लगभग ४ वर्ष पहले का समय, ग्वालियर स्टेशन परिसर में, नयी ट्रेन के उद्घाटन के अवसर पर जनप्रतिनिधियों के अभिभाषण चल रहे थे, एक मालगाड़ी १०० किमी प्रति घंटे की गति से पास की लाइन से धड़धड़ाती हुयी निकली, लोहे की गड़गड़ाहट के स्वर ने ३० सेकेण्ड के लिये सबको निशब्द कर दिया। बहुतों के लिये तो यह ३० सेकेण्ड का व्यवधान ही था और जब वातावरण उत्सवीय हो तो कोई भी व्यवधान अखरता भी है। तभी परिचालन के एक वरिष्ठ अधिकारी कनखियों से हमारी ओर देखते हैं, हल्के से मुस्कराते हैं। संवाद स्पष्ट था, उनके लिये यह ३० सेकेण्ड आनन्द से भरे थे, हमें भी वही रस मिला था। जो सुख ३००० टन की मालगाड़ी को गतिमान दौड़ते देखने में था, भरे डब्बों और पटरियों के खनक सुनने में था, उस ३० सेकेण्ड के सुख के आगे शब्दों के नीरस निर्झर का कोई मोल नहीं था।
आवश्यक नहीं कि रेलवे के जिस रूप से हम अभिभूत हों, वही औरों को भी अभिभूत करे। हम रेलकर्मचारियों के लिये यह आनन्द कर्तव्य का एक अंग है और आवश्यकता भी। हमारा कर्तव्य है कि गाड़ियाँ अपनी अधिकतम गति से ही चलें। संभवतः कर्तव्य से आच्छादित अभिरुचि के आनन्द की विशालता को नहीं समझ नहीं पाता यदि रेलवे के और दीवानों से नहीं मिलता। यात्राओं में या कहीं अन्य स्थानों पर हुयी भेटों में रेलवे के कई और पहलुओं के बारे में भी पता लगा, लोग जिससे प्रेम किये बैठे हैं, एक सीमा से भी अधिक दीवाने हैं।
किसी को गति भाती है, किसी को उनकी लम्बाई, किसी को यात्रा का सुख, किसी को रेल का इतिहास। कोई हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर अब तक वर्णित रेलवे के संदर्भों से अभिभूत है तो कोई रेलवे के माध्यम से पूरा देश नापने का उत्सुक है। कभी रेल की पटरियों के किनारे के दृश्य अपने कैमरे में उतारने के लिये रेलवे के दीवाने पैसेन्जर ट्रेनों में घंटों बिता देते हैं, कभी हवाओं के थपेड़ों को अपने चेहरे पर अनुभव करने के लिये दरवाजों से लटके न जाने क्या सोचते रहते हैं। किसी को रेलवे किसी रहस्य से कम नहीं लगता है, किसी को रेलवे के बारे में बतियाने का और अधिकतम तथ्य जानने का नशा है।
बचपन में रेल पटरियों पर दस पैसे का चपटा हो जाना आर्थिक हानि कम, शक्ति का प्रदर्शन अधिक लगता था। गाँवों में जाती हुयी ट्रेन के यात्रियों को हाथ हिला कर बच्चों का उछलना, रेलवे के प्रति उनके प्रेम का प्रथम लक्षण सा दिखता है, यही धीरे धीरे उपरिलिखित अभिरुचियों और गतिविधियों में आकार लेने लगता है।
