रेलवे में निरीक्षण का कार्य अत्यन्त गहन होता है। आवश्यक भी है, यदि आपके संसाधन विस्तृत क्षेत्र में फैले हों। ट्रैक पर लगी एक एक क्लिप पर दैनिक रूप से दृष्टि बनाये रखनी पड़ती है, कई माध्यमों से। दूर स्थित स्टेशनों की कार्य-प्रणाली के बारे में आश्वस्त होने के लिये वहाँ जाकर निरीक्षण करना होता है। चालक और गार्ड, चलती ट्रेन से ही किसी भी असामान्य सी दिखने वाली वस्तुओं पर सतत दृष्टि बनाये रखते हैं और नियन्त्रण कक्ष को सूचित करते रहते हैं। परिचालन संबंधी प्रत्येक सूचना अपने अन्तराल में नियम से प्रेषित होती रहती हैं। आपकी एक यात्रा के पीछे हजारों कर्मचारियों का योगदान होता है।
जब तक मोबाइल जनसामान्य की वस्तु नहीं बना था, निरीक्षण रिपोर्टें विस्तृत होती थीं, कुछ बिन्दु तथ्यात्मक होते थे, कुछ सुधारात्मक। हर एक बिन्दु को गम्भीरता से लेकर उनका निपटान करना रेलवे प्रणाली का आवश्यक विधान है। अब कई कार्य मोबाइल से यथास्थान होने लगे हैं। निरीक्षण रिपोर्टें भले ही विस्तृत न रह गयी हों पर निरीक्षण प्रक्रिया यथावत है।
इसी क्रम में एक ऐसे रेलखण्ड में जाना हुआ जिसमें तीन राज्य कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु पड़ते हैं। निश्चय किया गया कि एक ओर से ट्रेन के इंजन से पूरे ट्रैक का निरीक्षण और वापस आते समय सड़क मार्ग से हर स्टेशन का विस्तृत निरीक्षण किया जायेगा। पटरियों के दोनो ओर प्राकृतिक सौन्दर्य का जो खजाना छिपा है, उसका साक्षात दर्शन रेलवे के चालकों से अच्छा किसी को नहीं होता है। दोनो ओर पहाड़, झील, खेत, जंगल, गाँव, मवेशी, हरियाली, बादल, सूर्योदय और सूर्यास्त, सब के सब अपनी भव्यता में प्रकट होते जाते हैं, आपकी ओर दौड़ लगाते से, पूरी गति से। एक रोचक फिल्म से कम नहीं है, इंजन में चलना।
वापस आते समय सड़क मार्ग मुख्यतः तमिलनाडु में पड़ता है। हर स्टेशन तक सड़क से पहुँचने के लिये लगभग हर प्रकार की सड़क से होकर जाना पड़ता है। सड़क की स्थिति को लेकर मन सदा ही सशंकित रहता है, साथ में उत्तर भारत का अनुभव हो तो संशय बड़ा गहरा होता है। यद्यपि निरीक्षकों को सड़क मार्ग के बारे में समुचित ज्ञान रहता है पर बीच खण्ड में कहीं पहुँच पाने के लिये कई बार भटकना हो जाता है।
एक सुखद आश्चर्य हुआ जब गाँव तक की सड़कों को हाईवे के समस्तरीय पाया। कहा जा सकता है कि यहाँ इतना यातायात नहीं होता होगा और हर वर्ष वर्षा में सड़कें टूटती नहीं होंगी। कुछ भी कारण हो, सड़कों को इस स्तर पर बनाये रखने के लिये उनका प्रारम्भ में ही उच्चतम कोटि की गुणवत्ता से बनना आवश्यक है, ऐसा होने पर संरक्षण स्वतः सरल हो जाता है। स्थानीय निरीक्षक ने बताया कि पूरे तमिलमाडु में स्तरीय सड़कों का बनना, उनका रखरखाव और उनका