10.3.12

सोझ समझ कर पीना, यह चम्बल का पानी है

जब भूगोल पढ़ना प्रारम्भ किया तब कहीं जाकर समझ में आया कि बचपन में जो भी पानी हमने पिया, वह यमुना का नहीं चम्बल का था। आगरा की यमुना में कुछ जल शेष ही नहीं रखा गया और उसी से बस ६० किमी दक्षिण में धौलपुर और मुरैना के मध्य चम्बल अपने पूरे स्वरूप में बहती है, आगे जाकर इटावा के पास दोनों मिल जाती हैं।

चम्बल अपने पानी से अधिक अपने बीहड़ों के लिये विख्यात है। बीहड़ बने कैसे, इस पर भूगोलविदों को मतभेद हो सकता है पर बीहड़ में कितने डकैतों को आश्रय मिला, उसमें कोई मतभेद नहीं है। बीहड़ों की बनावट ऐसी है कि इमामबाड़ा भी वहाँ आकर भ्रमित हो जाये। १५-२० मीटर ऊँचे अनगिनत टीले, उसमें मकड़ी के जाल की तरह बिछे रास्ते, चलते चलते कब कोई सामने प्रकट हो जाये कुछ पता नहीं। कितनी भी ऊँचाई से खड़े होकर देख ले, किस टीले के पीछे कौन छिपा है, पता ही नहीं चल सकता है। बचपन में भले ही कितनी लुकाछिपी खेली हो आपने, यहाँ आकर आप सब भूल जायेंगे, बागी दशकों से यही खेल पुलिसवालों के साथ खेल रहे हैं यहाँ पर।

कहते हैं कि यह बीहड़ तब बनने प्रारम्भ हुये जब वर्षा का पानी कई मार्गों से हो चम्बल में मिलने आया होगा। शताब्दियों का बहाव पृथ्वी की सतह में मुलायम मिट्टी को हर बार कुरेदता होगा, हर वर्ष थोड़ी थोड़ी खरोंच लगती होगी पृथ्वी को। यदि हर बार के दृश्यों को तेजी से चला कर देखा जाये तो यही लगेगा कि मदमाता पानी बहा जा रहा है, सरल पर्तों को उघाड़ता, अन्याय सा लगता है, कमजोर को अपनी जगह से हटाती शक्ति। बीहड़ों के बीच बने लहराते से रास्तों की गहराई जिस अन्याय को सहने का प्रतीक है, उसी अन्याय को सहने की शक्ति और स्थान प्रदान करता रहा है यह बीहड़।

तो क्या छिपने का उपयुक्त स्थान बागी बनाने में सहायक है? कुछ और गहरे कारण रहे होंगे कि विद्रोहीमना बीहड़ों में आश्रय लेने आये। सामाजिक व्यवस्था में बड़े बड़े छिद्र रहे होंगे जिससे समाज की ऊर्जा बीहड़ों में बहने को बाध्य हुयी होगी। भाई ने भाई को हिस्सा नहीं दिया होगा, किसी निर्बल को सताया गया होगा, प्रशासन की लोलुपता अंग्रेजों की बराबरी करने पर तुली होगी। हर बागी के साथ कोई न कोई नयी कहानी सुनने को मिल जायेगी। पीढ़ियो की वैमनस्यता का बदला आने वाली पीढ़ियों को चुकाना शेष होगा। कुछ न कुछ तो जटिलता रही होगी जो प्रशासन और समाज समय रहते समझ नहीं पाया होगा और विकास के स्थान पर यह स्थान बागियों के लिये विख्यात हो गया।

अन्याय के अध्याय तो भारत के अन्य भागों में भी लिखे गये हैं पर वहाँ पर इतने बागी नहीं हुये जितने चम्बलों के बीहड़ों ने पैदा किये। कुछ ने सह कर रहना सीख लिया, कुछ ने रह कर सहना सीख लिया, पर चम्बल के बीहड़ों ने न कभी अन्याय सहना सीखा, न कभी चैन से रहना सीखा। सहनशीलता का ज्वलनबिन्दु इतना शीघ्र भड़क जाने का कारण कुछ और पता चला।

