बंगलोर में अभी कुछ दिन पहले सीट बेल्ट बाँधना अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय ने मुझे कई कोणों से और बहुत गहरे तक प्रभावित किया है।
संरक्षा को प्राथमिकता मिलनी चाहिये, पर आमजन संरक्षा के प्रति जागरूक नहीं होता है, उसे लगता है कि सीट बेल्ट बाँधने और उतारने में इतना समय लग जाता है कि उतनी देर में वह न जाने कितना शहर नाप आयेगा। समय बचा लेने की इस जुगत में वह तब तक सीट बेल्ट नहीं बाँधता, जब तक यह अनिवार्य न कर दिया जाये। अनिवार्य भी तब तक अनिवार्य नहीं समझा जाता, जब तक उस पर कोई आर्थिक दण्ड न हो। यद्यपि आर्थिक दण्ड लगने के बाद ही धनपुत्रों को नियम तोड़ने का विशेष सुख मिलता है क्योंकि तब अन्य लोग नियम नहीं तोड़ पाते हैं और तब धनपुत्र अपने धन के कारण विशेष हो जाते हैं। भले ही कुछ लोग अपने धन से यह सुख खरीदते रहें पर आमजन संरक्षा के प्रति सचेत से प्रतीत होने लगते हैं। धन और शेष को पृथक रखने के नीरक्षीर विवेक से युक्त दूरगामी निर्णय से किस तरह अनुशासित समाज का निर्माण हो सकता है, यह प्रभावित होने का विषय है।
ऐसे निर्णय हर समय नहीं लिये जा सकते हैं क्योंकि हर निर्णय को लागू करने में बहुत श्रम लगता है। बंगलोर में इतनी गाड़ियाँ हैं कि सबके आगे की सवारियों को देखने में ही सारी ऊर्जा लगा दी तो अन्य नियमों का उल्लंघन देखने का समय ही नहीं मिलेगा। जितना अधिक कार्य यहाँ के ट्रैफिक वाले करते हैं, उतनी लगन मैने अभी तक कहीं और नहीं देखी। यहाँ पर इसे मानवीय कार्यों की श्रेणी में रखकर यथासंभव निभाया जाता है, अन्य नगरों में इसे ईश्वरीय प्रकोप या कृपा मानकर छोड़ दिया जाता है। ऐसी श्रमशील फोर्स को और काम करने के लिये मना लेना सच में सुयोग्य प्रशासन के ही संकेत हो सकते हैं और उससे प्रभावित होना स्वाभाविक भी है।
कार्य केवल उल्लंघन करने वालों का नम्बर नोट कर चालान करने तक सीमित होता तब भी समझा जा सकता था। अधिक दण्ड होने पर कार्यालय में दण्ड भरने वालों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। उन्हें सम्हाल पाना एक कठिन कार्य है। कुछ ट्रैफिक वाले कार्यालय में बैठे अपने सहकर्मियों की पीड़ा समझते भी हैं और यथासंभव रसीद या बिना रसीद के दण्ड सड़क पर ही भरवा लेते हैं। एक छोटे निर्णय से सबका काम बहुत बढ़ जायेगा, यह तथ्य ज्ञात होते हुये भी यह निर्णय लागू करा लेना मुझ जैसों को प्रभावित कर लेने के लिये पर्याप्त है।
देश का एक विशेष गुण है, जो भी कोई नयी या खरी बात बोलता है, लोग उन्ही शब्दों से बोलने वाले का जीवन तौल डालते हैं। बहुतों के साथ ऐसा हुआ है और यह तथ्य वर्तमान के कई उदाहरणों के माध्यम से सर्वविदित भी है। हुआ वही, जिसका डर था, आदेश लागू होने के दूसरे दिन ही अखबारों में एक चित्र आ गया कि मुख्यमंत्रीजी की गाड़ी में इस नियम का पालन नहीं हो रहा है। यह सब होने पर भी नियम का पालन यथावत चलता रहा, इस बात ने मुझे पर्याप्त प्रभावित किया।
