बचपन और युवावस्था में एक बीमारी बहुधा सबको ही होती है कि बड़ा खाली खाली सा लगता है। एक के बाद एक कोई न कोई कार्य मिलते रहना चाहिये, व्यस्तता बनी रहनी चाहिये, नहीं तो एक अजीब सी उलझन होने लगती है। कुछ अपूर्ण सा लगता है, उसे भर देने को मन उद्धत होने लगता है। हर कर्म का प्रयास परिस्थितियों को अपूर्णता से पूर्णता की ओर ले जाने के लिये होने लगता है। जितनी अधिक ऊर्जा पास रहती है उतनी अधिक अपूर्णता दिखने लगती है जगत में। हर समय कितना कुछ करने के लिये रहता है जीवन में, समय और ऊर्जा के आभाव में कई कार्य ऐसे होते हैं जिन्हे हम करना चाह कर भी नहीं कर पाते हैं। जैसे जैसे जीवन बढ़ता है, ऊर्जा कम होने लगती है, कई नियमित कार्य बढ़ जाते हैं। व्यस्त जीवन का प्रथम प्रभाव यह पड़ता है कि जगत उतना अपूर्ण नहीं दिखता है जितना कुछ वर्ष पहले तक दिखता था।
अपूर्णता एक नियत सत्य है, कोई भी ऐसा तत्व नहीं दिखायी पड़ता है जो पूर्ण हो। जब हर वस्तु में अपूर्णता हो तो वह पूर्ण से अधिक पूर्ण हो गयी। हमारे सारे प्रयास उसी दिशा में होते हैं जिस दिशा में हमें संभावना दिखती है। जब तक प्रयास उस संभावना घट को पूर्ण कर पाते हैं, तब तक संभावनाओं के नये नये घट बन चुके होते हैं, पुनः प्रयास, पुनः संभावनायें। एक सतत कर्म है यह। किसी भी क्षेत्र में यदि कभी प्रयास ठहरे हुये नहीं दिखते हैं, तो किसी भी क्षेत्र को पूर्ण नहीं कहा जा सकता है। इस दृष्टि से देखा जाये तो अपूर्णता अपने आप में शाश्वत है, अपने आप में पूर्ण है।
यदि तर्क व दर्शन की दृष्टि से न भी देखा जाये तो भी पूर्णता कहीं नहीं दिखती है, संभावना समझ के साथ साथ बढ़ती रहती है, अपूर्णता संभावना के साथ बढ़ती रहती है, जो आज पूर्णता लिये सी दिख रही है कल वह अपूर्णता लिये हुये सी दिखने लगती है। पूर्णता पाने के लिये किया गया हमारा प्रयास हमें उस दिशा में ले जाता है, जहाँ हमें अपूर्णता और अधिक स्पष्ट रूप से दिखने लगती है।
इस विचार का उद्भव व आरोहण न हुआ होता यदि मैं अपने एक चित्रकार मित्र आलोक से मिलने न पहुँचा होता। दोनों बच्चे चित्रकला से सम्पन्न वातावरण में पहुँच ऊर्जस्वित थे, उनके हाथों में काग़ज़ और पेंसिल थी, उन्हें रेखाओं को खींचने में रस आ रहा था। उस समय कला के लिये साथ में सब कुछ था पर हाथ में समय नहीं था, ट्रेन का समय बढ़ाया नहीं जा सकता था। जितना समय मिला और कला के बारे में बच्चों ने जितना समझा और जाना था, उसके लिये कुछ घंटे पर्याप्त नहीं थे। एक बड़े चित्रकार के सामने चित्र बनाने का अवसर था जिसे बच्चे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास दे स्वयं को सिद्ध करना चाहते थे। जैसा संभावित था, चित्र पूरे नहीं बन सके। बच्चों ने आलोक को चित्र दिखाये और कहा कि समय नहीं था अतः पूरे नहीं बन पाये।
जब आलोक ने कहा कि मेरे लिये यही पूरा है। बच्चों को बड़ा आश्चर्य हुआ, कहा कि आपको क्यों नहीं लगता कि यह चित्र अधूरा है? आलोक का उत्तर बच्चों के लिये समझ का एक नया अध्याय बनने जा रहा था और मेरे लिये अपूर्णता की पूर्णता। आलोक ने कहा कि मुझे क्या ज्ञात कि तुम्हारी कल्पना में क्या क्या था और तुम क्या क्या बनाना चाहते थे? जो कुछ भी तुमने बनाया वह तो मेरी दृष्टि में पूर्ण है। तुम्हारे द्वारा आधा बना हुआ घर भी पूरा संदेश संप्रेषित करता है। बच्चों के चेहरे खिल गये क्योंकि अभी तक किसी भी अध्यापक ने उन्हें यह ज्ञान नहीं दिया था। उनका प्रयास सदा ही शून्य या पूर्ण के बीच मापा गया था। तथाकथित अपूर्ण कृति में किसी के द्वारा प्रयास की पूर्णता देख पाना उनके लिये सर्वथा नया अनुभव था।