झाँसी की पोस्टिंग के समय मुरैना और धौलपुर का क्षेत्र मंडल के अन्तर्गत ही था, लगभग उसी समय एक सहपाठी जिलाधिकारी मुरैना के पद पर था। कई बार मुरैना जाना हुआ, रेल से भी और सड़क से भी। चम्बल पुल के पास स्थित बीहड़ के अन्दर लगभग एक किमी जाने का अनुभव भी प्राप्त किया। हर दस कदम पर नया दृश्य दिख जाता था, लगा कहीं कोई बागी छिपा न बैठा हो। यद्यपि स्टेशन मास्टर ने उनकी संभावित अनुपस्थिति के बारे में आश्वस्त कर दिया था, पर जब तक वापस नहीं आ गये हृदय अव्यवस्थित सा धड़कता रहा।

कई बार जाने का अनुभव भी अपर्याप्त था, बीहड़ को समझने के लिये। सामाजिक समस्याओं की समझ भी कभी इतने गहरे निष्कर्ष गढ़ते नहीं देखी गयी। विकास के प्रति प्रशासन की उदासीनता भी विद्रोही प्रत्युत्तरों की ओर इंगित नहीं कर पायी। जब कभी स्मृति में मुरैना आया, कारण जानने का पर्याप्त चिन्तन किया, पर सफलता नहीं मिली। कुछ दिनों पहले एक परिचित पत्रकार से एक बागी(संभवतः मलखान सिंह) का स्वरचित और गाया हुआ ओजपूर्ण गीत सुना तब कहीं जाकर कारण स्पष्ट हुआ। इसी बीच पानसिंह तोमर फिल्म देखकर उस गीत को साझा करने की इच्छा भी बलवती होने लगी। साथ ही साथ यह तथ्य भी सताने लगा है कि जो पानी बीहड़ों में बागी निर्मित करता रहा है, वही पानी हम न जाने कितना पी गये हैं बचपन में, यमुना का समझ कर।

आप तो गीत सुनिये, बस। कहो, हओ...

125 comments:

  1. Bas ye chambal ka pani bagi bna deta hai,koi karm se bagi koi mn se

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    1. सब कहते हैं तो कुछ न कुछ तो होगा चम्बल के पानी में।

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  2. पानी का असर कभी सोच पर कभी कर्म पर कम-अधिक होता रहता है शायद. युद्ध में अपने भाई-बंधुओं का वध कर चर्मण्‍वती (चंबल) में रक्‍तरंजित अस्‍त्र धोने जैसी कहानी भी चलती है यहां.

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    1. चम्बल को प्रतीक मान अपने अपराधों का भार धोने स्वाभाविक ही है बागियों के लिये, चम्बल की घाटियों ने आश्रय दिया है, कृतज्ञता तो बनती है।

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  3. चलिए आप भी घूम आये बीहडों में. इनसे गुजरते समय आत्मा काँप जाती थी.

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    1. जब अन्दर गये थे तब मन सहज नहीं था, सहजता धीरे धीरे आयी..

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  4. सामाजिक व्यवस्था में बड़े बड़े छिद्र रहे होंगे जिससे समाज की ऊर्जा बीहड़ों में बहने को बाध्य हुयी होगी।

    कुछ ने सह कर रहना सीख लिया, कुछ ने रह कर सहना सीख लिया, पर चम्बल के बीहड़ों ने न कभी अन्याय सहना सीखा, न कभी चैन से रहना सीखा।


    आज ही देखी है फिल्म पान सिंह तोमर ..... और अब आपकी ये पोस्ट पढ़ी , सच में कितना कुछ है
    इन बीहड़ों की बात करने को, विचारने को, कहने को......

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    1. समस्या सामाजिक है, भाई भाई में क्यों मनभेद रहे? मन के घाव गहरे होते है, बीहड़ उन घावों को अपने में छिपाये रहते हैं।

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  5. गीत वाकई ओजपूर्ण है|

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    1. बागी ने अपने मन को गाया है इसमें।

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    1. अनुभवजन्य सत्य है, गानेवाले बागी का।

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  7. चम्बल का पानी पिए हुए हैं तो क्या डर है !
    सत्ता खुद शामिल है इस खूनी होली में!
    गज़ब गीत !

