हम हृदय का उमड़ता आवेग कुछ पल रोक लेते,
समय यदि कुछ ठहर जाता, आज जी भर देख लेते।
तुम न ऐसे मुस्कराती, सकपका पलकें झपाती,
ना फुलाकर गाल अपने, सलोनी सूरत बनाती।
थे गये रम,
क्या करें हम,
यूँ ही गुपचुप बह गये थे,
आज जी भर देख लेते।१।
छिपा हाथों बीच आँखें, ना मुझे यूँ देख जाती,
सर झुकाकर तुम न केशों के किनारे मुँह छिपाती।
तुम हृदय में,
इसी लय में,
और कितना सह गये थे,
आज जी भर देख लेते।२।
तुम न ऐसे खिलखिलाती, ना मेरे मन को लुभाती,
कुछ बताना चाहकर भी, तुम न यूँ मन को छिपाती।
नहीं हाँ की,
बात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे,
आज जी भर देख लेते।३।
ना एकाकी इस हृदय में, याद अपनी छोड़ जाती,
बढ़ी जाती जीवनी यूँ, बीच पथ न मोड़ जाती।
जो था कहना,
और कितना,
बोलने से रह गये थे,
आज जी भर देख लेते।४।
(काश, कुछ यात्रायें थोड़ी और लम्बी होतीं। १४ घंटे की रेलयात्रा, बीच में ढेरों अशाब्दिक संवाद और निष्कर्ष ये उद्गार। बस अभिषेक की पीड़ासित रेलयात्राओं से सहमत न हुआ, तो यह बताना पड़ा। विवाह के पहले की कविता है। तब बस मन को लिखना आता था, कहना तो अभी तक नहीं सीख पाये।)
समय यदि कुछ ठहर जाता, आज जी भर देख लेते।
तुम न ऐसे मुस्कराती, सकपका पलकें झपाती,
ना फुलाकर गाल अपने, सलोनी सूरत बनाती।
थे गये रम,
क्या करें हम,
यूँ ही गुपचुप बह गये थे,
आज जी भर देख लेते।१।
छिपा हाथों बीच आँखें, ना मुझे यूँ देख जाती,
सर झुकाकर तुम न केशों के किनारे मुँह छिपाती।
तुम हृदय में,
इसी लय में,
और कितना सह गये थे,
आज जी भर देख लेते।२।
तुम न ऐसे खिलखिलाती, ना मेरे मन को लुभाती,
कुछ बताना चाहकर भी, तुम न यूँ मन को छिपाती।
नहीं हाँ की,
बात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे,
आज जी भर देख लेते।३।
ना एकाकी इस हृदय में, याद अपनी छोड़ जाती,
बढ़ी जाती जीवनी यूँ, बीच पथ न मोड़ जाती।
जो था कहना,
और कितना,
बोलने से रह गये थे,
आज जी भर देख लेते।४।
(काश, कुछ यात्रायें थोड़ी और लम्बी होतीं। १४ घंटे की रेलयात्रा, बीच में ढेरों अशाब्दिक संवाद और निष्कर्ष ये उद्गार। बस अभिषेक की पीड़ासित रेलयात्राओं से सहमत न हुआ, तो यह बताना पड़ा। विवाह के पहले की कविता है। तब बस मन को लिखना आता था, कहना तो अभी तक नहीं सीख पाये।)
बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ..
शुभकामनाएं !!
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteविवाह से पहले की कविता है तब तो ठीक, वर्ना लगा कि विवाह के बाद कहां श्रृंगारपंथी हो गए ☺
ReplyDeleteअब तो विवाह के पहले की कविताओं को सेंसर से पास करवा कर पोस्ट करना पड़ता है।
Deleteसुंदर!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteकिसी खूबसूरत यात्रा की मधुर स्मृति ही लग रही है कविता !
ReplyDeleteसरस !
