25.4.12

डोलू कुनिता

स्थान बंगलोर सिटी रेलवे स्टेशन, प्लेटफार्म 8, समय सायं 7:30 बजे, बंगलोर राजधानी के यात्री स्टेशन आने लगे हैं, यद्यपि ट्रेन छूटने में अभी 50 मिनट का समय है। सड़क यातायात में बहुधा जाम लग जाने के कारण यात्री अपने घर से एक घंटे का अतिरिक्त समय लेकर चलते हैं, ट्रेन छूट जाने से श्रेयस्कर है स्टेशन में एक घंटा प्रतीक्षा करना। सायं होते होते बंगलोर की हवाओं में एक अजब सी शीतलता उमड़ आती है, यात्री प्रतीक्षाकक्ष में न बैठकर पेड़ के नीचे लम्बी बनी सीढियों में बैठकर कॉफी पीते हुये बतियाना पसन्द करते हैं। व्यस्तमना युवा अपने लैपटॉप व मोबाइल के माध्यम से समय के सदुपयोग की व्यग्रता व्यक्त करने लगते हैं। बैटरीचलित गोल्फ की गाड़ियों में सजे अल्पाहार के स्टॉल अपनी जगह पर ही खड़े हो ग्राहकों की प्रतीक्षा और सेवा में निरत हैं, मानो अन्य स्टेशनों की तरह चिल्ला चिल्लाकर ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करना कभी उन्होंने सीखा ही नहीं। शान्त परिवेश में बहती शीतल बयार का स्वर स्पष्ट सुनायी पड़ता है।

तभी 8-10 ढोलों का समवेत एक स्वर सुनायी पड़ता है, नियमित वातावरण से अलग एक स्वर सुनायी पड़ता है, यात्रियों का ध्यान थोड़ा सा बटता है पर पुनः वे सब अपने पूर्ववत कार्यों में लग जाते हैं। ढोलों की थाप ढलने की जगह धीरे धीरे बढ़ने लगती है और तेज हो जाती है। यात्रियों की उत्सुकता उनके स्वर की दिशा में बढ़ते कदमों से व्यक्त होने लगती है। प्लेटफार्म पर ही एक घिरे हुये स्थान पर 9 नर्तक ढोल और बड़ी झांझ लिये कलात्मकता और ऊर्जा से नृत्य कर रहे थे, 7 के पास ढोल, एक के पास झांझ और एक के पास बड़ा सा झुनझुना था। झांझ की गति ही ढोल और नृत्य की गति निर्धारित कर रही थी। ढोल नर्तकों के शरीर से किसी अंग की तरह चिपके थे क्योंकि नृत्य में जो उछाल थे, वे ढीले बँधे ढोलों से संभव भी न थे।

इसके पहले कि लोगों को इस उत्सवीय नृत्य का कारण समझ में आता, प्लेटफार्म में नयी नवेली की तरह सजी बंगलोर राजधानी ट्रेन लायी जा रही होती है। जो लोग पहले राजधानी में यात्रा कर चुके थे, उनके लिये राजधानी की नयी ट्रेन को देखना एक सुखद आश्चर्य था, मन का उछाह अब ढोल की थापों से अनुनादित होता सा लग रहा था। राजधानी की पुरानी ट्रेन अपनी क्षमता से अधिक बंगलोरवासियों की सेवा करके जा चुकी थी और उसका स्थान लेने आधुनिकतम ट्रेन आज से अपनी सेवायें देने जा रही थी। यह उत्सवीय थाप उस प्रसन्नता को व्यक्त कर रही थी जो हम सबके हृदय में थी और उस नृत्य में लगी ऊर्जा उस प्रयास का प्रतीक थी जो इस आधुनिकतम ट्रेन को बंगलोर लाने में किये गये।

नृत्य का नाम था डोलू कुनिता, शाब्दिक अर्थ ढोल के साथ उछलना। यह नृत्यशैली उत्तर कर्नाटक के चित्रदुर्गा, शिमोगा और बेल्लारी जिलों की कुरुबा नामक चरवाहा जातियों के द्वारा न केवल अस्तित्व में रखी गयी, वरन सदियों से पल्लवित भी की गयी। इस नृत्य और संगीत की लयात्मकता न केवल शारीरिक व्यायाम, मनोरंजन, धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक प्रयोजनों से सम्बद्ध है वरन उनके अध्यात्म की पवित्रतम अभिव्यक्ति भी है, जो इस नृत्यशैली के माध्यम से अपने आराध्य की ऊर्जस्वित उपासना के रूप में व्यक्त किया जाता है। आजकल तो इस नृत्य का प्रयोग सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिये भी किया जा रहा है, संदेश को शब्द, संगीत और भावों में ढालते हुये।