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    1. यह भी एक कटु सत्य है, बहुधा सत्ता भी इस होली में शामिल रही है।

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  8. प्रकृति ने सदैव न्याय किया है मनुष्य ने तो अपनी महत्वाकांक्षा में विवेक को भूल, स्वार्थ को ही प्रश्रय दिया है , बागी बनाने /बनने में किसका कितना हाथ होता है यह सर्व विदित है ,प्रकृति ने पनाह भी बना दिया है .... चम्बल का पानी मीठा है तो निश्चय ही प्रकृति का निर्देश निहित है ,आप की भ्रमण-शीलता जिज्ञासा प्रशंशनीय है / .......सुरुचिपूर्ण विचारनीय पोस्ट का सम्मान ,स्वागत /

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    1. चम्बल का पानी मीठा है पर सीधा नहीं, अच्छे बुरे का भेद तो समझता होगा, आश्रय जो देता है।

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  9. चम्बल व इसका पानी और आसपास का वर्णन काफ़ी जानकारी भरा रहा।

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    1. आप घूमने जाना चाहें तो किसी बागी से संपर्क साधा जाये।

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  10. भूल-चूक माफ़ ।

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    1. हा हा हा, यह तथ्य हमें भी बस कुछ दिन पहले ही पता चला।

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  11. निजामुद्दीन से गोवा को जाने वाली गोवा एक्सप्रेस चम्बल से गुजरती है और ९० के दशक घर से कालेज आने जाने के क्रम में इस यात्रा के दौरान चम्बल को खूब उत्सुकता से देखता था, सच में एक बिलकुल अलग सा भू भाग.
    अभी श्री नरेन्द्र कुमार की मृत्यु की खबर इसी क्षेत्र से आई है जो बहद दुखी और विचलीत करने वाली घटना है. सही क्या हुआ है अख़बारों के रिपोर्ट से तो पता नहीं लगेगा.
    पान सिंह अबी देखि नहीं है.
    आपके ब्लॉग का प्रशंशक होने के कई कारणों में एक इसकी तकनिकी कुशलता भी है - जो इस ब्लॉग में ऑडियो क्लिप के रूप में प्रभावित - इम्प्रेस करती है
    धन्यवाद.

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    1. वर्तमान की घटना ने झकझोर कर रख दिया है..

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  12. चम्बल पुल के पास स्थित बीहड़ के अन्दर लगभग एक किमी जाने का अनुभव भी प्राप्त किया। हर दस कदम पर नया दृश्य दिख जाता था, लगा कहीं कोई बागी छिपा न बैठा हो।
    एक अलग दृष्टिकोण जीवन का ....बहुत गहन है आज का आलेख ....हर बार कुछ नया अर्थ लिए हुए ....!
    शिवपुरी ....मुरैना ....चम्बल ....उन बीहड़ों की याद ताज़ा हो रही है .....आभार .

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    1. कभी भय की ओर जाकर अजब अनुभूति होती है, सो हुई। वहाँ देखकर लगा कि बागियों को ढूढ़ पाना कितना कठिन होता होगा।

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  13. सचमुच,यदि गंगा भक्ति की ,यमुना प्रेम की और सरस्वती ज्ञान की सरिता है तो तो चंबल को कर्म(शौर्य) की माना जा सकता है!

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    1. आपका कथन इतिहास सिद्ध करता है।

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  14. चम्बल के बीहड़ों के प्रति बचपन से जिज्ञासा बनी हुई है....अब क्षेत्र कुछ शांत हुआ है,पर पानी वैसा ही है !

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    1. अभी तो शान्त है पर बीहड़ सदा ही छिपने का स्थान रहा है।

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  15. बचपन से ही चम्बल के प्रति एक अलग तरह का आकर्षण रहा है.अब भले ही यह क्षेत्र कुछ शांत हो गया हो,पर वहाँ का 'पानी' नहीं बदला !

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    1. पानी कहाँ बदलता है, वह तो आदमी को बदल देता है।

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  16. गीत वाकई अद्भुत है...सोच समझ के पीना ये चम्बल का पानी है...बोल भी बहुत सशक्त हैं. इसे शेयर करने के लिए बहुत शुक्रिया.

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    1. जितनी बार गीत सुनता हूँ, सामने बीहड़ लहरा जाता है।

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    2. plz सुनवाइए

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  17. प्रवीण जी,..पूर्वज भिंड में ही रहते थे,आज भी वहाँ मेरा आना जाना है वहाँ के बीहडो को मैंने नजदीक से देखा है
    आपने उन बीहडो की याद ताजा करा दी,...आभार

    MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...