यात्राओं की स्मृतियाँ बहुत गहरे पैठती हैं।
Deleteभावों का सतत प्रवाह, भावना प्रधान सृजन का सफल समर्थक बन गतिमान है ....बहुत सुन्दर जी /
ReplyDeleteजो मन पर गुजरा, उसे शब्दों में ढालने का लघु प्रयास था।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रेम कविता |
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteअति सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत अच्छी लगी. दूसरों द्वारा की गयी अभिव्यक्तियाँ कुछ ऐसी भी होती हैं जिनके बारे में मन में विचार आता है, शायद मेरे मन की बात कह गया हो. कुछ ऐसी थी यह रचना.
ReplyDeleteकभी कभी मन की उथल पुथल को संयत कर शब्दों में ढालना कठिन हो जाता है, अनुभव को भूलना कठिन था, लिखना सहज।
Deleteचौदह घंटे के अशब्दिक संवाद को आपने शब्द दे दिये . आपकी रेल ना जाने कितने कविमना लोगों में कविता का अ अंकुर प्रस्फुटित होने का कारण बनती होगी .
ReplyDeleteरेल की यात्रा बहुत रोचक रही हैं मेरे लिये, अभिषेक को बस यही बताना चाह रहा था।
Deleteलिखना ही लिखना सीखा है
ReplyDeleteकहना अब तक सीख न पाये
कोमल भावों को लिखना ही तो कठिन होता है, कहने का काम तो शब्द ही कर देते हैं.सजीली रचना, वाह.
http://mithnigoth2.blogspot.in/2012/03/blog-post_17.html
उस समय यदि कहने का प्रयास किया होता तो संभवतः श्रंगार के स्थान पर भय का भाव आया होता।
Deleteबेहद सुंदर ......
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत सुंदर उद्गार ...कवि ह्रदय कि अनकही गाथा ...शब्दों के प्रवाह में निर्झर झर रही है ...
ReplyDeleteयदि कहा होता तो वह भाव शब्दों में नहीं ढल पाते।
Deleteजी प्रतीकात्मक ही लिया और भावात्मक हो लिए ...
ReplyDeleteमगर उस चित्र को कैसे प्रतीक मान लें! :)
हम चित्रकार न हुये, नहीं तो चित्र ही बना देते।
Deleteकहना सीखिये भाई! अभी नहीं तो कब सीखेंगे? :)
ReplyDeleteआपका आशीर्वाद रहा तो एक न एक दिन हिम्मत खुल जायेगी।
Deleteवैसे विवाह बाद भावनाएं पक जाती हैं,भले ही कल्पनाएँ कम आती हों...!
ReplyDeleteलेकिन कविता में आगे की बात नहीं बताई कि क्या वज़ह रही जो "...देख लेते" कहा ?
कल्पनाओं के उस पक्ष का पटाक्षेप हो गया है विवाह के बाद...आगे की बात न जाने तो हमारे लिये अच्छा है।
DeleteGreat!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteजो देखना कहना रह गया, वे रोमांचक क्षण ही रचते है काव्य :)
ReplyDeleteमन के घनीभूत भाव ही कविता में आकर बहते हैं।
Deleteआज --
ReplyDeleteजी भर देख लेते ।
प्रवीण जी --
चौदह घंटे देख ही चुके थे--
आज में तो बाकी बचे मात्र दस घंटे-
तो इरादा क्या था -
चौबीस घंटे कि चौबीसों घंटे -
पथ गुजरता रहा,
ट्रेन चलती रही
मन मचलता रहा
साथ खलता रहा --
दिन भर उसी में बीता, शेष दस घंटे उन भावों के संजोने में गये।
Deleteजी, तब राहें अक्सर फिसलन भरी ही होती है :)
ReplyDeleteहम किसी तरह स्थिर रहे, बस कविता में व्यक्त किया।
Deleteक्या बात है. इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deletebahut sundar sir....har shabd prem se paripurn....
