दस दिन की यात्रा थी, पैतृक घर की। बहुत दिन बाद छुट्टी पर गया था अतः अधीनस्थों को भी संकोच था कि जब तक अति आवश्यक न हो, मेरे व्यक्तिगत समय में व्यवधान न डाला जाये। घर में रहने के अतिरिक्त कोई और कार्य नहीं रखा था अतः समय अधिकता में उपलब्ध था। दस में तीन दिन ट्रेन में बीते। वे तीन दिन भी बचाये जा सकते थे यदि श्रीमतीजी की मँहगी सलाह मान हवाई यात्रा की जाती। डॉ विजय माल्या की एयरलाइन सिकुड़ने के कारण अन्य एयरलाइनें सीना चौड़ा कर पैसा कमा रही थीं। उनको और अधिक पैसा दे फार्च्यून कम्पनियों की दौड़ में और तेज दौड़ाया जा सकता था, उससे देश का ही भला होता, हम भले ही गरीबी रेखा के अधिक निकट पहुँच जाते। पर मेरे लिये रेल के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा से अधिक महत्वपूर्ण वह अनुभव था जो अपने परिवार के साथ लम्बी ट्रेन यात्राओं में मुझे मिलता है। साथ ही साथ रेल के डब्बे में साथ चलते देश की विविधता और सांस्कृतिक सम्पन्नता का स्वरूप हर बार साधिकार आकर्षित करता है।
हमारी धरती से जुड़े रहने की इच्छा के आगे श्रीमतीजी की हवाई उड़ानें नतमस्तक हुयीं, ३ दिन की रेलयात्रा का अनुभव जीवन में और जुड़ गया। सबने यात्रा का भरपूर आनन्द उठाया, जी भर कर साथ खेले, फिल्में देखी, बातें की। इसके बाद भी पर्याप्त समय था जो कि रेल यात्रा में उपलब्ध था।
जब रेल यात्रा और घर में समय पर्याप्त हो तो लेखन और ब्लॉगजगत में अधिक गतिशीलता स्वाभाविक ही है। बहुत दिनों से समयाभाव में एकत्र होते गये वीडियो आदि के लिंक भी मुँह बाये खड़े हुये थे। ट्रेन में चार्जिंग की ठीक व्यवस्था थी पर नेटवर्क का व्यवधान था, घर में नेटवर्क की क्षीण उपस्थिति थी पर बिजली की अनिश्चितता थी। पिछली यात्राओं में डाटाकार्ड आदि साथ में थे पर अधिक काम में नहीं आये अतः इस बार मोबाइल फोन की जीपीआरएस सेवाओं पर ही निर्भर रहने का मन बनाया गया।
मैकबुकएयर और आईफोन साथ में थे, आईफोन में उपलब्ध इण्टरनेट को हॉटस्पॉट नामक सुविधा से मैकबुकएयर के लिये भी उपयोग में लाया जा सकता था। आईफोन का भारतीय नेटवर्क पकड़ना, उससे इण्टरनेटीय संचार निचोड़ना और उसे हॉटस्पॉट के माध्यम से मैकबुकएयर में पहुँचाना, यह सब प्रक्रियायें देखना शेष थीं। पिछली यात्राओं में जिस तन्त्र का उपयोग किया था उसके परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे थे। दोनों ही यन्त्र पहली बार साथ में लम्बी यात्रा में जा रहे थे।
यह तो निश्चय है कि शहरों के पास नेटवर्क अच्छा रहता है और बड़े शहरों के पास गति भी अच्छी मिलती है। अब इसका पता कैसे चले, इसके लिये आईफोन का गूगल मैप सहायक सिद्ध हुआ। यदि सैटलाइट दृश्य न देख कर केवल मैप ही देखा जाये तो नेटवर्क की क्षीण उपलब्धता में भी आईफोन का गूगल मैप आपकी वर्तमान स्थिति और आसपास के शहरों की भौगोलिक स्थिति दे सकता है। उससे पूरी यात्रा में यह निश्चित होता रहा कि किस क्षेत्र में इन्टरनेट का उपयोग करना है और किस क्षेत्र में अन्य लेखन करना है।