कई लोगों में उपस्थित इस उन्माद के बारे में तब पता लगा, जब यहाँ पर कई उद्धाटनों में एक समूह को बार बार देखा। नये तरह के कोच आयें या इंजन, किसी ट्रेन की गति के ट्रायल हों या किसी रेललाइन का विद्युतीकरण, रेल से संबन्धित कोई कला प्रदर्शनी हो या रेल परिसर में कोई अन्य आयोजन, उस समूह की उपस्थिति सदा ही बनी रही, उत्साह से परिपूर्ण लोगों का समूह। थोड़ी बातचीत हुयी तो उसमें कोई इन्जीनियर, कोई सॉफ्टवेयर में, कोई विद्यार्थी, बहुतों का रेलवे से कोई पारिवारिक जुड़ाव नहीं। जहाँ तक उनकी अभिरुचि की गहनता का प्रश्न है तो तकनीक, वाणिज्य से लेकर परिचालन और इतिहास के बारे में पूरी सिद्धहस्तता। लगा कि उनके जीवन के हर तीसरे विचार में रेलवे बसी है।
उत्साह संक्रमक होता है। निश्चय ही आप जिस संगठन के माध्यम से अपनी जीविका चला रहे हैं, उसके प्रति आपकी निष्ठा अधिक होती है और समय के साथ बढ़ती भी रहती है, यह स्वाभाविक भी है, पर रेलवे से पूर्णता असंबद्ध समूह का रेलवे से अप्रतिम जुड़ाव देखकर मन आनन्द और गर्व से प्लावित हो गया।
इंडियन रेलवे फैन क्लब नामक यह समूह अपनी गतिविधियों को इण्टरनेट पर सहेज कर अपने उत्साह को सतत बनाये रहता है। कई और भेटों के पश्चात जब इस साइट पर जाना हुआ तो वहाँ पर उपस्थित सामग्री देखकर आँखे खुली की खुली रह गयीं। सैकड़ों चित्र, यात्रा वृत्तान्त, तकनीकी तथ्य और इतिहास के जो क्षण वहाँ दिखे, वो बिना विशेष अध्ययन के संभव भी नहीं थे। यही नहीं, ये दीवाने हर वर्ष इण्टरनेट के बाहर भौतिक रूप से भी मिलते हैं, विषय विशेष पर चर्चा करते हैं, रेलवे के प्रति अपनी अगाध निष्ठा को अभिव्यक्त करते हैं।
हम सबको कभी न कभी रेलवे ने चमत्कृत किया है, न जाने कितने युगलों को जानता हूँ, जिनके वैवाहिक जीवन की नींव रेलयात्राओं में ही पड़ीं। छुक छुक करते हुये खिलौनों से खेलना हो या रेलगाड़ी में बैठ अपने दादा-दादी या नाना-नानी से मिलने जाना हो, सबके मन में रेल कहीं न कहीं घर बनाये हुये है। आपके मन में वह विस्मृत विचार पुनः अँगड़ाई लेना चाहे तो आप इन दीवानों से जुड़ भी सकते हैं। जहाँ एक ओर आपकी अपेक्षाओं के ताल को भरने में रेल कर्मचारी अपने श्रम से योगदान दे ही रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आपका हृदयस्थ जुड़ाव ही रेलवे की ऊर्जा को स्रोत भी है।
यह देख रेलवे भी निश्चय ही यही कह उठेगी कि मेरे फैन भी मुझसे कोई नहीं छीन सकता है।
आवश्यक नहीं कि रेलवे के जिस रूप से हम अभिभूत हों, वही औरों को भी अभिभूत करे। हम रेलकर्मचारियों के लिये यह आनन्द कर्तव्य का एक अंग है और आवश्यकता भी। हमारा कर्तव्य है कि गाड़ियाँ अपनी अधिकतम गति से ही चलें। संभवतः कर्तव्य से आच्छादित अभिरुचि के आनन्द की विशालता को नहीं समझ नहीं पाता यदि रेलवे के और दीवानों से नहीं मिलता। यात्राओं में या कहीं अन्य स्थानों पर हुयी भेटों में रेलवे के कई और पहलुओं के बारे में भी पता लगा, लोग जिससे प्रेम किये बैठे हैं, एक सीमा से भी अधिक दीवाने हैं।
बचपन में रेल पटरियों पर दस पैसे का चपटा हो जाना आर्थिक हानि कम, शक्ति का प्रदर्शन अधिक लगता था। गाँवों में जाती हुयी ट्रेन के यात्रियों को हाथ हिला कर बच्चों का उछलना, रेलवे के प्रति उनके प्रेम का प्रथम लक्षण सा दिखता है, यही धीरे धीरे उपरिलिखित अभिरुचियों और गतिविधियों में आकार लेने लगता है।