हर गाँव तक विस्तार मुख्यतः अम्मा की देन है। अम्मा, यह सुश्री जयललिताजी के लिये सम्बोधन है। तमिलनाडु में, स्थानीय निरीक्षक बताते हैं, राजनीति कभी विकास के आड़े नहीं आती है और कोई भी सरकार हो, पिछली सरकार के सारे कार्य पूरे होते हैं। श्री करुणानिधिजी को सभी बड़े नगरों में फ्लाईओवर बनाने का श्रेय जाता है। प्रख्यात मुख्यमंत्री श्री एमजीआरजी को हर गाँव में बिजली पहुँचाने का उत्प्रेरक माना जाता है।
सारी सड़कें एक स्तर की होने के कारण भटकना स्वाभाविक था। राहगीरों से पूछने से जब समुचित राह नहीं मिली तब गूगल मैप से सहायता लेने की विवशता आन पड़ी। गूगल मैप की कागज के मानचित्रों पर एक बढ़त है, गूगल मैप आपकी वर्तमान स्थिति बता देता है जब कि कागज के मानचित्रों में आपको अपनी स्थिति ढूढ़नी पड़ती है। राजमार्गों में जहाँ गूगल मैप की आवश्यकता नहीं होती है वहाँ तो इण्टरनेट मिलता रहता है, पर गावों की तरफ नेटवर्क की डंडियाँ गोल हो जाती हैं। आईफोन पर देखा तो न केवल इण्टरनेट चमक रहा था वरन अपने पूरे तेज में था। यह पहला अनुभव था जब मैं अपने ड्राइवर महोदय को एक एक मोड़ पर निर्देशित कर रहा था। शेष निरीक्षण बिना व्यवधान के शीघ्र सम्पन्न हुआ, सड़कें अच्छी थी, सायं होते होते हम अपने घर में थे, यह बात अलग है कि बंगलोर के यातायात ने एक घंटा स्वाहा कर डाला।
यात्रा हो और ढाबों की बात न हो। यातायात की संभावना अच्छी सड़कों की उपस्थिति में फलने फूलने लगती है। देश के हर राज्य के ड्राइवर यहाँ की सड़कों में ट्रकों से माल ढोते दिख जाते हैं। संभवतः यही कारण होगा कि हमें 'वेलु का पंजाबी ढाबा' दिखायी दे गया। इच्छा तो हुयी कि वेलुजी के ढाबे में बैठकर दाल तड़का और तंदूरी रोटी खायी जाये। पर व्यस्तता अधिक होने के कारण और पेट को प्रयोगों से मुक्त रखते हुये गाड़ी में ही 'दही भात' से संतोष किया। देश में ट्रक ऐसे ही फैले तो पंजाब में 'मन्जीता डोसा सेन्टर' जल्दी ही खुलेगा।
दिन में कितना कुछ, कितनों के रचित विश्व के साथ साक्षात्कार, गतिमय विश्व की सामूहिक उपासना। रात कितनी अकेली, मैं, पूर्ण थकान और गाढ़ी नींद।
वाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
आपको नमस्कार!
रंगों की बहार!
छींटे और बौछार!!
फुहार ही फुहार!!!
रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!
आपको भी ढेरों शुभकामनायें..
Deleteअच्छा लगा यह यात्रा वृत्तांत -आपको होली की सपरिवार रंगभरी शुभकामनाएं!
ReplyDeleteयात्राओं में सदा ही रोचकता निकल आती है।
Deleteऐसी यात्रा के बाद तो इत्मिनान से सोना बनता है...वहाँ की सड़कों का स्तर सुनकर सुखद आश्चर्य हुआ...
ReplyDeleteहोली की मुबारकबाद भी ले लिजिये मात्र अपने लिए नहीं...पूरे परिवार के लिए.