जैसे ही इन्टरनेट उपलब्ध होता, गूगल रीडर में अनपढ़े सूत्र खोलते रहते, जब तक इण्टरनेट पुनः लुप्त न हो जाये। नेटवर्क की अनुपलब्धता के क्षेत्र में उन पर टिप्पणी लिखी जाती थी। जिन ब्लॉगों में टिप्पणी के लिये अलग पेज खुलता है, उन्हें भी पहले से खोल कर ही रखा जाता। एक बार सारी टिप्पणियाँ लिख जायें तब पुनः नेटवर्क की प्रतीक्षा रहती, उन्हें एक एक कर पब्लिश करने के लिये। यदि नेटवर्क में और भी देर रही तो समय लेखन में बिताया और भविष्य की रूपरेखा तय की। ३ दिन की यात्रा में कभी ऐसा लगा नहीं कि ब्लॉगजगत से संबंध टूट गया, अपितु इस विधि से यात्रा के समय न केवल अधिक ब्लॉग पढ़ सका और उन पर टिप्पणी भी करता रहा।
घर में नेटवर्क की लुकाछिपी बनी रही, दिन के कुछ समय तो नेटवर्क अनुत्तरित ही बना रहता, फिर भी ट्रेन की तुलना में उसकी उपलब्धता दुगुनी थी। सौभाग्य से बोर्ड की परीक्षा के समय में रात्रि की ३ घंटे की बिजली आपूर्ति राज्य सरकार ने सुनिश्चित की। इसके अतिरिक्त दिन में भी इधर उधर मिलाकर लगभग ४ घंटे बिजली बनी रहती। इतना समय पर्याप्त था दोनों यन्त्रों की पूरा चार्ज रखने का, उनके दिन भर चलते रहने के लिये। मैकबुकएयर की ६ घंटे की व नेटवर्किंग में निरत आईफोन की १६ घंटे की बैटरी पहली बार अपनी पूरी क्षमता प्रदर्शित कर पायीं। लिखने, पढ़ने, ब्लॉगजगत व अन्य क्रम बिना किसी व्यवधान के बने रहे।
बंगलोर में बिजली और हाईस्पीड इण्टरनेट की सतत उपलब्धता ने कभी यह अवसर ही नहीं दिया था कि अपने आईफोन व मैकबुकएयर की सही क्षमताओं को आँक पाता। वाईफाई में आईक्लॉउड के माध्यम से कब दोनों में समन्वय हो जाता था, पता ही नहीं चलता था। दोनों यन्त्रों और आईक्लॉउड के माध्यम से उनके आन्तरिक सुदृढ़ संबंध की परीक्षा ट्रेन यात्राओं में व ऐसे क्षेत्रों में जाने के बाद ही होनी थी जहाँ बिजली, इण्टरनेट और उसकी गति बाधित हो।
थोड़ा स्वयं को अवश्य ढालना पड़ा पर मैकबुकएयर, आईफोन, उनके आन्तरिक समन्वय, देश के नेटवर्क, उसमें उपस्थित इण्टरनेटीय तत्व, बिजली की उपलब्धता, बैटरी की क्षमता, इन सबने मिलकर वह गति बनाये रखी जिससे यात्रा में भी साहित्य कर्म कभी बाधित नहीं रहा। आधारभूत सुविधाओं के गर्त में भी समय निर्बाध बिताकर आये हैं, बस सबका धन्यवाद ही दे सकते हैं कि उन्होंने साथ निभाया।
हमारी धरती से जुड़े रहने की इच्छा के आगे श्रीमतीजी की हवाई उड़ानें नतमस्तक हुयीं, ३ दिन की रेलयात्रा का अनुभव जीवन में और जुड़ गया। सबने यात्रा का भरपूर आनन्द उठाया, जी भर कर साथ खेले, फिल्में देखी, बातें की। इसके बाद भी पर्याप्त समय था जो कि रेल यात्रा में उपलब्ध था।
जब रेल यात्रा और घर में समय पर्याप्त हो तो लेखन और ब्लॉगजगत में अधिक गतिशीलता स्वाभाविक ही है। बहुत दिनों से समयाभाव में एकत्र होते गये वीडियो आदि के लिंक भी मुँह बाये खड़े हुये थे। ट्रेन में चार्जिंग की ठीक व्यवस्था थी पर नेटवर्क का व्यवधान था, घर में नेटवर्क की क्षीण उपस्थिति थी पर बिजली की अनिश्चितता थी। पिछली यात्राओं में डाटाकार्ड आदि साथ में थे पर अधिक काम में नहीं आये अतः इस बार मोबाइल फोन की जीपीआरएस सेवाओं पर ही निर्भर रहने का मन बनाया गया।