मुझे गाड़ी में आगे ही बैठना अच्छा लगता है, वहाँ से परिवेश पर पूरी दृष्टि बनी रहती है। पीछे की सीट पर बैठकर केवल अपनी ओर के दृश्य दिखते हैं, केवल एक तिहाई। छोटे से जीवन में दो तिहाई दृश्य छूट जायें, इससे बड़ी हानि संभव भी नहीं है। जब यही सोच कर कार निर्माताओं ने आगे की सीट बनायी तो उसका लाभ उठाने में संकोच कर निर्माताओं की आकांक्षाओं को धूलधूसरित क्यों किया जाये। पीछे बैठकर एक ही ओर देखते रहने से और उत्सुकतावश सहसा अधिक मुड़ जाने से गर्दन में पुनः मोच आ जाने का डर भी है। हाँ, जब अधिक दूर जाना हो या रात्रि निरीक्षण में निकलना हो, तो पीछे की सीट लम्बी करके सो जाता हूँ। आगे बैठने से सीट बेल्ट बाँधना आवश्यक हो गया। कुछ बार तो याद रहा, कुछ बार भूलना भी चाहा पर हमारे ड्राइवर साहब ने भूलने नहीं दिया। एक बार जब उकता गये तो पूछा कि क्या बाँधना हर बार आवश्यक है, ड्राइवर साहब ने कहा कि आवश्यक तो नहीं है बशर्ते जेब में १०० रु का नोट सदा रखा जाये, दण्ड भरने के लिये। ड्राइवर साहब के 'न' नहीं कहने के तरीके ने प्रभावित किया मुझे।
जब कोई उपाय नहीं रहा तो नियमित सीट बेल्ट बाँधना प्रारम्भ कर दिया। सीट बेल्ट के लाभ सुरक्षा के अतिरिक्त और भी पता चले। जब सीट बेल्ट नहीं बँधी होती है तो आपका कोई एक हाथ सदा ही सचेत अवस्था में बना रहता है और झटका लगने की स्थिति में सीट या हैंडल पकड़ लेता है। साथ ही साथ आपकी आँखें भी खुली रहती हैं और कार की गति के प्रति सचेत बनी रहती हैं। सीट बेल्ट बाँधने के बाद हमारे हाथ और आँखें, दोनों ही मुक्त हो लिये, आँख बन्द कर चिन्तन करने के लिये और दोनों हाथों से मोबाइल पर टाइपिंग करने के लिये। पहले जो शरीर पहले एक ही अवस्था में बना रहने से थक जाता था, अब ढीला छोड़ देने से थकता नहीं था। यात्राओं में चिन्तन कर सकना, अधिक टाइपिंग होना और कम थकना, यह तीनों कारण मुझे बहुत गहरे प्रभावित कर गये।
सीट बेल्ट का सिद्धान्त उसके उपयोग के अनुसार ही है। आप उसे धीरे धीरे खींचेगे तो वह कितना भी खिंच आयेगा पर झटके से खींचेगे तो तुरन्त अटक जाता है। सीट बेल्ट के उपयोग करने के पहले तक यह सिद्धान्त ज्ञात नहीं था। पहले विश्वास नहीं था पर जब हाथों से खींच कर प्रयोग किया तब विश्वास आया। एक बार जब कार झटके से रोकनी पड़ी तब सीट बेल्ट ने सहसा अपनी जकड़ में भींच लिया। यही सिद्धान्त जीवन में भी लगता है। ध्यान से देखें तो जो सुरक्षा के संकेत होते हैं, वह आपके अधिक गतिमय होने पर ही प्रकट होते हैं, अन्यथा जीवन अपनी मन्थर गति से चलता रहता है। इस सिद्धान्त ने मुझे अन्दर तक प्रभावित किया।
इतना अधिक मात्रा में प्रभावित होकर हम भारी होकर सो गये होते यदि हमारे ड्राइवर महोदय खिन्न से न लग रहे होते। उन्हे सीट बेल्ट बाँधना झंझट सा लग रहा था। पूछने पर बताया कि जब बंगलोर के ट्रैफिक की औसत चाल पैदल से थोड़ी सी ही अधिक है तब सीट बेल्ट बाँधने का क्या लाभ? ट्रैफिक जाम से बचने के लिये कौन सा नियम बनेगा? सीट बेल्ट के साथ इंच इंच सरकने की व्यथा ने प्रभावित करने की हद ही कर डाली।