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    1. बचपन में बागियों की कहानियाँ सुनते थे, बीहड़ों में जाकर वह सब याद हो आया।

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  18. हओ , सुन लिया. ग्वालियर से इटावा सड़क मार्ग में २-३ बार आना हुआ है . चम्बल नदी के आस पास वाले इलाके में पहुचाने के बाद भय मिश्रित माहौल रहता था .

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    1. सड़कें तो तब भी सुरक्षित हैं, भय तो बीहड़ में लगता है।

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  19. चंबल के बारे में अच्छी जानकारी ... चंबल का पानी है ...गीत बहुत अच्छा लगा ...

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    1. चंबल का पानी यहाँ के इतिहास की साक्षी है।

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  20. post se jyada aapko iis audio ke liye thanks kahunga...
    har ke bas ki baat nahi hoti is tarah ki post ko itni khoobsurati se likhne ki...kuch din pahle hi paan singh tomar dekhi aur aaj aapki ye post..
    mujhe to naya bahut kuch jaanne ko mila..bahut kuch janne ko mila!!

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    1. चम्बल का बीहड़ सदा ही रहस्य रहा है, मेरे लिये भी, उसी को समझने का प्रयास है यह।

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  21. वाकई में चम्बल के पानी में कुछ तो बात है, धाकड़ पोस्ट है ये !!! :) :) :)

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    1. तभी तो सोच समझ कर पीने की बात कही गयी है।

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  22. तभी सोचूँ ये बागी तेवर कैसे हैं ...हा हा ..
    वैसे मैं भी आगरा रहा हूँ बचपन में शायद मुझमें भी चम्बल के पानी का कुछ कुछ असर है ...

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    1. पिछले दो साल से तो कावेरी का पानी पी रहे हैं।

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  23. गीत बड़ा अच्छा लगा। सोच समझकर पीना ये चम्बल का पानी है।

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    1. गीत स्पष्ट कहानी है, चम्बल की।

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  24. गीत स्पष्टता से सब कुछ कह जाता है...!

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    1. सच कह रही हैं आप, स्पष्टता से सब कहता है यह।

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  25. My parents hail from Etawah.. very near to chambal region :)
    I've had many chance of visiting that place.. it is indeed fascinating.

    I also watched movie yday... very close portrayal of that area.

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    1. इस फिल्म में सब कुछ सरलता से दिखाया है, कोई निर्णय नहीं दिया गया है।

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  26. यह सच है कि पानी का असर होता है.. शायद इसीलिये मुहावरे बने कि घाट-घाट का पानी पिया है या फिर स्वास्थय के लिए पानी बदलने की ज़रूरत आदि!! चम्बल का पानी से अधिक बीहड़ आकर्षित करते रहे हैं!! गीत मधुर!!

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    1. पानी का प्रभाव पड़ता है, उसे समझना पड़ता है..

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  27. वाकई जो तथ्य आपने रखें हैं वही सच लग रहे हैं बहुत ही अच्छा लिखा है आपने.... तथ्यपूर्ण एवं विचारणीय आलेख...

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    1. बीहड़ों में छिपा सत्य निकाल कर लाना बहुत कठिन है, घेरदार घाटियाँ।

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  28. बीहड़ वाकई किसी बड़ी उथल पुथल के अवशेष है, यहाँ निश्चित ही नदियों ने अपना अनुशासन छोडा है, शायद पानी में यही बागीपन हो!! शानदार संस्मरण!! और जानकारी!!

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    1. चम्बल पहले उत्तर की ओर बढ़ती है, फिर पूर्व की ओर। प्रवाह तो अनुशासित है, वह दिशा बदली है।

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  29. लाख लिख लिया जाए और लाख बार पढ लिया जाए, बीहडों में घूमे बिना इनकी कल्‍पना भी नहीं की जा सकती। और जो एक बार देख ले, वह इन्‍हें बयान नहीं कर पाता।

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    1. सच कहा आपने, एक बार घूम आने से सारे रहस्य खुल जाते हैं।

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  30. Anonymous10/3/12 17:17

    sach mein beehad ke bare mein kai kahaniya pahle bhi suni thi, aur aapse nai jankari ke baare mein pata laga,thanks

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    1. बचपन में सुनी कहानियों में बहुत कुछ सत्य था।

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  31. हर साल बीहड़ों में जाना होता है और चंबल का पानी पीते हैं और पिछले दस सालों से डायलाग सुन रहे हैं "चंबल का पानी पिया है, सोच समझ कर रहना" :)

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    1. बीहड़ों में जो नहीं सोचते हैं, वे बागी बन जाते हैं।

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  32. चंबल के बारे में अच्छी जानकारी .