जैसे ही इन्टरनेट उपलब्ध होता, गूगल रीडर में अनपढ़े सूत्र खोलते रहते, जब तक इण्टरनेट पुनः लुप्त न हो जाये। नेटवर्क की अनुपलब्धता के क्षेत्र में उन पर टिप्पणी लिखी जाती थी। जिन ब्लॉगों में टिप्पणी के लिये अलग पेज खुलता है, उन्हें भी पहले से खोल कर ही रखा जाता। एक बार सारी टिप्पणियाँ लिख जायें तब पुनः नेटवर्क की प्रतीक्षा रहती, उन्हें एक एक कर पब्लिश करने के लिये। यदि नेटवर्क में और भी देर रही तो समय लेखन में बिताया और भविष्य की रूपरेखा तय की। ३ दिन की यात्रा में कभी ऐसा लगा नहीं कि ब्लॉगजगत से संबंध टूट गया, अपितु इस विधि से यात्रा के समय न केवल अधिक ब्लॉग पढ़ सका और उन पर टिप्पणी भी करता रहा।
बंगलोर में बिजली और हाईस्पीड इण्टरनेट की सतत उपलब्धता ने कभी यह अवसर ही नहीं दिया था कि अपने आईफोन व मैकबुकएयर की सही क्षमताओं को आँक पाता। वाईफाई में आईक्लॉउड के माध्यम से कब दोनों में समन्वय हो जाता था, पता ही नहीं चलता था। दोनों यन्त्रों और आईक्लॉउड के माध्यम से उनके आन्तरिक सुदृढ़ संबंध की परीक्षा ट्रेन यात्राओं में व ऐसे क्षेत्रों में जाने के बाद ही होनी थी जहाँ बिजली, इण्टरनेट और उसकी गति बाधित हो।
थोड़ा स्वयं को अवश्य ढालना पड़ा पर मैकबुकएयर, आईफोन, उनके आन्तरिक समन्वय, देश के नेटवर्क, उसमें उपस्थित इण्टरनेटीय तत्व, बिजली की उपलब्धता, बैटरी की क्षमता, इन सबने मिलकर वह गति बनाये रखी जिससे यात्रा में भी साहित्य कर्म कभी बाधित नहीं रहा। आधारभूत सुविधाओं के गर्त में भी समय निर्बाध बिताकर आये हैं, बस सबका धन्यवाद ही दे सकते हैं कि उन्होंने साथ निभाया।
यात्राएं हमेशा यादगार होती है,कुछ न कुछ नया मिल ही जाता है
ReplyDeleteलगता है कि आपके यहां सोलर चार्जर की बहुत सख़्त ज़रूरत है. ये, बिजली की कमी वाले कई क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं
ReplyDeleteहाई टेक ब्लॉगर यात्री ...
ReplyDeleteतकनीक की उपलब्धता सफ़र में भी पूरी दुनिया से जोड़े रखती है !
रोचक ज्ञानवर्धक आलेख ...!!
ReplyDeleteजब ब्लागिंग में कमी लगे , छुट्टी पर निकल जाना चाहिये। :)
ReplyDeleteसमय संयोजन, कार्य संयोजन और गज़ट संयोजन ने यात्रा को यकीनन यादगार बना दिया होगा|
ReplyDeleteबिजली और हाईस्पीड इण्टरनेट की सतत उपलब्धता ने कभी यह अवसर ही नहीं दिया था कि अपने आईफोन व मैकबुकएयर की सही क्षमताओं को आँक पाता...चलिये इस बहाने ही सही...सब सुनिश्चित तो हुआ...:)
ReplyDeleteअच्छा रहा आपका प्रयोगात्मक अनुभव- और हवाई की जगह रेल से सफर करना.
उपकरण भी आपके हाथों में पड़कर अपना चरित्र भूल जाते होंगे | वे तो बस आपकी इच्छानुसार यंत्रवत व्यवहार करते होंगे | उपकरणों को निचोड़ना कोई आपसे सीखे | आप द्वारा वर्णित गजेट बहुतों के पास हैं परन्तु उसका वे सधा हुआ प्रयोग नहीं कर पाते | आपके लेख जिज्ञासा उत्पन्न भी करते हैं और जिज्ञासा शांत भी कर देते हैं |
ReplyDeleteआपका प्रयोगात्मक अनुभव- अच्छा लगा,..लेकिन दैनिक कार्यों के लिए बिजली की कमी असहनीय लगती है
ReplyDeleteMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteशुभकामनाएं ।
पुरानी यादें ताज़ी करें ।
कितना ऑर्गनाइज़्ड रहते हैं आप...वैसे अपने रेल प्रेम को किनारे रख भाभी की बात मान ही लेते ;)
ReplyDeleteएनीवे, कौन कौन सी फ़िल्में देखी आपने, ये नहीं बताया ;)
बिग बैंग थ्योरी नामक धारावाहिक के तीन सीजन निपटा दिये इस यात्रा में...
