आँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
हृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
भावों में सागर लहरों सी, सतत बहे, मधुमय रमणी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।१।।
अरुण किरण सी, नभ-नगरी में, बन जाये स्फूर्ति चपलता,
डुला रही अपने आँचल से, बन पवनों का शीतल झोंका ।
धीरे धीरे नयन समाये, अलसायी, मादक रजनी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।२।।
मन के अध्यायों में सब था, किन्तु तुम्हारा नाम नहीं था,
तत्पर, आतुर, प्रेमपूर्ण वह, मदमाता अभिराम नहीं था ।
आ जाये, ऐश्वर्य दिखाये, सकल ओर मन मोह रमी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।३।।
(बस इतना जान लीजिये कि विवाह के बहुत पहले लिखी थी, यह आसभरी कविता)
हृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
भावों में सागर लहरों सी, सतत बहे, मधुमय रमणी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।१।।
अरुण किरण सी, नभ-नगरी में, बन जाये स्फूर्ति चपलता,
डुला रही अपने आँचल से, बन पवनों का शीतल झोंका ।
धीरे धीरे नयन समाये, अलसायी, मादक रजनी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।२।।
मन के अध्यायों में सब था, किन्तु तुम्हारा नाम नहीं था,
तत्पर, आतुर, प्रेमपूर्ण वह, मदमाता अभिराम नहीं था ।
आ जाये, ऐश्वर्य दिखाये, सकल ओर मन मोह रमी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।३।।
(बस इतना जान लीजिये कि विवाह के बहुत पहले लिखी थी, यह आसभरी कविता)
आँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
ReplyDeleteहृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
.... कुछ स्वप्न बहुत हसीं होते हैं।(जब तक आँख न खुल जाय :)
सत्य कल्पना जैसा नहीं हो पाता पर कल्पना से कहीं अधिक रोचक होता है
Deleteअभिलाषा शालीन बहुत यह,
ReplyDeleteजैसे माँग रहे हो ईश्वर।
देविय गुण सी प्रेयसि होगी,
जिसकी कविता इतनी सुन्दर।
जो नहीं मिला वह नहीं सही, पर लक्ष्य बड़े स्पष्ट यहाँ
Deleteआँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
ReplyDeleteहृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
सुंदर मन की आशा ..अभिलाषा ...
सुंदर कल्पना की उड़ान......
और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteमन के अध्यायों में सब था, किन्तु तुम्हारा नाम नहीं था,
ReplyDeleteतत्पर, आतुर, प्रेमपूर्ण वह, मदमाता अभिराम नहीं था ।
...ये दो पंक्तियाँ वर्तमान में जोड़ी गई हैं या ये भी विवाह से बहुत पहले की हैं ?
कल्पना के घरों में भूत और भविष्य को साथ साथ रहते देखा है हमने
Deleteशीतलहर में आपके भावोद्गार बहुत ही ऊष्मा दे गए |अच्छी कविता |
ReplyDeleteबहुत शानदार
ReplyDeleteविवाह के पहले सभी के ऐसे ही भाव होते हैं.
ReplyDeleteकविता बढ़िया लय में है, आपकी वह लय विवाह के बाद भी बिगड़ी नहीं है :-)
क्या हुआ, नहीं यदि लय हो,
Deleteअब तो जीवन की जय हो
यह कवि-मन तो सदा कुंवारा ही रहता है.
ReplyDeleteप्रेरणा सूत्र, प्रयास ही कर सकते हैं
Deleteआँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
ReplyDeleteहृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
.... bahut sundar abhilasha,bahut achcha geet likha hai.isme yeh photo kiski hai praveen ji??
अब यह राज भी खोलें कि आपकी अभिला्षा पूरी हुई या नहीं।
ReplyDeleteगजब ....यह कि शादी के बाद भी आप लिख पा रहे हैं.....मतलब.....आस पूरी हुई !!
ReplyDeleteab kaisa lagta hai priye
ReplyDeletejab shadi ke das saal beet gaye
komal komal koplen ban gaye mote patte.
आँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
ReplyDeleteहृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो ।
भावों में सागर लहरों सी, सतत बहे, मधुमय रमणी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो
Bahut sundar ! BTW: Why do people expect so much from their "Sajni" only :)
संस्कृति और श्रीमतीजी यह अधिकार भी नहीं देती हैं
Deleteसुंदर कल्पना,की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeletevikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
सजनी अन्नपूर्णा होती है उसकी कल्पना मार्मिक ही होती है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी शब्द रचना ...आभार ।
ReplyDeleteअब वैसी सजनी है ....
ReplyDeleteलगता है मनोकामना पूरी हो गयी. आपको शास्वत सुख एवं शांति प्राप्त हो. आपकी रचना के तो क्या कहने.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteक्या आशिकाना अंदाज़ है ...... बहुत खूब .......
... माने एलियन ?
