ज्ञानदत्तजी बंगलुरु में थे, पिछले दो दिन। जब आप यह पोस्ट पढ़ रहे होंगे, उनकी ट्रेन सुन्दर दृश्यों को अपने दोनों ओर बराबर से बाँटती हुयी पूरी गति से उत्तर दिशा में भाग रही होगी। उनकी प्रशासनिक यात्रा का स्थानीय सूत्र होने के कारण बहुत समय मिला उनके साथ, कार्यालय में, मालगोदाम में, गाड़ी में, कैरिज में और घर में। बैठकों की व्यस्तता के अतिरिक्त सारा समय उनके साथ बिताने का प्रयास किया। स्वार्थ मेरा था, ब्लॉगिंग यात्रा का प्रारम्भ उन्हीं ने कराया था, लगभग ढाई वर्ष बाद उस यात्रा का विश्लेषण आवश्यक हो चला था, सब चलचित्र की तरह आँखों के सामने से निकलता चला गया।
तब लेखन के नाम पर कुछ कवितायें ही थी हाथ में, कहते हैं कि समय गाढ़ा होता है तो ही कविता अधिक बहती है, वह भी कभी कभी, महीनों के अन्तराल में रुक रुककर। नियमित लेखन के नाम पर संभवतः कुछ भी नहीं था, विचार बिन्दु घनीभूत हो बरस जाते थे, प्रवाहमयी नदी बनना कहाँ आता था उन्हें? ब्लॉगलेखन न होता तो कितना ही अनुभव अनछुआ रह जाता जीवन में।
यात्रा के कई महत्वपूर्ण पड़ाव चर्चा का विषय बन सकते हैं, विस्तृत अध्याय लिखे जा सकते हैं, पर उन सबसे हट कर बस उन अन्तरों को स्पष्ट करना चाहूँगा जो यात्रा के प्रारम्भ और वर्तमान को विभाजित करने के लिये पर्याप्त हैं। ६ अन्तर ही मुख्य हैं।
पहला है दृष्टिकोण। हर वस्तु, कर्म, घटना और विचार को अभिव्यक्ति के माध्यम से जोड़ने का अभ्यास, उनको भिन्न तरीके से देखने का भी आधार बनने लगा। विचारों की गहनता बढ़ी, हर परिस्थिति में छोटा ही सही पर कुछ न कुछ विचारणीय दिखने लगा। पहले कई दृश्य जो अधिक रोक नहीं पाते थे, बस स्वतः रुक रुक हृदय में संस्थापित होने लगे, विचार श्रंखलायें बनने लगीं, स्थिरदृश्यता आ गयी जीवन में, संवेदनाओं ने आधिपत्य जमा लिया उच्छृंखलता पर। अनुभव गाढ़े होने लगे।
दूसरा है सामाजिकता। विचारों के विनिमय का बाजार बहुत बड़ा है। बिना यहाँ आये पता ही नहीं चलता कि कैसे कैसे रत्न गढ़ रखे हैं ईश्वर ने। पढ़े लिखे लोगों की दुनिया में ढेरों दोष हो सकते हैं पर फिर भी वह जाहिलों के स्वर्ग से कहीं अधिक रोचक होती है। यहाँ न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिनका आपके जीवन में होना एक ईश्वरीय उपहार है। प्रारम्भिक आकर्षण अपने स्थान पर बने रहेंगे पर बुद्धि आधारित सामाजिकता के क्षेत्र ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना का श्रेष्ठतम पक्ष है।