मेरे मन में बहुत दिनों से यह विचार घुमड़ रहा था कि पूर्णता की खोज में हम उन तथ्यों को क्यों नकार देते हैं जिन्हें हम पूर्ण नहीं समझते हैं। आलोक का यह कहना एक आँधी की तरह ज्ञान के सारे कपाट खोल गया। क्या नहीं बना है, उसका चिन्तन कर जो बना हुआ है, उसकी अवहेलना करना कृति के साथ घोर अन्याय है। जीवन में जो नहीं मिल पाया पूर्ण होने के लिये, उसकी व्यग्रता में जो लब्ध है उसे क्यों व्यर्थ करना?
बात सच ही है, अपूर्णता एक भार की तरह आती है, कुछ रिक्त सा लगता है, पूर्णता की ललक हमें सहज नहीं होने देती है। युवावस्था में जो बीमारी ऊर्जा की अधिकता के कारण होती थी, वही बीमारी हमारी ऊर्जा की कमी को अपूर्णता के नैराश्य से जोड़ने लगती है। अनमनापन सा छाने लगता है व्यक्तित्व में, जीवन लगता है, अकारण ही निकला जा रहा है। आलोक की समझ न केवल बच्चों को समझानी होगी वरन हमें भी समझनी होगी, हमारी कर्मशीलता का खण्ड खण्ड अध्याय तभी सतत हो पायेगा तभी पूर्ण हो पायेगा। बिना अपूर्णता को समझे और स्वीकार किये, न तो हम पूर्ण हो पायेंगे और न ही प्रसन्न रह पायेंगे।
औरों के प्रयास इस अपूर्णता के लेकर भले ही व्यग्र रहें पर मेरे लिये अपूर्ण एक पूर्ण शब्द है।
यदि तर्क व दर्शन की दृष्टि से न भी देखा जाये तो भी पूर्णता कहीं नहीं दिखती है, संभावना समझ के साथ साथ बढ़ती रहती है, अपूर्णता संभावना के साथ बढ़ती रहती है, जो आज पूर्णता लिये सी दिख रही है कल वह अपूर्णता लिये हुये सी दिखने लगती है। पूर्णता पाने के लिये किया गया हमारा प्रयास हमें उस दिशा में ले जाता है, जहाँ हमें अपूर्णता और अधिक स्पष्ट रूप से दिखने लगती है।
इस विचार का उद्भव व आरोहण न हुआ होता यदि मैं अपने एक चित्रकार मित्र आलोक से मिलने न पहुँचा होता। दोनों बच्चे चित्रकला से सम्पन्न वातावरण में पहुँच ऊर्जस्वित थे, उनके हाथों में काग़ज़ और पेंसिल थी, उन्हें रेखाओं को खींचने में रस आ रहा था। उस समय कला के लिये साथ में सब कुछ था पर हाथ में समय नहीं था, ट्रेन का समय बढ़ाया नहीं जा सकता था। जितना समय मिला और कला के बारे में बच्चों ने जितना समझा और जाना था, उसके लिये कुछ घंटे पर्याप्त नहीं थे। एक बड़े चित्रकार के सामने चित्र बनाने का अवसर था जिसे बच्चे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास दे स्वयं को सिद्ध करना चाहते थे। जैसा संभावित था, चित्र पूरे नहीं बन सके। बच्चों ने आलोक को चित्र दिखाये और कहा कि समय नहीं था अतः पूरे नहीं बन पाये।
मेरे मन में बहुत दिनों से यह विचार घुमड़ रहा था कि पूर्णता की खोज में हम उन तथ्यों को क्यों नकार देते हैं जिन्हें हम पूर्ण नहीं समझते हैं। आलोक का यह कहना एक आँधी की तरह ज्ञान के सारे कपाट खोल गया। क्या नहीं बना है, उसका चिन्तन कर जो बना हुआ है, उसकी अवहेलना करना कृति के साथ घोर अन्याय है। जीवन में जो नहीं मिल पाया पूर्ण होने के लिये, उसकी व्यग्रता में जो लब्ध है उसे क्यों व्यर्थ करना?