इसकी पौराणिक उत्पत्ति जिस कथा से जुड़ी है, वह भी अत्यन्त रोचक है। एक असुर भगवान शिव को प्रसन्न कर लेता है और भगवान शिव से अपने शरीर में आकर रहने का वर माँग लेता है। शिव उसके शरीर में रहने लगते हैं। वह असुर पूरे हिमालय में उत्पात मचाने लगता है, त्रस्त देवता विष्णु के पास पहुँचते हैं और अनुनय विनय करते हैं। विष्णु असुर का सर काट कर शिव को मुक्त करते हैं, पर शिव कुपित हो जाते हैं। शिव को प्रसन्न करने के लिये असुर के धड़ को ढोल बनाकर विष्णु नृत्य करते हैं। वह प्रथम डोलू कुनिता था, तब से शिव उपासक अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिये इस नृत्य को करते आये हैं। संभवतः ढोल का चपटा और छोटा आकार धड़ का ही प्रतीक है। ढोल की बायीं ओर बकरी और दायीं ओर भेड़ की खाल का प्रयोग दोनों थापों की आवृत्तियों में अन्तर रखने के लिये किया जाता है।

जैसे जैसे ट्रेन के जाने का समय आता है, नृत्य और संगीत द्रुतगतिमय हो जाता है, क्रमशः थोड़ा धीमे, फिर थोड़ा तेज, फिर आनन्द की उन्मुक्त स्थिति में सराबोर, थापों के बीच शान्ति के कुछ पल और फिर वही क्रम। मैं खड़ा दर्शकों को देख रहा था, सबकी दृष्टि एकटक स्थिर और पैरों में एक आमन्त्रित सी थिरकन। ढोलों पर चढ़ते हुये तीन मंजिला पिरामिड बनाकर, गतिमय थापों का बजाना हम सबको रोमांचित कर गया।

नृत्य धीरे धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा था और राजधानी की नयी ट्रेन अपनी नयी यात्रा प्रारम्भ करने को आतुर थी, इंजन की लम्बी सीटी ढोल की थापों को थमने का संदेश देती है, नृत्य में मगन यात्री दौड़कर अपने अपने कोचों में बैठ जाते हैं। महाकाय ट्रेन प्रसन्नमना अपने गंतव्य दिल्ली को ओर बढ़ जाती है, प्रयास रूपी डोलू कुनिता निष्कर्ष रूपी कुपित शिव को पुनः प्रसन्न कर देते हैं, यात्री सुविधा का एक नया अध्याय बंगलोर मंडल में जुड़ जाता है।


62 comments:

  1. विवरण, नृत्य, रेल, सब सुन्दर!

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  2. क्‍या खूब, अनूठी रिपोर्टिंग.

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  3. बहुत सुंदर विवरण ...विडिओ देखकर आपके शब्द और जीवंत लगे ......

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  4. अहा! जल्दी नींद खुल जाना बेकार नहीं गया मेरा.और सफ़र की सुबह वाले दिन इसे सुनना और देखना तरोताजा कर गया...तो सफ़र करते हुए भी कहीं मिला जाने की प्रतिक्षा है!!..........एक यात्रा की प्रतिक्षा करती हुई प्रसन्नमना यात्री की बधाई पहूँचा दी जाए इस ग्रुप को.....सादर...

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  5. कलात्मक संस्मरण संजीदा व रुचिकर बन पड़ा है ,बंगलुरु वासियों को राजधानी मुबारक .....

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  6. शानदार रहा नई राजधानी रेल का स्वागत |
    बैंगलूर वासियों को नई आधुनिकतम राजधानी रेल मुबारक हो |

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  7. ढोल नगाड़े तो ठीक. पर नई गाड़ी में क्‍या नई सुवि‍धाएं हैं ये भी तो बता देते...☺

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  8. डोलू कुनिता की उद्भव कथा के साथ ही नयी रेल सेवा के उद्घाटन पर यह पोस्ट एक सांस्कृतिक अनुभूति सी लगी

