एक मित्र ने अंग्रेजी का एक धारावाहिक सुझाया था, 'द बिग बैंग थ्योरी'। शीर्षक आधुनिक विज्ञान से संबंधित है पर विषय वस्तु एक विशुद्ध हास्य है। एक कड़ी देखकर ही मन बना लिया था कि जब भी समय मिलेगा, उसे पूरा देखा जायेगा। मित्र ने ही अभी तक के सारे सत्रों की एक सीडी भी दे दी थी, १२७ कड़ियाँ, लगभग ४० घंटे का मनोरंजन, बिना किसी विज्ञापन के।
रेलयात्रा में वह अवसर मिल गया, औरों को विघ्न न हो अतः ईयरफोन लगा कर देखने लगा। मशीन की आवाज तो नियन्त्रित कर सकता था पर जब स्वयं को ही ठहाका मारने का मन हो तब कौन सा साइलेंसर लगाया जाता। कई बार आस पास के यात्रियों को कौतूहलवश अपनी ओर ताकते देखा तो अपने उद्गारों को यथासंभव नियन्त्रित करने लगा। रेलयात्रा के बाद वही ठहाकायुक्त व्यवहार घर में भी चलता रहा, यह देख माँ पिता को अटपटा तो लगा पर देखा कि लड़का प्रसन्न है तो वह भी मन्द मन्द मुस्कराते रहे।
घर में एक व्यक्ति ठहाका मारे तो उसे अपवाद मान कर छोड़ा जा सकता था, पर दूसरे ठहाकों की आवाज ने हमें भी अचम्भे में डाल दिया। प्रतिद्वंदी कहाँ से आ टपका, जाकर दूसरे कमरे में देखा तो पुत्र महोदय पृथु भी वही धारावाहिक देख रहे थे, दूसरे लैपटॉप पर। रेलयात्रा में हमारे ठहाकों ने उनकी उत्सुकता बढ़ा दी थी, समय पाकर उन्होने अपने लैपटॉप पर उसे कॉपी कर लिया और बिना किसी से सलाह लिये और अपने वीडियो गेम छोड़कर उसी में व्यस्त हो लिये। पृथु के ठहाकों में मुझे अपने ठहाके कुछ कुछ उपस्थित लग रहे थे, पता नहीं गुणसूत्रों में थे या पिछले तीन दिन में सीखे थे। सबको अपना स्वभाव और व्यवहार बड़ा ही सामान्य और प्राकृतिक लगता है पर जब वही व्यवहार आपकी सन्ततियों में भी आ जाये तब कहीं जाकर उसके गुण दोष पता चलते हैं।
सभ्य समाज में बिना किसी पूर्वसूचना के प्रसन्नता के उद्गार ठहाके के रूप में व्यक्त करना भले ही असभ्यता की श्रेणी में आता हो, पर न तो कभी हमारे माँ पिता को मेरे ठहाकों पर आपत्ति रही और न ही कभी हम पृथु को इसके लिये कोई सलाह देंगे। सुना है भावों को व्यक्त होने से दबाने में शरीर और मन का अहित हो जाता है। यह अहित न होने पाये, इसके लिये हम अपने मित्रों की 'रावण के अट्टाहस' जैसी टिप्पणियाँ भी स्वीकार कर चुके हैं। विद्यालय में एक बार ठहाकों की आवाज हमारे प्रधानाध्यापक को हमारी कक्षा तक खींच लायी थी। प्रशिक्षण के समय इन्हीं ठहाकों ने भोजनालय में कुछ महिला प्रशिक्षुओं को सहसा भयभीत कर दिया था, शालीनतावश क्षमा माँगने पर उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यही लड़का इतनी उन्मुक्तता से ठहाका मार रहा था।
अब, न तो इतना उत्साह रहा है और न ही कोई ठोस कारण दिखता है कि इन ठहाकों पर कोई नियन्त्रण रखा जाये। यदि कोई हास्य व्यंग का दृश्य देखता हूँ तो स्वयं को रोक नहीं पाता हूँ। इस धारावाहिक की विषयवस्तु है ही कुछ ऐसी।