औरों के प्रयास इस अपूर्णता के लेकर भले ही व्यग्र रहें पर मेरे लिये अपूर्ण एक पूर्ण शब्द है।
एक अलग सोच!
ReplyDeleteबीच राह का आनन्द उठाते हुये लक्ष्य तक जाने का उपक्रम है।
Deleteअद्भुत विचार, अपूर्ण से पूर्ण तक।
ReplyDeleteअपूर्ण अधिक पूर्ण है।
Deleteअपूर्ण होना भी पूर्ण ही है , कई बार अनगढ़ रचनाकारों के लिए भी यही कहा जाता है !
ReplyDeleteअद्भुत दृष्टिकोण , विचारणीय आलेख !
अपना श्रेष्ठ देने की दृष्टि से वे भी पूर्ण हैं।
Deleteपूर्णता की ललक हमें सहज नहीं होने देती है। अपूर्ण से पूर्ण तक.......शानदार आलेख परवीन जी
ReplyDeleteअपूर्णता प्रधान मनस को कुछ छूटा छूटा सा लगता रहता है।
Deleteपूर्ण निष्क्रिय होता है, अपूर्ण सक्रिय.
ReplyDeleteसक्रियता स्वीकार है।
Deleteॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं........सुन्दर पूर्णता सत्चिन्तन !....
ReplyDeleteखालीपन अधेढ़ अवस्था और वृद्धावस्था में शायद सबसे अधिक महसूस होता है ....मगर आपको अभी इसका आभास कहाँ ?:)
बाकी तो चिंतन से इत्तेफाक ही इत्तेफाक है!
इसी सूत्र से पूर्ण में अ लगने से वह भी पूर्ण हो गया।
Deleteशाब्दिक व भाषाई दृष्टिकोण से "अपूर्ण " एक पुष्ट व पूर्ण शब्द है जो परिमार्जन ,विघटन विचलन व्यतिक्रम को चिन्हित करता है / सफलता के समस्त आयाम अपूर्णता की वीथियों से ही गुजरते है जोपरिष्कृत होकर पूर्णताकी प्रशस्तियों का वरण करते हैं /शीर्ष लेख ,सराहनीय है सुन्दर जी /
ReplyDeleteबिना अपूर्णता से निकले कोई राह पूर्णता तक नहीं जाती है।
Deleteआलोक ने कहा कि मुझे क्या ज्ञात कि तुम्हारी कल्पना में क्या क्या था और तुम क्या क्या बनाना चाहते थे? जो कुछ भी तुमने बनाया वह तो मेरी दृष्टि में पूर्ण है।
ReplyDeleteऐसे भाव मनः पटल पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं |सकारात्मक उर्जा हमें हमारी अपूर्णता का एहसास करते हुए हमें पूर्णता की ओर अग्रसर करती है ये बताते हुए कि पूर्ण कुछ भी नहीं ....प्रभु ने भी अपने मानव रूपों में कुछ न कुछ अपूर्णता तो दर्शाई ही है ....
रंगों कि दुनिया अपने आप में एक अलग आह्लाद लिए हुए है ...देवला की कृति बहुत ध्यान से देखी,बिलकुल पूर्णता लिए हुए ...दोनों बच्चों को आशीष ...बढ़िया आलेख ...
अपूर्णता नकारात्मकता न जगाये अतः उसे पूर्ण मान लेना श्रेयस्कर।
Deleteपूर्णता में भी लोग गुंजाइश निकाल लेते हैं चाहे किसी काम के बारे में हो या कविता,चित्र या कहानी आदि के बारे में ! यह एक सकारात्मक सोच है कि हम अपूर्णता को पूर्णता मान लें.
ReplyDelete...बच्चों के स्तर पर ऐसी उत्साहजनक सोच उन्हें और आगे करने को प्रेरित करती है.