Deleteतीन सीज़न!! वाह!
Deleteविविध तकनीकी जानकारियों से परिपूर्ण पोस्ट. अच्छा लगा.
ReplyDelete..सबसे बड़ी बात आप अपनों से ,अपने गाँव से मिल आये !
ReplyDelete..यात्रा का असल आनंद तो रेलवे के द्वारा ही मिलता है,फिर आप तो विशिष्ट-यात्री ठहरे !
..आईफोन और मैकबुकएयर ने निश्चित ही आपको शेष दुनिया से जोड़े रखा, यात्रा में मैं तो केवल अपने गैलेक्सी-एस से ही काफी-कुछ काम चला लेता हूँ.गाँव में भी थोड़ा नेटवर्क काम कर जाता है.हाँ,चार्जिंग के लिए इन्वर्टर की मदद भी लेनी पड़ती है !
...आपने इन दस दिनों में कहीं ज़्यादा अच्छी जिंदगी जी ली है !
जितने अनमोल समय बांधे जा सकते थे , आपने बाँध लिए
ReplyDeleteपरिवार के साथ रेलयात्रा और तकनीक भी साथी .....रोचक
ReplyDeleteप्रौद्योगिकी और दिनचर्या की जुगलबंदी
ReplyDeleteइतनी मेहनत और
ReplyDeleteइतना जोड तोड ..
इस पोस्ट से बहुत कुछ सीखने को मिला ..
धन्य है पठन लेखन के प्रति आपकी निष्ठा !!
हम शहरों में रहकर कभी विपरीतताओं के बारे में विचार ही नहीं करते ! क्या बिना नेटवर्क के जीवन हम जैसे आई टी के लोगो के लिए अब संभव है ? विचार का एक नया दृष्टिकोण आपके ब्लॉग से मिला...
ReplyDeleteरेल यात्रा का आनन्द ही कुछ और है.
ReplyDeleteवह दोहा है न -
'पट पाँखे ,भखि काँकरे ,सपर परेई संग,
सुखी परेवा जगत में एकै तुही विहंग '.
अपनी रेल ,अपना परिवार , अपना गाँव ,ऊपर से नेटवाली निराली दुनिया का पूरा साथ - वाह !
नयी नयी तकनीकि का प्रयोग कोई आपसे सीखे .... बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteरेल यात्रा और घर जाना , ऐसे में ब्लॉगजगत से दूर रहना एक मेडिटेशन जैसा होता है .
ReplyDeleteकभी तो ब्रेक लेना चाहिए भाई जी . :)
हर बात का ध्यान रख कितना सही इस्तेमाल करते हुए सब कुछ कितने सुचारू तरीके से किया आपने यात्रा के दौरान ...
ReplyDeleteसमय का सदुपयोग भी हो गया और यात्रा का आनन्द भी ………रोचक
ReplyDeleteरोचक और बढ़िया जानकारी..आभार..
ReplyDeleteThanks to the technologies we have at our end today! Nothing is difficult to obtain or achieve.
ReplyDeleteHope you had a joyous trip :)
वाह आपके समय और स्थान प्रबंधन का जबाब नहीं ..ये जानकारियाँ यात्रा में बहुत काम आएँगी .
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी..आभार..
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी...
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मै भी अभी ४ दिन बाद यात्रा से लौटा तो एकदम ब्लॉग लिखने पढने से दूर ही रहा . आपके अनुभव से सहमत है
ReplyDeleteरेल से भी कभी बाहर निकलो, घर का वर्णन भी करिए।
ReplyDeleteआने वाले समय में सबका वर्णन किया जायेगा, कहने को बहुत कुछ है।
Deleteकल 29/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हलचल - एक निवेदन +आज के लिंक्स
प्रौद्योगिकी की कृपा से निर्बाधव मंगलमय यात्रा करते रहें ..
ReplyDeleteतकनीक की तरक़्की ने न सिर्फ़ दूरी कम की है बल्कि देरी भी कम कर दी है।
ReplyDeleteअजीत गुप्ता जी का प्रश्न सही हैं घर का भी हल बताएं या नेट की स्पीड बताते रहेंगे :)
ReplyDeleteजी, घर का और घर वालों का हाल भी बतायेंगे।
Deleteyaatra to aapki shandar rahi padkar bahut accha laga ab ghar per kaise waqt gujara usko bhi batayein...........
