अपनी इसी रुचि के कारण हमारे चचेरे भाई तो बहुत बड़े प्रोफेसर हो गये, उन्हें विद्यार्थियों के ये हथकण्डे भलीभाँति ज्ञात होंगे और निश्चय ही वह अपना प्रश्नपत्र थोड़ा हटकर बनाते होंगे। अध्यापकों को यह तथ्य ज्ञात है कि विद्यार्थी पाठ्यक्रम विमर्श से अधिक प्रश्नपत्र विमर्श करते हैं, जितना समय सीखने में लगना चाहिये उससे कहीं अधिक यह सिद्ध करने में लगता है कि कितना सीखा। अध्यापक सहज चिंतक होते हैं, चिंतक प्रयोगधर्मी होते हैं, यह बात अलग है कि विद्यालयों में उन्हें इन प्रयोगों की छूट नहीं मिलती है। बड़े संस्थानों में स्थिति थोड़ी बेहतर हैं और अध्यापकों को परीक्षा की विधियाँ निश्चित करने की स्वतन्त्रता रहती है। उनके लिये भी यही दो प्रश्न मन में रहते होंगे कि परीक्षा की विधि ऐसी हो जिससे विद्यार्थी सारा पाठ्यक्रम पढ़ने को बाध्य हो, और इस तरह पढ़ें जिससे विषय स्पष्ट रूप से उन्हें समझ आये और अन्ततः लम्बे समय तक मस्तिष्क में बना रहे।
पढ़ाई में नियमितता से अधिक अचूक अस्त्र कुछ भी नहीं है। यदि नियमतता है तो बड़ा और कठिन पाठ्यक्रम भी ग्राह्य हो जाता है। औचक परीक्षा एक ऐसी विधि है जो विद्यार्थी को नियमित रहने को बाध्य कर देती है, नित्य कक्षा में आना, विषय को समझना और गृहकार्य ढंग से करना। कक्षा में अन्तिम २० मिनट में वर्तमान विषय से संबंधित एक प्रश्न ही पर्याप्त होता है, इसके लिये। आईआईटी में जिन विषयों में औचक परीक्षा की विधि अपनायी गयी थी, वे विषय अभी भी स्पष्ट हैं मनसपटल पर। प्रबन्धन संस्थानों में नियमितता बनाये रखने के लिये केस स्टडी का सहारा लिया जाता है। वास्तविक जीवन की एक घटना को पढ़ने, समझने और पढ़े हुये सिद्धान्त प्रयुक्त करने को कहा जाता है, उस पर चर्चा होती है और अंक निर्धारित किये जाते हैं।
विषय का गहन ज्ञान परखने के लिये कई प्रोफेसर एक एक प्रश्न सभी विद्यार्थियों को पकड़ा देते हैं, साथ में देते हैं एक दिन या एक सप्ताह का समय। ये प्रश्न बहुधा शोध की विषय से संबद्ध होते हैं और इनका कोई एक उत्तर नहीं होता है। विषय की समझ जितनी अधिक होती है, आप उतना ही अधिक दूर तक उस प्रश्न को सुलझा सकते हैं। इसके लिये विद्यार्थियों की संख्या कम होनी चाहिये क्योंकि एक छोटे विषय से संबद्ध शोधगत प्रश्न बहुत अधिक नहीं होते हैं। दूसरी विधि बड़े प्रोजेक्ट की है जिसमें विद्यार्थी को कई पुस्तकों से पढ़कर शोध करना पड़ता है। जब कई पुस्तकों से पढ़कर लिखना होता है तो विषय अपने आप मस्तिष्क में उतरता जाता है। इन दो विधियों में परीक्षा की व्यग्रता के स्थान पर ज्ञान का विस्तार होता है, जो शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य भी है।
