यह तो निश्चित और सिद्ध था कि गर्दन की मोच नहाते समय ही आयी थी, क्योंकि पहले के गतिशील और बाद के गतिहीन जीवन के बीच वही एक स्पष्ट बिन्दु था। यह तो अच्छा हुआ कि मोच घर में ही आयी, नहीं तो क्या पता शारीरिक पीड़ा के साथ साथ ही मानसिक पीड़ा भी झेल रहे होते, अनावश्यक इधर उधर देखने के आक्षेप की। कारण वह शीघ्रता थी जिसकी आवश्यकता ही नहीं थी, निष्कर्ष वह जो पिछले ७ दिन झेला। एक समय में एक कार्य न करने का दण्ड अब ईश्वर कैसे दे या कैसे बताये कि बेटा जो भी कार्य करो मन लगा कर करो। आधे घंटे में प्रारम्भ होने वाले निरीक्षण के बारे में चार विचार मन में, समय कम, स्नान करने के लिये हाथ बाल्टी में, ललक यह देखने की, कि तौलिया रखा है कि नहीं। गर्दन बेचारी घूमती है, कोमल है, इतनी घनघोरता सह नहीं पाती है, दर्द की एक हूक सी उठती है, तुरन्त समझ में आ जाता है कि बेटा गये काम से।
राणा सांगा के संस्कार सीख में थे, पैर और हाथ चल रहे थे, गर्दन में एक दर्दनिवारक स्प्रे किया 'वोलिनी'। पूरे निरीक्षण के समय सर और कन्धे एक साथ ही घूमते थे, धीरे धीरे, सामने वाले को भी लगता था कि ध्यान पूरा दिया जा रहा है। येन केन प्रकारेण निरीक्षण समाप्त हुआ तो घर के कुछ आवश्यक कार्य निकल आये। मुख्यालय में होने वाली एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बैठक की सूचना सायं मिली। आने जाने में दो रातों की ट्रेन यात्रा और मुख्यालय में दिन भर की व्यस्तता, जब वापस बंगलुरु आया, गर्दन की पीड़ा विकराल रूप ले चुकी थी, जरा भी हिलने से सारा शरीर पीड़ा से थरथरा जाता था।
कभी सोचा नहीं था कि एक छोटी सी मोच इतना बड़ा प्रभाव डालेगी। पहले भी मोच आयीं हैं, एक या दो दिन रह कर चली गयीं, पर यह मोच कुछ विशेष थी, मानो बहुत कुछ सिखाने आयी हो। यह पूरा दैनिक क्रम बिगाड़ कर रख सकती है, इसका अनुभव पहली बार हुआ जीवन में। रात की नींद टूटी रहने लगी, करवट बदलते ही दर्द की हूक सी उठती, सहसा याद आता कि इस पीड़ा ने करवट बदलने का अधिकार भी छीन लिया है, सहज होने में समय लगता, अगली करवट तक नींद बनी रहती। करवटें बड़ी पुरानी हैं, वे तो बनी रहेंगी, गर्दन की पीड़ा के लिये वे अपना स्थान छोड़ने वाली नहीं, पुराना नये को नहीं आने देता है, दोनों ही नहीं माने, करवटें भी रहीं, मोच भी रही, रात भी हमारी आहों से जीवन्त रही।
रात की थकान आगत दिवस को भी आहत किये रहती है, दिन में चैतन्यता बिना बताये ही कभी भी सरक लेती, सामने वाले को लगता कि साहब की ऊर्जा या तो बहुत कम है या मूड उतरा हुआ है, उत्साह की बातें या अत्यन्त आवश्यक कार्य पीछे रह जाते हैं। साथ रहने वाले पर्यवेक्षक को भी ज्ञात है कि जब साहब की ऊर्जा का स्तर कम हो तब उनका आगन्तुकों और अधीनस्थ कर्मचारियों से भेंट कराना ठीक नहीं, निर्णय उतने प्रभावी नहीं रहते हैं जैसे समान्यतया होते हैं। एकाकीपन पीड़ा को और गहरा देता है। दर्दनिवारक दवाई न खाने का हठ मेरा ही था, अपने शरीर और अपने बीच कोई अल्पकालीन झूलता तन्तु नहीं चाहता था मैं।