उत्साह संक्रमक होता है। निश्चय ही आप जिस संगठन के माध्यम से अपनी जीविका चला रहे हैं, उसके प्रति आपकी निष्ठा अधिक होती है और समय के साथ बढ़ती भी रहती है, यह स्वाभाविक भी है, पर रेलवे से पूर्णता असंबद्ध समूह का रेलवे से अप्रतिम जुड़ाव देखकर मन आनन्द और गर्व से प्लावित हो गया।
इंडियन रेलवे फैन क्लब नामक यह समूह अपनी गतिविधियों को इण्टरनेट पर सहेज कर अपने उत्साह को सतत बनाये रहता है। कई और भेटों के पश्चात जब इस साइट पर जाना हुआ तो वहाँ पर उपस्थित सामग्री देखकर आँखे खुली की खुली रह गयीं। सैकड़ों चित्र, यात्रा वृत्तान्त, तकनीकी तथ्य और इतिहास के जो क्षण वहाँ दिखे, वो बिना विशेष अध्ययन के संभव भी नहीं थे। यही नहीं, ये दीवाने हर वर्ष इण्टरनेट के बाहर भौतिक रूप से भी मिलते हैं, विषय विशेष पर चर्चा करते हैं, रेलवे के प्रति अपनी अगाध निष्ठा को अभिव्यक्त करते हैं।
यह देख रेलवे भी निश्चय ही यही कह उठेगी कि मेरे फैन भी मुझसे कोई नहीं छीन सकता है।
साईट को तो फुर्सत में एक्सप्लोर करूंगी पर फैक्ट तो है कि हम सबके मन में कहीं न कहीं रेलवे की बेहद मासूम और बचपन के दिनों सी अल्हड यादें जुड़ी हैं. अनगिन किस्सों की पृष्ठभूमि रही है भारतीय रेल.
ReplyDeleteस्वित्ज़रलैंड में वहां की स्विस रेल बहुत भायी...एकदम वक्त पर आने वाली...स्टेशन जैसे एयरपोर्ट की तरह...दोनों तरफ दिखते बेहद खूबसूरत नज़ारे...लेकिन फिर भी लगा कि अपनी रेलवे की बात ही और है...थोड़ी कच्ची थोड़ी अनगढ़...थोड़ी अनियमित. मैं ये भावनात्मक स्तर पर कह रही हूँ...निश्चित रूप से प्रैक्टिकल दिमाग ने कहा...वाह क्या रेलवे प्रणाली है...पर दिल ने कहा...हमारी रेल में जो जीवन है वो वाकई कहीं और कहाँ.
एक काव्य है रेल और उसका अहसास देता आपका यह आलेख
ReplyDeleteरेलवे हमारे देश की बहुमूल्य सम्पदा है.इसके माध्यम से हर नागरिक लाभान्वित है.यह हमें अपनों से मिलाती है.इसके तंत्र में यदि खामी दूर कर ली जाए तो फिर फैन भी बढ़ जायेंगे.इसका आरक्षण-सिस्टम अभी भी बहुत पीड़ित करता है और फेसबुक पेज काम नहीं करता !
ReplyDeleteहम फिर भी आपके फैन हैं !
जनता की सवारी ,ट्रेन-यात्रा शुरू से भाती थी .पर इन ए.सी. से अधिक हमें प्रथम श्रेणी के डब्बे आधिक आनन्ददायक लग थे(अब तो चढ़ने नहीं मिलता उन पर) ,जब डब्बा-बंद हो कर नहीं सारी दुनिया देखते चलते थे ,रास्ते की प्रकृति नदियाँ,जनधारा,खुली हवा औऱ एक-से-एक निराले लोग !हर स्टेशन पर मज़ा ही मज़ा !
ReplyDeleteअब नहीं लगवा सकते वे डिब्बे ?
आपके लेखन से प्रभावित हम भी रेलवे के फ़ै!न बन गये हैं
वाक़ई, रेल दा जवाब नईं
ReplyDeletesach me rel bharat rupee shareer ki nase hai jisme tarkki rupi khoon daudta hai .
