एप्पल ने शिक्षा के क्षेत्र में पहल करते हुये आईबुक ऑथर के नाम से एक सुविधा प्रारम्भ की है। इस एप्लीकेशन के माध्यम से आप कोई पुस्तक बड़ी आसानी से लिख सकते हैं और आईट्यून के माध्यम से ईबुक के रूप में बेचकर धन भी कमा सकते हैं। उपन्यास, कविता इत्यादि के अतिरिक्त गणित, विज्ञान जैसे विषयों पर पाठ्य पुस्तक लिखने के लिये कई प्रारूप दिये गये हैं इस सुविधा में। किसी भी अध्याय में लेखन और चित्रों के अतिरिक्त वीडियो, त्रिविमीय दृश्य, पॉवर प्वाइण्ट प्रस्तुति, एक्सेलशीट गणनायें आदि के होने से पढ़ने का अनुभव अलग ही होने वाला है। पुस्तक आप मैकबुक में लिख सकते हैं पर समुचित पढ़ने के लिये आईपैड का विकल्प ही रहेगा। इस माध्यम से एप्पल का प्रयास आईपैड को शिक्षा के आवश्यक अंग के रूप में स्थापित करने का रहेगा।
मेरे अग्रज नीरजजी ने अपने पुत्र को हाईस्कूल के समय नियमित पढ़ाया है और वह प्रचलित कई पाठ्य पुस्तकों की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं हैं, उनका कहना है कि पाठ्यपुस्तकों को और अधिक प्रभावी ढंग से लिखा जा सकता है और रोचक बनाया जा सकता है। आईबुक ऑथर के रूप में नीरजजी को रोचक ढंग से पुस्तक लिखने के लिये एक उपहार मिल गया है। यदि वह कोई पुस्तक इसपर लिखेंगे तो वह कैसी लगेगी? इसी उत्सुकता में एक अध्याय लिखकर देखा, वह आईपैड पर कैसा लगेगा यह देखने के लिये एप्पल के स्टोर इमैजिन में गया। खड़ा हुआ आईपैड में वह अध्याय देख रहा था, बगल में एक १४-१५ साल की लड़की अपने माता पिता के साथ आईपैड देख रही थी, उनके बीच की बातचीत, न चाहते हुये भी सुनायी पड़ रही थी।
लड़की किसी तरह यह सिद्ध करने में प्रयासरत थी कि वह आईपैड एक खिलौने के रूप में नहीं लेना चाहती, वरन उसका उपयोग अपनी पढ़ाई में कर अच्छा भविष्य बना सकती है। मैं थोड़ा प्रभावित हुआ, मुझे भारत का भविष्य आशावान लगने लगा। मुझे भारतीय मेधा पर कभी संशय नहीं रहा है, पर अपनी बात खुलकर कह पाने का गुण भारतीय बच्चों में न पाकर निराशा अवश्य होती है, कुछ संकोच के कारण नहीं बोलते हैं, कुछ मर्यादा के लबादे में दबे रहते हैं। वह लड़की जब बोल रही थी, जिज्ञासावश मैं अपना कार्य छोड़ तन्मयता से बस सुने जा रहा था। भारत अपने महत भविष्य में दौड़ लगाने जा रहा था, तभी पिता का एक आश्वासन सुनकर ठिठक गया। पिता बोले, बेटी परीक्षा में पहले तीन में आओ, आईपैड मिल जायेगा।
कुछ जाना पहचाना सा लगता है यह आश्वासन, सबके साथ हुआ होगा जीवन में, बस इस वाक्य में तीन के स्थान पर कोई और संख्या व आईपैड के स्थान पर कोई और वस्तु बदल जाती होगी। आपके साथ बचपन में हुआ होगा और संभव है कि आप अपने बच्चों को यही सूत्र पिला रहे हों, पतिगण अपनी पत्नियों से कुछ ऐसा ही मीठा संवाद बोलते होंगे, पत्नियाँ भी ऐसे गुड़भरे संवादों को सूद समेत चुकाती होंगी, ध्यान से देखें तो हर जगह यही सिद्धान्त पल्लवित हो रहा है। बड़ी गहरी पैठ बना चुका है यह अन्तर्पाश, हर परिवार में।
बचपन से अब तक की दो ही घटनायें याद आती हैं, इस प्रकार के अन्तर्पाश की, क्रिकेट बैट पाने के लिये गणित की किसी परीक्षा में पूरे अंक लाने का लक्ष्य और घड़ी पाने के लिये हाईस्कूल में ससम्मान उत्तीर्ण होने का लक्ष्य। दोनों ही लक्ष्य प्राप्त हुये थे और पिताजी ने दोनों ही वचन पूरे किये, पर उसके बाद से मैं अपने कर्म करता रहा, पिताजी स्वतः ही कुछ न कुछ फल देते रहे, किसी फल विशेष के लिये किसी कर्म विशेष को विवश नहीं किया गया, कोई अन्तर्पाश नहीं रहा।