ऐसे निर्णय हर समय नहीं लिये जा सकते हैं क्योंकि हर निर्णय को लागू करने में बहुत श्रम लगता है। बंगलोर में इतनी गाड़ियाँ हैं कि सबके आगे की सवारियों को देखने में ही सारी ऊर्जा लगा दी तो अन्य नियमों का उल्लंघन देखने का समय ही नहीं मिलेगा। जितना अधिक कार्य यहाँ के ट्रैफिक वाले करते हैं, उतनी लगन मैने अभी तक कहीं और नहीं देखी। यहाँ पर इसे मानवीय कार्यों की श्रेणी में रखकर यथासंभव निभाया जाता है, अन्य नगरों में इसे ईश्वरीय प्रकोप या कृपा मानकर छोड़ दिया जाता है। ऐसी श्रमशील फोर्स को और काम करने के लिये मना लेना सच में सुयोग्य प्रशासन के ही संकेत हो सकते हैं और उससे प्रभावित होना स्वाभाविक भी है।
कार्य केवल उल्लंघन करने वालों का नम्बर नोट कर चालान करने तक सीमित होता तब भी समझा जा सकता था। अधिक दण्ड होने पर कार्यालय में दण्ड भरने वालों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। उन्हें सम्हाल पाना एक कठिन कार्य है। कुछ ट्रैफिक वाले कार्यालय में बैठे अपने सहकर्मियों की पीड़ा समझते भी हैं और यथासंभव रसीद या बिना रसीद के दण्ड सड़क पर ही भरवा लेते हैं। एक छोटे निर्णय से सबका काम बहुत बढ़ जायेगा, यह तथ्य ज्ञात होते हुये भी यह निर्णय लागू करा लेना मुझ जैसों को प्रभावित कर लेने के लिये पर्याप्त है।
देश का एक विशेष गुण है, जो भी कोई नयी या खरी बात बोलता है, लोग उन्ही शब्दों से बोलने वाले का जीवन तौल डालते हैं। बहुतों के साथ ऐसा हुआ है और यह तथ्य वर्तमान के कई उदाहरणों के माध्यम से सर्वविदित भी है। हुआ वही, जिसका डर था, आदेश लागू होने के दूसरे दिन ही अखबारों में एक चित्र आ गया कि मुख्यमंत्रीजी की गाड़ी में इस नियम का पालन नहीं हो रहा है। यह सब होने पर भी नियम का पालन यथावत चलता रहा, इस बात ने मुझे पर्याप्त प्रभावित किया।
मुझे गाड़ी में आगे ही बैठना अच्छा लगता है, वहाँ से परिवेश पर पूरी दृष्टि बनी रहती है। पीछे की सीट पर बैठकर केवल अपनी ओर के दृश्य दिखते हैं, केवल एक तिहाई। छोटे से जीवन में दो तिहाई दृश्य छूट जायें, इससे बड़ी हानि संभव भी नहीं है। जब यही सोच कर कार निर्माताओं ने आगे की सीट बनायी तो उसका लाभ उठाने में संकोच कर निर्माताओं की आकांक्षाओं को धूलधूसरित क्यों किया जाये। पीछे बैठकर एक ही ओर देखते रहने से और उत्सुकतावश सहसा अधिक मुड़ जाने से गर्दन में पुनः मोच आ जाने का डर भी है। हाँ, जब अधिक दूर जाना हो या रात्रि निरीक्षण में निकलना हो, तो पीछे की सीट लम्बी करके सो जाता हूँ। आगे बैठने से सीट बेल्ट बाँधना आवश्यक हो गया। कुछ बार तो याद रहा, कुछ बार भूलना भी चाहा पर हमारे ड्राइवर साहब ने भूलने नहीं दिया। एक बार जब उकता गये तो पूछा कि क्या बाँधना हर बार आवश्यक है, ड्राइवर साहब ने कहा कि आवश्यक तो नहीं है बशर्ते जेब में १०० रु का नोट सदा रखा जाये, दण्ड भरने के लिये। ड्राइवर साहब के 'न' नहीं कहने के तरीके ने प्रभावित किया मुझे।