दो दिन बाद ही सही, अन्ततः पर्यवेक्षक ने मुझे गर्दन की सिकाई करने के लिये मना लिया, ५ दिन, नित्य आधा घंटे के लिये, रेलवे अस्पताल में। फिजियोथेरेपिस्ट श्री जॉयस योग्य थे, दो विधियाँ चुनी गयीं उनके द्वारा, इंटरफेरेन्स थेरेपी और इलेक्ट्रानिक डाइथर्मी, दोनों ही पीड़ा का क्षेत्र और प्रभाव सीमित करने के लिये। सिकाई के समय अपने आईफोन पर यह पोस्ट लिखता रहा साथ ही साथ बीच बीच में श्री जॉयस से बातचीत भी होती रही, उन्होने तकिया लगाने और पेट के बल लेटकर टाइप करने को तात्कालिक प्रभाव से मना कर दिया। जब उन्हें पता लगा कि हमारा अधिक समय कम्प्यूटर पर बीतता है तो समुचित बैठने और हर आधे घंटे में एक बार उठकर टहलने की सलाह भी हम पर थोप दी गयी। नयी जीवनशैली की गहरी समझ थी श्री जॉयस को, उनके साथ बातचीत करना अत्यन्त लाभकारी और रोचक अनुभव रहा मेरे लिये।
आज धीरे धीरे पीड़ा घट रही है और जीवन सामान्य हो रहा है, पर यह ७ दिन का समय कई अपरिवर्तनीय परिवर्तन लेकर आया। पहला तो इसके कारण सीधे रहकर चलना सीख लिया, बिना किसी विकर्षण के, पूर्ण एकाग्रमना हो। दूसरा बलात ही सही पर सुबह शीघ्र उठना होने लगा क्योंकि लेटने में होनी वाली पीड़ा से अच्छा था कुछ सार्थक कर लेना। तीसरा लाभ जीवनशैली के सम्बन्ध में श्री जॉयस की सलाह का अनुपालन, लम्बे समय ब्लॉगिंग करने वालों के लिये रामबाण। दो और परिवर्तन जो तत्काल तजना चाहूँगा, कुछ न खेलने से बढ़े वजन को और सुबह ठंड से बचने के लिये स्वेटर पहना कर बबुआ बना दिये गये स्वरूप को।
अब कहीं जाकर अंग्रेजी के इस प्रचलित मुहावरे(Pain in the neck) का व्यवहारिक अर्थ समझ में आया और साथ ही समझ आया अर्थ हिन्दी के एक गीत का, करवटें बदलते रहे सारी रात हम...आपकी कसम....
राणा सांगा के संस्कार सीख में थे, पैर और हाथ चल रहे थे, गर्दन में एक दर्दनिवारक स्प्रे किया 'वोलिनी'। पूरे निरीक्षण के समय सर और कन्धे एक साथ ही घूमते थे, धीरे धीरे, सामने वाले को भी लगता था कि ध्यान पूरा दिया जा रहा है। येन केन प्रकारेण निरीक्षण समाप्त हुआ तो घर के कुछ आवश्यक कार्य निकल आये। मुख्यालय में होने वाली एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बैठक की सूचना सायं मिली। आने जाने में दो रातों की ट्रेन यात्रा और मुख्यालय में दिन भर की व्यस्तता, जब वापस बंगलुरु आया, गर्दन की पीड़ा विकराल रूप ले चुकी थी, जरा भी हिलने से सारा शरीर पीड़ा से थरथरा जाता था।