तीसरा है अपार ज्ञान। ब्लॉग का सशक्ततम पक्ष संभवतः यही है। जब अभिव्यक्ति को पाठक के अनुरूप बना कर प्रस्तुत करने की बात हो तो ब्लॉग का कोई जोड़ नहीं। कठिन से कठिनतम विषय भी यहाँ मीठे रस की चासनी जैसे सरस बना कर उतारे जाते हैं। हर क्षेत्र के बारे में, तकनीक, संगीत, पुरातत्व, फिल्म, कोई भी विषय उठा लें, आपकी ही समझ की भाषा में उपलब्ध मिल जायेगा ज्ञान, सुपाच्य भाषा में परोस दिया गया ज्ञान। पहले केवल बड़े लेखकों की पुस्तकें पढ़ पाता था, कितने ऐसे लोगों को नहीं पढ़ पाता था जो उतने ही योग्य थे पर किसी कारण पुस्तक न लिख पाये। पढना बहुत अच्छा लगता है, स्वयं को हरकारा बना पाता हूँ, बड़े लेखकों और ब्लॉगरों के बीच, बड़ा ही साम्य दिखता है उनकी समझ के बीच। उस समझ का पुल बनने और बनाने का प्रयास करता हूँ, अपने लेखन से।
चौथा है किसी से कह देने का भाव। भले ही मन की व्यग्रता से उपजा लेखन ब्लॉग पर पूरा न आ पाये पर उस समय लिख लेने से यह लगता है कि मन किसी से कह दिया,बड़ा हल्का हो जाता है मन इस प्रकार। तनाव उतारने का इससे सहज माध्यम और क्या हो सकता है भला? विकार उपचार चाहते हैं, विचार भी लखेदते हैं, आकार चाहते हैं, एक बार अभिव्यक्ति से तृप्त हो जाने के बाद चुपचाप शान्त बैठ जाते हैं। आपका सखा बन जाता है लेखन, जिस पीड़ा से उत्पन्न होता है उसी की दवा बन जाता है लेखन।
पाँचवा है समय का सदुपयोग। टीवी आधारित मनोरंजन से छुटकारा नहीं मिल पाता यदि लेखन में मन नहीं लगता। विचार जैसे जैसे गहराते हैं, मनोरंजन का स्तर भी गहरा हो जाता है, छिछले पोखर और समुद्र के बीच का अन्तर स्पष्ट होने लगता है। टीवी देखने से कई गुना अच्छा लगता है कुछ लिखना और कुछ पढ़ना, विशेषकर ब्लॉग पर।
छठा है जीवन की गतिशीलता। जीवन में एकरूपता थका देती है, सुबह से सायं तक एक ही कार्य कीजिये तो ऊबन होने लगती है स्वयं से, संभवतः अभिरुचियाँ इसीलिये आवश्यक भी हैं जीवन में। रेलवे और साहित्य के बीच आते जाते रहने से गतिशीलता बनी रहती है। एक से ऊबे तो दूसरे में गये, विचारों में नयापन बनाये रखने में यह गतिशीलता अत्यन्त आवश्यक है, उतार चढ़ाव हो पर यह गतिशीलता जीवन में बनी रहे।
यदि उपरोक्त परिवर्तन को एक शब्द में व्यक्त करना हो तो ब्लॉगिंग एक नशा है, चढ़ने लगता है तो कुछ और नहीं सूझता, रमे रहना चाहता है, जहाँ है। नशे का हिसाब पूछना मयखानों में मना है। चढ़ा लो, हिसाब मिल जायेगा।
अंतिम चार पंक्तियाँ सार हैं ब्लोगिंग का... ब्लॉगिंग एक नशा है, चढ़ने लगता है तो कुछ और नहीं सूझता, रमे रहना चाहता है
ReplyDeleteलिखना दर-असल पढ़ने की अभिव्यक्ति है.जो हम समझते हैं,अनुभव करते हैं वही हम अगर अभिव्यक्त कर पाते हैं तो बड़ा आनंद और आत्म-संतोष मिलता है.
ReplyDeleteनशा तारी है और विमर्श जारी रहना चाहिए !
बेचारा टी.वी. इतना लतयाया गया है कोई याद भी नहीं रखना चाहता कि चाकू से केवल क़त्ल ही नहीं किये जा सकते...
ReplyDeleteपर, टीवी के दिन बहुर गए हैं. अब वो स्मार्ट हो गया है. :)
Deleteहम ही बुद्धू हो गए हैं !