ReplyDeleteसच में अच्छी जानकारी
ReplyDeleteप्रोद्योगिकीय क्षमता का बढ़ता प्रभाव और परम्परा ,रेलगाड़ी और अखंड भारत दर्शन दोनों संग साथ रहे आपके और ब्लॉग भी .ताश के बावन पत्ते भी फिर भी समय की इफरात ,हवाई यात्रा में वह बात कहाँ अब उड़े अब लैंड करो फिर चेकिंग ,फिर ये फिर वो ,ट्रेन से यात्रा करो तो लगता है यात्रा की गई है .बधाई घर आके ऋचार्जिंग की दम खम कानपुर में ही मिलता है बेंगलुरु वालों को .
ReplyDeleteआपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012
ईश्वर खो गया है...!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
तारतम्यता और रोचकता बरकरार ..
ReplyDeleteजानकारी भी
आधुनिक तकनीक से अनजान हूँ.
ReplyDeleteआपके लेख से अच्छी जानकारी मिलती है.
इस यात्रावृत्तांत की विशेषता है इसकी सरल और सहज शबदावली जो पाठक की रूचि बनाए रखती है। तकनीक और यंत्रों के बिना तो वास्तव में जीवन अधूरा है।
ReplyDeleteरोचक यात्रावृत्तांत !
सुंदर आलेख और यात्रा वृत्तांत.
ReplyDeleteनेट की उपलब्धता सचमुच यात्रा के दौरान परेशानी का कारण रहता है. हवाई यात्रा में तो बात समझ में आती है परन्तु रेल यात्रा में नेट उपलब्धता होनी ही चाहिये. कुछ गाड़ियों में सुना है वाई फाई शुरू किया है लेकिन यह सुबिधा शीघ्र सारी गाड़ियों में लगाई जानी चाहिये.
सुन्दर आलेख , साथ में रोचकता और नवीनता लिए हुए ..!
ReplyDeleteआपके उन्नत तकनीकी उपकरणों को उपयोग करते हुए और उनके बारे में बेहतरीन जानकारी हमेशा अच्छी लगती है।
ReplyDeleteइस बार हम भी रेलयात्रा का लंबा अनुभव अगले महीने लेने जा रहे हैं, इस बार समय का सदुपयोग करने के लिये पूरी तरह से तैयार होकर जायेंगे, डाटाकार्ड, जीपीआरएस और किताबें, बहुत सारी किताबें और फ़िल्में बाकी हैं, और वाकई जो मजा लंबी रेलयात्रा का है वो कम समय में हवाई यात्रा में नहीं आता । उम्मीद है कि इस बार ट्रेन में चार्जिंग की दिक्कत नहीं आये, नहीं तो किताबें हैं साथ देने के लिये :)
हम मशीनी मानव................
ReplyDeleteपहले अंग्रेजो की गुलामी अब इन गेजेट्स की......................
कुदरती तौर पर ईश्वर ने इंसान को ऐसा ही बनाया है..
:-)
शुभ हो....मंगलमय हो...
हमको तो यात्रा में किताबें पढ़ने में अधिक मजा आता है।
ReplyDeleteसही कहा आपने बस सबका धन्यवाद ही दिया जा सकता है कि पूरी यात्रा के दौरान इनहोने आपका साथ निभाया वैसे आईफोन का सदुपयोग हमने भी बहुत किया है यहाँ यूरोप घूमने में वाकई उस पर उपलब्ध गूगल मॅप और अन्य एप्लिकेशन के जरिये किसी भी जगह से संबन्धित सम्पूर्ण जानकारी बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
ReplyDeleteआप तो बस आप हैं कितने उपकरणों को एक सात इस्तेमाल कर समय का सदुपयोग करना कोई आप से सीखे । इससे फायदा तो हमारा बी हुआ चिप्पणी जो पाई ।
ReplyDeletechaahein aaaapke comments hon yaa aapske sansmarn...ek sidhhastata ke dars han hote hian..mere blog par aapka aana mujhe nirantar prerit karta hai ke bhee main tkuch badhiyaa likoo...sadar badhayee aaaur amantran ke sath
ReplyDeleteहमेशा की तरह रोचक. साहित्य के प्रति आपके समर्पण और प्रबंधन कौशल का प्रमाण. गाँव कैसा लगा? यह भी बताएं कभी.