रात की थकान आगत दिवस को भी आहत किये रहती है, दिन में चैतन्यता बिना बताये ही कभी भी सरक लेती, सामने वाले को लगता कि साहब की ऊर्जा या तो बहुत कम है या मूड उतरा हुआ है, उत्साह की बातें या अत्यन्त आवश्यक कार्य पीछे रह जाते हैं। साथ रहने वाले पर्यवेक्षक को भी ज्ञात है कि जब साहब की ऊर्जा का स्तर कम हो तब उनका आगन्तुकों और अधीनस्थ कर्मचारियों से भेंट कराना ठीक नहीं, निर्णय उतने प्रभावी नहीं रहते हैं जैसे समान्यतया होते हैं। एकाकीपन पीड़ा को और गहरा देता है। दर्दनिवारक दवाई न खाने का हठ मेरा ही था, अपने शरीर और अपने बीच कोई अल्पकालीन झूलता तन्तु नहीं चाहता था मैं।
दो दिन बाद ही सही, अन्ततः पर्यवेक्षक ने मुझे गर्दन की सिकाई करने के लिये मना लिया, ५ दिन, नित्य आधा घंटे के लिये, रेलवे अस्पताल में। फिजियोथेरेपिस्ट श्री जॉयस योग्य थे, दो विधियाँ चुनी गयीं उनके द्वारा, इंटरफेरेन्स थेरेपी और इलेक्ट्रानिक डाइथर्मी, दोनों ही पीड़ा का क्षेत्र और प्रभाव सीमित करने के लिये। सिकाई के समय अपने आईफोन पर यह पोस्ट लिखता रहा साथ ही साथ बीच बीच में श्री जॉयस से बातचीत भी होती रही, उन्होने तकिया लगाने और पेट के बल लेटकर टाइप करने को तात्कालिक प्रभाव से मना कर दिया। जब उन्हें पता लगा कि हमारा अधिक समय कम्प्यूटर पर बीतता है तो समुचित बैठने और हर आधे घंटे में एक बार उठकर टहलने की सलाह भी हम पर थोप दी गयी। नयी जीवनशैली की गहरी समझ थी श्री जॉयस को, उनके साथ बातचीत करना अत्यन्त लाभकारी और रोचक अनुभव रहा मेरे लिये।
आज धीरे धीरे पीड़ा घट रही है और जीवन सामान्य हो रहा है, पर यह ७ दिन का समय कई अपरिवर्तनीय परिवर्तन लेकर आया। पहला तो इसके कारण सीधे रहकर चलना सीख लिया, बिना किसी विकर्षण के, पूर्ण एकाग्रमना हो। दूसरा बलात ही सही पर सुबह शीघ्र उठना होने लगा क्योंकि लेटने में होनी वाली पीड़ा से अच्छा था कुछ सार्थक कर लेना। तीसरा लाभ जीवनशैली के सम्बन्ध में श्री जॉयस की सलाह का अनुपालन, लम्बे समय ब्लॉगिंग करने वालों के लिये रामबाण। दो और परिवर्तन जो तत्काल तजना चाहूँगा, कुछ न खेलने से बढ़े वजन को और सुबह ठंड से बचने के लिये स्वेटर पहना कर बबुआ बना दिये गये स्वरूप को।
अब कहीं जाकर अंग्रेजी के इस प्रचलित मुहावरे(Pain in the neck) का व्यवहारिक अर्थ समझ में आया और साथ ही समझ आया अर्थ हिन्दी के एक गीत का, करवटें बदलते रहे सारी रात हम...आपकी कसम....
यह एक अति अल्पकालिक फेज है चला जायेगा -शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामना और यह सुझाव भी कि कुशल चिकित्सक के परामर्श में रहिये....
ReplyDeleteलम्बे समय ब्लॉगिंग करने वालों के लिये श्री जॉयस की सलाह एक पोस्ट के माध्यम से अन्य ब्लोगर्स को भी बताएं पर गर्दन का दर्द पूरी तरह ठीक होने के बाद|
ReplyDeleteआगे से ध्यान रखियेगा गर्दन की मोच निकालने में नाई बहुत माहिर होते है|
सर आधुनिक जीवन शैली ,अत्यधिक व्यस्तता हमारा सुकून कम कर रही है |आप शीघ्र स्वस्थ हों |शुभकामनाएं |
ReplyDeleteदर्द निवारक गोली से क्या दुश्मनी है? डॉक्टर की सलाह लेकर खा सकते थे. अप्प जल्द ही पूर्ण चैतन्यता प्राप्त करें यही प्रार्थना है.