जब कोई उपाय नहीं रहा तो नियमित सीट बेल्ट बाँधना प्रारम्भ कर दिया। सीट बेल्ट के लाभ सुरक्षा के अतिरिक्त और भी पता चले। जब सीट बेल्ट नहीं बँधी होती है तो आपका कोई एक हाथ सदा ही सचेत अवस्था में बना रहता है और झटका लगने की स्थिति में सीट या हैंडल पकड़ लेता है। साथ ही साथ आपकी आँखें भी खुली रहती हैं और कार की गति के प्रति सचेत बनी रहती हैं। सीट बेल्ट बाँधने के बाद हमारे हाथ और आँखें, दोनों ही मुक्त हो लिये, आँख बन्द कर चिन्तन करने के लिये और दोनों हाथों से मोबाइल पर टाइपिंग करने के लिये। पहले जो शरीर पहले एक ही अवस्था में बना रहने से थक जाता था, अब ढीला छोड़ देने से थकता नहीं था। यात्राओं में चिन्तन कर सकना, अधिक टाइपिंग होना और कम थकना, यह तीनों कारण मुझे बहुत गहरे प्रभावित कर गये।
सीट बेल्ट का सिद्धान्त उसके उपयोग के अनुसार ही है। आप उसे धीरे धीरे खींचेगे तो वह कितना भी खिंच आयेगा पर झटके से खींचेगे तो तुरन्त अटक जाता है। सीट बेल्ट के उपयोग करने के पहले तक यह सिद्धान्त ज्ञात नहीं था। पहले विश्वास नहीं था पर जब हाथों से खींच कर प्रयोग किया तब विश्वास आया। एक बार जब कार झटके से रोकनी पड़ी तब सीट बेल्ट ने सहसा अपनी जकड़ में भींच लिया। यही सिद्धान्त जीवन में भी लगता है। ध्यान से देखें तो जो सुरक्षा के संकेत होते हैं, वह आपके अधिक गतिमय होने पर ही प्रकट होते हैं, अन्यथा जीवन अपनी मन्थर गति से चलता रहता है। इस सिद्धान्त ने मुझे अन्दर तक प्रभावित किया।
ट्राफिक की समस्या तो अब हर शहर की समस्या बन गयी है | सुरक्षा के लिहाज से सीट बेल्ट बांधना तो अनिवार्य होना ही चाहिए | वैसे सीट बेल्ट ही नहीं , अनिवार्य न हो तो हेलमेट पहनना भी अखरता है लोगों को |
ReplyDeleteइसमें भी दर्शन खोज ही लिया आपने:)
ReplyDeleteमजाक अलग लेकिन सुरक्षा जैसे विषय पर भी हम लोग तब ही ध्यान देते हैं जब कुछ अनिवार्य कर दिया जाता है, ये दिखाता है की हम कितने अनुशासनप्रिय हैं| खुद अपनी बात बताऊँ तो पंजाब में साढ़े तीन साल बिताने के बाद मैंने भी हेलमेट दिल्ली में आने के बाद ही खरीदा :)
ब्लॉगरों के लिये संरक्षा नारा हो सकता है:
ReplyDeleteअपनी सीट बेल्ट बांध लीजिये। पोस्ट पर टिप्पणियां आपके इंतजार में है।
आप उसे धीरे धीरे खींचेगे तो वह कितना भी खिंच आयेगा पर झटके से खींचेगे तो तुरन्त अटक जाता है।
ReplyDeleteवाह अद्भुत जीवनदर्शन भी!!
बिना रसीद के दंड में सब जग खुस ....
ReplyDeleteआज के हिंदुस्तान अखबार के "सायबर संसार से" कालम में आपकी ब्लॉग पोस्ट "सफर के दीवाने" प्रकाशित हुई है :)
ReplyDeleteगतिमान पिंड के विभिन्न अवयवों में आपस में जितना कम सापेक्षिक विचलन होगा ,पिंड की गति उतनी अधिक संतुलित होगी और दुर्घटना की स्थिति में बाहरी मजबूत आवरण ही चोटिल होगा | भीतरी अवयव अधितर दशाओं में सुरक्षित ही रहेंगे | अतः सीट बेल्ट अवश्य बांधे | "वैसे मर्जी है आपकी, क्यों कि कमर है आपकी "
ReplyDeleteसीट बेल्ट बंधने के फायदे तो है लेकिन हमारे शहर में तो अभी सड़के बननी है फिर बेल्ट की सोची जाएगी ..