एक विधि, जिसने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया और जिसमें विद्यार्थी और अध्यापक के उद्देश्यों को पूर्ण निष्कर्ष मिलते हैं। अध्यापक का उद्देश्य होता है कि विद्यार्थी पूरा विषय ढंग से पढ़े, विद्यार्थी का उद्देश्य होता है कि उसे अधिकतम अंक मिलें। अध्यापक ने निश्चय किया कि वह आपसे बस १० मिनट के लिये बात करेंगे, ३ प्रश्न पूछेंगे, उन अध्यायों पर जिन पर आप स्वयं को सहज अनुभव करते हों। लिखित से अधिक प्रभावी होती है मौखिक परीक्षा। १० मिनट के साक्षात्कार के बाद आपको आपके ग्रेड बता दिये जायेंगे। यदि आप संतुष्ट न हों तो आपको थोड़ी और तैयारी के बाद पुनः आने को कहा जायेगा और पुनः वही प्रक्रिया, और यह तब तक होता रहेगा जब तक विद्यार्थी अपने ग्रेड से संतुष्ट न हो जाये। लगभग एक तिहाई ने एक बार में ही 'ए' ग्रेड प्राप्त किया, शेष दो तिहाई को दो या अधिक बार यह प्रक्रिया अपनानी पड़ी। एक विद्यार्थी ने ५ बार साक्षात्कार दिया और अन्ततः 'ए' लाया। सबको 'ए' मिला और सबने उसके लिये यथोचित श्रम लगाया। यद्यपि प्रशासन को यह रास नहीं आया पर उसके पास भी किसी का भी 'ए' ग्रेड नकारने का कारण भी नहीं था, सबको वह विषय ढंग से आता था।
छोटी कक्षाओं के लिये अंक के स्थान पर ग्रेड देना, परीक्षा की व्यग्रता घटाने का एक अच्छा प्रयास है। विद्यालयों में कक्षाओं के अतिरिक्त वास्तविक जीवन से भी सीखने पर यथोचित बल दिया जा रहा है। बाहर घूमने ले जाना, खिलौने के माध्यम से समझाना और अन्य रोचक विधियों से सिखाना, ये सब प्रयोगधर्मिता के सशक्त उदाहरण हैं। इसी रोचकता के बीच बच्चे का स्तर परख लिया जाये और उसे आगे बढ़ने दिया जाये। जब परीक्षा का बोझ कम होगा और मस्तिष्क में कुछ स्थान खाली रहेगा, तभी सृजनता और नवीनता व्यक्तित्व का निर्माण कर पायेंगी।
परीक्षायें भार न लगें, ज्ञान का उपहार लगें।
पढ़ाई और परीक्षा के तरीकों से रोचकता पैदा की जा सकती है जिससे विद्यार्थी पढ़ाई को अपने व्यक्तित्व विकास करने के लिये उपयोग में ला सके, और विद्यार्थी उन पाठों को अपने मानस पटल से कभी मिटा ना पाये।
ReplyDeleteअगर कोई ठोकर खाकर सीखता है तो उसे हमेशा याद रहती है, परंतु दूसरों के अनुभव से सीखना या समझकर सीखना जल्दी भूल जाता है।
यदि वही ज्ञान रोचक ढंग से दिया जाये और किसी और रोचक तरीके से बिना ज्ञान-प्रक्रिया बाधित किये परख लिया जाये तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं।
Deleteइस पोस्ट का इंतज़ार हमें भी था..:)
Deleteआपने कितनी सहजता और अच्छे से बातों को यहाँ लिख दिया..
बहुत अच्छी पोस्ट!
अभी नक़ल वाली घटनाओं का आना शेष है।
Deleteविद्यार्थियों का कन्फ्यूजन इससे दूर होगा |अच्छी पोस्ट |सर होली की शुभकामनायें |
ReplyDeleteपरीक्षा की तैयारी और व्यग्रता शिक्षा-प्रक्रिया को बाधित सा कर रहे हैं।
Deleteपरीक्षा व्यवस्था को खंगालती और भावी संभावनाओं को तलाशती पोस्ट
ReplyDeleteप्रयोगधर्मिता की छूट देनी होगी, शेष कार्य चिन्तनशील अध्यापक कर लेंगे।
Deleteअच्छी विधियाँ हैँ पढ़ाई मेँ रोचकता लाने के लिए। धन्यवाद सर ऐसी जानकारी के लिये।अपने अध्यापक बन्धुओँ को होली की शुभकामनाएँ!!!
ReplyDeleteअध्यापक बन्धुओं को मेरी ओर से भी हार्दिक शुभकामनायें।
Deleteपरीक्षा को खेल और इस खेल को उसके नियमों से ही खेला जाना वाजिब होता है.