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  9. सुंदर और जीवन्त प्रस्तुति।
    "झांझ की गति ही ढोल और नृत्य की गति निर्धारित कर रही थी।"
    उक्त पंक्ति में त्रुटि है। आप ध्यान से सुनेंगे तो स्वयं पाएंगे कि पूरे नृत्य और संगीत की गति को ढोल की थाप ही निर्धारित कर रही है।
    वैसे भी संगीत और नृत्य में यह निर्देशन सदैव ही ताल वाद्य का होता है।

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    1. पहले मुझे भी लगा था कि ढोल ही गति निर्धारण करते हैं। जो मुखिया होता है, उसके हाथ में झाँझ होती है और उसकी विशिष्ट ध्वनि सब सुन पाते हैं। आठ ढोलों में कौन गति कैसे बढ़ायेगा, यह समन्वय करना बड़ा कठिन है। जब गति बहुत अधिक तेज होती है तो ताल की गति बड़ा सा झुनझुना निश्चित करता है।

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  10. बंगलुरु विविध क्षेत्रो में
    नए नए प्रयोग
    बड़ी खूबसूरती से कर रहा है ।

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  11. बहुत सुन्दर ढंग से आपने इसका वर्तांत लिखा है . पढकर आनन्द आ गया

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  12. वाह...क्या बात है...
    यात्रियों को मज़ा आ गया होगा..अब जब हम आयेंगे बैंगलोर तो आपको कुछ इसी तरह का प्रबंध करवाना पड़ेगा.. :)

    बाई द वे, ये लिखना तो कोई जरूरी नहीं था की "सायं होते होते बंगलोर की हवाओं में एक अजब सी शीतलता उमड़ आती है" :P

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  13. ...एक पौराणिक कथा के साथ आधुनिकता का संगम !

    किसी न किसी रूप से हम अपने अतीत से जुड़े रहना चाहते हैं और इससे हमें अतीव आनंद की प्राप्ति होती है !

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  14. बढ़िया धमक ...
    शुभकामनायें आपको !

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  15. इस नृत्य शैली का ज्ञान नहीं था. उनकी थापों के एहसास के लिए यूट्यूब में ढूढता हूँ.

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  16. आप कितना कुछ बताते हैं मेरे ज्ञान से परे ... बहुत अच्छा लगा

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  17. पुराकथाएँ का कितने मनभावन स्वरूप में हमारी संस्कृति में, कलाओं और साहित्य में अनुस्यूत हो गई हैं-जैसे काल का व्यवधान उनमें ही सिमट गया हो !
    आपकी वर्णन-शैली आँखों के सामने चित्र पट-सा खोल देती है ,मानस में आनन्द की लहरें उठने लगती हैं .
    आभार !

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  18. बंगलोर रेलवे मंडल के बारे में और यात्री सुविधा के सन्दर्भ में बेहतरीन जानकारीपूर्ण प्रस्तुति ... यूं. टूयूब बहुत बढ़िया लगा... आभार

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  19. मक्खन सोच रहा है....फिर तो पंजाबी भांगड़ा भी डोलू कुनिता हुआ...​
    ​​
    ​जय हिंद...

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  20. रोचक और नई जानकारी देता आपका यह आलेख ... आभार सहित बधाई

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  21. यात्री सुविधा के नए अध्याय का रंगारंग शुभारम्भ इस नृत्य की तर्ज पर सबको ऊर्जा प्रदान कर गया| वीडिओ देखकर अच्छा लगा|

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  22. एक लोक कला के जीवन्त चित्रण से मानसिक संतोष मिला।
    रेलवे में अब बहुत से ऐसे परिवर्तनों का समावेश हुआ है जो इसे इस प्रतियोगी युग में अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा करता है।

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  23. बहुत सुंदर प्रभावी बेहतरीन जानकारी देती प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  24. बहुत रोचक पोस्ट ! बधाई!

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  25. नई जानकारी के साथ सुन्दर प्रस्तुति .
    संगीत किसी भी रूप में हो , मन मोह लेता है .

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  26. नयी राजधानी ट्रेन और डोलू कुनिता नृत्य के माध्यम से पारंपरिक जानकारी ...बहुत अच्छी लगी

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  27. वाह नई जानकारी ..आपके शब्दों के साथ जैसे अपने पैर भी थिरक रहे थे.

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  28. samajik jivan in dhol ki thapo se bahut utprerit hota rahta hai

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  29. लोकनृत्य और राष्ट्रीय रेल का जीवंत अनुभव!!