ReplyDeleteआज भी ज़ुबान पर है - रेल हमारी लिए सवारी काशी जी से आई है , हरे हरे कुछ पीले पीले आम वहाँ से लायी है .... इसका आनंद अलग है , यदि पूरा परिवार साथ हो तो
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन जानकारी प्रवीण जी । हम तो फ़ौरन ही उसकी सदस्यता ले लिए हैं । उहां हमसे पूछा गया कि आप काहे बनना चाहते हैं सदस्य । हमने कहा जो उहे इहां भी लिख रहे हैं । रेल और विशेषकर भारतीय रेल , एक इतिहास है , एक किताब है , एक संस्कृति है , एक दोस्त है , मुझे बहुत पसंद हैं रेल यात्राएं और देश की तो जीवन रेखा है । सोचता हूं कि हर रेल यात्रा के अनुभव के लिए " रेलगाडी" के नाम से यादों को समेटने का सिलसिला क्यों न शुरू किया जाए । जल्दी ही लिखना शुरू करूंगा ......
ReplyDeleteछुक छुक करती रेल में लम्बी दूरी की यात्राओं में सहयात्रियों का मिलना , बतियाना और बिछड़ जाना जीवन यात्रा सा ही लगता है ! पार्टियों पर धड़धड़ाती रेल और इसकी यात्रा ने हमेशा लुभाया मगर इसका कोई फैन क्लब भी होगा , यह नहीं सोचा था !
ReplyDeleteरोचक जानकारी !
रोचक विवरण व अनुभूतियाँ कलात्मकता लिए ......जीवन का सानिध्य स्पर्श करता हुआ ....अपना सा .....
ReplyDeleteवैसे ही जैसे रेल की द्वितीय श्रेणी में लगे फैन कोई छीन ही नहीं सकता। हवा भले ही बदल जाए। पर वे फैन तो फैन ही रहेंगे। और हम तो जन्म से ही उसके फैन हैं।
ReplyDeleteरेल बिना सब सून ……॥ मेरे घर की बाऊंड्री से लग कर नैरो गेज ट्रेन जाती है। मैने इसके इंजन को कोयले से डीजल में परिवर्तित होते देखा। लेकिन कभी सवारी करने की कोशिश नहीं की। छुक छुक गाड़ी से पहले मैं अपनी बाईक पर गंतव्य पर पहुंच जाता है। लेकिन इन छ: महीनों में मैने छ: बार सवारी की। बड़ा आनंद आया। भारतीय रेल देश की जीवन रेखा है। इसके बिना आम भारतीय का जीवन संभव नहीं।
ReplyDeleteपटरंगा आर एस पता, डिस्ट्रिक्ट फ़ैजाबाद |
ReplyDeleteपास होम-सिग्नल खड़ा, होम वहीँ आबाद |
होम वहीँ आबाद, बगल विद्यालय साजे |
घंटा तो था व्यर्थ, रेल की छुक छुक बाजे |
जम्मू देहरादून, करे तेजी मनचंगा |
मिलता रहा सुकून, बड़ा प्यारा पटरंगा ||
har baar kee tarah aapka aalekh khubsurat, utkrishth aur prabhaavshaali hai... rail ke naye darshan ke liye dhanyavaad...
ReplyDeleteरेलवे देश के आमजन से जुड़ा है.... यह एक गहरा रिश्ता है जो समय के भी नहीं बदला है.....
ReplyDeleteप्रवीण जी , रेल से जुडी कितनी यादे है क्या कहे आपसे, अभी कल रत ही रेल से जुडी और गोवा की एक यात्रा के सपने देखे है . और तो और आपने देखा भी होंगा कि मेरी बहुत सी कविताओ में ट्रेन /रेल हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख जी
पढकर कुछ अपना सा लगा.
विजय
रेल के साथ पूरा जीवन दर्शन चलता है... आना-जाना, यात्रा और यात्राओं में जुड़े यादगार परिचय.
ReplyDeleteरोचक आलेख और फैन क्लब के विषय में बढ़िया जानकारी भी ...!