ReplyDeleteनियम खेल की गुणवत्ता बढ़ायें तो आनन्द ही आ जाये।
Deleteपरीक्षा का सिलसिला ।
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण मिला ।
स्वस्थ बने आधारशिला..
Deleteभारत में परीक्षा और पद्धतियों को लेकर परीक्षण, और प्रयोग का दौर चलता रहा है, चल रहा है! पता नहीं कब यह अपनी नियति को प्राप्त करेगा।
ReplyDeleteअच्छे प्रयोगों को शिक्षा व्यवस्था में स्थायी स्थान मिले..
Deleteयह सही है कि हमारी परीक्षा व्यवस्था अक्सर विद्यार्थियों की कल्पनाशीलता और सृजन पर एक भार हो जाती है !
ReplyDeleteसार्थक आकलन !
वर्तमान परीक्षा पद्धति में सृजनशीलता और कल्पनाशीलता बाधित सी दिखती हैं..
Deleteसरकारी स्कूलों में परीक्षा के नाम पर मजाक हो रहा है.लगातार रिकॉर्ड बेहतर होने के बावजूद बारहवीं पास बच्चे एक शुद्ध वाक्य बोल या लिख नहीं पाते.यह हमारी शिक्षा या परीक्षा-प्रणाली की असफलता नहीं तो और क्या है ?
ReplyDeleteशिक्षा का हौवा इसी तरह के उत्पाद देगा, देश को शुभकामनायें..
Deleteहाँ अब छोटी कक्षाओं में तो काफी बदलाव आ गया है पढाई के तरीकों में ....... सृजनशीलता के भी मन मस्तिष्क में जगह खाली बचनी चाहिए ......
ReplyDeleteछोटी कक्षाओं के सफल प्रयोग बड़ी कक्षाओं में भी पहुँचे..
Deleteआपके ये अनुभव परीक्षार्थियों के संबल बनेगें !
ReplyDeleteयह बात परीक्षा लेने वालों को समझ में आये तो बात बने..
DeleteBahut hee badhiya aalekh!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका..
Deleteab to pariksha ka der nikal hi jayega dimag se.........sartahk lekh ke liye shukriyan
ReplyDeleteपरीक्षा का डर ज्ञान को बाधित करता है, छात्र परीक्षा के लिये पढ़ने लगता है, सीखने के लिये नहीं।
Deleteपरीक्षा पद्धति में बदलाव दिखे तो लगे है ग्रेडिंग लागू करके . लेकिन मैंने एक बात और महसूस की है की प्ररीक्षा को ओप्सनल बनाया जा रहा है जो ठीक नहीं लगता .
ReplyDeleteपूरी निरंकुशता नहीं की जा सकती है पर परीक्षा साखने और समझने में प्रेरक हो
Deleteखूब सोचा-विचारा ,अच्छा है कोई रास्ता निकले जो ग्राह्य हो सके !
ReplyDeleteराह तो निकलनी ही होगी, छात्रों को तनावग्रस्त करके तो नहीं सिखाया जा सकता है।
Deleteपढ़ाई. परीक्षा ... सबमें बदलाव है और कई बदलाव बेकार लगते हैं .
ReplyDeleteपद्धति उद्देश्य के अनुरूप ही हो।
Deleteजिस प्रकार आजकल परिक्षार्थी परिक्षाओं को हौव्वा बना लेते हैं और जितना दबाव महसूस करते हैं, उस से बचने के लिये ऐसे बदलाव बहुत अच्छे हैं।
ReplyDeleteप्रणाम
पूरे वर्ष में परीक्षा ही प्रधान हो जाती है, शेष सब छूट जाता है।
Deleteपरीक्षा का आनन्द तब है, जब आप परीक्षा देकर बाहर निकले और आत्मविश्वास से कह पायें कि मेरे इतने अंक आयेंगे भले वह संख्या शून्य ही क्यों न हो. और आकलन करने के लिये परीक्षा का होना तो अत्यावश्यक है.
ReplyDeleteपरीक्षा और उसका आकलन, दोनों पर ही विचार करने की आवश्यकता है।
Deleteपरीक्षा उत्तीर्ण होना और विषय की समझ होना, सफल होना और ज्ञानी होना.. विरोधाभास कब दूर होगा!!