ReplyDeleteपता नहीं वह प्रेम था या अवलोकन, या मन की अभिव्यक्ति।
Deleteनहीं हाँ की,
ReplyDeleteबात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे,
आज जी भर देख लेत...
वाह!!!!बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी प्रवीण जी,....बेहतरीन रचना...
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteवाह ! बहुत ही सुन्दर चित्रण है भावनाओं का
ReplyDeleteऐसे ही हमने भी बहुत सारे सुन्दर चित्रण किये थे, परंतु घर में ही धुरविरोधियों ने हमारी वो धरोहर रद्दी में बेच दी। अब सोच रहे हैं, ऐसे चित्र वापिस खीचे जायें, हालांकि आप भी जानते हैं कि अब यह बहुत मुश्किल होगा :)
याद कर कर के ऐसे चित्र पुनः उकेरिये।
Deleteवाह ! बहुत ही सुन्दर चित्रण है भावनाओं का
ReplyDeleteऐसे ही हमने भी बहुत सारे सुन्दर चित्रण किये थे, परंतु घर में ही धुरविरोधियों ने हमारी वो धरोहर रद्दी में बेच दी। अब सोच रहे हैं, ऐसे चित्र वापिस खीचे जायें, हालांकि आप भी जानते हैं कि अब यह बहुत मुश्किल होगा :)
अहा,अहा :):)...क्या खूबसूरती के साथ आपने जवाब दिया है...
ReplyDeleteअब आपको वापस जवाब देना ही पड़ेगा,वो भी जल्दी ही :P
तभी हम कह रहे थे कि कभी हमारे साथ यात्रा किया करो।
Deleteविवाह से पहले ऐसे रंग थे तो आज तो क्या बात होगी ... कभी भाभी से मिलेंगे तो पूछेंगे ...
ReplyDeleteआजकल मन को बहुत बाँधकर रखे हुये हैं, पूछ लीजियेगा।
Deleteतुम न ऐसे खिलखिलाती, ना मेरे मन को लुभाती,
ReplyDeleteकुछ बताना चाहकर भी, तुम न यूँ मन को छिपाती।
नहीं हाँ की,
बात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे, ... उस वक़्त के एहसास ...... बहुत सुन्दर
उस समय भावनायें उबाल पर होती हैं, शब्दों में बहना आवश्यक है।
Deleteमन के भावो को उकेरती सुंदर कविता ...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteमन को लुभाती हुई सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteयात्रा के निष्कर्ष ये उद्गार बेहद कोमल और सुन्दर हैं...
ReplyDeleteमन तो सदा यात्रारत रहता है... व्यक्त होते रहें उद्गार यूँ ही!
यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव था, उस यात्रा के हर पल को जीना।
Deleteऐसा हि तो होता है .
ReplyDeleteसबके साथ यही भाव उठते होंगे।
Deletewaah waah man ko choo gayi, ekdum lajawab likha hai.
ReplyDeleteयात्रा के समय मन हवा में ही था, हर समय, हमारा भी।
Deleteहर बात पे महके हुए जज़बात की खुशबू,
ReplyDeleteयाद आई बहुत पहली मुलाक़ात की खुशबू,
होठों में अभी फूल की, पत्ती की महक है,
साँसों में बसी है तेरी मुलाक़ात की खुशबू,
आंखें कहना चाहती थीं वो तमाम बातें,
पर लब थे कि उलझे रहे निगाहों में उनकीं,
दिल था कि तजबीजता रहा ख़्वाब की हकीकत,
और ख़्वाब थे बेताब, होने को हकीकत,
वक्त था कि ठहरा ही नहीं,
बिखर न पाई बातें,
खुशबू सी मगर,
यादों के सहारे पहले भी थे,
आज फिर संजों लायें हैं,
यादें ही उनकीं |
उन्हें तो पढ़ना भी आसां नहीं,
उनपे लिखना भी आसां नहीं,
इबारत सी बन गई वो ज़िन्दगी की मेरी,
इबादत ही हो गई ज़िन्दगी की मेरी |
उसके बाद तो कभी देखना नहीं हुआ, वही स्मृति अमिट बनी हुयी है।
Deleteमोहक!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteना एकाकी इस हृदय में, याद अपनी छोड़ जाती,
ReplyDeleteबढ़ी जाती जीवनी यूँ, बीच पथ न मोड़ जाती।
जो था कहना,
और कितना,
बोलने से रह गये थे,
आज जी भर देख लेते।४।
....लाज़वाब! बहुत भावमयी अभिव्यक्ति....