पूर्णता और अपूर्णता का गड़्मगड्ड हमें जीते रहने देता है, अपनी वर्तमान स्थिति पर।
Deleteदृष्टि भेद है। कलाकार मित्र के मन को टटोलिए तो वो कहेंगे..अभी वह चित्र नहीं बना जो मैं बनाना चाहता था। लेखक, कलाकार, वैज्ञानिक और भी दूसरे अन्वेषक निरंतर प्रयासरत रहते हैं कुछ नया, कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय कर गुजरने के लिए। मित्र ने कहा..मेरे लिए तो यही पूर्ण है। यह वाक्य अपने स्थान पर सही है, व्यग्र व चंचल मन को शांति प्रदान करने वाला। लेकिन खोजी यह मानकर संतोष कर लेगा तो खोज कैसे करेगा?
ReplyDeleteउनके लिये एक स्तर की पूर्णता से अगले स्तर की पूर्णता की ओर बढ़ना होता है।
Deleteअद्भुत दृष्टिकोण,विचारणीय सुंदर आलेख !
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
बहुत आभार आपका।
Deletebaat saty hai ,apoorntaa ko samjhe binaa ,log poorntaa paane ke prayatn mein apoorn hee rah jaate .
ReplyDeleteजब हर पग पर अपूर्णता दिखती है तो उसे समझ लेना चाहिये।
Deleteसत्य है |
ReplyDeleteअपूर्ण भूत--
आज अपूर्ण
भूत में पूर्ण होने की सम्भावना |
मात्र सम्भावना ||
ऐसी दृष्टि मिले ||
संभावना, अपूर्णता से पूर्णता के बीच..
DeleteVery Inspirational!!
ReplyDeleteदेवला ने उस दिन रिक्वेस्ट की थी की उसका पेंटिंग देखूं..
लेकिन आप है न, बातों में बस उलझा कर रख दिए :)
आपको देख लेना चाहिये था, उसके पीछे की कहानी पता चल जाती।
Deleteएक नया ढंग अपूर्ण को पूर्ण में बदलने का.
ReplyDeleteईश्वर की हर कृति में पूर्णता ढूढ़ रहे हैं हम।
Deleteअपूर्णता पूर्ण हुई तो फिर अपूर्णता आ घेरेगी. विसियस सर्कल!
ReplyDeleteबस यही तो जीवन है, पूरा घेरा है।
Delete----वाह! क्या बात है,.....
ReplyDelete"पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णंमादय पोर्णमेवावशिष्यते ".....
-----पूर्ण तो वही है जो जोडने घटाने से भी सदैव वही रहता है....अर्थात वह अद्रश्य....निर्गुण, निराकार .आकारहीन..न तस्य प्रतिमा अस्ति...
---अ + पूर्णता = अन्तरनिहित पूर्णता...अतुलनीय पूर्णता
----अन्य सारा जगत तो अपूर्णता में ही पूर्णता लिये हुए है......अत: सब कुछ जो द्रश्यमान है अपूर्ण होने के कारण ही पूर्ण भासमान होता है...पूर्ण होने पर अद्रश्य होजाता है.. यह अपूर्णता की पूर्णता है....
सच कहा आपने, पूर्णता के आगे अ जोड़ने पर वह पूर्ण रहा।
Deleteक्या नहीं बना है, उसका चिन्तन कर जो बना हुआ है, उसकी अवहेलना करना कृति के साथ घोर अन्याय है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही है आपने ... इस उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
जो भी दिखे, उसी में पूर्णता देख कर आगे बढ़ जायें।
Deleteपूर्ण व प्राणवान आलेख..
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteचिर-तृप्ति अगर हो अंतर्मन में चलने का का उत्प्रेरण कही विलुप्त हो जायेगा .अपूर्ण में पूर्णता देखना आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है .
ReplyDeleteइसी प्रेरणा से जीवन में शक्ति बनाये हुये हैं।
Deleteआपकी बात आत्मसात कर ली है ... अपूर्न्तः ही सत्य है, पूर्ण है ... गहरा चिंतन ...
ReplyDeleteअन्तर करना कठिन हो जाता है, क्योंकि कभी पूर्णता देखी ही नहीं।
Deleteजितनी अधिक ऊर्जा पास रहती है उतनी अधिक अपूर्णता दिखने लगती है जगत में।
ReplyDeleteसूत्रवाक्य सा स्थापित सत्य!