ReplyDeleteकाश किसी छात्र के लिये इन सबका अर्थ एक ही हो।
Deleteरोचक एवं सारगर्भित लेख...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई..
बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबेहद प्रायोगिक. सौ टके की बातें. यदि यही अंग्रेजी में लिखें तो १०००० डालर की बात होती.
ReplyDeleteप्रयोग अध्यापक कर रहे हैं और उसके अच्छे निष्कर्ष भी निकल रहे हैं
Deleteउद्वेलित करती हुई ..सार्थक चिंतन..
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
DeleteApke iss post ne school collge ki yaad dila thi..! Aaj bhi uss time ke baare main soochne se jaan nikal jate hai!
ReplyDeleteपरीक्षा का भय समाप्तकर न जाने कितना कुछ और सिखाया जा सकता है।
Deletebahut prabhaav shali aur rochak likha hai padhne me interest bana raha yahi to visheshta hai aapke lekhan ki.
ReplyDeleteइसी प्रकार की रोचकता शिक्षा पद्धति को भी बनाये रखनी हो।
Deleteरोचक सार्थक प्रस्तुति,....
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteपरीक्षायें भार न लगें, ज्ञान का उपहार लगें।
ReplyDeleteसार्थक चिंतन ...प्रभावी आलेख ...!!
परीक्षाओं को हल्का और सतत तो बनाना ही होगा, वर्ष का अन्त तो वर्ष का निर्धारण नहीं कर सकता है।
Deletekuchh salo pahle ye post dekha hota:)
ReplyDeleteकुछ प्रयोगों में हिस्सा बना हूँ ओर उसका व्यक्तिगत विश्लेषण भी किया है।
Delete.सार्थक चिंतन.रोचक लेख....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteपरीक्षा के दौरान बेहतर अंक लाने का दबाव अक्सर विद्यार्थियों के अस्वस्थ होने का कारण बनता है। विशेषकर, तब जबकि उन्होंने सालभर जमकर पढ़ाई न की हो। अति महत्वाकांक्षी अभिभावकों के दबाव के कारण ही अपेक्षित परिणाम नहीं आने पर विद्यार्थी मानसिक रूप से टूट जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं। परीक्षा का भार कम करने की कोई भी योजना अभिभावकों की सक्रिय सहभागिता के बिना पूरी नहीं होगी।
ReplyDeleteपरीक्षा के पहले और अंक आने के बाद तनाव झेलते हैं बच्चे। परीक्षाविधि सहज हो तो रुचि बनी रहेगी।
Deleteसार्थक लेख!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteहोली है होलो हुलस, हाजिर हफ्ता-हाट ।
ReplyDeleteचर्चित चर्चा-मंच पर, रविकर जोहे बाट ।
रविवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
बहुत आभार आपका यह पोस्ट सम्मिलित करने के लिये।
Deleteupyukt samay ki sarthak rachna .......bahut sunder sujhav hai baccho ke liye
ReplyDeleteयह सब प्रयोग अच्छे निष्कर्ष दे चुके हैं, आवश्यकता है इन्हें स्थायी करने की।
DeleteBahut achhi baat kahi hai aapne...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteविचारोतेजक सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteविचारों को प्रयोग में स्थान मिलता रहे और प्रयोगों को जीवन में भी।
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteरंगों के त्यौहार होलिकोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएँ!
आपको भी शुभकामनायें।
Deletesamayanukool post!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteaadarniy pravin bhai sahab PRANAM SWIKAREN. GRADATION ek bahut hi kamajor pranali hai jisamen nirantarata tutati hai . kabhi wistar se baten karenge yadi bhawan ne awasar diya to.exa aur edu.pranali me sudhar jaruri hai kintu puri pidi ka satyanash ho jaye aisa nahin. panch sal bad kisi saamany ghar ka ladaka chaparasi bhi nahi ban payega yadi aisaa hi badalaw ka daur chala to.
ReplyDeleteसंघर्ष तो हमारे रग रग में बसा है, जब संसाधन कम हों तो यह स्वाभाविक भी है। प्रणाली ज्ञान आधारित हो, आकलन आधारित न हो।
DeleteSIR....bahut hi badiya aalekh...pahle main bhi sochti thi..ITNE MEIN SE ITNE TO MUJHE MIL HI JAYENGE...