कर्मफल का सिद्धान्त है, कर्म करने से फल मिलता है, पर जगतीय कर्मफल के सिद्धान्त से थोड़ा अलग है पारिवारिक कर्मफल का सिद्धान्त। जगतीय कर्मफल में सफलता और सफलता की प्रसन्नता अपने आप में फल होता है। पारिवारिक कर्मफल में किसी कार्य की सफलता ही कर्म है, फल पूर्णतया असम्बद्ध होता है। आशाओं और आकांक्षाओं का आदान प्रदान होता है पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में।
खैर, लड़की के पास दो माह का समय है, प्रथम तीन में आकर आईपैड पाने के लिये। भगवान करे, उसका दृढ़निश्चय उसे सफलता दिलाये। इसी बीच मैं नीरजजी को भी बोलता हूँ कि एक स्तरीय पुस्तक लिखना प्रारम्भ कर दें, आने वाली पीढियाँ ढर्रे वाली पुस्तकों के अतिरिक्त अच्छे लेखकों की पुस्तकें पढ़ने को तैयार बैठी हैं। टिम कुक जी का ईमेल लेकर उन्हे भी सूचना देता हूँ कि आप जो शिक्षा को भी संगीत, फोन और लैपटॉप की तरह एक नया स्वरूप दे रहे हैं, उसमें सप्रयास लगे रहिये। भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग। भारत में हर बच्चे के पास होगा आईपैड, क्योंकि अपनी मेधा के बल पर भारत ही प्रथम तीन में सदा बना रहेगा।
कुछ जाना पहचाना सा लगता है यह आश्वासन, सबके साथ हुआ होगा जीवन में, बस इस वाक्य में तीन के स्थान पर कोई और संख्या व आईपैड के स्थान पर कोई और वस्तु बदल जाती होगी। आपके साथ बचपन में हुआ होगा और संभव है कि आप अपने बच्चों को यही सूत्र पिला रहे हों, पतिगण अपनी पत्नियों से कुछ ऐसा ही मीठा संवाद बोलते होंगे, पत्नियाँ भी ऐसे गुड़भरे संवादों को सूद समेत चुकाती होंगी, ध्यान से देखें तो हर जगह यही सिद्धान्त पल्लवित हो रहा है। बड़ी गहरी पैठ बना चुका है यह अन्तर्पाश, हर परिवार में।
बचपन से अब तक की दो ही घटनायें याद आती हैं, इस प्रकार के अन्तर्पाश की, क्रिकेट बैट पाने के लिये गणित की किसी परीक्षा में पूरे अंक लाने का लक्ष्य और घड़ी पाने के लिये हाईस्कूल में ससम्मान उत्तीर्ण होने का लक्ष्य। दोनों ही लक्ष्य प्राप्त हुये थे और पिताजी ने दोनों ही वचन पूरे किये, पर उसके बाद से मैं अपने कर्म करता रहा, पिताजी स्वतः ही कुछ न कुछ फल देते रहे, किसी फल विशेष के लिये किसी कर्म विशेष को विवश नहीं किया गया, कोई अन्तर्पाश नहीं रहा।
कर्मफल का सिद्धान्त है, कर्म करने से फल मिलता है, पर जगतीय कर्मफल के सिद्धान्त से थोड़ा अलग है पारिवारिक कर्मफल का सिद्धान्त। जगतीय कर्मफल में सफलता और सफलता की प्रसन्नता अपने आप में फल होता है। पारिवारिक कर्मफल में किसी कार्य की सफलता ही कर्म है, फल पूर्णतया असम्बद्ध होता है। आशाओं और आकांक्षाओं का आदान प्रदान होता है पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में।
खैर, लड़की के पास दो माह का समय है, प्रथम तीन में आकर आईपैड पाने के लिये। भगवान करे, उसका दृढ़निश्चय उसे सफलता दिलाये। इसी बीच मैं नीरजजी को भी बोलता हूँ कि एक स्तरीय पुस्तक लिखना प्रारम्भ कर दें, आने वाली पीढियाँ ढर्रे वाली पुस्तकों के अतिरिक्त अच्छे लेखकों की पुस्तकें पढ़ने को तैयार बैठी हैं। टिम कुक जी का ईमेल लेकर उन्हे भी सूचना देता हूँ कि आप जो शिक्षा को भी संगीत, फोन और लैपटॉप की तरह एक नया स्वरूप दे रहे हैं, उसमें सप्रयास लगे रहिये। भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग। भारत में हर बच्चे के पास होगा आईपैड, क्योंकि अपनी मेधा के बल पर भारत ही प्रथम तीन में सदा बना रहेगा।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
कृपया पधारें ...आभार .
भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग। भारत में हर बच्चे के पास होगा आईपैड, क्योंकि अपनी मेधा के बल पर भारत ही प्रथम तीन में सदा बना रहेगा।
ReplyDeleteन जाने क्यों हमेशा यही सोचती हूँ, अपने बलबूते कुछ पाने और जूझने की ललक जो हमारे यहाँ है मन में कहीं गहरे उतरती है ..... बस थोड़ा सकारात्मक बदलाव और हम जग जीत सकते हैं
शुरुआती दिनों में खिलौना लगने वाली ऐसी चीजें जल्द ही अनिवार्य हो जाती हैं.
ReplyDeleteआजकल इसी पर जुटे हैं सुबह शाम....अभी तो किताब पढ़ी जा रही है आई पैड पर...शान्ताराम..मस्त पुस्तक है..पढ़ना हो तो बताना!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट /ज्ञानवर्धक जानकारी /बालमन की जिज्ञासा कुछ नया देखने और कर गुजरने की प्रबल इक्षा |सबकुछ समेटे एक यादगार पोस्ट |सर आपके लिखने का अंदाज भी निराला होता है जो पूरी पोस्ट को एक रीडिंग में पढ़ने को विवश कर देता है |नमस्कार |
ReplyDeleteमैंने भी अपने बेटे से जो प्रथम में पढ़ रहा है को ऐसा ही आश्वासन दिया हुआ है क्रिकेट किट दिलाने को लेकर..
ReplyDeleteहमारी सबकी ओर से शुभकामनाये !
ReplyDeleteहम कोई आश्वासन नहीं देते, अगर लगता है कि काम की चीज है तो ले लेते हैं।
ReplyDeleteFilhaal to main khud ise lene kii soch raha hun...sach much Steve Jobs ne duniya ko badal diya hai.
ReplyDeletebahut achchi jankari bahuton ko labhanvit karegi.
ReplyDeleteभारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है .. उस बच्ची के लिए शुभकामनायें ..
ऐसा हर सुलझे अभिवावक करते हैं , एक आकर्षण बच्चों में और उत्साह दे जाता है .
ReplyDeleteनई तकनीक के प्रति आकर्षण और फिर उसका आवश्यक आवश्यकता बन जाना.. अच्छी और उपयोगी जानकारी!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है सर!
ReplyDeleteसादर
Perfect post!:)
ReplyDeleteआजकल बच्चो की सोच और नजरिया दोनो ही बदलले लगे है..टैक्नोलोजी का जमाना है.पूरी तो करनी ही पड़ेगी..चाहे कोई भी शर्त रखो......
ReplyDeleteबहुत बढिया और रोचक जानकारी से लबरेज़ पोस्ट ।
ReplyDeletemano vaigyanikata ka put de ham apani manovriti ko thopane ka sabal va lavnya prayas karate hain ,jab ki bal man ki swikarokti apane aamod may vicharanurup hi hoti hai ,saddshil pravriti bhavanaurup prerana bane shubh va safalata kavaran karati hai ,varana hatasa va kunthha men badal jati hai . chinanshil aalekh .
ReplyDeleteकैरट आर पनिशमेंट 'का ही रूप है यह प्रलोभन .
ReplyDeleteलेकिन बच्चा कमसे कम इतना बड़ा तो हो की इस प्रलोभन का अर्थ बूझ सके .आजकल कम उम्र से ही बच्चों को हांकना शुरू कर दिया जाता है .प्रवीण जी हमेशा ही नवीनतर लातें हैं अनुभव सिद्ध ,भोगा हुआ ,हासिल किया हुआ .
'भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग।'-- आपका कथन सौ पैसे सत्य है.मर्यादा की सीमाओं में, स्वतंत्र सोच इस कदर जकड़ जाता है कि उसे,शुरू से ही दबाव झेलने पड़ते हैं-लड़कियों को और भी अधिक.एक सीमा आर्थिक स्थिति की भी है .
ReplyDeleteपश्चिमी देशों में मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी कि बच्चे भी खुल कर अपनी बात बोलते हैं.
भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग।
ReplyDelete.....बहुत सही आंकलन.