अपूर्णता ही पूर्णता की आत्मा है... बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है आलेख के माध्यम से!
ऊर्जा पास हो तो बहुत कुछ कर डालने की इच्छा होने लगती है।
Deleteदेवला की पेंटिंग सचमुच अद्भुत नजर आ रही है। उससे नजर ही नहीं हट रही है। उसकी यह अपूर्णता जारी रहे।
ReplyDeleteजब भेंट होगी तब उसकी पेंटिंग से परिचय कराऊँगा आपका।
Deleteक्या नहीं बना है, उसका चिन्तन कर जो बना हुआ है, उसकी अवहेलना करना कृति के साथ घोर अन्याय है। जीवन में जो नहीं मिल पाया पूर्ण होने के लिये, उसकी व्यग्रता में जो लब्ध है उसे क्यों व्यर्थ करना आपका कहना एकदम ठीक है सौफ़ी सदी सही लिखा है आपने मगर शाद यही मानव स्वभाव है की जो है उसे खुश न रहकर हमेशा और कुछ नया पाने की चाह सदैव ही बनी रहती है,शायद प्रगति या यूं कहें की आगे बढ्ने के लिए यह हमेशा कुछ नए पाने की इच्छा ही आज हमें यहाँ तक ला पायी है जहां आज हम हैं।
ReplyDeleteआगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहे यह दर्शन।
Deleteपूर्णता की परिधि का व्यास अपूर्णता से ही तैयार होता है.
ReplyDeleteसच कहा आपने, आभार..
Deleteबहुत गहन चिंतन ... सच ही पूर्ण कुछ भी नहीं ... अपूर्ण है तब तक ही सहज चेतना जागृत है ...
ReplyDeleteचेतना में ऊर्जा होती है जो अपूर्णता को भरने भागती है।
Deleteअपूर्णता विकास का प्रेरणाबल है।
ReplyDeleteसच कहा आपने, आभार।
Deleteकल 15/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteअद्भुत लेख....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Delete'पूर्ण' आदर्श है .अपूर्ण एक यथार्थ है .अपूर्ण पूर्ण की और बढ़ता रहता है लेकिन पहुंचता कभी नहीं है .परम शून्य सा अलब्ध बना रहता है .परिवर्तन की तरह शाश्वत है अपूर्ण .पूर्ण महज़ एक आदर्श है एक सनक है ,असामान्य व्यवहार है पूर्णता की तलाश .एहम सवाल है यात्रा जाना अपूर्ण का पूर्ण की जानिब .
ReplyDeleteयही अलब्ध हमें बढ़ते रहने की प्रेरणा देता रहता है।
Deleteभाई ... आप तो दार्शनिक की तरह ... लिख रहे है ... साधुबाद ..plz visit my another blog
ReplyDeletebabanpandey.blogspot.com
दर्शन भी तो अपूर्णता और पूर्णता के बीच की स्थिति है।
Deleteसनातन सत्य का अधुनातन आख्यान।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका..
Deleteसार्थक सोच की पूर्णता लिए विचार ....
ReplyDeleteबच्चों के लिए जो आपका दृष्टिकोण है उससे बहुत कुछ सीखने को मिला ....
देवला की पेंटिंग बड़ी आर्टिस्टिक लगी ....बच्चों का रंगों से खेलना जारी रहे ... सस्नेह, शुभकामनायें
बिटिया को रंगों से बहुत प्यार है, कला में उसकी रुचि बनी रहेगी।
Deleteबस यही अपूर्णता बनी रहे जीवन में.. बिटिया की पेंटिंग लाजवाब है!!
ReplyDeleteहम तो इसी अपूर्णता को जीवन के विकास का आधार बनाये रहते है।
Deleteकृपया देखिएगा मेरा पहला कमेन्ट आपके ब्लॉग में आया कि नहीं ..सादर
ReplyDeleteऔर कोई कमेन्ट तो नहीं आया आपका।
Deletebeing imperfect and always in the process of learning is the biggest trait of an otherwise called "perfect" person.
ReplyDeleteyet again an awesome read !!