चार मित्र हैं, चारों वैज्ञानिक, उनकी बातें और चुहुलबाजी उसी स्तर पर रहती हैं। उनकी आदतें और यहाँ तक कि उनका भोजन भी सप्ताह के दिनों के अनुसार निश्चित हैं। मुख्य नायक शेल्डन की सनक भरी आदतें उसके मित्रों के लिये कठिनाई उत्पन्न कर देती हैं, पर उनकी मित्रता इतनी गहरी है कि वे सब सह लेते हैं। शेल्डन को न बात छिपाना आता है और न बात बनाना, उसका चीजों को सीधे से कह देना बहुधा सबको हास्यास्पद स्थिति में डाल देता है। उनके घर के सामने पेनी नाम की एक लड़की रहने आती है, वह औसत बुद्धि वाली व्यावहारिक लड़की है और एक होटल में सहायिका का कार्य करती है। पेनी, शेल्डन और उसके मित्रों को एक दूसरे के विश्व अचम्भित और आकर्षित करते हैं।
वैसे तो हिन्दी के हास्य धारावाहिकों में भी आनन्द आता है पर इस धारावाहिक में इतना आनन्द आता है कि ठहाका मारने का मन करता है। पात्रों के अभिनय व एक एक संवाद पर किया श्रम इस धारावाहिक की गुणवत्ता व संबद्ध लोकप्रियता से परिलक्षित है, इसे मिले पुरस्कार भी यही बात सिद्ध करते हैं। अंग्रेजी ऐसी है कि समझ में आती है, तभी हमारे पुत्र भी ठहाका मार रहे थे। यदि कठिनता हो तो इसे उपशीर्षकों के साथ भी देखा जा सकता है।
इस धारावाहिक में निहित हास्य इसे जितना रोचक बनाता है, उससे भी अधिक रोचक है 'बिग बैंग थ्योरी'। उस पर ध्यान नहीं जाता यदि पृथु शेल्डन से प्रभावित हो उस विषय के पीछे न पड़ जाते। इस धारावाहिक को देखने में पृथु के ठहाके उतने ही प्राकृतिक थे जितने गम्भीर इस सिद्धान्त के बारे में उसके प्रश्न।
चलिये, इस बार ठहाकों का आनन्द लीजिये, प्रश्न अगली बार।
रेलयात्रा में वह अवसर मिल गया, औरों को विघ्न न हो अतः ईयरफोन लगा कर देखने लगा। मशीन की आवाज तो नियन्त्रित कर सकता था पर जब स्वयं को ही ठहाका मारने का मन हो तब कौन सा साइलेंसर लगाया जाता। कई बार आस पास के यात्रियों को कौतूहलवश अपनी ओर ताकते देखा तो अपने उद्गारों को यथासंभव नियन्त्रित करने लगा। रेलयात्रा के बाद वही ठहाकायुक्त व्यवहार घर में भी चलता रहा, यह देख माँ पिता को अटपटा तो लगा पर देखा कि लड़का प्रसन्न है तो वह भी मन्द मन्द मुस्कराते रहे।
सभ्य समाज में बिना किसी पूर्वसूचना के प्रसन्नता के उद्गार ठहाके के रूप में व्यक्त करना भले ही असभ्यता की श्रेणी में आता हो, पर न तो कभी हमारे माँ पिता को मेरे ठहाकों पर आपत्ति रही और न ही कभी हम पृथु को इसके लिये कोई सलाह देंगे। सुना है भावों को व्यक्त होने से दबाने में शरीर और मन का अहित हो जाता है। यह अहित न होने पाये, इसके लिये हम अपने मित्रों की 'रावण के अट्टाहस' जैसी टिप्पणियाँ भी स्वीकार कर चुके हैं। विद्यालय में एक बार ठहाकों की आवाज हमारे प्रधानाध्यापक को हमारी कक्षा तक खींच लायी थी। प्रशिक्षण के समय इन्हीं ठहाकों ने भोजनालय में कुछ महिला प्रशिक्षुओं को सहसा भयभीत कर दिया था, शालीनतावश क्षमा माँगने पर उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यही लड़का इतनी उन्मुक्तता से ठहाका मार रहा था।