मनोरंजन के साधन बदल रहे हैं
ReplyDeletehame to sirf paas hone par hi sab uplabdh ho jaata tha . kyoki hamara paas hona hi bahut badi uplabdhi thaa
ReplyDeleteमेरे साथ कभी भी ऐसा नहीं हुआ न ही कभी मैंने अपने बेटे के साथ ऐसी बात कही। यह कुछ लेन-देन (शायद यह शब्द ठीक न हो) सी बात लगती है। इसे न तो मेरी मां ने ठीक माना न मैंने। हमें वह सब मिला जो हमें मिलना चाहिये था और हमने अपने बेटे के साथ भी ऐसा किया।
ReplyDeleteमेरा बेटा हमेशा स्कूल साइकिल से गया और आई आई टी कानपुर में साइकिल ही रखता था। हमारे विचार से यही सही था। हांलकि हम उसे दो पहिया या चार पहिया का वाहन आसानी से दे सकते थे। यह भी सच है कि उसने कभी इसकी मांग भी नहीं की - हांलाकि उसके कई मित्र के पास दो पहिया का वाहन था।
मैं स्वयं खेल का प्रेमी हूं। खेल के लिये या पढ़ाई के लिये शायद हम उसे ज्यादा देने को तत्पर रहते थे जितना वह चाहता था :-)
बढिया और रोचक जानकारी..
ReplyDeleteअनजाने में ही हम बच्चों के लक्ष्य निर्धारित कर देते हैं या बदल देते हैं....स्वस्थ परंपरा नहीं है यह !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteविष्णु बैरागी जी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी....
ReplyDeleteकिताब लिखने से शुरु होकर कर्मफल पर समाप्त हुई इस पोस्ट का निष्कर्ष, इस पोस्ट की इन पंक्तियों में अनुभव हुआ - जगतीय कर्मफल में सफलता और सफलता की प्रसन्नता अपने आप में फल होता है। पारिवारिक कर्मफल में किसी कार्य की सफलता ही कर्म है, फल पूर्णतया असम्बद्ध होता है।
लड़की को शुभकामनाओं के साथ यह भी कहना है कि ई-पुस्तकें कागज़ी पुस्तकों का स्थान शायद ही ले पाए :)
ReplyDeleteहमेशा की तरह और ज्ञान वृद्धि हुई है ...
ReplyDeleteआभार आपका !
अच्छी जानकारी..... कुछ पाने की लालसा लगन तो पैदा करती ही है.
ReplyDeleteबड़ा लक्ष्य रखो बड़ा खाब देखो जनप्रिय सर्व प्रिय ए. पी. जे . कलाम साहब भी यही कहते हैं .
ReplyDeletePandey ji I pad bhavishy me nischay hi pustkon ka sthan le lega...... aur desh nishchay hi unnati ke shikhar pr hoga hamari subhkamnayen sweekar karen
ReplyDeleteरोचक वर्णन. दुआ है कि बच्ची की हसरत पूरी हो.
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी।
ReplyDeleteभारतीय मेधा के प्रति सकारात्मक नजरिया बहुत आश्वस्त करता है।
भारतीय मेधा के विषय में अब कोई शक नहीं किया जाता. यह भी सही है कि हम सब इस तरह की शर्तों को बच्चों के समक्ष अच्छे परिणाम की अपेक्षा में रखते रहे है. लेकिन मूल बात है कि जिन वस्तुओं को अभी भी हम वैभव की वस्तुएँ मान रहे हैं उनका उपयोग रोजाना जिंदगी में भी बहुत ज्यादा है.
ReplyDeleteहमेशा की तरह नवीन और ज्ञानवर्द्धक जानकारी प्राप्त हुई.
ReplyDeleteरास्ता खोज ही लेती है जब लक्ष्य सुनिश्चित हो वैसे तकनीक के दुरूपयोग को सब जानते ही हैं..आज के बच्चे तो उस्ताद हैं हमारे..
ReplyDeleteबिलकुल आपकी बात से सहमत हूँ भारत में टेलेंट हर गांव और नुक्कड़ बस्ती शहर के बच्चों में मिल जाएगा पर .. पर जाहिर कर पाने में शंका है....पर समाधान आई पैड बहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteरोचक जानकारी ... आभार है आपका ...
ReplyDeleteभारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग बिलकुल ठीक कहा आपने किन्तु पूरने तरीके भी कुछ हद तक आज भी कारगर साबित होते हैं :) कुछ पाने की चाह मेन बच्चों को उस काम के प्रति उत्साह बढ़ ही जाता है। सार्थक आलेख
ReplyDelete'ज्ञान वर्धक,उपयोगी व सार्थक जानकारी. आभार.
