शेयरवा बटन को साटते काहे नय हैं हो कि लप्प से बुट्टम दबाए आ धप्प से शेयर होल्डर हो गए , एकदमे सुर सपाट रखले हैं आप ब्लॉग को आयं ।
ReplyDeleteपानी की तरह धन बहाना, ना चलेगा यह बहाना |
ReplyDeleteधन की तरह पानी बहाना, आया यही अब ज़माना ||
पानी के बुलबुले सा मिटे, चाहता है क्या नादान-
बंद कर सूखे में डूब के, पानी में आग लगाना ||
पानी इतिहास रचता है और इतिहास की रक्षा भी करता है, सरस्वती की खोजों ने जिस इतिहास को पुनर्जीवित किया है वह हम सबके लिये अमूल्य है।
ReplyDeleteलुप्त होती सभ्यता को बचा पायें ....
उससे बड़ी बात कोई नहीं .....
विचार से परिपूर्ण बहुत गहन और सार्थक आलेख ....!!
पानी के इतिहास की जानकारी के लिए बहुत -बहुत धनयवाद
ReplyDeleteसार्थक लेख ..
सार्थक लेख प्रवीण भाई.....
ReplyDeleteवाकई जल जो न होता तो यह जग जल जाता.... :-)
बहुत ही शानदार... .. हिस्टौरीकली और साईंटीफीकली प्रूवन और नौलेजेबल आर्टिकल.... आजकल थोडा बाहर चल रहा हूँ... इसीलिए आना नहीं हो पा रहा है.. यह पोस्ट बहुत ही शानदार बन पड़ी है... इंटेलेक्चुयलटी ऊज़ेज़ फ्रॉम इच वर्ड... अगर इसे इंग्लिश में भी लिखा जाए.. तो इंटरनैशनली अक्लेम्ड रिकग्निशन मिलने की सेंट परसेंट प्रोबैबिलीटी है...
ReplyDeleteबहुत ही शानदार... .. हिस्टौरीकली और साईंटीफीकली प्रूवन और नौलेजेबल आर्टिकल.... आजकल थोडा बाहर चल रहा हूँ... इसीलिए आना नहीं हो पा रहा है.. यह पोस्ट बहुत ही शानदार बन पड़ी है... इंटेलेक्चुयलटी ऊज़ेज़ फ्रॉम इच वर्ड... अगर इसे इंग्लिश में भी लिखा जाए.. तो इंटरनैशनली अक्लेम्ड रिकग्निशन मिलने की सेंट परसेंट प्रोबैबिलीटी है...
ReplyDeleteराजनीति से फ़ुर्सत हो तो कोई पानी की बात करे
ReplyDeleteबहुत जानकारीप्रद और शोधपरक लेख...
ReplyDeleteअदभुत तथ्यपरक आलेख!!
ReplyDeleteसरस्वति नें लुप्त रहते भी हमारे सांस्कृतिक गौरव और सभ्य इतिहास को पुनः पल्लवित करने की कृपा की है।
बहुत ही समानता है सरस्वति अर्थात ज्ञानमाता, जब लहलहाती प्रवाहमान थी इस भूमि में ज्ञान अपने शिखर पर था, लुप्त हुई तो ज्ञान में भी अवनति आई, वर्तमान में संकेत मिलते ही एतिहासिक ज्ञान के भ्रमों को नष्ट कर रही है। भारतीय संस्कृति यूं ही नहीं मानती नदियों को माता!!
आपके ज्ञान से मैं लाभान्वित होती हूँ , पर gk प्रश्न की संभावना से डर जाती हूँ
ReplyDeleteबेहद महत्वपूर्ण जानकारी ....बहुत गहराई से अध्यन किया गया हैं !
ReplyDeleteआपके इस शोधपूर्ण लेख के लिए बधाई स्वीकारें. हमारे तो ज्ञान में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है.
ReplyDeleteनीरज
bahut hi sahi jankari di aapane
ReplyDeletemain ujjain se hun aur kshirpra nadi ka bhi yahi haal hain
saaf karne ke liye muhim to kai hui parantu sirf kagazo par
Thanks
http://drivingwithpen.blogspot.in/
bahut badhiyaa jaankaari
ReplyDeleteज्ञान का अद्भुत संगम लिए हुए यह आलेख ...आभार ।
ReplyDeleteबढ़िया खोजपरक विवेचन . नदियाँ तो सभ्यता का आधार है , उनके बिना जीवन संभव नहीं . पंडित वीरभद्र मिश्रा जी से मुलाकात की थी जो भागीरथ श्रम कर रहे है गंगा को बचाने को. उनका मत भी आप जैसा ही था.