ReplyDeleteअंक यदि आपके ज्ञान का आकलन होते को कोई समस्या ही नहीं थी। एक तो बहुत अधिक पढ़ना और उसे ठीक से समझ न पाना, यह पद्धति का ही दोष कहा जायेगा।
Deleteपढ़ाई में नियमितता से अधिक अचूक अस्त्र कुछ भी नहीं है। यदि नियमतता है तो बड़ा और कठिन पाठ्यक्रम भी ग्राह्य हो जाता है। औचक परीक्षा एक ऐसी विधि है जो विद्यार्थी को नियमित रहने को बाध्य कर देती है, नित्य कक्षा में आना, विषय को समझना और गृहकार्य ढंग से करना। कक्षा में अन्तिम २० मिनट में वर्तमान विषय से संबंधित एक प्रश्न ही पर्याप्त होता है, इसके लिये।
ReplyDeleteग्रेडिंग प्रणाली और मौखिक परीक्षण अच्छे प्रयोग हैं हीन भावना कम करने का कारगर उपाय भी .संरचनात्मक पढ़ाई सीखाई का अपना विशेष स्थान है .स्ट्रक्चरल एजुकेशन आज की आवश्यकता है .
यह स्तम्भ बनाये जा सकते हैं, ज्ञान देने के साथ साथ किसकी किसमें रुचि है और कौन किसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त है, यह भी पता करने का काम शिक्षा पद्धति का ही हो।
Deleteमै अब तक भी किसी परीक्षा में सफ़ल नहीं हो पाई हूँ......सफ़ल होना क्या होता है?..और मुझे लगता है प्रश्न हमेशा बाकि रहना चाहिए...
ReplyDeleteसफल होते होते लोग जीवन में असफल होने लगते हैं।
Deleteमध्य प्रदेश में एकलव्य नाम का ग्रुप इस विषय में अच्छा शोध कर रहा है.संदर्भ नाम की एक पत्रिका भी निकलता है. आपको पसंद आएगी.
ReplyDeleteयदि आप कृपा कर उसका लिंक ईमेल कर दें तो आभारी रहूँगा।
Deleteपरीक्षायें भार न लगें, ज्ञान का उपहार लगें...
ReplyDeleteबढ़िया लेख...
भार लगने से शिक्षा की रोचकता कम हो जाती है।
Deleteविद्यार्थी पाठ्यक्रम विमर्श से अधिक प्रश्नपत्र विमर्श करते हैं :P
ReplyDeleteDamn true... just finished with exams and your post gave me enough points to think :)
Problem we are facing today is with few exceptions (IITs, IIMs etc) the quality of teaching across India is in a sorry state... universities have pathetic teachers which in turn results in more pathetic students.
visiting after a long time !!
hope u doing fine :)
हर परीक्षा के बाद सोचता था कि क्या खोया क्या पाया? असंतुष्ट होकर पुनः अगले साल की तैयारी में लग जाता था..
Deleteअच्छी पोस्ट ... सार्थक चिंतन ... वैसे इस विषय पे सरकार को सार्वजनिक बहस का के माध्यम बदलना चाहिए ...
ReplyDeleteबहस आवश्यक है और सबको बोलने का विषय भी है। सब ही इस व्यवस्था की देन हैं..