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  33. हर साल बीहड़ों में जाना होता है और चंबल का पानी पीते हैं और पिछले दस सालों से डायलाग सुन रहे हैं "चंबल का पानी पिया है, सोच समझ कर रहना" :)

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  34. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  35. बीहड़ ऐसे रास्ते हैं जिनकी कोई मंजिल नहीं होती लेकिन जानेवाले के पास कोई विकल्प नहीं होता। जहां भी हाथ, मुंह और निवाले के बीच दूरी है वहां एक बीहड़ बनने लगता है, सुनसान, वीरान, अंधड़ और अंतहीन रास्तोंवाला बीहड़।

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    1. वहाँ तो भौतिक बीहड़ है, हमारे नगरों में न जाने कितने मानसिक बीहड़ नित्य निर्मित होते हैं।

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  36. देखे हैं ये बीहड़ हमने भी लेकिन हम जैसे इसे पिकनिक समझते थे और यहाँ के निवासियों की जिन्दगी में कहीं और ज्यादा बीहड़ हैं।

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    1. यहाँ के आम निवासी तो हर तरफ से पीड़ित रहे हैं।

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  37. चंबल घाटी इस समय सुर्खियों में है... पान सिंह तोमर फिल्म और उसके बाद एक आई पी एस अफसर की हत्या के कारण....
    मुरैना का ही निवासी होने के बावजूद बीहड़ों में घूमने का तो अनुभव नहीं लिया परंतु बीहड़ों के बीच या आसपास से गुजरती सड़कों पर बचपन में गुजरने हुए बड़ा रोमाँचक अनुभव रहता था...
    करीब दस बारह साल पहले मुरैना से अम्बाह तहसील होते हुए चंबल पार कर आगरा की सीमा में जाना हुआ तब चंबल के प्राकृतिक सौंदर्य को जी भरकर देखा.. खूबसूरत रेतीला तट और साफ पानी... पर यही रेत चंबल के लिये अभिशाप बन चुका है खासकर मुरैना धौलपुर हाईवे पर राजघाट पुल के पास तो स्थितियाँ बेहद खराब हैं.. रेत उत्खनन से यहाँ पाये जाने वाले दुर्लभ जीवों का अस्तित्व खतरे में डाल दिया है... कहने को तो ये चंबल अभ्यारण है पर मानवीय गतिविधियाँ रोकने की इच्छाशक्ति प्रशासन, जंगल महकमे या खनन विभाग किसी में नहीं दिखती.. वैसे प्रशासन अक्सर रोज ही पिटता है.. चंबल के रेत पर गुर्जर समाज के लोगों का कब्जा है.. और रेत ही उनकी रोजी रोटी है..इसके अलावा अवैध रेत सबसे ज्यादा मुनाफ़े का सौदा है उनके लिये.... धौलपुर की ओर रेत और मुरैना से ग्वालियर की तरफ के इलाके में पत्थर का उत्खनन इन लोगों द्वारा किया जा रहा है... बड़ा वोट बैंक होने के कारण सभी पार्टियों में इनके नेता हैं....
    बागियों की समस्या के बारे में यहाँ के सबसे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विद्याराम गुप्ता ने काफी शोध करके एक किताब भी लिखी है... इसमें इस समस्या के कारणों पर प्रकाश डाला गया है....
    कभी मुलाक़ात होने पर इस विषय पर विस्तृत चर्चा संभव

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    1. श्री विद्यारामजी की पुस्तक पढ़ना चाहूँगा। रेत खनन ने चंबल के साथ बेतवा को भी छूँछा बना दिया है।

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  38. डर गए चम्‍बल के पानी से? यहाँ तो पतिदेव उसी पानी की उपज हैं और अब तो बहु भी वहीं से आ गयी है। हा हा हा हा। हम तो डटकर मुकाबला कर रहे हैं।

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    1. आपके पतिदेव से मिल चुका हूँ। आज यह पोस्ट पढ़कर जान पाया कि इतने सीधे-सादे इन्सान चंबल में भी पैदा हो सकते हैं। हा हा हा...

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    2. चम्बल का यह सीधा रूप पहली हार जाना, आपको अतिशय बधाईयाँ।

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  39. ...जैसा पानी वैसी वाणी ,होली , सो , होली ,अनजाने जो हुआ सो हुआ ...पानी तो चाहिए ही सभी को ..रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ,पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून .

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    1. पानी का बड़ा मोल है, संस्कृति में, विकास में, व्यक्तित्व में।

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  40. sarthak jankari mili aapke blog par. beehadon ke snnate, veeraniyan sdaev hi mujhe aakarshit karte rhen haen .par unmen aashray kene vale kitne akele or paadet haten haen is bat ne sda hi vyathit kiya hae ,

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    1. यदि बागी न हों वहाँ तो बीहड़ों से अधिक रमणीय स्थान नहीं होगा।

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  41. गत वर्ष चित्रकूट जाते हुये यहाँ से गुजरना हुआ था...
    चम्बल अपने आप में एक रहस्य तो है...

    “सोच समझ कर पीना यह चम्बल का पानी है” गीत उसी रहस्य को रेखांकित करता प्रतीत होता है....
    सादर.

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    1. सच कहा आपने, रहस्य के अध्याय खोल जाता है चंबल का पानी।

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  42. राम प्रसाद विश्मिल जी की जीवन स्थली वरबई ,जिला मुरैना मध्य प्रदेश की चम्बल की पानी वाकई उतेजना पैदा करने वाली होगी.........अतयन्त रोचक आलेख,ऱोमान्चक

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    1. विस्मिलजी की वीरता चम्बल का वरदान रही हो उनके लिये।

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  43. पानी तो अपन भी चम्‍बल का ही पीकर बड़े हुए हैं। बचपन के पूरे आठ साल गुजारे हैं मुरैना जिले की सबलगढ़ तहसील में। हो सकता है मेरे लेखन और बात कहने के तरीके में जो अक्‍खड़पन है वह इसी की देन हो। आपकी पोस्‍ट तो हमेशा की तरह रोचक रही। पर गीत नहीं सुना जा सका।

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    1. जब स्रोत ज्ञात है तो स्वीकार कर लीजिये। कावेरी के पानी का प्रभाव संभवतः सम पड़े हम सबके ऊपर।

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  44. भाई साहब पानी तो सारे देश का 'चम्बलवाटर ' ही हो rhaa है .चम्बल एक नियम है अपवाद नहीं .देश की आबो hvaa ही इन '......जादों' ने खराब कर दी है पता ही नहीं चलता सरकार में माफिया है या माफिया- मय सरकार है .

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    1. ताकत ने हर नगर, हर समाज में बीहड़ निर्मित कर दिये हैं।

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  45. main soch rahi hun jab chmbal ka pani pikar akkhadpan aa sakta hai to chnaab ka pani pikar pyaar karna kyon nahin aa sakta ....????

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    1. चम्बल में अक्खड़पन, चेनाब में अल्हड़पन।

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  46. हमारी तो पैदाईश से लेकर ९ साल तक चम्बल के तट पर बीता..गाँधीसागर, जवाहरसागर, राणा प्रताप सागर बाँध परियोजनाओं पर पिता जी इन्चार्ज होते थे और हम चम्बल के बाजू में बनी कालोनियों में रहते थे....खूब यादें जुड़ी हैं आज भी.

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    1. सुन्दर, और सार्थक पोस्ट, आभार.

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    2. तब तो आपने चम्बल का पानी जी भर कर पिया होगा।

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  47. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

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  48. चम्बल के ही पानी की देंन थी पान सिंह तोमर. फिल्म भी मजेदार है

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    1. फिल्म में बीहड़ का सच बहुत ही सहज रूप में दिखाया है..

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  49. एक बार निकलना हुआ था उस तरफ से वाकई रूह सी कांप जाती है.आज ही पान सिंह तोमर देखने का प्लान है.

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    1. हमारा तो कई बार जाना हुआ, धड़कन धीरे धीरे संयत होने लगी।

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  50. पान सिंह तोमर...!!!

    दो दिन में दो बार हॉल में जाकर देखा, बावजूद इसके कि वर्टिगो से कान का हाल बेहाल था..उसके प्रभाव से मुक्त होने के लिए लगता है इससे भी घनघोर कुछ देखना पड़ेगा..

    बेटा जब ग्वालियर में था कई दफे उस रास्ते से आना जाना हुआ.ग्वालियर में चहुँ ओर अस्त्रों के दुकान ऐसे ही दिखे, जैसे यहाँ चिप्स कुरकुरे के दुकान दीखते हैं..तो हर बार मन में यही आया कि दमन और अस्त्र दोनों जहाँ चोली दमन की तरह हों, तो अस्त्र कितना और कबतक चुप रहे..