विकास रुक जायेगा पूर्ण होने में, हम अपूर्ण ही भले।
Deleteपूर्णता और अपूर्णता जीवन में अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित है।
ReplyDeleteहम तो पूर्णता परिभाषित करने में भी अपूर्ण हैं।
Deleteअच्छा और बहुत विचारपूर्ण लिखा है आपने..
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteसर जी अपूर्ण ही पूर्णता का पथ है , भला इसे कौन भुला सकता है !अपूर्णता ही जीवन है , पूर्ण मृत्यु ! सुन्दर लेख और चित्र में मुझे बहुत कुछ दिखा है ! जैसे भीड़
ReplyDeleteसच कहा, अपूर्णता ही पूर्णता का पथ है।
Deleteअद्भुत विचार,सार्थक सोच...
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
Deleteअपूर्ण कृति में किसी के द्वारा प्रयास की पूर्णता देख पाना उनके लिये सर्वथा नया अनुभव था।
ReplyDeleteकितना कुछ बाकी है इस विश्व में सृष्टि में जानने को .मैं तो इसका अल्पांश ही बूझ पाया हूँ जैसे जैसे और जितना ज्यादा में जान पाता हूँ ,मुझे लगता है मुझे कुछ नहीं मालूम .यह सृष्टि जितनी गेय है उससे कहीं ज्यादा अगेय बनी हुई है .साइंसदान भी मात्र इसका एक फीसद अंश बूझ पायें हैं .फिर इतना मान गुमान अभिमान क्यों ? .अपूर्णता सनातन है ,सार्वत्रिक है .सार्वकालिक है .
प्रकृति मे कितने रहस्य छिपे हैं और कितने ज्ञात हैं, वही हमारी अज्ञानता और अपूर्णता को दर्शाता है।
Deleteक्या नहीं बना है, उसका चिन्तन कर जो बना हुआ है, उसकी अवहेलना करना कृति के साथ घोर अन्याय है। जीवन में जो नहीं मिल पाया पूर्ण होने के लिये, उसकी व्यग्रता में जो लब्ध है उसे क्यों व्यर्थ करना?
ReplyDeletevery nice..........
बहुत आभार आपका।
Deleteअगर अपूर्ण न रहे तो पूर्णता का भी तो कोई अर्थ नहीं रह जाएगा..
ReplyDeleteपूर्णता की अनन्त राह अपूर्णता से होकर जाती है।
Deleteऊर्जा का प्रवाह सदैव उच्च स्तर ( विभव /तल/ताप क्रम ) से निम्न स्तर की ओर ही होता है | उसी प्रकार जीवन का प्रवाह भी पूर्णता से रिक्तता की ओर ही होता है | आप अपूर्ण है तभी ऊर्जा आपकी ओर प्रवाहित होगी | जो जितना अधिक अपूर्ण ,वह उतना अधिक पात्र ,पूर्ण होने का | पूर्णता के सापेक्ष अपूर्णता ही मानक है किसी व्यक्ति के धारण ( ज्ञान,संस्कार,बल,वैभव...) करने की क्षमता की |
ReplyDeleteउत्तम कोटि का लेख ...|
अपूर्ण ही गतिमान रहेगा, अपूर्ण में ही पूर्णता का प्रवाह रहेगा, पूर्ण अपनी स्थिति क्योंकर छोड़ेगा।
DeleteVery Inspirational Praveen Ji
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteपेंटिंग वाकई बहुत अच्छी लग रही है।
ReplyDeleteबिटिया ने जब बनायी थी, हम भी अचरज में पड़ गये थे।
Deleteबहुत सुन्दर सन्देश है किन्तु शंका है कि याद रहेगा.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
पूर्णता दृष्टि से ओझल हो सकती है, अपूर्णता तो हर ओर बिखरी पड़ी है।
Deleteपूर्ण तो यहाँ कभी कुछ होता ही नहीं है.बाकी सबकी अपनी धारणा !
ReplyDeleteपूर्णता पाने की व्यग्रता जीने का आनन्द न छीने बस।
Deleteमेरे लिये अपूर्ण एक पूर्ण शब्द है-ऐसा लगा जैसा आपने मेरी बात कह दी...बहुत सटीक!!
ReplyDeleteयह अपूर्णता पहले कचोटती थी, अब पूर्ण लगती है।
Deleteसुन्दर पेंटिंग!