ReplyDeleteध्यान से देखें तो जो सुरक्षा के संकेत होते हैं, वह आपके अधिक गतिमय होने पर ही प्रकट होते हैं, अन्यथा जीवन अपनी मन्थर गति से चलता रहता है। इस सिद्धान्त ने मुझे अन्दर तक प्रभावित किया।
ReplyDeleteप्रभावी आलेख .....किसी भी सिद्धांत को अपने जीवन में कैसे उतरना .....और उसमे सकारात्मकता देखना .......आधी समस्याएं तो वहीँ खत्म हो जाती हैं ...!!
बेल्ट के बांधने को जीवन से जोड़ लेना ...सही है विचारशील व्यक्ति बेल्ट से लेकर रेल तक में जीवन के दर्शन को ढूंढ लेता है , अभिव्यक्त करता है !
ReplyDeleteहवाई यात्रा के दौरान मुझे हमेशा लगताहै कि इसकी वाकई क्या जरूरत है, पर जिस दिन कुछ हादसा हुआ, उसी दिन उसकी कीमत समझ में आएगी।
ReplyDeleteवैसे सच कर रहे हैं ये तस्वीर भले बंगलौर की हो, कमोवेश यही हालत दिल्ली की भी है, रेंगती ट्रैफिक मे सीट बेल्ट वाकई इरिटेट करता है।
अनुशासन और नियम सब जगह ज़रूरी हैं !
ReplyDeletePraveen ji , apni aur apno ke suraksha sabse zda zaruri hai aur seat belt whi kaam karti hai :)
ReplyDelete" सीट बेल्ट के लाभ सुरक्षा के अतिरिक्त और भी पता चले। जब सीट बेल्ट नहीं बँधी होती है तो आपका कोई एक हाथ सदा ही सचेत अवस्था में बना रहता है और झटका लगने की स्थिति में सीट या हैंडल पकड़ लेता है। "
ReplyDeleteऔर उसके बाद किसी दिन अगर दुपहिया चला रहे हो तो चलाते वक्त एक हाथ बार-बार पीछे बैठी बीबी का पल्लू अथवा गर्लफ्रेंड की चुनरिया स्वत : ही अपने कंधे की तरफ खींचता नजर आता है :)
काश कि दंड के भय से नियमों का पालन ना करना पड़े, नियम अपने मन से पालन करें।
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteसीट बेल्ट बांधने तो अपनी सुरक्षा स्वयं करना है है.. साथ ही इसके और भी फायदे हैं... लंबी यात्रा के दौरान जो थकान होती है सीट बेल्ट बंदे पैर वह काफी हद तक कम हो जाती है...
सुरक्षा के नियम तोड़ जुर्माना भरना अधिक सहज लगता है लोगों को .... दुर्घटना जब तक ना हो , वे हीरो होते हैं
ReplyDeleteहो जाएगी बंगलोरियों को भी आदत हो जाएगी. दिल्ली में तो एक ज़माने से ज़रूरी है. बल्कि अब तो बिना बेल्ट के नंगा सा लगता है
ReplyDeleteध्यान से देखें तो जो सुरक्षा के संकेत होते हैं, वह आपके अधिक गतिमय होने पर ही प्रकट होते हैं, अन्यथा जीवन अपनी मन्थर गति से चलता रहता है।
ReplyDeleteसुरक्षा के प्रति जागरूक करती एक और बेहतरीन पोस्ट ..आभार ।
स्पीड लिमिट ५० की , स्पीड ५ की --फिर भला सीट बेल्ट क्या करेगी . लेकिन कानून है , फोलो करना पड़ता है .
ReplyDeleteयही सिद्धान्त जीवन में भी लगता है। ध्यान से देखें तो जो सुरक्षा के संकेत होते हैं, वह आपके अधिक गतिमय होने पर ही प्रकट होते हैं, अन्यथा जीवन अपनी मन्थर गति से चलता रहता है।
ReplyDeleteबाटम लाईन
sabse jaruri ... koshish rahti hai, jarur lagaun, par kabhi kabhi bhul bhi jata hooon...