ReplyDeleteसर जी इस दर्द से तो हम भी परेशान हैं, सभी ब्लोगर्स को पहेले ही सचेत हो जाना चाहिए... रोज़ सुबह गर्दन और कन्धों के व्यायाम करना आवश्यक है... साथ कम्प्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन भी नीची नहीं होनी चाहिए कि गर्दन झुका कर पढना या लिखना पड़े. स्क्रीन गर्दन के हिसाब से ऊपर होनी चाहिए, इससे इस तरह की परेशानी उत्पन्न नहीं होगी.
ReplyDeleteपीड़ा से भी कईं अधिक चैन छीन लेता है गर्दन का दर्द!! आशा है अब राहत होगी। डॉ जॉयस की सलाह मानने योग्य है। इस पोस्ट के बहाले ध्यान दिलाने का शुक्रिया!!
ReplyDeleteबहुत भीषण होता है...
ReplyDeleteपीड़ा आती तो कितना कुछ सिखा जाती है...... वैसे आपकी पोस्ट्स में हर स्थिति में सकारात्मक बने रहने का सन्देश ज़रूर मिल जाता है....ख्याल रखिये
ReplyDelete" यह तो अच्छा हुआ कि मोच घर में ही आयी, नहीं तो क्या पता शारीरिक पीड़ा के साथ साथ ही मानसिक पीड़ा भी झेल रहे होते, अनावश्यक इधर उधर देखने के आक्षेप की।"
ReplyDeleteभले इंसानों में यही तो कमी होती है कि जाने-अनजाने सच्चाई उगल ही देते है :)
बिना मांगे सलाह आज आपको खूब मिलने वाली है ...अति सर्वत्र वर्जयेत ....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है ..
ईश्वर आपको जल्दी स्वस्थ करें ...
दर्द ना जाने कब किसके पास आ जाये और उसे अहसास करवा दे की में भी हूँ .....!
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको ...
ReplyDeleteयह पीड़ा "अपरिवर्तनीय परिवर्तन" सा करके जो सीखा गयी... वह 'एकाग्रमना' होने की सीख तो बड़ी प्रभावी है...!
ReplyDeleteGet well soon!
Regards,
चलिये अच्छा हुया आपके दर्द की दवा हो गयी और कोई बहुत ज्यादा तकलीफ़ नहीं हुयी।
ReplyDeleteगर्दन की मोच की समस्या से पिछले साल हमारा सामना हुआ था और इसने हमसे हाथ जुडवा लिये थे। भला हो हमारी एक मित्र का जो पेशे से Chiropractor हैं। उन्होने अगले दिन मुफ़्त में क्लीनिक बुलाकर चार छोटे इलेक्ट्रोड पैड गर्दन के बांयी और चार दांयी तरफ़ चिपका कर, एक मशीन की घुंडी उमेठकर कहा कि अब आधा घंटा मजा लो। मजा क्या, हर पंद्रहवें सेकेंड्स के अन्तराल से १० सेकेंड की अवधि के लिये इलेक्ट्रोड गर्दन को झनझना रहे थे। उसके बाद उन्होनें कहा कि जब तनकर अकडी हुयी मांसपेशियां इलिक्ट्रिक शाक के बाद अपने नियत स्थान पर लौटेंगी तो दर्द खत्म होने से पहले एक बार जोर से बढेगा।
ईश्वर साक्षी है कि शाम के विकट टैफ़िक में उनके क्लीनिक से जो घर आने में ४५ मिनट कार चलानी पडी थी कि पूछिये मत, आखिरी के पन्द्रह मिनट में तो सांस लेते भी गर्दन हिल जाये तो तौबा तौबा...घर आकर चादर तान कर ४ घंटे सो गये। सोकर उठे तो सब कुछ अपनी जगह दुरुस्त ।