हम तो आकर खूब सोये भी थे
Delete''दिन में कितना कुछ,
ReplyDeleteकितनों के रचित विश्व के साथ साक्षात्कार,
गतिमय विश्व की सामूहिक उपासना।
रात कितनी अकेली,
मैं,
पूर्ण थकान और गाढ़ी नींद।''
पूरी कविता.
अतिशय आभार कविता ढूढ़ निकालने का, हम तो मन की चमत्कृत स्थिति व्यक्त कर रहे थे।
Deleteप्राकृतिक सौन्दर्य का जो खजाना छिपा है, उसका साक्षात दर्शन रेलवे के चालकों से अच्छा किसी को नहीं होता है। सही कह रहे हैं, मुझे तो मालगाड़ी में गार्ड वाला डिब्बा सबसे अच्छा लगता है.
ReplyDeleteमालगाड़ी का डब्बा बहुत हिलता है, थकान बहुत शीघ्र आ जाती है। इंजन में सदा ही आराम रहता है।
Deleteनिरीक्षण के अपने मानक होते हैं.
ReplyDeleteतमिलनाडु की दूर-दराज की सड़कें अच्छी हैं यह राहत देने वाली बात हैं.यहाँ देश की राजधानी में भी सड़कों का बुरा हाल है,जबकि विकास का पैमाना होती हैं ये सड़कें !
सड़कें मूलभूत ईकाई है विकास की, बिना उसके विकास संभव ही नहीं है।
Delete"मालगाड़ी का गार्ड"
ReplyDeleteट्रेन के सफ़र के दौरान जब भी कोई मालगाड़ी देखता हूं,तब उसके आखिरी डिब्बे पर बरबस निगाह पड़ जाती है।इतनी लम्बी गाड़ी के आखिरी डिब्बे में एक एकदम निपट अकेला आदमी बैठा दिखता है, चुपचाप ।सोचता हूं कैसे सफ़र कटता होगा अकेले और सफ़र भी ऐसा कि पता नही,कहां घंटों खड़ा रहना है और कब तक वह भी प्रायः ऐसे स्टेशनों पर, जहां ना कोई जनजीवन ना कोई दुकान।
मालगाड़ी के इस डिब्बे में पता नहीं क्यों, रेलवे ने रोशनी का इंतज़ाम भी नही कर रखा है।कैसा भी मौसम हो,कड़कती सर्दी या घोर बारिश,बस अंधेरे में उस में अकेले कटती ज़िन्दगी।बगल से उसके एक से एक रंग-बिरंगी गाड़ियां यथा शताब्दी,दुरंतो,राजधानी धड़ाधड़ गुजरती हुई, जैसे मुंह चिढ़ाती तेज़ जिन्दगी भाग रही हो और मालगाड़ी धीरे धीरे रेंगती हुई,जैसे कैंसर का मरीज रेंगते हुए अपनी मौत का इन्तज़ार कर रहा हो। आजकल तो मोबाइल और वाकी टाकी का ज़माना आ गया ,आज से १०/१५ वर्ष पहले तो गार्ड साहब घर से जाने के बाद, कब लौटेंगे, उन्हें खुद भी पता नही होता था।
सच मानिये,कभी मालगाड़ी के गार्ड की ज़िन्दगी को कल्पना कर के देखें,मन अवश्य विचलित होगा।मैं तो जब भी कोई मालगाड़ी देखता हूं तो मेरा सर श्रद्धा से उस गाड़ी के गार्ड के प्रति झुक जाता है।हो सकता है एक कारण यह भी हो कि मेरे पिता जी रेलवे में मालगाड़ी के ही गार्ड थे, और मैं अब महसूस करता हूं कि उनका जीवन उस अवधि का कितना कष्टमय रहा होगा, पर उन्होंने हम लोगों को कभी भनक भी ना लगने दी ।