Deleteआपकी कही हर बात शायद हर उस व्यक्ति ने महसूस की होगी जिसे पढने लिखने में रूचि है , हर बिंदु जैसे कुछ अपने ही मन की बात बताता हुआ सा , सतत लेखन जारी रहे यही शुभकामना है ....
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी के बारे में बहुत उम्दा भाषा शैली और प्रवाहपूर्ण ढंग लिखा गया यह लेख मन को अभिभूत कर गया |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सटीक विश्लेषण.
ReplyDeleteअब छठा दृष्टिकोण ... टिप्पणी... छपायमान साहित्य से इतर लेखक और पाठक के बीच एक संवाद की स्थापना... यात्रा मे बने रहने का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी....
ReplyDeleteहमेशा की तरह विचारों की कुछ नयी खिड़कियाँ खोलता हुआ ज्ञानमयी लेख
ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर इस मिलन के बारे में पढा था और आपके नजरिये से इसे देखने की अपेक्षा भी थी, देख पाये। दुनिया का मिनियेचर रूप ही तो है ये ब्लॉगिंग दुनिया, अपनी च्वॉयस की चीजें हम ढूँढ ही सकते हैं।
ReplyDeleteएक बार अभिव्यक्ति से तृप्त हो जाने के बाद चुपचाप शान्त बैठ जाते हैं। आपका सखा बन जाता है लेखन, जिस पीड़ा से उत्पन्न होता है उसी की दवा बन जाता है लेखन। कितना सही कहा है आपने और यह भी कि ब्लॉगिंग एक नशा सा बन जाता है जाता है क्या बन गया है । ज्ञान जी से आपकी भेंट काफी उपजाऊ रही पाठकों के लिये ।
ReplyDeleteजो कुछ हम सीखते-समझते हैं, उसे आत्मसात करने का सबसे सरल तरीका यह होता है कि उस दूसरों को इस प्रकार से बतायें, जिसे वे समझ सकें। ऐसा करने में विषय पर अपना Conviction सुदृढ़ होता है और समझ में जो कुछ Irritants बचे होते हैं, Iron out हो जाते हैं।
ReplyDeleteब्लॉगिंग उसके लिये बहुत जानदार-शानदार औजार है। यह वह टॉनिक है जो आपके पर्सोना को निखारता है।
अगर इसके उलट हो रहा है, तो पॉज की जरूरत है। तब शायद मामला लत की दिशा में जा रहा होता है! :-)
मेल मुलाकात के दौर यूँ ही चलते रहें! शुभ कामनायें!
Deleteब्लौगिंग एक आयाम है ... अकेले में भी कई लोगों का साथ होता है और जीने के कई खुराक
ReplyDeleteखुश फहमी भी हो सकती है और गलत फहमी भी, मगर मन बोझ तो उतर ही जाता है ! :)
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी और आपने कईयों को प्रेरित और उत्साहित किया है. आपने ब्लॉग विधा के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत किया है. मैं पूरी तरह से सहमत हूँ की ब्लॉग्गिंग हमें अपने जीवन और विचारों में ज्यादा सजग बनाती है. हम अपने परिवेश और अनुभवों को अक अलग परिप्रेक्ष्य में देखने लगते हैं.
ReplyDelete@ ज्ञानदत्त जी का कहा भी सटीक है की यह पर्सोना को निखaरता है और नहीं तो सावधान - कहीं लत तो नहीं!
नशे में शठकोण बना डाला .
ReplyDeleteblogging wakai ek nasha hai... abhivyakti ka sasakt madhyam
ReplyDeleteबड़ी जानकारी भरी पोस्ट है ब्लॉगिंग के बारे में।
ReplyDeleteकहीं न कहीं ..सब के मन की बात कह दी आपने ...
ReplyDeleteशुक्रिया !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति के साथ कई बातें अक्षरश: सत्य कही हैं आपने ...आभार ।
ReplyDeleteब्लोगिंग के हिसाब के सटीक सूत्र .
