रातें लम्बी, दिन छोटे हैं, हम व्यथा बनाये ढोते हैं,
रातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
आदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
पूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं।
जब सुनकर चीखें पीर भरी, तब त्याग क्षुधा दावानल सी,
आदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।२।।
अति उत्साहित चिन्तन मन का, जीवट था, गर्व उमड़ता था,
पा कोई समस्या कैसी भी, बन प्रबल विरोधी भिड़ता था।
जब लड़ने की इच्छा थकती, तब छोड़ पिपासा दंभ भरी,
उद्वेगों को चुपचाप सहा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।३।।
हम चढ़कर ऊँचे पर्वत पर, निश्चय पायें सम्मान प्रखर,
यश-सिन्धु, बिन्दु बन मिल जाते, जीवन आहुतियाँ दे देकर।
तन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
मैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।४।।
रातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
आदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
पूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं।
जब सुनकर चीखें पीर भरी, तब त्याग क्षुधा दावानल सी,
आदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।२।।
अति उत्साहित चिन्तन मन का, जीवट था, गर्व उमड़ता था,
पा कोई समस्या कैसी भी, बन प्रबल विरोधी भिड़ता था।
जब लड़ने की इच्छा थकती, तब छोड़ पिपासा दंभ भरी,
उद्वेगों को चुपचाप सहा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।३।।
हम चढ़कर ऊँचे पर्वत पर, निश्चय पायें सम्मान प्रखर,
यश-सिन्धु, बिन्दु बन मिल जाते, जीवन आहुतियाँ दे देकर।
तन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
मैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।४।।
आत्म मूल्यांकन करती सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत उम्दा....उपलब्धि रही यह जीवन की...बहुत ही बेहतरीन उपल्ब्धियाँ हासिल हुईं...आध्यात्मिक टच है रचना में..
ReplyDeleteबीते हुए जीवन से ही हम सीखते हैं ,हाँ कई बार यह सीख हमें देर से मिलती है और हम काफी कुछ खो देते हैं !
ReplyDeleteसुन्दर कविता !
वाह प्रवीन भाई ... मानव मन की कमजोरियां को ... चित्रित करने में आप सफल हुए ... अपने किये कार्यों को अगर सही आकलन किया जाए तो ... पूरी कविता सटीक बैठी है // आपसे एक अनुरोध है भाई ... आप मेरे दुसरे ब्लॉग पर भी आये "२१वी सदी का इन्द्रधनुष ''
ReplyDeleteवाह! बहुत शानदार अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरणास्पद कविता
ReplyDeleteमेरे मित्र रवि जी का जिक्र तो आपने सुना ही होगा मेरे से..
ReplyDeleteउन्हें आपकी सभी कवितायें मैं पढ़ के सुनाता था, जब बैंगलोर में था.
उन्हें अब फोन करने जा रहा हूँ..ये कविता उन्हें सुनाने के लिए! :)
atiuttam bhavabhivyakti.
ReplyDeleteनव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर चयन, भाव सकल शालीन ।
ReplyDeleteअन्तर के पट खोलते, धीर वीर परवीन ।
धीर वीर परवीन, सीखता खुद पर हंसना ।
आदर्शी उपवास, कभी भी नहीं बहकना ।
उद्वेग सहे चुपचाप, जानता अपनी क्षमता ।
ना दैन्यं न भाग, ठसक से जाए जमता ।।
dineshkidillagi.blogspot.com
मौन सहे उद्वेग, जानता अपनी क्षमता ।
ReplyDeleteना दैन्यं न भाग, ठसक से जाए जमता ।।
बहुत सुन्दर. "पूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित" इससे बड़ा संतोष क्या हो सकता है. बीती बाटें बिसार दे.
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteरातें लम्बी, दिन छोटे हैं, हम व्यथा बनाये ढोते हैं,
ReplyDeleteरातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
Kya gazab ke alfaaz hain pooree rachana ke!
सकारात्मक भावों से परिपूर्ण रचना !
ReplyDeleteइस ख़ूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसुन्दर रचना- मेरा मन तो पहली दो पंक्तियों पर ही अटक गया और संकल्प है लम्बी काली रात के चक्कर में छोटे मगर उजले दिन नहीं खोने हैं.
ReplyDeletesundar shbdon ka chayan...arthpurn rachna..