जानकर अच्छा लगा कि आप भी रेल परिवार से हैं। गार्ड की निष्ठा और कठिनाई देखकर रेलवे पर गर्व हो आता है। चार पहियों का गार्ड का डब्बा अधिक हिलता है, थकान जल्दी आती है। धीरे धीरे बदल कर उसे ८ पहियों का किया जा रहा है। गार्ड अभी भी बाहर जाते हैं तो ७० घंटे तक बिना घर आये कार्य करने को तत्पर रहते हैं।
Deleteरेल परिवार से तो मै दो तरफ से जुडा हुआ हूँ | पिता जी तो थे ही रेल में , मेरी श्रीमती जी ( निवेदिता ) के सबसे ज्येष्ठ भाई साहब ( हमारे सम्मानीय साले साहब ) भी रेलवे बोर्ड में ही है , श्री श्री प्रकाश जी ,आप संभवतः अवश्य जानते भी होंगे | इस तरह से हम तो बचपन से अब तक पटरी से पटरी मिलाये बैठे हैं |
Deleteतब तो आपकी दोनों पटरियाँ दुरुस्त हैं। हमारे वरिष्ठतम और कर्मठ अधिकारियों में एक हैं, आपके सम्मानीय साले साहब।
Deletehttp://amit-nivedit.blogspot.in/2011/01/blog-post_07.html
ReplyDeleteपढ़कर अत्यन्त प्रभावित हुआ।
Deleteसुघड़ सड़क बिजली सही, दक्षिण की सरकार |
ReplyDeleteपरिचालन में रेल के, लगते लोग हजार |
नींद छोड़ एकाग्र हो, मंजिल लायें पास |
घंटो की ड्यूटी कठिन, त्यागें भोग-विलास |
सुन्दर प्रस्तुति |
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
आपकी कवित्व प्रतिभा चकित कर देती है, सहज भाव से निचोड़ रख दिया।
Deleteबहुत दिलचस्प पोस्ट रही।
ReplyDeleteयात्रायें कुछ न कुछ रोचकतायें लेकर आती हैं।
Deleteबहुत सुंदर, जीवंत यात्रा वृतांत..... रेलवे हर तरह से आम जीवन से जुड़ा सा लगता है ......
ReplyDeleteहमें एक तकनीकी विभाग को जनसाधारण की सेवा में प्रयुक्त करने का कार्य मिला है।
Deleteसर जी ..आप के लेखो को देखने के बाद यह तो जरुर लगता है की आप बहुत ही तीक्ष्ण रूप से किसी चीज को भापते है ! निरिक्षण के समय सभी डर जाते होगे ! बहुत सुन्दर अनुभव !
ReplyDeleteपता नहीं पर मेरे सारे पर्यवेक्षक सदा ही बड़े प्रसन्नचित्त दिखते हैं।
Deleteहम समझ गए.. की आपके पास आई-फोन है.. :-)
ReplyDeleteवैसे सड़क मार्ग से यात्रा करने का अपना मजा है.. गाड़ी चलती रहे तो फिर मौज मजा बना रहे..
बढ़िया रही आपकी यात्रा..
आईफोन बहुत काम की चीज है, आप भी ले लीजिये। सड़क यात्रा में आपके साथ बैठने में डर लगेगा। आप, सुना है, बहुत तेज चलाते हैं।
Deleteरेलवे के साथ रहना आपको बहुत सूट कर रहा है- कभी कवि,कभी दार्शनिक ,कभी शुद्ध नीर-क्षीर-विवेचक .भागती हुई ट्रेन,आराम से बैठना,अनुकूल वातावरण,बीवी-बच्चों का झंझट नहीं,हाथ के नीचे दसियों लोग .मुझे तो रेलवे की नौकरी सबसे अच्छी लगती है.
ReplyDeleteहा हा, इतना आराम भी नहीं है, बड़ी मेहनत पड़ जाती है। पर संतोष भी पूरा है।
Deleteहमारे यहाँ तो निजाम बदलते ही पूर्ववर्ती द्वारा शुरू विकास के कार्यों पर रोक लग जाती है . होली की शुभकामनाये .