काश कुछ और साथ रहते तो और बातें होतीं, मन की मन से।
Deleteसही ही तो है ऐसा ही होता है शायद सभी के साथ शादी के पहले ;) बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका, हर बार ऐसा नहीं हुआ, वह यात्रा विशेष थी।
Deleteहर बार ये डिस्क्लेमर क्यूँ लगाना पड़ता है...यह विवाह-पूर्व लिखा गया था...:)
ReplyDeleteहम यूँ ही समझ जाएंगे :)
नहीं लगायेंगे तो वर्तमान की कविता समझ कर नाप दिये जायेंगे।
DeleteBehad khoobsurat.....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteआहा आहा ..कुछ न कह कर भी समझा जा सकता है. पर कहना सीख लें तो ज्यादा अच्छा हो :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता.
अब कहना सीख भी लिया तो एक से ही कह पायेंगे।
Deleteसुन्दर...मनभावन गीत....
ReplyDeleteलो आज छेड ही देते हैं उस फ़साने को,
तेरी चाहत में थे हाज़िर ये दिल लुटाने को।
चाहतों की भी कोई उम्र श्याम’ होती है,
उम्र की बात भी होती है क्या सुनाने को ।
आपकी इस बात से हिम्मत खुल रही है।
Deleteवाह. वाह. वाह. ऐसी सहज प्रस्फुटित कविताएं विवाह के पहले ही लिखी जाती हैं। रहा सवाल कहने का तो ऐसे मामलों में होठ चुपचाप बोलते हैं।
ReplyDeleteचेहरे का एक एक भाव बोलता है।
Deletebahut sunder bhav prakat kiye hai ...........
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteविवाह-पूर्व के इतिहास का यों ही आभास देते रहें !
ReplyDeleteविवाह पूर्व का इतिहास और भूगोल, दोनों ही मर्यादित रहा। बस जो भी रहा है, वह कविताओं में रहा।
Deleteबहुत सुंदर मनभावन अभिव्यक्ति,बेहतरीन कविता ,......
ReplyDeleteMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत भीनी-भीनी सी अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteनहीं हाँ की,
ReplyDeleteबात मन की,
बिन कहे ही कह गये थे,
आज जी भर देख लेते।
बहुत प्यारी रचना...
यह मधुर स्मृतियाँ जीवन का आधार बनाने में समर्थ हैं ....
शुभकामनायें!
वह यात्रा तो कभी नहीं भूलेगी, सशक्त आधार है वह भाव-संप्रेषण का।
Deleteबहुत से अनकहे संवाद कविता के माध्यम से ही निकल पाते हैं। अगर कह गए होते, तो कवि थोड़े होते।
ReplyDeleteसच कहा आपने, हम कवि ही रहे, प्रेमी न हो पाये।
Delete’अभि’ बधाई के पात्र हैं जो बरसों पुरानी आपकी यात्रा-स्मृति ताजा कर दिये:)
ReplyDeleteअभि की हर यात्रा तो व्यग्रता भरी रही है, उसी का उत्साह बढ़ाने के लिये यह बताना पड़ा।
Deleteनिस्सन्देह सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबेहतरीन...अपनी आवाज में सुनाते जरा....तो आनन्द आ जाता!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बधाई.