ReplyDeleteसकारात्मक सोच के साथ बहुत सुन्दर आत्म विश्लेषण ..बधाई..प्रवीण जी..
ReplyDeleteजीवन की उपलब्धियों का संतोष जनक होना सबसे बदी उपलब्धि होती है .
ReplyDeleteरातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
ReplyDeleteये ही सच है ....
.उपलब्धि रही यह जीवन की.... बेहतरीन रचना ... कुछ समय के लिए तो मैं सोच में पड़ गयी की मेरी क्या उपलब्धि है जीवन की ... :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
ReplyDeleteअपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
जीवन की सच्ची उपलब्धियां बड़ी सुन्दरता से व्यक्त हुई हैं!
रातें लम्बी, दिन छोटे हैं, हम व्यथा बनाये ढोते हैं,
ReplyDeleteरातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
.....जीवन में सफलता का सूत्र...बहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति..
आत्मावलोकन करती सुन्दर प्रेरणादायी रचना.
ReplyDeleteआपकी तो भाषा ही हर रचना को बेहद सुंदर बना देती है :) बहुत ही सुंदर शब्द भाव संयोजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteउपलब्धियों का भान रहे, कम नहीं कहीं से यह।
आदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
ReplyDeleteपूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं।
जब सुनकर चीखें पीर भरी, तब त्याग क्षुधा दावानल सी,
आदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।२।।
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
आदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
ReplyDeleteपूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं।
जब सुनकर चीखें पीर भरी, तब त्याग क्षुधा दावानल सी,
आदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।
आखिर क्यों भूलें हम भैया जो बीत गया वह बात बात गई .बेहद सार्थक छंदोबद्ध रचना .सकारात्मक स्वरों का पुरजोर आवाहन करती हुई .
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
वाकई सुन्दर उपलब्धि है आपकी.. सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबढिया उपलब्धि।
ReplyDeleteजब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
ReplyDeleteअपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
बेहतरीन रचना कविवर प्रणाम स्वीकारें !
सुंदर भाव, सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजब लड़ने की इच्छा थकती, तब छोड़ पिपासा दंभ भरी,
ReplyDeleteउद्वेगों को चुपचाप सहा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।३।।
आपकी आशाएं और विश्वास सदा बना रहे ...... प्रेरणादायी पंक्तियाँ
सुंदर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivykti.aapko nav samvat bahut shubh v mangalmay ho .हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो. धारा ४९८-क भा. द. विधान 'एक विश्लेषण '
ReplyDeleteतन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
ReplyDeleteमैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।४।।
- अपनी क्षमता का आकलन ,बहुत बड़ी उपलब्धि .कुछ कर गुज़रने का यही आधार बनता है
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
ReplyDeleteSab kuch kah diya! Pravin bhai :-)
'आदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की' यह तो उध्दरणीय सूक्ति अनुभव हो रही है।
ReplyDeleteआदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
ReplyDeleteपूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं
.... जीवन सत्य के निचोड़
हम चढ़कर ऊँचे पर्वत पर, निश्चय पायें सम्मान प्रखर,
ReplyDeleteयश-सिन्धु, बिन्दु बन मिल जाते, जीवन आहुतियाँ दे देकर।
तन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
मैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।४।।
जीवन की वास्तविक समझ, व हमारी सुख-शांति तो इसी मंत्र में निहित है।
खूबसूरत और बेहतरीन रचना
ReplyDeleteअपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आप के ब्लॉग पे आने के बाद असा लग रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर अब मैं नियमित आता रहूँगा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
A very beautiful poem!
ReplyDeletehar line lazabab hai......
ReplyDeleteमैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ...
ReplyDeleteइंसान अपनी क्षमता को पहचान ले तो जीवन सफल और सुखी हो जाता है ...
मधुर गान है ...
a fantastic introspective post :)
ReplyDeletethe feeling of satisfaction at the end of the day is worth all the hardships n work !!
कार्ल मार्क्स ने "Alienation" लिखा था..आपने तो एक कविता मैं ही उस पूरी किताब के दर्शन करा दिए..बहुत खूब.
ReplyDelete"रातें लम्बी, दिन छोटे हैं, हम व्यथा बनाये ढोते हैं,
ReplyDeleteरातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की"
बेहतरीन रचना....
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से नव संवत्सर व नवरात्रि की शुभकामनाए।
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की...