ReplyDeleteaap bahut acche lekhak hain, aapko to kitab likhni chahiye. :)
ReplyDeleteदूसरा है सामाजिकता। विचारों के विनिमय का बाजार बहुत बड़ा है। बिना यहाँ आये पता ही नहीं चलता कि कैसे कैसे रत्न गढ़ रखे हैं ईश्वर ने। पढ़े लिखे लोगों की दुनिया में ढेरों दोष हो सकते हैं पर फिर भी वह जाहिलों के स्वर्ग से कहीं अधिक रोचक होती है। यहाँ न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिनका आपके जीवन में होना एक ईश्वरीय उपहार है। प्रारम्भिक आकर्षण अपने स्थान पर बने रहेंगे पर बुद्धि आधारित सामाजिकता के क्षेत्र ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना का श्रेष्ठतम पक्ष है।
ReplyDeleteदूसरा है सामाजिकता। विचारों के विनिमय का बाजार बहुत बड़ा है। बिना यहाँ आये पता ही नहीं चलता कि कैसे कैसे रत्न गढ़ रखे हैं ईश्वर ने। पढ़े लिखे लोगों की दुनिया में ढेरों दोष हो सकते हैं पर फिर भी वह जाहिलों के स्वर्ग से कहीं अधिक रोचक होती है। यहाँ न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिनका आपके जीवन में होना एक ईश्वरीय उपहार है। प्रारम्भिक आकर्षण अपने स्थान पर बने रहेंगे पर बुद्धि आधारित सामाजिकता के क्षेत्र ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना का श्रेष्ठतम पक्ष है।
ReplyDeleteखुद से साक्षात्कार करती है आपकी हरेक पोस्ट .रचना का अंकुरण अब हो चुका है .अब तो आप बीज देंगें .टर्मिनेटर सीड्स नहीं हैं ब्लोगिये ....
बेहतरीन आलेख ! ब्लॉगिंग के बारे में आपके इस निचोड़ से पूर्णतः सहमत हूँ। अच्छा लगा देखकर आप दोनों को एक साथ।
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख ! ब्लॉगिंग के बारे में आपके इस निचोड़ से पूर्णतः सहमत हूँ। अच्छा लगा देखकर आप दोनों को एक साथ।
ReplyDeleteमन -मुकुर ने मदिर -मादक छटा बिखेरा है..
ReplyDeleteटीवी देखने से कई गुना अच्छा लगता है कुछ लिखना और कुछ पढ़ना, विशेषकर ब्लॉग पर।
ReplyDeleteये आधुनिक तकनीक और ब्लॉगिंग का ही सुपरिणाम है|
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण किया है, ब्लोगिंग का....पर ये नशा ना बनने पाए तो बेहतर
ReplyDeleteनशे का हिसाब पूछना मयखानों में मना है। चढ़ा लो, हिसाब मिल जायेगा।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख ....हंगामा है क्यूँ बरपा ...ग़ज़ल याद आ गयी ....!!
ज्ञानजी से पहली बार और आपसे तीसरी बार मिलने का अवसर और सौभाग्य कल शाम को आपके दफ़्तर में मुझे मिला था।
ReplyDeleteएक घंटा जो आप लोगों से बिताया, लगा पाँच मिनट में गुज़र गया।
वो दूसरी तसवीर भी छाप दीजिए!
संकोच किस बात की?
क्या सर्कारी दफ़्तरों में ठहाका मारना मना है?
यकीन मानिए उसमें आप और भी अच्छे लग रहे है!
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
Bahut sundar vishleshan.
ReplyDeleteबेहद सटीक विश्लेषण ब्लोगिंग का और अंतिम पंक्तियाँ जैसे सब समेट लेती हैं.
ReplyDeleteगहन विश्लेषण!! अद्भुत मिलन!!!
ReplyDeleteBlogging is addictive indeed, but the whole writing experience is very enriching and satisfying!
ReplyDeleteयहाँ तो ब्लोगिंग का पानी सिर से ऊपर जा चुका है ………इतना गहरे उतर चुके हैं प्रवीन जी :))))))
ReplyDeleteबहुत गहन और सार्थक विश्लेषण..