ReplyDeleteपूर्ण अपूर्ण पर स्व.कन्हैया लाल नंदनजी की एक कविता:
एक सलोना झोंका
भीनी-सी खुशबू का,
रोज़ मेरी नींदों को दस्तक दे जाता है।
एक स्वप्न-इंद्रधनुष
धरती से उठता है,
आसमान को समेट बाहों में लाता है,
फिर पूरा आसमान बन जाता है चादर,
इंद्रधनुष धरती का वक्ष सहलाता है,
रंगों की खेती से झोली भर जाता है।
इंद्रधनुष,
रोज रात
सांसों के सरगम पर,
तान छेड़
गाता है।
इंद्रधनुष रोज़ मेरे सपनों में आता है।
पारे जैसे मन का,
कैसा प्रलोभन है?
आतुर है इन्द्रधनुष बाहों में भरने को।
आ क्षितिज दोनों हाथ बढ़ाता है,
एक टुकड़ा इन्द्रधनुष बाहों में आता है,
बाक़ी सारा कमान बाहर रह जाता है।
जीवन को मिल जाती है,
एक सुहानी उलझन…
कि टुकड़े को सहलाऊँ ?
या पूरा ही पाऊँ?
सच तो यह है कि
हमें चाहिये दोनों ही,
टुकड़ा भी, पूरा भी।
पूरा भी, अधूरा भी।
एक को पाकर भी दूसरे की बेचैनी
दोनों की चाहत में
कोई टकराव नहीं।
आज रात इंद्रधनुष से खुद ही पूछूंगा—
उसकी क्या चाहत है?
वह क्योंकर आता है?
रोज मेरे सपनों में आकर
क्यों गाता है?
आज रात....
अद्भुत कविता, एक दूसरे की अपूर्णता भरने का प्रयास करते सब तत्व।
Deleteअसली सौंदर्य अपूर्णता में है.. क्योंकि तब पूर्णता की चाहत बनी रहती है..और पूर्णता जैसी चीज का शायद अस्तित्व ही नहीं है.. तो एक अधूरेपन की कसक हमारे जीवन को संतुलित बनाए रखती है।
ReplyDeleteअपूर्णता संतुलन बनाये रखती...शत प्रतिशत सच।
DeletePraveen, Thank you for sharing your thoughts, its always inspiring to read your observations but today I am going to talk about Devla's painting - Picasso once said "All children are artists. The problem is how to remain an artist once he grows up." and that's what I see in her work, a young Picasso. If we describe her work in Art Terminology it would be put under 'Abstract art' and Abstract art is something that's never understood completely, the beauty of abstract art is that every time you come back to it, you discover something new in it. That's what I personally find so fascinating about a child's imagination - it has no beginning and no end. When they paint, they paint fearlessly, with complete surrender and without thinking much and that's the reason its universally admired. Brilliant piece of work by her, Pls tell her that Uncle Alok is really inspired by her work and will always look forward to see more from her.
ReplyDeleteदोनों बच्चे अभी तक उड़ रहे हैं, दोस्तों को बता रहे हैं कि वे आपसे मिले हैं। कला में लगन गहरी है और बनी रहेगी।
Deleteअपूर्ण एक पूर्ण शब्द है,सुन्दर लेख और सुन्दर चित्र .......
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteअपूर्णता न हो तो पूर्णता का प्रश्न कहाँ
ReplyDeleteराह वही है, बढ़ने की।
Deleteapprnta hai to jigyasa hai ,aage badhne ki chaah hai vahi jeevan chakra hai darshan shastra ka ek adhyaay hi samjho padh liya.bahut achchi post.
ReplyDeleteबढ़ते रहने की निश्चितता है अपूर्णता।
Deleteअपूर्ण यदि इतना सुंदर है तो पूर्ण ही है ।
ReplyDeleteतभी तो अपूर्ण पूर्ण है।
Deleteसच कहा ये तो सिर्फ अपने दृष्टिकोण की ही बात है | वैसे भी कभी-कभी अपूर्ण होना पूर्ण होने से भी सच्चा होजाता है .....
ReplyDeleteअपूर्णता एक नियत सत्य है, कोई भी ऐसा तत्व नहीं दिखायी पड़ता है जो पूर्ण हो। पूर्णता का असत्तिव अपूर्णता मे ही निहित है शाय़द।आपको कोटि-कोटि ऩमन।
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