अब, न तो इतना उत्साह रहा है और न ही कोई ठोस कारण दिखता है कि इन ठहाकों पर कोई नियन्त्रण रखा जाये। यदि कोई हास्य व्यंग का दृश्य देखता हूँ तो स्वयं को रोक नहीं पाता हूँ। इस धारावाहिक की विषयवस्तु है ही कुछ ऐसी।
इस धारावाहिक में निहित हास्य इसे जितना रोचक बनाता है, उससे भी अधिक रोचक है 'बिग बैंग थ्योरी'। उस पर ध्यान नहीं जाता यदि पृथु शेल्डन से प्रभावित हो उस विषय के पीछे न पड़ जाते। इस धारावाहिक को देखने में पृथु के ठहाके उतने ही प्राकृतिक थे जितने गम्भीर इस सिद्धान्त के बारे में उसके प्रश्न।
चलिये, इस बार ठहाकों का आनन्द लीजिये, प्रश्न अगली बार।
Penny, Penny, Penny :)
ReplyDeleteIt is quite popular among the nerd community.
Cheers,
Neeraj
abhi tak dekha nahi hai ye program jaldi hi dekhungi fir thahake bhi lagaungi. wese post padhkar laga behtareen hoga
Deleteये मेरा फेवरेट धारावाहिक है। सभी पात्र का चरित्र चित्रण चुन चुन कर क्या गया है। डा शेल्डन कुपर के क्या कहने! वैज्ञानिक शब्दावली के प्रयोग से हास्य , कभी सोचा नही था!
ReplyDeleteचारो मित्र वैज्ञानिक नही है जी, डा शेल्डन कुपर बुरा मान जायेंगे। हार्वड इंजीनियर है, और डाक्टरेट भी नही है!
हाँ, शेल्डन महोदय को बहुत खराब लगेगा, लियनर्ड भी को पूरा वैज्ञानिक नहीं मानते हैं वो तो।
Deleteइस धारावाहिक को देखकर हम भी ठहाके लगा चुके है . रोचक लेखन .
ReplyDeleteहाँ, मैंने भी एक दो एपिसोड देखे हैं लेकिन युट्यूब पे...मैं तो इंग्लिश धारावाहिक में अब तक सिर्फ 24 के आठ सीजन,प्रिजन ब्रेक के चार सीजन और हीरोज के सभी सीजन देख चूका हूँ..बस!
ReplyDeleteवैसे ये 'बिग बैंग थेओरी' भी मेरे लिस्ट में है, समय मिलते ही डाउनलोड कर के देखता हूँ! :)
मेरे दोनों बच्चे तो इसे बारंबार ही देखते रहते हैं!
ReplyDeleteअद्भुत है यह. इस लेवल का धारावाहिक तो हिंदी में शायद अगले सौ बरस में भी न आ पाए!
नहीं आयेगा...क्योंकि हिन्दी..हिन्दी है अन्ग्रेज़ी नहीं...
Deleteसबको अपना स्वभाव और व्यवहार बड़ा ही सामान्य और प्राकृतिक लगता है पर जब वही व्यवहार आपकी सन्ततियों में भी आ जाये तब कहीं जाकर उसके गुण दोष पता चलते हैं।
ReplyDeleteवाकई !
रोचक वर्णन से धारावाहिक के प्रति उत्सुकता हो गयी है !
आजकल ठहाके दुर्लभ हैं , कोशिश ही नहीं होती न उनमें वह दम है !
ReplyDeleteपृथु इतने बड़े हो गए हैं ...? यह जान अच्छा लगा !
यह अपने पापा से आगे जायेंगे !
बधाई आपको ..
यह हिन्दी में डब वर्जन है या ओरिजिनल...?