ReplyDeleteइन ढाई बरसों में यात्रा और मात्रा में अभिवृद्धि हुई.... आगे बढ़ते रहिए :)
ReplyDeleteब्लोगिंग का नशा कई तरह के नशों से भिन्न है ... इस मिलन के सात आपने जो विश्लेषण किया है वो अनेक आयाम खोल रहा है ब्लॉग जगत की सोचने की प्रक्रिया पे ...
ReplyDeleteआनन्दम-आनन्दम.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया विश्लेषण| धन्यवाद।
ReplyDeleteसमय निश्चित ही एक बड़ा महत्वपूर्ण शिक्षक है, जो हीरों को धीरे धीरे तराश देता है.
ReplyDeleteसदा की भांति सुन्दर भाव व प्रभावमय भाषा.....
ReplyDelete---पानी गर्दन तक ही रहे तो अच्छा है ...डूबने का भी मज़ा ..न डूबने का भी मज़ा..सबको तैरते हुए देखने का भी मज़ा.....गर्दन से ऊपर तो बस.....
"ब्लॉगिंग एक नशा है, चढ़ने लगता है तो कुछ और नहीं सूझता, रमे रहना चाहता है, जहाँ है। नशे का हिसाब पूछना मयखानों में मना है। चढ़ा लो, हिसाब मिल जायेगा।"
ReplyDeleteनशा ही नशा है चारों सू.....
यहाँ कौन कम पिए है और कौन ज्यादा कहना मुश्किल है....
एक शब्द में कहूँगा तो, सटीक!
ReplyDeleteयह सब केवल आपकी बात नहीं है। आपने तो अधिसंख्य ब्लॉग लेखकों की बात कह दी है। कम से कम मेरी तो कह ही दी।
ReplyDeleteसही कहा आपने ...ये नशा ही है. और आपने इनती साडी खूबिय गिना दी तो रहा धरा शक भी अब गायब है.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा और सततेक विश्लेषण लिखा है आपने ब्लोगिंग वैसे तो आपके सभी बिन्दु एकदम सटीक एवं सार्थक है पर मुझे पाँचवाँ बिन्दु ऐसा लगा जैसे मेरे मन की बात ही लिख दी आपने :)
ReplyDeleteआपके शब्दों में यह ब्लाग महिमा अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत अच्छा विश्लेषण किया है आप ने..
ReplyDeleteवाह!ब्लॉगिंग का सर निचोड़ रख दिया!
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
चिट्ठाकारी न केवल ज्ञान की वृद्धि करती है पर लेखन में भी निखार लाती है।
ReplyDeleteब्लोगिंग का सार लिख दिया है ..सार्थक विश्लेषण
ReplyDeleteब्लॉगिंग एक नशा है, चढ़ने लगता है तो कुछ और नहीं सूझता, रमे रहना चाहता है, जहाँ है। नशे का हिसाब पूछना मयखानों में मना है। चढ़ा लो, हिसाब मिल जायेगा।
ReplyDelete-पूरा सार इसी में मिल गया...जय हो!! दो महानुभावों की तस्वीर देख धन्य हुए. एक विश्वनाथ जी के साथ भी उतरवा लेते तो वो भी देख लेते...
ham bhi nashe mein hain.
ReplyDeleteवास्तव में यही सार है ब्लॉगिंग का !
ReplyDeleteरोचक !
bloggng se khatarnak nasha kuch nhi hain
ReplyDeleteनशे का हिसाब पूछना मयखानों में मना है। चढ़ा लो, हिसाब मिल जायेगा।
ब्लॉग में भाई साहब सहज सरल अभिव्यक्ति होती है सम्पादक अखबारिया नहीं होता बीच में कोई अलंकरण नहीं होता कोई बनावट नहीं होती .
ReplyDeletegyaan badhane ka hi nahi kewal sampark badhane ka bhi jaria hai ,sach kaha aapne apne ko sukh dene ka marg hai .
ReplyDeleteshandar abhivyakti.bhut achchhe .
ReplyDeleteब्लोगिंग का बहुत बढ़िया सार्थक विश्लेषण
ReplyDeleteरोचक आलेख..