ReplyDeleteफैन क्लब के मेम्बर तो नहीं लेकिन हमारी आपकी रेल के तो हम भी फैन, कूलर, एसी सब कुछ है| और उसमें भी जनरल कोच या स्लीपर क्लास के तो और भी ज्यादा, दुःख सिर्फ यही है कि ये आनंद अकेले की जाने वाली यात्रा में ही लूट पाते हैं|
ReplyDeleteऔर तमाम उम्र, भारतीय रेल के फैन बने रहेंगे, आपकी बताई साईट को बुकमार्क कर लिया है|
वाह महाराज खूब बढ़िया जानकारी दिये आप ... आभार !
ReplyDeleteरेल का आनंद ही अलग है .... लेकिन जो मज़ा पहले साधारण कोच में आता था वो ए ॰ सी॰ कोच में नहीं आता .... फैन क्लब की जानकारी अच्छी रही
ReplyDeleteरोचकता लिए हुए उत्कृष्ट लेखन ... आभार ।
ReplyDeleteसच है रेल से आज भी जुड़ाव सा रहता है ... मेरी तो कोशिच आज भी यही होती है की लंबी यात्रा रेल से ही करी जाय ... बस समय होना चाहिए ...
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteउत्साह संक्रमक होता है। निश्चय ही आप जिस संगठन के माध्यम से अपनी जीविका चला रहे हैं, उसके प्रति आपकी निष्ठा अधिक होती है और समय के साथ बढ़ती भी रहती है, यह स्वाभाविक भी है, पर रेलवे से पूर्णता असंबद्ध समूह का रेलवे से अप्रतिम जुड़ाव देखकर मन आनन्द और गर्व से प्लावित हो गया।
ReplyDeleteअपने अन्दर एक हिन्दुस्तान लिए घूमती है हर रेल यहाँ से वहां और वहां से यहाँ .राष्ट्रीय एकता का सांस्कृतिक विविधता का मूर्त रूप है रेल .रेल एक गति है और गति ही जीवन है .ये जीवन खुद एक सफ़र है -
यह दुनिया खुद मुसाफिर है ,सफ़र कोई घर नहीं होता ,
सफ़र तो आना जाना है ,सफ़र कमतर नहीं होता .
गो अपने घर में अटका आदमी ,बदतर नहीं होता ,
सफ़र में चलने वाले से ,मगर बेहतर नहीं होता .
बढ़िया पोस्ट है आपकी समर्पित कर्म का आइना है अद्भुत विरल चित्र लिए हुए .
बहुत बढ़िया.भारतीय रैलवे सबके साथ सबके पास:):). पूरा जीवन होता है रेल में.
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी भारतीय रेल के सफर का मज़ा ही कुछ अलग है जैसा पुजा ने कहा मेरा भी ठीक वैसा ही अनुभव रहा है।
ReplyDeleteआपकी रेल यूँ ही चलती रहे . अपना तो रेल सफ़र १५ साल से नहीं हुआ . :)
ReplyDeleteरेल यात्रा का आनंद जो बचपन में था वह आज भी है..फर्क बस इतना है कि अब ए सी में उस अपनापन और भारत के विभिन्न रूपों का दर्शन नहीं होता जो साधारण श्रेणी की यात्रा में होता था...बहुत रोचक
ReplyDeleteमेरा मानना है कि रेल यात्रा सबसे सुरक्षित है इसलिए जनता की भावनाए भारतीय रेल जुडी है ऐसे में भारतीय रेल के फैन निश्चित है कि कभी कम नही हो सकते........उत्कृष्ट लेखन अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
सही कहा जी, जब में रात की पाली में काम करता था और कोफ़्त होती थी, तो मुझे प्रेरणा रेल के ड्राइवर से ही मिलती थी, देखो गर सभी लोग सुविधा अनुसार चलेंगे तो रेल चलनी बंद हो जायेगी,
ReplyDeleteरेल लगाव की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteआपने तो सभी को सम्मोहित कर दिया!!
वाह: रेल यात्रा बहुत रोचक सुन्दर वर्णन.....आभार..