ReplyDeleteमेरे युनिवेर्सिटी दिनों के एक प्रोफ़ेसर थे -एक बार कक्षा में घुसते ही मुझे खड़ा किया और सावधान किया
कि मेरे ठहाके उनके चैंबर तक सुनायी देते हैं जो वहां से २०० मीटर दूर था और बीच में बिल्डिंग -व्यवधान भी
आज तसल्ली इसी बात की है कि वे ठहाके कुछ कम ही सही पर आज भी साथ हैं ....आपके और पृथु और सभी परिवार जनों के साथ हों यही तमन्ना है !
वैसे हम टीवी साधारणतया नहीं देखते. अब देखना पड़ेगा.
ReplyDeleteयह तो आनंददायक है ही, अगले की प्रतीक्षा है.
ReplyDeleteदेखा है इस कार्यक्रम को.....और ठहाके रोक पाना सच में मुझे भी मुश्किल ही लगा था .... पृथु के जुड़ाव के विषय में जानकर अच्छा लगा ....
ReplyDeleteबढ़िया |
ReplyDeleteआभार भाई जी ||
अभी तक देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है, आपने कहा है तो निश्चय ही मजेदार होगा.अच्छी जानकारी हेतु आभार.
ReplyDeleteठहाके के असली मरीज़ तो हम हैं जी.घर में श्रीमतीजी इस क्रिया से सहमत नहीं होतीं,पर कार्य-स्थल पर भरपूर हौसला-अफ़जाई होती है.
ReplyDeleteइस सीरियल को अभी तक देखा नहीं है,अब कोशिश करूँगा !
पृथु के लिए शुभकामनाएँ कि वह हमेशा मस्त रहे ,ऐसे ही !
सबको अपना स्वभाव और व्यवहार बड़ा ही सामान्य और प्राकृतिक लगता है पर जब वही व्यवहार आपकी सन्ततियों में भी आ जाये तब कहीं जाकर उसके गुण दोष पता चलते हैं।
ReplyDeleteसही बात लिखी है आपने |
यही बातें हैं जो हमें अपनी जड़ों से बांधे रखतीं हैं ...!!
टी.वी से दूर-दूर का कोई नाता नहीं है हमारा तो ... |आपकी पोस्ट पढ़ कर लग रहा है सीरियल देख लिया ....!!
कई बार आस पास के यात्रियों को कौतूहलवश अपनी ओर ताकते देखा तो अपने उद्गारों को यथासंभव नियन्त्रित करने लगा।
हमारे साथ भी ये समस्या तब आती है जब बहुत देर तक ट्रेन में अकेले होते हुए भी , अपनी राग आलापे बगैर नहीं रह पाते हैं हम |
बहुत रोचक आलेख ....!!
सबको अपना स्वभाव और व्यवहार बड़ा ही सामान्य और प्राकृतिक लगता है पर जब वही व्यवहार आपकी सन्ततियों में भी आ जाये तब कहीं जाकर उसके गुण दोष पता चलते हैं।
ReplyDeleteबिलकुल सही बात .... बहुत अच्छी जानकारी मिली धारावाहिक की .... पृथु में भी आपके गुण आ रहे हैं ...शुभकामनायें
पृथु के ठहाके ने मुझे मुस्कुराने पर विवश किया इमैजिन करके .... पर इसके गंभीर प्रश्नों का सामना नहीं करुँगी :)
ReplyDeleteमेरे एक मित्र की पत्नी ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रही थीं.. मैं जब उनसे मिलने गया तो उन्होंने मना कर दिया कि कल से आप मत आइयेगा मिलने .. मेरी बातों से उनकी हँसी रुकती नहीं थी और टांकों में दर्द होने लगता था.. ठहाके भी गायब हो रहे है, ढंग से मुस्कुरा ले कोई तो बड़ी बात है!!
ReplyDeleteऐसा ही मैं हूँ !
