25.1.12

कुछ अध्याय मेरे जीवन के

खुले बन्द वातायन, मन के भाव विचरना चाहें अब,
कुछ अध्याय मेरे जीवन के पुनः सँवरना चाहें अब।

लगता है वो सच था, जिसमें मन की हिम्मत जुटी नहीं,
और अनेकों रिक्त ऋचायें मन के द्वार अबाध बहीं।

नहीं व्यक्तिगत क्षोभ तनिक यदि झुठलाना इतिहास पड़े,
आगत के द्वारे निष्प्रभ हो, विगत विकट उपहास उड़े।

मैं आत्मा-आवेग, छोड़कर बढ़ जाऊँगा क्षुब्ध समर,
आत्म-जनित तम त्याग, प्रभा के बिन्दु बने मेरा अवसर।

राह हटें तो होती पीड़ा मन की, हानि समय श्रम की,
श्रेयस्कर फिर भी है यदि जीवन ने राह नहीं भटकी।

एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।

है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

68 comments:

  1. अपने को बार-बार घोखना और चमकाना ज़रूरी है .विगत से सबक लेते हुए आगत की तैयारी में लगे रहना चाहिए !

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट काव्यात्मक अभिव्यक्ति

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  3. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।

    जीवन के विविध भाव समेटे यह रचना .

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    अपने अध्याय के पन्ने हम तक पहुँचाने के लिए आभार!
    --
    गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  5. अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।.....शुभकामनाएं!

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  6. राह हटें तो होती पीड़ा मन की, हानि समय श्रम की,
    श्रेयस्कर फिर भी है यदि जीवन ने राह नहीं भटकी।

    यह सोच ही शक्ति बनी रहती है .... जीवन का ध्येय न छूटे बस....

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  7. लगता है वो सच था, जिसमें मन की हिम्मत जुटी नहीं,
    और अनेकों रिक्त ऋचायें मन के द्वार अबाध बहीं।

    वाह प्रवीण जी, तराशे हुए शब्दों के रत्न टाँक दिये रेशमी भाव चुनरिया पर

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  8. कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ... करनी है कुछ शुरुआत नई

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  9. ritta raj25/1/12 10:09

    ati sumdar..

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  10. ह्रदय के भाव ज्यादा मुखरित होते हैं सुन्दर काव्य में..अच्छी लगी..

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  11. @है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
    तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

    कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
    पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

    सुन्दर, प्रेरक!

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  12. है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
    तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

    कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
    पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

    sundar bhav aur sundar akanksha liye huye panktiyan prernadayee lagi...bilkul utkrsht rchana....Gantantr diwas tatha sundar rachana ke liye badhai sweekaren Praveen ji.

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  13. खुले बन्द वातायन, मन के भाव विचरना चाहें अब,
    कुछ अध्याय मेरे जीवन के पुनः सँवरना चाहें अब।

    बहुत सुंदर भाव और उससे भी सुंदर भाषा...आपके गद्य से ज्यादा निष्ठ है पद्य की भाषा, आभार!

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  14. लगता है वो सच था, जिसमें मन की हिम्मत जुटी नहीं,
    और अनेकों रिक्त ऋचायें मन के द्वार अबाध बहीं।

    मैं आत्मा-आवेग, छोड़कर बढ़ जाऊँगा क्षुब्ध समर,
    आत्म-जनित तम त्याग, प्रभा के बिन्दु बने मेरा अवसर।

    मन-उद्वेग छिटक आया !

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  15. बेहतरीन भाव संयोजन ।

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  16. बेहतरीन भाव संयोजन ।

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  17. बहुत बढ़िया कविता... जीवन के अध्याय यदि पुनः सवर सकते तो क्या कहना था... सुन्दर कविता...

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    1. Bahut badhiya rachana!
      Gantantr Diwas mubarak ho!

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  18. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।

    वाह ... मन तो हमेशा ही मौजी होता है .... हर नया अपनाने को उत्सुक ...
    बहुत सुन्दर काव्य ...

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  19. सुन्दर रचना.

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  20. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।
    bahut sundar utkrasht rachna sabhi panktiyan shandar hain.gantantradivas ki badhaai.

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  21. वाह ...आपकी तो भाषा ही पढकर मन खुश हो जाता है.

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  22. बहुत सुंदर भाव.... खुद को भी मांजना चमकाना पड़ता है.

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  23. ऊर्जा से ओत प्रोत प्रेरक अतिसुन्दर रचना...

    यह जीवन दृष्टि बन जाए तो फिर जन्म संवर जाए...

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  24. लगता है करवट बदलें। कुछ नया हो। ...

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  25. मन की ऋचाओं को बड़े सुंदर ढंग से इन दोहों में समेटा है।

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  26. कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
    पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

    बहुत गहन भाव ....बहुत सकारात्मक भी .....नई भोर सी ...ऊष्मा देती सुंदर रचना ...
    काव्य की संख्या बढ़नी चाहिए ....शुभकामनायें...