वैसे हमारी गर्दन दौडते समय विपरीत दिशा में तेजी से भागती एक सुन्दरी के सौन्दर्य में मोहित होने के कारण अपने आप घूम गयी थी, जिसके चलते तीन दिन तकलीफ़ में रहे :)
चलिये अच्छा हुया आपके दर्द की दवा हो गयी और कोई बहुत ज्यादा तकलीफ़ नहीं हुयी।
ReplyDeleteगर्दन की मोच की समस्या से पिछले साल हमारा सामना हुआ था और इसने हमसे हाथ जुडवा लिये थे। भला हो हमारी एक मित्र का जो पेशे से Chiropractor हैं। उन्होने अगले दिन मुफ़्त में क्लीनिक बुलाकर चार छोटे इलेक्ट्रोड पैड गर्दन के बांयी और चार दांयी तरफ़ चिपका कर, एक मशीन की घुंडी उमेठकर कहा कि अब आधा घंटा मजा लो। मजा क्या, हर पंद्रहवें सेकेंड्स के अन्तराल से १० सेकेंड की अवधि के लिये इलेक्ट्रोड गर्दन को झनझना रहे थे। उसके बाद उन्होनें कहा कि जब तनकर अकडी हुयी मांसपेशियां इलिक्ट्रिक शाक के बाद अपने नियत स्थान पर लौटेंगी तो दर्द खत्म होने से पहले एक बार जोर से बढेगा।
ईश्वर साक्षी है कि शाम के विकट टैफ़िक में उनके क्लीनिक से जो घर आने में ४५ मिनट कार चलानी पडी थी कि पूछिये मत, आखिरी के पन्द्रह मिनट में तो सांस लेते भी गर्दन हिल जाये तो तौबा तौबा...घर आकर चादर तान कर ४ घंटे सो गये। सोकर उठे तो सब कुछ अपनी जगह दुरुस्त ।
वैसे हमारी गर्दन दौडते समय विपरीत दिशा में तेजी से भागती एक सुन्दरी के सौन्दर्य में मोहित होने के कारण अपने आप घूम गयी थी, जिसके चलते तीन दिन तकलीफ़ में रहे :)
जो १५ सेकेन्ड में झटका देती है, वही इन्टरफेरेन्स थेरेपी है, हमको तो 18 MA पर इलेक्ट्रोड लगाये।
Deleteहमें तो आदत बन गयी है गर्दन दर्द, पीठ का दर्द, हाँ अब एक नया दर्द दायें हाथ की कंधे से जुड़े हिस्से पर , लगभग ६ महीने हो गए, न करवट, न दवाई , सिर्फ व्यायाम से राहत मिलती है.
ReplyDeleteअहले दिल यूं भी निभा लेते हैं, दर्द सीने में छुपा लेते हैं...
ReplyDelete
जय हिंद...
आशा है अब दर्द से छुटकारा मिल गया होगा ..
ReplyDeleteअपनी व्यथा को कहते हुए भी पते की बात बता दी है --
पुराना नये को नहीं आने देता है, दोनों ही नहीं माने, करवटें भी रहीं, मोच भी रही, रात भी हमारी आहों से जीवन्त रही।
अपना ख्याल रखें ... आप से मिली जानकारी हमारे भी काम आएगी !
ReplyDeleteचलिए इस भयानक तकलीफ ने कुछ टिप्स दिए
ReplyDeleteये समस्या हमारे साथ तो होती ही रहती है …………बस थोडा सा एहतियात बरतने से ही संभल सकती है………उम्मीद है अब आप स्वस्थ होंगे।
ReplyDeleteआधुनिक जीवन शैली कई दर्द भी दे जाती है ...
ReplyDeleteघर में बुजुर्ग महिला होती तो निश्चित रूप से किसी ने किसी के चरण गर्दन पर पड़े ही होते , एक लोकप्रिय टोटका है :)
शारीरिक अंगों की नाज़ो अदा ही जुदा है ..