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ..हमारा इतिहास तो हमारा है ही नहीं. वो तो विदेशियों ने जैसे चाहा लिख दिया और सबने मान लिया. ये नदियाँ ही हमारा सच्चा इतिहास हैं.
ReplyDeleteबेहतरीन खोजपरक आलेख इसे तो बहुत आगे तक पहुंचाना चाहिए.
bahut sundar...jankari bhara rochak lekh..
ReplyDeleteबहुत रोचक सामग्री!
ReplyDeleteजल ही जीवन है ,,,,,,
ReplyDeleteबहुत रोचक सार्थक लेख ,,,,,प्रवीण भाई.....
सही कहा . यमुना तो अपना अस्तित्त्व दिल्ली में आकर खो चुकी .
ReplyDeleteतभी तो मना करने के बावजूद दिल्ली वाले यमुना पर रोज फूल मालाएं चढाते हैं .
अद्भुत और प्रेरक आलेख।
ReplyDeleteक्या संयोग है....सुबह से नदियों के बारे में ही पढ़ रहा हूँ और अब आपका लेख....आज का दिन तो वाकई नदीमय हो गया।
आपने सरस्वती के पुनर्जीवन की जो सुनहरी परिकल्पना की है, उसका साकार करने के लिए एक नए भगीरथ की जरूरत होगी।
गंगा और यमुना लुप्त होने के कगार पर जा पहुंची हैं, उन्हें बचाने के लिए धनबल और जनबल भी उपलब्ध हैं, पर हमारी भ्रष्ट और स्वार्थी मानसिकता के कारण कोई सकारात्मक परिणाम निकल नहीं पा रहा है।
गंगा और यमुना को बचाने और सरस्वती को फिर से जीवित करने की जिम्मेदारी हमारी पीढ़ी के भारतीयों की है, और यदि ऐसा न हो सका तो आने वाला इतिहास और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ नहीं कर सकेंगी।
बड़िया जानकारी, आभार्। यूँ तो ब्रह्मपुत्र नदी मैं ने देखी भी नहीं है फ़िर भी वो मेरी प्रिय नदी है और मुझे आशंका है कि एक दिन वो नदी भी इतिहास बन जायेगी। ऑलरेडी जो नदी हष्ट पुष्ट पहलवान लगती है अब इतनी मरियल हो रही है कि लगता है कुछ सालों की मेहमान है। जब प्राकृतिक संपदा को टेकन फ़ॉर ग्रांटेड लेगें तो यही होगा।
ReplyDeleteआपकी चिन्ता ज़ायज़ है!
ReplyDeleteजल ही जीवन है ,,,विन जल सब सून..रोचक और प्रेरक आलेख...सस्नेह..
ReplyDeleteआदरणीय पांडे जी ,सारगर्भित विचारपरक लेख के लिए धन्यवाद / पानी का इतिहास ही जीव का इतहास है ,संस्कृति का इतिहास है भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं अपीतु भूमंडल में नदियाँ ही संस्कृतियों की जननी हैं .....बदलते भौगोलिक परिदृश्यों ने विभिन्न भूखंडों ,सागरों ,नदियों का निर्माण किया ....कितनी धाराएँ विस्थापित हुयीं कितनी तिरोहित हो गयीं ... प्रश्न अब पानी का है / माननीय ए बी बाचापई जी ने कहा है -"अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जायेगा ," जो सत्य प्रतीत होता है ...... अब तलाश करनी है सोतों की ,सरश्वती की .....कहीं देर न हो जाये ......." रहिमन पानी रखिये ,बिन पानी सब सुन ...... सार्थक ,सरोकारी लेख के लिए साधुवाद जी /
ReplyDeleteआग (विश्वयुद्ध की) पानी से ही निकलेगी.
ReplyDeleteशायद दिन दूर नहीं
रोचक और जानकारी भरा आलेख
एक एहम शोध पात्र है यह आलेख .संक्षिप्त और सुन्दर .सांस्कृतिक इतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समेटे हुए अपने लघु कलेवर में .शुक्रिया आपका इसे सांझा करने के लिए .मुंबई मेरी जान का छटा और अंतिम भाग शीघ्र प्रकाश्य .आभार . भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
और यहाँ भी -
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
एक एहम शोध पात्र है यह आलेख .संक्षिप्त और सुन्दर .सांस्कृतिक इतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समेटे हुए अपने लघु कलेवर में .शुक्रिया आपका इसे सांझा करने के लिए .मुंबई मेरी जान का छटा और अंतिम भाग शीघ्र प्रकाश्य .आभार . भी पधारें -ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/drug-dilemma.html/ram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
और यहाँ भी -
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - तीन साल..... बाप रे बाप!!! ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteIts an awesome write up..