ReplyDeleteमेरा मन तो " भारतीय रेल" पढ़ के ही पता नहीं क्यों गदगद हो जाता है :)
ReplyDeleteरेल से तो बचपन से ही लगाव है अब उसके फैन क्लब से भी जुड़ जाते है .
ReplyDeleteसचमुच! रेलगाड़ियों और रेलयात्राओं में अद्भुत आकर्षण है... घुमावदार रास्ते, गहरी खाईयों, पहाड़ों के बीच दौड़ती रेल में खिड़की से बाहर झांकना.... रेल यात्राएं याद आ गईं...
ReplyDeleteसादर।
रेल का आनंद ही अलग है
ReplyDeleteरेल नेटवर्क का अद्भुत विस्तार है और उससे अधिक संभावनाएं है. मुझे तो वो गाना याद आता है. रेल गाड़ी छुक छुक.....
ReplyDeleteबचपन रेलवे स्टेशन के निकट ही बीता। अगर बचपन में किसी बात से मूड खराब होता था तो पिताजी रेलवे स्टेशन की सैर करा दिया करते थे। इस पोस्ट को लिख कार आपने एक आम भारतवासी के दिल की बात कह दी।
ReplyDeleteभारतीय रेल के कुछ अनुछुये पहलुओं पर भी लिखेंगे, यह उम्मीद आपसे है !
ReplyDeleteआभार इस लेख के लिए !
कभी शौकिया यात्राएं खूब हुईं, पैसेंजर में, ऐसे लोग लगातार आते रहते थे, जिनका जीवन-यापन यहां होता था, फेरी-खोमचे वाले, तमाशे वाले, गायक-बजायक कलाकार भिक्षार्थी.
ReplyDeleteखोमचे-फेरी वाले, खेल-तमाशे वाले और गायक-बजायक भिक्षार्थी, छुक-छुक पैसेंजर यात्राओं में भी पता ही न चलता कि सफर कैसे कट गया.
ReplyDelete@rahul ki... :) :)
ReplyDelete@praveen sir, my first visit! yaad aaya blog title ka naam atalji ki poem ka title b h!
Rail- ek alag hi duniya mahsoos krta hoon vha!
रेल पर अद्भुत जानकारी देता यह अद्भुत आलेख पाठक को आकर्षित करता है |स्टेशन पर हम हाथ हिलाते रह जाते हैं और हमारे पास रह जाती हैं खाली पटरियां |जाने वाले कुछ दूर पलटकर देख लेते हैं .और हम बिछड़ जाते हैं अपनों से |मेरा एक शेर है -गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई /उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है |
ReplyDeleteGreat post with awesome pics...Thanks.
ReplyDeleteचमत्कृत करता आलेख. उन दिनों मैं बिलासपुर में था और पदस्थी एक कसबे में लगभग १०० किलोमीटर दूर. परिवार को बिलासपुर में ही रखने की मजबूरी थी इस लिए संडे वाला पापा बन गया था. हर सोमवार सुबह द्रुतगामी मालगाड़ी के इंजिन में जाया करता और भले उस कसबे में स्टॉप नहीं थी परन्तु मेरे लिए एक मिनट रुक जाती थी. ड्राइवर हमारे मोहल्ले का ही था. १० बजे तक अपने कार्यालय पहुँच जाता. शनिवार शाम भी मेरे लिए गाडी रूकती थी और पूर्व सूचना स्टेशन मास्टर दे देता. वे भी क्या दिन थे.
ReplyDeleteआनन्दप्रद आलेख । मुझे उन दिनों से लेकर जब हम छोटी लाइन वाली गाडी से सफर करते थे ,हवाईजहाज की यात्रा तक आज भी रेल से ही सफर करना अच्छा लगता है वह भी खिडकी के पास बैठ कर । तो उसके फैन सचमुच कभी कम नही हो सकते ।
ReplyDeleteआपने भी इस ललचाते विषय को तब छेड़ा है जब गर्मी की छुट्टियाँ चल रही हैं.. आहा क्या मज़ा आता था और आता है रेल में सफर करने का.. सही में.. बहुत सी यादें रेल से ही जुडी हुई हैं!