ReplyDeleteचलिए देर आए दुरुस्त आए ... ख्याल रखें अपना ... गर्दन का मामला कई परेशानियां खड़ी कर सकता है ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के माध्यम से कई बातों पर आपने ध्यान केन्द्रित किया है आपने .. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति आपके लिये शुभकामनाऍं
ReplyDeleteयही है भैया खुद को निस्पृह द्रष्टा भाव से देखना ,दर्द से फोकस हटाकर ध्यान कहीं और लगाना यानी दर्द के संकेत को भटकाना माने "दर्दनाशी".अलबता बॉडी सिग्नल्स की अनदेखी करने और मल्टी-टास्किंग के परिणाम आगे पीछे भुगतने ही पडतें हैं .चारा क्या है ?
ReplyDeleteकरवटें बड़ी पुरानी हैं, वे तो बनी रहेंगी, गर्दन की पीड़ा के लिये वे अपना स्थान छोड़ने वाली नहीं, पुराना नये को नहीं आने देता है, दोनों ही नहीं माने, करवटें भी रहीं, मोच भी रही, रात भी हमारी आहों से जीवन्त रही।
ReplyDeleteपहले मामूली गर्दन थी .सहानुभूति प्राप्त बन्ने से आपने रोक लिया .आराम करते तो सहानुभूति मिलती .
द्रष्टा आपका दर्द को साक्षी भाव से देखता रहा .यही है योग .
किसी हिस्से का मूल्य उसके कष्ट देने से पता चलता है मैं पीठ के साथ ये तकलीफ झेल चुकी हूँ... आप जैसी आशावादी बनने की प्रेरणा भी मिल गई कुछ बुरे में भी अच्छा छिपा होता है
ReplyDeleteमोच चलिये ठीक हो जायेगी !! ऊपर वाले की मेहरबानी है कि यह उन मेरुदण्दीय समस्याओं में नहीं शुमार है जो लाइलाज हैं -- मुझे जून 2008 के बाद से सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस c-6 का सामना करना पड़ा कारण स्पष्ट: यही हैं -- ज़िन्दगी में हर जगह झुकना - घर में ऑफिस में और कम्प्यूटर पर -- लेकिन जो पीड़ा भुगतनी पड़ती है वो असहनीय होती है और वहाँ समझ आया कि क्यों मनमोहन देसाई जैसे व्यक्ति ने रीढ के दर्द के करण खुदकुशी कर ली थी - कुछ precautions जो सुझाये गये थे उनका अनुपालन आपको भी प्रस्तावित कर रहा हूँ --
ReplyDeleteDo not sit for prolonged period of time in stressful postures
Do use firm collars while traveling
Do not lift heavy weights on head or back
Do not turn from your body but turn your body moving your feet first
Do turn to one side while getting up from lying down
Do the exercises prescribed regularly
Do use firm mattress, thin pillow or butterfly shaped pillow
Do not lie flat on your stomach.
शुभकामनाओं सहित ---मयंक
मोच चलिये ठीक हो जायेगी !! ऊपर वाले की मेहरबानी है कि यह उन मेरुदण्दीय समस्याओं में नहीं शुमार है जो लाइलाज हैं -- मुझे जून 2008 के बाद से सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस c-6 का सामना करना पड़ा कारण स्पष्ट: यही हैं -- ज़िन्दगी में हर जगह झुकना - घर में ऑफिस में और कम्प्यूटर पर -- लेकिन जो पीड़ा भुगतनी पड़ती है वो असहनीय होती है और वहाँ समझ आया कि क्यों मनमोहन देसाई जैसे व्यक्ति ने रीढ के दर्द के करण खुदकुशी कर ली थी - कुछ precautions जो सुझाये गये थे उनका अनुपालन आपको भी प्रस्तावित कर रहा हूँ --
ReplyDeleteDo not sit for prolonged period of time in stressful postures
Do use firm collars while traveling
Do not lift heavy weights on head or back
Do not turn from your body but turn your body moving your feet first
Do turn to one side while getting up from lying down
Do the exercises prescribed regularly
Do use firm mattress, thin pillow or butterfly shaped pillow
Do not lie flat on your stomach.