Deleteस्कूल में हमारे एक अध्यापक थे।
ReplyDeleteपरीक्षा के कुछ दिन पहले syllabus पूरा हो चुका था।
उन्होंने हम विध्यार्थियों से कहा " मैंने course पूरा पढा दिया। कुछ पूछना हो तो पूछो।
एक विध्यार्थी ने पूछा "सर, कृपया बताइए exam के लिये important topics कौनसे हैं ताकि हम उसपर ज्यादा ध्यान दे सकें।
अध्यापक ने उत्तर दिया "वे सभी topics जिसमें तुम कमजोर हो, important हैं।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
कुछ अध्यापक बस यही ढूढ़ने में लगे रहते हैं कि छात्रों को क्या नहीं आता है? निश्चय ही यह तो हमारा उद्देश्य नहीं था।
Deleteप्रवीण जी ,
ReplyDeleteबहुत सार्थक मुद्दा उठाया है आपने ... लेकिन आज शिक्षा पद्धति में बदलाव होने के बाद भी असल वो नहीं है जो दिखता है ... छोटी कक्षाओं में मौखिक परीक्षा , प्रोजेक्ट वर्क के नाम पर बच्चों को कुछ ज्ञान नहीं मिल पाता ... क्यों कि नीतियाँ ऐसी हैं कि आप को बच्चे को अगली कक्षा में भेजना ही है ... यदि बच्चा उत्तीर्ण नहीं हो रहा तो शिक्षक की शामत आ जाती है ... और इन सबसे बचने के लिए शिक्षक उन बच्चों को ए + ग्रेड देते हैं जो एक शब्द भी नहीं बोलते .... क्यों कि लिखित में तो वो बच्चे कुछ लिखेंगे ही नहीं ...यहाँ तक कि जो बच्चा केवल प्रश्न पत्र के प्रश्न ही उतार कर लिख देता है उसे भी उसके सुलेख के आधार पर अंक देने पड़ जाते हैं ... आपने लिखा है कि जब तक सब ए ग्रेड नहीं लाये तब तक मौखिक परीक्षा ली गयी ... पर यह युक्ति हर जगह नहीं चलती .... शिक्षक भी अपने बोझ को क्यों बढ़ाए ? यह भावना उसके मन में रहती है ....अंक लुटाने में उसके घर से क्या जाता है ... एक बार परीक्षा ली और काम खत्म ... यदि सच ही शिक्षा के प्रति गंभीर हैं तो सही निरीक्षण हो ... और देखा जाए कि जो अंक बच्चों को मिले हैं वो उचित हैं या नहीं ... यह सब मैं छोटी कक्षाओं की बात कर रही हूँ .... निजी संस्थानों में क्या होता है यह नहीं कह सकती .... केंद्रीय विद्यालय में रह चुकी हूँ .... अपने अनुभव से ही यह बात कही है ... आभार
आपका कहना शब्दशः सही है, बिना शिक्षा पद्धति में बदलाव किये परीक्षा पद्धति बदलने से कुछ नहीं होगा। जो घटना बतायी है वह आईआईटी की है और वहाँ सब परीक्षा और ग्रेड का अर्थ समझते हैं। बच्चों के लिये अन्तर ही नहीं पड़ता है कि वह क्या सीख रहे हैं क्या नहीं? उन्हें बहुत सम्भाल कर ढालना पड़ता है। हर माता पिता ध्यान दें और विद्यालय में भी एक अध्यापक २० छात्रों से अधिक को न देखे।
Deleteजितना सार्थक आलेख है उतने ही अच्छे आपके उत्तर है टिप्पणियों के.लेख गहन चिंतन से निकला लगता है जिस पर विचारो का सतत प्रवाह चल हीरहा हो.
ReplyDeleteजीवन भर परीक्षाओं से गुजरने के बाद यही विचार रह रहकर आता है कि परीक्षायें शिक्षा का कितना हित कर रही हैं।
Deleteपरीक्षा पर आपकी पिछली पोस्ट और ये पोस्ट सार्थक लगी। शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव हो रहा है पर अभी भी बहुत सारे बिंदुओं पर और काम किया जाना जरूरी है जिसका जिक्र आपकी इन दोनों प्रविष्टियों में भी हुआ है।
ReplyDeleteप्रयोगों को स्थायी रूप न देने तक कोई बड़ा बदलाव आना कठिन है, प्रयोगों को समझ कर अपनाना।
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteरंगों के त्यौहार होलिकोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएँ!
आपको को भी ढेरों शुभकामनायें..
Deleteमेरा पहले का कमेंट चोरी चला गया...
ReplyDelete:)
सार्थक चिंतन..
कनाडा से आते आते बीच में इतने लुटेरे जो बैठे हैं।
Deleteपरीक्षाओं के अपने लटके झटके टोटके हर दौर में रहें हैं . १९६१-६३ का दौर याद है हम पढ़ते थे इंटर -मिदियेत साइंस यानी आई एससी में यानी बारवीं में .
ReplyDeleteपरीक्षा के दिनों में विषय के पर्चे से सम्बद्ध २४ घंटे पहले का गैस (गैस पेपर )आता था .कीमत होती थी चार आना .हाथों हाथ बिक जाता था .