ReplyDeleteविकास की राजनीति हो, विकास में राजनीति न हो।
Deleteचलिये ...कहीं की सड़कें तो ऐसी हैं जिनकी प्रशंसा की जा सके .... सूक्ष्म अवलोकन और सुंदर यात्रा वृतांत
ReplyDeleteसड़कें निश्चय ही प्रशंसनीय हैं, विकास पर राजनीति नहीं होती है यहाँ।
Deleteकाफी बारीकी से लिखा है
ReplyDeleteबहुत आभार आपका..
Deleteसुदर यात्रा वृतांत - नए टेक्नोलोजी के साथ! वाह खूब! ड्राईवर साहब तो चकरा गए होंगे कि साब को ये सब कैसे मालूम है. राजनीती से परे विकास का सतत चक्र - उत्तर भारत में कब घूमेगा !!
ReplyDeleteहम ड्राइवर साहब से कुछ सीखते रहे, वह हमसे कुछ सीखते रहे।
Deleteरेल ट्रैक के चारो ओर रंगीला संसार बसता है, रोचक दृश्यावलोकन, और प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteरेल ट्रैक के दोनों ओर सौन्दर्य का खजाना है, जितना अधिक देखता हूँ, यही लगता है कि कितना कुछ छूटा है।
Deleteट्रेन का सफर करने वालों में भी कम लोग हीजानते हैं कि ट्रेनों का संचालन होता कैसे है। कई साल से रेल मंत्रालय बीट पर काम कर रहा हूं इसलिए बेसिक तो मैं भी जानता हूं। पर आपने बहुत ही बारीकी जानकारी दी है। बहुत बढिया।...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं..
कभी साथ में घूमने चलेंगे तो और गहरी और रोचक जानकारी पा जायेंगे। हम अभी तक कुछ न कुछ सीखते रहते हैं, हर बार।
Deleteसूक्ष्म अवलोकन और सुंदर यात्रा वृतांत रोचक प्रस्तुति,
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
Deleteबहुत बारीकी से लिखा बढ़िया यात्रा संस्मरण ....रेल कर्मचारियों की मेहनत और अपने काम के प्रति आपकी आस्था दर्शा रहा है ..!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख ..!!
रेलवे में अभी भी इस बात का संतोष है कि लोग मन लगा कर काम करते हैं।
Deleteबड़ा रोचक विवरण है यह !
ReplyDeleteयात्रायें रोचकता लाती हैं, माँ नर्मदा के विवरण पढ़ रहे हैं।
Deleteलग रहा है कि यात्रा अच्छी रही| :)
ReplyDeleteवैसे पंजाब में मंजीते दे ढाबे पर साग के साथ साथ डोसा अभी से मिलने लगा है |
डोसा दक्षिण भारतीय स्वादानुसार आने में समय लगे संभवतः।
Deleteहाँ, ये हो सकता है|
Deleteतकनीकी के साथ यात्रा ... रोचक वृतांत ...
ReplyDeleteआपको और परिवार में सभी को होली की मंगल कामनाएं ...
तकनीक, यात्रा, उत्सव, जीवन गतिशील है।
Deleteदिन में कितना कुछ, कितनों के रचित विश्व के साथ साक्षात्कार, गतिमय विश्व की सामूहिक उपासना। रात कितनी अकेली, मैं, पूर्ण थकान और गाढ़ी नींद।
ReplyDeleteकाफी फिलोसोफिकल पंक्ति के साथ पोस्ट खत्म हुई है... उम्दा
जब दिन दर्शनीय हो जाये तो मन दार्शनिक हो जाता है।
Deleteरोचक!
ReplyDeleteहोली का पर्व मुबारक हो !
शुभकामनाएँ!
आपको भी ढेरों शुभकामनायें।
Delete'गतिमय विश्व की सामूहिक उपासना' वाह! इस विम्ब को आपका यात्रा वृतांत शब्दशः जीता हुआ प्रतीत होता है!