शुभकामनाओं सहित ---मयंक
उफ़ हाल फिलहाल इसी दौर से गुजरे हैं हम भी....हमें भी यही कहा गया .ब्लॉग्गिंग बंद करो :(.आपकी पोस्ट से मुझे भी वो जानलेवा गर्दन का दर्द याद हो आया...
ReplyDeleteआप से पूरी सहानुभूति है .
ReplyDeleteएक पोस्ट लिखी थी कभी '-दर्द की दवा '(गर्दन के दर्द की ही है ).अपने हिसाब से डो़ज़ तय कर लें,प्रवीण जी आपके लिये व्यक्तियोचित परिवर्तन के साथ उपयोगी रहे शायद .
हो सकता है वैसी स्थिति में किसी को लाभ हो ,जिसे लाभ हो सूचना ज़रूर दे दे- चाहे बिना धन्यवाद के ही .
उसका पता है -http://lambikavitayen5.blogspot.in/2010/06/blog-post_30.html
रोचक है, प्रयोग कर के देखते हैं।
Deleteचलिये कोई बात नही इस से कम से यह आभास तो हो जाता है हमें की शरीर रूपी मशीन का हर पार्ट कितना उपयोगी एवं महत्वपूर्ण भी तो अब आगे से ख्याल रखिये अपना...शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत पीड़ादायक स्थिति होती है.. झेला है मैंने भी! जल्द ही स्वस्थ हों!!
ReplyDeleteoh! Get well soon!!
ReplyDeleteछोटी पीडा में बडा जीवन दर्शन। छोटी घटनाओं के बडे सबक।
ReplyDeleteसच है दर्द तो दर्द ही होता है पीड़ादायक ..लेकिन जाते -जाते बहुत कुछ दे भी जाती है जैसे अनुभव.. और बहुत कुछ सीखा भी जाती है.. अपना ख्याल रखिये...शुभकामनायें..
ReplyDeleteगर्दन की मोच क्या होती है वो ही समझ सकता है जिसने इसे भोग हो...मैं भी भोगने वालों में से एक हूँ...पढ़ते हुए लगा जैसे आप मेरी ही दास्ताँ लिख रहे हैं...जल्दी आराम पाईये..और एक नयी मोच के लिए तैयार हो जाईये...क्यूँ की ज़िन्दगी है तो मोच है...कभी भी कहीं भी चली आएगी...:-)
ReplyDeleteनीरज
संतोष त्रिवेदी जी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteहम भी इधर नासाज़ हैं,
तुम भी हो खाये चोट,
यह वक्त भी गुज़र जायेगा
फिर से खिलेंगे होंठ
सुन कर अफ़सोस हुआ,प्रवीन जी.... अपना ध्यान रखिये ,डॉ. की सलाह और अहतियात का पूरा ध्यान रखिये .नीरज जी ने बिलकुल ठीक कहा भुक्तभोगी ही समझ सकता है ,मैं भी काफी सालों से इस तकलीफ से guzar रही हूँ,२ साल बिस्तर पर गुजारे है इस तकलीफ के कारण,और अब भी हर दस पन्द्रह दिन में १,२, दिन बिस्तर पर ही लेटे हुए निकलता है,आप को डरना मेरा आशय नहीं ,सिर्फ ये कहना चाहती हूँ के बीमारी को गम्भीरता से ना लेने के परिणाम क्या होते है.......डॉ. की दी सलाह पर अमल कीजिये, और पूर्ण स्वस्थ हो कर अपने जीवन को बेहतर तरीके से गुजारिये ये ही शुभकामनाये ........
ReplyDeleteजल्दी आराम मिल सके यही कामना है,टिप्स हमारे भी काम आएँगे। दो दिनों से यही पीड़ा साथ लिये हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteWish you a speedy recovery Praveen ji. I can totally understand the state you must be in! This must be causing you a lot of discomfort, especially at night! Hope you are healthy and kicking soon!
ReplyDeletesamajh sakti hun bahut peedadayak sthiti hai ye...lekin chalo nijat paayi jo zindgi k kuchh falasfe bhi sikha gayi. sath me ham jaison ko bhi sachet kar gayi apki ye post.