ReplyDeleteबहुत सुंदर/सार्थक गीत...
सादर।
हम चढ़कर ऊँचे पर्वत पर, निश्चय पायें सम्मान प्रखर,.....bas yahi prayaas chal raha hai Praveen ji.
ReplyDeleteरातें लम्बी, दिन छोटे हैं, हम व्यथा बनाये ढोते हैं,
ReplyDeleteरातों की काली स्याही में, हम उजले दिन भी खोते हैं।
जब आशा बन उद्गार जगी, तब रोक वृत्ति चिन्तित मन की,
अपने ऊपर कुछ देर हँसा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।१।।
एक से बढ़के एक अशआर हबीब साहब सभी अपना अलग असर अलग तासीर लिए हुए .बढ़िया गज़ल .
खुद से संवाद करवाती हुई पोस्ट .आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया .परसों रवानगी है बेंगलुरु की फुर्सत के क्षणों में याद कीजिएगा (093 50 98 66 85/0961 9022 914 ,08065701791)पहले दोनों नंबर मेरे आखिरी शेखर जेमिनी भाई के (मित्रवर ).२८ मार्च से १८ अप्रेल तक प्रवास है शेषर भाई के यहाँ .
जीवन की उपलब्धियों का आकलन भी आवश्यक है समय समय पर. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeletesunder bhawo'n ka adbhut sanyojan...
ReplyDeleteजो अपने ऊपर हंस पाए उसने ही जीवन को जाना।
ReplyDeleteउसका जीवन व्यर्थ ही रहा, खुद से रहा जो अनजाना।
इस उपलब्धि के समक्ष सभी तुच्छ हैं, फीकी हैं, निःसार है। कवि मूलतः द्रष्टा होता है, इस सत्य को प्रमाणित करती कविता।
जब लड़ने की इच्छा थकती, तब छोड़ पिपासा दंभ भरी,
ReplyDeleteउद्वेगों को चुपचाप सहा, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।३।।
गहन ....सार्थक उपलब्धि जीवन की ...!!
उत्तम रचना ...!!
आदर्श-लता हम बोते हैं, श्रम, समय तिरोहित होते हैं,
ReplyDeleteपूर्णाहुति में सब कुछ अर्पित, लखते अतीत को, रोते हैं।
सत्य को कहती सुंदर रचना ...
PRAVEEN JI SATEEK LIKHA HAI AAPNE...जो अपने ऊपर हंस पाए उसने ही जीवन को जाना।AABHAR
ReplyDeleteLIKE THIS PAGE AND SHOW YOUR PASSION OF HOCKEY मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
आत्म चिंतन से ओत प्रोत .
ReplyDeleteसर जी समय चक्र में सु कर्म ही जीवन है !
ReplyDeleteaatm manthan kar sukoon ka ehsaas pradaan karti shreshth panktiyaan.
ReplyDeleteaatm manthan kar sukoon ki anubhooti karati shreshta panktiyaan.
ReplyDeleteजब सुनकर चीखें पीर भरी, तब त्याग क्षुधा दावानल सी,
ReplyDeleteआदर्शों ने उपवास रखा, उपलब्धि रही यह जीवन की
भावों को सर्वोत्तम श्रेष्ठता की उँचाई प्रदान कर दी है।
बहुत सुन्दर.. जीवन चक्र को दर्शाती
ReplyDeletewe are actually " self sustained system". it requires sometimes self analysis only and if one acts upon 'feed back corrective mechanism' then surely 'success' is his "keep".
ReplyDeletenice verse.
aap bahut achha likhte hain.
ReplyDeleteहम चढ़कर ऊँचे पर्वत पर, निश्चय पायें सम्मान प्रखर,
ReplyDeleteयश-सिन्धु, बिन्दु बन मिल जाते, जीवन आहुतियाँ दे देकर।
तन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
मैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की ।।४।।... यही श्रेष्ठ है
बहुत समय बाद आई । सीधे कविता पर ।
ReplyDeleteयश-सिन्धु, बिन्दु बन मिल जाते, जीवन आहुतियाँ दे देकर।
तन, मन, समर्थ हो जितना भी, हो जीवन श्रम, क्रम उतना ही,
मैं अपनी क्षमता जान सका, उपलब्धि रही यह जीवन की
कितनी बडी उपलब्धि ।