ReplyDeletehistory, geography n polity... u included everything.
Infinite stories are merged in depths of river !!!
सदा नीरा नदियाँ इस देश की सांस्क्रतिक नव्ज़ से जुड़ीं हैं .नदियों को हमने अर्थ तंत्र को हांकने वालों की रखैल बनाके छोड़ दिया है .जन जीवन में व्याप्त मान्यताएं अंध विश्वास एक तरफ और उद्योगिक अपशिष्ट को बिना निथारे बहाना एक तरफ .नदियों की परिशोधन क्षमता कब की चुक चुकी है .गंगा जल में कीड़ें हैं (E-coli ) .नदी नाले न जाओ श्याम पैयां पडूं .गोपियों ने अनागत को बहुत पहले देख लिया था .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteस्वागत बिधान बरुआ :
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/और यहाँ भी ज़नाब -
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/drug-dilemma.html
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
सार्थक चिंतन, इसी तरह की एक पोस्ट पहले भी शायद यहां आ चुकी है.
ReplyDeleteबेहतरीन और वैज्ञानिक जानकारी शेयर करने के लिए आभार |
ReplyDeleteमुग्ध भी कर दिया आपके इस आलेख ने और सोचने को विवश भी|
ReplyDeleteइन खोजों ने सरस्वती के पुराने पाट को पुनः उपयोग में लाकर हिमालय का पानी राजस्थान में लाने का आधार दिया है। सतलज और यमुना के पानी को पहले भूमिगत जल भरने में और उसके बाद सरस्वती को पुनः जीवित करने की विशाल योजना है।
ReplyDeleteफिर से सरस्वती नदी राजस्थान में हरियाली लाये .... यही कामना है ... अंग्रेजों ने हमारे इतिहास को अपनी सुविधा के लिए बहुत तोड़ा मरोड़ा है .... बहुत अच्छा लेख जानकारी से भरा हुआ ... आभार
महत्वपूर्ण व तथ्यात्मक लेख।
ReplyDeleteबेहतरीन लेख ,नदियाँ हमारे इतिहास और भविष्य दोनों से जुड़ी हैं..... इन्हें सहेजने के प्रयास ज़रूरी हैं......
ReplyDeleteवाह बहुत सारी नई जानकारियाँ पढ़ने को मिली, लगभग अब यही हाल क्षिप्रा नदी का है जो कि उज्जैन में है, क्षिप्रा का अर्थ जो कि पुराणों में उद्घृत है - "ब्रह्मांड में सबसे तेज बहने वाली नदी", परंतु आज यह हालत है कि जब बड़ा नहान होता है तो गंभीर नदी से पानी क्षिप्रा नदी में छोड़ दिया जाता है और क्षिप्रा के घाटों पर छोटे छोटे डेम बनाकर उस पानी को रोका जाता है। यह सब दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा आलेख,,,
ReplyDeleteप्रवीण जी वैसे तो आपके सभी आलेख बेहतरीन होते हैं किन्तु इस आलेख ने बहुत ही अधिक प्रभावित किया यह आलेख जो आपकी खोज और मेहनत का नतीजा है बहुत कुछ ज्ञान बाँट रहा है इसके लिए आपको कोटिश आभार
ReplyDeleteसुनते हैं अगला विश्वयुद्ध पानी पे पीछे ही होने वाला है ...
ReplyDeleteपानी शायद साक्षी बन्ने वाला है इस महाविनाश का ...
आप के लेख से बहुत कुछ सीखने ,समझने और जानने को मिलता है ......
ReplyDeleteतो लेख पे हम जैसों की टिप्पणी का क्या ??
शुभकमनाए १
बहुत सारगर्भित और विचारणीय आलेख...
ReplyDeleteपानी के इतिहास की जानकारी के लिए बहुत -बहुत धनयवाद
ReplyDeleteबिन पानी सब सून ....तब क्या होगा !
ReplyDeleteआज रात को शायद ही नींद आया , आपने क्या क्या याद दिला दिया !