Deleteसहमत हूँ आपकी इस बात से कि जब सन्तति हमारे व्यवहार को अपना लेती है तब उस के गुण-दोष का आकलन हम स्वयं भी कर सकते हैं | छोटे बेटे के कीकीत्व ( किताबी कीड़ा ) के लिए मुझे ज़िम्मेदार ठहराया जाता है तब भी मुझे उतना ही आनन्द आता है ,जितना कि बड़े बेटे के नटखटपने का प्रेरणास्रोत बनाये जाने पर ......पृथु के ठहाके ताउम्र बने रहें !
ReplyDeleteवाह बहुत रोचक अंदाज में लिखा आलेख हास्य धारावाहिक का भी पता लगा और आपके स्वभाव का बहुत ख़ुशी हुई जानकार वर्ना आजकल इतने ठहाके लगाने वाले मिलते कहाँ हैं मुस्कुराएंगे भी ऐसे जैसे दूसरे पर एहसान कर रहे हों शुभकामनाएं की आपके परिवार में ये ठहाके गूंजते रहें हाँ सीरियल देखने की उत्सुकता बढ़ी ..देखने की कोशिश करेंगे
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रोचक ठहाकेदार प्रस्तुति, आपने कहा है तो निश्चय ही मजेदार होगा.इसे देखने की इक्छा बढ़ गई अच्छी जानकारी हेतु आभार.....
ReplyDeleteMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
हाँ फूस फूस हंसी से शुद्ध रावणवाली हंसी जयादा बढिया है,
ReplyDeleteकई बार इसी हंसी के कारन परिवार/समाज में मुझे बहुत बातें सुनने को मिलती हैं.
आजकल ठहाके और ठहाके लगाने वाले , दोनों ही मुश्किल से सुनाई/ दिखाई देते हैं .
ReplyDeleteइस पोस्ट में वर्णित ठहाके प्रेरित कर रहे हैं हमें भी... देखते हैं इस शो के कुछ एपिसोड्स आज ही:)
ReplyDeleteअपना स्वभाव और व्यवहार बड़ा ही सामान्य और प्राकृतिक लगता है पर जब वही व्यवहार आपकी सन्ततियों में भी आ जाये तब कहीं जाकर उसके गुण दोष पता चलते हैं।
ReplyDeleteएकदम सही बात .
रही बात ठहाकों की तो आजकल ऐसे मौके मिलते ही कम हैं अत: जब भी मिले दिल खोल के लगा ही लेने चाहिए.
जुगाड करते हैं इस धारावाहिक का.क्योंकि हिंदी के हास्य में तो अब अधिकतर फूहडता ही रह गई है.
दोनों एक साथ ही देखिए ना जिससे हंसने में और आनन्द आए।
ReplyDeleteआपके ठहाकों का अंदाजा मैं लगा सकता हूं। क्योंकि मेरे एक सहयोगी भी बिलकुल इसी तरह ठहाके लगाते हैं। और जब शुरू होते हैं तो रोकना मुश्किल हो जाता है।
ReplyDeleteनिश्चय ही ठहाके मजेदार होंगे ही..जैसे मजेदार आलेख...
ReplyDeleteजानदार रिपोर्ताज है समीक्षा है सिफारिश है बिग बेंग सीरियल की .खुलकर ठहाके लगाने में चेहरे की अधिकतम पेशियाँ हरकत में आतीं हैं .बढ़िया व्यायाम है तन और मन का बिग बेंग के बहाने ही सही ठहाके किस्मत वाले ही लगाते हैं अब .
ReplyDeleteबुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
यह धारावाहिक देखा नहीं है और शायद देख भी न सकूँ। इतना समय ही नहीं होता। पर ठहाकों और बिगबैंग की थ्योरी दोनों से बखूबी परिचित हूँ। पिताजी खूब ठहाके लगाते थे। इतना कि घर पहुँचने के पहले ही उन के आने का पता लग जाता था।
ReplyDeleteबिगबैंग की थ्योरी से मैं सांख्य को ठीक से समझ सका हूँ।
अब जब आप इतनी तारीफ कर रहे हैं तो देखना ही पड़ेगा।
ReplyDeleteI have seen a few episodes of Big bang theory and loved it!