ReplyDeleteअभिभावक जब अपने छोटे बच्चों से ऐसा कहते हैं तब सम्भवत: उनका मन्तव्य उनको प्रेरित करना होता है ..
ReplyDeleteI Pad ka evaluation kar rah a Hun. Isliye Hindi mein likh Nahin pa raha hun. Aadat daalni padegi. Abhi Kuch kathin sa lag raha hai. Apple apni keemat kam kare to bachhon ko sulabh karwaana aasaan ho jaayega.
ReplyDeletePandey ji,
ReplyDeleteTechnology and temptation both have changed with the passage of time, but the initial nature and mentality of man have not changed. you reminded many people of their childhood. A useful article!
It's better if you mail your No on my email, I would like to talk to you.
email- hsrarhi@gmail.com
अब तो पहले तीन से भी काम नहीं चलने वाला,एकदम अव्वल रहना पडेगा ..A-1,percentile- 99.99
ReplyDelete:) sach hai sabke sath kabhi na kabhi hua hoga ye
ReplyDeleteनयी तकनीकी जानकारी पुनःप्राप्त हुई आपसे .
ReplyDeleteBahut badiya upyogi jaankari....dhanyavad1
ReplyDeleteनई टेक्नोलोजी की संभावनावों का आकाश बहुत ऊँचा है !
ReplyDeleteआभार !
मैं तो बचपन में वह आकर्षक कपड़ा भी न ले पाया जो मैं चाहता था ...मगर बाद में लगा उसकी जरुरत ही नहीं थी ...आज मेरे मन में विलासिता के प्रति विरक्ति मेरे गहरे संस्कारों की ही बदौलत है ...और यह विषमताओं और अभावों वाले देश में जरुरी भी है ..पता नहीं मेरे मित्र यह जानते हैं या नहीं मैं नए नए सामानों ,गैजेट्स ,नयी कारों आदि आदि वैभव की झलक की और तनिक भी खिंचता नहीं ...अम्बेसडर और आरम्भिक मारुति,बोलेरो ,टाटा सुमो के अलावा कोई कार पहचान नहीं पहचान पाता....साधारणता और सादगी के इस जीवन दर्शन के लिए मैं अपने पितामह और पिता जी का आभारी हूँ....पाता नहीं बच्चे तक यदि यह संस्कार मैं नहीं प्रवाहित कर पाता तो यह कहीं मेरी ही कमी है ......
ReplyDeleteहाँ ईबुक लेखन की यथोक्त तकनीक युगांतरकारी होने वाली है ....इस जानकारी के लिए बहुत आभार!
अरविन्द जी का कहा लागू हम पे भी होता नही .हमने बच्चों को कभी पढने के लिए दवाब नहीं डाला .हाँ माहौल दिया पढने लिखने का ,संवरने का .
ReplyDeleteहूँ.....
ReplyDeleteबच्ची ने आईपैड का सही इस्तेमाल किया या नहीं इसका इन्तजार रहेगा ...................
लेकिन मुकाबला बदला है अब वक्त और है दंगल अकादमिक ज़बर्जस्त है .था तब भी लेकिन नज़रिया और था इसके प्रति .अब तो एक प्रकार का पैनिक है हिरस है .स्कूल पद प्रतिष्ठा के सवाल बन रहें हैं .
ReplyDeleteबेशक मुकाबला दिनानुदिन क्लिष्ट होता गया है स्कूल बड़ी चीज़ हो गई है और इम्तिहानी लाल हरेक का होना लाजिमी हो गया है .१००%अंक लाओ .यही एक्सट्रीम एब्नोर्मेलिती की दायरे में आ जाती है .
ReplyDeleteप्रेरणा एक बात है और प्रलोभन दूसरी । आप बच्चे को अच्छा करने के लिये प्रेरित कीजिये पर उन्हें घूस ना दें ।
ReplyDeleteउदाहरण के लिये आप कह सकते हैं कि यदि आप अच्छा अभ्यास करें तो आपको इस अभ्यास को सुगम करने के लिये अगली बार आयपैड दिला देंगे ।
आपकी अंतिम बात बहुत ही अच्छी लगी ।
भारत में बच्चों की मेधा प्रखर है और उसे स्तरीय पोषण की आवश्यकता है, घिसे घिसाये तरीकों से कहीं अलग। भारत में हर बच्चे के पास होगा आईपैड, क्योंकि अपनी मेधा के बल पर भारत ही प्रथम तीन में सदा बना रहेगा।
बहुत ही अच्छी ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी जानकारी भी शामिल है साथ में ... आभार ।
ReplyDeletevilasita se awashyakata ki or kadam ipod ke
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