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    1. सच कहा आपने, यहाँ के हर घर में बंदूकें दिख जायेंगी।

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  51. चम्बल के घटी की हकीकत बयां करता हुआ अच्छा गीत.... चम्बल के बारे में इतना कुछ विस्तार से जानना अच्छा लगा. सुंदर प्रस्तुति.

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    1. पूरा अनुभव तो वहाँ के बीहड़ों में घूमकर ही मिलता है।

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  52. चम्बल के बीहड़ों कि बात चली तो एक गढ़ याद आ गया. गढ़कुडार. दूर से गढ़ दीखता है परन्तु नजदीक से नहीं. वृन्दावनलाल वर्मा जी का एक उपन्यास भी है. गीत गजब का है.

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    1. वृन्दावनलाल वर्मा झाँसी के ही थे, इस पूरे क्षेत्र का सुन्दर वर्णन मिल जाता है उनके उपन्यासों में।

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  53. संयोग देखिये कि कल ही यहाँ मल्टीप्लेक्स में तिग्मांशु धूलिया की 'पान सिंह तोमर' देखी और आज आपका ब्लॉग. चम्बल का चित्र खींचती आपकी लेखनी गजब की है....... चम्बल साक्षात् देखने का अवसर तो नहीं मिल पाया किन्तु रेल से ही उधर से गुजरते हुए वे बीहड़ दिखाई देते हैं..... बागी के स्वर में कविता हकीकत बयां करती है. आभार !
    ..... वैसे चम्बल के पानी और यमुना के पानी में जो फर्क माना जाता हैं वही फर्क हमारे यहाँ यमुना के पानी और गंगा के पानी के बीच भी है. देहरादून के पूर्वी छोर पर गंगा बहती है और पश्चिमी छोर पर यमुना.

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    1. हमने यमुना को चम्बल के पानी से प्लावित होते हुये जाना है, अब उन दोनों में कोई अन्तर नहीं दिखता है हमें।

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  54. इस इलाके में कभी नहीं गया इसलिए इस लेख व प्रतिक्रियाओं खासकर भुवनेश की से यहाँ की स्थिति व समस्याओं का कुछ अंदाज़ा हुआ।

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    1. अपने में एक अलग तरह का क्षेत्र है, पूर्णतया विशिष्ट..

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  55. चम्बल घाटी के बारे इतनी जानकारी नहीं थी हाँ सुना बहुत बार था पर आपके खूबसूरत अंदाज़ ने उससे बख्बी समझा दिया बहुत सुन्दर शुक्रिया |

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    1. बीहड़ों की सेर कर लीजिये, सब और भी स्पष्ट हो जायेगा।

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  56. कल 14/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं।

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    सार्थक ब्‍लॉगिंग की ओर ...

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  57. उत्तर भारत से मध्य भारत की ओर जाते हुए जब उस क्षेत्र से गाड़ी गुज़रती है, तो बड़ा भय लगता है, चाहे दिन ही क्यों न हो! लगता है फ़िल्मों ने अमिट छाप छोड़ी है मन पर।

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    1. बहुत स्तरीय फिल्म बनायी है, इस विषय पर।

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  58. बहुत सुन्दर गीत। बढिया पोस्ट।

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  59. प्रकृति अच्छे- बुरे कानून से नहीं चलती है .बागी या सभ्य बराबर हैं..

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  60. प्रकृति अच्छे- बुरे कानून से नहीं चलती है .बागी या सभ्य बराबर हैं..

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    1. प्रकृति के लिये तो सब बराबर हैं पर बीहड़ का अधिक लाभ बागी लेते रहे हैं।

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  61. बहुत ही सशक्त, आलेख ....चम्बल हमेशा से ही कौतुहल का विषय रहा .....आपका लेख पढ़कर और बढ़ गया

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    1. चंबल का कौतुहल बिना वहाँ जाये कम होने वाला नहीं।

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  62. क्या सच मेँ यह खतरे वाला जगह है ,सुना है कि चारो तरफ पुलिस है यहाँ पर

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  63. क्या सच मेँ यह खतरे वाला जगह है ,सुना है कि चारो तरफ पुलिस है यहाँ पर

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