ReplyDeleteAs far as American Sitcoms are concerned I am seriously hooked on to Friends and How I met your Mothers.
ठहाके को ठहाका बढाता है ..
ReplyDeleteठहाके लगते रहें
subtitles..की हिंदी ..उपशीर्षक..हम्म..पहली बार इसे प्रयुक्त होते हुए देखा
ReplyDeleteहाँ ,अब तो देखे बिना काम नहीं चलेगा !
ReplyDeleteऔर ठहाके ! निर्मल मन ही खुल कर लगा सकता है.
हँसी तो मुझे भी जब आती है,रोकने से रुकती नहीं.
पू. श्वसुर जी की दोनों ओर दो-दो इंच लंबी मूँछें जब दूध पीते ,भीग जातीं तो
मेरी हँसी रोके नहीं रुकती थी. बहाने भी कितने बनायें ,उठ कर ही भागना पड़ता था वहाँ से.
.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 03 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....कल्पशून्य से अर्थवान हों शब्द हमारे .
मजेदार और ठहाकेदार प्रस्तुति,.....बहुत ही रोचक.....आभार
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट पढकर अपने सीमित ज्ञान पर, अधिक जानकारियॉं हासिल करने में अपनी अक्षमता पर कष्ट हो रहा है। तनिक विस्तार से बताइए कि इसे हिन्दी उप शीर्षको के साथ कैसे और कहॉं देखा जा सकता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर। रागदरबारी पढ़कर मैं इसी तरह अकेले में ढहाके लगाया था। इंतजार है soft copy का ताकि मैं भी ढहाके लगा सकूँ।
ReplyDeleteअच्छे कार्यक्रमों का जिक्र भी होना चाहिए बल्कि इनका जिक्र ही होना चाहिए|
ReplyDeleteभैय्या मुझे भी दिखाओ न
ReplyDeleteबिग बैंग के लिंक्स
कार्यक्रम देखे जाने योग्य है। निःसंकोच हँसी निकल आये तो कहना ही क्या!
ReplyDeleteजुगाड़ करते हैं देखने का। ठहाके जारीं रहें।
ReplyDeleteआप के आलेख की रोचकता से ठहाकों के साथ - साथ कुछ चेहरो पर मुस्कान स्वयं आ जाती है :)
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
behatrin samikshaa ki hae aapne bdhaisveekaren.
ReplyDeletemere blog ki nai post par aamantrit haen.
आपका लेख पढ़ कर इस धारावाहिक के प्रति हमारी भी उत्सुकता बढ़ी है।
ReplyDeleteसादर
सही है
ReplyDeleteवाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
BAZZINGA!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल 19/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 861:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
behtarin lekh...sadar badhayee ke sath..aapka nirantar protsahan mujhe milta hai..har acche lekh tak aapki satat pahunch ..aapki is sahityik prem ko kotisha dhnywad..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteशु्क्रिया इस कार्यक्रम के बारे में बताने के लिए.
ReplyDeleteहास्यमेव जयते.
ReplyDeleteआपके इतने ठहाकों के बाद अब तो इसे देखना ही होगा...
ReplyDeleteहमें तो ठहाका लगाने की आदत सी है...लत कह लें...कहीं भी जब भी मौका मिलता है खुल कर ठहाका लगाते हैं...इस सिरिअल के बारे में हमने भी सुना है कभी देखेंगे...वैसे अपने देश में बस आस पास ही नज़र खोल कर देखें तो ठहाकों का सामान बहुतायत में मिल जाता है...
ReplyDeleteनीरज
अभी तक देखा नहीं ये सिरिअल ... मौका मिलेगा तो देखेंगे और ठहाके भी लगाएंगे ...
ReplyDeletehello mai bhi ye program dekhna chhta hun please btyen kha se dekhun.kon se channel par ata hai ya khi se downlod ho sakta hai please ..............
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