परीक्षा पूर्व मारिया साहब का गैस लो .अंग्रेजी की परिक्षोँ में फिट बैठता है यह दौर था १९८० -१९९० का .हम खुद व्याख्याता थे महाविद्यालय में .
अब तो बाकायदा अखबारों में मोडल प्रश्न पत्र परीक्षा पूर्व प्रकाशित किये जातें हैं .
अपनी उत्तेजना रही है इस सबकी .अलबत्ता मौखिक माहिरी सबको समान अवसर देती है अपने चुनिन्दा विषय पर सीखने का .पसंद आया यह आलेख .
गेस पेपर सारे ज्ञान के उत्कर्ष के रूप में आ जाता है, पिछला सीखा सब भूल जाता है इस समय।
Deleteअसली परीक्षा तो पढ़े हुए को apply करने में ही होती है.
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक प्रस्तुति.
होली की सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएँ.
अध्यापक जब प्रोजेक्ट देते थे तो उस विषय की इतनी जानकारी हो जाती थी कि उस पर पूछा कोई भी प्रश्न सविस्तार समझाया जा सकता है।
Deleteबढ़िया संग्रहणीय पोस्ट
ReplyDeleteरंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें !
आपको भी होली की ढेरों शुभकामनायें..
Deleteइस समय अंक संक्रमण काल चल रहा है, विज्ञानं के छात्रों को प्रायोगिक अंक प्राप्त होते हैं जिससे उन्हें आसानी रहती है, परन्तु अन्य संकाय तो परेशानी झेलते रहते हैं.
ReplyDeleteकई लोग केवल इसीलिये विज्ञान विषय लेते हैं कि प्रायोगिक परीज्ञाओं में पूरे अंक हो जायें।
Deleteबहुत ही सार्थक विषय ...सटीक लेखन के लिए ..आभार ।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका..
Deletelagta hai jaise shabdon ka apne vash mein kar liya hai aapne... kaash vaakyon ka itna shuddhi karan humare paas bhi hota... ghar jane ko late ho raha hai fir bhi pura padhe bina rah nahi paya....
ReplyDeleteशब्दों ने हमें वश में कर रखा है, इनके पाश से निकल पाना बड़ा कठिन है।
Deleteसुन्दर लेख के लिए आभार के साथ ही .....होली पर हार्दिक शुभकामाएं पाण्डेय जी |
ReplyDeleteधन्यवाद और आपको भी होली की शुभकामनायें..
Deleteपरीक्षा और उसके अंक..हमेशा ही ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए डर का ही सबब होता है..
ReplyDeleteजान तो अंकों पर ही अटकी रहती है, पढ़ाई गौड़ हो जाती है।
Deleteपरीक्षायें भार न लगें, ज्ञान का उपहार लगें-- शिक्षा का ऐसा ही स्वरुप होना चाहिए न की साल भर भार स्वरुप किसी भी तरह 10 प्रश्न पढ़कर पूरे साल की डिग्री ले लेना .
ReplyDeleteसच कहा, गेस पेपर का समय है, कौन सा प्रश्न फँस रहा है, इस पर अधिक ध्यान है।
Deleteआज की पढ़ाई ज्ञान अर्जन पर कम और परीक्षा में नंबरों पर अधिक जोर देती है...बहुत सार्थक आलेख..होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबस अच्छे अंक की विधि ज्ञात हो जाये, पढ़ाई पर तब कोई ध्यान नहीं देना चाहता है।
Deleteपरीक्षा प्रणाली में बदलाव की नितांत आवश्यकता है ! परीक्षा प्रणाली ही पढाई के तरीके को तय करती है ! आपने सही लिखा है कि पढाई ज्ञानार्जन का साधन होना चाहिए न कि बोझ !
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की अनंत शुभकामनायें !
परीक्षा के समय पर यही लगता है कि वर्ष भर कोई बोझ ढोया गया है।
Deleteपरीक्षा प्रणाली में बदलाव की नितांत आवश्यकता है ! परीक्षा प्रणाली ही पढाई के तरीके को तय करती है ! आपने सही लिखा है कि पढाई ज्ञानार्जन का साधन होना चाहिए न कि बोझ !
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की अनंत शुभकामनायें !