नदियों के किनारे जन्मी सभ्यताएं और मैली होती नदियाँ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी परख आलेख प्रवीण जी आभार...शिखा जी कि बात से सहमत हूँ।
ReplyDeleteइन खोजों ने सरस्वती के पुराने पाट को पुनः उपयोग में लाकर हिमालय का पानी राजस्थान में लाने का आधार दिया है। सतलज और यमुना के पानी को पहले भूमिगत जल भरने में और उसके बाद सरस्वती को पुनः जीवित करने की विशाल योजना है। राजस्थान की धरती सरस्वती के जल से सरसवती हो पायेगी या नहीं, कच्छ का रन अपने श्वेत विस्तृत क्षेत्र पर हिमालय का जल देख पायेगा या नहीं, सरस्वती के सूखने के बाद दोनों ओर पलायन कर गयी जनसंख्या संस्कृति की सततता उत्पन्न कर पायेगी या नहीं, यह प्रश्न भविष्य बतलायेगा। पर इन खोजों ने एक घृणित असत्य को सहसा आवरणहीन कर दिया है।
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाए .दिवा स्वप्न न रह जाए .मुझे लगता है पानी इस देश का ही उतर चुका है पेट्रोल से ज्यादा महंगा बिकेगा कल .देख लेना .कृपया यहाँ भी पधारें -
बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
ReplyDeleteरोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी।
काश सरस्वती पुनः बहने लगे, कहीं भी बहे स्वच्छ जल का एक और स्त्रोत भारतीयों को उपलब्ध हो इससे बडी बात और क्या होगी । अन्यथा तो पानी बिना सब सून हो जायेगा ।
ReplyDeleteaaj bahut hi vistaar se paani ka sampurn itihaas aapke lekh se mila .kafi rochak v prerak bhi----
ReplyDeletepoonam
राजस्थान में सरस्वती नदी के पानी के विशाल भंडार खोजने के बाद भी सरकार उस पानी का दोहन करने के लिए कोई आधारभूत साधन नहीं जुटा पाई|
ReplyDeleteजबकि वही पानी आगे पाकिस्तान में जाता है और वहां के उस क्ष्रेत्र में नलकूपों से इस पानी का दोहन कर सिंचाई कर कृषि कार्य किया जा रहा है| जबकि हमारे यहाँ जिस भूगर्भ से होते हुए यह इस नदी की भूगर्भीय धारा बह रही है वहां सिंचाई के लिए बिजली नहीं है यदि सरकार उस क्षेत्र को पर्याप्त बिजली आपूति करदे तो किसान अपने आप नलकूप लगाकर उस पानी के दोहन से कृषि पैदावार बढ़ा कर उसका उपयोग कर सकते है|
नदियाँ हमारी प्राण वाहिनी रही हैं ०सरस्वती का लोप आज भी एक पहेली ही है ...
ReplyDeleteविचारपूर्ण विचारोत्तेजक !
बेहतरीन जानकारी सरस्वती नदी के बारे में..
ReplyDeleteजल ही जीवन है और नदियाँ हमारे जीवन का भूत, वर्त्तमान और भविष्य!
बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़ कर..
वर्षा की पहली फुहार की भांति शीतलता का अहसास करा गया आपका यह सारगर्भित आलेख ।
ReplyDeleteयह तो आशा का समन्दर जगा देनेवाला, संग्रहणीय आलेख है। बार-बार पढने लायक। आज की सुबह बहुत ही अच्छी हुई।
ReplyDeleteअत्यंत रोचक! महत्वपूर्ण है नदियों को बचाना वरना काहे की सभ्यता?
ReplyDeleteजबसे खून पानी की तरह बहने लगा है तो भला इन विलुप्त होती नदियों के बारे में कोई क्यों सोचे ? चाहे सभ्यता या संस्कृति पुन : नष्ट क्यों न हो जाए..
ReplyDeleteनदियां सदा ही सभ्यताओं की पोषक रही हैं, आज सभ्यताओं पर नदियों के पोषण की ज़िम्मेदारी है...
ReplyDeleteबड़ा ही शोधपूर्ण आलेख....
सादर।
Jal hii jeevan hai, aur nadiya hii jal dene waali hain, isliye nadiya hii jeevan hain. aapne kaafi mehnat kii hai is lekh ke liye.bahut achcha.
ReplyDeleteखोजपरक लेख है और अपने इतिहास की गौरान्वित गाथा
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट।
ReplyDeleteनदियाँ लुप्त हो रही हैं, पानी कम होता जा रहा है।