ReplyDeleteदिन भर गतिशील बने रहने से यही उद्गार निकलते हैं।
Deleteरोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteआपका और आपके रेलवे का साथ ..हमारे लिए तो बहुत ज्ञान वर्धक है.
ReplyDeleteहैप्पी होली .
रेलवे के कार्य में गहनता है पर वह सामने से दिखायी नहीं पड़ता है।
Deletesach kah rahe hai aap,hamari yatra safal ho iske liye kitni vyavstha ki jaati hai ,rochak prastuti ,tasvir bahut pasand aai ,holi ki bahut bahut badhai aapko .
ReplyDeleteयह विभाग पिछले १५० वर्ष के अनुभव के सशक्त पक्ष को रखने में सदा प्रयासशील रहता है।
Deleteऐसी यायावरी ही जीवन है।
ReplyDeleteघूमने से कितना कुछ सीखने को मिलता है।
Deleteतामिल नाडू की सुंदर सडकों के लिये तो फिर जय ललिता जी की तारीफ करनी ही होगी । अच्छी सटकें यात्रा को सुगम और सुखद बना देती हैं और बुरी सडकें .........यादगार । आपके निरीक्षण परीक्षण के काम के चलते हमने एक सुंदर पोस्ट पढी ।
ReplyDeleteअच्छे कार्य की प्रशंसा की जाये तो राजनीति को संबल मिलता है।
Deleteहोली के पावन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनायें..
Deleteकार्य का जानकारी भरा संस्मरण!!
ReplyDeleteहर क्षेत्र में बहुत कुछ जानने योग्य रहता है, हम प्रयास करते रहते हैं।
Delete.
ReplyDeleteरोचक यात्रा संस्मरण …
अच्छी पोस्ट के लिए आभार …
:)
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ReplyDelete~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपको भी ढेरों शुभकामनायें..
Deleteसुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनायें
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनायें
Deleteमैंने एंजिन में और गार्ड के डिब्बे में भी यात्रा की है। दोनों ही अनुभव रोमांचक हैं। कभी न भुला पानेवाले। आपकी इस पोस्ट ने वे दोनों यात्राऍं ताजा कर दीं।
ReplyDeleteबड़ी रोचक होती हैं ये यात्रायें।
Deleteबहुत सारी ऐसी जानकारी मिली जो आमतौर पर हासिल न हो पाती।
ReplyDeleteहैप्पी होली।
रेलवे अपना कार्य परोक्ष में करता रहता है, सतत।
Deleteसुन्दर अवलोकन ,गतिमय आलेख..
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
DeleteYour post reminded me the fact that I have not travelled via train in a really long time!!
ReplyDeleteWish you and your family a very happy and colourful Holi!! :)
हम तो रेलवे में सोते, जागते और साँस लेते हैं। आपको भी ढेरों शुभकामनायें।
Deleteकिसी भी विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश में सड़कें भी इसका एक पैमाना होती हैं जो खुली-चौड़ी, सीधी, सपाट, ढलवां और रोशनीदार होती हैं, पढ़ कर अच्छा लगा कि भारत उसी दिशा में तेज़ी से बढ़ रहा है
ReplyDeleteजो लोग विकास को प्राथमिकता देते हैं, वहाँ सदा ही खुशहाली बनी रहती है।
Deleteचलिये कहीं तो कुछ अच्छा है... :)जानकर खुशी हुई और आपका यह यात्रा वृतांत पढ़कर भी बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteहमारी और से आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।
विकास की प्रशंसा करते रहने से राजनीति की भी विकास में आस्था बनी रहती है।
Deleteउत्साह व रंगो के पावन होली पर्व पर असीम शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनायें।
Deleteकभी बनारस की सड़कों पर भी घूम कर देखिये..तमिलनाडू की सड़कों का मजा दुगना हो जायेगा।
ReplyDeleteआपके साथ बनारस की सड़कें घूमने का सपना पाले हुये हैं।
Deleteअनीता कुमार जी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी..