ReplyDeleteइस विश्व के परे
DeleteQismatwala hoga jise iaisee sangini mile!
ReplyDeleteवाह! क्या बात है...
ReplyDeleteमौसम है आशिकाना ।
ए दिल कहीं से उनको एसे में ढूंढ लाना।
धीरे धीरे नयन समाये, अलसायी, मादक रजनी हो,
ReplyDeleteहो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो
अब जबकि विवाह हो गया है तो आकरी राज भी खोल दो ... आपकी आस सफल तो हुयी न ... (वैसे आपके पास कोई चारा नहीं है हाँ कहने के सिवा ..)
सब पट खोलें धीरे धीरे
Deleteख़ूबसूरत कविता...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
सजनी के प्रति आशावान सुंदर विचार...
ReplyDeleteआपकी मनोकामना पूर्ण हो गयी ...
बधाई !
बड़ी नवनीत भरी कविता।और प्रेम की अभिव्यक्ति कोई आपसे सीखे।सुंदर व सुकुमार प्रस्तुति।
ReplyDelete'हो संजीवनि,नवजीवन सी,संग रहे,ऐसी सजनी हो'
ReplyDeleteसुन्दर ख्वाब- आभार.
आपगीत भी लिखते हैं यह तो मैंने आज ही जाना बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआह हा..क्या आस है ..खूबसूरत..उम्मीद है पूरी हुई होगी :)
ReplyDeleteमनमोहनी , मनोहारी..मधुर सी ..
ReplyDeleteलग ही रहा है कि कविता आपने विवाह पूर्व ही लिख होगी। कहने की जरूरत क्यों पड गई?
ReplyDeleteसब राजी खुशी तो है ना?
पुरानी यादों की गुदगुदी जीवन में होती रहना चाहिये
Deleteकभी उन्होंने नहीं कहा कि तुम प्रणय के देवता हो, मैं समर्पित फूल हूँ!!
ReplyDeleteपूछते हैं, कहने को तैयार हैं कि नहीं
Deleteआस तो पूरी हुई है तभी न यह रचना अब तक याद है ..बहुत सुन्दर भावमयी रचना
ReplyDeleteवाह,आदर्श सजनी के सारे लक्षण -
ReplyDeleteमनोकामना पूरी हुई न!
कहां मिलेगी भैया ऐसी सजनी। एक ठो की हम भी जुगाड़ लगा लें :)
ReplyDeleteइस पद को पढ़कर बहुत सी भूली-बिसरी बातें याद आ गईं।
ReplyDeleteछन्द और प्रवाह देखते बनता है। शैली कभी प्रसाद तो कभी पन्त की याद दिलाते हैं।
कल्पनाकाश में तरुणाई का सुंदर इंद्रधनुष .
ReplyDeleteअदभुत,अदभुत,अदभुत...
ReplyDeleteप्रवीण जी, इतनी प्यारी,सुंदर रचना आपमें अदभुत लेखन क्षमता है मालूम है पर ये रचना क्या कहें शब्द ही हीं नहीं मिल रहे इतनी सुंदर है।
भाव प्रधान रागात्मक पक्ष को उजागर करती स्वप्निल कल्पना भावी जीवन की ,आस की डोर से बंधी भावी जीवन संगनी की फेंटेसी सी .लेकिन आपका वर्तमान जिस ऊर्जा से संसिक्त है उसे देखकर बोध होता है कल की आपकी कल्पना आज का यथार्थ है .मुबारक पोस्ट जीवन से जुडी .
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeletesundar kavita
ReplyDeleteदूर दृष्टा पहले से ही रहे हैं आप. :D
ReplyDeleteक्या बात है ! पुराने पन्नों से निकली नयी कविता.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
बहुत धन्यवाद
Deleteसुन्दर .. बहुत सुन्दर ... शब्द नहीं मिल रहे हैं.. बेहद उम्दा चाह और आस ..यकीन है कि शादी के बाद यह चाहत पूरी हो गयी होगी.. सादर
ReplyDeleteकविता में कल्पना या कल्पना में कविता....
ReplyDeleteदोनों ही अनुभूति अच्छा ही देती हैं....!!
सुन्दर भाव
ReplyDeleteआज सुबह सुबह सर्वप्रथम आपकी आपकी रचना पढकर बहुत अच्दा लगा। बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत प्यारी आस ...
ReplyDeleteमधुर अभिव्यक्ति..
सादर.
मधुर शब्द श्रंगार से सजे भाव!!
ReplyDelete@ बस इतना जान लीजिये कि विवाह के बहुत पहले लिखी थी, यह आसभरी कविता
-विवाह से पहले ही होती है मदमस्त भावों में प्रखरता!! :)
praveen sir comment karne me prob hai aj so yaha hi reply kar rahi hu.
Deleteaapko jab jab padhti hbu maza aa jata hai...kitni cute poem hai...very nice
ब्लॉग का फार्मेट बदला है, संभवतः यही कारण समस्या हुयी होगी
Deleteare waah! bahut sundar...