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  30. Ek anubhav mehsoos hua aapka yeh post padhke

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  31. डोलू कुनिता' की सुन्दर और प्रभावशाली शैली में जानकारी

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  32. विडियो ने तो सजीव कर डाला

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  33. सुन्दर प्रस्तुति.नई जानकारियाँ भी मिलीं.
    विडियो में देखकर बहुत अच्छा लगा.

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  34. डोलू कुनिता नृत्य के बारे में बहुत सुंदर और रोचक जानकारी. बहुत जीवंत नृत्य..

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  35. कर्णाटक के उस लोक नृत्य का अनुभव ले लिया.

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  36. रेल की छुक छुक के साथ नृत्य का धमाल , कितनी समानता है !
    डोलू कुनिता की रोचक जानकारी!

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  37. डोलू कुनिता को जानना सुखद है..

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  38. वाह प्रवीण जी आपने आँखों देखा हाल इस सुन्दर अंदाज में सुनाया कि अंत तक गति और इंटरेस्ट बना रहा ऐसा लगा कि हम सचमुच वहीँ हैं आपको और बेंगलोर वालों को नई राजधानी मुबारक हो कृपया स्वछता का ध्यान रखे और इसे नई ही रहने दें शुभकामनाएं ...चित्र और विडियो भी बहुत सुन्दर हैं

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  39. bahut sundar aur rochak jankari.....

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  40. लोकनृत्य का सुंदर वर्णन .....आभार इस संगीतमय पोस्ट के लिए .......डोलू कुनिता ,मेरे लिए संग्रहणीय पोस्ट है ...!!

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  41. सर जी सुन्दर समाचार और राजधानी एक्सप्रेस ! आज रात मै गरीब रथ से यशवंत पुर आ रहा हूँ !

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  42. डोलू कुनिता लोकनृत्य का सुंदर जीवंत वर्णन
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  43. जीवंत रिपोर्टिंग। समूचे उल्लास को आपने शब्दों में जीवित कर दिया।

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  44. इस बार बैंगलोर वापसी मतलब इसी नई ट्रेन में होगी, अब तो बहुत ही उत्सुकता से उस यात्रा का इंतजार है।

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  45. रोचक जानकारी.|

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  46. रोचक वर्णन ....

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  47. Very interesting...there are many such hidden treasures we don't know about.

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  48. सहज अभिव्यक्ति के साथ रोचक जानकारी
    आभार

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  49. डोलु कुनीता की व्यत्पत्ति कथा तो रोचक थी ही यह रिपोर्ताज अपने आप में अप्रतिम था .वातावरण प्रधान .परिवेश को आन्जता तौलता सा .ताजगी भरी पोस्ट अभिनव विषय पर पढ़ी .बढ़िया अनुभूति हुई .

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  50. रेल्वे प्लेट्फार्म पर यह नजारा कितनी ही आँखों ने देखा होगा, कितने ही कानों ने ढोल की थाप सुनी होगी, कितने ही पैर उस थाप पर थिरके होंगे. राजधानी चल दी अपनी राह, लोक नर्तक दल चल दिया होगा अपने ठाँव.आपने उन क्षणों को अविस्मरणीय बना दिया.डोलु कुनीता के उद्भव से अब तक के सफर को जीवंत कर दिया. कहना यही शेष रह गया है :- " वो जिधर देख रहे हैं-सब उधर देख रहे हैं.हम तो बस देखने वाले की नज़र देख रहे हैं ".

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  51. विवरणात्मक रोचक संस्मरण...

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  52. डोलू कुनिता के बारे में जानकारी और रोचक वर्णन के लिए धन्यवाद ... वीडीओ बेहद पसंद आया ... आभार

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  53. वाह! बढ़िया वृत्तांत रहा यह!
    बेल्लारी से अधिक जुड़ाव रहा है, इसीलिए डोलू कुनिता बहुत नजदीक रहे हैं, अच्छा लगा दुबारा से देखना पढना।
    धन्यवाद प्रवीण जी!

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  54. बहुत बढ़िया जानकारी नृत्य का वर्णन तो रोचक था ही मगर मुझ वह शिव और असुर वाली कहानी पढ़कर बहुत मज़ा आया पहली बार यह कहानी सुनी आभार .....

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  55. तो नई राजधानी को देख कर हुआ ये डोलू कुनीता । हम तो आपका लेख पढकर कर.......

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  56. वाह!
    रोचक वृतांत!

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  57. रोचक रोचक राजधानी।

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  58. सच में आपके लेखन ने इसे जीवित कर दिया ... डोलू कुनिता ... अब तो भूलने वाला नहीं ...

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