आप को और आपके पूरे परिवार को हमारी ओर से होली मुबारक हो
ReplyDeleteआपको भी बहुत शुभकामनायें..
Deleteविश्लेषण परक अच्छा आलेख .होली मुबारक .
ReplyDeleteबहुत आभार आपका..
Deleteprviin bhai aap ko privar sahit rngotsv kii meri or se hardik shubhkamnaye kripya swikar kr len mujhe prsnnta hogi
ReplyDeleteaap ka pyar nirntr mere sathrhta hai kin shbdon me aabhar vykt kroon bndhu mere hridt me aap ka vishesh sthan hai
pun:hardik aabhar
kripya apna mail bhejen
mera mail hai - dr.vedvyathit@gmail.com
आपका बहुत बहुत आभार..
Delete:(
ReplyDeleteअब ये सब पढ़ने से क्या फायदा, नंबर तो बढ़ने से रहे ...
बिना नम्बर की पढ़ाई अच्छी भी नहीं लगती थी अब तक। स्वान्तः सुखाय पढ़ना तो बहुत देर से सीखा..
Deleteअध्यापक और छात्र के संबंध में दया आना स्वाभाविक है, दयालु संस्कृति बनाये जो रखनी है।
ReplyDeleteपरीक्षायें भार न लगें, ज्ञान का उपहार लगें...
ati uttam ,priksha chahe jaisi bhi ho thoda darati to hai hi ,haan himmat nahi harni chahiye .
परीक्षाओं के भार से ज्ञान बाधित न हो, बस यही अपेक्षा है परीक्षा से..
Deleteis lekh se bachpan ke padhai wale din yaad aa gaye ,sabke anubhav aur aapki post dono ne to kai baate yaad dila di .
ReplyDeleteजब भी परीक्षा का तनाव होता था, गर्मी का माहौल रहता था। अब भी गर्मी में तनाव आ जाता है।
Deleteपरिक्षा और कोयल की कूक का गहन संबंध है । कोयल की कूक मतलब परीक्षा के दिन ।
ReplyDeleteमुझे तो कॉलेज छूटने के बाद कई सालों तक कोयल की कूक से दिल की धडकनें बढ जाने का अनुभव है ।
गैस पेपर संभावित प्रश्न यह तो परीक्षार्थियों का साझा अनुभव है चाहे कितन ही तैयारी क्यूं ना की हो रेडीमेड पेपर का मोह संवरण किसे नही होता । पर आप जैसी स्थिति बता रहे हैं वह तो केवल प्रोफेशनल संस्थानों में ही होती होगी ।
स्कूली विधार्थियों के ऐसे भाग्य कहां ?
सच कहा आपने, गर्मी आते ही तनाव सा लगने लगता है अब भी..
Deleteइस पोस्ट में मेरे कई कई सहपाठियों के और कुछ अध्यापकों के चेहरे नजर आने लगे मुझे।
ReplyDeleteहमने तो परीक्षा के समय पूर्णव्यथित से न जाने कितने चेहरे देखे हैं..
Deleteविचार उत्तेजक पोस्ट है यह आपकी बहुत अच्छा और सार्थक लिखा है आपने वाकई परीक्षा विधि में बदलाव लाया जाना बहुत ज़रूर है ताकि परीक्षायें बोझ नहीं रोचक बन सके।
ReplyDeleteपरीक्षायें साल भर होती रहेंगी और रोचक रहेंगी तो शिक्षा सफल रहेगी..
Deleteबच्चे और अभिभावक दोनो पहले से अधिक चिंतित रहते हैं। ग्रेडिंग सिस्टम से बोझ कम हुआ ऐसा नहीं लगता।
ReplyDeleteतय तो यही था कि ९८ वाले को ९९ वाले से चिढ़ हो आती थी, उसे कम किया जा सकता है ग्रेडिंग व्यवस्था से।
Deleteगंभीर मुद्दे पर सहज व्यवहारिक और सार्थक विचार।
ReplyDeleteएसा आप ही कर सकते हैं।
बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत आभार आपका, परीक्षा पद्धति आत्ममंथन चाहती है।
Deleteprabhavshali post .....sadar abhar pandey ji.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. खूबसूरत तस्वीरें....
ReplyDeleteआपको सपरिवार रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......!!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चाआज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