ReplyDeleteजब सीट का बेल्ट बाँधने के फायदे है,..तो फिर बेल्ट बाँधने में लापरवाही क्यों बरती जाए,......
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति,,,,,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
हर पोस्ट में चिंतन और मनन लिए आतें हैं आप .हानि लाभ सब कुछ सीट बेल्ट के गिना दिए .
ReplyDeleteहमारे महान देश भारत में सीट बेल्ट न बाँधना भी एक तड़ी है .मैं कुछ ऐसी वीरांगनाओं ललनाओं को करीब से जानता हू वह खुद भी ड्राई -विंग करते वक्त सीट बेल्ट नहीं बांधेंगी अपनी औलाद को भी आगे सीट पर चुलबुली करने को छोड़ देंगीं .तड़ी यह ये बड़े प्रति -रक्षा अधिकारी की बीवी हैं और इसीलिए इनका रेंक एक ऊपर है अपने पति के रेंक से यह डिफेन्स का एक अभूत पूर्व ओफेंस है आम औ ख़ास पर ,पुलिस वाले से क्या डरना ?क्या कर लेगा ?
यहाँ अठारह से नीचे का किशोर जब बिना लाइसेंस कार चलाता है तो कई माँ बाप फूल के कुप्पा हो जातें हैं .
केलिफोर्निया में मैंने देखा पीछे की सीटों पर बैठी कार सवारियों के लिए भी सीट बेल्ट बाँधना लाजिमी है .वहां क़ानून तोड़ा नहीं जाता यदा कदा चूक हो जाती है .यहाँ क़ानून का पालन करने वाले को कुछ समझदार लोग दब्बू समझते हैं .
और बच्चे तो वहां सीट बेल्टों से बंधे ही होतें हैं उनकी सीटें सुनिश्चित होतीं हैं उम्र के हिसाब से किसका मुंह आगे की और रहेगा किसका पीछे की और .
चंडीगढ़ में वाहन चलाना सीखा, जहां यह सब नियम बड़ी कड़ाई से पालन होता था। अब तो आदत-सी हो गई है।
ReplyDeleteहम तो इतना जानते हैं कि अगर हमने दो साल पहले सीट बेल्ट बांधी होती तो ज़िंदा न बचते
ReplyDeleteपहली बार ब्लॉग पर आना हुआ ...सीट बेल्ट ..महिमा पढ़ कर अच्छा लगा .
ReplyDeleteसीट बेल्ट बाँधने से कोई नुकसान तो है नहीं लेकिन बहुत जगह इसे एक आफत मान दरकिनार कर दिया जाता है ..सभी लोग इसके फायदे जानते हैं फिर भी लापरवाह होते है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जागरूकता भरी प्रस्तुति ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ट्रैफिक जाम से बचने के लिये कौन सा नियम बनेगा? सीट बेल्ट के साथ इंच इंच सरकने की व्यथा ने प्रभावित करने की हद ही कर डाली।
ReplyDeleteसीट बेल्ट के साथ जीवन दर्शन बढ़िया लगा ....
Hamare deshkee mansikta ko bade hee rochak dhangse prastut kiya hai aapne.
ReplyDeleteसीट बेल्ट अपनी सुरक्षा के लिए है .दिखाऊ समाधान नहीं है सुरक्षा कवच है भले कम स्पीड में यकायक जोर का ब्रेक लगाना पड़े .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी दया दृष्टि डालें -
ram ram bhai
रविवार, 20 मई 2012
'ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -१ )
'ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -१ )
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से आभार।
सुरक्षा नियमों का पालन खुद हमारे भले के लिए ही है ,पर सच है अधिकतर नियमों का पालन आमजन दंड से बचने के लिए ही करते हैं ......
ReplyDeleteशहर त्रस्त है महा जाम से और छोटे-छोटे जगह बेलगाम रफ़्तार से और बेहिसाब दुर्घटनाओं से ..बढ़िया कहा है..
ReplyDeleteसर जी सभी छूटे हुए लेखो को पढ़ा ! बहुत ही सुन्दर और सुरक्षित बेल्ट !