ReplyDeleteकाश ऐसे राजनीतिज्ञ हमारे महाराष्ट्रा में भी होते तो कम से कम हम बम्बई वासियों की हड्डी पसली तो बराबर रहती। मन्जीता डोसा सेन्टर अब बहुत दूर नहीं। वैसे मुझे याद है कि बचपन में भी अलीगढ़ में हम खास डोसा खाने एक रेस्टॉरेंट में जाया करते थे। :)
अनीता कुमार
सब विकास चाहते हैं, राजनीति काश यह समझ जाये।
Deleteतमिलनाडु में, स्थानीय निरीक्षक बताते हैं, राजनीति कभी विकास के आड़े नहीं आती है और कोई भी सरकार हो, पिछली सरकार के सारे कार्य पूरे होते हैं।
ReplyDeletekaas aaisa pure Bharat main ho....
jai baba banaras...
काश सारे देश में यही हो जाये, राजनीति अपनी जगह, विकास अपनी जगह..
Deleteहाँ इस प्रखंड की सड़कें उम्दा है साफ़ सुथरी , चौड़ी चौड़ी .हमें सडक मार्ग से बाकायदा चैने -पुदुचेरी ,चैने -बेंगलुरु ,चैने -तिरुपति देवमाला देवस्थानम का मौक़ा मिला है कई मर्तबा .और हाँ ढाबे एक से बढ़के एक आला दर्जे के चैने -पुदुचैरी मार्ग पर सुशोभित है .रेलवे की कार्यप्रणाली का आपने विस्तृत ब्योरा उपलब्ध करवाया .एक चिठ्ठी को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने में भी एक विस्तृत तंत्र सक्रीय रहता है .अच्छी कसावदार रिपोर्ताज .आभार आपका नित नै जानकारी लेके आतें हैं आप .चिंतन परक सूचना से लबालब .
ReplyDeleteजब कोई कार्य पूर्णव्यवस्था से किया जाता है तो सरल लगने लगता है, भारतीय रेल संभवतः उसी का ही उदाहरण है।
Deleteलम्बी रेल यात्राओं में ,दिल्ली -उन्नाव ,दिल्ली -बीकानेर दिल्ली -जम्मू ,दिल्ली -कोलकता ,दिल्ली -मुंबई ,दिल्ली -गुवाहाटी, दिल्ली -बंगलुरु ,दिल्ली -चैने ,दिल्ली -कोचीन (अर्नाकुलम ),दिल्ली -आबू रोड ,मुबई -बेंगलुरु ,दिल्ली -जबलपुर ,दिल्ली -पुणे ,लोनावाला -मुंबई -दिल्ली ,शामिल रहीं हैं .अब सोचता हूँ कितने लोगों ने हमारे सफर का कामयाब और निरापद बनाया है .भले आये दिन दुर्घटना भी होतीं ही हैं लेकिन निगरानी और चौकसी का अपना तंत्र सक्रीय रहता है .निरापद तो जीवन में कुछ भी नहीं है .
ReplyDeleteधीरज ,धरम, मित्र अरु नारी ,आपद काल परखिये चारी .
इस जहां में हर किसी का, अपना अपना वास्ता ,
हर कोई अपने जुनू की कह रहा है दास्ताँ .
इस सूचना परक अनुसंधान परक ,अन्वेषी आलेख के लिए आपको बधाई .