ReplyDeleteshaadi purv sabki khwahish kuchh esi hi hoti hai.
aabhaar.
एक बात तो है.... क्लास क्लास ही होता है...
ReplyDeleteनया टेम्पलेट बहुत खूबसूरत है...
अंग्रेजी में आपको हैप्पी न्यू इयर....
आपका स्वास्थ्य चित्रों में दुरुस्त लग रहा है, आपको पढ़ने को भी मिलने लगा। बहुत शुभकामनायें
Deletesundar rachana
ReplyDeletebahut accha likha aapane
vivah ke baad bhi ye baten astitva rakhti hain..to aisa na sochen, magar rachna sudar hai!!
ReplyDeleteप्रेम तो सदा ही प्रमुख रहता है जीवन में, आदर्श स्थिति है यह..
Deleteअच्छा है !सजनी साजन की हुई |
ReplyDeleteमुबारक हो |
अरुण किरण सी, नभ-नगरी में, बन जाये स्फूर्ति चपलता,
ReplyDeleteडुला रही अपने आँचल से, बन पवनों का शीतल झोंका ।
धीरे धीरे नयन समाये, अलसायी, मादक रजनी हो,
....वाह! शब्दों और भावों का लाज़वाब संयोजन. एक ताज़ी हवा का झोंका उत्कृष्ट अंदाज़ में..आभार
अच्छी है कल्पना की उड़ान आभार
Deleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुन्दर दिवा स्वप्न सी तमन्ना है .हकीकत में भिओ ऐसा हो तो जीवन कैसा हो .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का विज़िट का .
ReplyDeleteहकीकत में न भी हो पाये पर मानक तो स्थापित किये जा सकते हैं।
Deleteसुन्दर तरुण कल्पना..बहुत खूब...
ReplyDeleteवाह सुंदर मनमोहक रचना !
ReplyDeleteआपकी लेखनी को इस रंग में डूबता देख अच्छा लगा।
ReplyDeleteआँखों ही आँखों में मन के, भाव समझकर पढ़ जाती हो,
ReplyDeleteहृद की अन्तरतम सीमा में, सहज उतरकर बढ़ जाती हो.....कोमल भावो की अभिवयक्ति.....
सपनो कि सजनी कि तलाश में बहूत सुंदर ,मनमोहक, और प्यारी रचना
ReplyDeleteलिखी है..
DIL KO SUKOON DETI RACHNA.
ReplyDeleteyakinan sunder kalpna ki aasha hai kalpna poori ho chuki hogi..............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिलाषा सुन्दर भाषा
ReplyDeleteअरुण किरण सी, नभ-नगरी में, बन जाये स्फूर्ति चपलता,
ReplyDeleteडुला रही अपने आँचल से, बन पवनों का शीतल झोंका ।
धीरे धीरे नयन समाये, अलसायी, मादक रजनी हो,
हो संजीवनि, नवजीवन सी, संग रहे, ऐसी सजनी हो ।।२।।
बेशक आज का खाब ही कल की हकीकत है विज्ञान का इतिहास उठाकर खंगाल लो .बड़ा खाब देखो कलाम साहब भी यही कहतें हैं .बड़े मानक बड़ा मानकीकरण .बड़ा हासिल ज़िन्दगी का .बधाई दिल से इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए . सारे जहां की खूबसूरती समेटे हुए है यह रचना तमाम कनुप्रियाएं यहीं कहीं हैं .
जब तक स्वप्न न देखे जायें, तब तक तो उसको साकार कर पाना कठिन ही है।
Deleteबहुत बेहतरीन और प्यारी रचना
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
लोहड़ी पर्व के साथ-साथ उत्तरायणी की भी बधाई और शुभकामनाएँ!
स्नेहसिक्त रचना
ReplyDeleteur blogs touch heart deeply. gr8 writing gr8 work. Best wishes n God speed.
ReplyDeleteजाने कितने लोगों की भावनाओं को शब्द देती कविता। किसी सद्यः स्नाता की तरह मोहक।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteशत-प्रतिशत सच उतर गयी रचना। बधाई।
ReplyDeleteअच्छा है! :)
ReplyDeleteसुन्दर कविता
खूबसूरत कविता !
ReplyDeleteमन के अध्यायों में सब था, किन्तु तुम्हारा नाम नहीं था
ReplyDelete....यूँ तो पूरी कविता प्रवाहमयी है ,पर इस एक पंक्ति ने तो जैसे थाम ही लिया ... बहुत अच्छी लगी कहना शायद बहुत कम है ...:)
maanak sthapit karne mein ek hi problem hai.. deviation ,jo ki hota hi hai, kee sthiti mein bari peeda hoti hai.. iske ulat maanak hi ekdam "low standard" rakhen , jo mil jaye samjhiye Bonus.. :D
ReplyDeleteThanks for this great post. Its super helpful for the noobs like me :)
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