ReplyDeleteफिलहाल तो मैंने प्रिंट आउट निकाल लिया है... जल्दी में हूँ... शाम में पढ़ कर कमेन्ट करता हूँ... आपकी पोस्ट बिना पढ़े कमेन्ट करने का मन नहीं करता है... आफ्टर ऑल क्वालिटी डिज़र्व बेस्ट... कौम्प्लिमेंट्स ....
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन में एक बार फिर से हाज़िर हुआ हूँ, एक नए बुलेटिन "जिंदगी की जद्दोजहद और ब्लॉग बुलेटिन" लेकर, जिसमें आपकी पोस्ट की भी चर्चा है.
ReplyDeleteआधारभूत सुविधाओं के गर्त में भी समय निर्बाध बिताकर आये हैं, बस सबका धन्यवाद ही दे सकते हैं कि उन्होंने साथ निभाया।
ReplyDeleteप्रवीण जी ! निश्चय ही आधुनिक जीवन की व्यस्तता में अब एक और आयाम जुड़ गया है ब्लॉग जगत से सम्पर्कित रहना ,साहित्य कर्म करते रहना ,विविधता से भर दिया है ब्लॉग ने जीवन को यत्रा को ,जन्म को मृत्यु को .मिलन को विछोह को .मैंने अपना ब्लॉग अभी से एक भरोसे मंद आदमी के नाम कर दिया है .वही ज़ारी रखेंगे अब इसे .फिलवक्त उनका अवतरण गेस्ट आइटम के रूप में जब तब होता हैमेरे ब्लॉग पर .
बढ़िया यात्रा कम प्रोद्योगिकीय वृत्तांत .आभार आपका .
कृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
सावधान !आगे ख़तरा है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
जाने किस किस ने साथ निभाया होगा, काहे भूल कर भी जिक्र नहीं किये उस निगोड़े चाय वाले का... :)
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट, मात्र ग्यानी लोगों के लिए,
साधुवाद.
आप लंबी यात्रा पर हों और सबसे जुड़े भी रहें ...इससे अच्छा और क्या हो सकता है । बहुत अच्छी पोस्ट ...
ReplyDeleteअभिनव प्रोद्योगिकी ने बदल दिए हैं यात्रा के स्वर और बुनावट अब रास्ते में खेत खलिहान नहीं सिग्नल ढूंढता है मन इंटर -नेटीय.
ReplyDelete.कृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
In upkarno ka ek side-effect ye hai ki hm machino se adhik aur insaano se kam ghul-mil paate hain....
ReplyDeleteप्रवीण जी यात्रा का आनंद भी लिया और आज के अंतरजाल की बहुत सी जानकारियां भी मिली बहुत आभार
ReplyDeleteआपकी हिंदी को पढकर मजा आया । लगभग त्रुटिहीन और बहुत ही सुंदर । उपर से हिंदी में इतना बढिया लेखन । आपके ब्लाग पर पहली बार आया पर मन लगा ।
ReplyDeleteयात्रा हमेशा बहुत कुछ देती है... आपकी लेखकीय निरंतरता यूँ ही बनी रहे!
ReplyDeleteसादर!
भारत में अपनों से मिलना ही पर्यटन है तीर्थ यात्रा है व्यस्त हो चली है ज़िन्दगी .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
इसलिए न कहा जाता है, कर्मयोगी पाहाड़ छेद राह निकाल निकाल सकता है, समुद्र में महल बना सकता है और आसमान में सीढ़ी laga सकता है...
ReplyDeleteबस आप आपने अनुभव इसी तरह बांटते रहिये, हम प्रेरणा लेने की कोशिश ने रहेंगे..
मैकबुक एयर आपके लेखों के कारण, खूब पापुलर हो गयी है !
ReplyDeleteजितनी जानकारी आपने दी है वह ब्लॉग जगत में दुर्लभ सी थी ...
शुभकामनायें आपको !
समय को अपने साथ लेकर चलना और ऐक-ऐक पल का लुफ्त उठाना ,सिखऩे को बहुत कुछ मिल रहे हैं मुझे।ब्लागो की दुनियां ईतनी खुबसुरत है मुझे मालुम नही था।बहुत सुन्दर।आपको कोटि-कोटि नमन।
ReplyDeleteयात्राओं का अलग ही मज़ा है ... हम भी अभी अभी एक यात्रा कर के लौटे हैं ...
ReplyDelete