ReplyDeleteबैंगलोर में तो ट्रैफिक की बड़ी समस्या है ही...लेकिन ये सही कहा आपने की वहाँ के ट्रैफिक पुलिस अपना काम अच्छे से करती है..
ReplyDeleteबाकी सीट बेल्ट पे भी ज्ञान!!वाह :) :)
सीट बेल्ट की उपयोगिता जब तक कोई एक्सीडेंट आँखों न देखा हो समझ नहीं आती. हम लोगों को अनुभवों से ही सीख लेने की आदत है अन्यथा सौ रुपये वाला फोर्मुला कारगर है.
ReplyDeleteआपकी दृष्टि अद्भुत है!
ReplyDeletewell drawn conclusions!!!
हम सुरक्षा नियमों का महत्व जानते हुए भी उसका पालन ना करने का बहाना ढूँढते रहते हैं. दिल्ली में देखा है कि कुछ लोग सीट बेल्ट से छेड़छाड़ करके उसे इतना ढीला कर लेते हैं कि वह नाम के लिये लटकती रहती है. उससे कानून का पालन भले हो जाये, पर सुरक्षा बिलकुल नहीं. बहुत सार्थक आलेख...आभार
ReplyDeleteजाम में फंसा हुआ है हर 'आम'
ReplyDeleteपर सुरक्षा जरूरी है
बहुत धांसू। जेब में 100 रुपये हों तो सीट बेल्ट बांधने की जरूरत नहींः)
ReplyDeleteनियम बनाए जाते हैं पालन करने के लिए ना कि उनका उल्लंधन किया जाए |यदि उल्लंघन किया जाए तो नुक्सान अपना ही होता है |
ReplyDeleteअच्छा लेख |
आशा
सीट बेल्ट के फायदे बहुत से हैं ... ट्रेफिक हो ये न हो ...
ReplyDeleteदरअसल आदत बनाने वाली बात है ... बन जाय तो फायदे की ही बात है ..
प्रवीण जी आपका आलेख बडा रोचक व सामयिक लगा । मैं अभी बैंगलुरु में ही हूँ और जब भी प्रशान्त के साथ कही निकलती हूँ मान्या तुरन्त याद दिलाती है -अरे दादी सीट बेल्ट तो बाँधलो । वास्तव में वह कुछ असुविधाजनक तो लगता है पर सुरक्षा व नियम को ध्यान में रख बाँधना ही चाहिये । हाँ ट्रैफिकजाम में उसे खोल कर बैठने का समय भी खूब मिल जाता है ।
ReplyDeleteदुर्घटना से देर भली होती है अतः ज़रा सी सावधानी ज़िंदगी भर आसानी ....
ReplyDeleteकार में सीट बेल्ट और दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट की अनिवार्यता उचित ही है। यातायात का बहाना लेकर इसकी छूट नहीं ली जानी चाहिए।
ReplyDeleteब्लागियों के समुदाय में, सुरक्षा प्रावधानों और उपकरणों का महत्व आप से अधिक बेहतर और कौन समझ सकता है?
ReplyDeleteअहा हा! प्रवीण जी, आपका आलेख पढ़ते हुए लगा दफ्तर में बैठे हुए भी सड़कों पर बस के हिचकोले सा महसूस हुआ. मैं हाल ही में यहां आई हूं और यत्र-तत्र सुरक्षा नियम देखती रही हूं लेकिन अभी खुद की गाड़ी लेकर उसका पालन करनी की साइत नहीं बनी. क्या ही अच्छा हो गर बस में भी सुरक्षा के लिए सीट-बेल्ट का नियम लागू हो जाए. दो फायदे होंगे, एक हमें कभी स्टैंडिंग में नहीं आना पड़ेगा और दूसरा ड्राइवर के खुद को हवाई-जहाज़ के पायलट समझने के ख्वाब पर पूर्णविराम लग जाएगा. कह नहीं सकती कि रोज़ कितनी बार कितने लोगों को खुद को संभालने के लिए पकड़ना पड़ा और कहना नहीं चाहूंगी कि किसी और के ठीक ऐसा करने पर मुझे कितनी कोफ़्त हुई. कृपया बस से सफर करने वालों के लिए टेर लगाएं.
ReplyDeleteशुभेच्छु,
मृदुलिका झा