लम्बी रेल यात्राओं में ,दिल्ली -उन्नाव ,दिल्ली -बीकानेर दिल्ली -जम्मू ,दिल्ली -कोलकता ,दिल्ली -मुंबई ,दिल्ली -गुवाहाटी, दिल्ली -बंगलुरु ,दिल्ली -चैने ,दिल्ली -कोचीन (अर्नाकुलम ),दिल्ली -आबू रोड ,मुबई -बेंगलुरु ,दिल्ली -जबलपुर ,दिल्ली -पुणे ,लोनावाला -मुंबई -दिल्ली ,शामिल रहीं हैं .अब सोचता हूँ कितने लोगों ने हमारे सफर का कामयाब और निरापद बनाया है .भले आये दिन दुर्घटना भी होतीं ही हैं लेकिन निगरानी और चौकसी का अपना तंत्र सक्रीय रहता है .निरापद तो जीवन में कुछ भी नहीं है .
ReplyDeleteधीरज ,धरम, मित्र अरु नारी ,आपद काल परखिये चारी .
इस जहां में हर किसी का, अपना अपना वास्ता ,
हर कोई अपने जुनू की कह रहा है दास्ताँ .
इस सूचना परक अनुसंधान परक ,अन्वेषी आलेख के लिए आपको बधाई .
तन्त्र की सफलता तकनीकी नहीं, मानवीय होती है। संतुष्टि के मानक यात्रियों से ही आयेंगे।
Deleteआपकी मेहनत को सलाम। नौकरी में इतनी थकाने वाली यात्रा के बाद विशद लेखन जो बहुत रुचिकर भी है... आनंद आ गया पढ़कर।
ReplyDeleteगाढ़ी नींद के बाद तो साहित्य अपने आयाम पर होता है।
Deleteबहुत अच्छी लगी पोस्ट। हमारे शहर में तो तो सडकों का ये हाल है कि घर से निकलो तो पता चलता कहीं की भी सडक खुदी पडी है। रास्ता बंद और जाम।
ReplyDeleteआपको होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
कोई कार्य प्रारम्भ करने के पहले उसकी समाप्त करने की तिथि निर्धारित कर लेनी चाहिये, तभी सुविधा मिल पाती है।
Deleteबड़ा ख़ूबसूरत विश्लेषण किया है प्रवीणजी आपने अपनी यात्रा का...पढ़कर मजा आया...
ReplyDeleteबड़ा ख़ूबसूरत विश्लेषण किया है प्रवीणजी आपने अपनी यात्रा का...पढ़कर मजा आया...
ReplyDeleteयात्रायें जीवन के अनुभव को सुन्दर बनाती जाती हैं, सतत।
Deleteतमिलनाडु में थोड़ी भाषा का समस्या है .वैसे दक्षिण के एन राज्यों में बहुत विकाश हुआ है. बिजली , सड़क जैसी सुविधाएँ बहुत अच्छी है . में तीन साल चेन्नई में रहा , मुझे याद नहीं कभी बिजली गई हो और हमें परेशान होना पड़ा हो.
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा विवरण .
विकास को महत्व दिया गया है वहाँ पर, भाषा की समस्या को राजनैतिक हथियार की तरह उपयोग किया है लोगों ने।
Deleteविकास को महत्व दिया गया है वहाँ पर, भाषा की समस्या को राजनैतिक हथियार की तरह उपयोग किया है लोगों ने।
ReplyDeleteरोचक विवरण !
ReplyDeleteहोली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteरोचक यात्रा संस्मरण...
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें !
यात्रायें सदा ही रोचकता लाती हैं।
Deleteबहुत रोचक यात्रा संस्मरण प्रस्तुति,....
ReplyDeleteमै आपका फालोवर पहिले से हूँ,आप भी बने मुझे खुशी होगी,...
RESENT POST...फुहार...फागुन...
बहुत आभार आपका, आपका ब्लॉग मेरी फीड में पहले से ही है।
Deletetraveling, technology and lovely stories..
ReplyDeletea complete package of fun :)
glad to know that development has reached in outskirts too !!
विकास का फैलाव अब हर ओर करना ही होगा, जनता वोट तभी देगी। गाँव की जनता ने नगर भी देखे हैं, तुलना स्वाभाविक है।
Deleteअत्यंत रोचक!
ReplyDelete