ReplyDeleteइसमें ब्लागिंग को कितना श्रेय दिया जा सकता है?
ReplyDeleteआपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
ReplyDeleteशीघ्र स्वस्थ हों, ईश्वर से कामना है।
किसी अंग के ना काम करने पर ही उसकी उपयोगिता का अंदाज़ा होता है। शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना के साथ
ReplyDeletewaah praveenji....
ReplyDeletekya badiya likh diya aapne apne dard ko...
ab aadha dard to isi se khatm ho jaana chahiye kyun ki dard baantne se bant jaata hai....aur bachkhucha kaam doctor ne kar hi diya....khair jo bhi ho is dard se jaldi nizaat mil jayegi...
प्रवीण जी,....दर्द कही भी कष्ट तो होता है,..आपके दर्द को मै भी कर महसूस कर सकता हूँ,मैंने तो इस गर्दन के दर्द कई बार झेला है,सावधान रहें...
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुतीकरण..
...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
aapne apne dard ka vivran is rochak andaaj me likha ki aapki gardan ke prati sahanubhooti aur padhte hue maja dono ek saath aa rahe the aksar esa kam hi hota hai ki kisi post me do-do bhavnayen ek saath umde maaf karna jo mahsoos kiya likh diya main to blog par itni der se pahuchi ki ab tak to aapki gardan theek bhi ho gai hogi chalo aage ke liye aapko dhyaan rakhne ki hi hidayat de deti hoon.apna dhyaan rakhen.
ReplyDeleteआशा है अब पुर्ण स्वस्थ होंगे। कुछ दिनों के लिए पुणे जा रही हूँ अत: अनियमितता रहेगी, आपकी आगामी पोस्ट आने के बाद ही पढना सम्भव हो सकेगा।
ReplyDeleteपीड़ादायक होती है गर्दन की मोच क्या उम्मीद है अब आप स्वस्थ होंगे।
ReplyDeletehamari shubkamnaye aapke saath hai ...........aapka shubchintak
ReplyDeleteभाई प्रवीण पाण्देय जी हिन्दी ब्लाग की भीड़ में बहुत कुछ सार्थक भी लिखा जा रहा है । उस सार्थक लेखन में आपका पूरा लेखन विचारणिय एवं पठनीय है । मेरी बधाई !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
ब्लोगिंग के साथ व्यायाम का समन्वय जरूरी है....वरना ब्लोगिंग कम कर देना या इस से विदा लेना ही श्रेयस्कर है.
ReplyDelete1.change your sitting orientation in the office.
ReplyDelete2.change your side on the bed.
3.change your side in the car (on the rear seat) ,if you are not driving.
4.try to use left hand more often to hold glass or tea-cup.
finally do take care and get well soon.
आशा है आप जल्द स्वस्थ हो जायेंगे..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
लगता है मन्ने भी दरद सुरू हो गया भाया :)
ReplyDeleteजल्द स्वस्थ होवें ऐसी प्रार्थना है ईश्वर से।
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeleteshayad isi liye kaha gaya hai
ekee saadhai sab sadhai sab sadhai sab jaaye
kaam bigaarrou
aapno-------;)
poonam
दर्द अब तो आधुनिक जीवन शैली का एक साथी बन् गया है. शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना.
ReplyDeleteApp sheeghra dard se mukt ho aisi kamna hai.
ReplyDeleteagar dard 1 week se jyada bana rahta hai ya arms/ hathon me koi symptoms hai to MRI karwane ki jaroorat ho sakti hai.
aapke bataye se lagta hai ki isne aapko kaphi pareshan kiya hai, bhawishya me sawdhani barten- get well soon
सोचिए प्रवीण जी ये सब लोग अगर आपकी गर्दन में मोच की खबर सुनकर घर आ जाते तो आपकी गर्दन का क्या हाल होता।
ReplyDeleteदर्द ठीक हो ही गया होगा..मेरे पैर में भी मोच आ गई थी..अब आराम लगा....
ReplyDeleteचलिये, इस बहाने नहाना तो हो ही गया,. :)