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  27. कुछ अध्याय मेरे जीवन के पुनः सँवरना चाहें अब।
    सार समाहित जीवन का, आपकी रचना बेहद गहन।

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  28. Anonymous25/1/12 18:19

    sundar rachna

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  29. "पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।"
    बहुत खूब...!

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  30. मन के भावों को ऐसे अनूठे बेजोड़ शब्दों में व्यक्त करना सिर्फ और सिर्फ आपके बस की ही बात है...बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  31. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।
    - नया प्रात जीने के लिये बहुत सही उपक्रम है !

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  32. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।
    यतहर्थ को दर्शाता बहतरीन भाव संयोजन... http://aapki-pasand.blogspot.com/

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  33. बहुत सुंदर भाव....

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  34. बहुत सुंदर भावमयी कविता।

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  35. बहुत सुंदर भावमयी कविता।

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  36. sundar......kavyatmak abhivyakti ......

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  37. मैं आत्मा-आवेग, छोड़कर बढ़ जाऊँगा क्षुब्ध समर,
    आत्म-जनित तम त्याग, प्रभा के बिन्दु बने मेरा अवसर।

    है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
    तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

    भाव और भाषा दोनों ही उत्कृष्ट ..बहुत सकारात्मक उर्जा देने वाली रचना

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  38. पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी...
    हर एक दिन नयी सुबह ही तो लेकर आती है ....
    सकरात्मक सोच की उत्कृष्ट कविता !

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  39. आनंद ही आनंद. समय का चक्र कभी उल्टा चल पाता तो.

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  40. बहुत सुन्दर रचना। बधाई।

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  41. उच्च कोटि के भाव ,उच्च कोटि की भाषा |

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  42. मैं आत्मा-आवेग, छोड़कर बढ़ जाऊँगा क्षुब्ध समर,
    आत्म-जनित तम त्याग, प्रभा के बिन्दु बने मेरा अवसर।
    सार्थक ,सुन्दर भाव लिये बेहतरीन रचना

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

    vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

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  43. स्पंदित करता उर्जा का प्रवाह . उत्कृष्ट

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  44. बेहतरीन रचना...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना !

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  45. आपके इस साहस पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

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  46. Anonymous26/1/12 16:20

    बहुत सुन्दर रचना।

    हिंदी दुनिया

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  47. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  48. उत्तम भाव प्रेरणादायक.......
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यही गणतंत्र है

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  49. उत्‍साह से लबरेज...
    गहरे भाव....
    सुंदर प्रस्‍तुति।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

    जय हिंद... वंदे मातरम्।

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  50. प्रशंसनीय बहुत बढ़िया कविता परवीन जी
    ****************************
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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  51. नहीं व्यक्तिगत क्षोभ तनिक यदि झुठलाना इतिहास पड़े,
    आगत के द्वारे निष्प्रभ हो, विगत विकट उपहास उड़े।

    गजब का शब्द बन्धन!!

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  52. है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
    तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

    sundar jiwan darshan .man ko tarangit karanewali.

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  53. नई प्रात का नया सवेरा कर्कश स्वर मीठा कर दे,
    उद्वेलित मन हो शांत और जीवन में नवरस भर दे..

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  54. चमकदार अध्याय हैं जी! बधाई!

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  55. कभी अपनी आवाज भी सुना दो भाई किसी गीत पर...बहुत दिन हुए. :) बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  56. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।
    खूबसूरत रचना मन को आगे और आगे ठेलती ऊर्ध्व दिशा देती विचारों को भावों को .

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  57. कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
    पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

    बहुत खूब। न दैन्यं, न पलायनम् को व्यक्त करते आपके ये काव्योद्गगार
    आपके दिल का आईना हैं।
    हम तो इतना ही कहेंगे कि आमीन....

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  58. शुभकामनाएं ||

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  59. वाह बहुत सुन्दर बंद सकारात्मकता को लगे हैं छंद ,मुस्काये मन मंद मंद ...

    है विचार संवाद सतत तो मोह लिये किसका बैठें,
    तज डाले सब त्याज्य, हृदय को बँधने को कैसे कह दें।

    कर प्रयत्न भूले पहले भी कर्कश स्वर के राग कई,
    पर अब मन-उद्वेग उठा है जी लेने एक प्रात नयी।

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  60. bahut hi rochak post hai padh kar khushi huee

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  61. वाह बहुत सुन्दर शब्द और खूबसूरत भावों से सजी सकारात्मक रचना |

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  62. गहन जीवन दर्शन से ओतप्रोत कविता.एक द्रष्टा का भाव.हर पंक्ति जीवन को परिभाषित करती हुई.

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  63. ऐसी शब्‍दावली और ऐसे छन्‍द प्रयोग अब अपवादस्‍वरूप ही देखने/पढने को मिलते हें।

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  64. आज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  65. एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
    मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।

    बहुत खूब..

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