Deleteआवाज भर आती, बस इसीलिये नहीं गाया।
Delete:) पढ़कर लग गया था कि बहुत रुमाल शहीद हो चुके होंगे लिखते वक्त ही ...
Deleteआँसू तो नहीं पर भाव अवश्य भर गये थे।
Deleteआज जी भर देख लेते... के साथ रिद्म मिलता तो नवगीत सुंदर हो जाता।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबेहतरीन और शानदार रचना
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deletefantastic expressions..
ReplyDeletethoughts so deep, yet so simply put..
one word.. Beautiful !!!
जो दिखा, जो लगा, वह व्यक्त कर दिया।
Deleteमनभावन श्रृंगार रचना... सुन्दर - किशोर भाव.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteआपकी कविता पढ़ कर होंठों पर मुस्कान सी आयी और याद आई लम्बी रेल यात्रायें ! आपकी कविता शायद कईयों की अनभूति की आवाज़ बन गई है
ReplyDeleteयदि मुस्कान आयी है तो आप पर भी यह बीता होगा।
Deleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपको।
Deleteएक सुंदर मन व हृदय की अति सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपता नहीं उस समय कैसा था मन या हृदय कैसा था, लिखना आता था, बोलना नहीं।
Deleteदेखने देखने में क्या कुछ छूट गया
ReplyDeleteयह पता नहीं चला
भावों को इतना विस्तृत नहीं फैला पाया।
Deleteसर जी विवाह पूर्व की सोंच भी लाजबाब है !यही तो विवाह का अंतर है !
ReplyDeleteविवाह के बाद सोच एकांगी हो लेती है..
Deleteएकाकी जीवन की धुनें ही मधुर होती हैं
ReplyDeleteएकाकी जीवन में बहुरंगी संभावनायें भी होती हैं।
Deletebadi khoosurti se bhawon ko utara hai....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteaapki kavitaein kam hi padhne milti hain...bahut acchi....
ReplyDeleteकवितायें मन के भावों के घनीभूत होने पर बहती है..
Deleteयह कविता तो "पैलेस ऑन व्हील्स" है!!!
ReplyDeleteअभी पैलेस ऑन व्हील्स में बैठना शेष है।
Deleteवाह: बहुत सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteआप तो गढ़ी और पढी दोनों में कमाल करते हैं...इस उत्कृष्ट लेखन के लिए ..बधाई स्वीकारें
नीरज
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteआप तो गध्य और पध्य दोनों में कमाल करते हैं...इस उत्कृष्ट लेखन के लिए ..बधाई स्वीकारें
नीरज
मन के बहते भाव जब गाढ़े हो जाते हैं तो कविता बनकर निकल जाते हैं।
Deleteछिपा हाथों बीच आँखें, ना मुझे यूँ देख जाती,
ReplyDeleteसर झुकाकर तुम न केशों के किनारे मुँह छिपाती.......सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteअत्यंत सुंदर कविता प्रवीण जी
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteहम हृदय का उमड़ता आवेग कुछ पल रोक लेते,
ReplyDeleteसमय यदि कुछ ठहर जाता, आज जी भर देख लेते।
बहुत अच्छा गीत, मन की गहराइयों से निकला हुआ । बधाई!
जो बातें गहरी छूती हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी गहरी होती है।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteजो था कहना,
ReplyDeleteऔर कितना,
बोलने से रह गये थे,
आज जी भर देख लेते।४।
पाण्डेय जी क्या लिखूं ???.....गजब की अभिव्यक्ति | बार बार पढ़ने का मन हुआ ...बस मैंने पूरी कविता का प्रिंट ही निकाल लिया है |
बहुत आभार आपका, सच में बहुत कुछ बोलने से छूट गया था।
Deleteसघन भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति ....
ReplyDeletebahut hi sunder likha hai .............exams ke waqt bilkul sahi rachna
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