ReplyDeletebahut hi umda aur saarthk lekhn,bdhai aap ko....
ReplyDeleteहम तो रेल के फैन पहले से हैं अब आपके भी होते जा रहे हैं |
ReplyDeleteसंवाद स्पष्ट था, उनके लिये यह ३० सेकेण्ड आनन्द से भरे थे, हमें भी वही रस मिला था। जो सुख ३००० टन की मालगाड़ी को गतिमान दौड़ते देखने में था, भरे डब्बों और पटरियों के खनक सुनने में था, उस ३० सेकेण्ड के सुख के आगे शब्दों के नीरस निर्झर का कोई मोल नहीं था।
ReplyDeleteगांधीजी ने इस देश की आत्मा को रेलों में देखा सबसे ज्यादा यात्राएं कीं और वह भी तीसरे दर्जे में वही तो असली हिन्दुस्तान है आज भी .जो पटरियों के साथ साथ चलता है .अपनी अस्मिता को बचाता हुआ .
न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढक लेंगें ,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए .
आपका लेख भारतीय रेल को देखने की नई दृष्टि देता है.
ReplyDeleteमेरे फैन भी मुझसे कोई नहीं छीन सकता है।
ReplyDeleteजी और आपके भी ....:))
16.5.12
ReplyDeleteमेरे फैन भी मुझसे कोई नहीं छीन सकता है
शुक्रवार, 18 मई
भाई साहब ये सम्मोहन तो दिनानुदिन बढना है .गति और प्रवाह यही तो जीवन है एक रेल हमारे अन्दर भी तो है भावनाओं की साँसों की ...
कृपया यहाँ भी पधारें -
ऊंचा वही है जो गहराई लिए है
शाश्वत सत्य यही है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
2012
भाई साहब ये सम्मोहन तो दिनानुदिन बढना है .गति और प्रवाह यही तो जीवन है एक रेल हमारे अन्दर भी तो है भावनाओं की साँसों की ...
रेलवे की यात्रा और उसकी गति का कोई जोड़ नहीं .
ReplyDeleteफैन क्लब ने भी अपना फैन बना लिया ..
ReplyDeleterailway ki journey ki bat hi alag hain
ReplyDeletepichale 2 saal se updown kar raha hun main to
ujjain to indore
Praveen ji kiya kuch likh diya are apnee jindagi main to RAIL ka bahut bada yogdaan hai...pure ke pure 14,saal rail ne saath nibhaya hai...ab to bas RAIL YATRA ki yade hi rah gayee hai....
ReplyDeleteRail Ki patri dekh kar aaj bhee sab kuch yaad aa jaata hai....bahut bahut sadhanviyaad...
jai baba banaras...
बहुत रोचक रेलवे से सम्बंधित आलेख रेल की गति सबको भाती है विशेषकर उस समय जब किसी रेलवे फाटक पर काफी देर से खुलने का इन्तजार कर रहे हों
ReplyDeleteआपका पिछ्ला आलेख भी याद आरहा है इंजन का तारत्व उसके काम करने की क्षमता का एहसास करा देता है .यानी इंजन की ध्वनी मामूली कभी नहीं होती क्वालिटी लिए होती है अपनी दक्षता की .इस आलेख में भी एक अन्डर करेंट है रेल के प्रति सम्मोहन भाव .रेल सबकी है गंगा की तरह है .
ReplyDeleteरेल यात्रा में तो सच में बहुत मजा आता है कुछ दिन बीतने के बाद मेरा आग्रह यही होता है कि कहीं जाना है ट्रेन से ..कहाँ से मतलब कम ही होता है ...)
ReplyDeleteIRFCA के वेबसाईट को बुकमार्क कर लिया है...अब आराम से उसे एक्सप्लोर करते हैं..देखते हैं क्या माल है वहाँ..:)
ReplyDeleteसच कहते हैं! रेलवे को हम कुछ भी कह लें लेकिन उसके फेन उससे कोई नहीं छीन सकता, मैं भी उनमे से एक हूँ और शायद हम सभी हैं :)
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